Tuesday, October 1, 2024
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ठाणे: 2 वर्षों से यौन शोषण कर रहा था संपादक, ट्रेनी महिला ने मार डाला

मुंबई में एक समाचार पत्रिका के संपादक की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इंडिया अनबाउंड नामक इस पत्रिका के संपादक नित्यानंद पांडे विगत शुक्रवार (मार्च 15 , 2019) को ही गायब हो गए थे। उनके लापता होने की ख़बर मीडिया में आई थी और पुलिस ने भी मामला दर्ज किया था। अब यह मामला यौन शोषण से जुड़ा नज़र आ रहा है। पुलिस ने इस सम्बन्ध में एक ट्रेनी पत्रकार और एक प्रिंटर को गिरफ़्तार किया है।

मृत संपादक नित्यानंद पांडे का शव रविवार को विघटित अवस्था में बरामद किया गया गया। पुलिस ने गहन छानबीन के बाद 24 वर्षीय ट्रेनी पत्रकार अंकिता मिश्रा को गिरफ़्तार किया, जिसने शुरुआत में कुछ भी बताने से साफ़ इनकार कर दिया। पुलिस द्वारा सख्ती बरतने के बाद पूरा मामला सामने आया। अंकिता ने संपादक की हत्या से सम्बंधित सभी राज पुलिस के सामने खोल दिए। उसने पुलिस को बताया कि मृत संपादक उसे लगातार परेशान करते थे और 2 सालों से उसका यौन उत्पीड़न भी कर रहे थे।

अंकिता ने पुलिस को बताया कि उसने संपादक पांडे से बार-बार ऐसा करने को मना किया लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद अंकिता ने मैगज़ीन के प्रिंटर सतीश मिश्रा के साथ मिलकर एक योजना तैयार की। पांडे से छुटकारा पाने की जुगत में अंकिता ने उन्हें एक सुनसान जगह पर बुलाया। ऐसा करने के लिए अंकिता ने झूठ बोला कि वह उन्हें कोई प्रॉपर्टी दिखाना चाहती है। वहाँ अंकिता ने पांडे को एक मसालेदार ड्रिंक्स पिला दिया।

ड्रिंक्स पीने के बाद पांडे जैसे ही बेहोश हुए, अंकिता और सतीश ने गला घोंटकर उनकी हत्या कर दी। दोनों ने सम्पादक की लाश को भिवंडी के एक सुनसान इलाक़े में फेंक दिया। इसके बाद दोनों ही फरार हो गए। शव की बरामदगी के बाद पुलिस के जनसम्पर्क अधिकारी ने बताया था- “रविवार को भिवंडी तालुका के खारबाओ गाँव में नित्यानंद पांडेय का शव मिला। उनके सिर पर चोट के निशान हैं। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है।

45 वर्षीय नित्यानंद पांडे के बारे में बताया जाता है कि वह मुंबई व ठाणे के सबसे भव्य जीवन जीने वाले पत्रकारों में से एक थे। शानदार महँगी गाड़ियों के शौक़ीन पांडे के मैगज़ीन को कई सरकारी विज्ञापन भी मिला करते थे। वेबसाइट के दावे के अनुसार, उनकी पत्रिका एक लाख से अधिक ग्राहकों को ख़बरें सीधे मेल किया करती थी।

मनोहर पर्रिकर के रक्षा मंत्री रहते बिना किसी घोटाले के ₹90,000 करोड़ के डिफेन्स कॉन्ट्रैक्ट साइन हुए थे

मनोहर पर्रिकर ने फेडरेशन ऑफ़ गुजरात इंडस्ट्रीज़ के एक समारोह में अपने बचपन के समय की एक कहानी सुनाई थी। कहानी उनके गाँव पर्रा के बारे में थी जहाँ उच्च गुणवत्ता वाले बड़े-बड़े और रसीले तरबूज उगते थे। पर्रा का एक किसान तरबूज खाने की प्रतियोगिता करावाता था जिसमें बच्चे भाग लेते थे। बच्चों को यह निर्देश दिया जाता था कि तरबूज खाते समय बीज को चबाना नहीं है बल्कि एक टोकरी में थूकना है। किसान उन बीजों को इकठ्ठा कर उनसे पुनः बढ़िया तरबूज उगाते थे।

पढ़ाई के लिए गाँव छोड़ने के छः साल बाद जब मनोहर पर्रिकर लौटे तो उन्हें पता चला कि पर्रा में अब वैसे बढ़िया और बड़े-बड़े तरबूज नहीं होते जैसे पहले होते थे। कारण यह था कि जो किसान प्रतियोगिता करवाता था वह प्रतियोगिता में बड़े तरबूज रखता था ताकि उसके बीज बिना किसी अतिरिक्त श्रम के एकत्रित किए जा सकें। लेकिन जब उस किसान के बेटे ने खेती की कमान संभाली तो उसने बड़े तरबूज बाजार में बेच दिए और प्रतियोगिता में छोटे तरबूज रखने लगा। इस कारण तरबूजों की अगली पीढ़ी आकार में छोटी और गुणवत्ता में फीकी हो गई।

मनोहर पर्रिकर की कहानी का मंतव्य यह था कि यदि हमें अगली पीढ़ी में काबिल लोग चाहिए तो उन्हें अच्छे शिक्षकों के माध्यम से अच्छी शिक्षा देनी होगी। दुर्भाग्य से यह प्रक्रिया शासन प्रणाली में लागू नहीं होती। भारत में जिस प्रकार मंत्रालयों में कामकाज होता है उस व्यवस्था को देखें तो पता चलता है कि निर्णय लिए जाने के बाद भी दशकों तक गतिरोध बना रहता है और प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाती। फिर एक दिन कोई ऐसा मंत्री आता है जो काम में तेज़ी दिखाते हुए निर्णयों को फाइलों से बाहर क्रियान्वयन के धरातल पर लाता है। भारत में यशवंत राव चव्हाण और जॉर्ज फर्नांडीज़ के बाद मनोहर पर्रिकर ऐसे ही रक्षा मंत्री हुए।

रक्षा मंत्री रहते हुए श्री पर्रिकर की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने मंत्रालय के बाबुओं में व्याप्त अविश्वास और नकारात्मकता को दूर करने में बहुत हद तक सफलता पाई थी। वरिष्ठ डिफेन्स जर्नलिस्ट नितिन गोखले अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि 2016 में आई रक्षा खरीद नीति (Defence Procurement Procedure) में ‘Buy- IDDM’ (Indigenously Designed, Developed and Manufactured) क्लॉज़ मनोहर पर्रिकर ने जुड़वाया था। रक्षा खरीद में स्वदेशी उत्पादों को वरीयता देने का श्रेय मनोहर पर्रिकर को जाता है। उन्होंने खरीद की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के यथासंभव प्रयास किए थे।

