Wednesday, November 6, 2024
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बेंगलुरु: यज्ञ में बाधा उत्पन्न करने पहुँचे कॉन्ग्रेसी, लोगों ने कहा ये राक्षस हैं

आए दिन कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ताओं का नया उत्पात देखने को मिलता है। इसी कड़ी में बेंगलुरु के पूर्ण प्रज्ञा विद्यापीठ में विष्णु सहस्रनाम यज्ञ चल रहा था, लोग विष्णु सहस्रनाम का जाप कर रहे थे। इसी बीच वहाँ पर कॉन्ग्रेस के कुछ गुंडे आए और उन्होंने लोगों को पीटना शुरू कर दिया, मोदी के विरोध में नारे लगाए और साथ ही राहुल गाँधी जिंदाबाद के नारे भी लगाए जिसके बाद वहाँ पर अफरा-तफरी का माहौल बन गया, लोगों के बीच दहशत फैल गई। ये बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि कॉन्ग्रेस की गुंडागर्दी अब धार्मिक स्थलों पर भी दिखने लगी है।

इस घटना की प्रत्यक्षदर्शी रहीं लेखिका सहाना सिंह ने इस बारे में ट्वीट करते हुए लिखा कि कल शाम (अप्रैल 7, 2019) को बेंगलुरु के पूर्ण प्रज्ञा विद्यापीठ में धार्मिक विद्वानों, संगीतकारों और लेखकों का जमावड़ा था। मगर वहाँ का माहौल उस समय काफी भयानक परिदृश्य में तब्दील हो गया, जब कॉन्ग्रेस के कुछ गुंडों ने वहाँ पहुचकर मोदी के खिलाफ नारेबाजी करते हुए विद्यापीठ में उपस्थित लोगों के ऊपर हमला करना शुरू कर दिया। जो कि पूरी तरह से गुंडागर्दी थी।

अपने एक और ट्वीट में लेखिका लिखती है कि उनकी माँ और बहन सुबह विद्यापीठ से लौटीं। वहाँ से आकर वो अध्यात्मिक रूप से काफी उर्जावान महसूस कर रहीं थी। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि कल शाम उस विद्यापीठ में क्या होने वाला था। एक व्यक्ति ने ट्वीट में लिखा कि जिन लोगों ने यज्ञ में बाधा डालने की कोशिश की वे राक्षस हैं और भगवान राम हमारी रक्षा करें।

चुनावी माहौल के बीच कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी मंदिरों में जाकर पूजा करते नज़र आते हैं, वो दिखाते हैं कि उन्हें और उनकी पार्टी की भगवान में काफी आस्था है और इस बात को लेकर वो वोट बटोरने की भी कोशिश करते नज़र आ रहे हैं, लेकिन उनके कार्यकर्ताओं ने धार्मिक स्थल पर जाकर जिस तरह का उत्पात मचाया है, उससे तो ऐसा कतई नहीं लग रहा है।


SpiceJet का विमान 18 घंटे लेट: भूखे प्यासे यात्री हलकान, क्रू ने छुड़ाई जिम्मेदारियों से अपनी जान

स्पाइसजेट की कोलकाता से पटना आने वाली फ्लाइट SG377 शनिवार की रात मौसम खराब होने के कारण वाराणसी की ओर डायवर्ट कर दी गई। हालाँकि मौसम 2 घंटे बाद ठीक हो गया लेकिन पायलट की ड्यूटी पूरी हो जाने के कारण शाम 7:25 पर फ्लाइट पर सवार पैसेंजर्स को सुबह तक वाराणसी एयरपोर्ट पर विमान के भीतर ही बैठे रहना पड़ा जिसके कारण उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा।

रविवार (अप्रैल 7, 2019) की सुबह दूसरे पायलट की व्यवस्था करके फ्लाइट में सवार पैसेंजर्स को पटना एयरपोर्ट पर पहुँचाया गया। इस दौरान फ्लाइट में 72 लोग सवार थे। प्रभात खबर में छपी रिपोर्ट के अनुसार पटना पहुँचने के बाद उनमें से कई यात्रियों ने एयरलाइन के कर्मियों के व्यवहार को काफ़ी निराश करने वाला बताया।

दरअसल, वाराणसी एयरपोर्ट पर फ्लाइट खड़े रहने के दौरान पैसेंजर्स को न तो कोई फूड पैकेट दिया गया और न ही चाय कॉफी के लिए पूछा गया। यात्रियों की माने तो इस दौरान फ्लाइट का एसी भी खराब हो गया था। जब घुटन से वहाँ यात्रियों की हालत बिगड़ने लगी, तो काफ़ी हंगामे के बाद सुबह 8 बजे उन्हें चाय-कॉफी और स्नैक्स दिया गया।

रिपोर्ट की माने तो स्पाइस जेट एयरलाइन कर्मियों के रूखे व्यवहार के कारण यात्रियों ने मामले की शिकायत DGCA उच्च अधिकारियों से करने का मन बना लिया है। जिसके लिए 72 में से 50 यात्रियों ने एक आवेदन भी तैयार किया गया है जिसमें उन्होंने अपना नाम, फोन नंबर, और हस्ताक्षर भी किया।

यहाँ बता दें स्पाइसजेट की इस फ्लाइट ने कोलकाता से पहले की 6 घंटे की देरी पर उड़ान भरी थी। फ्लाइट का डिपार्चर टाइम पहले 6:15 PM था, जिसे बढ़ाकर पहले 7:25 PM कर दिया गया, फिर इसका समय रात के 10 और फिर 11 बजे किया गया। आखिर में रात 12 बजे यह फ्लाइट कोलकाता से रवाना हुई। लेकिन 1 बजे जब यह फ्लाइट पटना पहुँची तो लैंडिंग के लिए मौसम सही नहीं था।

एयरपोर्ट पर लैंडिंग के पहले प्रयास में असफलता के बाद बहुत देर तक विमान आसमान के ही चक्कर लगाता रहा। इसके बाद रनवे न दिखने के कारण दूसरे प्रयास में भी फ्लाइट की लैंडिंग मुमकिन नहीं हो पाई। विमान में ईंधन खत्म हो जाने के डर से उसे वाराणसी एयरपोर्ट डायवर्ट किया गया था। यहाँ पर विमान की लैंडिंग रात के 2 बजे हुई। वाराणसी एयरपोर्ट पर यात्रियों को भूखे प्यासे परेशानियों का सामना करना पड़ा। अगले दिन आखिरकार यात्रियों के दबाव पर सुबह 10:45 में उसी विमान को फ्लाइट संख्या SG9377 बना कर पटना लाया गया और दोपहर 12 बजे पटना एयरपोर्ट पर पहुंचकर यात्रियों ने राहत की सांस ली।

अफ्रीका का वो शख़्स जिसने 10 मिलियन डॉलर बैंक से निकलवाए, मक़सद था केवल उन्हें देखना

अफ्रीका के सबसे धनी व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने वाले नाइजीरियाई अरबपति अलिको डांगोटे ने शनिवार को आइवरी कोस्ट में एक मंच से कहा कि कैसे उन्होंने एक बार बैंक से 10 मिलियन डॉलर कैश निकाले थे, जिसका मक़सद केवल इतना था कि आख़िर इतना सारा पैसा देखने में कैसा लगता है।

उन्होंने एबिडान में मो इब्राहिम फोरम को बताया कि जब आप युवा होते हैं तो आपका पहला मिलियन महत्वपूर्ण होता है, लेकिन उसके बाद पैसों को लेकर धीरे-धीरे यह आकर्षण कम हो जाता है।

