Thursday, October 3, 2024
Home Blog Page 5403

ड्रामा क्वीन होती हैं महिलाएँ, दिनभर करती हैं ‘बकबक’: महिला दिवस पर कॉन्ग्रेस का महिला विरोधी बयान

अपनी चुनावी रैलियों से लेकर पार्टी मेनिफेस्टो तक में महिला सशक्तिकरण का ढोंग करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी के प्रवक्ता महिला दिवस के दिन महिलाओं के प्रति अपना दोहरा नजरिया छुपाने से खुद को नहीं रोक पाए। साथ ही कॉन्ग्रेस ने आज यह भी साबित कर दिया है कि हर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटना, चाहे वो आतंकवाद हो या फिर महिला सशक्तिकरण का मुद्दा हो, कॉन्ग्रेस के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपना प्रोपेगेंडा चलाने का अवसर मात्र होती है।

कॉन्ग्रेस के पार्टी प्रवक्ता संजय झा ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ट्वीट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मजाक बनाने के चक्कर में महिला विरोधी बयान दे दिया। इस ट्वीट में संजय झा ने लिखा है, “भारत के सबसे बड़े ‘ड्रामा क्वीन’ को महिला दिवस की बधाई। वो थोड़ी ही देर में कहीं बकबक कर रहा होगा।”

ऐसे समय में जब कॉन्ग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हर वक़्त अभद्र टिप्पणी करती रहती है, उनकी पार्टी प्रवक्ता का यह महिलाओं का उपहास करता ट्वीट इसी की एक कड़ी माना जा सकता है ।  

लेकिन शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आड़ में संजय झा महिलाओं के प्रति अपनी कुंठा व्यक्त कर रहे थे। पीएम मोदी का अपमान करने के लिए संजय झा ने जो शब्द चुने हैं उनका मतलब सैकड़ों सालों की छुपी हुई वो पितृसत्तात्मक कुंठा है जहाँ किसी मर्द को औरत कह देना एक गाली माना जाता है। यानी, किसी मर्द को नीचे दिखाना हो तो उसे महिला कह दो। ट्विटर पर खाली बैठे संजय झा ने इसी बेहूदगी से अपने दिन की शुरुआत की और इस अशुभ कार्य के लिए उन्होंने महिला दिवस को चुना।

भले ही मज़े लेने के मूड में बैठे संजय कुंठित झा ने मोदी को निशाना बनाया, लेकिन बेहूदगी के कई आयाम होते हैं। उन्हीं में से एक यह है कि लिखते-लिखते कब उन्होंने महिलाओं को अपना निशाना बना लिया उन्हें पता भी नहीं चला। चला होता तो अब तक माफ़ी माँग चुके होते, लेकिन कॉन्ग्रेस की स्वस्थ परंपरा को कायम रखते हुए उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि महिलाएँ ‘ड्रामा क्वीन’ होती हैं और ‘बकबक’ करती हैं।

हास्य और सस्ती लोकप्रियता के लिए किसी पुरुष की महिलाओं से तुलना करना, साथ ही इस तुलना को अपमानजनक और घृणित समझना, वो भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन, केवल कॉन्ग्रेस पार्टी की महिला विरोधी मानसिकता को ही साबित करता है। ये हास्यास्पद है कि संजय झा के ही पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी आज ओडिसा में कह रहे हैं कि केंद्र में कॉन्ग्रेस की सरकार आने पर महिलाओं के लिए विधेयक लाया जाएगा। हो सकता है मीडिया में ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करने के बाद इस महिला विरोधी पार्टी के अध्यक्ष और प्रवक्ता अपने कार्यालय में जमकर इन बातों पर हँसी-मजाक भी करते होंगे।

संजय झा के इस ट्वीट को ट्विटर यूज़र्स ने खूब शेयर किया, लेकिन इनमे से  कॉन्ग्रेस के महिला विरोधी दृष्टिकोण को समझ पाने में असफल भी रहे।

एक नजर लोगों की प्रतिक्रियाओं पर-

कॉन्ग्रेस पार्टी चाहे महिला सशक्तिकरण पर कितनी ही बड़ी-बड़ी बातें कर ले, लेकिन अक्सर मोदी घृणा और सत्ता के उन्माद में वो अपना वास्तविक चेहरा जनता के सामने लेकर आ ही जाते हैं।

लोकसभा चुनाव: सपा ने जारी की छः उम्मीदवारों की पहली लिस्ट, देखें कौन लड़ेगा कहाँ से चुनाव

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने अपने छः उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट के मुताबिक सपा संस्थापक एवं संरक्षक मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे, जबकि धर्मेंद्र यादव बदायूँ से। वहीं फिरोजाबाद से अक्षय यादव चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाएँगे। इसके अलावा इटावा से कमलेश कठेरिया, राबर्ट्सगंज से भाईलाल कोल व बहराइच से शब्बीर बाल्मीकि चुनावी मैदान में उतरेंगे।

