Tuesday, October 1, 2024
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‘सबरीमला पर निर्णय के कारण ही मामले को सुन रहे हैं’: SC ने मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश पर कहा

कल (अप्रैल 16, 2019) सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश संबंधी एक याचिका को स्वीकार किया। इसके बाद इस मामले पर जस्टिस एस ए बोबडे और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है

पुणे के एक मुस्लिम दंपति ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर करते हुए न्याय व्यवस्था से गुहार लगाई है कि भारत की मस्जिदों में औरतों के प्रवेश पर रोक को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया जाए। याचिका में यासमीन जुबेर अहमद पीरजादे और जुबेर अहमद पीरजादे ने दलील दी है कि कुरान और हदीस में ऐसी किसी बात का उल्लेख नहीं है जो मस्जिद में प्रवेश के लिए लिंगभेद को जरूरी बताए। इसके अलावा संविधान में प्राप्त अधिकारों की बात रखते हुए दंपति ने अपनी याचिका में अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का हवाला दिया और मस्जिद में महिलाओं को प्रवेश न देने को महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।

मस्जिद में महिलाएँ Vs मर्द: एक साथ खड़े होने का समय अब नहीं तो कब?

दंपति ने याचिका में इस बात का भी जिक्र किया है कि देश में बहुत सी औरतें इस भेदभाव से पीड़ित हैं लेकिन वो कोर्ट तक अपनी आवाज़ पहुँचाने की हालत में नहीं हैं। ध्यान रहे कि सऊदी अरब, यूएई, मिस्र, अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर की मस्जिदों में महिलाओं को जाने की अनुमति है। याचिका में सबरीमला विवाद का भी हवाला दिया गया है, जिसके मद्देनजर शीर्ष अदालत ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी भी धार्मिक स्थल में महिलाओं को पूजा-अर्चना के अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता।

दंपति की याचिका में कहा गया है कि जमात-ए-इस्लामी और मुजाहिद वर्ग के लोग महिलाओं को मस्जिदों में नमाज पढ़ने की अनुमति देते हैं जबकि सुन्नी समुदाय में महिलाओं के मस्जिद में जाने पर प्रतिबंध है। हालाँकि जिन मस्जिदों में महिलाओं को जाने दिया जाता है वहाँ पर उनके प्रवेश द्वार से लेकर उनके नमाज पढ़ने वाले स्थान को अलग रखा जाता है। जबकि मजहब वालों के सबसे पाक स्थल मक्का में इस तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है। काबा में महिलाएँ और पुरूष दोनों एक साथ बैठकर नमाज़ अदा करते हैं।

इसके बावजूद याचिकाकर्ताओं के वकील के जवाबों से उच्चतम न्यायालय असंतुष्ट दिखाई दिया। पीठ कहा कि सर्वोच्च न्यायालय केरल के सबरीमला मंदिर पर अपने फैसले के कारण मामले की सुनवाई के लिए तैयार है। पीठ का कहना है कि इस मामले को सुनने का एकमात्र कारण, केरल के सबरीमाला मंदिर पर उनका फैसला है।

गौरतलब है कि पुणे के मुस्लिम दंपत्ति ने याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि विधानमंडल आम महिलाओं/मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और उनके समानता के अधिकार सुनिश्चित करने में विफल रहा है, विशेष रूप से तब जब बात महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश को लेकर हो या फिर उनके बुर्के पहनने को लेकर हो।

VIDEO: ‘झाड़ू उठाओ और सेन्ट्रल फ़ोर्स को मार भगाओ’- तृणमूल विधायक का फरमान

पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल की एक विधायक ने केंद्रीय सुरक्षा बलों के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया है। चकदाहा की विधायक रत्ना ने तृणमूल कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि सेन्ट्रल फ़ोर्स (संभवतः CRPF) को खदेड़ने का समय आ गया है। रत्ना घोष ने पार्टी कैडर को संबोधित करते हुए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया। एक विधायक द्वारा इस तरह खुलेआम हिंसा भड़काने की बात करने पर भाजपा समेत अन्य दलों ने निशाना साधा है। नीचे दिए गए वीडियो में आप देख सकते हैं कैसे विधायक कार्यकर्ताओं को हिंसक बनने को कह रही हैं।

नदिया ज़िले के सिमुराही की एक भरी सभा में बंद दरवाज़ों के बीच कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए तृणमूल विधायक ने कहा कि अगर आप कोई युद्ध जीतना चाहते हैं तो इसका कुछ भी अच्छा या बुरा तरीका नहीं होता। विधायक ने कहा कि इसके लिए अलोकतांत्रिक या कोई भी ऐसा तरीका अपनाया जा सकता है। विधायक ने ‘किसी भी माध्यम का प्रयोग करते हुए’ इस ‘युद्ध’ को जीतने की बात कही।

विधायक ने हिंसा भड़काने की बात करते हुए आगे कहा:

“मैंने 2016 के विधानसभा चुनाव में देखा था कि कैसे ये अर्धसैनिक बलों के जवान हमरे लड़कों की पिटाई करते हैं। उस समय बहुत ख़ूनख़राबा हुआ था। इस समय स्थिति और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है। मैं एक-एक कर सभी बूथों पर जाऊँगी और हम लोग केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों से नहीं डरेंगे। अगर केंद्रीय सुरक्षा बल ज्यादा सक्रिय होते हैं तो मैं महिला मोर्चा के सदस्यों से निवेदन करूँगी कि वो सभी झाड़ू उठाएँ और उन्हें अपने क्षेत्र से खदेड़ डालें।”

इस विवादित बयान के बाद अभी तक पार्टी द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है। एक अन्य तृणमूल नेता अनुब्रता मंडल ने भी केंद्रीय बलों को ‘नहीं छोड़ने’ की बात कही है। एक रैली को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा:

“आपलोगों को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। केंद्रीय सुरक्षा बल के जवान तो आएँगे ही। इसके लिए कोई चिंता की बात नहीं है। लेकिन अगर वो कुछ ग़लत करें तो उन्हें छोड़ना नहीं है। चाहे वहाँ जो भी हो, आपलोग पहले पहुँचिए और वोट कीजिए।”

बंगलादेशी अभिनेताओं को चुनाव प्रचार करने के लिए बुलाने से लेकर केंद्रीय बलों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काने तक, तृणमूल और उसके नेता लगातार विवादों में हैं। पश्चिम बंगाल में चुनावों में हिंसा होती इस बार सुरक्षा के ख़ास इंतजाम किए गए हैं। ऐसे में, देखना यह है कि इन विधायकों पर पार्टी व चुनाव आयोग द्वारा क्या कार्रवाई की जाती है।