डांगोट ने अपने दर्शकों को बताया, “एक दिन, मैंने 10 मिलियन कैश निकाला, उस कैश को अपनी कार में डाल दिया, मैंने उसे अपने कमरे में रख दिया। मैंने उन्हें देखा और सोचा, ‘अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे पास पैसा है’ और फिर अगले दिन उसे बैंक ले गया।”

डांगोट ने कहा कि अफ्रीका के भविष्य के लिए सबसे आशाजनक क्षेत्र कृषि और नई तकनीकें थीं। लेकिन उन्होंने युवा अफ्रीकी उद्यमियों को सलाह दी कि वे कामयाबी की पहली सीढ़ी चढ़ने से कभी दूर न जाएँ।

उन्होंने चेतावनी दी “अक्सर अफ्रीका में हम अपनी अनुमानित आय खर्च करते हैं। व्यापार में उतार-चढ़ाव हैं।” डांगोट ने पूरे महाद्वीप में व्यापारिक विकास में बाधा डालने वाले रीति-रिवाजों और प्रशासनिक समस्याओं पर खेद व्यक्त किया।

बता दें कि फोर्ब्स की अफ्रीकी अरबपतियों की सूची (2013) में टॉप पर अलिको डांगोटे थे, जिनकी संपत्ति 20.8 अरब डॉलर (13 खरब) थी और वह उप-सहारा अफ्रीका के सबसे बड़े सीमेंट निर्माता हैं। सीमेंट का बिजनेस करने वाले डांगोट ने बताया कि उन्हें अनेकों बार तरह-तरह की कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ा है।

6000 या 72 हजार… सब भूल जाइए क्योंकि अब हर परिवार को मिलेगा 2 लाख रुपए वो भी हर साल!

लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही सभा पार्टियाँ आम जनता को लुभाने में लग गई हैं। कॉन्ग्रेस ने सत्ता में आने के बाद गरीबों को साल में ₹72,000 देने की बात कही थी। अब इसी कड़ी में आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) का भी नाम जुड़ गया है। टीडीपी ने आम चुनावों के लिए शनिवार (अप्रैल 6, 2019) को अपना घोषणापत्र जारी करते हुए प्रत्येक परिवार को हर साल ₹2 लाख देने का वादा किया है।

टीडीपी अध्यक्ष एवं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी का घोषणापत्र जारी करते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने जहाँ हर गरीब परिवार को ₹72,000 सालाना देने का वादा किया है, वहीं अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो हर साल प्रत्येक परिवार को ₹2 लाख दिए जाएँगे। इसके साथ ही टीडीपी ने 12वीं पास कर चुके छात्रों को बेरोजगारी भत्‍ता देने की बात कही है। इतना ही नहीं, पार्टी ने राज्‍य के सभी शहरों में इनोवेशन हब स्‍थापित करने की भी घोषणा की है।

उन्होंने कहा कि कोई कल्पना में भी हमारी इस उदारता के साथ मेल खाने के बारे में नहीं सोच सकता है। टीडीपी ने केंद्र की किसान सम्मान योजना को राज्य के मेल खाते अनुदान के साथ जारी रखने का वादा किया है। इस योजना के तहत प्रत्येक किसान को सालाना ₹15,000 का फायदा मिलेगा। मुख्य विपक्षी पार्टी वाईएसआर कॉन्ग्रेस ने भी टीडीपी के घोषणापत्र जारी करने के कुछ घंटों बाद अपना घोषणापत्र जारी किया। पार्टी के घोषणा पत्र में हर किसान परिवार को लागत के लिए पचास हजार रुपए देने का आश्वासन दिया गया है। इसके साथ-साथ घर के लिए सस्ता और अतिरिक्त लोन देने की भी बात कही गई है।

आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने हैं। राज्य में 11 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होगा। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने पिछले दिनों यह भी ऐलान किया था कि यदि टीडीपी वापस राज्‍य की सत्‍ता में आती है तो वह एक मुस्लिम को अपना उपमुख्‍यमंत्री बनाएँगे। इतना ही नहीं, नायडू ने समुदाय विशेष के लिए इस्‍लामिक बैंक खोलने की भी घोषणा की है।

32 चुनाव हारने के बाद भी 84 वर्षीय श्याम बाबू का जज़्बा बरक़रार, फिर से लड़ेंगे चुनाव

ओडिशा के बेरहामपुर से श्याम बाबू सुबुद्धि ने 1962 से एक निर्दलीय के रूप में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा। अपनी इस चुनावी लड़ाई में उन्हें 32 बार हार का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके वो फिर से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हुए हैं।

समाचार एजेंसी ANI को उन्होंने बताया, “मैंने पहली बार 1962 में चुनाव लड़ा और लोकसभा और ओडिशा विधानसभा चुनावों सहित विभिन्न चुनाव लड़े। मुझे विभिन्न राजनीतिक दलों से प्रस्ताव मिले हैं, लेकिन मैंने हमेशा एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा।”

ख़बर के अनुसार, इस साल उन्होंने अस्का और बेरहामपुर लोकसभा सीटों से अपना नामांकन दाखिल किया। एक प्रमाणित होमियोपैथ, श्री सुबुद्धि कहते हैं कि वह राज्य में तीन खाली राज्यसभा सीटों पर भी चुनाव लड़ेंगे, जिसके लिए चुनाव 11 जून को होंगे। इससे पहले, उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के ख़िलाफ़ भी चुनाव लड़ा था। उन्होंने कहा, “मैं ट्रेनों, बसों और बाजारों में अपने दम पर प्रचार करता हूँ। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मैं जीतता हूँ या हारता हूँ। मुझे लड़ाई जारी रखनी है।”

उन्होंने कहा, “इस बार मेरा चुनाव चिन्ह एक बल्ला है और उस पर पीएम उम्मीदवार लिखा है।” श्री सुबुद्धि का कहना है कि वह राज्य की राजनीति से नाखुश हैं और मतदाताओं को लुभाने के लिए कथित तौर पर पैसे के इस्तेमाल पर भी दुखी हैं। उन्होंने कहा, “मैंने भ्रष्टाचार के ख़िfलाफ़ लड़ाई जारी रखी है।”

ओडिशा में विधानसभा चुनाव 11, 18, 23 और 29 अप्रैल को चार चरणों में लोकसभा चुनाव के साथ होंगे। 23 मई को परिणाम घोषित किए जाएँगे।

इंदिरा व राजीव शिकार हुए थे, शहीद नहीं: ढोंगी देशभक्ति के नाम पर वोट मत माँगिए, यह नौटंकी है

जमीनों की हेराफेरी और कमीशन के कई मामलों में आरोपित रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी कॉन्ग्रेस की महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा शनिवार (अप्रैल 6, 2019)को देश को देशभक्ति का पाठ पढ़ाने निकलीं। इंदिरा से नाक मिलने की योग्यता रखने वाली प्रियंका यूपी के फतेहपुर में एक नुक्कड़ सभा में बोल रही थीं। अचानक से वहाँ उन्हें देशभक्ति की बात याद आई ठीक उसी तरह जिस तरह से अक्सर पिछले चुनावों में उनके भाई साहब को कभी राम भक्त तो कभी शिवभक्त और कभी खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण दिखाने की याद आती थी। फिलहाल अब वह वायनाड से खुद को मुस्लिमों का मसीहा साबित करने में लगे हैं। क्योंकि, अमेठी अब उनके लिए उतनी मीठी नहीं रही कि वो उसका और फायदा उठा पाएँ।

