Sunday, September 29, 2024
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1 नंबर की झूठी और धूर्त है शबाना: नवरात्रि पर हिंदू देवी-देवताओं के नाम का सहारा लेकर उड़ाया था मजाक

छद्म धर्मनिरपेक्षता की झंडाबरदार, स्वघोषित ‘निष्पक्ष’ वामपंथी ‘बौद्धिक’ शबाना आज़मी, का आज फिर से एक नया पाखंड सामने आया है। ये पहली बार नहीं है जब शबाना या उनके पति जावेद अख्तर का हिन्दुओं की भावना आहत करने वाला कोई कारनामा बाहर आया हो, ऐसा पहले भी हो चुका है। हालाँकि, सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक इन्फोग्राफिक पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, शबाना ने लिखा कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा।

वायरल उद्धरण में लिखा है कि इस नवरात्रि, मैं अल्लाह से दुआ करती हूँ कि लक्ष्मी को भीख न माँगना पड़े, कोई दुर्गा गर्भ में न मरे, न पार्वती को दहेज देना पड़े, न सरस्वती को शिक्षा से वंचित किया जाए और न ही किसी काली को ‘फेयर एंड लवली’ की ज़रूरत पड़े। इंशाल्लाह!

मजेदार बात यह कि शबाना आज़मी ने अपनी ‘लिबरल’ साख को ठेस पहुँचाकर साम्प्रदायिक रंग देने के लिए ‘ट्रोल्स’ को जिम्मेदार ठहराया है और कहा कि फर्जी उद्धरण के साथ चुनाव में ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जा रही है।

हालाँकि, शबाना को जल्द ही पता चल गया कि सोशल मीडिया के दौर में झूठ बोलकर बच निकलना थोड़ा मुश्किल है। खास तौर पर तब जब यह एक पुराने ‘हिंदूफोबिक’ पोस्ट के बारे में हो।

सोशल मीडिया यूजर ने उन्हें जल्द ही यह बता दिया कि यद्यपि उद्धरण में ‘अल्लाह’ शब्द का गलत इस्तेमाल किया गया था, लेकिन शबाना ने वास्तव में 2017 में दुर्गा अष्टमी के अवसर पर बिलकुल ऐसा ही पोस्ट किया था।

शबाना ने ट्वीट किया था, ”इस दुर्गा अष्टमी, आइए हम प्रार्थना करें कि किसी दुर्गा का गर्भपात न हो, किसी भी सरस्वती को स्कूल जाने से न रोका जाए, किसी लक्ष्मी को पति से भीख नहीं माँगनी पड़े, किसी भी पार्वती को दहेज के लिए बलि नहीं दी जाए और न ही किसी काली को फेयरनेस क्रीम के ट्यूब की ज़रूरत पड़े।” बता दें कि 29 सितंबर, 2017 को यह ट्वीट किया गया था।

ट्विटर पर कई लोगों ने शबाना को कायदे से याद दिलाते हुए कहा कि याद करिए आपने कब ऐसा ही ट्वीट पोस्ट किया था, जो महिला सशक्तिकरण की आड़ में हिंदू विश्वास पर घृणित हमला करने की एक बेहूदी कोशिश थी। यह हमला शबाना ने हिंदू देवी-देवताओं के नामों का उपयोग करते हुए नवरात्रि के दुर्गा अष्टमी के अवसर पर बड़ी धूर्तता के साथ हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुँचाया था।

जब शबाना ने ट्वीट किया था, तो कई लोगों ने उन्हें तब भी ध्यान दिलाया था कि आपने मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और उत्पीड़न को तो इसमें शामिल नहीं किया और आम सामाजिक बुराइयों के लिए सिर्फ हिंदुओं को शर्मसार करने का प्रयास किया। आप इतना पाखण्ड कर कैसे लेती हैं?

हमने फैक्ट चेक में पाया कि यह बात सही है कि नवरात्रि पर शबाना के स्टेटमेंट में अल्लाह और इंशाल्लाह शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया गया था। शबाना के ट्वीट का अनुवाद करके इंफोग्राफिक बनाने वाले ने ‘lets pray’ से यह निहितार्थ निकाला था और प्रार्थना की जगह ‘अल्लाह से दुआ’ का इस्तेमाल किया था। बाकी सभी बातें (शब्दशः) शबाना ने अपने 2017 के ट्वीट में कही थी। इसलिए शबाना का यह सफाई देना कि ‘I have NEVER said this’ – एक झूठ नहीं बल्कि महाझूठ है।

₹767 करोड़ की हेराफेरी पर मीडिया की चुप्पी घातक, चुनावी मौसम में लोकतंत्र का चौथा खंभा धराशाई

भ्रष्टाचार पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। मीडिया सत्ताधारी दल और मौजूदा केंद्र सरकार से सवाल पूछ-पूछ यह साबित करना चाहती है कि वो जागरूक है। ऐसा ही वाकया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एबीपी इंटरव्यू के दौरान हुआ। ऐसे फर्जी सवालों पर उन्होंने कहा, – राफेल पर मीडिया सुप्रीम कोर्ट, फ्रांस सरकार और कैग जैसी संस्थाओं की बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए एक पार्टी विशेष द्वारा खड़े किए गए झूठ पर चिल्लाती रही। एक ऐसे मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछे जाते रहे, जिस पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिल चुकी है, कैग द्वारा सरकार की बातों को सत्यापित किया जा चुका है और फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा मीडिया रिपोर्ट्स को नकारा जा चुका है। लेकिन, राफेल में भ्रष्टाचार की बात करनेवाले नेताओं से कभी नहीं पूछा गया कि वो किन सबूतों और गवाहों के आधार पर ये आरोप लगा रहे हैं?

इनकम टैक्स छापों में क्या-क्या मिला? पढ़िए एजेंसी का आधिकारिक स्टेटमेंट

अब ताज़ा मामले पर आते हैं। भ्रष्टाचार, हवाला, बेनामी संपत्ति, अवैध लेनदेन और चुनाव के दौरान धन का दुरुपयोग सहित अरबों की हेराफेरी के कई मामले उजागर हो रहे हैं और शक की सूई कई बड़े नेताओं पर है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के क़रीबी अधिकारी के ठिकानों पर छापा पड़ा और कई अहम ख़ुलासे हुए। गाँधी परिवार के ख़ासमख़ास अहमद पटेल के क़रीबी के यहाँ छापेमारी हुई और कई राज़ पता चले। सबसे पहले इस पूरे घटनाक्रम को समझते हैं कि कहाँ से क्या बरामद हुआ और कौन सा तार कहाँ जुड़ा हुआ है।

इनकम टैक्स की छापेमारी: अब तक क्या हुआ?

