Wednesday, October 2, 2024
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30 साल में यह पहला ऐसा चुनाव है, जब PM के अलावा कोई और PM का उम्मीदवार नहीं

1991 का चुनाव, पहला ऐसा चुनाव था, जहाँ नेहरू-गाँधी परिवार की सत्ता पर दावेदारी नहीं थी। राजीव गाँधी कॉन्ग्रेस को लीड कर रहे थे, स्वाभाविक तौर पर पीएम पद के दावेदार थे परन्तु बीच चुनाव में उनकी हत्या हो जाने से उपजी सहानुभूति लहर से सत्ता तो कॉन्ग्रेस के पास आ गई, लेकिन गाँधी परिवार सत्ता से बाहर हो गया। बाद में चाहे जो भी हश्र हुआ हो लेकिन नरसिंह राव ने पाँच साल का कार्यकाल गाँधी परिवार और उनके पिट्ठुओं को छकाते हुए पूरा किया और निश्चित रूप से छाप छोड़ी।

उसके बाद जितने भी चुनाव हुए, उन सबकी एक खासियत यह रही कि भाजपा की तरफ से जहाँ अटल बिहारी वाजपेयी पीएम पद के दावेदार होते थे, वहीं विपक्ष की ओर से यह सपना देखने का हक़ सबको मिल गया था। और ऐसा करना कतई अस्वाभाविक और बेतुका नहीं था। क्योंकि यह वही दौर था, जब तीसरे मोर्चे की राजनीति अपने पूरे शबाब पर थी।

लालू, मुलायम, हरकिशन सिंह सुरजीत, अमर सिंह, ज्योति बसु, चंद्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे नेता नेताओं को ताश के पत्तों की तरह फेंटकर उसमें से पीएम निकाल लेते थे। एच डी देवेगोड़ा, इंद्र कुमार गुजराल जैसे भूले-भटके पीएम, इसी ताश पद्धति से पीएम बन गए थे। बताते हैं कि जब तीसरे मोर्चे के नेताओं ने इंद्र कुमार गुजराल को पीएम बनाने का निर्णय लिया तब वे दिल्ली के आंध्र प्रदेश भवन के एक कमरे में सो रहे थे। उन्हें नींद से जगाया गया और कहा कि आप देश के अगले प्रधानमंत्री हैं। खुशी में उछलते हुए जब यही बात उन्होंने अपने घर पर बताई तो उनकी पत्नी ने कहा कि यह क्या बकवास है, तब उन्होंने डपटते हुए कहा कि तुम भारत के होने वाले पीएम से इस प्रकार बात नहीं कर सकतीं।

इसके अलावा जो बन नहीं सके, वह इन बन चुके प्रधानमंत्रियों से भी बड़े, इस पद के लिए दावेदार थे। जिनमें ज्योति बसु, शामिल हैं, जो पीएम बनने के लिए तैयार थे, लेकिन उनकी पार्टी ने फच्चर लगा दिया, जिसके बारे में उन्होंने बाद में अफ़सोस प्रकट किया कि यह उनकी ऐतिहासिक भूल थी। इसके अलावा मुलायम सिंह यादव, जिनकी दावेदारी पर दूसरे यादव नेता लालू प्रसाद ने वीटो लगा दिया, विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी उस कालखंड में फिर से एक बार पीएम बनाने की तैयारी कर ली गई थी, लेकिन वे अपने पहले कार्यकाल में हुए अनुभवों से इतने खौफज़दा थे, कि जब तीसरे मोर्चे के नेता उनके घर पर यह प्रस्ताव लेकर गए तो वे पीछे के दरवाजे से निकल चुके थे और कहीं पहुँचने की बजाय, घंटों अपनी गाड़ी में दिल्ली की सड़कों पर खाली घूमते रहे।

यही हाल उस दौर में भी था, जब अटल जी 13 महीने और फिर 5 साल के लिए पीएम बने… भाजपा की ओर से इस पद के लिए कोई कन्फ्यूजन नहीं रहता था, लेकिन विपक्षी दलों में दस सासंदों वाली पार्टी का मुखिया भी इस पद को अपने सपने में देखने के लिए अधिकृत था।

2004 में जब डॉ मनमोहन सिंह को सोनिया गाँधी ने पीएम बनाया तब उसकी तह में भी वही तीसरे मोर्चे की राजनीति थी, कि नेताओं को ताश की तरह फेंट दो, और जो नेता काबू में आ जाए उसे पीएम बना दो, बेशक वह जोकर ही क्यों न हो।

2009 में हालाँकि सोनिया गाँधी ने यह गलती कर दी कि या तो उन्हें अपनी ही पार्टी के किसी फुल टाइम राजनीतिज्ञ को पीएम बनाना था, या फिर मनमोहन सिंह को बनाया भी था, तो दो साल बाद उन्हें घर बिठाकर राहुल गाँधी को पीएम बना देतीं। तब उनकी पार्टी की वह दुर्गति न होती जो आज हुई है, और न ही राहुल गाँधी को आज इस पद के लिए संघर्ष करना पड़ता।

बाहरहाल, पीएम पद के अरमान सजाने वाले नेताओं की बात करें तो 2014 में भी फेहरिस्त खूब लम्बी थी। लालू, मुलायम, शरद पवार, मायावती, जय ललिता, चन्द्र बाबू नायडू सरीखे नेता इस पद के लिए स्वयंभू दावेदार थे, दावेदार तो राहुल गाँधी भी थे लेकिन नरेन्द्र मोदी ने अपनी छप्पर फाड़ जीत से इन सभी के अरमानों पर पानी फेर दिया।

पर यह सब लिखने और बताने के पीछे मेरा उद्देश्य उन नेताओं का बखान करना नहीं है, जिनके भाग्य से पीएम का पद छिंटक गया या जिनके भाग्य में दरिद्रता लिखी हुई थी, मैं यह सब इस लिए लिखने को विवश हूँ कि बीते लगभग तीस साल में यह पहला ऐसा चुनाव है, जब पीएम के अलावा कोई और पीएम का उम्मीदवार नहीं है।

लालू जी जेल में अपनी राजनीति ही नहीं बल्कि जीवन का भी भयावह समय गुजार रहे हैं। उनके पुत्र तेजस्वी कितनी ही चतुराई दिखा लें, लेकिन वे अपने पिता की राजनीति को आगे नहीं बढ़ा सकते, और उसका दौर भी अब बीत चुका है। मुलायम सिंह यादव तो टीवी पर सीधे प्रसारण में, करोड़ों लोगों के सामने मोदी जी को फिर से पीएम बनने का आशीर्वाद दे चुके हैं, जयललिता और करुणानिधि जैसे क्षत्रप अब इस दुनिया में नहीं हैं, ममता बनर्जी अधिक से अधिक 20 सीटें ला सकेंगी और इतनी सीटों पर उन्हें कौन पीएम बनाएगा और सहयोग कौन देगा? नवीन पटनायक और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता अपनी पूरी पारी खेल चुके हैं, और यह उनका आख़िरी चुनाव है।

