Friday, October 4, 2024
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राजीव कंधे पर लाए थे कम्प्यूटर, सोनिया ने अभिनंदन को बिठाया था कॉकपिट में

बहुत समय पहले की बात है। तब सिर्फ पत्थर ही पत्थर हुआ करता था। लोग पत्थर खाते थे, पत्थर ही पहनते थे। पूरी मानव जाति तब पत्थरों के इस अहसानी बोझ के तले दबे हुई थी। ऐसे में एक युग पुरुष का जन्म हुआ। वो देखने में ही ‘कुछ अलग’ लगता था। उसकी माँ बड़ी खुश हुई। गोद में उठाया। लेकिन यह क्या! बच्चे ने माँ का आंचल पकड़ने के बजाय अपना पंजा दिखाया। और जोर से बोला – कॉन्ग्रेस।

नेहरू पर कबूतर (फोटो साभार: BCCL)

जी हाँ। कॉन्ग्रेस बोला। एक दिन के सामान्य बच्चे को जहाँ माँ के दूध के अलावा कुछ दिखता नहीं, वहीं उसने हाथ उठाकर पंजा भी लहराया और कॉन्ग्रेस भी बोला। वो बच्चा ‘अलग’ था। पूरी धरती पर किसी ने कॉन्ग्रेस शब्द नहीं सुना था। लेकिन उसने कहा… क्योंकि वो अलग था। जैसे-जैसे वो बड़ा होता गया, उसने पत्थरों का नामो-निशां मिटा दिया। उसके जादू से सबके पास थाली भर खाना और थान भर कपड़े हो गए। लोग उसके दीवाने हो गए। फिर एक दिन ऐसा आया कि उसने सबसे कॉन्ग्रेस का जयकारा लगवा दिया।

PM ‘प्रतिभा’ की धनी इंदिरा

वो ‘कुछ अलग’ था। इसलिए उसकी पीढ़ियाँ भी दिखने में अलग लगने लगीं। इकलौती बेटी तो खैर इतनी अलग दिखीं कि लोग उनके ऑरिजनल नाम इंदिरा को कम जबकि दुर्गा से ज्यादा जानने लगे। और यह शायद कइयों को (खासकर ‘भक्तों’ को) बुरा लग सकता है लेकिन जहानाबाद स्थित राष्ट्रीय युद्ध म्यूजियम (शाही दवाखाना के पीछे) में इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि साल 71 की लड़ाई में बुरी तरह हारती भारतीय सेना का साथ देने अगर खुद ‘इंदिरा द दुर्गा’ भाला-कटार-तलवार लेकर नहीं जातीं तो आज बांग्लादेश नहीं होता। यही कारण है कि मुस्लिम राष्ट्र बांग्लादेश में 1008 मीटर की सबसे ऊँची मूर्ति ‘इंदिरा द दुर्गा’ की ही है। हर साल वहाँ जगराता होता है और कॉन्ग्रेस के लोग 1008 बार दण्ड देते हुए वहाँ जयकारा लगाते हैं।

दिखने में PM जैसा लगते थे राजीव लेकिन कर्मठ इतने कि खुद कम्प्यूटर ‘उठा’ के भारत ले आए थे

वक्त गुजरा। ‘इंदिरा द दुर्गा’ को दो बेटे हुए – बेटे क्या, समझो साक्षात् PM के दर्शन। एक भले ही PM न बन पाया लेकिन उसके आगे ‘बड़े-से-बड़ा’ भी दुम दबाए खड़ा रहता था। दूसरा जो किसी विमान कंपनी में ड्राइवर (अंग्रेजी में पता नहीं लोग उसको पायलट काहे बोलते हैं) थे, वो चूँकि दिखते ही PM जैसे थे, इसलिए PM बने भी। उन्होंने देश को कम्प्यूटर दिया – खुद लाकर। कभी बैलगाड़ी से तो कभी कंधे पर रख कर। कम्प्यूटर के लिए बहुत पसीना बहाया उन्होंने। गूगल वाले भी उनके यहाँ इंटर्न थे, तब जाकर आज इतनी बड़ी कंपनी खड़ी कर पाए।

इनसे ‘दुर्गावतार’ का एक दौर शुरू हुआ

अब जमाना आया महिला सशक्तीकरण का। बरबाद होती कॉन्ग्रेस को सोनिया मैडम ने अपनी ‘धारदार हिन्दी’ से सींचा। दिखने में ये भी PM जैसी ही थी लेकिन बनीं नहीं। ‘शरद ऋतु’ ने इस महान कार्य में पंगा कर दिया था। खैर। प्रतिभा रोके से रुकती है भला! PM भले ही कोई और थे, काम सारा 10 जनपथ से ही होता था। और क्या काम हुआ साब! एयरपोर्ट से लेकर सड़क और हॉस्टल तक सब जगह इन्होंने अपने ‘नाम का डंका’ बजवा दिया।