सोमवार (अप्रैल 8, 2019) देर शाम एसएम मोईन क़ुरैशी के घर पर आयकर विभाग की रेड पड़ी। मोईन क़ुरैशी कौन है? वह कॉन्ग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय में कर्मचारी है। वह कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल का क़रीबी है। उसके यहाँ छापेमारी की सूचना से बेचैन अहमद पटेल रात को 10 बजे क़ुरैशी के घर पहुँचे। क़ुरैशी के घर में सोफा पर बैठ कर मोबाइल फोन चला रहे अहमद पटेल की फोटो देखी जा सकती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क़ुरैशी के यहाँ छापा क्यों पड़ा? ऐसा इसलिए, क्योंकि जाँच एजेंसियों को सूचना मिली थी कि उसके यहाँ किसी बड़े प्रमुख पार्टी के नेताओं के 20 से 30 करोड़ रुपए पड़े हो सकते हैं। चूँकि वो खुद कॉन्ग्रेस नेता है, तो ये रुपए किस पार्टी के हो सकते हैं?

20 घंटे से भी अधिक देरी तक चली छापेमारी में आयकर विभाग को कई अहम जानकारियाँ मिलीं। उसके घर से कई दस्तावेज भी मिले। और तो और, इस छापे को कवर करने पहुँचे मीडियाकर्मियों को पिटवाया गया। एक महिला तक को नहीं बख्शा गया। लोकतंत्र का चौथा खम्भा अपने ही लोगों की पिटाई पर चुप है, पता नहीं क्यों? एक कॉन्ग्रेस नेता के घर के बाहर पत्रकारों की पिटाई होती है, महिला के साथ बदतमीजी होती है, लेकिन चारों ओर सन्नाटा है। कैमरामेन के कैमरे तोड़ दिए जाते हैं। इस पर हम आगे कुछ और गंभीर सवाल करेंगे लेकिन पहले मामले को समझते हैं। अहमद पटेल से किसी ने कुछ भी सवाल नहीं किया। वो क़ुरैशी के घर किस हड़बड़ी में पहुँचे थे? क़ुरैशी के यहाँ उनका कौन सा हित दाँव पर था? आयकर विभाग से उन्हें क्या डर है?

आनन-फानन में रात को क़ुरैशी के घर पहुँचे अहमद पटेल

आयकर विभाग की बातों पर गौर करें तो क़ुरैशी ने हवाला के जरिए 20 करोड़ रुपए प्राप्त किए और उसे कॉन्ग्रेस मुख्यालय पहुँचाया। सब कुछ साफ़ है लेकिन मीडिया में सन्नाटा है। ऑपइंडिया के ख़ुलासे पर देश के वित्त मंत्री का प्रेस कॉन्फ्रेंस को ब्लैकआउट करने वाले मीडिया को जब पीएम द्वारा आइना दिखाया जाता है तो वो तिलमिला उठता है। 4 राज्यों के 52 ठिकानों पर पड़े रेड में 300 से भी अधिक इनकम टैक्स अधिकारियों ने हिस्सा लिया। आयकर विभाग भाजपा नहीं है। आयकर विभाग मोदी नहीं है। यह एक सरकारी एजेंसी है, एक संस्था है। यह कॉन्ग्रेस के समय भी थी – काम करती थी, काम करती रहेगी।

मध्य प्रदेश में सीएम कमलनाथ के विशेष कार्याधिकारी (OSD) प्रवीण कक्कड़ के घर पर छापा मारा गया। उसके दो अन्य क़रीबियों अश्विन शर्मा और प्रतीक जोशी के ठिकानों पर भी आयकर विभाग की रेड पड़ी। यह बहुत बड़ा नेक्सक्स है। इसके तार मीडिया से भी जुड़े होने से इनकार नहीं किए जा सकते। अगर ऐसा नहीं होता तो मीडिया सवाल पूछती। अगर बिना सबूत राफेल पर सवाल करना जायज है तो सबूत सामने पड़े होने के बावजूद आँख मूँद लेना प्रोपेगंडा है, ऐसे गिद्धों पर लानत है। भोपाल, गोवा, इंदौर से लेकर दिल्ली तक फैले इस नेक्सस के अवैध लेनदेन का कारोबार व्यापक है, विस्तृत है।

मुख्यमंत्री कमलनाथ के साले दीपक पुरी द्वारा फेक बिल का प्रयोग कर के 242 करोड़ रुपए को डॉलर में बदलने की बात पता चली है। एक डायरी भी मिली है, जिसमें ये जिक्र है कि रुपया कहाँ-कहाँ से आया और कहाँ-कहाँ गया। मध्य प्रदेश में छापों के दौरान 281 करोड़ रुपए के अवैध लेनदेन की बात पता चली है। इनकम टैक्स ने एक के बाद एक ट्वीट कर आधिकारिक रूप से स्थितियों को साफ़ किया है। तुग़लक़ रोड में एक सीनियर नेता के आवास से 20 करोड़ रुपया एक बड़े पार्टी के मुख्यालय भेजा गया। तुग़लक़ रोड में किस बड़े नेता का घर है? मीडिया पूछेगी? प्राइम टाइम होगा? मामला अरबों का है। ये देश का रुपया है। एजेंसियाँ पता करने में लगी हुई हैं लेकिन मीडिया अपना काम नहीं कर रही।

आईटी विभाग का ये कहना भी गंभीर है कि इस नेक्सस में बड़े नेता, व्यापारी और अधिकारी सहित कई प्रोफेशन के लोग शामिल हैं। इनके तार हर जगह हैं। किसका कितना रुपया कहाँ लगा है, ये पता लगने के बाद ही इस नेक्सस का पर्दाफाश हो पाएगा। इन छापों में कई शराब की बोतलें मिली हैं। 14.6 करोड़ रुपए नकद ज़ब्त किए गए हैं। मीडिया के वर्ग विशेष में शामिल कई लोगों का मानना है कि कॉन्ग्रेस सांसद अहमद पटेल के आरोपों से घबराए मोदी ने उनके क़रीबी के घर छापा मरवाया है। अगर ऐसा है तो क्या आयकर विभाग के अधिकारी वो सारे दस्तावेज अपने साथ लेकर गए थे, जो क़ुरैशी के घर से मिला? कल को ये गिरोह विशेष यह भी कह सकता है कि आईटी विभाग ने चुपके से रात में मोदी के कथित दुश्मनों के घर रुपया रख दिया और सुबह जाकर पकड़ लिया।

मध्य प्रदेश में पड़े छापों में कई हथियार मिले, जानवरों की खालें मिली। ये सारी क़ीमती चीजें होती हैं। कई हाथ से लिखे दस्तावेज, कंप्यूटर फाइल्स, एक्सेल शीट्स आयकर विभाग के हाथ लगे हैं, जिनसे और भी कई ख़ुलासे होने की उम्मीद है। दिल्ली में क़ुरैशी के घर से एक कैशबुक मिला है, जिसमें 230 करोड़ रुपए के अवैध लेनदेन का पता चला है। आइए एक लिस्ट बनाते हैं और देखते हैं कि अब तक के छापों में क्या मिला:

  • दिल्ली: एक कैशबुक, जसमें 242 करोड़ रुपयों के अवैध लेनदेन की रिकॉर्डिंग है।
  • दिल्ली: बोगस बिलिंग के द्वारा 230 करोड़ रुपए की वसूली के दस्तावेज मिले।
  • टैक्स हैवन कहे जाने वाले देशों में 80 कम्पनियाँ होने की बात पता चली।
  • दिल्ली में कई पॉश वीआईपी इलाक़ों में अवैध सम्पत्तियाँ होने के सबूत मिले।
  • आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया गया, मामला चुनाव आयोग के पास भेजा गया है।
  • मध्य प्रदेश: व्यापारियों, नेताओं, अधिकारियों के एक सुव्यवस्थित रैकेट के बीच अवैध 281 करोड़ रुपए का पता चला।
  • 20 करोड़ रुपया दिल्ली में एक बड़े नेता के घर से एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी के मुख्यालय भेजा गया।
  • डायरी, कंप्यूटर फाइल्स, एक्सेल शीट्स मिले जो उपर्युक्त की पुष्टि करते हैं।
  • 14.6 करोड़ रुपए नक़द बरामद किए गए।
  • 252 शराब के बोतल मिले, जानवरों की खालें मिली, और कई हथियार बरामद किए गए।

गर अभी तक मिले कुल अवैध रुपयों के हिसाब-किताब को जोड़ दें तो ये 767 करोड़ रुपया आता है। ऊपर से ज़ब्त चीजों को भी जोड़ दें तो ये रक़म आसमान छूने लगेगी। 80 कंपनियों में किसका कितना अवैध रुपया लगा है, किसके कितने शेयर्स हैं, उनका प्रयोग कर के कितना कालाधन सफ़ेद किया गया होगा, इसका तो कोई हिसाब-किताब ही नहीं है। ‘द हिन्दू’ में आज एन राम का नया लेख आया है। कॉन्ग्रेस वाले भी उस पर अब प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं कर रहे। वो भी बोर हो चुके हैं। सत्यहिंदी कह रहा है कि मोदी पर अहमद पटेल ने आरोप लगाया, इसी लिए मोदी ने उन्हें लपेटे में ले लिया। स्क्रॉल का कहना है कि आयकर विभाग के ‘क्लेम’ के अनुसार, इतने रुपए ज़ब्त हुए हैं।


सत्यहिंदी असत्य की जननी है

ये सारे के सारे अजीब व्यवहार कर रहे हैं। गाँधी परिवार के सबसे ख़ास आदमी से इसके तार जुड़ रहे हैं, फिर भी मीडिया मौन है। बिजली के एक पोल पर पूरा का पूरा एक घंटे का प्राइम टाइम करने वाले रवीश कुमार अरबों रुपए की हेराफेरी पर चुप हैं। पीएम मोदी के भाषण को गलत अर्थ में दिखाने वाला आजतक चैनल भी इस पर बहस नहीं कर रहा। पीएम से बिना सबूत राफेल पर सवाल पूछने वाला एबीपी सामने सबूत पड़ा होने के बावजूद आँख मूँद कर खड़ा है। कुछ के तो हमने ऊपर उदाहरण भी दिए।

तीन दिन से रेड चल रही है। इस कारण मीडिया ये कहने का भी हक़ खो चुका है कि ये कोई छोटा-मोटा मामला है। अगर सत्ता से सवाल पूछना ही पत्रकारिता है तो सत्ता खोने वालों को देश लूटने का अधिकार है क्या? कॉन्ग्रेस कई बड़े राज्यों में सत्ताधारी पार्टी है। उसके कई विधायक और सांसद हैं। अगर भाजपा केंद्र और कई राज्यों में सत्ताधारी है तो कॉन्ग्रेस भी बेचारी नहीं है। जिस पार्टी से अरबों के हवाला लेनदेन के तार जुड़ रहे हों, उससे सवाल पूछने के लिए उसके सत्ता में लौटने का इन्तजार किया जाना चाहिए क्या? सवाल अपराधी और अपराध से जुड़े हर एक व्यक्ति से किया जाना चाहिए। हमने सारे घटनाक्रम को आपके सामने रख दिया है क्योंकि कोई और ऐसा नहीं करेगा।

सेक्स ही सेक्स… भाई साहब आप देखते किधर हैं, दि प्रिंट का सेक्सी आर्टिकल इधर है

2016 के उत्तरार्ध में महान दार्शनिक श्री दीपक कल्लाल जी महाराज ने अपने कॉलर बोन को सहलाते हुए कहा था, “सेक्स आधारित आर्टिकल नवांकुर न्यूज पोर्टलों की अंतिम शरणस्थली है।” ‘दि प्रिंट’ नामक पोर्टल ने पिछले दिनों ‘अलग एंगल’ तलाश करते हुए एक आर्टिकल शेयर किया जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में पूछने के लहजे में लिखा गया है कि ‘क्या ग्रामीण औरतों को लिए सेक्स सिंबल हैं नरेन्द्र मोदी?’

जब इस तरह के हेडलाइन में ही प्रश्नवाचक चिह्न हो तो पता चल जाता है कि लिखने वाले को या तो पता नहीं है कि वो कहना क्या चाहता है, या फिर यह कि इतना ज़्यादा पता है कि उस चिह्न का प्रयोग कैसे किया जाए। ऐसा नहीं है कि शीर्षक में प्रश्नवाचक चिह्नों का इस्तेमाल नहीं हो सकता, लेकिन आज कल विचारों को तथ्य की तरह दिखाने के लिए धूर्तता से इसका प्रयोग किया जाता है।

चुनावों के समय इस तरह के आर्टिकल लिखना एक अलग स्तर की पत्रकारिता है जहाँ लल्लनपॉट यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में पीएचडी करने वाले लोग ही पहुँच पाते हैं। ख़बर यह भी आई है कि लल्लनपॉट के एडिटोरियल टीम के दर्ज़ी इंची-टेप लेकर हिटलर का लिंग नापने के बाद अब कुछ नया धमाका कर सकते हैं क्योंकि व्हाय एफिंग नॉट!

ये बात मैं कई बार कह चुका हूँ कि बढ़ते कम्पटीशन के दौर में सर्वाइवल और नाम का भार ढोते इन पोर्टलों के पास नग्नता और वैचारिक नकारात्मकता के अलावा फर्जीवाड़ा और सेक्स ही बचता है जिसे हर तरह की जनता पढ़ती है। कुछ लोग इसलिए पढ़ते हैं कि उन्हें आनंद मिलता है, कुछ लोग इसलिए पढ़ते हैं कि वो सवाल कर सकें कि ये क्या लिखा गया है, और क्यों लिखा गया है।

शेखर गुप्ता से इस तरह की आशाएँ हम और आप कर सकते हैं क्योंकि देश में मिलिट्री कू यानी सैन्य तख्तापलट की फर्जी स्टोरी को मुख्य पृष्ठ पर छापने के बात इन्होंने गुप्ता उपनाम के साथ जो खिलवाड़ किया है, उसे यह समाज कभी माफ नहीं करेगा।

खैर, सीरियस बातें एक तरफ लेकिन इस सेक्सी स्टोरी से गुप्ता जी का प्रिंट आखिर समाज का कौन सा हित करना चाह रहा है, यह एक चिंतनीय प्रश्न है। नारीवाद का झंडा लेकर चलने वालों के लिए सेक्स शब्द एक उन्माद की तरह प्रभाव छोड़ता है। सारे वाद सेक्स में जाकर घुस जाते हैं, और उससे बनने वाले मुहावरे, उपवाक्य और वाक्यांश आपको उभरती हुई, लवचेरी नारीवादी की तरह स्थापित कर सकते हैं। ‘लवचेरी’ ठेठी का एक शब्द है, जिसका न तो लव से कोई लेना-देना है, न चेरी से। इसका मतलब ‘नया’ होने से है।