अब अगर इस सीन में सबसे महत्वपूर्ण नेताओं की बात करें तो मायावती का नाम आता है, जिन्हें बीते कई वर्षों से पीएम पद का सशक्त दावेदार बताया जाता है, हमें कहना चाहिए कि वे इस बार फिर सशक्त दावेदार हो सकती थीं बशर्ते वे उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर लड़तीं, या पीएम पद पर कॉन्ग्रेस से समर्थन का आश्वासन लेने के बाद वे, देश भर में कॉन्ग्रेस से साथ गठबंधन करके लड़तीं, लेकिन वे ख़ुद अपने राजनीतिक जीवन के सबसे मुश्किल समय से जूझ रही हैं, जहाँ वे अपने गढ़ उत्तर प्रदेश में 80 में से मात्र 36 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं, कॉन्ग्रेस से उन्होंने खुली जंग का ऐलान कर दिया है और कॉन्ग्रेस ने भी इस जंग में चार कदम आगे बढ़कर, भविष्य में मायावती की राजनीति के सबसे बड़े संकट बनने वाले भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर के ऊपर अपनी सरपरस्ती का ‘हाथ’ रख दिया है।

वहीं इस पद के लिए 1991 से चूक रहे दिग्गज मराठा नेता, अपने ही राज्य नहीं बल्कि अपने ही परिवार में उलझ गए हैं, जहाँ उन्हें अपनी सीट अपने भतीजे अजीत पवार के बेटे पार्थ के लिए छोड़नी पड़ी है, वरना उनका समय तो बाद में खराब होता लेकिन ‘घड़ी’ पहले ही खंड-खंड हो जाती।

अंत में ‘बबुआ’ जितना जिक्र अखिलेश यादव का भी, जो कितनी भी डींगे हाँक लें, लेकिन उनके साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि जाति की राजनीति करने वाले अपने पिता जी की पार्टी के मुखिया सिर्फ ‘विरासत’ की वजह से हैं। और जाति की राजनीति में यह अयोग्यता ही मानी जाती है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण चौधरी अजीत सिंह है, जिनके पिताजी चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री भी रहे थे, लेकिन आज अजीत सिंह और उनके पुत्र एक-एक… दो-दो सीटों के लिए न केवल अपनी राजनीतिक निष्ठा बल्कि अपने समाज की निष्ठा को भी जहाँ-तहाँ नीलाम करते फिर रहे हैं। इसलिए बबुआ को अभी से ‘पैदल’ चलने का अभ्यास शुरू कर देना चाहिए क्योंकि चुनाव के बाद हाथी तो उनको उतार कर फेंक ही देगा, साइकिल के पहिए भी पंचर हो जाएँगे।

ऐसे में सिर्फ एक व्यक्ति बचता है जो अभी प्रधानमंत्री है, और आगे भी हर हाल में प्रधानमंत्री बनना चाहता है। जिसके पास न अब सत्ता और षड्यंत्रों के अनुभवों की कमी है, न संसाधनों की, न समर्थकों की, न ऊर्जा की, न मुद्दों की और न ही दिलेरी की। तब इन हालात में कोई मुझे यह बताए कि आखिर क्यों यह व्यक्ति फिर से पीएम नहीं बनेगा और 300 सीटों के साथ नहीं बनेगा ?

आतंकवाद से लड़ने में PM मोदी जितने कठोर नहीं थे मनमोहन सिंह: शीला दीक्षित

एक और जहाँ गाँधी परिवार जमीन घोटाले में अपने नाम मीडिया में आने के कारण परेशान चल रहा है, वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने आज एक बयान दिया है, जिसके कारण कॉन्ग्रेस में बवंडर मच सकता है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद से कॉन्ग्रेस लगातार ये माहौल बनाने के प्रयास कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आतंकवाद पर ठीक तरह से कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

बृहस्पतिवार (मार्च 14, 2019) को एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में शीला दीक्षित ने स्वीकार करते हुए कहा कि मनमोहन सिंह आतंकवाद से लड़ने में उतने कठोर नहीं थे, जितने कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। हालाँकि, शीला दीक्षित ने यह भी कहा है कि नरेंद्र मोदी के ज्यादातर काम राजनीति से प्रेरित होने के साथ ही राजनीतिक लाभ उठाने के लिए होते हैं। इस बयान के सामने आने के बाद शीला दीक्षित ने सफाई देते हुए कहा है, “मनमोहन सिंह का आतंकवाद को लेकर उतना कड़ा कदम नहीं होता, जितना कि पीएम मोदी उठाते हैं। अगर मेरे बयान को किसी दूसरी तरह पेश किया जा रहा है तो मैं कुछ नहीं कह सकती।”

दिल्ली कॉन्ग्रेस प्रमुख शीला दीक्षित ने स्वीकार किया कि 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रतिक्रिया, पुलवामा आतंकी हमले  के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह मजबूत और दृढ़ नहीं थी।

शीला दीक्षित के इस बयान के बाद दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, जिन्हें आजकल सोशल मीडिया पर आत्ममुग्ध बौने के नाम से भी ‘वायरल’ किया जा रहा है, तुरंत एक्शन में आ गए हैं। उन्होंने शीला दीक्षित के इस बयान पर ट्वीट करते हुए कहा, “शीला जी का ये बयान वाक़ई चौंकाने वाला है। भाजपा और कॉन्ग्रेस में कुछ तो खिचड़ी पक रही है।” वहीं मनीष सिसोदिया ने भी ट्वीट में लिखा है, “हम तो पहले से ही कह रहे थे कि इस बार कॉन्ग्रेस, मोदी जी को दोबारा पीएम बनाने पर काम कर रही है।”

इन सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि इस सब जानकारी के बाद भी केजरीवाल लगातार हर दूसरे दिन कॉन्ग्रेस के सामने गिड़गिड़ाते हुए गठबंधन की भीख माँग रहे हैं। इसी कड़ी में आज हरियाणा कॉन्ग्रेस प्रमुख ने भी केजरीवाल की गठबंधन की पेशकश को लगभग रद्द कर दिया है।

इस्लामपुर में TMC गुंडों द्वारा भाजपा कार्यकर्ता की बेरहमी से पिटाई, हालत गंभीर

राजनीतिक असहिष्णुता का एक और मामला पश्चिम बंगाल में सामने आया है जहाँ एक भाजपा कार्यकर्ता पर कथित तौर पर तृणमूल कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा क्रूरता से हमला करने का आरोप लगाया गया।

अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से बीजेपी बंगाल द्वारा पोस्ट किए गए एक ट्वीट के अनुसार, पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर में एक बीजेपी कार्यकर्ता अपूर्बा चक्रबर्ती को TMC गुंडों ने बेरहमी से पीटा। हमले के शिकार हुए चक्रबर्ती की हालत गंभीर है और फ़िलहाल उन्हें उत्तर बंग मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। वह पश्चिम बंगाल में उत्तरी दिनाजपुर जिले के एक भाजपा नेता हैं।

बता दें कि अपूर्बा चक्रबर्ती कल रात (मार्च 13, 2019) इस्लामपुर पीएस के गुलशन इलाके में अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ एक शादी समारोह में गए थे। इसके बाद जब वो लगभग 10 बजे शादी से वापस घर जा रहे थे, तो संदिग्ध TMC के गुंडों ने सड़क पर उनके साथ मारपीट की। कुछ समय बाद वहाँ स्थानीय निवासी जमा हो गए जिसके बाद बदमाश वहांँ से भाग गए।