सोनिया PM भले न बनीं, लेकिन उनके बिना थके-बिना रुके काम के प्रति लगन का ही परिणाम है ये हॉस्टल

फिर आई एक ‘काली-अंधेरी रात’… ऐसी रात जिसकी अलगे 5-10 साल तक कोई सुबह नहीं। लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी। लगे रहे। दुर्गा से दुर्गावतार का दौर चला दिया। राम हों या कृष्ण, सबकी शरण में गए।

प्रियंका ‘माँ दुर्गा’ बहुत क्यूट लगती हैं

फिलहाल भी जा रहे हैं – लेकिन अब विदेशी देवताओं के साथ। राफेल नाम के एक देवता हैं – फ्रांस में। हर दिन, हर पल उनको याद करते हैं। रा(हुल)-रा(फेल) के योग से रा(हु) का दोष कटता है, ऐसा ऋगवेद में कहा गया है। राफेल देव अभी फल देने ही वाले थे कि एक हादसा हो गया।

33 करोड़ अवतारों में से हर को पूजना संभव नहीं, इसलिए अभी इसी एक से काम चलाइए… और हाँ दिखने में यह भी PM जैसे लगते हैं

तकनीक की कम समझ के कारण कॉन्ग्रेस के एक ‘छुटभैये नेता’ सलमान (खान नहीं खुर्शीद) ने एक ट्वीट कर दिया। भक्त लोग उसके पीछे पड़ गए। अब सलमान भाई की बात भक्त लोग मानें भला! जबकि बात उन्होंने सही कही है, एकदम 16 आने सही। लेकिन भक्त कैसे समझें कि देश के हर एक जेट फ़ाइटर को पानी के पाइप से राहुल खुद धोते थे और प्रियंका उनमें तेल भरा करती थीं। तब कहीं जाकर उस फाइटर प्लेन से F16 को मार गिराने में सफलता मिली। वरना ऐसा करना असंभव है, असंभव। समझने और कॉन्ग्रेस के आगे सिर झुकाने के बजाय उल्टे लोगबाग सलमान भाई अंड-बंड बोलने लगे।

याद रखिए, इस देश में जो भी हुआ वो कॉन्ग्रेस ने ही किया है। वरना आज भी सिर्फ पत्थर ही पत्थर होता। हम पत्थर खाते और पत्थर ही बाहर भी आता!

डियर ‘The (Liar) Wire’, J&K आज भी नहीं है सेक्युलर राज्य, तो RSS के कम्युनल होने की बात क्यों

द वायर, चिरकुट वामपंथियों की ऐसी जमात है जो स्वयं तो मूर्ख है ही अपने पाठकों को भी मूर्ख समझती है। इस जमात के लेखकों ने समय-समय पर बेहूदा तर्कों से भरे अनेकों लेख लिखकर अपना बौद्धिक स्तर सिद्ध किया है। ताज़ा उदाहरण 1 मार्च को प्रकाशित लेख का है जिसमें द वायर की एक स्वघोषित पत्रकार ने लिखा कि जमात ए इस्लामी की भाँति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी जम्मू कश्मीर राज्य में एक प्रतिबंधित संगठन है।

इस निष्कर्ष के समर्थन में यह तर्क दिया गया कि जम्मू कश्मीर सरकारी कर्मचारी नियमों (J&K Government Employees Conduct Rules, 1971) के अनुसार जमात ए इस्लामी और संघ दोनों ‘एंटी सेक्युलर’ और ‘कम्युनल’ संगठन हैं इसलिए जम्मू कश्मीर राज्य का कोई भी सरकारी कर्मचारी इनका सदस्य नहीं बन सकता। बहरहाल, यह तर्क तो सही है लेकिन इन ‘पाक-अधिकृत-पत्रकार’ महोदया को शायद जम्मू कश्मीर राज्य के तथाकथित ‘सेक्युलर’ इतिहास का ज्ञान नहीं है।

हमारे देश में जब भी मज़बूत इरादों वाले प्रधानमंत्री की चर्चा होती है तो प्रायः ‘लोहा लेडी’ श्रीमती इंदिरा गाँधी का नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। यह अलग विषय है कि तथाकथित लोहा लेडी जी ने 1971 में पाकिस्तानी फ़ौज के एक लाख मुस्टंडों को खिला पिलाकर उनके वतन वापस भेजा था। दस्तावेजों के अनुसार उसी साल जम्मू कश्मीर सरकारी कर्मचारी नियम भी लागू हुए थे जिनमें जमात ए इस्लामी और संघ को एंटी सेक्युलर और कम्युनल घोषित किया गया था।