इस तरह के आर्टिकल के पीछे की रिसर्च क्या है? चार-पाँच फोटो जहाँ मोदी अनुष्का, कंगना या इवांका के साथ सहजता से खड़े हैं? तो क्या मोदी हलचल के अमरीश पुरी की तरह सर पर यह चिपका कर घूमता फिरे कि ‘औरत नर्क का द्वार है’? या फिर औरतों को देखते ही कहे कि मैं साइड में फोटो खिंचा लेता हूँ, फोटोशॉप से डाल देना? या फिर यह कि मोदी दोनों कंधे ऊँचे करके, दोनों आँखों से असहजता का भाव दिखाते हुए, साँस खींचे विक्षिप्तों की तरह ऐसे खड़ा हो जैसे बग़ल में औरतें नहीं, करंट मारने वाली ईलें झूल रही हों?

ग्रामीण औरतों के पास किस तरह के संसाधनों की उपलब्धता है, अगर पत्रकार ने जानने में सर खपाया होता तो पता चलता कि बिहार, यूपी, बंगाल, राजस्थान, ओडीशा जैसे राज्यों में ऐसे सैकड़ों गाँव हैं जहाँ आज भी रेडियो या अख़बार एक लग्ज़री है। जिसने मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर जाना हो, जिसकी पहली चिंता पेट भरने की हो, जिसकी पहली चिंता यह हो जिस साड़ी को बीच से फाड़कर, उसने पूरा शरीर ढक रखा है, उसके घिसकर फटने के बाद वह क्या पहनेगी, उसे शायद नरेन्द्र मोदी सेक्स सिंबल की तरह नहीं दिखेंगे।

जो लोग इस तरह की बेहूदी बातें लिखकर हिट होना चाहते हैं, वो वैसे खोखले लोग हैं जिन्होंने न तो सेक्स को समझा, न सिंबल को, ग्रामीण और औरत को तो खैर रहने ही दीजिए। जीने की जद्दोजहद, और परिवार पालने से फ़ुरसत न पा सकने वाली महिलाओं का जीवन, देहरी से द्वार, और खेत से चूल्हे तक में सिमट जाता है, उसके जीवन में सेक्स सिंबल के होने या न होने से कोई प्रभाव नहीं डाल सकता।

छद्म नारीवादी मुझे इस बात पर घेर सकते हैं कि मैं क्या जानूँ ग्रामीण औरतों की यौन आकांक्षाओं, यानी सेक्सुअल डिज़ायर्स, के बारे में, तो मेरा जवाब भी वही है कि तुम क्या जानो कि छत, भोजन, पानी, कपड़ा, बच्चों की शिक्षा के लिए दशकों से बाट जोहती उन औरतों के लिए सेक्स की प्राथमिकता कहाँ है। तुम्हारी हर गीता, सुनीता, राधा और सलमा पर मैं दस माला, निदा, मीनाक्षी, वर्षा, बहार ला सकता हूँ। सिर्फ नाम जुटा लेने से लेख की व्यापकता और सार्थकता सिद्ध नहीं हो जाती, न ही अंत में ‘हमने मनोविश्लेषक से बात की’ कहना।

कल को कई यह लिख दे कि क्या फलाना गाँधी हैं टिकटॉक पर रोने वाले लौंडों के क्रश? क्या शेखर गुप्ता इस आर्टिकल को जगह देंगे? क्या शेखर गुप्ता इस बेहूदगी को छापेंगे जबकि लिखने वाला वैसे लड़कों के बाइट और वीडियो भी एम्बेड कर दे? मुझे नहीं लगता कि वॉक द टॉक वाले गुप्ता जी इस टॉक को वॉक कर पाएँगे।

अगर वो ऐसा करने को तैयार हैं, तो लानत है उन पर और उनकी पत्रकारिता पर कि ऐसी बेहूदगी को उनके नाक के नीचे बैठा एडिटर चार सेकेंड से ज्यादा डिस्कस भी कैसे कर सकता है। नरेन्द्र मोदी सेक्स सिंबल हैं कि नहीं, यही चर्चा करना बाकी रह गया है?

कौन सेक्स सिंबल है कौन नहीं, इसकी कोई तय परिभाषा नहीं है। शेखर गुप्ता भी सेक्स सिंबल हो सकते हैं, और मैं भी, लेकिन वो हमारा काम नहीं है। हम पत्रकार हैं, मोदी नेता हैं, रितिक रौशन ग्लैमर की दुनिया से हैं। जिनका करियर यह साबित करने में लगा हो कि उनका आकर्षक होना ही उनके व्यवस्था को चलाता है, तो उस व्यक्ति के बारे में यह लिखना उचित है कि क्या रितिक रौशन कॉलेज की लड़कियों के लिए सेक्स सिंबल हैं?

लेकिन, जिस व्यक्ति का पूरा जीवन राजनीति में बीता हो, जिस पर तमाम तरह के लांछन लगाने के बाद भी कुछ साबित न हुआ हो, उस व्यक्ति पर अब इसी तरह के नकारे विचार लिखे जाएँगे जिसे अंग्रेज़ी में ट्रिवियलाइज करना कहते हैं। शेखर गुप्ता ने दसियों चुनाव कवर किए होंगे, कुछ सौ नेताओं के इंटरव्यू लिए होंगे, कुछ सौ बड़े नेताओं से निजी बातचीत की होगी, लेकिन आज उनका वेंचर क्या इस स्तर का हो गया है कि उन्हें नरेन्द्र मोदी और सेक्स शब्द को एक लाइन में लिखवाने के बाद, अपने हैंडल से शेयर करना पड़ रहा है?

संदर्भ और समय देखकर पत्रकारिता में आर्टिकल बेचे जाते हैं। बेचे ही जाते हैं, क्योंकि इस तरह के हेडलाइन या आर्टिकल का और कोई औचित्य नहीं कि ये जहाँ हैं, वहाँ क्यों हैं। अगर चुनावों का समय है तो पत्रकारों को कहा जाता है कि वो चुनाव से जुड़ी बातें, इतिहास, आँकड़े, बयान, रैलियाँ, विचार, ग्राउंड रिपोर्ट आदि पर ध्यान दें। और गुप्ता जी के लौंडे का ध्यान कहाँ है? गुप्ता जी के लौंडे का ध्यान इस बात पर है कि उनकी सहकर्मी मोदी के सेक्स सिंबल होने की अवधारणा को जस्टिफाय करने की कोशिश कर रही है, और गुप्ता जी के लौंडे उनको शेयर कर रहे हैं ताकि दो-चार सौ लोग रीट्वीट करें और मज़े लें।

इस आर्टिकल का क्या मतलब है? इससे समाज को क्या सूचना मिल रही है? इससे क्या भला या बुरा हो रहा है समाज का जो कि इस आर्टिकल की ज़रूरत पड़ गई? खलिहर एडिटर के दिमाग की वाहियात उपज से पैदा होते हैं ऐसे आर्टिकल जिसे सिर्फ इसलिए छापा जाता है क्योंकि फ़्री इंटरनेट पर जगह की कमी नहीं है।