पश्चिम बंगाल में ममता सरकार के राज में राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के ख़िलाफ़ हिंसात्मक गतिविधियाँ लगातार बढ़ रही हैं। हाल ही में TMC विधायक सोवन चटर्जी और उनके मित्र बैशाखी चटर्जी बंगले में कैद हो गए थे क्योंकि उनके और उनके दोस्त के भाजपा में शामिल होने की अटकलें थीं। इसके अलावा उनकी दोस्त बैशाखी चटर्जी को बलात्कार की भी धमकी दी गई थी।

पिछले साल मई के महीने में, 6 महीने की गर्भवती महिला, जो पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों में एक भाजपा उम्मीदवार की रिश्तेदार थीं, नादिया ज़िले में TMC कार्यकर्ताओं द्वारा कथित रूप से उनका बलात्कार किया गया था।

पिछले साल TMC ने पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में निर्विरोध 20,000 सीटें जीती थीं, ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि TMC पार्टी ने सभी ग्रामीण सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे और हिंसा का सहारा लेकर बाक़ियों को नामांकन दाखिल करने से रोक दिया था। भाजपा ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को पंचायत चुनाव के लिए नामांकन दाखिल नहीं करने देने के मामले में हस्तक्षेप करने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख़ किया था।

‘जनता बैलेट पेपर से देगी जवाब’, BJP की चुनाव आयोग से ‘माँग’ पर भड़क उठीं ममता

बुधवार (मार्च 13, 2019) को भाजपा की ओर से एक प्रतिनिधिमंदल ने दिल्ली में चुनाव आयोग से मिलकर बंगाल राज्य को अतिसंवेदनशील घोषित करने की माँग की थी। इसकी जानकारी मिलने के बाद प्रदेश मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि चुनाव आयोग से राज्य के सभी पोलिंग बूथ को अतिसंवेदनशील घोषित करने की माँग करके भाजपा ने बंगाल और वहाँ के लोगों का अपमान किया है।

ममता की मानें तो भाजपा द्वारा राज्य को संवेदनशील घोषित करने की माँग से ही बीजेपी उन्हें परेशान करने लगी है। और ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी को बंगाल की खुशहाली और समृद्धि पसंद नहीं आ रही है। ममता का कहना है कि भाजपा मनोरोग की शिकार हो चुकी है।

ममता ने बड़ी नाराजगी वाले अंदाज में कहा है कि आखिर राज्य को अतिसंवेदनशील बताकर वो (भाजपा) कह भी कैसे सकते हैं कि वो सुरक्षाबल और तृणमूल कॉन्ग्रेस को कंट्रोल करेगी। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने देश में लोकतंत्र पर सवाल उठाते हुए कहा कि बीजेपी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया संस्थानों को निगरानी में रखकर कंट्रोल कर रहे हैं। उन्होंने प्रेस क्लब को आवाज़ उठाने की भी नसीहत दी।

ममता ने अपने कार्यकर्ताओं से पोलिंग बूथ पर सतर्क रहने का आदेश दिया है। दरअसल, ममता का तर्क है जब
एक दिन में त्रिपुरा, राजस्थान में चुनाव हो सकते हैं तो बंगाल में क्यों नहीं सकते?

बता दें कि इस वर्ष लोकसभा चुनाव यूपी, बिहार, बंगाल में 7 चरणों में होने तय हुए हैं। जिसके कारण कई विपक्षी दल नाराज़ हैं और आरोप लगाया है कि ऐसा सिर्फ़ भाजपा को फायदा पहुँचाने के लिए किया जा रहा है।

बंगाल को शांतिपूर्ण राज्य बताने वाली ममता ने कहा कि भाजपा प्रदेश को संवेदनहीन समझ रही है, साथ ही, निर्वाचित सरकार को भी नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है। ममता ने भाजपा को इन सब चीज़ों का जवाब बैलेट पेपर से देने की बात कही है।

‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारे के पीछे है यह वजह, बताया अरुण जेटली ने

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपनी ‘एजेंडा 2019’ श्रृंखला का चौथा भाग फेसबुक पर साझा किया, जहाँ उन्होंने बीजेपी के सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार की विभिन्न उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। अपने ब्लॉग में उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में पिछले 5 वर्षों में सरकार की उपलब्धि पर प्रकाश डाला। आइए आपको बताते हैं वित्त मंत्री ने अपने ब्लॉग में किन-किन उपलब्धियों के बारे में बताया:

Arun Jaitley ಅವರಿಂದ ಈ ದಿನದಂದು ಪೋಸ್ಟ್ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ ಗುರುವಾರ, ಮಾರ್ಚ್ 14, 2019

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले पाँच वर्षों के दौरान अपने अथक परिश्रम का प्रदर्शन चौबीसों घंटे काम करके किया। अपनी लगातार नई बातों को सीखने की इच्छा के कारण, प्रधानमंत्री न केवल एक प्रभावशाली विद्यार्थी साबित हुए हैं बल्कि उन्होंने विदेश नीति, आर्थिक और रणनीतिक मुद्दों पर भी अपनी पकड़ मज़बूत की। नीतिगत मुद्दों पर, वे अपनी टीम, मंत्रियों और सरकार के विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ घंटों बैठते हैं और महत्वपूर्ण मामलों के संबंध में निर्णय लेते हैं। एक कर्ता के रूप में उनकी छवि अब अधिकतर भारतीयों द्वारा स्वीकार कर ली गई है। इसलिए, बीजेपी ने आगामी चुनावों के लिए एक प्रभावी नारा ‘मोदी है तो मुमकिन है – Modi makes it possible’ चुना है।

इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को नीचे सूचीबद्ध किया गया है:

  • इतिहास में पहली बार, लगातार पाँच साल तक, भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था रहा – यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत एक ‘स्वीट स्पॉट’ बनकर उभरा।
  • पिछले पाँच वर्षों से, न तो प्रत्यक्ष और न ही अप्रत्यक्ष कर दरों में वृद्धि हुई। इसके विपरीत, वे कम हो गए। पाँच लाख रुपये तक की शुद्ध आय वाले लोगों को आयकर से छूट दी गई है। GST काउंसिल की हर बैठक से पहले, राष्ट्र यह अनुमान लगाता है कि कौन से कर कम होने वाले हैं। ₹40 लाख तक के टर्नओवर वाले छोटे व्यवसायों को जीएसटी से छूट प्राप्त है। ₹1.5 करोड़ तक के टर्नओवर वाले लोग एक प्रतिशत जीएसटी का भुगतान कर सकते हैं। क़िफ़ायती आवास पर अब एक प्रतिशत कर लगाया गया है। करों के बोझ को कम करते हुए, कर आधार का विस्तार हुआ है और संग्रह तेजी से बढ़ा है।
  • बीस महीने की अवधि में, गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) का सबसे सरल कार्यान्वयन हुआ है। संविधान संशोधन, कराधान कानून इसके अधीन हैं, नियम और शुल्क सभी क्रमशः संसद और जीएसटी परिषद द्वारा सर्वसम्मति से तय किए गए हैं। किसी ने कल्पना नहीं की थी कि भारत कराधान की दर कम करेगा और कर संग्रह बढ़ाएगा।
  • 2014 में, हर रोज सात किलोमीटर राजमार्गों का निर्माण किया गया। आज वह आँकड़ा तीस किलोमीटर प्रतिदिन है यानी साल में दस हजार किलोमीटर से ज़्यादा। भारत दुनिया में सबसे बड़ा राजमार्ग डेवलपर बन गया है।
  • 2014 में, केवल 38 प्रतिशत ग्रामीण घर स्वच्छता से जुड़े थे। आज 99 प्रतिशत ग्रामीण घर स्वच्छता से जुड़े हुए हैं।
  • 91 प्रतिशत गाँव अब ग्रामीण सड़कों से जुड़े हैं। ग्रामीण सड़कों पर खर्च तीन गुना बढ़ा दिया गया।
  • भारत में पचास करोड़ गरीब लोगों को प्रति वर्ष आयुष्मान भारत योजना के तहत प्रति परिवार ₹5 लाख तक के अस्पताल उपचार का आश्वासन दिया गया। यह योजना 23 सितंबर, 2018 को लागू की गई थी और ताज़ा आंकड़ों के अनुसार 15.27 लाख रोगियों का इलाज कैशलेस आधार पर किया जा चुका है।
  • सबसे गरीब बीपीएल परिवारों के आठ करोड़ परिवारों को रसोई गैस के चूल्हे और सिलेंडर उपलब्ध कराए गए। भारत के गरीबों ने खाना पकाने की प्राचीन प्रणाली से पारिस्थितिक रूप से अनुकूल और अधिक आधुनिक प्रणाली से स्नातक किया।
  • भारत में सभी इच्छुक घरों (100 प्रतिशत) का विद्युतीकरण किया गया।
  • प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत लगभग पैंतीस करोड़ बैंक खाते हर घर को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ते हुए खोले गए। यह दुनिया में अब तक की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना है।
  • स्वरोजगार और रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत सोलह करोड़ से अधिक ऋण दिए गए। लाभार्थियों में से 54% अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग/ अल्पसंख्यक हैं। इसके अलावा, लाभार्थियों में 72% महिलाएँ हैं।
  • 2014 में, भारत में वाणिज्यिक उड़ानों के साथ 65 कार्यात्मक हवाई अड्डे थे। वर्तमान में वाणिज्यिक उड़ानों के साथ 101 हवाई अड्डे हैं। आने वाले समय में यह आँकड़ा बहुत जल्द 50 और बढ़ने की संभावना है।
  • भारतीय रेलवे अब सुपरफास्ट 160 किलोमीटर प्रति घंटे की ट्रेन और लोकोमोटिव के युग में प्रवेश कर चुकी है जो घरेलू रूप से निर्मित हैं। बहुत जल्द बुलेट ट्रेन का सपना साकार होगा। रेल यात्रा में गुणवत्ता की सुविधा में काफी सुधार हुआ है।
  • दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) ने लेनदार-देनदार संबंध के पैटर्न को बदल दिया गया है। अब लेनदारों, बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए डिफ़ॉल्ट प्रबंधन को नियंत्रण से बाहर फेंकना और अंततः अपने ऋण को रियलाइज़ कराना संभव हो गया है।
  • आधार – विशिष्ट पहचान संख्या, ने यह संभव कर दिया है कि सभी कमजोर वर्गों को राज्य द्वारा दिए गए लाभ सीधे और तत्काल प्रबाव से बिना किसी नुकसान के उन तक पहुँचें।
  • ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण के अलावा, 22 फसलों वाले किसानों को लागत का 50% से अधिक एमएसपी का आश्वासन दिया गया। सब्सिडी वाली फसल बीमा योजना के अलावा, 12 करोड़ छोटे और मध्यम किसानों को आय सहायता के रूप में वार्षिक ₹6000/- दिए जाएँगे। कल 2.77 करोड़ किसानों को पहली किस्त मिल चुकी है।
  • किसानों को ₹75,000 करोड़ की आय सहायता के अलावा, मनरेगा पर ₹60,000 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। यह संसाधनों को ग्रामीण अर्थव्यवस्था तक पहुँचाने का काम करता है।
  • ₹1 करोड़ 4 लाख करोड़ तक के खर्चे से सस्ता और रियायती खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। कोई भी भारतीय भूखा नहीं सोएगा।
  • ग्रामीण भारत के प्रत्येक BPL परिवार के पास 2022 तक एक घर होगा। हर साल पचास लाख घर बनाए जा रहे हैं।
  • किसानों सहित असंगठित क्षेत्र का श्रमिक अब एक योजना के तहत ₹3000 पेंशन का हक़दार होगा, इसमें सरकार 50% का योगदान करती है। इससे दस करोड़ परिवारों को फ़ायदा होगा।
  • यूपीए सरकार के दौरान मुद्रास्फीति, जो 10.4 प्रतिशत थी, आज 2.5 प्रतिशत से भी कम है।
  • प्रधानमंत्री और सरकार ने दुनिया को दिखा दिया है कि भारत में एक ईमानदार सरकार चलाना संभव है।
  • इतिहास में पहली बार, ग़ैर-आरक्षित श्रेणियों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए सार्वजनिक रोज़गार और शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया।
  • भारत ने 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के एयर स्ट्राइक के माध्यमों से यह प्रदर्शित किया कि केवल देश के भीतर ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर आतंकवाद का जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है और इसके लिए आतंक पर हमला करने के अपरंपरागत तरीकों को भी अपनाने के लिए भी तैयार है।

ऊपर बताई गई उपलब्धियों के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में चल रही केंद्र सरकार ने कई क्षेत्रों में संघर्ष करते हुए अपने विकास के लक्ष्यों को पूरा किया। ऐसे में एक सवाल उठना ज़रूरी बन पड़ता है कि क्या इससे पहले किसी सरकार ने इतना काम किया है? यह वही सरकारी तंत्र था, वही राजनीतिक व्यवस्था, वही कार्यान्वयन उपकरण जो सरकार के पास पहले भी मौजूद थे। अपनी कुशल राजनीति का परिचय देते हुए मोदी सरकार ने अपने विकास संबंधी सभी लक्ष्यों की प्राप्ति की।

सोशल मीडिया पर अफवाह, फेक न्यूज़ फैलाने पर होगा केस: चुनाव आयोग

लोकसभा चुनाव के तैयारियों के बीच सभी दलों के आईटी सेल ने जहाँ कमर कस ली है वहीं उन पर लगाम लगाने के लिए चुनाव आयोग भी मुस्तैद हो चुका है। चुनाव प्रचार के बीच सोशल मीडिया पर समर्थकों द्वारा बनाया गया माहौल काफी प्रभावी होता है। इस माहौल बनाने के चक्कर में फेक न्यूज़ से लेकर तमाम मनगढ़ंत अफवाहें भी फैलाई जाती हैं।

इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने अपनी तैयारी तेज कर दी है। अब उनकी खैर नहीं जो किसी खास दल को जिताने, धर्म या भाषा से संबंधी भड़काऊ भाषण या किसी तरह की अफवाह जैसी पोस्ट डालकर चुनाव और मतदाता को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। अब ऐसी पोस्ट करने एवं उन्हें आगे बढ़ाने पर फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन और ट्विटर यूजर के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन का मुकदमा दर्ज किया जाएगा।

बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हॉट्सएप, ट्विटर, इंस्टाग्राम के ज़रिए जबरदस्त प्रचार-प्रसार किया गया था। हालाँकि उस समय उतने मतदाता सोशल मीडिया पर नहीं थे जितने आज हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 75-80 करोड़ वोटरों के सोशल मीडिया पर अकाउंट होने का अनुमान है।

ताज़ा जानकारी के अनुसार भारत में – लगभग 200 मिलियन यूजर व्हाट्सएप पर, करीब 300 मिलियन यूजर फेसबुक पर और 34.4 मिलियन यूजर ट्विटर पर सक्रिय हैं।

इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं के सोशल मीडिया पर होने के कारण, लगभग सभी दलों के आईटी सेल काम पर लग गए हैं। सोशल मीडिया पर आक्रामक प्रचार के दौरान कई लोग एक दूसरे पर कीचड़ उछालने, चुनाव जीतने का फ़र्ज़ी दावा, उम्मीदवार को जीता हुआ दर्शाना, धर्म या भाषा संबंधी भड़काऊ पोस्ट भी डालते हैं और उसे वायरल कराते हैं, ताकि वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। लेकिन इस बार निर्वाचन आयोग की सख्ती के बाद ऐसा करना अपने ही पाँव पर कुल्हाड़ी मारना होगा।

शंकर वोरा (प्रभारी, आदर्श आचार संहिता पालन) के अनुसार, “सोशल मीडिया पर पोस्ट के लिए हमारी टीम ने निगाह रखी हुई है। किसी दल या उम्मीदवार को जिताने, भड़काऊ पोस्ट पर एडमिन के खिलाफ आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का मुकदमा दर्ज होगा।”

ठुकरा के मुझको व्हाट्सप्प से, AAP मेरा इंतकाम देखेगी

AAP सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा AAP के ही विधायक अलका लाम्बा को ट्विटर पर अनफॉलो करने के बाद, अलका लाम्बा ने बीजेपी नेताओं का यह कहते हुए शुक्रिया अदा किया कि उनको भाजपा के कुछ नेताओं ने बीजेपी में शामिल होने के लिए अप्रोच किया।

AAP नेता अलका, जो AAP के प्रति अपनी वफादारी साबित करने से पहले कॉन्ग्रेस से जुड़ी थी, ने अब दावा किया कि पिछले कुछ दिनों से, भाजपा के नेता उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा में उनका भविष्य काफी बेहतर है। फ़िलहाल, लाम्बा ने कहा कि वह राजनीति में अपने स्वयं के राजनीतिक भविष्य के लिए नहीं बल्कि उन लोगों के भविष्य के लिए हैं जिन पर हमारे देश का भविष्य निर्भर करता है: गरीब, किसान और मजदूर। उन्होंने कहा कि यह विचारधाराओं की लड़ाई है।

भाजपा में शामिल होने की अफवाहों के सामने आने के बाद, अलका ने भाजपा में शामिल होने की पेशकश से इनकार करने करते हुए जो ट्वीट किया वह और भी दिलचस्प है।

अलका ने इनकार के बीच भी ये कहकर सुगबुगाहट छोड़ दी कि यह संभव हो सकता है कि आगामी चुनावों में जो भी नेता देश के पक्ष में फैसला लेगा, वह हमेशा उसका समर्थन करेंगी। बता दें कि दिल्ली विधानसभा भी अगले साल की शुरुआत में होने की संभावना है जिसमें एक साल से भी कम समय बचा है।

खबर यह भी है कि आप नेत्री को हाल ही में AAP के व्हाट्सएप ग्रुप से भी हटा दिया गया है। ये तो वही बात हो गई “उन्होंने लगभग मना कर दिया है जी…..”

इससे पहले AAP के मुखिया केजरीवाल मुँह से, शरीर से, ट्वीट से, और हर उस तरीके से कॉन्ग्रेस से समर्थन के लिए डेस्पेरेट हुए जा रहे थे, जिससे लगता है कि इस व्यक्ति के लिए सत्ता का लालच कितना प्रबल है। लगातार कॉन्ग्रेस के पास आने की तमाम कोशिशों के असफल होने पर केजरीवाल ने जो ट्वीट किए, जिस तरह की बातें कहीं, वो आश्चर्यजनक था। कुछ दिन पहले शीला दीक्षित की उपस्थिति में केजरीवाल द्वारा दिए गए प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी, और दिल्ली में आम आदमी पार्टी से गठबंधन को कॉन्ग्रेस ने पूरी तरह से नकार दिया था।

नेहरू ने जिस ड्रैगन को दूध पिलाया, आज वह भारत पर ही आग उगल रहा है

हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवारलाल नेहरू भारतीय इतिहास के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक रहे हैं। लगभग 17 वर्षों तक दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान जवाहरलाल नेहरू की कई ऐसी भी नीतियाँ रही हैं, जिनके परिणाम देश आज तक भुगत रहा है। हमने एक विकीलीक्स केबल के माध्यम से बताया था कि अमेरिका सोचता है कि अगर नेहरू ने सरदार पटेल की बात मान ली होती तो सिक्किम को भारत का हिस्सा बनने में 25 साल नहीं लगते।

इसी तरह नेहरू की लचर कश्मीर नीति पर भी बात होती रही है। इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाकर नेहरू ने कश्मीर मुद्दे को और उलझा दिया था। नेहरू ने सेना की ज़रूरतों पर भी ध्यान नहीं दिया और एक बार तो उन्होंने रक्षा नीति की आवश्यकता को ही नकार दिया था। इसी तरह जिस चीन को नेहरू अपना दोस्त मान कर अन्य नेताओं की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ करते रहे, उसी चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा और 1962 युद्ध में भारत को भारी क्षति हुई।

आज चीन को लेकर ख़बर आई है कि उसने एक बार फिर से मसूद अज़हर को आतंकी घोषित करने की भारत की माँग को सुरक्षा परिषद में ठुकरा दिया। चीन के इस रवैये के कारण मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित नहीं किया जा सका। चीन के इस रवैये से न सिर्फ़ भारत बल्कि अमेरिका व अन्य देश भी परेशान हो चले हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि चीन के इस दुःसाहस के पीछे जवाहरलाल नेहरू की लचर नीतियाँ रही है। चीन आज सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और भारत नहीं है। इसमें भी जवाहरलाल नेहरू के एक निर्णय का हाथ है। ऐसा ख़ुद कॉन्ग्रेस पार्टी के ही नेता व पूर्व राजनयिक शशि थरूर ने लिखा है। भारत के पूर्व विदेश राज्यमंत्री ने अपनी पुस्तक ‘Nehru: The Invention Of India‘ में लिखा है कि नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता ठुकरा दी थी। बकौल थरूर, उन्होंने इसे से सम्बंधित फाइलें UN में देख रखी हैं।