आपको बता दें कि यूपी में सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोकदल मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। सपा 37 सीटों पर बसपा 38 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी तो रालोद को तीन सीटें दी गई हैं।

समाजवादी पार्टी की ओर से जारी की गई सूची पर पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव के हस्ताक्षर हैं। गौरतलब है कि बीते महीने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने यह ऐलान कर दिया था कि कौन किस सीट से लड़ेगा चुनाव।

इससे पहले गुरुवार को कॉन्ग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए अपने 15 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी। इसमें उत्तर प्रदेश की 11 और गुजरात की चार लोकसभा सीटों के लिए नाम तय कर दिए गए हैं। इस लिस्ट से एक चीज यह भी साफ हो गई है कि रायबरेली से इस बार प्रियंका गांधी नहीं, बल्कि सोनिया गांधी ही चुनाव लड़ेंगी। वहीं, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी एक बार फिर से अमेठी से ही चुनाव लड़ेंगे।

केरल: यौन उत्पीड़न के आरोप में इमाम शफीक गिरफ्तार, 15 वर्ष की थी लड़की

केरल पुलिस ने एक 15 वर्षीय लड़की के यौन उत्पीड़न के आरोप में, थोलिकोड (तिरुवनंतपुरम) के पूर्व इमाम शफीक अल कासिमी को गिरफ्तार कर लिया है। उसे कल (मार्च 07, 2019) तमिलनाडु के मदुरै से हिरासत में लिया गया।

केरल में 12 फरवरी को एक मौलवी पर 15 साल की एक लड़की का उत्पीड़न करने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने यह जानकारी देते हुए बताया कि वीथुरा के थलीकोड की एक ग्रामीण मस्जिद में सेवा दे रहे मौलवी शफीक अल कासिमी को इस घटना के प्रकाश में आने के बाद पद से हटा दिया गया था।

मस्जिद समिति की ओर से दर्ज शिकायत के आधार पर मौलवी के खिलाफ POCSO (पोक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था। बयान के अनुसार वह 15 वर्षीय लड़की को इस क्षेत्र में एक सुनसान स्थान पर ले गया और उसका यौन उत्पीड़न किया। यह घटना उस समय प्रकाश में आई, जब स्थानीय महिलाओं के एक समूह ने मौलवी को लड़की के साथ जंगल में देखा और पूछताछ की।

आरोपित की पहचान शफीक अल कासिमी के रूप में हुई थी जो थोलिकोड मस्जिद का मुख्य इमाम था और साथ ही केरल इमाम काउंसिल का सदस्य भी था।

रिपोर्ट के अनुसार, कई गवाहों द्वारा नाबालिग के यौन उत्पीड़न की पुष्टि की गई है। मस्जिद के अध्यक्ष बदुशा (Badusha) द्वारा इन गवाहों के बयान का एक ऑडियो क्लिप जारी की गई थी। मस्जिद के सदस्यों द्वारा जाँच शुरू करने के बाद इस पूरे मामले का खुलासा हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, जब स्थानीय महिलाओं ने इमाम से सवाल किया, तो उसने झूठ बोला कि बच्ची उसकी पत्नी थी। जब महिलाओं ने बच्ची के यूनिफॉर्म और स्कूल के बैज पर ध्यान दिया, तो उन्हें संदेह हुआ।

जब महिलाओं ने सवाल किया कि 15 साल की लड़की 40 वर्षीय व्यक्ति की पत्नी कैसे हो सकती है, तब इमाम आपा खोने लगा और ख़ुद ही चिल्लाता हुआ वहाँ से भाग निकला।

बता दें कि मदरसों और चर्च में एक के बाद एक यौन उत्पीड़न के मामले सामने आ रहें हैं, कुछ दिन पहले केरल के एक पादरी पर चर्च की ननों के यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: एयरलाइंस कंपनियों की अनोखी पहल, महिला कर्मचारियों को दिया ये खास तोहफा

पूरी दुनिया में आज महिला दिवस मनाया जा रहा है। आज का दिन महिला सशक्तिकरण और महिलाओं के प्रति सम्मान जाहिर करने का दिन है। एयर इंडिया ने भी महिलाओं को सम्मान देते हुए आज एक अहम पहल की है। एयर इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अश्विनी लोहानी ने सभी महिला चालक दल के सदस्यों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई देते हुए आज के दिन अपनी 52 उड़ानों की कमान पूरी तरह से महिलाओं के हाथ में दे दी है। बता दें कि आज एयर इंडिया की 12 इंटरनेशनल फ्लाइट्स और 40 डोमेस्टिक यानि घरेलू उड़ानों की जिम्मेदारी पूरी तरह से महिला पायलट्स के ऊपर होगी।