दरअसल 2001-02 से पहले भारत की अपनी कोई रक्षा खरीद नीति नहीं थी। सन 1992 में जरूर एक रक्षा खरीद प्रक्रिया दस्तावेज बनाया गया था लेकिन उस पर कुछ काम नहीं हुआ था। उसके दस साल बाद राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी समिति के सुझावों पर अमल करते हुए Defence Procurement Management Structures and Systems नामक संस्था बनाई गयी जिसने पहली बार DPP-2002 नामक दस्तावेज तैयार किया।

भारत में डिफेन्स प्रोक्योरमेंट प्रोसीजर एक विकासशील नीतिगत प्रक्रिया है। पहले हमने केवल खरीदने की बात की थी, फिर रक्षा क्षेत्र में खरीद के साथ निर्माण पर ज़ोर दिया गया। विदेश से हथियार खरीदने की प्रक्रिया में हमने ऑफसेट और ट्रांसफर ऑफ़ टेक्नोलॉजी को भी जोड़ा। आठ DPP के बाद नौवीं DPP-2016 में हथियारों, विमानों, युद्धपोत और अन्य उपकरणों के कलपुर्ज़े बनाने वाली स्वदेशी कंपनियों से खरीदने का निर्णय किया गया।

रक्षा मंत्री रहते हुए मनोहर पर्रिकर ने यह सुनिश्चित किया कि रक्षा उत्पादन में भारतीय कंपनियों के हित सुरक्षित रहें। Buy-IDDM क्लॉज़ उन वेंडरों से जुड़ा है जो भारत में उत्पादन करते हैं। देश में डिज़ाइन से लेकर निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए 40% देसी पुर्ज़ों का प्रयोग ज़रूरी है और यदि डिज़ाइन और उत्पाद स्वदेशी नहीं है तो कम से कम 60% पुर्ज़े देसी होने चाहिए। ऐसी नीतियाँ बनाई गईं जिससे भारतीय इंडस्ट्री को भी बढ़ावा मिले। मध्यम और छोटे उद्यमियों (MSME) को कैपिटल दिया गया जो पहले बड़ी इंडस्ट्री पर निर्भर थे।

मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल में ही चालीस वर्षों से लंबित सशस्त्र सेनाओं की वन रैंक वन पेंशन (OROP) मांग पूरी की गई। इसका सबसे ज्यादा फायदा जूनियर कमीशंड अधिकारियों को मिला जो चालीस की आयु पूरी करते-करते सेना से रिटायर हो जाते थे।

पर्रिकर के कार्यकाल में अमेरिका से LEMOA (Logistics Exchange Memorandum of Agreement) समझौता भी किया गया। यह समझौता सामरिक दृष्टिकोण से एक अलग तरह का महत्व रखता है। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से भारत और अमेरिका दुनिया भर में फैले एक दूसरे के सैन्य ठिकानों से रसद सहायता साझा कर सकेंगे। इसमें हथियार और गोला बारूद शामिल नहीं है। दरअसल लॉजिस्टिक्स का अर्थ है हथियार और गोला बारूद के अतिरिक्त युद्ध में उपयोगी सामग्री जिसमें सैनिकों के खान पान से लेकर लड़ाकू विमान का ईंधन भी शामिल हैं। वामपंथियों ने आदतानुसार इस समझौते का यह कह कर विरोध किया था कि इससे भारत भी अमरीका का पिट्ठू देश बन गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि यदि अमरीका किसी भी ऐसे देश पर हमला करता है जिससे भारत के दोस्ताना सम्बंध हैं तो भारत इस समझौते से अलग होने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र है।

रक्षा मंत्री रहते हुए मनोहर पर्रिकर ने इस विषय पर बयान भी दिया था जिससे उन अटकलों को विराम मिला जिसमें यह कहा जा रहा था कि LEMOA पर हस्ताक्षर करने से भारत अमेरिकी सैन्य अड्डे के लिए अपनी धरती देने को बाध्य होगा। अमेरिका ऐसे समझौते कई देशों के साथ कर चुका है। अन्य देशों के साथ हुए समझौते को अमेरिका लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट नाम देता है किंतु भारत को विशेष सामरिक साझेदार बनाने के परिप्रेक्ष्य में इसे Logistics Exchange Memorandum of Agreement नाम दिया गया। यहाँ यह देखना आवश्यक है कि LEMOA गत दस-बारह वर्षों से अटका पड़ा था, जिसे अंततः मनोहर पर्रिकर ने समझौते का रूप देने का महत्वपूर्ण कार्य किया था।

बहुत से विचारक इसी उधेड़बुन में रत थे कि अमरीका भारत को नाटो जैसा सहयोग देगा या नहीं। जल्दबाजी में नफा नुकसान का आंकलन करने की बजाए यदि हम द्विपक्षीय सम्बन्धों का स्वरूप देखें तो पता चलेगा कि LEMOA भविष्य में अमरीका से तकनीकी सहायता साझा करने की पृष्ठभूमि भी तैयार करता है। हम अमेरिका से दो और फाउंडेशनल समझौते करने की ओर अग्रसर हैं: एक- Communication and Information Security Memorandum of Agreement (CISMOA) और दूसरा- Basic Exchange and Cooperation Agreement (BECA). पिछले साल तक भारत के परिप्रेक्ष्य में CISMOA का नाम बदलकर COMCASA रखकर इसपर नेगोशिएशन की प्रक्रिया चालू हो चुकी थी।

सन् 1974 में विख्यात और बहुत हद तक कुख्यात हेनरी किसिंजर ने कहा था कि अमेरिका विश्व को जो योगदान दे सकता है और जो दुनिया अपेक्षा भी करती है वह है अमरीका की तकनीकी क्षमता। इस सन्दर्भ में तत्कालीन अमेरिकी रक्षा सचिव एश्टन कार्टर के दिमाग की उपज Defence Technology and Trade Initiative (DTTI) कायदे से एक सन्धि न होने के बावजूद भारत के लिए विशेष रूप से लाभदायक है। लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट डीटीटीआई को सफलता की ओर अग्रसर करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसका श्रेय मनोहर पर्रिकर को मिलना चाहिए।