जिनको लग रहा हो कि मैं नैतिकता का झंडा उठा रहा हूँ तो वो यह जान लें कि बात नैतिकता की तो है ही, बात पत्रकारिता में सन्निहित ज़िम्मेदारी की भी है। इस लेख का न तो कोई मतलब है, न जरूरत है, न डिफ़ेंड किया जाना चाहिए। पत्रकार आज वैचारिक दरवाज़े पकड़ कर झूल रहे हैं। मैं कहता हूँ कि मेरी विचारधारा क्या है, अधिकतर लोगों को स्वीकारने में डर लगता है जबकि पूरी दुनिया को पता है कि वो किस राह पर हैं।

आर्टिकल पढ़ने पर पता चलता है कि ‘दि प्रिंट’ की पत्रकार ने मनोविश्लेषक की बाइट भी डाल दी है ताकि लगे कि कुछ सीरियस बात भी हुई है भीतर में। ये एक तरीक़ा होता है फर्जीवाड़े को ऑथेन्टिक बताने का, पूरे आर्टिकल में पितृसत्ता से लेकर शादी और सेक्स को लगभग एक बताते हुए, मोदी से शादी के बारे में क्या ख़्याल है यह पूछा गया।

जैसे कि बाकी सारे प्रश्न खत्म हो गए हों जिसने ग्रामीण महिलाओं के जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाले हैं। ऐसी हर महिला के पास, जो एक गृहणी है, मोदी के लिए अच्छी और बुरी बातें हो सकती हैं कहने को जिनका सामाजिक सरोकार है, राजनीतिक औचित्य है। उन खबरों में कई खबरें हो सकती हैं कि क्या उन्हें उज्ज्वला योजना का लाभ मिला, क्या उनके घर में शौचालय है, क्या सौभाग्य योजना का एलईडी वहाँ तक पहुँचा, क्या उनकी बच्चियों को पढ़ाई में सरकारी मदद मिल रही है, क्या उनके बजट पर प्रभाव पड़ा है, क्या उनके सर पर छत आई है, क्या वो सड़क से बाज़ार जा सकती हैं…

अलग एंगल तलाशता पत्रकार यहाँ पर यह सवाल भी पूछ सकता है कि क्या आप मोदी जी द्वारा बनवाए शौचालय में सेक्स करना पसंद करेंगी? क्या आप सौभाग्य योजना के नीले रंग की एलईडी लाइट में सेक्स करना पसंद करेंगी? क्या आप उज्ज्वला वाले सिलिंडर पर चाय बनाने के बाद सेक्स करना पसंद करेंगे? क्या आप आवास योजना वाले छत पर सेक्स करना पसंद करेंगी?

इस पर भी एक आर्टिकल बन जाएगा कि ‘मोदी की योजनाओं में सेक्स अपील और ग्रामीण औरतें’। ये एक आइडिया दे रहा हूँ, बाकी गुप्ता जी के लौंडे के ऊपर है कि इस पर दिल्ली के बग़ल के गाँवों को ही ग्रामीण समझ कर रिपोर्टिंग करा लें। और अंत में, दि प्रिंट के मनोविश्लेषक तो हैं ही जो बताएँगे कि ‘देखिए मोदी ने सिलिंडर दिया, बिजली दी, शौचालय दिया, तो महिलाओं से वो भावनात्मक स्तर तक जुड़ गए हैं। यही भावनाएँ थोड़ी उग्र हो जाएँ तो… अब मैं आगे क्या बोलूँ… हें हें हें…’।

RSS नेता पर आतंकियों ने बुर्का पहनकर किया हमला, PSO की मौत

जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के एक अस्पताल में मंगलवार (अप्रैल 9, 2019) को आतंकियों ने आरएसएस नेता और चिकित्सा सलाकार के रूप में कार्यरत चंद्रकांत शर्मा पर गोलियाँ चलाईं। इस हमले में चंद्रकांत जख्मी हुए हैं जबकि उनके पीएसओ (निजी सुरक्षा गार्ड) की मौत हो गई है।

मीडिया खबरों की मानें तो आतंकियों ने हमले के दौरान बुर्का पहना हुआ था। पहले उन्होंने पीएसओ से उसके हथियार छीने फिर वहाँ उस पर गोली चला दी। इस घटना के बाद वहाँ के हालात तनावपूर्ण बने हुए। कर्फ्यू लगा दिया गया है। भाजपा प्रवक्ता सुनिल सेठी ने जानकारी दी है कि चंद्रकांत को जल्दी ही दिल्ली में शिफ्ट किया जाएगा।

आजतक में छपी रिपोर्ट के मुताबिक यह हमला अस्पताल की ओपीडी में किया गया। जहाँ आरएसएस नेता/चिकित्सा सलाहकार चंद्रकांत अपने बॉडीगॉर्ड के साथ मौजूद थे। जैसे ही अस्पताल के भीतर यह हमला हुआ वहाँ अफरा-तफरी मच गई। इस हलचल में आतंकी मौक़े से फरार होने में कामयाब हो गए।

अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि बुर्के में मौजूद हमलावर कोई पुरुष था या कोई महिला। लेकिन पुलिस ने पूरे इलाके की घेराबंदी कर ली है। साथ ही खबरे हैं कि इस घटना के बाद अस्पताल के बाहर पाकिस्तान विरोधी नारेबाजी भी की जा रही है। पुलिस का तलाश अभियान शुरू हो चुका है। हमलावरों की तलाश में चश्मदीदों से भी पूछताछ की जा रही है।

स्वामी ने जीते IIT-Delhi से ₹40 लाख, 47 साल पुराना मामला

अपने क़ानूनी ‘कारनामों’ के लिए मशहूर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एक और क़ानूनी लड़ाई जीत ली है। इस बार उनके हक़ में साकेत की स्थानीय अदालत ने IIT दिल्ली को उनका बकाया वेतन सूद समेत चुकाने का आदेश दिया है। 8% के सूद समेत संस्थान पर बकाया उनकी वेतन राशि ₹40-45 लाख बैठने की उम्मीद है।

1972 में हुई अपनी बर्खास्तगी को वह पहले ही अदालत से 1991 में अनुचित घोषित करवा चुके थे, जिसके बाद उन्होंने पदभार ग्रहण कर उसी दिन इस्तीफा दे दिया था। अब वे इस कालखंड के वेतन का मुकदमा लड़ रहे थे जिसे उन्होंने जीत लिया है

उन्होंने ट्वीट कर इसकी जानकारी देने के साथ यह भी कहा कि यह मामला अकादमिक क्षेत्र के विकृत मानसिकता वाले व्यक्तियों के लिए सबक है।

तीन साल थे शिक्षक, बर्खास्तगी को बताया था राजनीति से प्रेरित

IIT दिल्ली में डॉ. स्वामी तीन साल (1969-1972) तक अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे। इस दौरान वह दक्षिणपंथी अर्थशास्त्र के पक्ष में लिखते रहे थे। उन्होंने हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को कम समाजवादी और अधिक बाजार-आधारित बनाने की भी वकालत की थी।