इन उड़ानों में दिल्ली-सिडनी, मुंबई-लंदन, दिल्ली-रोम, दिल्ली-लदंन, मुंबई-दिल्ली-शंघाई, दिल्ली-पेरिस, मुंबई-न्यूयॉर्क, मुंबई-न्यूयॉर्क, दिल्ली न्यूयॉर्क, दिल्ली-वाशिंगटन, दिल्ली-शिकागो और दिल्ली-सैन फ्रांसिस्को रूस्ट की फ्लाइट्स शामिल हैं।

एयर इंडिया के साथ ही और भी एयरलाइंस कंपनियाँ अपने अपने तरीके से आज के दिन को महिलाओं के लिए खास बनाने की कोशिश कर रही है। इस कड़ी में गोएयर ने घोषणा की है कि “उपलब्धता और पहले आओ पहले पाओ” के आधार पर महिला यात्री बिजनेस क्लास में सीट पाने की हकदार होंगी।

वहीं स्पाइसजेट इस दिन को यादगार बनाने के लिए सभी-महिला क्रू के साथ 22 उड़ानें संचालित करने के साथ ही महिला उड़नदस्तों को बोर्डिंग के दौरान एक स्वागत योग्य गुलाब के अलावा ‘प्राथमिकता वाली चेक-इन’ और ‘प्राथमिकता बोर्डिंग’ की भी व्यवस्था की गई है।

बढ़ेगी नौसेना की क्षमता: भारत ने परमाणु क्षमता संपन्न पनडुब्बी के लिए रूस से किया समझौता

भारत ने गुरूवार को दस साल के लिए परमाणु क्षमता से संपन्न हमलावर पनडुब्बी पट्टे पर लेने के लिए रूस के साथ तीन अरब डॉलर का समझौता किया है। बताया जा रहा है कि इससे नौसेना की ताकत कई गुणा बढ़ जाएगी। यह जानकारी सैन्य सूत्रों की तरफ से दी गई है।

बता दें कि दोनों देशों ने कई महीनों तक कीमतों और समझौते के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत करने के बाद 7 मार्च को नई दिल्ली में अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए। वहीं जब रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया।

हालाँकि रूस या फिर भारत सरकार की तरफ से इस डील के इसी हफ्ते में होने को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन PTI के हवाले से खबर है कि इस समझौते के तहत रूस अकुला क्लास की पनडुब्बी भारतीय नौसेना को 2025 तक सौंपेगा। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि अकुला वर्ग की पनडुब्बी को चक्र III नाम दिया गया है।

गौरतलब है कि यह पनडुब्बी भारतीय नौसेना को पट्टे पर दी जाने वाली तीसरी रूसी पनडुब्बी होगी। पहली रूसी परमाणु संचालित पनडुब्बी आईएनएस चक्र को तीन वर्ष की लीज पर 1988 में लिया गया था। दूसरी आईएनएस चक्र को लीज पर दस वर्षों की अवधि के लिए 2012 में हासिल किया गया था। इसे ईस्टर्न नेवल कमांड के तहत तैनात किया गया है।

लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार का बड़ा ऐलान, दिल्ली मेट्रो और जवानों के लिए सौगात

लोकसभा चुनाव सर पर हैं और सभी राजनीतिक पार्टियाँ इसे जीतने की कोशिश में जुटी हैं। चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दलों की तरफ से तरह-तरह के वायदे किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में चुनाव की तारीख के ऐलान के ठीक पहले मोदी सरकार ने जनता के सामने सौगातों की झड़ी लगा दी है।

दरअसल गुरुवार को मोदी सरकार ने आखिरी कैबिनेट बैठक में 30 अहम फैसले लिए। वहीं पिछले हफ्ते कैबिनेट में 39 फैसले लिए गए थे, यानी कि आठ दिनों में दो कैबिनेट की बैठकों में कुल 69 फैसले लिए गए।

गुरुवार को जो लोक लुभावने फैसले किए गए, उसमें दिल्ली मेट्रो के लिए तीन नई लाइनें- एरो सिटी से तुगलकाबाद, आरके आश्रम से जनकपुरी वेस्ट और मौजपुर से मुकुंदपुर शुरू की जाएँगी। इन पर ₹24,948 करोड़ खर्च करने को मंजूरी दी गई है।

कैबिनेट की इस बैठक में देश भर के जवानों को लेकर भी फैसला लिया गया है। तकरीबन 40 हजार से ज्‍यादा पूर्व सैनिकों को स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना के दायरे में लाए जाने का फैसला किया गया है। इस सुविधा का लाभ द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग ले चुके सैनिकों, इमरजेंसी कमिशंड ऑफिसर्स, शार्ट सर्विस कमिशन ऑफिसर्स और समय पूर्व रिटायर हुए फौजियों को भी दिया जाएगा।