तो अचानक से देशभक्त बनी प्रियंका ने फतेहपुर में कहा, “हर चुनाव में भाजपा देशभक्ति का मुद्दा उठाती है, मगर विकास पर कोई बात नहीं करती है। मैं यहाँ आपको यह याद दिलाने आई हूँ कि देशभक्ति के क्या सही मायने हैं।”

देशभक्ति और विकास साथ-साथ अच्छी बात है। पर जिसने 60 सालों तक विकास की ऐसी-तैसी कर खुद को घोटालों की सरकार कहलाने में फक्र महसूस किया हो, उस पार्टी के महासचिव के मुँह से विकास निकलते ही शायद प्रियंका को लगा कि ये तो सेल्फ गोल हो गया, कहीं कॉन्ग्रेस और मोदी सरकार के कार्यों के बीच तुलना न हो जाए? कहीं जनता ये सवाल न कर दे कि आपका परिवार तो घोटालों, दलालों और देश को बेच खाने वालों का जमावड़ा है, जिन पर जाँच के बाद कई आरोपपत्र दाखिल हो चुके हैं। जिनका पूरा परिवार जमानत पर चल रहा है। जिनके पतिदेव ED के सवालों का जवाब दे हलकान हो रहे हैं। मिशेल ने जिनके परिवार और पार्टी के कई नेताओं का नाम सीधे-सीधे न सही, परोक्ष तौर पर तो ले ही लिया है। वो विकास का नाम ले भी तो कैसे? तुरंत वापस लौट आईं देशभक्ति के मुद्दे पर और जल्दबाजी में अपने परिवार के ही दो प्रिविलेज्ड नेताओं को शहीद का दर्ज़ा दे डालीं।

इस क्रम में यहाँ तक कह दिया, “अगर भारतीय जनता पार्टी के नेता सच्चे देशभक्त होते तो वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी समेत देश के शहीदों का सम्मान करते।” यहाँ साफ़ दिख रहा है जिस परिवार ने नाम्बी नारायणन जैसे वैज्ञानिकों पर देश के खिलाफ जासूसी का आरोप मढ़कर, सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उनका पूरा जीवन बर्बाद कर दिया हो। जिसके कार्यकाल में होमी जहाँगीर भाभा और विक्रम साराभाई जैसे वैज्ञानिकों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बावजूद न उनका पोस्टमार्टम कराया गया और न कोई जाँच बैठाई गई। वो आज देशभक्ति का पाठ पढ़ा रही हैं। आपको कॉन्ग्रेसी राज के वो दिन तो याद ही होंगे जब देश को मजबूत बनाने की सोचने वाले जिंदा नहीं बचते थे

प्रियंका ने यह भी कहा, “देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले बीजेपी नेता अगर सच्चे देशभक्त होते तो वे देश के शहीदों का सम्मान करते, चाहे वे शहीद हिंदू हों या मुस्लिम या उनके राजनीतिक विरोधी के पिता! वह शहीद हैं। आप यह चयन नहीं कर सकते कि आप किस शहीद का सम्मान करें अगर आप सच्चे देशभक्त हैं तो राजीव गाँधी और इंदिरा गाँधी समेत सभी शहीदों का सम्मान करें।” यहाँ बात थोड़ी और साफ़ हुई कि उन्हें सैनिकों के बलिदान या शहादत से कुछ भी लेना-देना नहीं है। दरअसल वो भारत रत्न की तरह चुनाव के माहौल में जनता की भावनाओं का फायदा उठाने के लिए शहीद-शहीद खेलकर अपने परिवार के लोगों के नाम पर राजनीतिक रोटियाँ सेंकने का काम कर रही हैं।

देश के वीर सैनिकों के नाम पर अपने परिवार को रेवड़ी मत बाँटिए प्रियंका जी। क्या आप जानती हैं कि शहीद कौन होता है? जिसने शहादत खुद चुना हो, जिसे पता हो कि इस मिशन में देशहित की रक्षा के लिए दुश्मनों का सामना करते हुए उसकी जान जा सकती है फिर भी वह पीछे न हटे उसे देश गर्व से शहीद कहता है

सेना में ड्यूटी पर मरने वाला हर सैनिक या जवान, शहीद ही है क्या? जी नहीं। मारा गया हर सिपाही, अर्धसैनिक बल का जवान शहीद नहीं। ‘शहीद’ का ये गरिमापूर्ण सम्मान, हर मृतक को नहीं दिया जा सकता है। धोखे से जिनकी हत्या की गई, भले ही वो सैनिक ही हों, वे शहीद नहीं होते। अपनी और अधिकारियों की लापरवाही और अनदेखी में, धोखे से मारे गए सिपाही, शहीद नहीं कहलाते। बेखबर, लापरवाह किसी एक्सीडेंट में मारे गए लोग, शहीद नहीं होते हैं, वे बस शिकार होते हैं।

शहीद तो वे सजग सिपाही होते हैं, जो खतरा जानते हुए, अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए, चौकस रहकर, पूरे होशो-हवास में, सतर्कता से, सुनियोजित जोखिम उठाकर, अपनी कुर्बानी दे देते हैं कि सिवा उसकी कुर्बानी के और कोई विकल्प था ही नहीं। बिना मुठभेड़ किए ही, अगर कोई किसी साजिश का शिकार होकर मारा गया, किसी के गुस्से का शिकार हुआ, किसी रैली में मारा गया वो शहीद नहीं, शिकार है – साजिश का शिकार। शहीद होने के लिए जरूरी है, मौत की परिस्थितियों और उसके पीछे के कारण का, शौर्यपूर्ण और बुद्धिमतापूर्ण होना।

यहाँ तक की आतंकवादियों के फिदाईन हमलों में अगर आतंकवादी से मुठभेड़ नहीं हुआ और अपने ध्येय के लिए आतंकवादी ने जान दे दी तो, अपने मकसद के लिए शहीद वो आतंकवादी (वो भी उसके पक्ष के हिसाब से) हुआ न कि वो सैनिक जो उस फिदाईन का शिकार बना। ऐसे हमलों में दो सैनिक मारे जाते हैं, उन्हें हम सम्मानवश बलिदानी, हुतात्मा कह सकते हैं। लेकिन शहीद नहीं। शहादत का मतलब है, दुश्मन को मारने के लिए, खुद मर जाना। दुश्मन की चाल में आकर बिना उसे मारे ही, मारा जाना शहादत नहीं, खेत आना कहलाता है। खेत आया हर सैनिक, शहीद नहीं होता है। अपनी कमर में बम बाँध कर, कोई प्रायोजित आतंकवादी, अगर बेखबर सोए सैनिकों के शिविर में घुस कर फट जाए और अगर इस धमाके में खेत आए सारे सैनिकों के लिए आप शहीद शब्द प्रयोग करते हैं तो फिर उस महान सैनिक को क्या कहेंगे, जो दुश्मन का सामना करते हुए, अंतिम उपाय में, हैंडग्रेनेड लेकर दुश्मन के बंकर में कूद पड़ा, और अपनी जान देकर पचास दुश्मनों को मार गिराए ताकि अपने हजार साथियों की जान बचा सके।

सक्रिय व सजग रहकर, समाज की सुरक्षा के लिए, सही समय पर अपना सब कुछ न्योछावर कर देना ही, शहादत और बलिदान है।