Uber ड्राइवर आफ़ताब ने शिवाजी को दी माँ की गाली, यात्री के मना करने पर बौखलाया

मुंबई में एक उबर ड्राइवर ने छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर अपशब्द कहे। मराठा साम्राज्य के अधिपति रहे शिवाजी के नाम पर थिएटर को देखते ही ड्राइवर आफ़ताब गुस्से से लाल हो गया और उसने शिवाजी को माँ बहन की गालियाँ देनी शुरू कर दीं। बता दें कि मुंबई स्थित ‘शिवाजी मंदिर’ थिएटर मुंबई के दादर में स्थित है। मई 1965 में मुंबई के पहले क्लोज्ड ऑडिटोरियम के रूप में इसका उद्घाटन हुआ था। यहीं से गुज़रते समय ड्राइवर अपना आपा खो बैठा और उसने गालियाँ बकनी शुरू कर दी।

आफ़ताब ने गुस्से में कहा,“जहाँ देखो वहाँ शिवाजी…और ये लोग तो पूजा भी करते हैं उसकी..!” बता दें कि मुंबई की कई प्रसिद्ध इमारतें व लैंडमार्क शिवाजी के नाम पर रखी गई हैं। मुंबई का इंटरनेशनल एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन भी शिवाजी के नाम पर ही है। ट्विटर पर उबर ड्राइवर के बारे में ये जानकारी समीर ने दी। समीर ने जब ड्राइवर से अपशब्द नहीं बोलने को कहा तो वो और भी गुस्सा हो गया और बौखला गया।

आफताब का कहना था कि किसी को भी शिवाजी की पूजा नहीं करनी चाहिए। उसने बीच यात्रा में समीर को गाड़ी से उतर जाने को भी कहा। उसने समीर पर एहसान जताते हुआ कहा कि इतने ट्रैफिक के बावजूद वो उन्हें लेने आ गया यही बहुत है। जैसे-तैसे उसने समीर को उनके गंतव्य तक तो छोड़ दिया लेकिन उसने फिर उनका फोन छीन कर ख़ुद को 5 रेटिंग देने की कोशिश की। जब उन्होंने उबर से इस बात की शिकायत की तो उबर ने रुपए वापस कर के कहा कि उक्त ड्राइवर के विरुद्ध एक्शन ले लिया गया है।

समीर ने इस घटना का विवरण देते हुए कहा कि वो ये सब इसीलिए बता रहे हैं ताकि किसी भविष्य में अन्य यात्री के साथ ऐसी घटना न हो। उनका मानना है कि अल्पसंख्यकों को भी हिन्दू भावनाओं व परम्पराओं का सम्मान करते हुए इन सबके ख़िलाफ़ अपशब्द नहीं कहने चाहिए। उन्होंने मीडिया पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि मीडिया नैरेटिव बनाता है कि हिन्दू भीड़ मुस्लिमों को मार रही है। इसके बाद कई अन्य यूजर्स ने भी अपनी बातें रखी। एक ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि एक ओला ड्राइवर ने उससे भी फोन छीनकर ख़ुद को 5 स्टार रेटिंग दे दी थी।

द्रमुक प्रत्याशी से ₹11.5 करोड़ बरामद होने पर वेल्लोर संसदीय क्षेत्र में चुनाव रद्द

मतदान के दूसरे चरण में 18 अप्रैल को वेल्लोर में होने वाले चुनाव को निर्वाचन आयोग ने रद्द कर दिया है। गौरतलब है कि इस महीने डीएमके के एक उम्मीदवार के कार्यालय से लगभग ₹11.5 करोड़ बरामद हुए थे जिसके मद्देनजर चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति को अनुशंसा भेजी थी। लोकसभा चुनाव की अधिसूचना राष्ट्रपति जारी करते हैं, इसलिए चुनाव रद्द करना भी उनके अधिकार क्षेत्र में आता है।

निर्वाचन आयोग ने मामले की जानकारी देते हुए कहा कि उनकी सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति ने वेल्लोर में चुनाव रद्द करने के फैसले को मंजूरी दे दी है। मतदाताओं को लुभाने के लिहाज से पैसों के दुरुपयोग के आरोप में किसी संसदीय क्षेत्र में चुनाव रद्द होने का यह पहला मामला है।

कुछ दिन पहले डीएमके प्रत्याशी के कार्यालय से भारी मात्रा में नकद राशि बरामद की गई थी। जिसके बाद वहाँ की जिला पुलिस ने डीएमके उम्मीदवार कातिर आनंद समेत दो अन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया था। यह केस 10 अप्रैल को आयकर विभाग की एक रिपोर्ट के आधार पर दर्ज किया गया था।

कातिर पर जनप्रतिनिधि कानून के तहत इस मामले को दर्ज किया गया है। आनंद पर आरोप है कि उन्होंने अपने नामांकन पत्र में गलत जानकारी दी। साथ ही श्रीनिवासन और दामोदरन पर रिश्वत का आरोप है। आनंद पार्टी के वरिष्ठ नेता दुरई मुरुगन के बेटे हैं। 30 मार्च को आयकर विभाग के अफसरों ने दुरई मुरुगन के घर पर चुनाव में अवैध पैसों के इस्तेमाल की शिकायत पर छापेमारी की थी जिसमें उन्हें ₹10.50 लाख बरामद किए थे। वहीं, दो दिनों बाद दावा किया गया कि एक डीएमके नेता के ही गोदाम से ₹11.53 करोड़ बरामद किए गए थे। आनंद ने छापे की कार्रवाई को रुकवाने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था। लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली।

MHA ने बांग्लादेशी फिरदौस का वीसा किया रद्द, ममता ने प्रचार के लिए बुलाया दूसरा अभिनेता

गृह मंत्रालय ने बांग्लादेशी अभिनेता फिरदौस को दिया गया बिजनेस वीसा रद्द कर दिया है। इसके साथ ही उसे भारत छोड़ने का नोटिस भी थमा दिया गया है। फिरदौस द्वारा वीसा नियमों के उल्लंघन के बाबत गृह मंत्रालय ने इमीग्रेशन ब्यूरो से रिपोर्ट माँगी थी। फिरदौस तृणमूल के लिए पश्चिम बंगाल में प्रचार कर रहा था। नोटिस मिलने के साथ ही उसे अब तुरंत बांग्लादेश वापस लौटना होगा। वो बिजनेस वीसा पर भारत आया था। फिरदौस को ब्लैकलिस्ट भी कर दिया गया है। फिरदौस नार्थ दिनाजपुर के इस्लामपुर में रायगंज से तृणमूल लोकसभा प्रत्याशी कन्हैया लाल अग्रवाल के लिए चुनाव प्रचार कर रहा था। उसके साथ बांग्लादेशी फ़िल्म इंडस्ट्री के दो अन्य लोग अंकुश हाज़रा और पायल सरकार भी मौजूद थे।