इसके साथ ही सरकार ने 50 नए केंद्रीय विद्यालयों को भी मंजूरी दी है और इस शैक्षणिक सत्र से इन विद्यालयों की शुरुआत भी हो जाएगी, जिससे लगभग एक लाख बच्‍चों को फायदा पहुँचेगा। बता दें कि सरकार की तरफ से पाँच सालों के दौरान इन केंद्रीय विद्यालयों के विकास के लिए ₹1,579 करोड़ खर्च किए जाएँगे।

जब अदरक-लहसुन तहज़ीब का भार हिन्दुओं की रीढ़ तोड़ता है, तब मध्यस्थता होती है

अस्सी प्रतिशत जनसंख्या, केन्द्र में ‘हिन्दुत्व प्रोपेगेंडा’ के नाम पर हर रोज गाली सुनती मोदी की सरकार, राज्य में प्रखर हिन्दुत्व के पोस्टर ब्वॉय जो स्वयं महंत हैं, और हिन्दुओं के हाथ में क्या आता है? लहसुन। जी, हिन्दुओं के हाथ लहसुन ही आता रहा है क्योंकि हम अपने वेदों, उपनिषदों, पुराणों और शास्त्रों के एक ही हिस्से के दर्शन से ‘सर्वसमावेशी’ और ‘प्लूरलिस्टिक’ बनने के चक्कर में अपनी अस्तित्व से समझौता किए जा रहे हैं, किए जा रहे हैं, किए जा रहे हैं…

दशकों से केस खिंच रहा है, कोर्ट पर कोर्ट, तारीख़ पर तारीख़, जज पर जज और वकील पर वकील, और इस देश का उच्च न्यायालय कहता है कि बेटा तीन हिस्से में रोटी तोड़कर खा लो। फिर अपील होती है, तो सालों बाद सुप्रीम कोर्ट कहने लगता है बैठकर बात कर लो। आखिर न्यायालयों का औचित्य क्या है? फिर तो राम जन्मभूमि का मसला खाप पंचायत को दे देते?

जब साक्ष्य हैं, खुदाई हो चुकी है, जानकार लोगों ने किताबें और शोधग्रंथ लिखकर रख दिए हैं, तब न्याय के सबसे बड़े दरवाज़े की घंटी इतनी ऊँची क्यों कर दी गई है कि आम आदमी की उँगलियाँ पहुँच न सके? आखिर, क्या वजह है कि लगातार मुद्दे को टालते रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट को अतंरराष्ट्रीय स्तर के ‘बिचौलियों’ को इसमें लाना पड़ रहा है?

तुमने राम के अस्तित्व को नकारा, हिन्दुओं ने सुन लिया; तुमने मंदिर के न होने की बात की, खुदाई में मंदिर निकल आए; तुमने इतिहास को नकारना चाहा, लेकिन तथ्य यही हैं कि हिन्दुओं के हजारों बड़े और लाखों छोटे मंदिर तोड़े गए। आखिर सहिष्णुता की चादर हिन्दुओं के ही घर तक क्यों?

इस कोर्ट ने इस न्यायिक प्रक्रिया का इतना मजाक बनाया कि संवैधानिक पीठ में पाँच धर्म के जज रख दिए थे! क्यों? ट्रिपल तलाक के मसले पर सुनवाई होनी थी। इससे आखिर सुप्रीम कोर्ट क्या संदेश देना चाह रहा था? या, आज जो रिटायर्ड जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला को मध्यस्थता कमिटी का चेयरमेन बनाने की बात हुई है, उससे सुप्रीम कोर्ट क्या संदेश देना चाह रही है?

और ये मध्यस्थता कैसे होगी? बंद कमरे में। बंद कमरे में मध्यस्थता नही होती, डील होती है। अगर ये सवाल करोड़ों लोगों की भावनाओं का है, तो फिर खुली जगह पर इन बिचौलियों के तर्कों का प्रसारण होना चाहिए ताकि हर पक्ष के लोग जाने सकें कि क्या बातें हो रही हैं। न्यायिक व्यवस्था भारतीय नागरिक का अंतिम पड़ाव है, जहाँ अभी भी लोग विश्वास जताते हैं। सुप्रीम कोर्ट जब इस तरह की बातें करता है तो  वो सिर्फ अपना ही उपहास नहीं करता, बल्कि व्यवस्था पर लोगों को सवाल उठाने का मौका देता है क्योंकि ऐसी बातें तर्क से परे होती हैं। 

इसे महज़ संयोग माना जाए कि सुप्रीम कोर्ट ने लॉटरी सिस्टम से ऐसा किया है, या फिर ये जानबूझकर लिया गया एक क़दम है कि किसी समुदाय या मतावलंबियों को बताया जाए कि सुप्रीम कोर्ट ने सबका ध्यान रखा है? मुझे किसी इब्राहिम, खेहार, जोसफ़, नरीमन, गोगोई की योग्यता पर शक नहीं है, मुझे अजीब लगता है कि न्याय के जिस मंदिर में साक्ष्य सर्वोपरि होते हैं, वहाँ इस तरह के टोकनिज्म की क्या ज़रूरत है?

