Thursday, October 3, 2024
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#Ramzan और लोकसभा चुनाव में क्या है कनेक्शन? फेसबुक और ट्विटर पर क्यों मचा हुआ है घमासान?

लोकसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा हो चुकी है। चुनाव आयोग ने इस बार लोकसभा चुनाव को 7 चरणों में करवाने का फैसला किया है। लोकसभा का चुनावी समर 11 अप्रैल से शुरू होकर 19 मई तक चलेगा जबकि 23 मई को मतों की गणना होगी। चुनाव आयोग भले EVM के साथ VVPAT लगवा दे, कितना भी निष्पक्ष हो ले… लेकिन कुछ लोगों का काम है सवाल खड़े करना सो बेचारे करते हैं। अबकी बार सवाल है रमजान का!

जी हाँ। रमजान पर राजनीति हो रही है। चुनाव आयोग को घेरा जा रहा है। बीजेपी को फायदा दिलाने का आरोप आयोग पर लगाया जा चुका है। आम आदमी पार्टी से लेकर टीएमसी तक बिना वजह रमजान पर राजनीति कर रहे हैं। जो इस पर राजनीति कर रहे हैं उनका (कु)तर्क यह है कि 5 मई से शुरू होकर 4 जून तक रमजान चलेगा। और इसी बीच पाँचवें से लेकर सातवें चरण (पाँचवा फेज- 6 मई, छठा फेज- 12 मई, सातवाँ फेज- 19 मई) का चुनाव भी होगा।

ऐसे तर्क देने वाले मानसिक रोगी ही हो सकते हैं और कुछ नहीं। क्योंकि रमजान हो या होली या फिर हो क्रिसमस… कोई भी आवश्यक काम न तो कभी रुकता है न कभी रोका जाएगा। ऐसा होता तो इन दिनों पुलिस, रेल, अस्पताल सब जगह छुट्टी होती! लेकिन ऐसा होता नहीं है। क्योंकि पर्व-त्योहार उत्सव है, आवश्यकता नहीं कि इसके लिए जीवन-मरण की नौबत आ जाए।

रमजान पर राजनीति कर रहे टीएमसी लीडर को बीजेपी के अरशद आलम का करारा जवाब

जो लोग लोकतंत्र में आस्था रखते हैं, उन्हें इसकी अहमियत पता है। बीजेपी अखिल भारतीय अल्पसंख्यक मोर्चा के सचिव अरशद आलम ने ऐसे लोगों को अपने तर्क से पस्त कर दिया है। रमजान है इसका मतलब यह तो नहीं कि आप पूरे महीने घर में बिताते हैं, बिना कोई काम किए।

मौलाना साहब को अब कौन समझाए! जिन्हें न लोकतंत्र की समझ है न ही राजनीति की और न ही देश की जनसंख्या और भूगोल की… वो चले चुनाव आयोग को तारीखें बदलने की सलाह देने। अपने आस-पास देखिए मौलाना साहब। रमजान के दौरान न तो कोई समुदाय विशेष वाला दुकान बंद करता है और न ही कोई मजहबी मजदूर कुदाल-फावड़ा चलाने छोड़ता है। रमजान चलता रहता है, साथ में चलती रहती है जिंदगी।

ब्लू-टिकधारी लोग भी नेताओं के साथ कूद गए हैं चुनाव आयोग के विरोध में। गिरोह में बने रहने के लिए और अपनी दुकान चलाने के लिए इतना तो खैर बनता है! हालाँकि कुछ लोगों ने इन जैसों को बढ़िया आईना दिखाया है – एकदम चौंधिया गए होंगे (अगर पढ़े होंगे तो)। मोदी के पक्ष में या विरोध में – वोट करने जाना है, इसमें रमजान कहाँ से घुसा दिए भाई?

कॉन्ग्रेस के सामने यक्ष प्रश्न: क्या मनमोहन सिंह चुनाव लड़ेंगे?

पंजाब कॉन्ग्रेस द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से अनुरोध किया गया है कि वे आगामी लोकसभा चुनाव में अमृतसर की सीट पर लड़ें। लेकिन खबरों की मानें तो मनमोहन सिंह ने इस अनुरोध पर अभी तक कोई भी सकारात्मक प्रक्रिया नहीं दी है। इसलिए यह साफ़ नहीं हो पाया है कि वह चुनाव लड़ेंगे या नहीं।

हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है। 2009 के लोकसभा चुनावों में भी उनसे चुनाव लड़ने की माँग की गई थी लेकिन अस्वस्थ होने के कारण उन्होंने अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।

इस बार पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ और प्रभारी आशा कुमारी ने खुद पूर्व प्रधानमंत्री से क़रीब आधे घंटे तक मुलाकात की और आग्रह किया कि मनमोहन सिंह इस बार अमृतसर से चुनाव लड़ें।

एनडीटीवी में छपी ख़बर के अनुसार पंजाब कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने एनडीटीवी इंडिया को बताया कि उन्होंने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह से आग्रह किया है कि वह पंजाब सीट से चुनाव लड़ें। उन्होंने कहा कि यह पंजाब और पंजाब कॉन्ग्रेस के लिए गर्व की बात होगी।

लेकिन जब जाखड़ ने सवाल किया गया कि क्या मनमोहन सिंह चुनाव लड़ने को तैयार हो गए हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि हम उनसे बोलकर आ गए हैं लेकिन फ़ैसला अब उनको करना है।

वैसे बता दें कि मनमोहन सिंह 1991 से असम से राज्यसभा सदस्य हैं और उनका कार्यकाल 14 जून को समाप्त हो रहा है। मनमोहन सिंह ने कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं जीता है। 1999 में वह दक्षिणी दिल्ली से कांग्रेस के उम्मीदवार थे, जो राजधानी की सात संसदीय सीटों में से एक थी, लेकिन इन चुनावों में वह भाजपा के वीके मल्होत्रा से हार गए थे।

लोकसभा चुनाव 2019 में सभी EVM के साथ VVPAT, जानिए क्या है यह और कैसे करता है काम?

चुनाव आयोग ने आगामी लोकसभा चुनाव में सभी ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के साथ वीवीपैट (Voter verifiable paper audit trail) जोड़ने की घोषणा की है। ऐसा राजनीतिक दलों द्वारा ईवीएम के ख़िलाफ़ किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों और उसे कटघरे में खड़ा करने के प्रयासों के कारण किया गया है। कई राजनीतिक दलों की माँग है कि वापस बैलेट पेपर से चुनाव होने चाहिए। वैसे बैलेट पेपर के दिनों में बूथ लूट की घटनाएँ किसी से छिपी नहीं हैं। जब पूरी दुनिया आधुनिकता की तरफ़ बढ़ रही है, भारतीय विपक्षी दल भूतकाल में लौटने की बातें कर रहे हैं।

वीवीपैट की वर्किंग समझें (साभार: ECI)

इंग्लैंड और अमेरिका का उदाहरण देने वाले ये नेता उन देशों और भारत के बीच के जनसंख्या गैप को भी काफ़ी आसानी से नज़रअंदाज़ कर देते हैं। कभी अमेरिका में कोई नकाबपोश कथित ख़ुलासे करता है तो कभी ब्लूटूथ से ईवीएम ‘हैक’ होने लगता है। अब जब चुनाव आयोग ने वीवीपैट (VVPAT) लाने की घोषणा की है, तो आइए जानते हैं कि ये क्या है और किस तरह कार्य करता है।

क्या है VVPAT?