एक अधिकारी ने इस इस बारे में विशेष जानकारी देते हुए बताया, मीडिया रिपोर्ट के आधार पर बांग्लादेशी अभिनेता से पूछा गया कि उसने चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया है या नहीं? जवाब में फिरदौस ने बताया कि वो यहाँ फ़िल्म शूटिंग के लिए आया था और उसने लोकसभा चुनाव में प्रचार भी किया है। एक विदेशी नागरिक के तौर पर उसका यहाँ चुनाव प्रचार करना सही नहीं था। अतः उसे वापस जाने को कहा गया है। अब वो चुनाव ख़त्म होने के बाद ही यहाँ शूटिंग कर पाएगा।” इससे पहले चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा था कि आचार संहिता में किसी विदेशी नागरिक द्वारा चुनाव प्रचार करने को लेकर कुछ नहीं लिखा गया है।

भाजपा ने फिरदौस के चुनाव प्रचार करने को लेकर चुनाव आयोग को शिकायत की थी। अभिनेता को गिरफ़्तार करने की माँग भी की। इसके बाद भारत में बांग्लादेश उच्चायोग ने भी फिरदौस को वापस जाने को कहा। फिरदौस द्वारा तृणमूल उम्मीदवार के पक्ष में किए गए रोड शो का वीडियो भी वायरल हो गया। भाजपा नेता प्रताप बनर्जी ने कहा कि संसदीय क्षेत्र में अल्पसंख्यक वोटों को लुभाने के लिए ही बांग्लादेशी कलाकार को यहाँ चुनाव प्रचार करने के लिए बुलाया गया था, जो कि आचार संहिता का उल्लंघन है। तृणमूल ने जवाब में 1971 मुक्ति संग्राम का हवाला देते हुए कहा कि बांग्लादेश की आज़ादी में भारत का अहम योगदान रहा है, अतः ये ग़लत नहीं है।

उधर अभी फिरदौस को लेकर विवाद थमा भी नहीं था तभी एक अन्य बांग्लादेशी अभिनेता के तृणमूल के लिए चुनाव प्रचार करने की बात सामने आई है। बांग्लादेशी अभिनेता गाज़ी अब्दुन नूर द्वारा दमदम से तृणमूल उम्मीदवार सौगत के लिए प्रचार करते हुए देखा गया। गाज़ी के साथ पश्चिम बंगाल सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे तृणमूल नेता मदन मित्रा भी मौजूद थे। भाजपा महासचिव राहुल सिन्हा ने कहा कि आज बांग्लादेशी अभिनेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं, कल को हो सकता है कि ममता बनर्जी पाकिस्तान से भी अभिनेताओं को अपने पक्ष में चुनाव प्रचार करने के लिए बुलाए।

कॉन्ग्रेस की राय भी इस मामले में भाजपा से मिलती जुलती है। वरिष्ठ नेता प्रदीप भट्टाचार्य ने बांग्लादेशी अभिनेताओं के साथ-साथ उन उम्मीदवारों को भी गिरफ़्तार करने की माँग की, जिनके पक्ष में वे प्रचार कर रहे थे। फिरदौस 4 बार अवॉर्ड जीत चुका है, वहीं गाज़ी की शूटिंग के लिए बंगाल आया हुआ है।

मेहुल चौकसी की कम्पनी को बेचा जाएगा, भगोड़े ने गिनाई अपनी बीमारियाँ

आर्थिक भगोड़े मेहुल चोकसी की बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध आभूषण रिटेल कम्पनी गीतांजलि जेम्स को बेच दिया जाएगा। चोकसी की कम्पनी लिक्विडेशन की तरफ बढ़ रही है। बता दें कि कम्पनी को क़र्ज़ देने वाले अधिकतर बैंकों ने समाधान के लिए उसे 180 दिनों का समय दिया था। अब बैंकों ने उस बढ़ाने से साफ़ इनकार कर दिया है। गीतांजलि जेम्स को क़र्ज़ देने वाले बैंकों ने हाल ही में एक बैठक की। इस बैठक में 54.14% वोटिंग से निर्णय लिया गया कि 180 दिनों की समय सीमा (समाधान प्रक्रिया की अवधि) को नहीं बढ़ाया जाएगा। कम्पनी के रिजॉल्यूशन प्रफेशनल विजय कुमार गर्ग ने स्टॉक एक्सचेंजों को मंगलवार (अप्रैल 16, 2019) को इस बात की जानकारी दी।

विजय गर्ग ने इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा, “सीओसी ने लोन रिजॉल्यूशन के लिए समयसीमा बढ़ाने से मना कर दिया है, इसलिए अब कंपनी को लेक्विडेट (बेच) कर दिया जाएगा।” बता दें कि कम्पनी को मिली 180 दिनों की ‘Corporate Insolvency Resolution Process’ की समयसीमा 6 अप्रैल को ही ख़त्म हो गई थी। अक्टूबर 2018 में नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) की मुंबई ब्रांच में ICICI बैंक ने इस कम्पनी के ख़िलाफ़ याचिका दाखिल की थी। ₹890 करोड़ के ऋण को गीतांजलि ने नहीं चुकाया था, जिसके बाद बैंक को ये क़दम उठाना पड़ा।

चोकसी और उसके भांजे नीरव मोदी के ख़िलाफ़ $200 करोड़ से भी अधिक की धोखाधड़ी का मामला चल रहा है। सरकारी एजेंसियाँ मामले की जाँच कर रही है। मामला पंजाब नेशनल बैंक से जुड़ा है। जाँच शुरू होने के बाद ये पहली इन्सॉल्वेंसी पेटिशन थी। हालाँकि, गीतांजलि पर और भी कई क़र्ज़ हैं। कम्पनी पर बैंकों का ₹12,558 करोड़ अभी भी बकाया है। अगर सीओसी की बात करें तो उसमे आईसीआईसीआई बैंक के पास 7.9% वोटिंग शेयर्स हैं, जबकि कंपनी को 5,518 करोड़ का क़र्ज़ देने वाले पीएनबी के पास 43.94% वोटिंग शेयर है।

उधर अधिकारियों ने कहा है कि चोकसी के खिलाफ प्रत्यर्पण की प्रक्रिया जारी है और भारत ऐंटिगुआ एवं बारबुडा के अधिकारियों से सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद कर रहा है। अभी क़ानूनी प्रक्रिया जारी है और जाँच एजेंसियाँ उस देश के अधिकारियों से अगली सूचना मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद ही आगे का कोई निर्णय लिया जाएगा। उधर कोर्ट में चल रहे मामले को लेकर मेहुल चोकसी ने कहा:

“मैं भारत की जाँच एजेंसियों की सख्‍ती का खामियाज़ा भुगत रहा हूँ। मेरे ख़िलाफ़ एक भी सबूत नहीं जारी किए गए हैं, लेकिन इसके बावजूद मैं अपने तीन दशक के व्यापार का नुकसान झेलने को विवश हूँ। मैं लम्बे समय से बीमार चल रहा हूँ। मुझे दिल की बीमारी तो है ही, पैरों में भी दर्द है। मेरे दिमाग में भी ख़ून का थक्का जमा हुआ है। मुख्‍य दोषी अब भी सुरक्षित हैं। स्‍कैम के मुख्‍य दोषियों से एजेंसियाँ किसी भी तरह की पूछताछ नहीं कर रही हैं।”

चोकसी ने मुंबई अदालत में दाखिल याचिका में ये बातें कहीं। नीरव मोदी अभी लंदन के जेल में बंद है और उसके प्रत्यर्पण के लिए भी भारतीय एजेंसियाँ प्रयास कर रही हैं। नीरव मोदी के ख़िलाफ़ सुनवाई के दौरान ब्रिटिश जज ने कहा कि इस बात के पर्याप्त आधार हैं कि आरोपित को ज़मानत दी गई तो वह आत्मसमर्पण नहीं करने वाला है।

कभी-कभी लगता है मैं स्वयं ही ‘बेरोज़गारी’ हूँ: रवीश, रोज़गार और आँकड़े

CMIE एक संस्था है जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखती है और रोज़गार आदि से संबंधित आँकड़े और सर्वेक्षण आदि भी करती रहती है। उसी के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ हैं महेश व्यास। व्यास जी बिजनेस स्टैंडर्ड में कॉरपोरेट में रोज़गारों की स्थिति पर लिखने की कोशिश की। कोशिश ही कहूँगा क्योंकि जब व्यक्ति बहुत ज़्यादा आँकड़े फेंकता है, और हर पैराग्राफ़ में प्रतिशत और इन्फ्लेशन जैसी भारी बातें करता है, तो उसका मक़सद एक ही होता है कि डेटा को टॉर्चर करते हुए अपने मन की बात क़बूल करवा लेना।

आर्टिकल को ज़बरदस्ती का कॉम्प्लेक्स बना देना एक अच्छी ट्रिक है। आँकड़े भर दीजिए आदमी पागल होता रहे। महेश व्यास का वो आर्टिकल वैसी ही एक कोशिश है। वहाँ उन्होंने बताया है कि उनके संगठन के आँकड़ों के हिसाब से कॉरपोरेट सेक्टर में नौकरियों में धीमापन आया है। ध्यान रहे कि जो शब्द उन्होंने इस्तेमाल किया वो ‘स्लोडाउन’ है, यानी धीमापन, न कि कमी आना, या नकारात्मक में जाना। जैसे कि अगर हर साल दस प्रतिशत की गति से रोजगार के अवसर आते थे, तो इस बार आठ प्रतिशत की ही दर है। अगर यह दर कुछ सालों तक ऊपर न उठे, तो उसे स्लोडाउन कहेंगे।

महेश व्यास के आर्टिकल की तस्वीर

लेकिन, यही प्रतिशत नकारात्मक होकर, 100 की जगह 95 नौकरी पर पहुँच जाए, तब कहेंगे कि नई नौकरियों का सृजन नहीं हो पा रहा है। खैर, महेश व्यास के आर्टिकल में दो मुख्य बातें हैं, जो समझनी जरूरी है, वरना रवीश कुमार टाइप अवसाद से आप मर जाएँगे। रवीश कुमार ने आँकड़ों को समझने की कोशिश किए बिना, अनुवाद कर दिया। वहाँ उनको ‘जॉब’ और ‘स्लोडाउन’ दिखा, बस अनुवाद कर के मोदी को लपेट लिए।

रवीश अपने पूर्वग्रहों के साथ अनुवाद करने बैठे क्योंकि बेरोज़गारी उनका फ़ेवरेट मुद्दा है जबकि सरकार ने हर साल लगभग एक करोड़ से ज़्यादा रोज़गार सृजन किए हैं। सरकारी आँकड़ों और रोज़गारों की बात आगे विस्तार से करेंगे, फ़िलहाल यह देखते हैं कि रवीश ने महेश व्यास के जटिल आर्टिकल को कहाँ गलत समझा।

जब मुद्रास्फीति या इन्फ्लेशन उच्च स्तर पर होता है, तो नौकरी देने वाली संस्था भी अपने कर्मचारियों की वेतन में सालाना वृद्धि करते हुए, सैलरी की वृद्धि की दर ज़्यादा रखते हैं। मतलब यह कि अगर आपकी सैलरी पिछले साल मार्च में 100 रुपए थी, इन्फ्लेशन 8% था, तो कम्पनी इस बात को ध्यान में रखते हुए, आपकी सैलरी में इस साल 12% की वृद्धि करेगी। ये बस उदाहरण है, लेकिन सामान्यतया तर्क यही होता है।

अब याद कीजिए 2009-14 का दौर जब इन्फ्लेशन बहुत ज़्यादा था। ज़ाहिर है कि औसत सैलरी वृद्धि भी ज़्यादा हुई थी। उसके बाद आई मोदी सरकार, जिसने इन्फ्लेशन पर लगाम लगाई, और महँगाई की दर को क़ाबू में किया। फिर क्या होगा? फिर जहाँ आपकी सैलरी मार्च 2013 से मार्च 2014 में 112 रुपए तक पहुँची, वहीं मार्च 2018 में 100 रुपए पाने वाले को मार्च 2019 में कम इन्फ्लेशन के कारण 107 रुपए तक ही पहुँचेगी।

अब एक बार और इन्फ्लेशन को समझिए कि अगर महँगाई की दर कम हो तो आप उसी 10 रुपए में एक किलो सब्जी ख़रीद सकते हैं, जो पहले 12 रुपए में ख़रीदते थे। यानी, आपके पास जो सैलरी बढ़कर आई है, वो भले ही प्रतिशत के हिसाब से कम हो, पर बाज़ार में चीज़ों के मूल्य कम रहने से, आपके दैनिक या मासिक बजट पर फ़र्क़ पड़ने नहीं दे रहा। मतलब 2009 की 12% वृद्धि 2019 के 7% के बराबर हो सकती है, अगर इन्फ्लेशन एडजस्ट किया जाए।

महेश व्यास जी ने अपने आर्टिकल में एक चालाकी कर दी। व्यास जी ने यह तो बता दिया कि कैसे 2013-14 में सैलरी में औसत वृद्धि 25% की थी, लेकिन वो ये बताना भूल गए कि 2014 से मोदी सरकार के आते ही न सिर्फ सैलरी वृद्धि दर आधी हुई बल्कि इन्फ्लेशन भी 11 और 9% की जगह 5 और 6% तक गिरते हुए, 2016 में 2.23 और 2017 में 4% तक आ गया था। बाकी की जानकारी इन ग्राफ़ में आप देख सकते हैं।