मेरी समस्या जस्टिस खलीफुल्ला को लेकर नहीं है, न ही मेरी योग्यता है कि मैं उनकी दक्षता पर सवाल करूँ, लेकिन एक सामान्य विवेक का प्राणी होने के कारण मेरी अभिव्यक्ति यही है कि जब कोर्ट के भीतर अधिकतर पार्टियों ने मध्यस्थता से इनकार कर दिया, तो फिर सुप्रीम कोर्ट इंटरनेशनल दलालों को मैदान में उतारकर क्या संदेश देना चाह रही है?

फिर तो सड़कों से कानून भी बनें क्योंकि हमारी सर्वोच्च न्यायिक संस्था ने बंद बक्सों में पड़े साक्ष्यों को एक तरह से दरकिनार करते हुए, एक बार फिर से करोड़ों लोगों को ठगने की कोशिश की है। आखिर जब कोर्ट यह मानता है कि यह ज़मीन से बढ़कर भावनाओं का मसला है, तो फिर कोर्ट यह भी बताए कि किन-किन मसलों को भावनाओं से जोड़कर देखा जाए, किन मसलों को छोड़ दिया जाए।

कोर्ट चाहे जितना कह ले, लेकिन ये मसला घूम-फिर कर ज़मीन का ही है। ये मसला एक इस्लामी आतंकवादी बाबर द्वारा इस देश पर किए गए अत्याचार के प्रतीक की पुनर्स्थापना का है, जो कि भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा पर एक वैसे घाव की तरह है, जिसका इलाज जल्दी होना चाहिए। पहले तो ऐसे मसलों पर बात ही नहीं होनी चाहिए, और अगर हो भी रही है तो खुदाई में निकले मंदिर और बक्सों में बंद सबूतों को बाहर लाकर, उस पर निर्णय हो, न कि दलाली से, जिसके लिए आपने मीडिएशन और मध्यस्थता जैसे सुनने में अच्छे लगने वाले शब्द बना दिए हैं। 

मसला ज़मीन का ही है, और मसला न्यायालय ही सुलझाए। हिन्दुओं ने अपनी मंदिरों के दीवारों में मस्जिदें देखी हैं, और रोज देखते हैं। हिन्दुओं ने मस्जिदों की सीढ़ियों में मंदिर के अवशेष देखे हैं। हिन्दुओं ने काशी विश्वनाथ को मस्जिद से ढकने की कोशिशें देखी हैं। हिन्दुओं ने राम के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न को स्वीकारा है। हिन्दुओं ने इस केस को जानबूझकर टालने की हर कोशिश होती देखी है।

अगर अब भी मोदी और योगी जैसे ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ का तमग़ा लेकर घूमने वाले लोगों ने इस पर संवैधानिक दायरे में रहकर दख़लंदाज़ी नहीं की, तो ये मामला हिन्दुओं को उस कोने में ढकेल देगा जहाँ से उनके पास दो ही विकल्प बचेंगे: मणिकर्णिका घाट या मणिकर्णिका की तलवार।

PM ने किया काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का शिलान्यास, कहा: ‘काशी की नई पहचान बनने वाली है’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वाराणसी के दौरे पर हैं। इस दौरान पीएम ने काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर का शिलान्यास किया। मोदी ने कुदाल चलाकर काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर की नींव रखी। बता दें कि ये कॉरिडोर बाबा विश्वनाथ मंदिर से शुरू होकर गंगा किनारे घाट तक जाएगा। इस कॉरिडोर को लेकर काफी विवाद रहा था, लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री ने इस परियोजना को आगे बढ़ाया।

कॉरिडोर का शिलान्यास करने के बाद उन्होंने काशी विश्वनाथ में पूजा अर्चना की। उन्होंने कहा कि अब माँ गंगा को सीधे बाबा भोलेनाथ से जोड़ दिया गया है। अब श्रद्धालु गंगा स्नान करके सीधे भोले बाबा के दर्शन करने आ सकेंगे। ये काशी विश्वनाथ धाम, अब काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के रूप में जाना जायेगा। इससे काशी की पूरे विश्व में एक अलग पहचान बनेगी।

प्रधानमंत्री ने कहा, “आज भोले बाबा की मुक्ति का पर्व है। पहले यह स्थान चारों तरफ से घिरा हुआ था। 300 सम्पत्तियों का अधिग्रहण किया गया। कई बार दुश्मन ने ये जगह ध्वस्त की। आस्था ने इस जगह को फिर जीवन दिया। काशी की नई पहचान बनने वाली है। काशी के लोगों ने भी सरकार का साथ दिया।”