वीवीपैट भी एक तरह की मशीन ही होती है जिसे ईवीएम के साथ जोड़ा जाता है। ईवीएम से वीवीपैट को जोड़ने के बाद अगर कोई मतदाता वोट डालता है तो उसके तुरंत बाद एक पर्ची निकलती है, जिसमें जिस उम्मीदवार को मत दिया गया है, उसका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है। किसी भी प्रकार के विवाद की स्थिति में ईवीएम में डाले गए वोट और पर्ची का मिलान कर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि वोट उस उम्मीदवार को गया है या नहीं, जिसपर बटन दबाया गया हो। ईवीएम में लगे शीशे के एक स्क्रीन पर यह पर्ची 7 सेकेंड तक दिखाई देती है।वीवीपैट को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने डिज़ाइन किया है। 2013 में डिज़ाइन की गई इस व्यवस्था का प्रथम प्रयोग उसी साल हुए नागालैंड के चुनावों में किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए वीवीपैट मशीन बनाने और इसके लिए वित्त की व्यवस्था करने को कहा था। चुनाव आयोग ने जून 2014 में ही तय कर लिया था कि आगामी लोकसभा चुनाव में वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा। आयोग ने इसके लिए केंद्र सरकार से 3174 करोड़ रुपए की माँग की थी। बीईएल ने वर्ष 2016 में 33,500 वीवीपैट मशीनों का निर्माण किया था। 2017 के गोवा के चुनावों में इसका इस्तेमाल किया जा चुका है। 2018 में हुए पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी 52,000 वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल किया गया था।

चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार से वीवीपैट के लिए वित्त मुहैया कराने की बात कही थी

यह भी आपके जानने लायक है कि वीवीपैट में जिस प्रिंटर का इस्तेमाल किया जाता है, वह भी काफ़ी उत्तम क्वॉलिटी का होता है। इस पर्ची पर जिस स्याही का इस्तेमाल होता है, वो जल्दी नहीं मिटती। इतना ही नहीं, इस प्रिंटर में एक ऐसा सेंसर भी लगा होता है, जो ख़राब प्रिंटिंग को तुरंत चिह्नित कर लेता है। ईवीएम को लेकर विपक्षी राजनीतिक पार्टियों द्वारा कई प्रकार के अफवाह फैलाए जाते रहे हैं। ईवीएम को हैक करने की ख़बरों के बीच एक चुनाव अधिकारी ने बताया:

ईवीएम एक चिप आधारित मशीन है, जिसे केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है। उसी प्रोग्राम से तमाम डेटा को स्टोर किया जा सकता है लेकिन इन डेटा की कहीं से किसी तरह की कनेक्टिविटी नहीं है लिहाजा, ईवीएम में किसी तरह की हैकिंग या रीप्रोग्रामिंग मुमकिन ही नहीं है। इसलिए यह पूरी तरह सुरक्षित है।”

अप्रैल 2017 में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया था कि अगस्त 2018 तक 16 लाख 15 हजार वीवीपीएटी मशीनों की ख़रीद की जाएगी। सबसे बड़ी बात कि वीवीपैट की पर्ची में मतदाता को उसके द्वारा वोट किए गए प्रत्याशी के नाम और उसके चुनाव चिह्न उसी भाषा में दिखाई देते हैं, जो मतदाता चुनता है, बशर्ते की वह भाषा सूचीबद्ध हो। वैसे अब वीवीपैट को लेकर भी नया विवाद खड़ा हो जाए, इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। क्या गारंटी है कि ईवीएम जैसी सुरक्षित और विश्वसनीय मशीन को लेकर राजनीति चमकाने वाले नेता वीवीपैट को सवालों के घेरे में खड़ा नहीं करेंगे?

जानिए भारत में क्यों इतने चरणों में होते हैं चुनाव? समझें इसके कारकों को

लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जा चुका है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने 7 चरणों में चुनाव संपन्न कराने की घोषणा की है। इसमें तीन राज्य ऐसे हैं, जिनमें सभी 7 चरणों में चुनाव होंगे। ये राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल। किस राज्य में कब और कितने चरणों में चुनाव होंगे, इसके बारे में हम पहले ही बता चुके हैं। इन सबके बीच एक सवाल ऐसा है जो कितनी बार उठ चुका है। भारत में एक राज्य स्तरीय चुनाव भी कई चरणों में होते हैं। 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव भी 5 चरणों में संपन्न कराए गए थे। इसी तरह अन्य राज्यों के चुनाव भी कई फेज में आयोजित कराए जा चुके हैं। सवाल यह है कि आख़िर क्या कारण है कि एक ही चरण में पूरे भारत में चुनाव आयोजित नहीं कराए जा सकते? क्या एक विशाल और विविधताओं (भौगोलिक और राजनीतिक रूप से) से भरे देश होने के कारण ऐसा होता है या फिर सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया जाता है? एक सवाल यह भी उठता है कि क्या चुनाव आयोग को राज्य पुलिस पर अब भरोसा नहीं रहा?

यहाँ हम कई चरणों में होने वाले चुनाव के पीछे जो कारक हैं, उनकी चर्चा करेंगे और साथ ही यह भी देखेंगे कि इसके पक्ष में क्या तर्क दिए जाते हैं। जनवरी 2017 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने कहा था कि भारत में कई चरणों में चुनाव आगे भी होते रहेंगे। उन्होंने कहा था कि इसका सीधा कारण है चुनाव को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए केंद्रीय बलों का उपयोग करना। पाँच राज्यों में चुनाव संपन्न कराने के बाद तनावमुक्त ज़ैदी ने कहा था कि चुनाव आयोग द्वारा केंद्रीय बलों का प्रयोग करना और राज्य पुलिस पर भरोसा कम होना। उन्होंने कहा था कि सिर्फ़ चुनाव आयोग ही नहीं बल्कि उम्मीदवार, मतदाता और राजनीतिक दल भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। उनका कहना था कि ख़ुद राजनीतिक पार्टियों, मतदाताओं व उम्मीदवारों को केंद्रीय बलों पर ज़्यादा भरोसा है।

पूर्व चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने समझाया था कि कैसे चुनाव आयोग हर एक बूथ पर अर्धसैनिक बलों की तैनाती करने की कोशिश करता है क्योंकि राज्य पुलिस के बारे में राजनीतिक दलों के अपने-अपने अलग विचार होते हैं। उन्होंने कहा था कि मतदाता भी अर्धसैनिक बलों की तैनाती से निश्चिन्त रहते हैं और चुनाव कई चरणों में होने के बावजूद वे धैर्य बनाए रखते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव तो 9 चरणों में हुए थे। 36 दिनों तक चलने वाला वह चुनाव विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के इतिहास में सबसे लम्बा चलने वाला चुनाव था। इसी तरह 2009 के लोकसभा चुनाव 5 चरणों में आयोजित हुए थे। इसके पीछे भारत के भौगोलिक भागों के अलग-अलग शासकीय और राजनीतिक परिस्थितियाँ होती हैं।