इसी दौरान एक शाम उन्हें एक पत्र दे तत्काल प्रभाव से पदमुक्त कर दिया गया था। अपनी बर्खास्तगी को राजनीतिक बताते हुए उन्होंने लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी जिसके बाद 1991 में जाकर अदालत ने उनके निष्कासन को अनुचित ठहराते हुए उनकी पद-बहाली का आदेश दिया। डॉ. स्वामी ने पदभार ग्रहण कर उसी दिन इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद उन्होंने इस कालखंड (1972-1991) की बकाया वेतन राशि पाने के लिए मुकदमा दायर किया, और 18% की दर से ब्याज माँगा। हालिया फैसले में अदालत ने मात्र 8% ब्याज की दर से ब्याज चुकाने का निर्देश दिया है।

संस्थान ने कहा, लेंगे अपने बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स से निर्देश

IIT दिल्ली ने कहा है कि अब वह इस फैसले को अपने बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स के समक्ष लेकर जाएँगे जो आगे इस मामले पर क्या कदम उठाया जाना है यह तय करेगा।

अगर स्वामी का है यह हाल, तो आम आदमी का क्या होता होगा?  

डॉ. स्वामी की राजनीतिक ताकत किसी से छिपी नहीं है- वह न केवल वर्तमान सत्तारूढ़ दल के सदस्य हैं बल्कि अतीत में भी कई सरकारें बनवाने, चलवाने, और गिरवाने में अपनी भूमिका को वह खुल कर मानते हैं। इसके अलावा उनके पास कानूनी संसाधनों की कोई कमी नहीं है- उनकी पत्नी रॉक्सना स्वामी खुद देश की चोटी के वकीलों में हैं, और श्रीमती स्वामी के अलावा भी उनके पास वकीलों की छोटी-मोटी फौज होती है।

ऐसे हालात में भी यदि उनके जैसे शक्तिशाली व्यक्ति को न्याय पाने में लगभग 50 साल लग जाते हैं तो आम आदमी की क्या हालत होती होगी, यह सोचना भी मुश्किल है। डॉ. स्वामी के पास तो आजीविका के दूसरे संसाधन थे, पर यही अगर किसी आम आदमी की जीविका के एकलौते साधन पर कोई अवैध तरीके से रोक लगा दे तो उसके पास क्या विकल्प है सिवाय इसके कि वह मजदूरी करे, उसका बच्चा ट्रैफिक पर भीख माँगे, और उसकी पत्नी दूसरे के घरों में काम करे? या जैसे-तैसे किसी भी हालत में जीवन निर्वाह का जतन करे।

आगामी सरकार चाहे जिसकी हो, न्याय में देरी की आड़ में हो रहे अन्याय के बारे में सोचने के लिए “सुब्रमण्यम स्वामी बनाम IIT दिल्ली” महज एक केस नहीं, एक जरूरी नजीर है।

विपक्ष उड़ाता है ‘चौकीदार’ का मज़ाक लेकिन गुजरात के ये गाँव वाले करते हैं ‘चौकीदार’ की पूजा

गुजरात के नर्मदा जिले के डेडियापाड़ा तालुका के आदिवासी गाँव (देव मोगरा) में सदियों से चौकीदार की पूजा की जा रही है। इस गाँव के लोगों का मानना है कि माता पंडोरी और देवदरवनिया नाम का चौकीदार कई वर्षों से उनके गाँव की रक्षा कर रहा हैं। जिसके कारण वह इन दोनों की पूजा करते हैं।

यहाँ पर पंडोरी माता के मंदिर से कुछ दूरी पर ही चौकीदार का भी मंदिर है। यहाँ की मान्यता है कि जो भी भक्त पंडोरी माता के दर्शन के लिए आते हैं उन्हें देवदारवनिया चौकीदार के मंदिर भी जाना पड़ता है। यहाँ पूरे साल राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। माता के मंदिर की तरह ही चौकीदार के मंदिर की भी यहाँ काफ़ी मान्यता है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार वहाँ के नागरिक मान सिंह चौकीदार मंदिर और देवी पंडोरी के मंदिर पर बात करते हुए बताते हैं कि एक बार देवी पंडोरी माता ने नाराज होकर घर छोड़ दिया था। राजा पंडादेव ने उनकी तलाश करनी शुरू की और अपना घोड़ा देव मोगरा गाँव में रोका। तबसे यह जगह स्थानीय लोगों के लिए पूजनीय हो गई और बाद में यहाँ पंडोरी माता का मंदिर बनवाया गया। इस मंदिर से कुछ दूरी पर देवदरवनिया चौकीदार के लिए भी एक प्रार्थना स्थल बनाया गया।

वहीं कालू नाम के दूसरे निवासी बताते हैं कि माता के मंदिर के साथ दिवाली और नवरात्रियों में चौकीदार मंदिर में भी बहुत भीड़ देखने को मिलती है। इस मंदिर में हैरान करने वाली बात यह है कि एक तरफ़ जहाँ पर गुजरात में शराब की बिक्री पर रोक है वहीं चौकीदार के भक्त उन्हें प्रसाद के रूप में देसी शराब ही चढ़ाते हैं।

ये देखना दिलचस्प है कि एक तरफ़ जहाँ गुजरात के इस मंदिर में चौकीदार की पूजा होती है वहीं पर चुनावों के मद्देनज़र विपक्ष द्वारा इस शब्द का जमकर मजाक उड़ाया जा रहा है। प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए आज पूरा विपक्ष भूल चुका है कि चौकीदार एक शब्द नहीं है बल्कि पूरी परिभाषा है। जिसकी आए दिन विपक्ष द्वारा मिट्टी पलीद की जाती है।

धार्मिक स्थलों और मंदिरों का प्रबंधन क्यों कर रहे सरकारी अधिकारी: SC

उच्चतम न्यायालय ने पुरी में जगन्नाथ मंदिर में अनेक श्रद्धालुओं को परेशान किए जाने के तथ्य का संज्ञान लेते हुए सोमवार को जानना चाहा कि देश में धार्मिक स्थलों और मंदिरों का प्रबंधन सरकारी अधिकारियों को क्यों करना चाहिए?

न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को होने वाली परेशानियों और उन्हें ‘सेवकों’ (कर्मचारियों) द्वारा हैरान परेशान करने तथा उनका शोषण करने के तथ्यों को उजागर करते हुए दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल किया। पीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा, “यह नजरिए का मामला है। मैं नहीं जानता कि मंदिरों का प्रबंधन सरकारी अधिकारियों को क्यों करना चाहिए? तमिलनाडु में मूर्तियों की चोरियाँ हो रही हैं। धार्मिक भावनाओं के अलावा ये मूर्तियाँ अनमोल हैं।”

अटार्नी जनरल के वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत से कहा कि केरल में सबरीमला मंदिर का संचालन त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड कर रहा है, जबकि सरकारों द्वारा नियुक्त बोर्ड देश में अनेक मंदिरों का प्रबंधन देख रहे हैं। वेणुगोपाल ने सवाल करते हुए पूछा कि पंथनिरपेक्ष देश में सरकार किस हद तक मंदिरों को नियंत्रित कर सकती है या उनका प्रबंधन कर सकती है?