जानने लायक बात यह है कि सन 1976 में लोहा लेडी जी ने भारत के संविधान में संशोधन कर उद्देशिका (Preamble) में सेक्युलर शब्द जोड़ा था। लेकिन 1957 में लागू हुए जम्मू कश्मीर राज्य के संविधान में सेक्युलर शब्द आज तक नहीं लिखा गया है। यही नहीं 1976 में जब भारतीय संविधान में सेक्युलर शब्द जोड़ा गया था तब जम्मू कश्मीर राज्य ने यह लिखकर दिया था कि हमारे यहाँ सेक्युलर शब्द लागू नहीं होगा।

आज के दौर में जहाँ रसम और भरतनाट्यम के कारण अल्पसंख्यकों की हितकारी सेक्युलर विचारधारा खतरे में पड़ जाती है वहाँ कश्मीरियत की दुहाई देकर 70 वर्षों से लोकतंत्र के सबसे पवित्र ग्रंथ भारतीय संविधान का अपमान किया जा रहा है। इस अपमान के विरोध में आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाली कॉन्ग्रेस भी दूर-दूर तक कहीं दिखाई नहीं पड़ती। जम्मू कश्मीर राज्य में सेक्युलरिज़्म लागू नहीं होता यह जानकर भी पाक-अधिकृत-पत्रकारों के होठ सिले हुए हैं। वे इसी बात पर लहालोट हुए जा रहे हैं कि जम्मू कश्मीर राज्य के सरकारी कर्मचारियों को फलां-फलां संगठन का सदस्य बनने की अनुमति नहीं है। जबकि सत्य यह है कि केंद्र और राज्य सरकार के किसी भी कर्मचारी को सर्विस में रहते हुए किसी भी राजनैतिक पार्टी अथवा संगठन का सदस्य बनने की अनुमति नहीं होती। यह सभी सरकारी कर्मचारियों पर समान रूप से लागू होता है।

अब सवाल यह उठता है कि जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया था? दिनांक 28 फरवरी, 2019 के गज़ेट नोटिफिकेशन द्वारा केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जमात ए इस्लामी (जम्मू कश्मीर) पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी करते हुए लिखा कि यह संगठन ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है जो आंतरिक सुरक्षा और लोक व्यवस्था के लिए हानिकारक है और जिनमें देश की एकता और अखंडता को को भंग करने का सामर्थ्य है।

केंद्र सरकार ने जमात ए इस्लामी (जम्मू कश्मीर) को विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act) के अंतर्गत प्रतिबंधित किया है। ध्यान देने वाली बात है कि आज देश में आतंकवादी गतिविधियों को परिभाषित करने और उनपर लगाम लगाने वाला एकमात्र कानून UAPA ही शेष है। पोटा तो कॉन्ग्रेस की सरकार ने 2004 में सत्ता में आते ही हटा दिया था।

जमात ए इस्लामी नामक दो संगठन हैं। एक जमात-ए-इस्लामी-हिन्द है जिसे आज़ादी से पहले 1938 में मौलाना मौदूदी द्वारा स्थापित किया गया था। दूसरा जमात ए इस्लामी (जम्मू कश्मीर) के नाम से 1942 में शोपियाँ में मौलवी गुलाम अहमद अहर ने स्थापित किया था जिस पर प्रतिबंध लगाया गया है। जमात ए इस्लामी (जम्मू कश्मीर) आरंभ से ही अलगाववादी संगठन रहा है जिस पर पहले भी (1990 में) प्रतिबंध लग चुका है। यह आतंकवादी संगठन हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन का जनक है और कश्मीर में इसकी हज़ारों करोड़ रुपए की संपत्ति है जिसको सरकार ने सीज़ किया है।

जगमोहन ने अपनी पुस्तक My Frozen Turbulence in Kashmir में लिखा है कि जमात ए इस्लामी (जम्मू कश्मीर) के (पूर्व) सरगना सैयद अली शाह गिलानी के अनुसार “किसी भी मुस्लिम को सोशलिस्ट और सेक्युलर विचार नहीं अपनाने चाहिए।” गिलानी जैसे लोगों के विचारों से यह स्पष्ट है कि कश्मीर के अलगाववादियों की विचारधारा क्या है।

इसके विपरीत संघ की बात करें तो आरएसएस ने प्रारंभ से ही जम्मू कश्मीर राज्य को भारत का अभिन्न अंग माना है। संघ का किसी भी आतंकवादी संगठन से कभी कोई संपर्क सिद्ध नहीं हो सका। हिन्दू आतंकवाद के शिगूफ़े की असलियत भी आर वी एस मणि ने अपनी पुस्तक The Myth of Hindu Terror में लिख दी है।

वास्तविकता तो यह है कि जब महाराजा हरि सिंह अधिमिलन पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर करने में टालमटोल कर रहे थे तब सरदार पटेल ने द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर को हरि सिंह के पास भेजा था ताकि वे उन्हें अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मना सकें। वह भेंट 18 अक्टूबर 1947 को हुई थी जिसके बाद 26 अक्टूबर को महाराजा के हस्ताक्षर करते ही जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा बना। यह तथ्य माओवादी अर्बन नक्सल गौतम नवलखा ने भी 1991 में EPW में प्रकाशित अपने लेख में स्वीकार किया है।