महेश व्यास ने अपने लेख में 2009-14 के बढ़े हुए इन्फ्लेशन का ज़िक्र नहीं किया

फिर से महेश व्यास जी आँकड़े को देखें, तो पता चलता है कि सैलरी की वृद्धि का प्रतिशत इन्फ्लेशन के अनुपात से ही घटा और बढ़ा है लेकिन चालाकी यही होती है कि आप 25% वृद्धि की बात तो कह देते हैं, लेकिन सरकार ने महँगाई पर रोक लगाई, वो कहने में आपकी नानी मरती है। उसके बाद बहुत सारे प्रतिशतों की बात हुई है, और बताया गया है कि इन्वेस्टमेंट आदि के कारण कॉरपोरेट सेक्टर में नौकरियाँ पहले की तरह से नहीं बढ़ रहीं।

नई नौकरियाँ मिलीं या नहीं?

वैसे तो इसके कई कारण हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में ऑटोमेशन, नई तकनीक आदि और वैश्विक मंदी भी इनमें आए धीमेपन के कारण माने जाते हैं। महेश व्यास ने शुरुआती पैराग्राफ़ में एक माहौल बनाया कि लोगों को बड़े कॉरपोरेट हाउसेज़ में नौकरियाँ चाहिए, वो वहाँ काम करना चाहते हैं। यहाँ उन्होंने चाहने की बात की, और यह भूल गए कि कई सर्वेक्षणों में कई बार यह भी कहा है कि भारत के 70-90% इन्जीनियर्स काम करने के लिए अयोग्य होते हैं, और उन्हें ट्रेनिंग देनी पड़ती है।

नौकरी चाहने और नौकरी योग्य होने में बहुत अंतर है। वर्ल्ड बैंक के एक आँकड़े के अनुसार भारत में 91% लोग अव्यवस्थित क्षेत्रों, यानी अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर, में काम करते हैं। महेश व्यास जी की ही कम्पनी ने एक और सर्वे किया जिसमें पता लगा कि पिछले तीन सालों में कुल 7.19 करोड़ नौकरियों का सृजन हुआ है। इसमें से एक बड़ा हिस्सा, 6.9 करोड़ बारहवीं या उससे कम शिक्षित लोगों के लिए है।

अब इसमें वर्ल्ड बैंक का ऊपर का प्रतिशत लगाइए कि 91% रोजगार अव्यवस्थित क्षेत्रों में है, तो लगभग तस्वीर समझ में आ जाती है। साथ ही, दो-तीन बार अलग-अलग सर्वे से (मोहनदास पई और यश बेद) हमारे पास लगातार यह आँकड़े आए हैं कि सिर्फ ऑटोमोबाइल सेक्टर से 1.4 करोड़ और प्रोफ़ेशनल सेक्टर से 40 लाख नई नौकरियों का सृजन हुआ है। इसी तरह, CII द्वारा जारी आँकड़ों के हिसाब से MSME सेक्टर में, मोदी सरकार के कार्यकाल में, लगभग 6 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है।

आप चाहें, तो रवीश कुमार की तरह माइक लेकर मुखर्जी नगर चले जाएँ और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे प्रत्याशियों की भीड़ दिखाकर कह दें कि यहाँ तो हर कोई बेरोज़गार ही है, या फिर देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यहाँ की दुःखद शिक्षा व्यवस्था के सामने, इन आँकड़ों को मानें कि हाँ, नौकरियों का सृजन हुआ है।

ये बात और है कि रवीश कुमार जैसे लगो जब रोजगार की बात करते हैं तो उनके लिए देश का हर युवा आईएएस या सीईओ होना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। ऐसी नौकरियाँ हमेशा घटती रहेंगी क्योंकि नई तकनीक, और नई ज़रूरतों के हिसाब से कम लोग, पहले के सारे काम निपटाने में सक्षम होंगे। ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसमें सरकार को कोसना मूर्खता है। नई तरह की नौकरियाँ आएँगी, लेकिन पुरानी में गिनती घटेगी।

सरकार को हम तब कोस सकते हैं जब हम यह कहेंगे कि शिक्षा व्यवस्था क्यों नहीं सुधर रही, शोध और उच्च शिक्षा पर पैसे क्यों नहीं दिए जा रहे। लेकिन ऐसा तंत्र बनाने में लम्बा समय जाता है, और हमारे देश का दुर्भाग्य देखिए कि सत्तर सालों में दो से ढाई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ही आ पाई है। खैर, यह एक अलग ही विषय है, जिस पर फिर कभी चर्चा होगी।

यहाँ, दोबारा महेश व्यास जी और रवीश कुमार की बात करना चाहूँगा कि एक ही संस्था ने यह आँकड़े दिए हैं, जहाँ रोज़गारों में वृद्धि भी हुई है, और इन्फ्लेशन घटा है। फिर रवीश कुमार किस आधार पर रोज़गार का राग हर दिन अलापते हैं, पता नहीं। आप अपने देश की स्थिति अगर नहीं समझ रहे, और आपको यहाँ का हर व्यक्ति वॉल स्ट्रीट में काम करता दिखना चाहिए, तो आप सपनों की दुनिया से बाहर आइए। वहाँ तक पहुँचने के लिए पूरा तंत्र खड़ा करना होता है। पहले सीवेज़ ट्रीटमेंट प्लांट बनाना पड़ता है, तब जाकर गंगा साफ दिखती है। लेकिन आपको पहले गंगा साफ चाहिए, प्लांट बनाने की क़वायद आपको करनी ही नहीं।

नौकरी, जॉब, सैलरी, मज़दूरी आदि का सच

हम इन बातों से दूर नहीं भाग सकते कि पकौड़ा बेचना भी किसी के लिए नौकरी है। किसी के लिए ही नहीं, बल्कि बहुत लोग स्ट्रीट फ़ूड को एक व्यवसाय के रूप में करते हैं, और उतने पैसे कमाते हैं कि परिवार का पोषण कर सकें। इसे आप जेनरलाइज़ कर के यह कह दें कि मोदी ने कहा कि सबको पकौड़ा तलना चाहिए, तब आप धूर्त हैं।