जैसे उत्तर-पूर्व भारत को ही ले लीजिए। उत्तर पूर्व भारत में आने वाले आठ राज्यों को देखिए। उन आठ राज्यों में 25 लोकसभा सीटें आती है (अरुणाचल प्रदेश-2, असम-14, मणिपुर-2, मेघालय-2, मिजोरम-1, नागालैंड-1, सिक्किम-1, त्रिपुरा-2)। इन राज्यों में अलग-अलग मुद्दों को लेकर दशकों से अलगाववादी संगठनों और भारत सरकार में ठनी रही है। चीन, बांग्लादेश और म्यांमार से सीमा लगी होने के कारण इन सभी राज्यों में विशेष सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत पड़ती है। सर्वविदित है कि भारत से सटा चीन कई भारतीय राज्यों के क्षेत्रों पर अपना दावा ठोकता रहा है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में भारतीय लोकतंत्र की सफलता उसे चुभती है। ऐसे में, ऐसी ताक़तों के रहते पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत पड़ती है। यही कारण है कि इन राज्यों में कई चरणों में चुनाव होते आए हैं।

कहाँ कब और किस चरण में होंगे लोकसभा चुनाव

बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड देश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाक़ों में से एक रहे हैं। अब स्थिति कुछ सुधर गई है लेकिन पहले हालात इतने कठिन थे कि राज्य पुलिस तो छोड़िए, अर्धसैनिक बलों को भी नक्सलियों को क़ाबू में करने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। छत्तीसगढ़ में तो नक्सलियों ने एक बार कॉन्ग्रेस के कई बड़े नेताओं की एक साथ हत्या कर उनका पूरा नेतृत्व ही साफ़ कर दिया था। ऐसे में, इन संवेदनशील इलाक़ों में ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा व्यवस्था मुक़म्मल कर जनता को इस बात का एहसास दिलाना पड़ता है कि वे वोट देने निकले तो किसी प्रकार की हिंसा नहीं होगी। इन राज्यों में चुनाव के वक़्त हिंसक माओवादी वारदातों की संख्या बढ़ती रही है। अतः इनका प्रभाव कम होने के बावजूद कोई रिस्क नहीं लिया जा सकता।

इसके अलावा भारत जैसे विशाल देश में सबसे बड़ी चुनौती होती है, अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना। हो सकता है कि सीआरपीएफ की एक टुकड़ी आज बिहार में चुनाव संपन्न करा रही है और 2 दिनों बाद उनकी तैनाती आंध्र प्रदेश में हो। ऐसे में, उनकी सुगमता के लिए भी ज़रूरी है कि चुनाव एक से ज्यादा चरणों में हों और उनके बीच प्रॉपर गैप हो ताकि ये एक जगह से दूसरे जगह पहुँच सकें। एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना और काम पर लग जाना उतना आसान भी नहीं होता। उनके रहने, खाने-पीने व ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था भी करनी होती है। इसमें समय लगाना लाजिमी है। जम्मू-कश्मीर के बारे में सर्विदित है कि वहाँ कैसे हालात रहते हैं और इन कार्यों के लिए सुरक्षा बलों को कितनी मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ता है?

ऐसा नहीं है कि भारत में चुनाव हमेशा से इतने ज्यादा चरणों में ही होते रहे हैं। हाँ, 1951-52 में हुए पहले ऐतिहासिक चुनाव को संपन्न कराने में ज़रूर 3 महीने लगे थे लेकिन 1980 में एक ऐसा समय भी आया जब 4 दिनों में ही लोकसभा चुनाव निपटा दिया गया। यह भारतीय लोकतान्त्रिक इतिहास में अभी तक एक रिकॉर्ड है। इसके बाद जैसे-जैसे चुनौतियाँ बढ़ती गयीं, चुनाव लम्बे होते गए। पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी कहते हैं कि पहले के चुनावों में बूथ लूटना और वोटरों को प्रभावित करना आम बात हो गई थी। राज्य पुलिस पर स्थानीय नेताओं के दवाब में किसी पक्ष विशेष की तरफदारी करने के आरोप लगते थे। अतः 1990 के दशक में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने केंद्रीय बलों की नियुक्ति का निर्णय लिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को ये सुनिश्चित करने को कहा।

क़ुरैशी के मुताबिक़, केंद्रीय बलों को एक जगह से दूसरी जगह आवागमन करने में लगने वाले समय की वजह से चुनाव लम्बे होने लगे। केंद्रीय सुरक्षा बलों के इन जवानों को बस और ट्रेन से सफ़र कर गंतव्य तक पहुँचना होता है, जिसमें समय लगता है। इसी तरह पाकिस्तान सीमा से लगे इलाक़ों में विशेष सतर्कता की ज़रूरत पड़ती है। लिट्टे के दिनों में तमिलनाडु व दक्षिण भारतीय राज्यों में विशेष सतर्कता बरती जाती थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या भी एक जनसभा को सम्बोधित करने के दौरान कर दी गई थी। वे दक्षिण भारतीय राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए निकले थे। इसी तरह भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग समय पर विभिन्न समस्याएँ आती रहती है, जिस कारण पूरे भारत में एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते।

कई बार कहा जाता है कि अमेरिका या इंग्लैंड में एक चरण में ही चुनाव हो जाते हैं लेकिन हमें ये समझना जरूरी है कि 125 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाले एक देश और 10 करोड़ से भी कम जनसंख्या वाले देश में सारे नियम एक समान नहीं हो सकते। भौगोलिक परिस्थितियाँ, जनसंख्या, सुरक्षा बलों के आवागमन, अशांत अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ व विभिन्न हिंसक संगठनों के कारण भारत में एक चरण में चुनाव संपन्न कराना संभव नहीं है।

महारानी वीणापाणि देवी के निधन से ममता का बिगड़ा चुनावी गणित, BJP के हिस्से में 1.5 करोड़ वोट!

मंगलवार (मार्च 6, 2019) को महारानी वीणापाणि देवी के निधन के साथ ही बंगाल की राजनीति में उथल-पुथल तेज़ हो गई है। बंगाल से बाहर अधिकतर लोगों ने भले ही वीणापाणि देवी ठाकुर का नाम नहीं सुना हो लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्था में उनका अहम किरदार रहा है। मतुआ समुदाय द्वारा ‘बड़ो माँ’ के नाम से पुकारी जानी वाली 100 वर्षीय महारानी समुदाय के 1.5 करोड़ लोगों की मार्गदर्शिका रहीं हैं। दशकों से उनका नेतृत्व करती आईं हैं। वैष्णव हिंदुत्व के एक भाग के रूप में मतुआ समुदाय ‘स्वयं दीक्षिति’ के सिद्धांत में विश्वास रखता है। हरिचंद ठाकुर के सिद्धांतों पर चलते हुए दिवंगत प्रमथ रंजन ठाकुर ने समुदाय की एकता व अखंडता के लिए प्रयास किया और भारत की आज़ादी के बाद अधिकतर मतुआ बांग्लादेश से विस्थापित होकर भारत आ गए। ऐसी कठिन परिस्थिति में इन्होने अपने समाज का नवनिर्माण किया और बंगाल की सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक व्यवस्था का एक अहम भाग बन कर उभरे।