चित्र आभार: ANI

पिछली सरकारों पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “काशी का काम मेरे नसीब में लिखा था। 70 सालों से पहले की सरकारों ने कुछ नहीं किया।”

चित्र आभार: ANI

इस दौरान मोदी के साथ यूपी के सीए योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल राम नाइक भी मौजूद रहे। मोदी ने कहा कि विश्वनाथ धाम एक ऐसी परियोजना है जिसके बारे में वो लंबे समय से सोच रहे थे और सक्रिय राजनीति में आने से पहले ही वो काशी आ गए थे। तब से ही उनके मन में मंदिर परिसर को लेकर कुछ करने की इच्छा थी, जो कि अब भोले बाबा के आशीर्वाद से उनका ये सपना सच हो रहा है।

रामजन्मभूमि मामले में मध्यस्थता से निकलेगा समाधान: SC का बड़ा फैसला

अयोध्या में रामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अयोध्या मसले का समाधान मध्यस्थता से निकाला जाए। मध्यस्थता के लिए पूर्व जस्टिस कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक पैनल बनाया जाएगा। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर, वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू होंगे। मध्यस्थता की कार्यवाही पूरी तरह से गोपनीय होगी। मध्यस्थता की प्रक्रिया फैज़ाबाद में होगी। यह ।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले की रिपोर्टिंग न की जाए। मध्यस्थता की प्रक्रिया एक हफ्ते में शुरू हो जानी चाहिए। चार हफ्ते में पहली रिपोर्ट आ जानी चाहिए और आठ हफ्ते में पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। यह फैसला पाँच जजों पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने दिया है जिसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए बोबडे शामिल थे।

पैनल के सदस्य और सदस्यों को भी पैनल का सदस्य बना सकते हैं। पक्षकार पैनल के सामने यह भी कहने को स्वतंत्र हैं कि वो मध्यस्थता नहीं चाहते।

लिप्सटिक नारीवाद: सिंदूर पोंछ दो, चूड़ियाँ तोड़ दो, साड़ियाँ खोल लो, ब्रा उतार दो

बेगूसराय (या बिहार-यूपी) के कपड़ों की दुकान से जब आप कपड़े लेकर निकलेंगे तो आपको जिस पन्नी (पॉली बैग) में कपड़ा दिया गया है, उसके ऊपर बड़े शब्दों में लिखा रहता है: फ़ैशन के दौर में गारंटी की इच्छा ना करें। हमारे तरफ के लोग छोटा वाला एस्टेरिक या स्टार मार्क लगाकर छुपाकर नहीं लिखते: कन्डीशन्स अप्लाय। पूरा फ़्रंट में, बढ़िया से लिखा होता है कि भाई कितना का भी कपड़ा लो, गारंटी नहीं है।

इसी तरह का फ़ैशनेबल कॉस्मेटिक्स एक ‘वाद’ पर आजकल चढ़ाया जाता है। इसको लिपस्टिक नारीवाद कहते हैं। ये नारीवाद तभी तक रहता है जब तक आपका चमचमाता, फ़्लेवर वाला लिप्सटिक रहता है। आजकल ऐसे नारीवादी बहुतायत में मिल जाएँगे।

इनका ज्ञान तो छिछला है ही, साथ ही इनकी समझ भी वैसी ही छिछली है। इनके तर्क नारीवादी ना होकर पुरुष-विरोधी होते हैं। यहीं सबसे बड़ी समस्या है। आप एक को जिताने के लिए, दूसरे को मार डालना चाह रहे हैं। इसकी कोई जरूरत नहीं है। लड़कियों या महिलाओं की बेहतरी के लिए उनकी आर्थिक स्वतंत्रता, शिक्षा और सामाजिक स्थिति की बेहतरी ज़रूरी है ना कि इस बात कि आप कह रहे हैं ‘सिंदूर पोंछ दो, चूड़ियाँ तोड़ दो, साड़ियाँ खोल लो, ब्रा उतार दो’।

ये वैचारिक खोखलापन है। इसको कई लोग कन्डिशनिंग कहते हैं। कन्डिशनिंग हर स्तर पर है समाज में। हम घर बनाकर क्यों रहते हैं? हम पूजा क्यों करते हैं? हम कपड़े क्यों पहनते हैं? हम टाई क्यों लगाते हैं? हम बर्गर क्यों खाने लगे हैं? हम हॉलीवुड की फ़िल्में क्यों देखते हैं? हम जीन्स क्यों पहनते हैं? हम माँ-बाप के पैर क्यों छूते हैं? हम राखी क्यों बँधवाते हैं? हम स्कूल में किसी और से क्यों पढ़ते हैं?