यूपीए के कार्यकाल के खबरें आती थीं कि युद्ध हो जाए तो भारत के पास दस दिनों तक लड़ने की ही सामग्री होगी। भारत के महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक (CAG) की रिपोर्ट के अनुसार नए हथियार तथा उपकरण खरीदने में लगभग ₹20,000 करोड़ व्यय होते। मनोहर पर्रिकर ने रक्षा मंत्री रहते हुए केंद्र सरकार के इमरजेंसी वित्तीय अधिकारों के तहत आर्मी के लिए ₹5,800 करोड़ तथा वायुसेना के लिए ₹9,200 करोड़ की राशि उपलब्ध करवाई थी। डिफेंस एक्वीजीशन कॉउन्सिल (DAC) ने लगभग डेढ़ लाख करोड़ रुपए की रक्षा खरीद को Aceeptance of Necessity (जो कि डीपीपी का ही एक भाग है) के स्तर पर सहमति प्रदान की थी। यह भी उल्लेखनीय है कि पर्रिकर के कार्यकाल में ₹90,000 करोड़ के डिफेन्स कॉन्ट्रैक्ट साइन हुए थे वह भी बिना किसी घोटाले के।

मनोहर पर्रिकर के ढाई साल के रक्षा मंत्री के कार्यकाल में अनेक ऐसे कार्य हुए जिनके कारण देश उन्हें एक निष्ठावान, कर्मठ और सुयोग्य प्रशासक के रूप में सदैव याद रखेगा।  

पश्चिम बंगाल: ड्रोन उड़ाकर विक्टोरिया मेमोरियल की तस्वीरें लेने वाला चीनी नागरिक गिरफ्तार

पश्चिम बंगाल के सबसे हाई सिक्योरिटी जोन माने जाने वाले फोर्ट विलियम इलाके से ड्रोन उड़ाकर विक्टोरिया मेमोरियल की तस्वीरें ले रहे एक 34 वर्षीय चीनी नागरिक लियु झिंउओई को 2 महिलाओं समेत गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के बाद चीनी नागरिक को कोर्ट के सामने पेश किया गया, जिसके बाद उसे 25 मार्च तक के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया और आरोपी के साथ जो दो महिलाएँ थीं, उन्हें रिहा कर दिया गया। हालाँकि, अभी इस बात का पता नहीं चल पाया है कि महिलाएँ चीन की नागरिक हैं या भारत की।

जानकारी के मुताबिक, शनिवार (मार्च 16, 2019) की शाम ड्यूटी पर तैनात सीआइएसएफ की नज़र आसमान में उड़ रहे ड्रोन पर पड़ी। जिसके बाद जाँच पड़ताल शुरू हुई और आरोपी पकड़ा गया। घटना की जानकारी कोलकाता स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास को दे दी गई है। इस मामले पर कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि बेशक कोई व्यक्ति ड्रोन का मालिक हो सकता है, मगर वह बिना प्रशासन की अनुमति के उसे उड़ा नहीं सकता। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसी को भी प्रतिबंधित क्षेत्र में उड़ाने की अनुमति नहीं होती। जबकि चीनी नागरिक प्रतिबंधित क्षेत्र में ही ड्रोन उड़ा रहा था।

इस मामले पर पुलिस का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि चीनी नागरिक को ड्रोन से संबंधित कानून के बारे में पता ना हो। इसलिए वो उससे पूछताछ करके ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रतिबंधित क्षेत्र में किस मंशा से ड्रोन उड़ा रहा था?

अखिलेश-मायावती करेंगे ‘देवबंद’ से प्रचार की शुरुआत, तो CM योगी देंगे ‘शाकम्भरी पीठ’ से जवाब

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐलान किया है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार का आरंभ ‘शाकम्भरी पीठ’ से करेंगे। मुख्यमंत्री योगी ने बसपा अध्यक्ष मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के देवबंद से लोकसभा चुनाव प्रचार करने की शुरुआत करने पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि दोनों पार्टियों (सपा-बसपा) का चुनाव प्रचार ‘देवबंद’ से शुरू होना दर्शाता है कि उनकी नीति और प्राथमिकताएँ क्या हैं।

ख़बरे हैं कि महागठबंधन की नीतियों से उलट बीजेपी के भगवाधारी योगी आदित्यनाथ नाम वापसी की आखिरी तारीख़ के बाद 25 मार्च के आसपास शाकम्भरी पीठ पहुँचेंगे। एक तरफ़ जहाँ ‘देवबंद’ में इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम स्थित है। वहीं शाकम्भरी पीठ पौराणिक हिन्दू मान्यता का केंद्र है, जहाँ देवी शाकम्भरी ने महिषासुर का वध किया था। देवी के यहाँ ध्यान लगाने की वजह से उनका मंदिर बनाया गया।

रविवार (मार्च 17, 2019) को एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि लोकसभा चुनावों में भाजपा सरकार फिर से प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। उनकी मानें तो वे इस बार 74+ का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। उनका कहना है कि वह इस दफा गोरखपुर, कैराना, आजमगढ़ और अमेठी में भी जीत दर्ज करेंगे।

योगी आदित्यनाथ के मुताबिक इस बार भाजपा के लिए चुनाव जीतना आसान है क्योंकि सपा-बसपा के कारनामों के बारे में सब अच्छे से जानते हैं। प्रियंका गाँधी के चुनाव में आने पर उन्होंने कहा कि इससे बीजेपी को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। क्योंकि 2017 में भी दो लड़के (राहुल गाँधी-अखिलेश यादव) आए थे, जिन्हें जनता द्वारा स्वीकारा नहीं गया था। वहीं प्रियंका गाँधी के गंगा में नाव यात्रा पर जाने पर योगी ने कहा कि यह अच्छी बात है वहाँ सबको जाना चाहिए, प्रियंका को पीएम मोदी का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंने वहाँ के लिए वाटर वे शुरू किया। उनके मुताबिक अगर राहुल, अखिलेश, मायावती भी नाव यात्रा पर जाएँगे तो उन्हें बहुत खुशी होगी।

Action के Reaction से सहमे प्रोपेगेंडाबाज़, होली पर नहीं दे रहे पानी बचाने की सलाह