वीणापाणि देवी प्रमथ रंजन ठाकुर की अर्धांगिनी थी। उनके निधन के बाद मतुआ समुदाय में एक नेतृत्व शून्य पैदा हो गया है। लेकिन, मतुआ महासंघ के रूप में उनके नेतृत्व के लिए एक संस्था है, जिसका निर्णय सर्वमान्य होता आया है। प्रमथ रंजन ठाकुर 1962 में कॉन्ग्रेस के टिकट पर विधायक भी बने थे। पूर्व के दिनों में छुआछूत का शिकार रहे नामशूद्र जाति से आने वाले ठाकुर परिवार ने इस समुदाय को नीचे से उठा कर काफ़ी उच्च स्थान तक पहुँचाया। इसके लिए कई आंदोलन हुए। पिछले 2 चुनावों से मतुआ समुदाय बड़ी संख्या में ममता बनर्जी को वोट करता रहा है। वीणापाणि देवी के कद का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके निधन के बाद मुख्यमंत्री बनर्जी के निर्देशानुसार बंगाल सरकार के आधे दर्जन मंत्री महारानी के अंतिम क्रिया-कर्म संपन्न कराने की व्यवस्था देख रहे थे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महारानी के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा-

“बड़ो माँ वीणापाणि देवी हमारे समय की एक आइकॉन रहीं हैं। कई लोगों के लिए महान शक्ति और प्रेरणा का स्रोत रहीं बड़ो माँ के आदर्श आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करते रहेंगे। सामाजिक न्याय और सौहार्द को स्थापित करने की दिशा में उनके प्रयास सराहनीय हैं। पिछले महीने, मुझे ठाकुरनगर में बड़ो माँ वीणापाणि ठाकुर का आशीर्वाद प्राप्त करने का मौक़ा मिला। मैं हमेशा उसके साथ हुई बातचीत को संजो कर रखूँगा। दुःख की इस घड़ी में हम मतुआ समुदाय के साथ एकजुटता से खड़े हैं।”

वीणापाणि देवी ने निधन के बाद का चुनावी गणित समझने से पहले हम आपको एक ऐसी चिट्ठी के बारे में बताना चाहेंगे, जिसे उनके द्वारा निधन से कुछ दिनों पूर्व लिखा गया था। तृणमूल अध्यक्ष और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सम्बोधित इस पत्र में उन्हें मतुआ समुदाय के लिए किए गए उनके वादों की याद दिलाई गई थी। इस पत्र में वीणापाणि ठाकुर ने लिखा था:

“मैं आपको याद दिला दूँ कि शरणार्थियों की नागरिकता और पुनर्वास लंबे समय से मतुआ समुदाय की स्थायी माँग रही है। आपने मुझसे वादा किया था कि आप मतुआ हितों की देखभाल करेंगी। नागरिकता हमारी काफ़ी दिनों से एक लंबित माँग रही है। अब चूँकि एक अवसर है, मैं आपसे अनुरोध करती हूँ कि आपकी अपनी पार्टी (तृणमूल कांग्रेस) को राज्यसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक का समर्थन करे अन्यथा मतुआ समुदाय अब आपका समर्थन नहीं करेगा।”

तृणमूल ने वीणापाणि देवी के पत्र को बताया फेक

इस पत्र ने बंगाल की सत्ताधारी पार्टी को हिला कर रख दिया। नागरिकता संशोधन विधेयक भाजपा की बड़ी नीतियों में से एक रही है और एक तरह से इसे भाजपा का ड्रीम प्रोजेक्ट कह सकते हैं। उत्तर-पूर्व और बंगाल में भाजपा नागरिकता संशोधन विधेयक को भुनाने के लिए पूरी तरह तैयार है। ऐसे में वीणापाणि देवी के इस पत्र में इस विधेयक का समर्थन करना तृणमूल के लिए कबाब में हड्डी बन गया और पार्टी ने इस पत्र को फेक करार दिया। लोगों का मानना है कि मतुआ महासंघ में अब दो गुट हो चुके हैं लेकिन महासंघ के अध्यक्ष शांतनु ठाकुर के बयानों और क्रियाकलापों पर गौर करें तो पता चलता है कि भाजपा अगर थोड़ी सी और गंभीरता दिखाए तो उसे मतुआ समुदाय के 1.5 करोड़ वोट मिलने से कोई नहीं रोक सकता।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मतुआ समुदाय की मार्गदर्शिका दिवंगत वीणापाणि देवी ठाकुर

शांतनु ठाकुर ने अपने बयानों में कई बार कहा है कि ममता बनर्जी चाहती हैं कि मतुआ फिर से वापस बांग्लादेश में चले जाएँ। आपको बता दें कि पीएम मोदी की बंगाल में हुई हालिया रैली के आयोजन में भी उनका ख़ासा योगदान था। तृणमूल कॉन्ग्रेस का मानना है कि इतनी उम्र में बड़ो माँ हस्ताक्षर कर ही नहीं सकतीं, इसलिए ये पत्र उनका नहीं है। ख़ैर, अब बात करते हैं मतुआ मतों के प्रभाव की। संघाधिपति के पद के लिए अभी से चर्चा शुरू हो गयी है लेकिन मतुआ समुदाय के तृणमूल वर्ग का मानना है कि संघ का जो निर्णय होगा, वो एकमत से सभी को स्वीकार्य होगा। पिछले दिनों तृणमूल विधायक सत्यजीत विश्वास की हत्या को भी इसी राजनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है। दशकों से वाम-तृणमूल के ख़ूनी संघर्ष का गवाह रहे पश्चिम बंगाल में इस तरह की राजनीतिक हत्याएँ कोई नई बात नहीं है।

दरअसल, कृष्णगंज के विधायक विश्वास तृणमूल कॉन्ग्रेस और मतुआ समुदाय के बीच एक अहम कड़ी का कार्य कर रहे थे। एक तरह से दोनों पक्षों के बीच के सेतु थे। उनकी हत्या के साथ ही यह सेतु टूट चुका है और ममता बनर्जी की पार्टी मतुआ समुदाय से और दूर ही होती गयी है। चर्चा तो यह भी है कि वीणापाणि देवी के पोते शांतनु ठाकुर भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ सकते हैं। उनकी चाची तृणमूल का हिस्सा हैं। हो सकता है कि पारिवारिक कलह राजनीतिक युद्ध का रूप ले ले। चुनावों के इस मौसम में किसी भी ऐसी सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसी 6 लोकसभा सीटें हैं जहाँ मतुआ वैष्णव समुदाय चुनाव परिणाम को पलटने की ताक़त रखते हैं। वे हैं- कृष्णानगर, राणाघाट, बैरकपुर, बरसात, वनगाँव और कूचविहार।

मतुआ समुदाय के सबसे मजबूत किले ठाकुरगंज में रैली कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में कार्य शुरू कर दिया है। दिवंगत महारानी के पुत्र मंजुल कृष्णा ठाकुर पहले ही भाजपा में शामिल हो चुके हैं और उनके बेटे शांतनु तृणमूल के ख़िलाफ़ मुखर हैं। ऐसे में, ममता बनर्जी का सिरदर्द बन चुका नागरिकता संशोधन विधेयक अब उनके गले का फाँस बन चुका है। बता दें कि बरसात लोकसभा क्षेत्र में अच्छा-ख़ासा प्रभाव रखने वाले सीनियर तृणमूल नेता और विधाननगर के मेयर सब्यसाची दत्ता ने भाजपा नेता मुकुल रॉय से मुलाक़ात की है, जिसके बाद तृणमूल इस क्षेत्र में और भी कमजोर नज़र आ रही है। आगामी चुनाव और वीणापाणि देवी के निधन के बीच वामपंथी पराभव के इस दौर में बंगाल के अधिपत्य का ज़ंग जारी रहेगा। ये और गहरा होगा।