काम या रोज़गार की परिभाषा यह नहीं है कि सरकारी नौकरी ही मिले, या किसी कॉरपोरेट हाउस में ही सैलरी वाली जॉब हो। बल्कि रोजगार का मतलब यह है कि आप कुछ काम करते हैं जिससे आपको आमदनी होती है, आपका घर चलता है। परिवार भूखा नहीं सोता। ऐसा भी नहीं है कि देश में हर व्यक्ति को रोज़गार मिल गया है, और कोई भी भूखा नहीं मर रहा। ये समस्याएँ हमारे देश में हैं, और हमारी बढ़ती जनसंख्या के कारण रहेंगी।

आप खूब ख़याली पुलाव बना लें कि सबको रोजगार देंगे, लेकिन जब तक जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं होगा, आपकी बड़ी आबादी कम क्लास तक ही पढ़ेगी और उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा या तो सर पर ईंट ढोएगा, या स्विगी आदि में डिलीवरी ब्वॉय बनेगा। वो भी नौकरियाँ हैं, लेकिन हर वो व्यक्ति जो वैसी नौकरी कर रहा है, वही नौकरी करना चाहता हो, ऐसा भी नहीं।

रवीश कुमार ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अपने लेख में लिखा कि वो कई बैंकरों से मिले और उन्होंने इन्हें बताया कि काम करने के हालात खराब हुए हैं। फिर उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि इन हालात में भी कई बैंकर मोदी-मोदी कर रहे हैं। मतलब, रवीश को बैंकरों की स्थिति से कुछ लेना-देना नहीं है, उनके दुःख और प्रलाप का कारण यह है कि ये लोग मोदी-मोदी क्यों कर रहे हैं।

वैसे ही, लेख की शुरुआत में रवीश कुमार ने बताया कि पिछले कुछ सालों में देश से 36 बिज़नेसमैन फ़रार हैं और रवीश जी को चार नाम ही मालूम हैं- नीरव मोदी, माल्या, मेहुल चौकसी और संदेसरा बंधु। चालाक पत्रकार आधी बात बता कर यह जताना चाहता है कि ये लोग मोदी के कार्यकाल में फ़रार हो गए। लेकिन रवीश ने अपनी खोजी पत्रकारिता से यह नहीं बताया कि इन बिज़नेसमैन के घोटालों के समय सरकार किसकी थी?

रवीश कुमार ने यह लिखने की ज़हमत नहीं उठाई कि किस सरकार ने इन्हें भागने से रोकने, और भाग जाने के बाद विदेशों से यहाँ लाने के लिए कानून बनाए। रवीश कुमार आधा लिखते हैं, आधा अनुवाद करते हैं, और पूरे समय कहते हैं टीवी मत देखिए, लेकिन टीवी पर आना बंद नहीं करते। रवीश कुमार, कुल मिलाकर, एक अवसादग्रस्त व्यक्ति में बदल चुके हैं जो अब इस बात से नाराज है कि लोगों को मोदी में आशा क्यों दिख रही है।

रवीश कुमार अनुवादित ज्ञान पूरा दे देते हैं और लोगों को कोस लेते हैं कि वो बेरोज़गारी में भी मोदी-मोदी क्यों कर रहे हैं, लेकिन वो कोई विकल्प नहीं दिखा पाते। रवीश कुमार अपने तमाम लेखों में यह नहीं बता पाए हैं कि पिछले किन सरकारों के कौन से नेता वैसे हैं जो विजन लेकर घूम रहे हैं रैलियों में और बता रहे हैं कि अगर उनकी सरकार आई तो इस तरह से नौकरियाँ बढ़ेंगी।

रवीश कुमार, इसके उलट, कॉन्ग्रेस के ‘न्याय’ में आशा देख लेते हैं जो कि बेरोज़गारों को और भी नकारा बनाने की एक तकनीक है। एक उत्थानोन्मुखी राष्ट्र धीरे-धीरे सब्सिडी घटाता है, और अपनी जनसंख्या को क़ाबिल बनाता है कि वो स्वयं अपना पोषण कर सके। एक विजनरी नेता अपनी जनता को सक्षम बनाने के लिए प्रयासरत रहता है कि उसके पास निपुणता आए, और वो स्वयं ही सरकारी सहयोग राशि लेना बंद कर दे।

लेकिन रवीश को पंगू बनाने वाली उस स्कीम में आशा दिखती है जिसके संचालक को जीडीपी के नौ प्रतिशत और बजट के नौ प्रतिशत का फ़र्क़ पता नहीं। वो वहाँ राहुल गाँधी में आशा देखते हैं जिसे यह पता नहीं कि तीन प्रतिशत के वित्तीय घाटे में चलता देश, लगभग 90% आबादी को ‘न्याय’ योजना के ₹72,000 सालाना कहाँ से लाकर देगा?

इसलिए हे रवीश, अपने आप को ज़लील करना बंद करो। अनुवाद करो, तो थोड़ा दिमाग लगाया करो। आप एंकर हैं, वित्तीय और आर्थिक मामलों के जानकार नहीं। अंग्रेज़ी पढ़ कर, कीवर्ड देखने के बाद, लपलपाती जीभ निकालकर आप ‘जॉब’ और ‘स्लोडाउन’ का अनुवाद बेशक कर देंगे, लेकिन आप यह भूल जाएँगे कि सैलरी वृद्धि और इन्फ्लेशन का क्या संबंध है।

इसलिए, अपने होने का घमंड मत करो हे रवीश! चूँकि आपने बेरोज़गारी पर खूब लिखा है, इसका मतलब यह क़तई नहीं है कि आप सच ही लिख रहे हो। आपने नौकरियों पर शृंखला की, जो काबिलेतारीफ है, लेकिन वो सिस्टम आज का नहीं है, न ही जल्दी सही हो पाएगा। सुप्रीम कोर्ट में एसएससी के रिजल्ट को लेकर हर साल बवाल होता है।

आप जब भी बेरोज़गारी की बात करें, और सबको टाई पहनाकर, काले जूतों में गुड़गाँव भेजने की मंशा रखें, तब यह आँकड़ा भी ज़रूर दें कि किस सरकार में जनसंख्या का कितना प्रतिशत इस तरह के रोजगार में शामिल था, और दुनिया में ऐसे रोज़गारों की क्या स्थिति है। आप यह भी आँकड़ा लाकर दें कि कॉलेज से भारत की कितनी बड़ी जनसंख्या पहले निकलती थी, कितने प्रतिशत को नौकरी मिलती थी, अब कितनी निकलती है, कितने प्रतिशत को नौकरी मिलती है, एवम् नौकरियों को लेकर वैश्विक परिदृश्य कैसा है।