इसे चुनावी मौसम का प्रभाव कहें या लिबरल्स की थकान का असर, होली आने में ज्यादा दिन नहीं बचे हैं और अभी तक सोशल मीडिया पर पानी बचाने को लेकर पोस्ट नहीं आए हैं। लोगों को याद होगा किस तरह होली से एक महीने पहले ही सूखी होली खेलने और पानी बचाने की सलाह के साथ कई ‘बड़े लोगों’ के पोस्ट वायरल हुआ करते थे। बड़े लोग इसीलिए, क्योंकि उनके पास सोशल मीडिया पर ब्लू टिक हुआ करते हैं। ये लोग दिवाली के समय पटाखे नहीं फोड़ने की सलाह देते हैं, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर दही-हांडी की ऊँचाई कम रखने की सलाह देते हैं, होली पर पानी का कथित अपव्यय न करने की सलाह देते हैं और महाशिवरात्रि के समय शिवलिंग पर दूध न चढ़ाने की सलाह देते हैं। इन्हें पहचानना बहुत आसान है। किसी भी हिन्दू त्यौहार में मीन-मेख निकाल लेना इनकी जन्मजात ख़ासियत है। ये एक गिरोह विशेष का भाग हैं, जो हर एक हिन्दू त्यौहार को मानवता के लिए चरम ख़तरे के रूप में देखता है।

ये वही लोग हैं जो होली पर तर्क देते हैं कि राक्षसराज हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद के समय ये आर्टिफीसियल रंग नहीं होते थे। उनका तर्क होता है कि भगवान श्रीराम के समय त्रेतायुग में पटाखे नहीं हुआ करते थे। उन्हें जानना चाहिए कि उस समय युद्धकला और धनुर्विद्या से तो बिजली कड़का दी जाती थी तो क्या आज भी हम भयंकर इलेक्ट्रोस्टेटिक डिस्चार्ज से दिवाली मनाएँ? अगर लिबरल्स के उस गिरोह विशेष को त्रेता युग के तर्कों से ही हमें जवाब देना है तो उन्हें एक कार्य करना चाहिए। उन्हें किसी ऐसे भौगोलिक क्षेत्र में जाना चाहिए, जहाँ तूफ़ान आ रहा हो या तड़ित झंझा चल रही हो। वहाँ एक-दो ऐसी छोटी-मोटी चीजें होंगी, जिसके बाद उन्हें त्रेता वाले लॉजिक से तौबा हो जाएगी।

उस क्षेत्र के वातावरण में दो इलेक्ट्रिकली चार्ज्ड क्षेत्र आपस में बड़े अच्छे से टकराएँगे। उन दोनों के एक-दूसरे को इक़्वालाइज़ करते ही एक ऐसी बिजली कड़केगी जिस से लिबरल्स का मिजाज ठंडा हो जाएगा। एकदम त्रेता युग के राम-रावण युद्ध वाली फीलिंग आएगी।

ऐसे ही होली को लेकर वे बेढंगे तर्क देते हैं कि पहले कृत्रिम रंगों का प्रयोग नहीं किया जाता था। भगवान श्रीकृष्ण और राधा ने एक-दूसरे के चेहरे पर रंग लगाए थे। ब्रज की होली पूरे देश भर में सबसे प्रसिद्ध है। बेढंगे तर्क देने के लिए उस युग का सहारा लेने वालों को भगवान शिव से प्रेरित होकर पूरे शरीर में भस्म रगड़ कर चलना चाहिए। कितने ऐसे लिबरल्स हैं जो अपने पूरे शरीर में भस्म लगा कर होली खेलने आएँगे? इन ज्ञान बघारुओं से यही अपेक्षा भी है। वे बड़ी चालाकी से भगवद्गीता और रामायण का जिक्र तभी करते हैं जब राष्ट्रवादियों की बात काटने के लिए माओ और मार्क्स के पास इसका कोई जवाब नहीं हो। अंधविरोध में पागल हो गए इन लिबरल्स ने तो बैलून में सीमेन भरे होने की झूठी बात कह कर इसे नारीवादी मुद्दों से जोड़ने की कोशिश कर ख़ूब हंगामा मचाया था।

हाँ, तो हम होली की बात कर रहे थे। होली प्यार का त्यौहार है। राधा-कृष्णा के प्यार का, शिव-पार्वती के प्यार का त्यौहार है। इस रंग में भंग डालने वालों को अब शायद समझ आ गया है कि जनता होशियार हो चुकी है। किसी को बार-बार बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। अगर आपने दिल्ली या मुंबई के किसी बंगले में बैठ कर भारतीय त्योहारों को लेकर बेकार के ज्ञान देने के प्रयास किए तो सुदूर शिलॉन्ग के किसी कॉलेज का विद्यार्थी भी आपको सीधा करने की ताक़त रखता है। आप भले जावेद अख़्तर हों, सागरिका घोस हों या अनुष्का शर्मा हों, अगर आपने हिन्दू त्योहारों को लेकर ऐसी-वैसी बातें की तो आपको तर्कों के साथ काट दिया जाएगा। यह कार्य पुलिस, सरकार, न्यायालय और मीडिया नहीं करेगी। जनता जागरूक है, आपसे ज्यादा जानकार है, अब वह ऐसे लोगों को नहीं बख्शती।

आपको याद होगा कि होली के कई दिनों पहले से कैसा कुटिल अभियान शुरू हो जाया करता था? होली पर पानी की बर्बादी होने की बात कही जाती थी। सबसे बड़ी बात कि ऐसा वही लोग कहते थे जो थूक फेंकने के बाद भी बाथरूम के फ्लश से 25 लीटर पानी बहा दिया करते हैं। कहा जाता था कि होली के कृत्रिम रंग चेहरे को नुकसान पहुँचाते हैं। ऐसे लोगों के लिए अभी-अभी एक ख़बर आई है। एक महिला को कैंसर होने के कारण जॉनसन एन्ड जॉनसन को $29.3 मिलियन का हर्ज़ाना भरना पड़ा। ऐसे 14,000 मामले आए हैं, जहाँ लोगों की शिकायत है कि जॉनसन एन्ड जॉनसन के प्रोडक्ट्स का प्रयोग करने के कारण उन्हें कैंसर हो गया। होली का विरोध करने वाले कितने लिबरल्स ने जे एन्ड जे की निंदा की?