23 साल का मुदासिर अहमद ख़ान उर्फ़ ‘मोहम्मद भाई’ था पुलवामा अटैक का मास्टरमाइंड

14 फ़रवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के हुए पुलवामा आत्मघाती हमले के मास्टरमाइंड के रूप में जैश-ए-मुहम्मद के मात्र 23 साल के आतंकवादी मुदासिर अहमद खान उर्फ़ ​​’मोहम्मद भाई’ की पहचान की गई है। पुलिस द्वारा इसकी जानकारी आज (मार्च, 10, 2019) दी गई।

सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि पुलवामा ज़िले से स्नातक उपाधि प्राप्त इलेक्ट्रीशियन 23 वर्षीय ख़ान ने आतंकवादी हमले में प्रयुक्त वाहन और विस्फोटकों की व्यवस्था की थी।

त्राल के मीर मोहल्ला का निवासी, ख़ान 2017 में जैश-ए-मुहम्मद में एक ओवरग्राउंड वर्कर के रूप में शामिल हुआ था और बाद में नूर मोहम्मद तांत्रे, उर्फ़ ​​’नूर त्राली’ द्वारा आतंकी संगठन जैश में शामिल हो गया, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने आतंक को बढ़ावा देने में मदद की।

दिसंबर 2017 में तांत्रे के मारे जाने के बाद, ख़ान 14 जनवरी, 2018 को अपने घर से ग़ायब हो गया था और तब से वो आतंकी गतिविधियो में सक्रिय था। अधिकारियों ने बताया कि आत्मघाती हमलावर आदिल अहमद डार, जिसने 14 फ़रवरी को CRPF के क़ाफ़िले में एक बस के आगे अपने विस्फोटक से भरे वाहन को उड़ा दिया था, वो आतंकवादी ख़ान के साथ लगातार संपर्क में था।

अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, ख़ान ने एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) से इलेक्ट्रीशियन से संबंधित एक साल का डिप्लोमा कोर्स किया। एक मज़दूर का सबसे बड़ा बेटा, ख़ान फ़रवरी 2018 में सुंजवान में सेना के शिविर पर हुए आतंकवादी हमले में शामिल था, जिसमें छह कर्मियों और एक नागरिक की मौत हो गई थी।

इसके अलावा उसकी भूमिका जनवरी 2018 में CRPF शिविर पर लेथपोरा हमले में भी सामने आई थी, जिसमें CRPF के पाँच जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। 14 फ़रवरी के आतंकवादी हमले की जाँच में जुटी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने 27 फ़रवरी को ख़ान के आवास की तलाशी ली थी।

बता देंं कि पुलवामा आतंकी हमले में एक मारुति ईको मिनीवैन का इस्तेमाल किया गया था और इसे हड़ताल से ठीक 10 दिन पहले जैश-ए-मुहम्मद के किसी अन्य संचालक ने ख़रीदा था।

सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, दक्षिणी कश्मीर के बिजबेहड़ा के निवासी सज्जाद भट के रूप में पहचाना जाना वाला जैश संचालक तब से नज़र बचाकर भाग रहा है और ऐसा माना जाता है कि वो अब सक्रिय रूप से आतंकवादी बन गया है।

दिव्य काशी की भव्यता बढ़ाने का एक अनूठा प्रयास विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर

सनातन धर्म और पौराणिक महत्त्व की नगरी काशी जल्द ही नए सौन्दर्य के कलेवर में नज़र आने वाली है। एक तरफ जहाँ पूरे शहर में निर्माण कार्य जारी है। वही उतनी ही तेजी से विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर पर भी काम हो रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट लगभग 50 फीट चौड़ी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक विश्वनाथ मंदिर को वाराणसी के प्रसिद्ध घाटों से जोड़ेगी।

मुख्य काशी विश्वनाथ मंदिर, जो पावन गंगा नदी के बाएँ किनारे पर स्थित है। पहले यह पूरा प्रांगण सकरी गलियों से घिरा हुआ था। ऐसा नहीं है कि काशी का ऐसा सँकरा स्वरुप प्राचीन काल से था। सर्वे और कुछ पुराने दस्तावेजों के आधार पर पता लगाने पर इसकी भव्यता और विशालता का पता चला। फिर वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस परियोजना पर काम शुरू हुआ। जैसे-जैसे परिसर के बाहरी हिस्सों को ध्वस्त किया जाता रहा, काशी का पुराना स्वरुप स्पष्ट नज़र आता गया।

विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण मंदिरों, साधु-सन्यासियों, फक्कड़ों और मतवालों की नगरी काशी को उसकी भव्यता वापस लौटाने का यह एक सराहनीय प्रयास है और हर बार मोदी के आगमन पर काशी की जनता अपने सांसद के प्रति उत्साह, उनके कार्यों से संतुष्टि का प्रमाण है।

ऊपर प्रधानमंत्री के ट्वीट में, इस परियोजना का विस्तृत विजुअल प्रदर्शित किया गया है। बिना काशी की पारम्परिकता से छेड़छाड़ किए हुए, मंदिर परिसर में सभी नागरिक और अत्याधुनिक सुविधाओं का खयाल रखते हुए तेजी से निर्माण कार्य जारी है।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना की खास बातें

  • लगभग 50 फीट के गलियारे में गंगा के किनारे स्थित मणिकर्णिका और ललिता घाट को काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर से सीधे जोड़ा जाएगा।
  • रिवरफ्रंट, गंगा नदी पर स्थित घाटों को अपग्रेड करेगा
  • कॉरिडोर में तीर्थयात्रियों के आराम करने के लिए प्रतीक्षालय होंगे
  • रास्ते में, तीर्थयात्रियों और यात्रियों को नवनिर्मित संग्रहालय और वाराणसी के प्राचीन इतिहास और संस्कृति से परिचय कराने के लिए चित्र वीथिका का निर्माण
  • हवन और यज्ञ जैसे धार्मिक कार्यों के लिए नई यज्ञशालाओं का निर्माण
  • काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में मंदिर के पुजारी, स्वयंसेवक और तीर्थयात्रियों के लिए आवास होंगे
  • अत्याधुनिक पूछताछ केंद्र पर्यटकों को शहर और इसके अन्य आकर्षण और सुविधाओं के स्थानों के बारे में जानकारी मुहैया कराएगा
  • काशी विश्वनाथ मंदिर से ठीक पहले, एक बड़े चौक का निर्माण, जहाँ इस गलियारे का समापन होगा
  • फूड स्ट्रीट जो पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों को बनारसी और अवधी व्यंजनों का स्वाद चखाएँगी
  • प्रसाद के लिए एक नए विशाल भोगशाला का निर्माण
  • सभाओं, बैठकों और मंदिर के कार्यों के लिए, एक सभागार का निर्माण किया जाएगा जो इन आयोजनों की सुविधा प्रदान करेगा
  • एक भव्य मंच का भी निर्माण होगा जहाँ वृहद् स्तर पर काशी की सांस्कृतिक परम्परा से जुड़े भव्य आयोजन होंगे।  

1780 ई. के बाद काशी शहर इतने बड़े संरचनात्मक परिवर्तनों से गुज़र रहा है। उस दौर में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर और इसके आसपास के क्षेत्र का जीर्णोद्धार किया था। इसके बाद 1853 ई. में, सिख महाराजा रणजीत सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। और अब पीएम मोदी के नेतृत्व में, शहर का भव्यतम निर्माण कार्य काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के रूप में परिवर्तन की आधुनिक लहर से गुजर रहा है।