लेकिन द वायर के पाक-अधिकृत-पत्रकारों को पाठकों के सामने झूठ परोसने और जमात ए इस्लामी और संघ को एक ही नज़रिये से देखने में मज़ा आता है। इन्हें कम्युनल और सेक्युलर शब्द तो बिना चश्मे के दिखता है लेकिन आतंकवादी और टेररिस्ट जैसे शब्दों को देखने के लिए माइक्रोस्कोप की आवश्यकता पड़ती है।

प्रियंका के ‘जय हिंद’ से Pak को मिर्ची, UNICEF Ambassador पद से हटाने की मांग

पुलवामा हमले के बाद भारतीय वायु सेना की तरफ से किए गए एयर स्ट्राइक के बाद पूरे देश ने सेना को सलाम किया और साथ ही बधाई भी दी। इस मामले में बॉलीवुड स्टार्स भी पीछे नहीं रहे। वो भी खुलकर सेना को बधाई देते दिखे। इसी कड़ी में बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा ने भी इंडियन एयरफोर्स की बहादुरी को सलाम करते हुए एक ट्वीट किया। प्रियंका ने इस ट्वीट में तिरंगे का इमोजी बनाते हुए “जय हिंद” लिखा था।

प्रियंका का ये ट्वीट पाकिस्तान को रास नहीं आया। जिसके बाद पाकिस्तान ने अभिनेत्री के खिलाफ ऑनलाइन याचिका दायर करते हुए उन्हें यूनीसेफ के गुडविल एंबेसडर पद से हटाने की माँग की है। पाकिस्तान द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि दो देशों के बीच अगर न्यूक्लियर वॉर होती है तो इससे सिर्फ और सिर्फ त्रासदी ही होगी। यूनीसेफ की ब्रैंड एंबेसडर होने के नाते प्रियंका चोपड़ा को इंडियन एयर फोर्स के फेवर में ट्वीट नहीं करना चाहिए था। अभिनेत्री को शांति और निष्पक्षता का परिचय देने की ज़रूरत थी। उनके द्वारा किया गया ट्वीट एक यूनीसेफ की ब्रैंड एंबेसडर होने के नाते गलत है और वो यह पद डिजर्व नहीं करती है।

बता दें कि इन दिनों पाकिस्तान में एक पेटीशन भी साइन करवाई जा रही है कि प्रियंका शांति को नहीं बल्कि युद्ध को प्रमोट करती हैं, इसलिए उन्हें इस पद से हटा दिया जाए। जिसमें अब तक दो हजार लोगों ने साइन भी कर दिया है। ऐसे में अब देखना यह होगा कि प्रियंका इस पर क्या जवाब देती है? क्योंकि यूनीसेफ की ब्रैेंड एंबेसडर होने से पहले वो एक भारतीय हैं और भारतीय होने के नाते उन्होंने अपनी सेना के पराक्रम को सलाम किया है।

…और प्रधानमंत्री रैलियाँ कर रहा है!

नहीं, तो क्या करे प्रधानमंत्री? कोने में सर झुका कर भोक्कार पार कर रोता रहे? क्या करना चाहिए प्रधानमंत्री को? आपकी तरह की गिरी हुई राजनीति कि आप उसे पंद्रह दिन में क्रमशः, ‘कहाँ है 56 इंच’, ‘ये तो एयरफ़ोर्स ने किया’, ‘मोदी के कारण ही पकड़ा गया’, ‘जेनेवा कन्वेंशन के कारण वापस आएगा’, ‘इमरान ने दे दिया’, ‘मोदी का क्या हाथ है इसमें’, ‘मोदी रैलियाँ करने में बिजी है’, कहते हुए एसी-डीसी करते रहे? 

प्रधानमंत्री ने जो किया है वो ऐतिहासिक है। ऐतिहासिक इस लिहाज से कि प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री की तरह काम किया है जो कि जनता का प्रतिनिधि होता है। उसका काम जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए, देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा की चिंता करते हुए, उन लोगों को इसकी सुरक्षा की योजना बनाने की स्वतंत्रता देनी चाहिए जो इस क़ाबिल हैं। इस मामले में तीनों सेनाध्यक्ष, कश्मीरी मामलों के जानकार, आतंकी ऑपरेशन्स को हैंडल करने वाले दिग्गज सैन्य अधिकारी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आदि वो लोग हैं जो इस कार्य के क़ाबिल हैं।