नेहरू ने सुझाव देते हुए कहा था कि ये सीट चीन को दे दी जाए। थरूर लिखते हैं कि नेहरू चीन के प्रति सहानुभूति वाला रवैया रखते थे। नेहरू की विदेश नीति की बात करें तो बाबासाहब भीमराव अंबेडकर की बातों को समझना पड़ेगा। बाबासाहब ने नेहरू की आलोचना करते हुए कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। अपने इस्तीफा पत्र में उन्होंने नेहरू की विदेश नीति की ख़ासी आलोचना की थी। इस बारे में प्रकाश नंदा ने न्यूज़ 18 में एक ब्लॉग लिख कर अधिक जानकारी दी थी। अंबेडकर के इस्तीफा पत्र की बात करते हुए नंदा ने बताया कि वो मानते थे कि आज़ादी के समय कोई भी ऐसा देश नहीं था जिसने भारत के लिए बुरा सोचा हो। सभी देश भारत के दोस्त थे। बकौल अंबेडकर (सितम्बर 7, 1951), चार वर्षों बाद स्थिति एकदम उलट गई थी। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है, “विश्व पटल पर भारत आज अलग-थलग हो गया है और संयुक्त राष्ट्र में हमारे प्रस्तावों का समर्थन करने वाला कोई देश नहीं बचा है।”

उन्होंने लचर पाकिस्तान नीति के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हुए लिखा था कि वे कश्मीर मुद्दा और पूर्वी बंगाल के लोगों पर हो रहे अत्याचार को देख कर व्यथित थे। उन्होंने भारत को पूर्वी बंगाल में रह रहे अपने लोगों के साथ खड़े रहने को कहा था। पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं की चिंता करने के साथ-साथ उन्होंने कहा था कि कश्मीर के बौद्ध और हिन्दुओं को भी पाकिस्तान में जबरदस्ती मिलाया जा सकता है, जो उनकी इच्छा के विरुद्ध होगा। बाबासाहब की राय चीन को लेकर भी नेहरू से अलग थी। उन्होंने भारत की लचर चीन नीति की आलोचना करते हुए कहा था कि चीन ने तिब्बत को जबरदस्ती सेना के दम पर हथिया लिया। 1951 में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों को सम्बोधित करते हुए बाबासाहब ने कहा था कि तिब्बत में चीन की मौजूदगी भारत के लिए लम्बे समय तक ख़तरा बनी रहेगी। तिब्बत की स्वतन्त्रता की वकालत करने वाले अम्बेडकर हमेशा हिमालयी राज्यों में चीन के हतस्क्षेप के प्रखर विरोधी रहे।

टाइम मैगज़ीन ने भी इस बात की तरफ ध्यान दिलाया था कि डॉक्टर अम्बेडकर भारत के अकेले बड़े नेता थे जो नेहरू और चीन की दोस्ती की खुली आलोचना किया करते थे। अम्बेडकर ने कहा था कि भारत को वामपंथी तानाशाही और संसदीय लोकतंत्र में से किसी एक को चुनना चाहिए। उन्होंने पूछा था कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता क्यों नहीं मिली? प्रधानमंत्री नेहरू ने इसके लिए क्यों नहीं प्रयास किए? पंचशील नीति पर निशाना साधते हुए अम्बेडकर ने कहा था कि अगर माओ को पंचशील पर थोड़ा भी भरोसा होता तो वे अपने ही देश में बौद्धों के साथ अलग तरह का व्यवहार क्यों करते। उन्होंने अपने देश के ही बौद्धों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। अफ़सोस यह कि नेहरू ने कई मुद्दों पर अम्बेडकर जैसे विद्वान और पटेल जैसे महान प्रशासक की बात नहीं सुनी, जिसका खामियाजा हमारा देश आज तक भुगत रहा है।

भारत-चीन युद्ध के कारणों की बात करते हुए मेजर इयान कार्डोज़ो अपनी पुस्तक ‘परम वीर चक्र‘ में लिखते हैं कि नेहरू ने विस्तारवादी चीन को अनावश्यक रियायतें देना प्रारम्भ कर दिया। चीन की कुटिल चाल से वे हमेशा बेखबर रहे। 1971 भारत-पाक युद्ध में जब मेजर जनरल इयान का पाँव बुरी तरह घायल हो गया तो वहाँ किसी भी प्रकार की मेडिकल सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थी। बहादुर इयान ने ख़ुद खुर्की का प्रयोग कर के अपना पाँव काट डाला था। बाद में एक पाकिस्तानी सर्जन को कब्ज़े में लेकर उनका ऑपरेशन कराया गया। इन सबके बावजूद वे एक आर्टिफीसियल पैर के साथ मैराथन वगैरह में हिस्सा लेते हैं और फिट रहते हैं। अपनी पुस्तक में उन्होंने आगे लिखा है कि तिब्बत को लेकर भारत की हल्की-फुल्की प्रतिक्रिया ने चीन को और बढ़ावा देने का कार्य किया। यहाँ तक कि भारतीय शासन प्रतिष्ठान ने अपने इस निर्णय के पीछे बेशर्मी से भरे बेढंगे तर्क भी दिए। मेजर जनरल ने नेहरू को सैन्य नेतृत्व को कमजोर करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

नेहरू तो चीन की बड़ी इज्जत करते थे, आदर देते थे लेकिन चीन नेहरू के बारे में क्या सोचता था? चीनी राजनेताओं के उनके बारे में क्या राय थी? पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के पहले प्रीमियर चाउ एन-लाइ की नेहरू के बारे में सोच का विवरण इंडियन एक्सप्रेस व टाइम्स ऑफ इंडिया के एडिटर रहे अरुण शौरी अपनी पुस्तक ‘भारत-चीन सम्बन्ध‘ में देते हैं। लाइ नेहरू को एक घमंडी व्यक्ति मानते थे और उनका सोचना था कि नेहरू के इस घमंड को तोड़ना ज़रूरी है। शौरी ने नेहरू की विचित्र चीन नीति का जिक्र करते हुए बताया है कि नेहरू ने 22 दिसंबर 1962 को मुख्यमंत्रियों को भेजे गए पत्र में लिखा था कि चीनियों द्वारा भारत पर किया गया आकस्मिक हमला भारत के लिए लाभप्रद सिद्ध होगा। अब सोचने वाली बात है कि किस देश को दूसरे देश द्वारा किए गए अपमान से लाभ होता है? नेहरू ने चीनियों को न सिर्फ़ अपना बल्कि देश का भी अपमान करने दिया। भारत की हार में भारत का लाभ कहाँ था?

संघ में कई अहम पद संभाल चुके राम माधव अपनी पुस्तक ‘असहज पड़ोसी‘ में एक ऐसी घटना का जिक्र करते हैं, जिस से नेहरू की अदूरदर्शिता का पता चलता है। भारत के दो सैन्य अधिकारियों ने नेहरू को चीन द्वारा संभावित हमले को लेकर आगाह किया था। यह चेतावनी बेजा अफवाहों पर नहीं बल्कि प्रत्यक्ष सबूतों पर आधारित थी। चीनी सैनिकों को एक गलत नक़्शे के साथ पकड़ा गया था, जिसमें उत्तर-पूर्वी भारत के सीमान्त प्रांत को चीन का हिस्सा बताया गया था। सारी कड़ियों को जोड़ कर तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ केएम करियप्पा ने जब नेहरू से इस बारे में बात की तो उन्होंने करियप्पा की खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि देश का दुश्मन कौन है और कौन नहीं, यह फ़ैसला करना सेना का काम नहीं है। उन्होंने करियप्पा को झिड़कते हुए कहा कि चीन नेफा सीमा की रक्षा करेगा, वह दोस्त है। किसी दूसरी ही दुनिया में जी रहे नेहरू अगर 1950 के दशक की शुरुआत में ही सेना की बात मान कर देश को तैयार रखते तो शायद 1962 में चीन को मुँह की खानी पड़ती।