यह एक अमेरिकन मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी है, पाश्चात्य है। इसीलिए वह जो भी करे, क्षम्य है। लिबरल्स को फर्क नहीं पड़ता। होली पर चुटकी भर रंग के पैकेट से शायद ही किसी को बुख़ार भी हुआ हो, लेकिन उस पर हंगामा मचाने वाले गिरोह विशेष के लोग उस कम्पनी के प्रोडक्ट्स को लेकर चुप हैं, जिसके कारण कैंसर जैसी बीमारी हुई। इसी को हिपोक्रिसी कहते हैं। इनके पास सबूत नहीं होते, बस ज्ञान होता है। इसके पास असली ख़बरें नहीं होतीं, बस फेक नैरेटिव होते हैं। इसके पास सही तर्क नहीं होते, बस एक घिसी-पिटी धारणा होती है। इसके पास ऐतिहासिक तथ्य नहीं होते, बस झूठी आशंकाएँ होती हैं।

होलिका दहन क्यों? होली क्यों? देश के हर एक भाग में इसके अलग-अलग कारण हैं और कहानियाँ हैं। इन सबके पीछे का ध्येय वही है, माहात्म्य समान है, भले ही किरदार अलग हों। हमने इन त्योहारों से जुड़ी कई प्रेरणादायी कहानियाँ पढ़ी हैं, सुनी है, सुनाई हैं। लिबरल गिरोह को इन सबमें कोई रुचि नहीं है। उन्हें लोगों का साथ घुल-मिल कर रंग खेलना खटकता है। और वे सबका ठेका लेने वाले कौन होते हैं? अगर कोई व्यक्ति रंगों के साथ होली खेलना चाहता है तो वह खेलेगा। अगर उसी के परिवार में कोई गुलाल से खेलना चाहता है तो वह भी खेलेगा। अगर कोई रंग-गुलाल-पानी इन सभी से खेलना चाहता है तो वह भी खेलेगा। उसी परिवार में कोई ऐसा भी व्यक्ति होगा, जो होली नहीं खेलेगा। लेकिन, ये चारों एक-दूसरे को अपने तौर-तरीकों को जबरन अपनाने को नहीं कह सकते।

फिर लिबरल के गिरोह विशेष को क्या दिक्कतें हैं? आप रंग से खेलो, गुलाल से खेलो, पानी से खेलो, राख से खेलो या गोबर में नहाओ- दूसरों को तो वैसा करने दो, जैसा वे चाहते हैं। वे देश का नियम-क़ानून नहीं तोड़ रहे न, खुशियाँ ही तो मना रहे। इस होली ऐसे लोगों की बोलती बंद हो गई है। उनमें से अधिकतर ने अभी तक होली पर पानी बचाने और रंगों के कथित दुष्प्रभाव को लेकर ट्वीट्स नहीं किए। स्पेन में जाकर सड़े टमाटरों से खेल कर ये होली में रंग न खेलने की सलाह देते हैं। आइए देखते हैं कि अब इनकी बोलती क्यों बंद है?

अब इन्हें जनता के जागरूक होने का डर सता रहा है। साल दर साल प्रोपेगेंडा परस्ती करते-करते इन्हें अब बदलाव नज़र आ रहा है। अगर ये होली पर ज्ञान बघारने से बच रहे हैं तो राष्ट्रवादियों के लिए यह एक बड़ी सफलता है। सोशल मीडिया का ज़माना है। अब गाँव के खेतों में बैठे बाबाजी और दादी-नानी की कहानियाँ सुन कर बड़ा हुआ कोई बच्चा भी ऐसे फालतू ज्ञान देने वालों को अपने गूढ़ तर्कों से पानी पिला सकता है। ख़ुद को ज्ञान का भण्डार समझने वाले इन पाखंडियों को अब चुनौती मिल रही है, देशवासियों से, देश से। अब ये फूँक-फूँक कर क़दम रखते हैं क्योंकि इन्हें पता है कि उन पर नज़र रखी जा रही है और उनके हर एक्शन का रिएक्शन होगा ही।

एक्शन का रिएक्शन का अर्थ यहाँ हिंसक कतई नहीं है। झूठ फैलाने वालों को सच का आइना दिखाना भी एक्शन का रिएक्शन है। इन तथाकथित मठाधीशों को तो किसी की बात सुनने की आदत ही नहीं थी, वे सबसे बड़े ज्ञानी जो ठहरे। अब सोशल मीडिया के ज़माने में इनकी बात काटी जा रही है, इनके तर्कों को सिलसिलेवार ढंग से गलत साबित किया जा रहा है। ये बौखला गए हैं। इस बौखलाहट में कइयों ने तो सोशल मीडिया पर ट्रोल का रूप धारण कर लिया है। कई सोशल साइट्स छोड़ कर ही भाग गए। कई अभी भी थेथरई में लगे हैं लेकिन समय-समय पर उनकी पोल खुलती रहती है। रही बात अभी की, तो राष्ट्रवादियों के लिए यह जश्न का समय है क्योंकि लिबरल गैंग होली पर प्रोपेगंडा फैलाने से डर रहा है। क्रिया की प्रतिक्रिया अपना काम कर रही है।

‘चौकीदार चोर है’ कहने वाले राहुल गाँधी को 23 मई के बाद चौकीदारों से हो जाएगी ‘दहशत’

आपको लड्डू अच्छे लगते हैं। आपने एक लड्डू लिया और बड़े चाव से खा लिया। आपको लड्डू बहुत ही ज्यादा अच्छे लगते हैं तो आपने दोनों हाथों में लड्डू लिए और एक-एक करके खा लिए। लेकिन, तब आपको लगता है कि ऐसे न तो दिल भर रहा है न ही पेट और कुछ ‘मजा’ टाइप भी फील नहीं हो रहा है तो आपने अपने एक असिस्टेंट की मदद ली, अपना बड़ा मुँह खोला और असिस्टेंट के जरिये मुँह में एक दर्जन लड्डू भरवा लिए।

अब अगर आपको ऐसा करने से ‘मजा’ आ रहा हो तो अलग बात है, लेकिन इस स्थिति में लड्डू आप से न तो निगलते बनेंगे और न ही उगलते। जबकि यही लड्डू आपके फेवरेट हुआ करते थे। और ऐसा ही कुछ माजरा राहुल गाँधी के साथ घटित होने जा रहा है, जहाँ उनका फेवरेट ‘चौकीदार चोर है’ उनके लिए ‘लड्डू’ साबित होने वाला है।

ईश्वर की असीम अनुकम्पा से एक तो उनके टॉप फ्लोर में ज्यादा लोड नहीं है, दूसरा अगर वे स्पीच के नाम पर ‘पोसम पा भई पोसम पा, डाकिए ने क्या किया’ भी सुना दें तो कॉन्ग्रेसी कहने लगते हैं कि इतना बेहतर तो नेहरू जी ने ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में भी नहीं लिखा था।