मुझे नहीं लगता कि आपके सिंदूर पोंछ देने से, चूड़ियाँ तोड़ देने से, साड़ियाँ खोल लेने से, ब्रा उतार देने से नारीवाद आ जाएगा। क्योंकि वो दिक़्क़त नहीं है। पता कीजिए कि बीस साल से कम उम्र की कितनी लड़कियाँ सिंदूर लगाती हैं। पता कीजिए कि क्या मुस्लिम, ईसाई आदि धर्म की स्त्रियाँ स्वतंत्र हैं? पता कीजिए साड़ी नहीं पहनने वाली पंजाब-हिमांचल की औरतें स्वतंत्र हैं! पता कीजिए बिहार के गाँवों की औरतें जो ब्रा नहीं पहनती स्वतंत्र हैं?

कन्डिशनिंग तो आपकी भी हो गई है कि आपको लगता है कि हर वो चिह्न जो आपकी समझ से बाहर है, वो पितृसत्ता का परिचायक है। आपको सिंदूर मत लगाना है मत लगाईए, लेकिन ये मान लेना कि लोग एक कंडिशनिंग के कारण ऐसा करते हैं, मूर्खता है।

लिप्सटिक नारीवादियों को ये लगता है कि गाँव में खाना बनाती हर औरत पितृसत्ता का शिकार है। घर सँभालना किसी भी आठ घंटे वाली नौकरी से कठिन काम है। अगर मेरी माँ घर सँभालती है तो ये कन्डिशनिंग कैसे हो गई? और मैं जानता हूँ कि मेरी पाँचवीं पास माँ, जिसकी शादी तेरह साल में हो गई थी, वो दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ी अधिकांश लड़कियों से ज्यादा खुले विचारों वाली स्वतंत्र महिला है। 

अगर सब नौकरी करने लगें तो घर कौन सँभालेगा? नौकर? अब नौकर समाज में किस आर्थिक स्तर का व्यक्ति होगा? दलित, निचली जाति का? और आप लिपस्टिक नारीवादी होने के साथ दलित चिंतक भी हैं तो बताईए भला कि कोई और मेरा खाना क्यों बनाएगा? वहाँ आपको दिक़्क़त हैं कि नहीं? आपको ये क्यों लगता है कि खाना बनाना एक हेय कार्य है?

आप तो इस हद तक जाओगे कहने कि औरतें बच्चे क्यों जने? सही बात है, वो अंडे निकाल ले, मर्द शुक्राणु दे दें और फिर प्रयोगशालाओं में बच्चे पैदा हों, अपने आप पलें (क्योंकि बाकी लोग तो काम करेंगे ना) ताकि बचपन से ही आत्मनिर्भर बनें। है कि नहीं? क्या कहा? दाई रख लें? यहाँ पर दलित चिंतन अप्लाय होगा या नहीं? या मर्द से शुक्राणु क्यों लें, हम बंदर से लेंगे, बिल्ली से लेंगे, शेर से लेंगे… है कि नहीं?

कन्डिशनिंग क्या है मैं बताता हूँ। कन्डिशनिंग है आपका वही पढ़ना, और सुनना जो आपको अच्छा लगता है। फिर आपके विचार वैसे ही विकसित होते हैं। ये बंद हो जाना होता है। आपको फ़ौरन नारीवादी बनना है तो आपको जो भी औरत अभी के समाज में कर रही है, सबको बिना किसी तर्क के गरियाना शुरू करना चाहिए। 

लड़कियाँ पढ़ रही हैं। वो साड़ी भी पहनती है, ब्रा भी, सिंदूर भी लगाती है और मन करे तो चूड़ियाँ भी। आप फेसबुक पर बैठे-बैठे ज्ञान देते रहिए और गाँवों की सासें और मर्द अपने घरों में नई बहू को जीन्स भी पहनने को कह रहे हैं, पल्लू ना डाले ये भी कह रहे हैं क्योंकि अब वो ये स्वीकारने लगे हैं कि सबको ये करने में सहजता नहीं है।

लोगों ने समझना शुरू कर दिया है कि ये ज़रूरी नहीं है। स्त्रियों को सताना तब तक जारी रहेगा जब तक आप उसे पढ़ाते नहीं, नौकरी करने नहीं देते, या उसकी इच्छाओं का दमन सिर्फ इसलिए होता है कि वो लड़की है। लड़की पिछड़ती इसलिए नहीं कि उसे तो ब्रा पहनना होगा, उसे तो साड़ी पहननी होगी, चूड़ियाँ पहननी होगी… इस हिसाब से तो हर विधवा को स्वतंत्र होना चाहिए!