शहीद थे भगत सिंह। शहीद थे आजाद। शहीद थे राजगुरु। शहीद थे सुखदेव। शहीद थे महाभारत के अभिमन्यु। शहीद हैं वे महान सैनिक, जिन्होंने दुश्मनों के शिविर में घुसकर, उनको मारते हुए अपनी जानें दे दीं।

शहीद और शिकार में फर्क है। पहले ये खुद समझिए फिर समझाइए कि देशभक्ति और शहादत क्या है।

प्रियंका गाँधी, शहादत के लिए बुद्धिमान होना बेहद जरूरी है। और आपके परिवार का बुद्धि से ही दुश्मनी है। आपके परिवार में सिर्फ परिवार का होना, खानदान से नाक मिलना ही जहाँ योग्यता हो, वहाँ बुद्धि और विवेक की बात करना बेमानी होते हुए भी देशहित में मैं आपका संदेह दूर कर रहा हूँ ताकि आप घोषित आपातकाल लगाने वाली महिला (अपनी दादी) को शहीद कहने की भूल न करें। आपकी दादी और आपके चाचा संजय गाँधी के ही पाले हुए भिंडरावाले जैसे पाकिस्तान परस्त अलगाववादी के खात्मे के लिए स्वर्ण मंदिर में जूते पहन के घुसे सैनिकों से धार्मिक भावना आहत होने पर अपने अंगरक्षकों के गुस्से का शिकार थीं आपकी दादी न कि शहीद।

ये जानते हुए भी कि इससे सिखों की धार्मिक भावना आहत हुई है और वो भयंकर रूप से उनसे खफा हैं। यहाँ तक की IB की सूचना के बावजूद सिख अंगरक्षकों को न हटाना मूर्खता है, लापरवाही है। और उनके गुस्से का शिकार हो अपनी जान गवाना एक हादसा है, दुर्घटना है, शहादत नहीं।

उसके बाद का तो आपको पता ही होगा। 1984 में आपकी दादी की हत्या के बाद जब कॉन्ग्रेसी ढूँढ-ढूँढ कर दिल्ली में सिखों को ज़िंदा जला रहे थे, एक नरसंहार को अंजाम दिया जा रहा था तो आपके ‘पूज्य’ पिताजी ने ही कहा था, “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।” याद है आपके पिताजी भी शहीद नहीं बल्कि अपनी बेवकूफी और लिट्टे के गुस्से का ही शिकार हुए थे। इस लिट्टे को भी आपके परिवार ने ही देश को खोखला और अशांत करने के लिए पाला था। माना की राजीव गाँधी की मौत वीभत्स तरीके से हुई थी, देश को अपना एक प्रधानमंत्री खोने का दुःख भी है लेकिन वह शहादत नहीं बल्कि महज हत्या थी। देश आपके परिवार की बेवकूफियों की कीमत आज तक चुका रहा है।

लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि आज जिस तरह से एक ही परिवार को देश के ऊपर थोपा जा रहा है वह लोकतंत्र की हत्या कर परिवार तंत्र को बढ़ावा देना ही है। बेशक आज आपकी चारण मीडिया गुणगान कर रही हो लेकिन उसे देश की सच्ची आवाज समझने की भूल मत करिए। वो आपके पाले हुए वामपंथी मीडिया गिरोह का मात्र स्तुतिगान है। आँखे खोलकर देखिए, आपकी पार्टी की तरह ये गिरोह भी नकारा जा चुका है।

प्रियंका जी आप देशभक्ति और देश के भविष्य की चिंता मत करिए। आज देश की संस्थाएँ, सुरक्षा बल और वैज्ञानिक ज़्यादा स्वतंत्र हैं और देशहित में नित नई उन्नति कर रहे हैं। तभी तो आज आपको वर्तमान नेतृत्व के कामों का श्रेय भी अपने परदादा को देने की ज़रूरत पड़ रही है। विकास या उत्थान नहीं हो रहा तो क्या आप विफलता का श्रेय लूटने को तैयार बैठी हैं?

चिंता मत करिए आप, देश का भविष्य तो उज्ज्वल है पर कॉन्ग्रेस का भविष्य देश को अंधकारमय नज़र आ रहा है। लेकिन आपने “इंदिरा इज इंडिया” के तर्ज़ पर यह भी कहने से गुरेज नहीं किया कि देश का भविष्य तय करने के लिए आगामी चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है इसलिए आप उनको यह याद दिलाने आई हैं कि सच्ची देशभक्ति के क्या मायने हैं। आप रहने दीजिए। देश समझ चुका है कि देशहित और सच्ची देशभक्ति क्या है। तभी तो उसने नकली देशभक्तों और जनेऊ धारियों को सत्ता से बाहर रखने की ठानी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आज देश सम्पन्नता की राह पर है। अब देश का कोई भी सच्चा सपूत यहाँ के संसाधनों की बंदरबाँट नहीं चाहता। जनता का तो यहाँ तक कहना है कि देशहित में सच्ची देशभक्ति का प्रमाण देते हुए कम से कम 20 साल तक परिवार को सत्ता से दूर रहकर आत्मशुद्धि का आनंद उठाना चाहिए। आप देश के लोकतंत्र में यकीन रखिए, जब ज़रूरी होगा ये देश हित में आपको मौका ज़रूर देगा। नहीं दे रहा तो देश जाग चुका है कि अब उसे घोटालों और दलालों की सरकार नहीं चाहिए।

खैर इसमें रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका मैं आपकी बुद्धि को दोष नहीं दूँगा। बस आपको लगा कहीं लोगों को कॉन्ग्रेस की घोटालों की याद न आ जाए, इसलिए राफेल राग पर ‘रागा’ के फेल होते ही आप अब देशभक्ति की लाइन पर आने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन चौकन्ना चौकीदार की वजह से कुछ काम नहीं आ रहा। अभी हाल ही में ABP को दिए एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने उनके भ्राता श्री (जो चुनाव हलफनामे में हेर-फेर को लेकर संदेह के घेरे में हैं) के संपत्ति के कई खुलासों के ऑपइंडिया के रिपोर्ट का जिक्र कर फिर से लंका लगा दी है। प्रियंका आप तो स्वयं ऐसी कई सम्पत्तियों की मालकिन हैं कि अगर आप चुनाव लड़ती हैं तो आपके भी भेद खुल जाने का डर है। इसलिए आपने एक गोली देकर फिलहाल इससे मुक्ति पा ली है कि यदि आपकी पार्टी चाहेगी तो आप ज़रूर चुनाव लड़ेंगी।

जिसके हाथ में 10 साल तक प्रधानमंत्री भी एक खिलौने की तरह रहा हो, जिनके भ्राता श्री देश के प्रधानमंत्री का अपमान करते हुए अध्यादेश बिना किसी अधिकृत पद पर होते हुए भी चारण मीडिया के सामने फाड़ चुके हों और पूरा कॉन्ग्रेसी मीडिया गिरोह ‘वाह राहुल जी वाह’ का नारा लगा चुकी हो – आप खुद वाराणसी के रामनगर में देशभक्ति का महान सन्देश देते हुए अपने ही गले की माला उतारकर देश के महान सपूत लाल बहादुर शास्त्री के गले में डालकर ये बता आई हैं कि कोई भी हो, वो हमेशा आपके परिवार से नीचे ही रहेगा। आप जैसे महानुभाव, आपके नकली देशभक्ति के पाठ और बाहरी दिखावों की देश को ज़रूरत नहीं। देश ने अभी तक आपके परिवार का बड़ा सम्मान किया। अब देश आपसे चाहता है कि आप भी लोकतंत्र की भावना और उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए कुछ समय तक सत्ता से दूर रहने में योगदान देकर सच्ची देशभक्ति का सबूत दें। जय हिन्द! जय भारत!