और यही वजह रही है कि जब राहुल गाँधी ने पीएम मोदी को उनके कार्यकाल के शुरुआत में ‘सूट-बूट’ के नारे से घेरने की कोशिश की तो कॉन्ग्रेसीयों ने उनको यकीन दिला दिया कि मोदी इसी नारे से ‘ध्वस्त’ हो जाएगा और सरकार गिरे न गिरे लेकिन सूट-बूट पहनना तो जरूर ही भूल जाएगा लेकिन ‘भक्तों’ ने इस दौरान राहुल गाँधी और उनके खानदान को उस वक्त सूट-बूट मय कर दिया, जब उनके सूट-बूट-कोट-पेंट और टाई में सजे हुए फोटोज से सोशल मीडिया को भर दिया गया।

फिर अचानक एक दिन राहुल गाँधी ने मोदी के ‘चौकीदार’ को पकड़ लिया। और, कह डाला कि “चौकीदार चोर है”, लेकिन फिर से कॉन्ग्रेसीयों ने उनको यह फील करवा दिया कि मोदी जो अपनी सभाओं में ‘भारत माता की जय’ और ‘वन्दे मातरम्’ बुलवाता है, यह उसी की काट है।

और राहुल गाँधी भी अपनी हर सभा में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगवाने लगे। इससे भक्त गण भी कुछ परेशान भी हुए कि यह कैसा ढीठ इंसान हैं, जो एक ही नारे से चिपक गया है। तब इस बार कमान फिर से मोदी जी ने संभाली और उन्होंने “मैं भी चौकीदार’ अभियान शुरू कर दिया। उनके देखा-देखी, मोदी समर्थकों, सरकार के मंत्रियों ने भी इसमें सक्रियता से भाग लेना शुरू कर दिया। और कमाल तो तब हो गया जब पीएम, भाजपा अध्यक्ष, गृह मंत्री, सरकार के अन्य वरिष्ठ मंत्री, भाजपा के शीर्ष पदाधिकारियों, और सोशल मीडिया पर पार्टी के समर्थकों ने अपने नाम के आगे ‘चौकीदार’ जोड़ लिया।

तब हैरान परेशान राहुल गाँधी ट्वीट करते हैं कि मोदी को ‘गिल्ट’ फील होने लगा है, और मोदी सरकार के सीनियर मंत्रियों मसलन गडकरी, जेटली, सुषमा स्वराज ने आपने नाम के आगे चौकीदार लगाया ही नहीं, क्या वे मोदी के चौकीदार नहीं हैं। शाम होते होते गडकरी और जेटली भी चौकीदार हो गए।

बन्दे को फिर भी चैन नहीं, उसने रात को फिर ट्वीट किया, क्यों चौकीदार साहब…बाकी सब तो ठीक है, ये सुषमा जी अब तक चौकीदार क्यों नहीं बनीं, कहीं कुछ खतरा तो नहीं है आपको!

इसके कुछ देर बाद सुषमा जी का ट्विटर हैंडल देखा तो सुषमा जी भी चौकीदार बन चुकी थीं। इसका अर्थ यह था कि अब पीएम से लेकर एक वेल्ला भक्त तक चौकीदार हो चुके हैं। चौकीदार, जो कि रक्षा, चौकसी, ईमानदारी और वफ़ादारी का प्रतीक माना जाता है, उसे आप कितनी बार और कहाँ-कहाँ चोर कहोगे!

पिछली बार आपने ‘चायवालों’ को मोदी का समर्थक बना दिया था और इस बार सुना है कि मुंबई की सिक्यूरिटी गार्ड्स (चौकीदारों) की एसोसिएशन ने भी राहुल गाँधी पर, उनको लगातार चोर कहने के लिए मुकदमा कर दिया है।

तो इस अभियान से आपको हासिल क्या हुआ है और आगे क्या होने जा रहा है! क्योंकि, आप विरोध के नाम पर सिर्फ ‘सस्ती जुमलेबाजी’ और ‘हवाई फायर’ कर रहे हो। आपके पास प्रमाणिक रूप से यह बताने के लिए कुछ भी नहीं है कि मोदी सरकार ने क्या गलतियाँ कीं, उससे देश को क्या नुक़सान हुआ और अगर आपकी सरकार आ गई, तो आप मोदी सरकार से क्या बेहतर करोगे?

और फिर जनता क्या यह नहीं देखेगी कि ‘चौकीदार’ को ‘चोर’ कौन कह रहा है ? वही जो ‘5000 करोड़ रुपए’ के ‘नेशनल हेराल्ड केस’ में ख़ुद अपनी माताजी सहित जमानत पर चल रहा है, जिनके जीजाजी देश के सबसे बड़े ‘भू-माफिया’ हैं, जिनके पिताजी की ‘बोफोर्स घोटाले’ में संलिप्तता थी, जिनकी दादी ने 1983 में भ्रष्टाचार को लेकर कहा था कि यह उनके लिए कोई मुद्दा ही नहीं है क्योंकि यह तो पूरी दुनिया में फैला हुआ है।

अभी तो जबकि चौकीदार ने अपनी प्रस्तावित 200 रैलियों और एक लाख करोड़ रुपए के चुनावी बजट का आगाज भी नहीं किया है, तब आप सोचिए कि आगे चौकीदार आपको कहाँ तक खदेड़ेगा, कैसे खदेड़ेगा और कहाँ ले जाकर छोड़ेगा।

15 साल तक दिल्ली की सीएम रहने के बाद जब शीला दीक्षित आम आदमी पार्टी (आप) से चुनाव हार गईं, तब बताते हैं कि जब भी उनके आस-पास लोग, आपस में ‘आप’ करके बात करते थे, तो वे चौंक जाती थीं। उनके मोतीलाल नेहरू मार्ग स्थित सरकारी आवास पर कई दिनों तक, कोई सफाईकर्मी उनके सामने ‘झाड़ू’ लगाता हुआ नजर नहीं आता था। बहुत मुमकिन है कि 23 मई के बाद श्रीमान राहुल गाँधी को भी ‘चौकीदारों’ से ऐसी ही दहशत हो जाए।

वो शख्स जो ‘पर्रिकर की कुर्सी’ की रेस में हैं सबसे आगे, आज ही ले सकते हैं शपथ: रिपोर्ट्स