बता दें कि इस परियोजना की कुल लागत मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 600 करोड़ रुपए अनुमानित की गई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में, भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इस प्राचीन शहर के कायाकल्प का वादा किया था। तब से, पीएम मोदी ने शहर में 19 बार वहाँ चल रहे विकास और उत्थान के कार्यों का निरीक्षण कर चुके हैं।

जानिए किन राज्यों में, कितने चरणों में, और कब होंगे लोकसभा चुनाव

लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। यहाँ हम सिलसिलेवार तरीके से आपको बता रहे हैं कि किन राज्यों में कब और कितने चरणों में होने चुनाव। इन 4 राज्यों में लोकसभा चुनाव के साथ ही होंगे विधानसभा चुनाव- सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, आंध्रा प्रदेश और ओडिसा।

इस बार लोकसभा चुनाव 7 चरणों में होंगे। 11 अप्रैल से लोकसभा चुनाव की शुरुआत होगी। 23 मई को चुनाव परिणाम आ जाएँगे।

  • पहला फेज- 11 अप्रैल (20 राज्य, 91 सीट्स)
  • दूसरा फेज- 18 अप्रैल (13 राज्य, 97 सीट्स)
  • तीसरा फेज- 23 अप्रैल (14 राज्य, 115 सीट्स)
  • चौथा फेज- 29 अप्रैल (9 राज्य, 71 सीट्स)
  • पाँचवा फेज- 6 मई (7 राज्य, 51 सीट्स)
  • छठा फेज- 12 मई (7 राज्य, 59 सीट्स)
  • सातवाँ फेज- 19 मई (8 राज्य, 59 सीट्स)

बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सभी 7 चरणों में चुनाव होंगे। जम्मू-कश्मीर में 5 चरणों में चुनाव होंगे। झारखण्ड, मध्य प्रदेश, ओडिसा और महाराष्ट्र में 4 चरणों में चुनाव संपन्न कराए जाएँगे। असम और छत्तीसगढ़ में 3 चरणों में चुनाव होंगे। वहीं कर्णाटक, राजस्थान, मणिपुर और त्रिपुरा में 2 चरणों में चुनाव आयोजित किए जाएँगे।

पहले चरण में आंध्र प्रदेश की 25, अरुणाचल प्रदेश की 2, असम की 5, बिहार की 4, छत्तीसगढ़ की 1, जम्मू-कमश्‍मीर की 2, महाराष्ट्र की 7, मणिपुर की 5, मेघालय की 2, नगालैंड की एक, ओडिशा की 1, सिक्किम की एक, तेलगांना की 17, त्रिपुरा की 1, उत्तर प्रदेश की 8, पश्चिम बंगाल बंगाल की 2, अंडमान की 1, लक्ष्यद्वीप की 1 सीट पर मतदान होगा


दूसरे चरण में असम की 5, बिहार की 5, छत्तीसगढ़की 3, जम्मू-कश्मीरकी 2, कर्नाटककी 14, महाराष्ट्रकी 10, मणिपुरकी 1, ओडिशा की 5, तमिलनाडु की सभी 39, त्रिपुरा की 1, उत्तर प्रदेश की 8, पश्चिम बंगाल की 3 और पुदुचेरी की 1 सीटों के लिए 18 अप्रैल को वोट डाले जाएँगे।


तीसरे चरण में असम-4, बिहार-5, छत्तीसगढ़ की 7, गुजरात की 26, गोवाकी 2, जम्मू-कश्मीर की 1, कर्नाटककी 14, केरल की 20, महाराष्ट्र की 14, ओडिशा की 6, यूपीकी 10, पश्चिम बंगाल की 5, दादरा ऐंड नागर हवेलीकी 1और दमन दीवकी 1 सीटों पर 23 अप्रैल को वोट डाले जाएँगे।

चौथे चरण में बिहार की 5, जम्मू-कश्मीर की 1, झारखंड की 3, मध्यप्रदेश की 6, महाराष्ट्र की 17, ओडिशा की 6, राजस्थान की 13, उत्तर प्रदेश की 13 और पश्चिम बंगाल की 8 सीटों पर मतदान होंगे।

पाँचवे चरण में बिहार की 5, जम्मू कश्मीर की 2, झारखंड की 4, मध्यप्रदेश की 7, राजस्थान की 12, उत्तर प्रदेश की 14 और पश्चिम बंगाल की 7 सीटों के लिए मतदान होंगे।

छठे चरण में बिहार की 8, हरियाणा की 10, झारखंड की 4, मध्यप्रदेश की 8, उत्तर प्रदेश की 14, पश्चिम बंगाल की 8 व दिल्ली की 7 सीटों के लिए चुनाव होंगे।

सातवें चरण में बिहार की 8, झारखंड की 3, मध्यप्रदेश की 8, पंजाब की 13, चंडीगढ़ की 1, पश्चिम बंगाल की 9, हिमाचल की 4 और उत्तर प्रदेश की 13 सीटों पर मतदान होंगे।

क्या कहा मुख्य चुनाव आयुक्त ने? महत्वपूर्ण बातें

जैसा कि चुनाव आयोग ने ऐलान किया था, आज आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसका ऐलान किया। विज्ञान भवन में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अरोड़ा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। अरोड़ा ने कहा कि तारीखों के सम्बन्ध में निर्णय लेने से पहले हर एक सम्बंधित विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों से विचार-विमर्श किया गया। इसके लिए सीबीएसई परीक्षाओं सहित अन्य धार्मिक त्यौहारों का भी ध्यान रखा गया। किसानों की फसल कटने, मौसम व अन्य कृषि सम्बंधित चीजों का भी ध्यान रखा गया ताकि चुनाव सही से संपन्न हो सके और उसमे ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। अरोड़ा ने बताया कि विभिन्न राज्यों के अधिकारियों, राजनीतिक दलों और सुरक्षा एजेंसियों से बातचीत के बात चुनाव कार्यक्रम तैयार किया गया।

चुनाव आयुक्त ने बताया कि चुनाव के मद्देनजर सभी राज्यों के सचिवों की राय ली गई। इसके अलावा उन्होंने गृह मंत्रालय और रेलवे के साथ भी बैठक की। उन्होंने कहा कि चुनाव में होने वाले ख़र्च पर आयोग की विशेष निगरानी रहेगी। इसके अलावा आयोग की टीम ने कई राज्यों का भी दौरा किया। आँकड़ों की बात करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि इस बार के चुनाव में 90 करोड़ वोटर्स होंगे जबकि पिछली बार 81.45 करोड़ वोटर्स थे। इस वर्ष 10 लाख पोलिंग स्टेशन होंगे जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में इनकी संख्या 9 लाख थी। सभी पोलिंग बूथ पर VVPAT के प्रयोग किए जाएँगे।

सुनील अरोड़ा ने जानकारी देते हुए बताया कि 2019 के चुनाव में लगभग 10 लाख बूथ बनाए जाएंगे। यहां शेड, पीने का पानी और टॉयलेट का इंतजाम होगा। उन्होंने कहा कि डेढ़ करोड़ नए वोटर इस बात पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र योजना बनाने की कोशिश की. भारत इन मतदानों के जरिये दुनिया के लिए प्रकाश पुंज की तरह उभरा है। उन्होंने कहा कि आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इस बार EVM में उम्मीदवारों की फोटो भी होगी।ईवीएम और वीवीपैट की सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए जाएँगे। 3 जून तक चुनाव की प्रक्रिया ख़त्म कर ली जाएगी। इसके साथ ही देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो गयी।