93.6% की धोखाधड़ी वाला ‘आरती घोटाला’: बुरे फँसे चिदंबरम-पुत्र, गरीब महिलाओं का विरोध प्रदर्शन

पूर्व मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम का नाम आए दिन सुर्खियाँ बटोरता है, जिसमें वो अपनी विवादित छवि के लिए चर्चित रहते हैं। इस बार एक नए विवाद में तमिलनाडु के मदुरै में कुछ महिलाओं ने मिलकर उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोला है। कथित तौर पर, कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने कार्ति के आगमन पर ‘आरती की व्यवस्था’ की थी। इसके लिए 25 महिलाओं को ₹500 (प्रत्येक को) देने का वादा किया गया था, लेकिन वादा ख़िलाफ़ी करते हुए महिलाओं को केवल ₹800 दिए गए और कहा गया कि इन्हें आपस में बाँट लो। इस हिसाब से प्रत्येक महिला के हिस्से में मात्र ₹32 आते हैं। यानी 468 रुपए का घाटा = 93.6% का घाटा।

ख़ुद के साथ हुए इस अन्याय के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के लिए सभी महिलाएँ एकजुट हुईं और अपनी आवाज़ बुलंद करने का निर्णय लिया।

कार्ति के आगमन पर, जब उन्होंने सबके खातों में सीधे ₹6,000 प्रतिमाह देने का वादा किया, तो उनमें से एक महिला ने पूछा कि जब वह वादा किए हुए ₹500 भी नहीं दे सकते, तो भला वो ₹6,000 कैसे देंगे।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कार्ति ने कहा, “कृपया ₹500 की इतनी छोटी राशि के लिए चिंता न करें। हमें वोट दें, हम सुनिश्चित करेंगे कि बैंक खातों के माध्यम से ₹6,000 प्रति माह आपके घर तक पहुँचे।”

बता दें कि एयरसेल-मैक्सिस मामले में CBI द्वारा दायर आरोप पत्र में पिता-पुत्र (पी चिदंबरम और कार्ति चिदंबरम) की जोड़ी को आरोपी बनाया गया है। पिछले साल अक्टूबर में, प्रवर्तन निदेशालय ने INX मीडिया मामले के संबंध में कार्ति चिदंबरम की ₹54 करोड़ की संपत्तियों को कुर्क किया था।

ख़बर के अनुसार, कार्ति को शिवगंगा क्षेत्र से कॉन्ग्रेस द्वारा टिकट दिए जाने पर पार्टी के भीतर काफी हंगामा हुआ। हालाँकि, कार्ति का कहना है कि पार्टी द्वारा टिकट दिया जाना उनकी ‘कड़ी मेहनत’ का नतीजा है, उन्हें भाई-भतीजावाद की वजह से टिकट नहीं मिला है। इसके अलावा कार्ति चिदंबरम को यह भी कहते हुए भी सुना गया कि गठबंधन अपनी जीत के माध्यम से अपनी शिवगंगा सीट को बरक़रार रखेगा।

रवीश बाबू, राहुल की आय, सोनिया के बहनोई और प्रियंका के फ़ार्महाउस पर प्राइम टाइम कहिया होगा? (भाग 3)

यूँ तो रवीश कुमार की पत्रकारिता भीतर से जंग खाकर खोखली हो ही चुकी है, लेकिन इस खोखले पाइप पर भी तर्कों के हमले करते हुए, इसे छिन्न-भिन्न करना ज़रूरी है। इसके दो परिणाम हो सकते हैं। पहला यह कि रवीश कुमार सुधर कर सही पत्रकारिता करने लगेंगे, या, दूसरा यह कि माइक को पॉलिथीन से लपेटकर बक्सा में बंद करके रख देंगे, और हिमालय या, जो भी पहाड़ सेकुलर लगे, उधर को निकल लेंगे।

ये मेरी रवीश शृंखला का तीसरा हिस्सा है। पहले दो हिस्से में मैंने उनके ‘द वायर’ वाले साक्षात्कार में की गई फर्जी बातों को यहाँ और यहाँ लिखा है। इस कड़ी में हम उनके उसी साक्षात्कार के उन हिस्सों पर बात करेंगे जहाँ वो वैकल्पिक मीडिया के उभरने की बात करते हैं, और उसकी परिभाषा बताते हैं। आप लोग यह न समझें कि मैं उनके एक लेख से प्रतिस्पर्धा में हूँ, जिसका ब्रह्मांड की सतहत्तर करोड़ भाषाओं और बोलियों में अनुवाद हो चुका है। मेरा प्लान बस छः हिस्सों में उनकी बातों पर बात करने का है।

टीवी न देखने की बात करने वाले रवीश कुमार ने न तो टीवी पर जाना बंद किया है, न ही प्रोपेगेंडा के टायरों से जलने वाली आग पर फरेबों के पॉलिथीन फेंककर उसे लगातार प्रज्ज्वलित करने में कोताही बरती है। बस कह कर निकल लिए कि टीवी मत देखिए। कहना यह था कि ‘मेरा टीवी देखिए, बाकी चैनल मत देखिए ताकि मेरे मालिक श्री रॉय साहब पर जो मनी लॉन्ड्रिंग का मामला चल रहा है, उसका खर्चा निकलता रहे।’ लेकिन कोई इतना खुलकर कैसे कह देगा!

ख़ैर, वैकल्पिक मीडिया की परिभाषा बताते हुए श्री रवीश कुमार जी ने कहा कि ‘वैकल्पिक मीडिया को खड़ा करना पड़ेगा जो कि नैतिकता वाली, साफ पैसा वाली हो’। ज़ाहिर है कि पैसा साफ किसका है, यह फ़ैसला रवीश जी ही करेंगे क्योंकि दूरदर्शन के शो के टेप चुराकर, सूटकेसों को अहाते से बाहर फेंककर ले जाने वाले प्रणय रॉय द्वारा शुरू किए एनडीटीवी का पैसा कितना साफ है, वो सबको पता है। ये वाक़या आपको कोई भी मीडिया जानकार बता देगा, फिर भी मैं इस बात के सत्य होने की पुष्टि वैसे ही नहीं करूँगा जैसे सेक्स रैकेट वाले ब्रजेश पांडे की पुष्टि एनडीटीवी या रवीश ने नहीं की थी।

नैतिकता की बात करने की पहली शर्त स्वयं की नैतिकता और आदर्श होते हैं। जो आदमी नौकरी कर रहा हो, पूरा जीवन खोजी पत्रकारिता और ख़बरों को सूँघने में निकल गया हो, उसे अपने मालिक की सच्चाई मालूम होने के बाद भी, केस का फ़ैसला जो भी आए, वहीं होकर नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाता हो, तो सही नहीं लगता। केस तो न मोदी पर साबित हुए, न राफेल पर, न जय शाह पर, न डोभाल पर, लेकिन आपने कितने प्राइम टाइम न्योछावर कर दिए, फिर आप प्रणय रॉय वाले एनडीटीवी में क्यों हैं? नैतिकता आपको वहाँ से बाहर निकलने क्यों नहीं कहती?

