राहुल गाँधी की आय को लेकर पहले भी चर्चा की जा चुकी है कि वो किस तरह से पैसा बनाते हैं। राहुल गाँधी ने न कभी नौकरी की और न ही उनका कोई बिज़नेस है जिसे उनकी आय का स्रोत मान लिया जाए। यह पाया गया कि सांसद के रूप में वेतन के अलावा, राहुल गाँधी भूमि सौदों के माध्यम से और अर्जित संपत्तियों से किराए की आय के माध्यम से भी कमा रहे थे। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इस तरह के सौदों में शामिल होने और ऐसी संपत्ति हासिल करने के लिए उन्होंने पहले पर्याप्त संसाधन कैसे हासिल किए।
राहुल गाँधी की संपत्ति 2004 में ₹55,38,123 रुपए से बढ़कर 2009 में ₹2 करोड़ और आखिरकार, 2014 में ₹9 करोड़ रूपए से अधिक हो गई। यहाँ यह भी बताना ज़रूरी है कि 2011-12 में, राहुल गाँधी आय से अधिक इनकम के एक मामले में आरोपित थे। राहुल को AJL के माध्यम से ₹155 करोड़ के मामले में, आईटी विभाग ने राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को ₹100 करोड़ का टैक्स नोटिस भेजा था।
राहुल गाँधी ने अब वायनाड, केरल से अपना नामांकन दाखिल करते हुए चुनावी हलफ़नामा दायर किया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि वो वहाँ से भी चुनाव लड़ेंगे।
उनके नवीनतम हलफ़नामे के अनुसार, उनकी संपत्ति 5 वर्षों में ₹9.35 करोड़ से बढ़कर ₹15.88 करोड़ हो गई।
2004 से 2014 तक जब कॉन्ग्रेस सरकार सत्ता में थी तब राहुल गाँधी की संपत्ति ₹55 लाख से बढ़कर ₹9.35 करोड़ रुपए हो गई जबकि मोदी सरकार 2014 से 2019 तक सत्ता में रही, राहुल गाँधी की संपत्ति ₹9.35 करोड़ से बढ़कर ₹15.88 करोड़ हुई।
2019 के चुनावी हलफ़नामे के अनुसार राहुल गाँधी की आय ₹1.11 करोड़ है। 2012-2013 में उनकी आय
₹92.47 लाख थी।
राहुल गाँधी की सबसे कम घोषित आय वर्ष 2015-2016 में थी, जहाँ उनकी घोषित आय ₹86.56 लाख थी। दिलचस्प बात यह है कि चार्ट से यह स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार के सत्ता में आते ही राहुल गाँधी की आय में गिरावट शुरू हो गई।
अपने 2019 के हलफ़नामे में, राहुल गाँधी ने अपनी माँ सोनिया गाँधी से ₹5 लाख का व्यक्तिगत ऋण लिया और उन पर ₹72,01,904 की देनदारी भी शेष है।
अपनी पिछली ख़बरों में, हमने यह विस्तृत रूप से बताने की कोशिश की थी कि राहुल गाँधी अपने पैसे कैसे कमाते हैं। एक सांसद का वेतन उनकी वैध आय का एकमात्र स्रोत है। हमने रिपोर्ट की थी कि कैसे वर्षों तक उनकी आय में वो गुप्त सौदे भी शामिल थे जिन पर रोक लग गई।
राहुल गाँधी संयुक्त रूप से अपनी बहन प्रियंका गाँधी वाड्रा के साथ एक फार्महाउस का मालिक है, इसके अलावा घोटाले के आरोपियों से किराए के रूप में आय अर्जित की, जो अभी भी कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा जाँच के अधीन थे।
2013 में, राहुल गाँधी और उनकी बहन, प्रियंका ने दिल्ली में अपने 4.69 एकड़ के फार्महाउस को फ़ाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज (इंडिया) लिमिटेड (FTIL) को किराए पर दे दिया, महज़ 10 महीने बाद ही नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL) को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। FTIL द्वारा प्रमोटेड कंपनी ने मानको का उल्लंघन किया था। वास्तव में, कॉन्ग्रेस सरकार ने 5 जून, 2007 की अधिसूचना के माध्यम से फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स रेगुलेशन एक्ट के प्रावधानों का अनुपालन करने से NSEL को छूट दी थी। बाद में, यह पता चला कि NSEL उन्हीं अनुबंधों पर काम करता था जिनमें छूट की शर्तों का उल्लंघन शामिल था।
FTIL ने महरौली के इंदिरा गाँधी फार्म हाउस को ₹6.7 लाख के मासिक किराए पर लेने के लिए 11 महीने के लीज समझौते पर हस्ताक्षर किए। FTIL ने राहुल और प्रियंका गाँधी को क्रमश: 20.10 लाख रुपए के दो अलग-अलग चेक की 40.20 लाख रुपए की ब्याज-मुक्त जमा राशि का भुगतान किया गया। दिलचस्प बात यह है कि ₹9 लाख संबंधी उनके चुनावी हलफ़नामे के अनुसार राहुल गाँधी ₹6.7 लाख प्रति माह की किराये की आय अर्जित कर रहे थे, वो भी तब जब फार्महाउस का किराए से मूल प्रॉपर्टी की क़ीमत महज़ कुछ रुपए ही अधिक थी।
जबकि जून 2013 में NSEL घोटाला सामने आया था, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी वाड्रा ने जनवरी 2013 से अक्टूबर 2013 तक अपने फार्महाउस को FTIL में किराए पर दे दिया। इससे पता चलता है कि करोड़ों का घोटाला सामने आने के बाद राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी FTIL से मुनाफ़ा कमा रहे थे।
अब, राहुल गाँधी की संपत्तियों में यूपीए के तहत 1600% की वृद्धि हुई है, लेकिन मोदी सरकार के तहत ”सिर्फ़” 70% से पता चलता है कि गाँधी परिवार के बुरे दिन चल रहे हैं, सत्ता की मलाई खाने वालों ने शायद इसकी कभी कल्पना भी नहीं की होगी।