प्रधानमंत्री ने इन्हें अपना काम करने की स्वतंत्रता दी और नतीजा सामने है कि 40 के बाद 350 तबाह कर दिए गए जिसका रोना वही आतंकी रो रहे हैं जो कैंप चला रहे थे। ये बात और है कि दिग्विजय से लेकर ममता तक सबूत माँगते फिर रहे हैं। उनके पास विदेशों के समाचार पत्र पढ़ने के लिए संसाधन हैं, और उन पर विश्वास है लेकिन भारतीय सेनाओं के आला अधिकारियों के प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दिए गए सबूत और बयान काफी नहीं। इनको लाइव टेलिकास्ट चाहिए था। इसीलिए चुटकुला चलता है कि अगली बार मिग के ऊपर दीदी, बाबू, बेबी सबको बिठाकर ले जाना चाहिए एयर स्ट्राइक्स के लिए। 

प्रधानमंत्री अगर एक दिन बैठ जाए तो कितने कार्यक्रम टल जाएँगे, उसकी बात कोई नहीं करता। लोग भूल जाते हैं कि इन रैलियों को संबोधित करने से पहले मोदी कितने हजारों करोड़ की योजनाओं की शुरुआत करने से लेकर लोकार्पण तक करता है। लोगों की समस्या यही है कि मोदी कुछ भी करे, वो काफी नहीं है। 

क्या ये लोग बताएँगे कि मोदी को कितने दिन तक रुक कर रैलियाँ करना चाहिए था? कितने दिन का शोक होना चाहिए था? क्या शोक मनाने का ज़िम्मा मोदी पर ही है, वो भी आपके तरीके से? आप भी तो इस तरह की बेहूदी और बेसिरपैर की बातें नहीं करके जवानों के बलिदान का सम्मान कर सकते थे? लेकिन नहीं, आप अपनी राजनीतिक रोटी सेंकिए, लेकिन मोदी राजा रामचंद्र बनकर चौदह साल के वनवास पर निकल जाए! 

आपने तो बहुत कोशिश की कि साबित हो जाए कि हमले की ख़बर मिलने के बाद मोदी जिम कॉर्बेट में विडियो बनवा रहा था, लेकिन वहाँ आपकी तृष्णा शांत नहीं हो पाई। आपने बहुत कोशिश की यह फैलाने की कि मोदी ने ही चुनावों को देखते हुए ये हमले कराए। आपने यहाँ तक कहा कि आत्मघाती हमलावर का शव कहाँ है, ये हमला तो भाजपा वालों ने कराया है! आपने क्या-क्या नहीं कहा और लिखा! 

आपने मोदी के नेतृत्व को पहले चैलेंज किया, फिर नकारा, फिर उपहास किया, फिर उसे क्रेडिट देने से मना किया… ये चलता रहा, और ग़ज़ब की बात तो देखिए कि मोदी ने आपके लिए एक भी शब्द ख़र्च नहीं किए। उसे पता है कि उसको जवाब जनता को देना है, और सीमा की रक्षा का दायित्व सेना पर है, वही इसको बेहतर तरीके से करेंगे, तो उसने उन्हें स्वतंत्रता दे रखी है। जितनी जानकारी लेनी होती है, वो मोदी तक पहुँच जाती है। 

मेरे ही एक मित्र ने कह दिया कि वो सवाल नहीं कर सकता क्या कि मोदी रैली क्यों कर रहा है? ये सवाल है ही नहीं, ये सवाल में छिपा एक जवाब है जो कि मीडिया और राजनैतिक विरोधियों द्वारा फैलाया जा रहा अजेंडा है जिसके केन्द्र में यह बात साबित करने की कोशिश है कि देखो, मोदी सैनिकों का अपमान कर रहा है। 

आप मोदी को सैनिकों के विरोध में खड़ा करना चाह रहे हैं। आप उसके सर ‘शहीदों का दर्जा’ नहीं देता का प्रोपेगेंडा चलाते हैं। आप उस व्यक्ति को ही सेना के विरोध में दिखाना चाहते हैं जिसने सेना की बेहतरी के लिए बुलेट प्रूफ वेस्ट से लेकर, कश्मीर में पैलेट गन के प्रयोग की अनुमति, वन रैंक वन पेंशन जैसे क़दम उठाए। और इन सब बातों के द्वारा आप किसको लेजिटिमेसी दे रहे हैं? राहुल गाँधी को? महागठबंधन के चोरों को? अपनी ज़मीन तलाशिए कि कहाँ खड़े हैं आप। 

आप ही तो वो हैं न जो आरोप लगाते हैं कि मोदी ही हर जगह है, किसी को अपना काम करने नहीं देता है? अब जब वो एयरफ़ोर्स या आर्मी को अपना काम करने दे रहा है, और वो प्रधानमंत्री के तौर पर लोगों के लिए लोककल्याणकारी योजनाओं पर काम कर रहा है, तो आपको समस्या है कि वो रोता हुआ कहीं कोने में क्यों नहीं दिखता? 