आगे आपने एंकरों के डर के बारे में कहा है कि उन्हें डर लगने लगा है। ग़ज़ब की बात यह है कि इस ‘डर’ की बात वो व्यक्ति कर रहा है जिसने 2014 के बाद एक भी रात बिना सत्ता को आड़े हाथों लिए नहीं बिताई है। आपने तो डर का माहौल और आपातकाल की बात करते हुए तमाम प्राइम टाइम किए हैं, मुझे तो याद नहीं कि आप पर वॉरंट निकला है, या आपका फेसबुक अकाउंट सस्पैंड करा दिया गया। फिर एंकरों को किस डर की बात कर रहे हैं आप?

कितने पत्रकारों को सरकार ने जेल में डाल दिया है? थूक कर भागने वाली नीति अपनाने वाले लोग आज भी भर मुँह थूक लिए घूमते हैं, और पूरे देश में हर जगह थूकते फिर रहे हैं। सरकार अपनी गति से काम कर रही है, आप सब अपनी गति से। आप कहते हैं कि पेपरों में खबरें बंद हो गई हैं। पहली बात तो यह है कि द हिन्दू वाले मस्त राम से लेकर इंडियन एक्सप्रेस तक, जब मौका मिलता है खबरें छाप ही रहे हैं। आपने पढ़ना बंद कर दिया है, तो वो बात अलग है।

दूसरी बात यह भी है कि आपको घोटालों की ख़बर पढ़नी है, और आपके दुर्भाग्य से घोटाले हुए नहीं। आपने जो दो-चार फर्जीवाड़े गढ़े जिसे आपने इसी इंटरव्यू में ‘बड़ी खबरें वायर, स्क्रॉल और कैरेवेन से आई हैं’ कह कर जो कहानियाँ याद कराईं, वो तो जासूसी धारावाहिक कहानियाँ साबित हुईं। अंग्रेज़ी में तो ख़बरों को स्टोरी कहते हैं वैसे, लेकिन वायर, स्क्रॉल और कैरेवेन में तो सच्ची वाले कहानीकार भर्ती हो रखे हैं।

अब बड़ी ख़बरों और वैकल्पिक मीडिया की बात से मैं आपको ऑपइंडिया द्वारा किए गए 3-4 बड़े ख़ुलासों की तरफ ले जाना चाहूँगा जिसमें राहुल गाँधी, सोनिया गाँधी, रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी की कई ज़मीन डील, राफेल और यूरोफाइटर की लॉबीइंग, सोनिया के बहनोई और बोफ़ोर्स का कनेक्शन और राहुल गाँधी के चुनावी हलफनामे में FTIL और फ़ार्महाउस का नाम आया।

सबके सबूत भी हमने लगाए, एक दो मीडिया हाउस में ख़बर भी चली जिसमें आपका चैनल या फेसबुक शामिल नहीं था, फिर सवाल यह है कि क्या आप तक यह ख़बर नहीं पहुँची, या आपने इसे इग्नोर किया? हमें आपके इग्नोर करने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन ज्ञान मत दिया कीजिए ज़्यादा कि बड़ी खबरें कहाँ से आ रही हैं। इसी को हिन्दी में दोमुँहापन कहा जाता है।

आपने नहीं चलाया क्योंकि आपको ये सूट नहीं करता। आपके नैरेटिव में यह फ़िट नहीं बैठता। एक न्यूज पोर्टल की ख़बर छुप सकती है लेकिन जेटली, ईरानी और रविशंकर प्रसाद का प्रेस कॉन्फ़्रेंस एक पत्रकार की नज़रों में न आए, ऐसा मानना मुश्किल है। इसलिए, नैतिकता और आदर्श का ज्ञान बिलकुल मत दिया कीजिए।

आपने जो एक फर्जी परिभाषा गढ़ ली थी मीडिया की कि मीडिया का काम सत्ता की आलोचना है, वो बेहूदी परिभाषा है, भटकाने वाली परिभाषा है। मीडिया का काम सत्ता नहीं, लोकतंत्र का वाच डॉग बनना है। उसे सत्ता और विपक्ष की कमियों और उनके बेहतर कार्यों, दोनों को मैग्निफाय करके जनता तक लाना है। मीडिया अगर सत्ता के अभियानों में सहयोग नहीं करेगी तो न तो स्वच्छता अभियान सफल होगा, न बेटी पढ़ाओ।

आपने सत्ता की आलोचना को अपनी घृणा के सहारे खूब हवा दी, लेकिन आपने देश के नकारे विपक्ष और एक परिवार पर एक गहरी चुप्पी ओढ़े रखी। इसको अंग्रेज़ी में कन्विनिएंट साइलेन्स कहते हैं। यहाँ आप न्यूट्रल नहीं हो रहे, यहाँ आप जानबूझकर एक व्यक्ति का पक्ष ले रहे हैं ताकि उसकी छवि बेकार न हो। वरना आपकी छवि तो ऐसी रही है कि कोई भी व्यक्ति, कुछ भी, बिना किसी सबूत या आधार के मोदी या मोदी सरकार के खिलाफ बोलता है तो आपकी लाइन होती है, ‘जाँच तो होनी ही चाहिए, जाँच में क्या हर्ज है’। फिर पूरा प्राइम टाइम न सही, तीन मिनट अंत में ही बोल देते कि राहुल गाँधी पर सरकार जाँच क्यों नहीं करा रही?

आपने नहीं बोला क्योंकि आपको पता है कि कन्विक्शन तो बाद में होगा, पहले चुनावों के समय कॉन्ग्रेस की छवि खराब हो जाएगी, और आपके भक्तगण आपको संघी कहकर गरिया लेंगे। इसीलिए, आप बिहार पर खूब ज्ञान दे देते हैं कि ‘मेरा बिहार जल रहा है’ लेकिन उसी रामनवमी पर या अन्य धार्मिक मौक़ों पर बंगाल में सम्प्रदाय विशेष की भीड़ जब उत्पात मचाती है, तो आप लिखने से कतराते हैं, और लिखते भी हैं तो ममता बनर्जी का नाम तक नहीं ले पाते।

ख़ैर, रहने दीजिए, आपके हर लाइन पर एक लेख लिख सकता हूँ, लेकिन समयाभाव है। आपने राफेल पर खूब ढोल पीटा कि छपेगा ही नहीं तो दिखेगा कैसे? जबकि सत्य यह है कि आपको घमंड हो गया है कि आप जिस बात में विश्वास करते हैं, आप जो कह देते हैं, वही सार्वभौमिक सत्य है भले ही उस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय दे दिया हो। आपके लिए सुप्रीम कोर्ट तभी सही लगता है जब आपके मतलब की बात हो रही हो, वरना वो लाल बलुआ पत्थरों की एक इमारत है जहाँ काले कोट में कुछ लोग आते और जाते हैं।

समस्या यह नहीं है कि ‘छपेगा नहीं तो दिखेगा कहाँ’, बल्कि इसके उलट समस्या यह है कि ‘जब है ही नहीं, तो छपेगा कैसे’। रवीश जी उस युग में हिट हुए पत्रकार हैं जब हर महीने किसी नेता पर डकैती का इल्जाम लगता था, इसलिए उनके लिए यह मानना मुश्किल है कि इस सरकार में कुछ हुआ ही नहीं। मैं उनकी बात समझ सकता हूँ क्योंकि दुकान बंद होने के कगार पर है, और नकारात्मकता बिक नहीं रही। इसलिए कई बार आपातकाल आकर अब इतनी दूर चला गया है कि बुलाने पर भी नहीं आ रहा।