इसके साथ ही बेंच ने माना कि विभिन्न वजहों से मंदिर में श्रद्धालुओं का शोषण होता है। पुजारी उन्हें प्रतिबंधित और नियंत्रित करते हैं। इनमें से कई लोग गरीब और अशिक्षित होते हैं, जिसके चलते वो कुछ बोल नहीं पाते हैं।

वहीं इस मामले में मध्यवर्ती याचिका दाखिल करने वाले वकील ने कोर्ट में कहा कि अदालत को इस याचिका पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए। इस दौरान जब वकील ने तेज आवाज में तर्क दिया तो जस्टिस बोबडे ने कहा कि वो कोर्ट में इस तरह का अभद्र व्यवहार नहीं कर सकते। इससे पहले कोर्ट में बताया गया कि भीड़ का सही से प्रबंधन और कतार व्यवस्था का न होना सबसे बड़ी समस्या है। इस पर ओडिशा सरकार की ओर से पेश काउंसिल ने कोर्ट को बताया कि जिस तरह की मंदिर की संरचना है, उसके कारण कतार व्यवस्था करना आसान नहीं है।

राहुल-प्रियंका की रैलियों पर मौसम की मार, कॉन्ग्रेस ने योगी को ठहराया ज़िम्मेदार

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिला प्रशासन ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी की 3 रैलियाँ रद्द कर दी है। बता दें कि चुनाव के दौरान नेताओं को रैली करने से पहले सभी विवरण स्थानीय प्रशासन को देना होता है और फिर उनसे कार्यक्रम के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। स्थानीय प्रशासन मौसम, स्थान, संवेदनशीलता इत्यादि को ध्यान में रखते हुए कि रैली के लिए समय और स्थान उपयुक्त है या नहीं। कॉन्ग्रेस नेता गण इससे नाराज़ हैं और उन्होंने जिला प्रशासन पर राज्य की योगी सरकार को ख़ुश करने के लिए कॉन्ग्रेस नेताओं की रैली कैंसिल करने का आरोप लगाया है।

राहुल-प्रियंका की सहारनपुर, बिजनौर और शामली की रैलियाँ रद्द किए जाने पर टिप्पणी करते हुए कैराना लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा प्रत्याशी हरिंदर मलिक ने एएनआई से कहा:

“रैली स्थगित कर दी गई है और स्थानीय प्रशासन से ‘Weather Clearance’ मिलते ही रैली के लिए नई तारीख़ तय की जाएगी। हम इस मामले को चुनाव आयोग तक लेकर जाएँगे। अगर मौसम सही नहीं था तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कैसे अपनी रैलियाँ आयोजित की? अगर हम हवाई दूरी की बात करें तो योगी का कार्यक्रम स्थल हमारे रैली स्थल से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर था।”

राहुल-प्रियंका की रद्द की गई रैलियाँ सोमवार (अप्रैल 8, 2019) को प्रस्तावित थीं। बिजनौर और सहारनपुर तो राहुल-प्रियंका के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल होने वाले थे। सहारनपुर से कॉन्ग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद ने कहा कि अब यहाँ प्रियंका गाँधी का रोड-शो आयोजित किया जाएगा। उत्तर प्रदेश कि 80 सीटों के लिए सभी सात चरणों में मतदान होने हैं।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और महासचिव प्रियंका गाँधी की बिजनौर इंटर कॉलेज के मैदान में सुबह 11 बजे, सहारनपुर के गाँधी मैदान में दोपहर साढ़े 12 बजे, शामली के वीवी कॉलेज के मैदान पर दोपहर क़रीब ढाई बजे सभा होनी थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी सभा को संबोधित करना था। यह सभा पार्टी प्रत्याशी इमरान मसूद के लिए आयोजित की गई थी। रैली के लिए सुबह से ही कार्यकर्ता और लोग आने लगे थे लेकिन तभी अचानक से मौसम ने ही धोखा दे दिया। आसमान में काले बादल छा गए और तेज़ आंधी से पंडाल में अफरातफरी मच गई। कुर्सियाँ इधर-उधर उड़ने लगी और सारी व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गई।

किसी माँ ने वो औलाद नहीं जना, जो रोहिंग्याओं को निकाल कर दिखा दे: वायरल वीडियो का Fact Check

चुनावी पारा इन दिनों चरम पर है। हर पार्टी और उसके कार्यकर्ता अपनी नीतियों और विचारधाराओं को परोसकर जनमत निर्माण करने के लिए सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में बंगाल के एक मौलवी शब्बीर अली का एक वीडियो वायरल हो रहा है। इस वीडियो में जिस भाषा और संदर्भ का इस्तेमाल किया गया है, वो घटिया तो है ही, देशद्रोही भी है। लेकिन क्या यह वीडियो सही है या इसे एडिट कर वायरल बनाने की चाल है? आइए करते हैं पड़ताल।

पहले वीडियो देखिए

इस वीडियो में कोलकाता की एक भीड़ को मौलाना शब्बीर अली संबोधित कर रहे हैं। बात रोहिंग्या की हो रही है। धमकी केंद्र सरकार को दी जा रही है। धमकी भी ऐसी, जिसके हर एक शब्द से देशद्रोह टपक रहा है। वीडियो में मौलाना भीड़ में शामिल लोगों को मजहब की ताकत से वाकिफ़ कराते दिख रहे हैं – पूरी ऊँची आवाज के साथ।

मजहबी भाई-भाई और धमकी

मौलाना शब्बीर के शब्द सुनिए, “इंशाअल्लाह…इंशाअल्लाह… सुनो…सुनो हमारा ये मेमोरेंडम है दिल्ली की सरकार से कि ये रोहिंग्या, ये हमारे भाई हैं। ये हमारे समुदाय के हैं। जो इनका कुरान, वो मेरा कुरान। जो इनके रसूल, वो मेरे रसूल। जो इनका खुदा, वो मेरे खुदा। ये मत समझना कि हिंदुस्तान के मजहबियों से रोहिंग्या अलग है। दुनिया में कहीं भी हों, हम सब आपस में भाई हैं। इस्लाम के सब लोग आपस में भाई हैं।”

अपने भड़काऊ भाषण को आगे बढ़ाते हुए शब्बीर ने खुलेआम इस वीडियो में सरकार को धमकी दी है। शब्बीर ने इस वीडियो में बंगाल में रह रहे रोहिंग्याओं के बारे में कहा, “हम करबला वाले हैं, हम हुसैनी हैं, हम 72 भी होते हैं तो लाखों का जनाजा निकाल देते हैं। और रोहिंग्या को लावारिस मत समझना कि उन्हें बंगाल से निकाल दोगे। सुनो… ये असम नहीं, ये गुजरात नहीं, ये यूपी नहीं, ये मुजफ्फरनगर नहीं… ये बंगाल है, बंगाल। और बंगाल में अभी तक किसी माँ ने वो औलाद नहीं जना है जो रोहिंग्याओं को निकाल कर दिखा दे।”