मेरी दादी ने, जिसके पति पैंतीस साल में छः बच्चों, और मात्र छः बीघा ज़मीन, जमीन के साथ छोड़कर परलोक सिधार गए, अपने सारे बच्चों को पढ़ाने की कोशिश की और इस लायक बनाया कि वो अपनी जिंदगी में जहाँ जाएँ, बेहतर करें। क्या वो विधवा थी इसलिए ऐसा हो गया? जी नहीं, उसकी सोच थी कि पढ़ लिखकर आदमी सही जगह पहुँच सकता है। हमारे पिताजी को लगा कि घर कौन देखेगा तो सातवीं का बोर्ड दिए बग़ैर खेती में लग गए। 

पूरे घर की तरक़्क़ी का कारण दो महिलाएँ हैं, मेरी दादी और मेरी माँ। क्या इन दोनों की कंडिशनिंग नहीं हुई थी? आज की लिपस्टिक नारीवादी के लिए मैचिंग जूती, जीन्स, लिपस्टिक, इयररिंग, शेड्स, बैग ठीक है, लेकिन गाँव की स्त्री का बिन्दी लगाना पितृसत्तात्मक समाज का प्रतीक है! मतलब तुम्हारा फ़ैशन, फ़ैशन, लेकिन इनकी बिन्दी, सिंदूर, लोहरंगा, ठोररंगा, साड़ी, चूड़ियाँ ग़ुलामी का प्रतीक! 

तुम क्यों इतना मैचिंग के चक्कर में हो! किसके लिए? और वो क्यों शृंगार करती है, किसके लिए? उसकी इच्छाएँ, तुम्हारी इच्छाओं से कमतर कैसे हैं? क्या वो कंडिशनिंग है तो तुम्हारा मैचिंग हैंडबैग कंडिशनिंग कैसे नहीं है? 

क्या पूरे नारीवाद का विमर्श अब इतने पर आकर गिर गया है कि कोई सिंदूर क्यों लगाती है, बिंदी क्यों चिपकाती है, ब्रा क्यों पहनती है? 

कंडिशनिंग उनसे ज्यादा तुम्हारी हो गई है क्योंकि तुम बंद डिब्बे से बाहर सोच नहीं पाते। तुम्हें स्वतंत्रता क्या है और वो कैसे किसी को सशक्त करता है, इसका भान नहीं है। तुम्हें ये पता नहीं है कि एक औरत के अपनी रीढ़ पर सीधे खड़े होने के लिए सिंदूर-बिन्दी त्यागने से ज्यादा ज़रूरी है शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता। 

हर उस औरत को पति की तरफ से घर सँभालने हेतु पैसा मिलना चाहिए। सरकारों को ये नियम बनाना चाहिए कि उनके पति, बच्चे उनकी सेवा (बच्चों को पालना, खाना बनाना, घर की देखरेख) के लिए एक नियमित वेतन दें। अब वो वेतन वो फिर से अपने बच्चों पर खर्च करे, घर के टूटे हिस्से को ठीक करवाने में करे, ये उसकी मर्ज़ी।

ये स्वीपिंग जेनरलाइजेशन बंद होना चाहिए कि हर औरत जो सिंदूर लगा रही है वो दवाब में है। शादी मत करो अगर सिंदूर नहीं लगाना है तो। या शादी करो, और मत लगाओ अगर तुम्हें दिक़्क़त है तो। तुम ये क्यों सोचते हो कि जिसने लगाया है वो गुलाम है, कंडिशनिंग हो गई है उसकी? कंडिशनिंग तुम्हारी हो गई है कि नारीवाद पर लिखना हो तो ऐसे ही लिखा जाए। 

घूम फिर कर दस से बारह चीज़ें है तुम्हारे नारीवाद के बस्ते में: सिंदूर, ब्रा, चूड़ियाँ, साड़ी, शादी की संस्था, फ़्री सेक्स की आज़ादी का ना होना, कईयों से सेक्स करने की आज़ादी ना होना, लड़कियों का जो मन हो वो करें… इत्यादि। कुछ और होंगे जो तुम ख़ुद जोड़ लोगे।

इस सोच से बाहर निकलो। नारी को समझो, तब नारीवाद को समझ पाओगे। उसकी बेहतरी शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता में है। पढ़ाओगे तो वो समाज को समझेगी, उसे लगेगा कि लड़के-लड़की का भेदभाव गलत है। शिक्षित होने से विवेक आता है, और विवेक तुम्हें अच्छे और बुरे का फर्क सिखाता है। विवेक कभी नहीं कहता कि साड़ी नहीं पहनने से, सिंदूर पोंछ लेने से समानता मिल जाएगी। समानता पाने की एक प्रक्रिया है, ऑन ऑफ़ स्विच नहीं। 

क्योंकि सिंदूर का नारीवाद से कोई लेना-देना नहीं है। सिंदूर लगाती कई नारीवादियों को मैं जानता हूँ, और हाँ वो ब्रा भी पहनती हैं।