गोवा के मुख्‍यमंत्री मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद राज्‍य में उपजे सियासी हालात के बीच बीजेपी की तरफ से प्रमोद सावंत सबसे दमदार दावेदार बन कर उभरे हैं। पार्टी ने औपचारिक घोषणा नहीं की है और सस्‍पेंस बरकरार रखा है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सावंत पर सहमति लगभग तय है।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स प्रमोद सावंत के अलावा विश्वजीत राणे के नाम को भी प्रबल दावेदार बता रही है। इस बीच एकाध रिपोर्ट ऐसे भी हैं, जो राज्य में राष्‍ट्रपति शासन की संभावनाओं पर लिखे गए।

मनोहर परिकर के निधन से उपजे शून्य के बीच कॉन्ग्रेस ने भी गोवा में सियासत करने की कोशिश की। बता दें कि कॉन्ग्रेस के 14 विधायकों ने राजभवन में राज्‍यपाल से मुलाकात की माँग की थी। बाद में कॉन्ग्रेस के नेताओं ने मुलाकात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया।

आपको बता दें कि विपक्षी दल ने शुक्रवार को सरकार बनाने का दावा पेश करते हुए राज्यपाल को पत्र लिखा था और रविवार को फिर से पत्र लिखा। कावलेकर ने कहा, ‘‘हम सदन में बहुमत वाली पार्टी हैं और फिर भी मुलाकात का समय लेने के लिए संघर्ष करना पड़ा। हम माँग करते हैं कि हमें पर्रिकर के निधन के बाद भाजपा सरकार के ना रहने की स्थिति में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाए।’’

गोवा में अभी सीटों की गणित पर बात करें तो कॉन्ग्रेस राज्य में अभी सबसे बड़ी पार्टी है। 40 सदस्यीय विधानसभा में उसके पास 14 विधायक हैं जबकि भाजपा के पास 12 विधायक हैं। इस साल की शुरुआत में भाजपा विधायक फ्रांसिस डीसूजा के निधन और रविवार शाम को पर्रिकर के निधन तथा पिछले साल दो कॉन्ग्रेस विधायक सुभाष शिरोडकर और दयानंद सोप्ते के इस्तीफे के कारण विधानसभा में सदस्यों की संख्या 36 रह गई है। गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी), महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) के पास तीन-तीन विधायक हैं जबकि राकांपा के पास एक विधायक है। तीन निर्दलीय विधायक भी हैं। जीएफपी, एमजीपी और निर्दलीय विधायक पर्रिकर सरकार का हिस्सा थे।

राजस्थान के सट्टा बाजार में बढ़ी हलचल, BJP सबसे आगे, कॉन्ग्रेस की स्थिति काफी खराब

लोकसभा चुनावों की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने के साथ ही सट्टा बाजार में भी गहमागहमी आ गई है। चुनाव में किस पार्टी को जीत मिलेगी, इस बात को लेकर कयास लगाने शुरू हो गए हैं। इसके साथ ही 17वीं लोकसभा में कौन-सी पार्टी कितने सीटों पर बाजी मारेगी, इसे लेकर भी सट्टा बाजार में भविष्यवाणी होने लगी है।

इसी कड़ी में राजस्थान बाजार में भी सट्टेबाजी चल रही है और अगर यहाँ हो रही भविष्यवाणियों को मानें तो केंद्र में अगली सरकार एनडीए की बनने जा रही है। जोधपुर के फलोदी स्थित सट्टा बाजार में लोग केंद्र में एनडीए की सरकार बनने पर सट्टा लगा रहे हैं। सट्टा बाजार के मुताबिक इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को 250 से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं, जबकि एनडीए के खाते में 300 से 310 सीटें जा सकती हैं।

वहीं अगर राजस्थान की बात करें तो सट्टा बाजार के अनुसार यहाँ पर भाजपा को 25 में से 18-20 सीटें मिल सकती है। राजस्थान सट्टा बाजार के सट्टेबाजों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत की तरफ से पाकिस्तान के बालाकोट में किए गए एयर स्ट्राइक के बाद से लोगों का मूड बदल गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कदम उठाया, उससे लोगों के दिलों में फिर से उम्मीद जग गई, और लोगों का बीजेपी की तरफ फिर से झुकाव बढ़ गया। यहाँ के सट्टेबाजों का कहना है कि एयर स्ट्राइक से पहले एनडीए को 280 सीटें मिलने की संभावना थी, जबकि बीजेपी को 200 सीटों पर संतोष करना पड़ता, मगर एयर स्ट्राइक के बाद माहौल बदल गया है।

दूसरी तरफ, अगर कॉन्ग्रेस की बात की जाए, तो कॉन्ग्रेस की स्थिति काफी खराब है। एयर स्ट्राइक से पहले यहाँ पर कयास लगाए जा रहे थे कि कॉन्ग्रेस को 100 सीटें मिलेंगी, लेकिन अब ये अनुमान लगाया जा रहा है कि कॉन्ग्रेस 72 से 74 सीटों तक ही सिमट जाएगी।

110+ सीटों पर चुनाव आयोग की कड़ी नजर: यहाँ होता है ‘बड़ा खेल’, जाएँगे स्पेशल ऑफिसर

चुनावों को धनबल से प्रभावित करने की कोशिश पर चुनाव आयोग गिद्धदृष्टि रखे हुए है। चुनाव आयोग ने हर राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) से उन लोकसभा क्षेत्रों की सूची तैयार करने को कहा है जिनमें धनबल का दुरुपयोग कर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने या वोटरों को लालच दे वोट वसूल करने की आशंका है। ऐसे क्षेत्रों में चुनाव आयोग विशेष ‘व्यय पर्यवेक्षकों’ की नियुक्ति करेगा। यह व्यय-पर्यवेक्षक ‘व्यय-संवेदनशील’ लोकसभा क्षेत्रों में जा कर विशेष दलों का निर्माण करेंगे जिनका कार्य जमीनी हरकत पर नज़र रखने का होगा।

अभी सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों के उत्तर न आने के कारण चुनाव आयोग का अनुमान है कि अंतिम संख्या 150 के आस-पास पहुँचेगी।

कमी नहीं है तरीकों की

चुनाव में वोटरों को रिश्वत देने के कई तरीके होते हैं- सीधे-सीधे कैश बाँटने के अलावा उपहार में उपकरण देने से लेकर शराब और नशीले पदार्थ बाँटने तक के हथकंडे राजनीतिक दल अपनाते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में जब्त 1200 करोड़ रुपए में से केवल 300 करोड़ रुपए ही नकदी के रूप में था, जबकि पंजाब से 700 करोड़ रुपए मूल्य के ड्रग्स बरामद किए गए थे। 2014-18 के कालखण्ड में चुनाव आयोग 21 विधानसभा चुनावों में भी 1800 करोड़ रुपए से ज्यादा जब्त कर चुका है।