सुरक्षा इंतजामों के बारे में जानकारी देते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि संवेदनशील इलाक़ों में चुनाव के लिए CRPF की तैनाती की जाएगी। रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर पर प्रतिबन्ध रहेगा। सभी उम्मीदवारों को शपथपत्र देना होगा और साथ ही आपराधिक रिकॉर्ड की भी जानकारी देनी होगी। मतदाताओं की मदद के लिए वोटर असिस्टेंट बूथ हर मतदान केंद्र पर स्थापित किए जाएँगे। रात 10 बजे के बाद चुनाव प्रचार नहीं किए जा सकेंगे। इस बार नौकरीपेशा वोटरों की संख्या 1.60 करोड़ है। चुनाव आयोग का हेल्पलाइन नंबर 1950 है। इस नंबर पर कॉल कर के आप कोई भी सम्बंधित जानकारी ले सकते हैं।

सभी पोलिंग स्टेशन पर CCTV कैमरे लगाए जाएंगे और चुनाव प्रक्रिया की विडियोग्राफी की जाएगी। अगर किसी भी प्रकार की शिकायत आती है तो 100 घंटे के अंदर निबटारा किया जाएगा। इसके लिए मोबाइल ऐप भी बनाया गया है। उन्होंने बड़ी बात कहते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों व उम्मीदवारों को सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी देनी ज़रूरी होगी। यानी कि आचार संहिता सोशल मीडिया के लिए भी लागू रहेगी। फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब ने आश्वस्त किया है कि वे चुनाव प्रत्याशियों के विज्ञापनों को पारदर्शी बनायेंगे।

7 चरणों में लोकसभा चुनाव, 23 मई को परिणाम, जानिए सभी महत्वपूर्ण बातें यहाँ

जैसा कि चुनाव आयोग ने ऐलान किया था, आज आगामी लोकसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर दिया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसका ऐलान किया। विज्ञान भवन में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में अरोड़ा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। अरोड़ा ने कहा कि तारीखों के सम्बन्ध में निर्णय लेने से पहले हर एक सम्बंधित विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों से विचार-विमर्श किया गया। इसके लिए सीबीएसई परीक्षाओं सहित अन्य धार्मिक त्यौहारों का भी ध्यान रखा गया। किसानों की फसल कटने, मौसम व अन्य कृषि सम्बंधित चीजों का भी ध्यान रखा गया ताकि चुनाव सही से संपन्न हो सके और उसमे ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। अरोड़ा ने बताया कि विभिन्न राज्यों के अधिकारियों, राजनीतिक दलों और सुरक्षा एजेंसियों से बातचीत के बात चुनाव कार्यक्रम तैयार किया गया।

चुनाव आयुक्त ने बताया कि चुनाव के मद्देनजर सभी राज्यों के सचिवों की राय ली गई। इसके अलावा उन्होंने गृह मंत्रालय और रेलवे के साथ भी बैठक की। उन्होंने कहा कि चुनाव में होने वाले ख़र्च पर आयोग की विशेष निगरानी रहेगी। इसके अलावा आयोग की टीम ने कई राज्यों का भी दौरा किया। आँकड़ों की बात करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि इस बार के चुनाव में 90 करोड़ वोटर्स होंगे जबकि पिछली बार 81.45 करोड़ वोटर्स थे। इस वर्ष 10 लाख पोलिंग स्टेशन होंगे जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में इनकी संख्या 9 लाख थी। सभी पोलिंग बूथ पर VVPAT के प्रयोग किए जाएँगे।

सुनील अरोड़ा ने जानकारी देते हुए बताया कि 2019 के चुनाव में लगभग 10 लाख बूथ बनाए जाएंगे। यहां शेड, पीने का पानी और टॉयलेट का इंतजाम होगा। उन्होंने कहा कि डेढ़ करोड़ नए वोटर इस बात पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक समग्र योजना बनाने की कोशिश की. भारत इन मतदानों के जरिये दुनिया के लिए प्रकाश पुंज की तरह उभरा है। उन्होंने कहा कि आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इस बार EVM में उम्मीदवारों की फोटो भी होगी। ईवीएम और वीवीपैट की सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए जाएँगे। 3 जून तक चुनाव की प्रक्रिया ख़त्म कर ली जाएगी। इसके साथ ही देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो गयी।

सुरक्षा इंतजामों के बारे में जानकारी देते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि संवेदनशील इलाक़ों में चुनाव के लिए CRPF की तैनाती की जाएगी। रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर पर प्रतिबन्ध रहेगा। सभी उम्मीदवारों को शपथपत्र देना होगा और साथ ही आपराधिक रिकॉर्ड की भी जानकारी देनी होगी। मतदाताओं की मदद के लिए वोटर असिस्टेंट बूथ हर मतदान केंद्र पर स्थापित किए जाएँगे। रात 10 बजे के बाद चुनाव प्रचार नहीं किए जा सकेंगे। इस बार नौकरीपेशा वोटरों की संख्या 1.60 करोड़ है। चुनाव आयोग का हेल्पलाइन नंबर 1950 है। इस नंबर पर कॉल कर के आप कोई भी सम्बंधित जानकारी ले सकते हैं।

सभी पोलिंग स्टेशन पर CCTV कैमरे लगाए जाएंगे और चुनाव प्रक्रिया की विडियोग्राफी की जाएगी। अगर किसी भी प्रकार की शिकायत आती है तो 100 घंटे के अंदर निबटारा किया जाएगा। इसके लिए मोबाइल ऐप भी बनाया गया है। उन्होंने बड़ी बात कहते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों व उम्मीदवारों को सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी देनी ज़रूरी होगी। यानी कि आचार संहिता सोशल मीडिया के लिए भी लागू रहेगी। फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब ने आश्वस्त किया है कि वे चुनाव प्रत्याशियों के विज्ञापनों को पारदर्शी बनायेंगे।

चुनाव की तारीख और फेज

इस बार लोकसभा चुनाव 7 चरणों में होंगे। 11 अप्रैल से लोकसभा चुनाव की शुरुआत होगी। 23 मई तो चुनाव परिणाम आ जाएँगे।

  • पहला फेज- 11 अप्रैल (20 राज्य, 91 सीट्स)
  • दूसरा फेज- 18 अप्रैल (13 राज्य, 97 सीट्स)
  • तीसरा फेज- 23 अप्रैल (14 राज्य, 115 सीट्स)
  • चौथा फेज- 29 अप्रैल (9 राज्य, 71 सीट्स)
  • पाँचवा फेज- 6 मई (7 राज्य, 51 सीट्स)
  • छठा फेज- 12 मई (7 राज्य, 59 सीट्स)
  • सातवाँ फेज- 19 मई (8 राज्य, 59 सीट्स)

एक्सेल वालो, ख़ून के छींटों से बचाने वाली लड़की के इंतज़ार में है मंदिर जाता बच्चा

भारत में सद्भाव और भाईचारे की कमी कभी नहीं रही पर पिछले कुछ सालों से कुछ विशेष विचारधारा के लोग जानबूझकर एक ऐसा नैरेटिव सेट करना चाहते हैं, मानो जैसे घोर अशांति में शांति स्थापित करने की कमान इन्हीं के हाथों में है। ख़ैर, बात इतनी आगे निकल गई है कि विचार को विज्ञापन की आड़ में परोसने की भी शुरुआत हो चुकी है। कुछ नैरेटिव गढ़ने वाले पत्रकार, फ़िल्मकार, विज्ञापन निर्माता इसके कुशल खिलाड़ी हैं। बात हो रही है सर्फ एक्सेल के नए विज्ञापन की, सर्फ एक्सेल ने होली पर एक नया विज्ञापन लॉन्च किया है।

विज्ञापन में एक हिंदू बच्ची होली के दिन साइकिल लेकर गली मे निकलती है जहाँ छतों पर बच्चे बाल्टियों में रंगों से भरे बैलून रखे हुए हैं। बच्ची पूछती है, “रंग फेंकना है, फेंको” तो सभी बच्चे उस पर रंगों से भरे बैलून फेंकने लगते हैं। बच्ची गली में साइकिल घुमा-घुमाकर रंगों से सराबोर हो जाती है। जब बच्ची पर रंग पड़ना बन्द हो जाता है तो वो साइकिल रोककर छत पर खड़े बच्चों से पूछती है, “हो गए रंग खत्म या और है?”