रवीश कुमार और उनके जैसों की समस्या है कि वो आँकड़ों को संदर्भ से हटा कर, आदर्श स्थिति में देखते हैं। स्थिति आदर्श नहीं है, संदर्भ हमेशा रहेंगे। आप 2012-13 के 25% हाइक की बात कर देंगे, लेकिन उस साल का इन्फ्लेशन बताना ज़रूरी नहीं समझेंगे। इसी को कहते हैं संदर्भ हटाना, और गुलाबी समाँ बनाना कि आहा! मनमोहन सिंह के समय कितनी नौकरियाँ थीं, कितनी सैलरी बढ़ी होती थी। आप भूल जाते हैं कि मनमोहन सिंह के समय दाल और प्याज की क़ीमत कितनी हुआ करती थीं।

इसलिए हे रवीश! दिन-रात बेरोज़गारी पर लिख-लिख कर, आपको हप्पू सिंह की उलटन-पलटन के बेनी की तरह यह अहसास होने लगा है कि आप स्वयं ही बेरोज़गारी का मूर्त स्वरूप हैं। ऐसा मत कीजिए अपने साथ, अच्छा नहीं लगता। डेटा छुपाना गलत बात है, एकदम गलत बात।

चुनाव आयोग की सिफारिश पर वेल्लोर चुनाव रद्द, द्रमुक नेता के पास से बरामद हुए थे ₹11 करोड़ से ज़्यादा

चुनाव आयोग ने चुनावी भ्रष्टाचार पर चाबुक चलाते हुए वेल्लोर के लोकसभा चुनावों को फ़िलहाल रद्द करवा दिया है। ऐसा लोकसभा क्षेत्र के द्रमुक उम्मीदवार से जुड़े सीमेंट गोदाम से कथित तौर पर ₹11.5 करोड़ की नकदी बरामद होने के बाद किया गया है। भारत के चुनावी इतिहास में यह पहली घटना है जब भ्रष्टाचार की आशंका के चलते किसी सीट पर लोकसभा मतदान रद्द किए जा रहे हैं। मीडिया में कथन जारी करते हुए चुनाव आयोग ने अपनी इस सफलता की जानकारी दी।

राष्ट्रपति से की थी अनुशंसा, तमिलनाडु से अब तक ₹500 करोड़ की नकदी और सोना बरामद

चुनाव आयोग ने गत 14 अप्रैल को राष्ट्र्पति रामनाथ कोविंद से वेल्लोर के चुनाव रद्द करने की सिफारिश की थी, जिसे उन्होंने विचार करने के उपरांत स्वीकार कर लिया है। वेल्लोर में लोकसभा चुनावों के दूसरे चरण के अंतर्गत तमिलनाडु की बाकी 38 सीटों सहित 18 अप्रैल को चुनाव होना था

अब चुनाव आयोग 23 उम्मीदवारों वाली इस सीट पर चुनाव के लिए नई तारीख तय करेगा। इस बीच तमिलनाडु में ₹500 करोड़ की नकदी और सोना बरामद किया जा चुका है। इसके अलावा जिले की पुलिस ने आयकर विभाग, जिसने यह छापा और बरामदगी की थी, की 10 अप्रैल की रिपोर्ट पर आरोपियों, डीएम कातिर आनंद व दो द्रमुक पदाधिकारियों, के खिलाफ़ मामला दर्ज कर लिया है। अब कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। आनंद द्रमुक के वरिष्ठ नेता दुरई मुरुगन के बेटे हैं।

‘लोकतंत्र की हत्या’: द्रमुक

वहीं द्रमुक ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया है। पार्टी ने मतदान रद्द करने के निर्णय को चुनौती देने की बात भी कही है।

ईसाईयों ने सबरीमाला को 1950 में आग लगा दी थी, आज भी नफरती चिंटुओं की नज़र पर है आस्था

नोट्रे डेम डी पेरिस का अंग्रेजी में शाब्दिक अर्थ “आवर लेडी ऑफ़ पेरिस” होता है, जो हिन्दी में सबसे करीबी तौर पर “पेरिस की हमारी देवी” कहा जा सकता है। इस कैथेड्रल के जलने पर पूरे विश्व भर में अफ़सोस होता रहा। मरम्मत के दौरान इसमें आग लग गयी थी। नोट्रे डेम के नाम से ख्यात इस गिरजाघर (कैथेड्रल) की खासी मान्यता है। इसे फ्रेंच-गोथिक किस्म के निर्माण के सबसे अच्छे उदाहरणों में से एक माना जाता है। इसके अलावा भी इसके पीछे एक लम्बा इतिहास रहा है।

ऐसा माना जाता है कि यहाँ पहले ज्यूपिटर (बृहस्पति) को समर्पित पैगन मंदिर हुआ करता था। यहाँ पाए गए “पिलर ऑफ़ बोटमेन” को उसका प्रमाण माना जाता है। एक पुराने चर्च पर 1163 में किंग जॉर्ज (सप्तम) और पोप एलेग्जेंडर (तृतीय) की मौजूदगी में इसका निर्माण शुरू करवाया गया था। इस भवन में पहले भी आग लग चुकी है। कई साल पहले जब 1790 के दौर में ये फ़्रांसिसी क्रांति के दौरान तोड़ फोड़ डाला गया था। जर्जर हालत में पड़े इस भवन पर लोगों का ध्यान विक्टर ह्यूगो ने दिलाया जब 1831 में उनकी किताब “नोट्रे-डेम ऑफ़ पेरिस” आई। अंग्रेजी में ये किताब “हंचबैक ऑफ़ पेरिस” नाम से आती है।

इस किताब के आने के बाद 1844-64 के दौरान अभियंता जीन बैप्टिस्ट एंटोनी लॉसस और इम्मानुएल विओल्लेट ली डुक ने इसमें वो चीज़ें जोड़ी जो आज इसे फ्रेंच गोथिक निर्माण के रूप में पहचान दिलाती हैं। इसकी प्रसिद्धि की एक वजह फ़्रांस की जॉन ऑफ़ आर्क की वजह से भी है। फ्रांस की ओर से ब्रिटिश सेना से लड़ने के लिए जाने जानी वाली इस नायिका को चर्च के आदेश पर जिन्दा जला दिया गया था। सदियों बाद अपने कुकृत्यों की माफी के रूप में जॉन ऑफ़ आर्क को “संत” घोषित किया गया। जॉन ऑफ़ आर्क का बिटीफिकेशन (संत घोषित करने की प्रक्रिया) इसी चर्च में पोप पायस (दशम) ने की थी।

धार्मिक भावनाएँ इसके जलने से आहत तो हुई होंगी, मगर इसके जलने पर जैसा मीडिया कवरेज दिखता है, वैसा दूसरे धर्मों के मामलों में नहीं होता। बरसों पहले भारत के एक जाने माने मंदिर में भी आग लगी थी। इस कैथेड्रल की तरह ये आग अपने आप या मानवीय भूल, किसी गलती से नहीं लगी थी। सबरीमाला के मंदिर को जानबूझ कर जलाया गया था। मई 1950 में इस मंदिर को जला कर खत्म कर देने की साजिश रची गयी थी। चोरी जैसा इरादा नहीं था, ये पुलिस को आसानी से समझ में आ गया था, क्योंकि कोई कीमती सामान चुराया नहीं गया था। दरवाजे पर कोल्लम के डीएसपी को, करीब महीने भर बाद जाने पर, काटने की कोशिश के 15 निशान मिले थे।