मैं चाहूँगा कि ये सवाल पूछने वाले लोग इस सवाल के बाद के तर्क भी रखें कि रैलियाँ करना गलत क्यों है, कैसे है। साथ ही, लोग यह भी बताएँ कि कितने दिन कमरे में बंद रहने के बाद मोदी को बाहर आकर काम शुरू करना चाहिए था। प्रश्नवाचक चिह्न को गले में स्वैग बनाकर घूमने वाली जनता यह भी बता दे कि पुलवामा के कुछ ही दिन बाद छः जवान MI17 हेलिकॉप्टर क्रैश में बलिदान हुए, कुपवाड़ा में कल ही चार जवान हुतात्मा हुए, तो क्या उनके लिए शोक न मनाया जाए? 

घाटी में स्थिति इतनी संवेदनशील है कि हर सप्ताह हमारे जवानों का बलिदान होता है। आप जरा सोचिए कि प्रधानमंत्री रुक जाए, कैबिनेट रुक जाए? या जो इससे निपटने के लिए सक्षम हैं, उन्हें इस पर कार्य करने दे? हर जवान का शव किसी एक परिवार, उसके यूनिट, उसके दोस्तों, उसके गाँव-घर के लिए उतना ही महत्व रखता है, जितना एक साथ चालीस का आना। एक भी जवान बिना युद्ध के नहीं बलिदान होना चाहिए, लेकिन देशविरोधी ताक़तें ऐसा होने नहीं देतीं। 

यही कारण है कि हम लगातार उनसे संघर्ष करते रहते हैं। हम रुकते नहीं क्योंकि काम करते रहना हमें संवेदनहीन नहीं बनाता। सवाल तो यह भी है कि आप पुलवामा के बलिदानियों की चिता की आग और कब्र की मिट्टी के दबने का भी इंतजार कहाँ कर पाए, आप तो स्वयं ही ऐसे सवाल उठाकर अपनी संवेदनहीनता का उम्दा सबूत पेश कर रहे हैं। 

आपने ऑफिस जाना बंद कर दिया? आपने लोगों से बात करना छोड़ दिया? ओह! आप तो जनप्रतिनिधि नहीं हैं। लेकिन आप मानव तो हैं न? वस्तुतः, आप तो उससे भी आगे देशभक्त व्यक्ति हैं जो कि प्रधानमंत्री से ज़्यादा ध्यान देते हैं ऐसी बातों पर, फिर आप क्या कर रहे हैं संवेदना प्रकट करने के लिए? फेसबुक पोस्ट लिखकर, व्हाट्सएप्प में ये पूछ रहे हैं कि मोदी रैलियाँ क्यों कर रहा है? क्या कहीं लिखा है कि जनप्रतिनिधि ही संवेदनशील होता रहे? पूछिए ये सवाल, आपको जवाब मिल जाएगा। 

आप बेचैन प्राणी हैं, या अजेंडाबाज व्यक्ति जिसके लिए कहीं से ऐसे सवाल भेजे जाते हैं, और आप बिना सोचे पूछ देते हैं। मैं बताता हूँ आपको कि अगर प्रधानमंत्री रुक जाता तो आप क्या करते। आपके पास सवाल पहुँचाए जाते कि राजनाथ सिंह फ़लाँ जगह स्पीच क्यों दे रहे हैं? फिर वो भी चुप रहते तो आप ले आते कि हर्षवर्धन जी फ़लाँ जगह पर फ़ीता काट रहे थे… आप ये चलाते रहेंगे क्योंकि आपको सैनिकों की चिंता नहीं है, आपको ब्राउनी प्वाइंट्स लेने हैं। दुःख की बात यह है कि आप अपनी इस नीचता को भी ठीक से स्वीकार नहीं पाते।

‘बिहार के शहीदों को मेरा नमन, देश उनके परिवार के साथ खड़ा है’: संकल्‍प रैली में PM

बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान में एनडीए की संकल्प रैली में आज 10 साल बाद पीएम नरेंद्र मोदी और बिहार के सीएम व जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार एक साथ किसी राजनीतिक मंच पर दिखाई दिए।

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत भारत माता की जय और बिहार के शहीदों को नमन करते हुए की। इसके बाद उन्होंने अपने सरकार की उपलब्धियों को गिनाया। उन्होंने कहा कि बिहार के लिए एनडीए सरकार ने कई योजनाएँ चलाई। उन्होंने कहा कि एनडीए की सरकार ये सुनिश्चित करने में जुटी है कि बिहार में विकास की पंचधारा यानि बच्चों को पढ़ाई, युवा को कमाई, बुजुर्गों को दवाई, किसान को सिंचाई और जन-जन की सुनवाई, ये सुनिश्चित हो।