फै़क्ट चेक

ऐसे समय में जब चुनाव आचार संहिता लागू है, इस तरह का वीडियो मन में शंका पैदा करता है। शंका इसलिए क्योंकि चुनाव के वक्त इतनी भीड़ का जुटना बिना किसी नेता के संभव नहीं। कुछ की-वर्ड्स गूगल पर डाले, न्यूज और वीडियो सेक्शन में उनको खंगाले और नतीजा सामने है। यह वीडियो सितंबर 2017 का है। खबरों में यह आया 19-20 सितंबर 2017 को। ऊपर जो यूट्यूब का लिंक लगा है, वो 19 सितंबर 2017 का है।

इंडिया TV ने भी इस ख़बर को पब्लिश किया था

वीडियो असली, वायरल कराने की मंशा घातक

वीडियो असली है, एडिटेड नहीं – यह प्रमाणित हो चुका है। लेकिन इतने भड़काऊ वीडियो का तकरीबन पौने दो साल बाद अचानक से वायरल होना बहुत कुछ कहता है। हो सकता है यह कुछ शातिर नेताओं की चुनावी रणनीतियों का हिस्सा हो। जिन भड़काऊ बयानों पर एक्शन लिया जाना चाहिए, उसे चुनाव के नज़दीक होने पर प्रासंगिक बनाकर वायरल किया जा रहा है। ये जितना शर्मासार करने वाला है, उससे भी कहीं ज्यादा खतरनाक है। मंच पर दिए भाषणों का प्रभाव प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से श्रोताओं पर पड़ता ही है। और अगर वो वायरल हो गया तब तो जहाँ तक उसकी पहुँच है, वो हर एक सुनने-देखने वाले को प्रभावित करेगा ही। वीडियो के मौलाना शब्बीर की मानसिकता खतरनाक है। साथ ही इसे वायरल करने-करवाने वाले की भी। चुनाव आयोग को इसका संज्ञान लेना चाहिए।

यदि बंगाल में या कहीं और ‘जनमत निर्माण’ का निर्धारण मौलाना शब्बीर जैसे लोगों के भाषणों द्वारा किया जाता है, तो हम सोच सकते हैं कि देश में नागरिकों के भीतर लोकतंत्र की सोच को किस प्रकार से बरगलाया जा रहा है। देखा जाए तो भीड़ में मौजूद लोग (मौलाना के समर्थक) और इस वीडियो को शेयर करने वाले लोग ही देश के नागरिक हैं। तो फिर हमें विचार करने की जरूरत है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष देश में किस माहौल का निर्माण कर रहे हैं? जिन अराजक तत्वों से देश की सुरक्षा खतरे में पड़ रही है, उन्हें हम धर्म का ठेकेदार बनाकर परिभाषित भी कर रहे हैं और मानक भी मान रहे हैं!!

बता दें कि शब्बीर के इस धमकी भरे भाषण से पहले कई आतंकवादी संगठन भी रोहिंग्याओं के मुद्दे को आधार बनाकर सरकार को ‘जिहाद’ की धमकी दे रहे थे। उन धमकियों में आतंकी संगठनों ने बोला था कि वो मोदी सरकार और भारत से बदला लेने के लिए 1 लाख जिहादियों की फौज़ तैयार कर रहे हैं।

12वीं के बाद BEST: क्या पढ़ें, कहाँ पढ़ें – सरकार ने जारी कर दिया है ऑथेंटिक डाटा, एडमिशन से पहले ध्यान दें

12वीं की परीक्षा देने के बाद हर छात्र चाहता है कि वो सबसे बढ़िया कॉलेज में दाखिला ले। ऐसे में अगर बच्चे के नंबर उसे टॉप कॉलेजों में एडमिशन लेने का विकल्प देते हों तो फिर कहना ही क्या… चूँकि जल्द ही बाहरवीं के परिणाम आ जाएँगे और उसके बाद एडमिशन के लिए दौड़-भाग अभिभावकों के लिए आम हो जाएगी। ऐसे में जरूरी है कि हमें बेस्ट कॉलेज़ों के बारे में मालूम हो, ताकि इधर-उधर दिमाग खपाने की जगह हम अपनी प्राथमिकता को समय दे पाएँ।

सोमवार (अप्रैल 8, 2019) को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने NIRF 2019 रैकिंग जारी की। इसमें अलग-अलग संस्थानों, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की रैंकिंग दी गई है। एक तरफ़ जहाँ IIT बंगलुरू को पछाड़ते हुए IIT मद्रास ने ओवरऑल सर्वश्रेष्ठ होने का ख़िताब जीता है, वहीं विश्वविद्यालयों की सूची में जेएनयू को NIRF की रैंकिंग के अनुसार देश का दूसरा सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालय बताया गया है। विश्वविद्यालय कैटिगरी में पहले स्थान पर बंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस है। इसी कैटिगरी में जामिया मिलिया को 12वाँ स्थान मिला और दिल्ली विश्वविद्यालय को 13वाँ।

इस दौरान राष्ट्रपति ने इनोवेशन के क्षेत्र में बेहतर काम करने वाले संस्थानों को अटल रैंकिंग ऑफ इंस्टीट्यूशन ऑफ इनोवेशन अचीवमेंट का अवार्ड भी दिया। इसमें सरकारी वर्ग से IIT मद्रास के अलावा निजी वर्ग में वेल्लूर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी को पहला रैंक प्राप्त हुआ। वहीं जामिया हमदर्द को फार्मेसी में प्रथम स्थान मिला है।

NIRF के अनुसार टॉप 10 कॉलेजों की लिस्ट में इस वर्ष 6 कॉलेज दिल्ली यूनिवर्सिटी के ही हैं। पिछले साल इस लिस्ट में डीयू के सिर्फ 5 कॉलेजों का नाम शामिल था।

इस लिस्ट में मिरांडा हाउस लगातार तीसरी बार पहले नंबर है। दूसरे नंबर पर हिंदू कॉलेज है। जबकि यहाँ पहले स्टीफन कॉलेज हुआ करता था, लेकिन अब स्टीफन चौथे नंबर पर पहुँच गया है। 5वें पर लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर विमेन को स्थान मिला है। वहीं 7वें पायदान पर श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स और 9वें पर हंसराज कॉलेज है।

इतना ही नहीं देश के पहले 100 कॉलेजों में भी दिल्ली विश्वविद्यालय के 22 और कॉलेजों ने स्थान प्राप्त किया है। बता दें कि इस रैंकिंग में कुल 3,127 संस्थानों ने हिस्सा लिया था।

इस रैंकिंग को जारी करने के दौरान मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने कहा, “रैंकिंग से छात्रों और अभिभावकों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थान चुनने में मदद मिलेगी। वहीं, रिसर्च, इनोवेशन, पेटेंट आधार होने के कारण अब संस्थान समाज व देश के विकास के लिए रिसर्च पर जोर देंगे। इस रैंकिंग से अब शिक्षण संस्थानों में बेहतर प्रतिस्पर्धा शुरू होगी, जो उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में शुमार करेगी।”

पूरी रिपोर्ट 84 पेज की है। इसे आप यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं और अपने पसंद के विषय व संस्थान का चयन कर सकते हैं।