करीब सत्तर साल पहले के उस दौर में सबरीमाला के आस पास लगभग 20 किलोमीटर की दूरी में कोई आबादी नहीं थी। इस घटना में अपराधियों के पकड़े न जाने के कई कारण बताए जा सकते हैं। एक वजह ये थी कि जब ये घृणित साजिश रची गयी उस वक्त मंदिर बंद था। 17 जुलाई को जब इस घटना की रिपोर्ट दर्ज हुई, तब तक बारिश में ज्यादातर सुराग जैसे पैरों के निशान या उँगलियों के निशान धुलकर मिट चुके होंगे। पुजारी और उनके साथ के लोग इस वीभत्स घटना को देखकर घबरा गए थे, जिसकी वजह से वो सही-सही कुछ बता ही नहीं पाए। केशव मेनन जिन्हें तीन माह बाद सितम्बर में ये मामला सौंपा गया, उनके आने तक शुरूआती जाँच से अपराधी चौकन्ने हो चुके होंगे।

जो भी वजहें रही हों, मंदिरों पर जारी हमलों की बात कम ही होती है। इस बार के चुनावों में जनता के सबरीमाला मुद्दे पर अड़े रहने की वजह से शायद हमारा ध्यान भी मंदिरों की ओर जाने लगा है। सवाल यह है कि जब भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है, तो एक मंदिर की अलग पद्दतियों को अलग रहने देने पर विविधताओं के शत्रुओं को इतनी दिक्कत क्यों है? आखिर वो नफरती चिंटू इतनी नफरत कहाँ से लाते हैं कि हिन्दुओं को उनके अपने पूजा-पाठ के तरीके जो संविधान ने दिए हैं, वो भी उन्हें नहीं देना चाहते?

बाकी सवाल यह भी है कि क्या हम खुद अपने मंदिरों पर जारी हमलों को उसी तरह देखने और बयान करने की हिम्मत जुटाएँगे जैसा वो सचमुच हैं? सेकुलरिज्म का टिन का चश्मा हम अपनी आँख से उतारेंगे क्या?

मतदाताओं को बरगलाने के लिए चिदंबरम पिता-पुत्र शिवगंगा में किराने की दुकानों में छिपा रहे हैं कालाधन: IT अधिकारी

वरिष्ठ आयकर अधिकारी एसके श्रीवास्तव ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम और उनके बेटे कार्ति चिदम्बरम पर शिवगंगा के लोकसभा चुनाव में काले धन के उपयोग का आरोप लगाया है।

चुनाव अधिकारी की मिलीभगत का भी आरोप

खबरिया पोर्टल PGurus में छपी खबर के मुताबिक श्रीवास्तव के दो पन्नों के पत्र में कार्ति चिदम्बरम द्वारा कथित तौर पर छिपाई गई करोड़ों की संपत्ति और शिवगंगा लोकसभा क्षेत्र में उसके लोकसभा चुनावों के पूर्व दुरुपयोग का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है। श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि चिदंबरम पिता-पुत्र शिवगंगा की कई किराने की दुकानों में पैसे छिपा रहे हैं ताकि उन दुकानों से मुफ्त का सामान बाँट कर मतदाताओं को रिझाया जा सके।

श्रीवास्तव ने स्थानीय चुनाव अधिकारियों पर भी चिदंबरम पिता-पुत्र से मिलीभगत करने का आरोप लगाया। उनके मुताबिक कई शिकायतें दर्ज होने के बावजूद चिदंबरम पिता-पुत्र के खिलाफ़ कदम उठाने से बचा जा रहा है।

केन्द्रीय चुनाव आयोग को लिखे गए श्रीवास्तव के पत्र के अनुसार विशेष खर्च पर्यवेक्षकों के दौरे के दौरान उन्होंने यह पाया कि 67 शारीरिक रूप से उपस्थित शिकायतकर्ताओं ने चिदंबरम पर कला धन मलीगाई स्टोर (किराने की दुकानों) पर छिपाने का आरोप लगाया था। जिला चुनाव पर्यवेक्षक और रिटर्निंग अफ़सर ने आँखों में धूल झोंकने वाली खोखली जाँच कर के यह कह दिया कि कनिष्ठ अधिकारियों को जाकर देखने पर ऐसा कोई मामला नहीं दिखा था। जिला चुनाव पर्यवेक्षक और रिटर्निंग अफ़सर की हिम्मत इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि उन्होंने विशेष खर्च पर्यवेक्षकों से कह दिया कि वे शिकायतकर्ताओं की शिकायतों की जाँच करना, उनसे सबूत माँगना आदि जरूरी नहीं समझते।

श्रीवास्तव ने चुनाव आयोग से यह भी कहा कि उनके पास अपने आरोप सिद्ध करने के लिए सबूत भी हैं। उनके अनुसार जिला स्तर के चुनाव अधिकारियों के पास ‘पी चिदंबरम जैसे आदतन अपराधी’ (“hardened criminal like P Chidambaram”, श्रीवास्तव के पत्र में लिखे गए शब्द) के आर्थिक अपराधों की जाँच के लिए न जरूरी प्रशिक्षण होता है न सहायता-प्रणाली। अतः जिला चुनाव पर्यवेक्षक और रिटर्निंग अफ़सर के रूप में कार्यरत अधिकारी को कम-से-कम स्थानीय आयकर विभाग को सूचित कर देना चाहिए था। उनके ऐसा न करने से ही उनकी नीयत पता चल जाती है- एक ओर उन्होंने आयकर विभाग को शिकायतों की इत्तला नहीं की, और दूसरी ओर विशेष खर्च पर्यवेक्षकों से कह दिया कि शिकायतों में कोई सत्यता नहीं है। श्रीवास्तव के पत्र अनुसार जिला चुनाव पर्यवेक्षक और रिटर्निंग अफ़सर के रूप में नियुक्त अफ़सर के नाटक का पर्दाफ़ाश करने के लिए यह पर्याप्त है।

क्या कार्ति ने भरा झूठा हलफ़नामा?

श्रीवास्तव ने कार्ति चिदंबरम पर चुनावी धोखाधड़ी का भी आरोप लगाया और कहा कि उनका शपथपत्र झूठा है। उन्होंने वह संपत्ति तो घोषित ही नहीं की है जो आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय ने छापा मारकर सामने लाई थी।