PM मोदी ने कहा कि बिहार ने विकास की जिस रफ्तार को पकड़ा है, वो और गति पकड़े इसके लिए केंद्र की NDA सरकार ने निरंतर प्रयास किया है। कुछ दिन पहले ही बरौनी में ₹30 हज़ार करोड़ से अधिक की परियोजनाओं की सौगात बिहार को दी गई थी। ये बिहार के विकास के लिए किए जा रहे निरंतर प्रयासों की एक झलक भर थी। यहाँ गांव और शहरों की सड़कों और नेशनल हाईवे का चौड़ीकरण हुआ है। जो पुराने पुल हैं, उनको सुधारा जा रहा है, नए फ्लाइओवर्स का निर्माण किया जा रहा है। रेलवे की पुरानी व्यवस्थाओं में सुधार किया गया है, उनका बिजलीकरण हो रहा है। पटना रेलवे जंक्शन को नए रंग-रूप में आप सभी देख ही रहे हैं।

पीएम मोदी ने कहा कि चारे के नाम पर क्या-क्या हुआ है, ये बिहार के लोग बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं। ये जो लूट-खसोट, चोरी-चकारी, बेनामी प्रॉपर्टी और बिचौलियों की संस्कृति बिहार और देश की राजनीति में दशकों तक आम बात हो चुकी थी, उसको बंद करने की हिम्मत हमने दिखाई है। जो गरीबों का हक छीन कर अपनी दुकान चला रहे थे, वे चौकीदार से परेशान हैं। इसीलिए चौकीदार को गाली देने की साजिश चल रही है। आप यकीन रखिए, आपका चौकीदार हर तरीके से चौकन्ना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली की कुछ और प्रमुख बातें

  • एनडीए सरकार ने बिना किसी वर्ग के आरक्षण को छेड़े हुए सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण दिया।
  • किसानों को बीज, कीटनाशक, चारा, खाद के लिए कर्ज लेने की जरूरत नहीं होगी। बिहार के लोग जानते हैं कि चारा के नाम पर क्या-क्या हुआ है।
  • देश के अन्न दाताओं के लिए किसान सम्मान योजना को जमीन पर उतार दिया गया है। जिसमें बिहार में करीब डेढ़ करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा।
  • सौभाग्य योजना के तहत गरीबों को मुफ्त बिजली देने का काम किया गया है। और बिहार में नीतीश कुमार ने इस काम को बखुबी करते हुए घर-घर तक बिजली पहुँचाया है।
  • पटना एयरपोर्ट को 1200 करोड़ रुपये के खर्च से विस्तार दिया जा रहा है। इसे उड़ान योजना से जोड़ा जा रहा है। रेल के साथ हवाई यात्रा को सस्ता किया जा रहा है।
  • बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर को प्राथमिकता दी जा रही है। अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, रोड पुल और रेल की व्यवस्था में सुधार किया जा रहा है।
  • पटना में मेट्रो व्यवस्था शुरू किया गया है। पटना के लोगों को पाइप लाइन से गैस मिलेगा। और नीतीश कुमार ने नल से जल देने का संकल्प किया है। यह बदलाव नीतीश कुमार और सुशील मोदी समेत एनडीए के सभी लोग धन्यवाद के पात्र हैं।
  • पीएम मोदी ने कहा नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री ने बिहार को पुराने दौर से बाहर निकाला। नीतीश कुमार और सुशील की जोड़ी ने बिहार के विकास के लिए अद्भूत काम किया है।
  • पीएम मोदी ने संबोधन में शहीदों के परिवार और शुक्रवार को शहीद हुए बेगूसराय के सीआरपीएफ जवान पिंटू सिंह को सलाम किया।
  • एनडीए की संकल्प रैली में पीएम मोदी ने गांधी मैदान में संबोधन से पहले भारत माता की जय का नारा लगवाया।
  • नीतीश कुमार ने कहा बिहार में बिजली अब घर-घर पहुँच गई है और अब लालटेन की कोई जरूरत ही नहीं रह गई है।
  • नीतीश कुमार ने विपक्षों पर निशाना साधते हुए कहा महात्मा गांधी ने कहा था सिद्धांत पर राजनीति करनी चाहिए, लेकिन यहाँ सिद्धांत को ताख पर रखकर लोग राजनीति कर रहे हैं।
  • वृद्धों का सम्मान परिवार में बना रहे। इसके लिए बिहार सरकार की ओर से मुख्यमंत्री वृद्धा पेंशन योजना लागू किया गया है। जिसमें 60 साल की उम्र में बिना नौकरी पेशा वाले लोगों को पेंशन दिया जाएगा। एक अप्रैल से इसका लाभ मिलने लगेगा।
  • नीतीश कुमार ने पीएम मोदी से वादा किया कि 2 अक्टूबर 2019 तक बिहार के हर घर में शौचालय होगा।
  • नीतीश कुमार ने किसानों को लेकर शुरू की गई योजना के लिए पीएम मोदी को धन्यवाद दिया।
  • एयरफोर्स के विंग कमांडर अभिनंदन को लेकर नीतीश कुमार ने कहा कि मोदी सरकार ने उन्हें जिस तरह से पाकिस्तान से वापस लाने का काम किया है। यह काफी काबिले तारीफ है। अभिनंदन ने जिस तरह से बहादुरी दिखाई है इसके लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूँ।
  • एनडीए के संकल्प रैली में बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पुलवामा अटैक और उस पर मोदी सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के लिए उन्हें बधाई देता हूँ और सेना को भी सलाम करता हूँ।