रवीश जी रुकते नहीं। एक अथक मीडियाकर्मी होने के कारण वो लगातार छिद्रान्वेषण की राह पर चलते रहते हैं। इसलिए, अमित शाह के पुत्र और अजित डोभाल के पुत्रों पर लगातार लांछन लगाने के बाद जब पोर्टलों पर मानहानि का दावा लगाया गया तो बिलबिला गए। कहने लगे कि पत्रकार का काम केस लड़ना नहीं है और ऐसा करके सरकार उनका मुँह बंद करना चाहती है।

जबकि वो भूल गए कि कोर्ट सरकार के भीतर कार्य नहीं करती। प्रभावित पार्टी कोर्ट गई, और उसने अपनी मानहानि का दावा ठोका। अब कोर्ट को लगे कि वह गलत है, तो वो अपना फ़ैसला देगी। रवीश ने जज को ही लपेट लिया कि आखिर जज ने ‘मानहानि को कैसे बर्दाश्त किया, नेता को जजों ने कैसे बर्दाश्त किया’ कह कर।

यहाँ रवीश जी स्वयं ही संविधान का अवतार बन गए क्योंकि संविधान में न्यायपालिका के अधिकार हैं जिसमें वो ये तय करती है कि क्या सही है, क्या गलत। लेकिन यहाँ रवीश तय कर रहे हैं कि क्या सही है, और क्या गलत होना चाहिए। फिर उन्होंने सवा रुपए की मानहानि की बात की है। वो यह भूल गए कि जिस अम्बानी, अडानी, टाटा, बिरला या किसी भी उद्योगपति पर घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, उनकी कम्पनी का स्टॉक एक मिनट में कितना गिर सकता है। इसलिए, भले ही रवीश कुमार का मान सवा रुपए लायक हो, लेकिन हर व्यक्ति का नहीं क्योंकि वाक़ई किसी के मान से उसकी कम्पनी का स्टॉक क्रैश कर सकता है, और हजारों लोगों की नौकरियाँ जा सकती हैं।

अब रवीश कुमार की स्थिति यह है कि उन्होंने जो भी कमाई की थी, उसका अधिकतर कैपिटल बह चुका है। अब कुछ लोग उनके भक्त बन गए हैं, जो उनकी हर बात को सही ही मानते हैं। इन्हीं तरह के भक्तों की बात उन्होंने इसी इंटरव्यू में की थी, जबकि ग़ज़ब की बात यह है कि जब वो यह बोलने लगे कि हर चैनल का अपना एक दर्शक समूह है, जो दर्शक नहीं समर्थक है, तो मुझे इन्हीं का चेहरा याद आ रहा था कि देखो, कितना ईमानदार आदमी है। इनकी ईमानदारी की दाद मैं दे देता अगर ये टीवी न देखने की सलाह देने के बाद, स्वयं उस स्टूडियो से ‘नमस्कार, मैं रवीश कुमार’ वाली लघु कविता कहना बंद कर देते। लेख की चौथी कड़ी में हम रवीश कुमार के ब्रह्मज्ञान के कुछ और बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।

देश के दूसरे NSA जे एन दीक्षित की हत्यारी कॉन्ग्रेस आज NSC को कानूनी दर्ज़ा देने की बात कर रही है

कॉन्ग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में लिखा है कि सत्ता में आने पर वे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के पद को वैधानिक दर्ज़ा (statutory status) प्रदान करेंगे। यही नहीं कॉन्ग्रेस का यह भी कहना है कि इन संस्थानों को वे संसद के प्रति जवाबदेह भी बनाएंगे। कॉन्ग्रेस के यह वायदे लगते तो बहुत अच्छे हैं लेकिन इनके पीछे जो नीयत है वह सही नहीं लगती। इसके बहुत सारे कारण हैं। पहले हम NSA और NSC के कामकाज पर संक्षेप में चर्चा करेंगे।

हम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का इतिहास देखें तो पाएंगे कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसी संस्था बनाने के लिए एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया था जिसके सदस्य थे कृष्ण चंद्र पंत, जसवंत सिंह और एयर कमोडोर जसजीत सिंह (सेवानिवृत्त)। दिसंबर 1998 में इस टास्क फ़ोर्स के सुझावों पर अमल करते हुए ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद’ (National Security Council) का गठन किया गया था।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद तीन अंगों वाली परिषद है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Adviser), NSC का पूरा कामकाज देखते हैं। NSC का मुख्य कार्य देश की सारी इंटेलिजेंस एजेंसियों से प्राप्त गुप्त सूचनाओं में से महत्वपूर्ण जानकारी पर प्रभावी रूप से एक्शन लेना है।

अटल जी ने यह संस्था अमेरिकी मॉडल पर बनाई तो थी लेकिन इसे संसद द्वारा पारित किसी कानून के अंतर्गत नहीं बनाया गया था। यह केवल एक प्रशासनिक आदेश द्वारा बनाई गई परिषद है जिसका कार्य प्रधानमंत्री को देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की स्थिति पर नीतिगत निर्णय लेने में सहायता करना है। अटल जी ने अपने विश्वस्त सहयोगी ब्रजेश मिश्रा को NSA नियुक्त किया था जो प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव भी थे। उस जमाने में ब्रजेश मिश्रा इतने ताकतवर थे कि गोपाल कृष्ण गाँधी ने उनको ही ‘भारत सरकार’ कहा था

बहरहाल, सत्ता का सुख अधिक दिनों तक अटल जी के भाग्य में नहीं था। सन 2004 में भाजपा ने सत्ता में वापसी नहीं की और जब कॉन्ग्रेस से मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने विदेश सेवा के अधिकारी श्री ज्योतिंद्रनाथ दीक्षित को अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया। जब से जे एन दीक्षित NSA बने तभी से कॉन्ग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से उनपर पद छोड़ने का भारी दबाव बन रहा था। दीक्षित एक विद्वान और सक्षम अधिकारी थे इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के विश्वस्त थे लेकिन वे कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी की आँखों में खटकते थे। दीक्षित, सोनिया का भरोसा नहीं जीत सके थे; पद संभालने के सात महीने बाद ही उन्हें आभास हो गया था कि वे ज्यादा दिनों तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर नहीं रह पाएंगे।

प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्य अधिकारियों की तरह दीक्षित की पहुँच सोनिया गाँधी तक नहीं थी। वे जब भी मिलने की इच्छा जताते तो सोनिया गाँधी की तरफ से नकारात्मक उत्तर ही मिलता। वास्तव में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनते ही NSA पद के लिए झगड़ा प्रारंभ हो चुका था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पद के लिए अधिकारी के नाम की घोषणा होने से चार दिन पहले पूर्व आईबी निदेशक एम के नारायणन दीक्षित से ‘पूछताछ’ करने चेन्नई से दिल्ली आए थे। जब दीक्षित ने उनसे पूछा कि इतनी दूर आने कि क्या आवश्यकता थी तो नारायणन ने कहा कि उन्हें सोनिया गाँधी ने भेजा था।

इसके बाद दीक्षित को NSA बना दिया गया और नारायणन को प्रधानमंत्री कार्यालय में आंतरिक सुरक्षा के लिए विशेष सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। ये दोनों ही पद ऐसे थे कि दीक्षित और नारायणन में टकराव की स्थिति उत्पन्न होनी निश्चित थी। मामला तब और बिगड़ गया था जब एक भारतीय इंटेलिजेंस अधिकारी रविंद्र सिंह देश से गद्दारी कर अमेरिका की सीआईए के लिए काम करने लगा था। नारायणन इस बहुचर्चित मामले का ज़िम्मेदार रॉ (RAW) को मानते थे क्योंकि रविंद्र रॉ अधिकारी था।