बच्चों के मना करते ही, आवाज देती है, “आ जा” और तब एक घर से झक सफ़ेद कुर्ता पजामा पहने मुस्लिम बच्चा, बाहर निकलता है। जिसे हिन्दू बच्ची अपने साइकिल के पीछे बैठाकर मस्जिद छोड़ने जाती है। बच्चा कहता है, “नमाज पढ़कर आता हूँ।” और उसी दौरान विज्ञापन में शबाना आजमी की आवाज सुनाई देती हैं- अपनों की मदद करने में दाग लगे तो “दाग” अच्छे हैं।

‘रंग लाए संग’ इस टैग लाइन से यह विज्ञापन जारी है। टैग लाइन तो अच्छा है पर इस टैग लाइन में फिर से वही हिन्दू-मुस्लिम सेंटीमेंट उछालने की कोशिश की गई है। इसकी आड़ में बच्चों के कोमल मन में भी ज़हर बोने का सुनियोजित प्रयास किया गया है।

फेसबुक से लेकर ट्विटर पर इस विज्ञापन को लेकर एक मुहिम छिड़ी है। मुहिम में सर्फ एक्सेल बनाने वाली कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर से कई सवाल पूछे जा रहे हैं, साथ ही इस ऐड को आगे बढ़ाने और निर्माण के लिए ज़िम्मेदार प्रिया नायर, कार्यकारी निदेशक, होम केयर, हिंदुस्तान यूनिलीवर और लोव लिंटास के क्षेत्रीय रचनात्मक अधिकारी कार्लोस परेरा को हटाने की माँग की जा रही है।

सोशल मीडिया पर उठाए जा रहे सवालों की बात करें तो पहला यही है कि होली के रंगों को “दाग” क्यों कहा जा रहा है? इससे पहले 2017 में सर्फ एक्सेल ने रमजान पर एक विज्ञापन जारी किया था जहाँ रमजान में मुस्लिम प्रतीकों और उनके सेंटीमेंट्स का भरपूर ख्याल रखा गया है। ध्यान से देखने पर कहीं न कहीं वही नैरेटिव दिखाने की कोशिश की गई है कि हिन्दुओं के त्यौहार होली की वजह से कितने लोग नमाज़ पढ़ने नहीं जा पाते, रंगों की वजह से वह अपने घर में ही दुबके रहते हैं या उन्हें देर हो जाती है। एक प्रकार से नमाज को पवित्र और होली के त्यौहार को गंदा और दागदार दिखाने बताने का प्रयास किया गया हैं।

दूसरा सवाल यह उठाया जा रहा है कि यहाँ जानबूझकर हिन्दू लड़की चुनी गई है, हिन्दू लड़का भी चुना जा सकता था? लेकिन बचपन से मदद, मानवता के नाम पर हिन्दू बच्चियों और माँ बाप के अंदर लव जिहाद के बीज बो देने की चाल है।

इसके बाद लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या सर्फ एक्सेल मुहर्रम पर ऐसा विज्ञापन बना सकता है जहाँ मुस्लिम बच्ची, हिन्दू बच्चे को मातम के खून के छींटों से बचाते हुए, उन्हें अपने कपड़ों पर लेते हुए मन्दिर ले जाए आरती के लिए, पूजा के लिए? और तब शबाना आजमी की आवाज़ गूँजे, अपनों की मदद के लिए, दाग लगे तो दाग अच्छे हैं। क्या ऐसी हिम्मत है सर्फ एक्सेल में ?

या बक़रीद पर जब चारों तरफ जानवर काटे जा रहे हों, गलियों में खून बह रहा हो तब कोई मुस्लिम लड़की उस खून में अपने पैर और कपड़े गंदे करते हुए किसी हिन्दू लड़के को मन्दिर में पूजा के लिए लेकर जाए, और पीछे से शबाना आज़मी की मधुर आवाज आए- अपनों की मदद के लिए दाग लगें तो दाग अच्छे हैं। क्या है ऐसा विज्ञापन बनाने की हिम्मत सर्फ एक्सेल में?

अंत में एक और प्रश्नवाचक अपील भी है, कि क्या सिर्फ हिंदुओं ने ही अपने आपको इतना सस्ता कर लिया है कि मिलार्ड, केजरी, ममता, वामपंथी बुद्धिजीवी, कॉन्ग्रेसी मीडिया, ज़िहादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, तथाकथित सेक्युलर या कोई और, जिसका भी दिल करे वही जी भर के छेड़छाड़ करे हिन्दुओं की परम्पराओं, धार्मिक मान्यताओं से?

इस विज्ञापन के कर्ता-धर्ता कार्लोस परेरा, जो नाम से ही ईसाई नज़र आ रहे हैं, क्या इतनी हिमाकत करेंगे कि ईसाई पर्व और मान्यताओं के खिलाफ थोड़ा भाईचारा दिखाएँ? क्या ये बताएंगे दुनिया को कि कैसे ईसाईयों ने मतांतरण और मुस्लिमों ने जिहाद के नाम पर आतंक मचा रखा है? वहाँ के दाग नज़र नहीं आ रहे? क्या दाग वहाँ ज़्यादा गहरा है? उनके दाग धुल जाएँ तो पूरी मानवता दुहाई देगी। और हाँ, उस समय सर्फ एक्सेल तो ये कहने की हिमाकत भी नहीं कर सकेगा कि दाग अच्छे हैं। बहरहाल, ऐसा न कुछ हुआ है और न निकट भविष्य में होने की उम्मीद है। क्योंकि यहाँ पूरा विश्व उन्हें धार्मिक प्रतीकों से लेकर, मज़हब और उनकी रवायतों से ठीक से परिचय करा देगा।

फ़िलहाल, सोशल मीडिया पर सर्फ एक्सेल के बहिष्कार की अपील ने रंग पकड़ लिया है। इस बार संस्था नहीं क्रिएटिविटी की आड़ में विचारधारा का ऐसा खेल खेलने वाले प्रिया नायर और कार्लोस परेरा के खिलाफ भी मुहिम चलाई जा रही है। बहुसंख्यक आर्थिक ताकत से इस बार कंपनी को यह एहसास करने की कोशिश की जा रही है कि कब तक हिन्दुओं की सहनशीलता का इम्तिहान लिया जाएगा। जिस प्रकार का नैरेटिव गढ़ने की ये लोग कोशिश कर रहे हैं, उससे ज़्यादा शांति और सद्भाव से भारत के लोग रह रहे हैं।