नेहरू जी अलग ही दुनिया में जी रहे थे। सेना, अम्बेडकर, पटेल, सभी की बातें उन्हें अपनी सोच के सामने तुच्छ लगती थी। करियप्पा को झिड़क देना, थिमैया को इस्तीफा देने को मजबूर कर देना- यह सब दिखाता है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं थे। अगर समय रहते चीन को उचित सबक सिखाया जाता, सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता ले ली गई होती, चीन के ख़िलाफ़ सबकी बात मान कर सेना को तैयार रखा जाता, तो क्या आज चीन की डोकलाम में घुस आने की हिम्मत होती? क्या आज चीन सुरक्षा परिषद में बैठ कर भारतीय भूमि पर रक्त बहाने वाले पाकिस्तानी आतंकी मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने की राह में आड़े आ रहा होता? अब जब राहुल गाँधी कह रहे हैं कि मोदी शी जिनपिंग से डर गए हैं, तो भाजपा ने उन्हें इतिहास याद दिलाते हुए नेहरू की चीन नीति के बारे में जानने को कहा है। आशा है, इस संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिकरण करने से विपक्षी दल बचेंगे।

राहुल-पाहवा ज़मीन हेराफेरी को सामने लाने के लिए ऑपइंडिया अभिनन्दन का पात्र: रविशंकर प्रसाद

आज गुरुवार (मार्च 14, 2019) को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ऑपइंडिया की रिपोर्ट के आधार पर राहुल गाँधी को घेरा। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और एचएल पाहवा के बीच हुई ज़मीन की डील के बारे में बात करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ऑपइंडिया ने इस पर काफ़ी विस्तृत तरीक़े से प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा कि राहुल ने ज़मीन ख़रीद कर अपनी बहन को गिफ्ट कर दी। उन्होंने कहा कि ज़मीन खरीदना बुरी बात नहीं है, ज़मीन किस से ख़रीदी गई, यह मायने रखता है। उन्होंने इस बात पर भी सवाल उठाए किये ज़मीनें एक ही व्यक्ति से क्यों ख़रीदी गई। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाते हुए प्रसाद ने कहा कि उनके सभी लैंड डील्स में राहुल गाँधी पूरी मज़बूती से उनके साथ खड़े हैं। उन्होंने पूछा कि ये एचएल पाहवा कौन है? उनका व्यापार क्या है? उसकी आय का स्रोत क्या है? सीसी थम्पी और संजय भंडारी का नाम लेते हुए रविशंकर प्रसाद ने राहुल को आड़े हाथों लिया।

उन्होंने ऑपइंडिया के हवाले से बताया कि 17 मार्च 2008 को राहुल गाँधी ने 26,47,000 रुपए में एचएल पाहवा से हसनपुर, पलवल में महेश कुमार नागर के माध्यम से ज़मीन ख़रीदी। 3 मार्च 2008 को एचएल पाहवा ने हसनपुर में 72 कैनाल ज़मीन महेश कुमार नागर के माध्यम से रॉबर्ट वाड्रा को बेच दी। इसके अलावा अमीपुर में 40 कैनाल ज़मीन प्रियंका गाँधी के द्वारा 15 लाख रुपए में ज़मीन खरीदी गई। इसमें भी पाहवा शामिल था। उन्होंने पूछा कि इन सारी ख़रीद-बिक्रियों में पाहवा एक कॉमन फैक्टर क्यों है। उन्होंने पूछा कि 24 अप्रैल 2006 को प्रियंका गाँधी द्वारा 15 लाख रुपए में ख़रीदी गई ज़मीन 3 साल 10 महीने बाद 84.15 लाख रुपए में क्यों बेच दी गई?

केंद्रीय मंत्री ने किया ऑपइंडिया का अभिनन्दन

ऑपइंडिया द्वारा सामने लाए गए मुद्दों पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने बताया कि 80 कैनाल ज़मीन 10 अप्रैल 2006 को बेचीं गई। इसे रॉबर्ट वाड्रा द्वारा ख़रीदी गई और एचएल पाहवा द्वारा बेचीं गई। इस डील में भी महेश कुमार नागर के माध्यम से ही लेनदेन हुआ। दिसंबर 2010 में वाड्रा में यही ज़मीन 2 करोड़ 50 लाख में बेच दी। उन्होंने कहा कि यहां दो त्रिभुज बनते हैं- एक ख़रीददारों का और एक बिक्रेताओं का। एक तरफ प्रियंका, राहुल और रॉबर्ट हैं तो दूसरी तरफ़ पाहवा, भंडारी और थम्पी है। उन्होंने कहा कि राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार को क्लीन चिट दिए जाने के बावजूद राहुल द्वारा सवाल खड़े करना उनकी तल्खी को दिखाता है।

उन्होंने कहा कि राफेल पर राहुल गाँधी द्वारा सारा हंगामा संजय भंडारी के लिए किया जा रहा है क्योंकि यूरोफाइटर को सफलता नहीं मिले। भंडारी को राफेल में कुछ नहीं मिल पाया, इसीलिए राहुल राफेल पर निशाना साध रहे हैं। केंद्रीय आईटी प्रसाद ने कहा कि ऑपइंडिया ने जिस तरह से इस ज़मीन डील को सामने लाया, इसके लिए वह प्रशंसा का पात्र है।

फैक्ट चेक: क्या सूअर का खून होता है वोटिंग वाली स्याही में? अल्पसंख्यकों के खिलाफ साज़िश?

पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया आपसी संवाद और जानकारी का एक बेहतरीन जरिया बनकर उभरा है। लेकिन हर चीज के अच्छे और बुरे दोनों पहलू होते हैं। सूचना क्रांति के इस दौर में हम आपा-धापी में हर ‘वायरल’ हो रही खबर, पोस्ट, तस्वीर को सच भी मान लेते हैं। राजनीतिक दल जनता की इस नादानी को अच्छी तरह से समझते हैं और अपने मीडिया गिरोह और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के माध्यम से लोगों में अफवाह फैलाकर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं।

इसी प्रकार की एक खबर आजकल फेसबुक से लेकर ट्विटर पर चर्चा का विषय बन चुकी है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों और बड़े पेजों द्वारा एक पोस्ट वायरल किया जा रहा है जिसमें लिखा है, “मतदान के बाद जो स्याही लगाई जाती है, उसमें सूअर का खून मिलाया जाता है। यह बात सही है क्या?”

यह पोस्ट उस दिन चर्चा में आया है जब से कुछ मुस्लिम संगठनों ने रमजान के दिन पड़ने वाली तारीखों पर चुनाव आयोग से आपत्ति जतानी शुरू की और रमजान के दिन पड़ने वाली तारीखों को बदलने की माँग की है। पिछले 4-5 वर्षों में देखने को मिला है कि विपक्षी पार्टियों ने अपने स्वार्थ के लिए सुप्रीम कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं पर आरोप लगा कर लोगों को उकसाने और अफवाह फैलाने का काम किया है।

“पाक-ए-रमजान के महीने वोट देना हराम है?”