नारायणन ने रॉ के सभी उच्च अधिकारियों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया जिसमें अमर भूषण, एन के शर्मा और रॉ चीफ सी डी सहाय शामिल थे। लेकिन चूँकि आधिकारिक रूप से NSA जे एन दीक्षित आईबी और रॉ समेत सारी इंटेलिजेंस एजेंसियों के चीफ थे इसलिए नारायणन की बात मानने को बाध्य नहीं थे। फिर भी नारायणन अपने राजनैतिक रसूख के चलते रॉ चीफ को दंडित करना चाहते थे। दीक्षित इसके तैयार नहीं थे क्योंकि एक भारतीय एजेंट के गद्दार होने से ज्यादा बड़ी इंटेलिजेंस असफलताएँ देश कारगिल युद्ध में झेल चुका था। ऐसे में एक केस के लिए रॉ चीफ को पद से हटा देने को वे ठीक नहीं समझते थे।

नारायणन ने इसे अपनी नाक की लड़ाई बना ली थी। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यालय में निरंतर दीक्षित पर पद छोड़ने का दबाव बनता जा रहा था। उन्हें सोनिया गाँधी से मिलकर अपनी बात कहने का मौका भी नहीं दिया गया था। इस मानसिक अवसाद को वे झेल नहीं सके और एक दिन चल बसे। उनके निधन पर एक उच्च सरकारी अधिकारी ने कहा था, “They Killed Him“. देहांत से पहले उनके पास भारत पाकिस्तान को लेकर एक डिप्लोमैटिक रोडमैप था। वे कहते थे कि मैं ऐसा कुछ करना चाहता हूँ जिससे देश को मुझपर गर्व हो। लेकिन न तो मनमोहन सिंह और न ही सोनिया गाँधी को ज्योतिंद्रनाथ दीक्षित की कोई चिंता थी। दीक्षित के दुनिया छोड़ने के बाद नारायणन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिया गया।

पूर्व आईबी चीफ रहे एम के नारायणन ने NSA का पद तो संभाल लिया लेकिन उनकी अक्षमता 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले में सामने आई। उस समय के अख़बारों और मीडिया में लगातार खबरें छपती थीं कि पाकिस्तानी आतंकी समुद्र के रास्ते हमला करने के ट्रेनिंग ले रहे हैं लेकिन इन सभी सूचनाओं को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के स्तर पर महत्व नहीं दिया जाता था। यह बात पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारियों विक्रम सूद और वप्पाला बालाचंद्रन ने अपनी पुस्तकों में भी लिखी हैं। इंटेलिजेंस एजेंसियों का काम होता है सूचनाएँ जुटाना। उन सूचनाओं पर समय रहते कार्यवाही करने का काम NSA और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का होता है।

सोनिया गाँधी ने दीक्षित की मृत्यु के बाद एक ऐसे व्यक्ति को NSA बनाया था जिसने NSA रहते अपना दायित्व नहीं निभाया। यही नहीं कॉन्ग्रेस ने 2008 के मुंबई हमले के बाद 2014 में सरकार जाने तक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को वैधानिक दर्ज़ा देने के बारे में नहीं सोचा न ऐसा कोई कानून लाने की बात की गई। अब क्योंकि पिछले 5 साल में किसी आतंकी बम हमले में नागरिकों की जान नहीं गई है और वह भी इसलिए क्योंकि देश में एक सक्षम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है अतः कॉन्ग्रेस भविष्य में इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति के हाथ पाँव काटना चाहती है।  

कॉन्ग्रेस यह चाहती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और परिषद को संसद के प्रति उत्तरदायी बनाकर इस संस्थान के सभी अधिकार सार्वजनिक कर दिए जाएँ। लेकिन भारत की सुरक्षा प्रणाली अभी इतनी परिपक्व और सुदृढ़ नहीं है कि NSC को कानून और संसद के दायरे में लाने भर से सारी समस्याओं का हल निकाला जा सके। जितनी भी गोपनीय सूचनाएँ NSC को प्राप्त होती हैं उनपर यदि संसद में चर्चा और मीडिया में बहस होने लगेगी तो देश की सुरक्षा का क्या हाल होगा इसकी कल्पना मात्र में सिहरन होती है।

तर्क दिया जा सकता है कि अमेरिका में NSC, 1947 में कानून लाकर बनाई गई थी। लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में हमें हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका के हित भारत से भिन्न और बड़े हैं। अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल के इतिहास और कार्यशैली पर डेविड रॉथकोप्फ ने एक पुस्तक लिखी है: Running the World: The Inside Story of the National Security Council and the Architects of American Power.

इस पुस्तक में रॉथकोप्फ लिखते हैं कि यद्यपि नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल कानूनी तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति और उनके अधिकारियों को असीम शक्ति प्रदान करती है लेकिन कानून और इतिहास उतने महत्वूर्ण नहीं हैं जितना राष्ट्रपति और उनके विश्वस्त अधिकारियों के बीच संबंध। इससे हमें पता चलता है कि भले ही कोई एजेंसी क़ानूनी तौर पर बनी हो लेकिन उसका सुचारू रूप से कार्य करना अधिकारियों की दक्षता पर निर्भर करता है। ऐसे में कॉन्ग्रेस की सरकारों के पूर्व में किए कारनामों के कारण उन पर भरोसा करना संभव नहीं।

‘भारत 16 से 20 अप्रैल के बीच पाकिस्तान पर फिर करेगा हमला, विश्वसनीय सूत्र से मिली जानकारी’

भारतीय वायु सेना द्वारा बालाकोट पर किए गए एयर स्ट्राइक के सदमे से पाकिस्तान अभी तक बाहर नहीं निकल पाया है। पाकिस्तान को अभी भी डर है कि भारत उस पर हमला कर सकता है। पाकिस्तानी विदेशी मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने दावा किया है कि भारतीय फौज पाकिस्तान पर हमला करने की तैयारी कर रही है। उन्होंने इसको लेकर एक निश्चित तारीख भी बताई है।

कुरैशी का दावा है कि ये हमला भारत में चल रहे चुनाव के दौरान होगा। उनका कहना है कि भारत अप्रैल महीने के तीसरे सप्ताह में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने की योजना बना रहा है। उन्होंने इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से दखल देने की गुहार लगाई है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने मुल्तान में मीडिया से बातचीत के दौरान दावा किया कि पाक सरकार के पास विश्वसनीय सूत्र हैं कि भारत एक नई योजना की तैयारी कर रहा है। उनकी जानकारी के अनुसार, यह कार्रवाई 16 से 20 अप्रैल के बीच हो सकती है।

शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि इसकी जानकारी पहले ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य देशों (चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका) को दे दी गई है। हालाँकि कुरैशी ने यह नहीं बताया कि उन्होंने 16 से 20 अप्रैल के बीच होने वाले हमले की बात किस आधार पर कही।

गौरतलब है कि 14 फरवरी को पुलवामा में हुए सीआरपीएफ कैंप पर हुए हमले के बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान स्थित बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर आतंकी कैंपों को ध्वस्त कर दिया था, जिसमें तकरीबन 250 आतंकियों के मरने की खबर आई थी।