2018 के अंत में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में ही लगभग 300 करोड़ रुपए चुनाव आयोग ने जब्त की थी।

पूरा तमिलनाडु-तेलंगाना रडार पर, आंध्र-गुजरात को लेकर भी सतर्कता   

तमिलनाडु के मुख्य चुनाव अधिकारी ने तमिलनाडु की सभी 39 लोकसभा सीटों व पुडुचेरी को ‘व्यय-संवेदनशील’ घोषित कर उनके लिए पर्यवेक्षक टीमों की माँग की है। इसी प्रकार आंध्र से अलग हो बने तेलंगाना राज्य की भी सभी 17 सीटों पर वहाँ के मुख्य चुनाव अधिकारी को वोटरों को रिश्वत दिए जाने का अंदेशा है।

इसके अलावा आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, और कर्नाटक की भी आधे से ज्यादा सीटों को व्यय-संवेदनशील मानने की अनुशंसा केन्द्रीय चुनाव आयोग को प्राप्त हुई है। आंध्र की जहाँ 175 में से 116 विधानसभा सीटें व 25 में से लोकसभा सीटें चुनाव आयोग के निशाने पर हैं, वहीं बिहार की 40 में 21 सीटें चिह्नित की गईं हैं। गौतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान मिली 300 करोड़ रुपए नकदी में से 124 करोड़ रुपए का ‘योगदान’ केवल आंध्र का ही था।

झारखण्ड के 2, उत्तराखण्ड के 4/5, हरियाणा व छत्तीसगढ़ के 3-3, गोवा के 1/2, राजस्थान के 5, व पंजाब के 6 लोकसभा क्षेत्रों को व्यय-संवेदनशील घोषित करने की अनुशंसा की गई है। उत्तर-पूर्व में मणिपुर के 2 (8 विधानसभा क्षेत्र), मेघालय के 3 (23 विधानसभा क्षेत्र), व नागालैंड के 1 (7 विधानसभा क्षेत्र) लोकसभा क्षेत्रों पर चुनाव आयोग की विशेष नज़र रहेगी।

आयकर विभाग ने भी 400 अधिकारी केवल गुजरात के लोकसभा चुनावों में  काले धन के हस्तक्षेप को रोकने के लिए तैनात किए हैं। बता दें कि गुजरात के 26 में से 18 लोकसभा क्षेत्र ‘व्यय-संवेदनशील’ माने गए हैं।

प्रत्याशियों के आधार पर तय करेगा यूपी, बंगाल को चाहिए पर्यवेक्षक बिना सीट बताए    

यूपी के मुख्य चुनाव अधिकारी ने यह बताया है कि वहाँ प्रत्याशी घोषित होने के बाद ही ‘व्यय-संवेदनशील’ क्षेत्रों की सूची तय हो पाएगी।

मध्य प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, असम, और केरला के मुख्य चुनाव अधिकारियों ने अपने यहाँ धनबल के दुरुपयोग की सम्भावना से इंकार करते हुए कोई व्यय-पर्यवेक्षक माँगने से इंकार कर दिया है, पर चुनाव आयोग द्वारा उनके इस दावे की पुनर्समीक्षा संभव है।

बंगाल के चुनाव अधिकारियों ने एक ओर किसी भी लोकसभा क्षेत्र में ऐसा कुछ होने की सम्भावना से भी इंकार किया है, पर व्यय-पर्यवेक्षक अवश्य माँगे हैं।

दुल्हन ने अनपढ़ दूल्हे से शादी करने से किया इनकार, पढ़े-लिखे व्यक्ति से विवाह करने का मिला प्रस्ताव

शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिससे व्यक्ति न सिर्फ़ अपनी सोच-समझ को विकसित कर पाता है बल्कि समाज को जागरूक करने में भी अपना योगदान देता है। शिक्षित लोग ही एक सभ्य समाज की नींव रखते हैं जो देश को बुनियादी तौर पर मज़बूत करने में सहायक साबित होता है। वहीं अशिक्षित होना किसी अभिशाप से कम नहीं होता। कई ऐसे मौक़े आते हैं जब अशिक्षित होने की वजह से शर्मसार भी होना पड़ जाता है।

ऐसी ही एक घटना बिहार के मधुबनी ज़िले की है जहाँ पंडौल गाँव में एक दुल्हन ने दूल्हे से शादी के करने से इनकार कर दिया क्योंकि वो अशिक्षित ही नहीं अनपढ़ भी था। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुल्हन को दूल्हे के अनपढ़ होने की बात वरमाला पहनाने के बाद पता चली जिसके बाद उसने शादी न करने का फ़ैसला किया।

दरअसल पंडोल प्रखंड के ब्रह्मोत्तरा गाँव के लड़के की शादी रहिका प्रखंड के मोमीनपुर गाँव की लड़की के साथ 13 मार्च को होनी तय हुई थी। बारात अपने तय दिन पर निर्धारित स्थान पर पहुँची और वरमाला होने के बाद शादी की रस्मों के दौरान दुल्हन की सहेलियाँ दूल्हे से बातें करने लगीं और बातों ही बातों में सहेलियों को शक हुआ कि दूल्हा अशिक्षित है।

अपने शक़ को यकीन में बदलने के लिए दुल्हन की सहेलियों ने दूल्हे को 100 रुपए के 10 नोट गिनने के लिए दिए जिन्हें गिनने में उसे दिक्कत होने लगी। काफी मशक्कत करने के बावजूद वो उन 10 नोटों को गिनने में असफल रहा। इसके बाद दूल्हे से उसका और गाँव का नाम पूछा गया जिससे पता चल गया कि वो पढ़ा-लिखा नहीं है। असलियत जानने के बाद दुल्हन ने दूल्हे से शादी करने से मना कर दिया।

बता दें कि दुल्हन बनी लड़की के इस फैसले का गाँव वालों ने स्वागत किया। लड़की द्वारा शादी न करने के फ़ैसले की तारीफ़ करते हुए शादी में उपस्थित एक व्यक्ति ने अपने पढ़े-लिखे बेटे से शादी का प्रस्ताव रखा और पूछा कि मेरा बेटा पढ़ा-लिखा है क्या आप उससे शादी करेंगी? लड़की वालों ने इस प्रस्ताव पर हामी भर दी।