मतदान में इस्तेमाल होने वाली स्याही की भ्रामक और झूठी खबर के साथ ही कुछ अकाउंट्स यह खबर भी फैला रहे हैं कि भाजपा ने जान-बुझकर इसी समय चुनाव रखा ताकि कुछ लोग रमजान के दिन वोट देकर पाप करें। ट्वीट में लिखा है, “फतवा: पाक-ए-रमजान के महीने वोट देना हराम है। भाइयों 5 मई से 4 जून तक हमारा रमजान का महीना है। और इसी बीच 3 दिन चुनाव भी हैं। भाजपा ने जान-बूझकर इसी समय चुनाव रखा, ताकि हम वोट देकर पाप करें। मगर हम भी क़ुरान के ज्ञानी हैं। इनकी बातो में नही आएँगे। हम अल्लाह और EVM में से अल्लाह चुनेंगे।”

लेकिन सवाल यह है कि ऐसा दावा करने वाले लोग वही हैं, जो उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते वक़्त दावा कर रहे थे कि मुस्लिम महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए भाजपा द्वारा लाए गए तीन तलाक अध्यादेश से गुस्साए एक मजहबी आदमी ने अगर भाजपा के विरोध में वोट दिया होगा तो उसकी 4 पत्नियों ने भाजपा को वोट दे दिया होगा, जिस कारण भाजपा जीत गई। ऐसे में विपक्षी पार्टियों और उनके समर्थकों द्वारा भाजपा पर रमजान के दिन जान-बूझकर मतदान करवाने का आरोप हास्यास्पद ही नजर आता है।

हालाँकि, इस अपील को करने वाले ‘मौलाना फैजल हयात बुखारी (फैजू मियाँ) ~ फतवा वाले’ (@faizu_miya) नाम के इस एकाउंट की वास्तविकता संदेह का विषय है, और सरसरी तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह कटाक्ष है। लेकिन, हर सोशल मीडिया यूजर इतना समझदार नहीं होता कि सही और गलत एकाउंट्स में फर्क कर सके। शुरुआत मजाक से होती है, लेकिन कुछ लोग जो वैमनस्यता फैलाना चाहते हैं, या किसी पार्टी के खिलाफ बातें फैलाना चाहते हैं, वो तो ‘टाइप किया हुआ है, गलत थोड़े ही होगा’ मानने वाले लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। यही हो भी रहा है, जिस सूचना को यह एकाउंट वायरल कर रहा है उसका इस्तेमाल कर, कई लोग अल्पसंख्यकों में सन्देश फैला रहे हैं कि रमजान के दिन वोट करना हराम है।

सूअर का खून नहीं बल्कि सिल्वर नाइट्रेट होता है स्याही में इस्तेमाल

आम चुनाव के दौरान मतदान करते समय मतदाताओं की उंगली पर एक खास तरह की स्याही लगाई जाती है। इस स्याही का प्रयोग फर्जी मतदान को रोकने के लिए किया जाता है। मतदान में इस्तेमाल होने वाली स्याही के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि भारत में सिर्फ 2 कंपनियाँ हैं जो वोटर के लिए ये स्याही बनाती हैं- हैदराबाद का रायडू लैब्स और मैसूर का मैसूर पेंट्स ऐंड वॉर्निश लिमिटेड। यही दोनों कंपनियाँ पूरे देश को वोटिंग के लिए इंक सप्लाय करती हैं। यहाँ तक कि इनकी इंक विदेशों में भी जाती है।

इन कंपनियों के परिसर में स्याही बनाते वक्त स्टाफ और अधिकारियों को छोड़कर किसी को भी जाने की इजाजत नहीं होती है। वोटिंग में इस्तेमाल होने वाली इंक में सिल्वर नाइट्रेट होता है जो अल्ट्रावॉइलट लाइट पड़ने पर स्किन पर ऐसा निशान छोड़ता है, जो मिटता नहीं है। उंगली पर लगने के बाद सिल्वर नाइट्रेट त्वचा से निकलने वाले पसीने में मौजूद सोडियम क्लोराइड (नमक) से क्रिया करके सिल्वर क्लोराइड बनाता है। धूप के संपर्क में आने पर यह सिल्वर क्लोराइड टूटकर धात्विक सिल्वर में बदल जाता है। धात्विक सिल्वर पानी या वाॅर्निश में घुलनशील नहीं होता, इसलिए इसे उंगली से आसानी से साफ नहीं किया जा सकता। ये दोनों कंपनियाँ 25,000-30,000 बोतलें हर दिन बनाती हैं और इन्हें 10 बोतलों के पैक में रखा जाता है। इनकी एक्सपायरी 90 दिन के बाद होती है और निशान एक हफ्ते तक बना रहता है।

मैसूर के राजा ने बनवाया था इस स्याही को

चुनाव के दौरान फर्जी मतदान रोकने में कारगर हथियार के रूप में प्रयुक्त हाथ की उंगली के नाखून पर लगाई जाने वाली स्याही सबसे पहले मैसूर के महाराजा नालवाड़ी कृष्णराज वाडियार द्वारा वर्ष 1937 में स्थापित मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी में बनावाई गई थी। वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड (Mysore Lac & Paint Works) सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बन गई। अब इस कंपनी को मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड के नाम से जाना जाता है। कर्नाटक सरकार की यह कंपनी अब भी देश में होने वाले प्रत्येक चुनाव के लिए स्याही बनाने का काम करती है और इसका निर्यात भी करती है।

1962 में तीसरे आम चुनाव में पहली बार हुआ था स्याही का प्रयोग

चुनाव के दौरान मतदाताओं को लगाई जाने वाली स्याही निर्माण के लिए इस कंपनी का चयन वर्ष 1962 में किया गया था और पहली बार इसका इस्तेमाल देश के तीसरे आम चुनाव में किया गया था। इस स्याही को बनाने की निर्माण प्रक्रिया गोपनीय रखी जाती है और इसे नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी आफ इंडिया के रासायनिक फॉर्मूले का इस्तेमाल कर के तैयार किया जाता है। यह आम स्याही की तरह नहीं होती और उंगली पर लगने के 60 सेकंड के भीतर ही सूख जाती है।

कुछ लोगों के लिए यह अफवाह एक ‘फ़न’ का जरिया बन चुकी है, शायद लोग ये बात नहीं जानते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार निरंतर मतदाताओं को मतदान के लिए जागरूक करने का प्रयास कर रही है।

हालाँकि, ये कोई फैक्ट चेक नहीं है। ये स्वघोषित फैक्ट चेकर साइटों पर एक कटाक्ष है जो खुद ही पोस्ट लिखते हैं, खुद ही शेयर करते हैं, और 7 शेयर होने वाली खबर को वायरल कहकर फैक्ट चेक के नाम पर आर्टिकल लिखते रहते हैं। ये वैसे ही प्रोपेगंडा पोर्टल ऑल्ट न्यूज़ की बकवास ‘फैक्ट चेकिंग तकनीक’ की प्रक्रिया का मजाक है, लेकिन इसमें इस्तेमाल हुई हर सूचना, हर सोशल मीडिया हैंडल के पोस्ट और स्क्रीनशॉट वास्तविक हैं। फैक्ट चेकिंग को इस तरह के निम्न स्तर पर लाने वाले ऑल्ट न्यूज़ से आग्रह है कि हमारे फीचर्ड इमेज का फैक्ट चेक करे, वहाँ दुकान चलाने लायक अच्छी जानकारी मिल सकती है।