5 महीने में जन्म, वजन सिर्फ 492 ग्राम: मौत को मात दे अब घर लौटी बच्ची – मेडिकल साइंस का RECORD

“जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोई” इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया कर दिखाया है अहमदाबाद में जन्मी नन्ही सी जान जिआना ने। जिआना का बचना किसी चमत्कार से कम नहीं है और इस बात को डॉक्टर भी मान रहे हैं।

दरअसल अहमदाबाद में जन्मी इस बच्ची को लेकर एक अनोखा मामला सामने आया था। यहाँ एक बच्ची का जन्म 22 हफ्ते के बाद ही हो गया। जिसका वजन महज 492 ग्राम और लंबाई 500 एमएल दूध के पाउच जितनी थी। इस बच्ची के साथ इसके जुड़वा भाई का भी जन्म हुआ था। जिसका वजन 530 ग्राम था।

इन दोनों बच्चों के जन्म लेते ही डॉक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई दवा या इलाज नहीं है जिससे इन प्री मैच्योर बच्चों को बचाया जा सके। मगर बच्चों के माता- पिता ने डॉक्टर से निवेदन किया कि उनके बच्चे बचेंगे या नहीं, ये तो उनकी किस्मत में है। मगर उनके बच्चों का इलाज किया जाए। जिसके बाद डॉक्टरों ने नवजातों का इलाज शुरू किया। दोनों बच्चों को एनआईसीयू में रखा गया, जहाँ बच्ची के भाई ने तो 102 दिन बाद दम तोड़ दिया, लेकिन बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है।

बच्ची का इलाज करने वाले डॉ. आशीष मेहता ने बताया कि इंडियन कलैबरेटिव में जो आँकड़े मौजूद हैं, उसके अनुसार जिआना सबसे कम उम्र और सबसे छोटी ऐसी बच्ची है, जो जिंदा है। इससे पहले भारत के इस रिकॉर्ड में मुंबई के एक बच्चे का नाम था, जिसका जन्म 22 हफ्ते में हुआ था। हालाँकि उसका वजन 620 ग्राम था। वहीं हैदराबाद की एक बच्ची ने 25 हफ्ते में जन्म लिया था, जो कि 375 ग्राम की थी।

बच्ची की माँ दीनल ने कहा कि उनकी बेटी का बचना मुश्किल था लेकिन उन्हें भगवान पर पूरा भरोसा था। दीनल कहती हैं कि इससे पहले वो दो बार माँ बनने से वंचित रह गई थी। वो जानती थीं कि इस बार अगर उनके गर्भ से बच्चों का जन्म होगा तो उन्हें मातृत्व का सुख अवश्य मिलेगा। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी का नाम जिआना रखा है, जिसका अर्थ होता है- ईश्वर का कृपा पूर्ण जीवन।

मिसाल: देश के लिए बलिदान हुए दीपक, BJP के मंत्री चुकाएँगे उनका होमलोन

वीरगति को प्राप्त हुए सुरक्षाबलों को लेकर वैसे तो कई नेताओं ने अपने-अपने तरीके से संवेदनाएँ व्यक्त की हैं, मगर उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने इनके सम्मान में जो कदम उठाया है, वह बेहद सराहनीय है। सतीश महाना के इस कदम ने राजनेताओं के लिए एक मिसाल पेश कर दी है।

यूपी के मंत्री सतीश महाना ने वीरगति को प्राप्त हुए दीपक पांडेय का 20 लाख रुपए का होम लोन व्यक्तिगत तौर पर चुकाने का ऐलान किया है। बता दें कि दीपक, कानपुर के चकेरी स्थित मंगला विहार के रहने वाले थे। वो बुधवार को बड़गाम में आतंकियों का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। दीपक को शुक्रवार को हजारों लोगों ने नम आँखों से अंतिम विदाई दी। देश के लिए बलिदान हुए इस वीर की एक झलक पाने के लिए यहाँ जनसैलाब उमड़ पड़ा था। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और कैबिनेट मंत्री सतीश महाना भी यहाँ उनके परिजनों को ढाढस बंधाने पहुँचे थे।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट

इसी दौरान मंत्री सतीश महाना को पता चला कि दीपक ने घर बनवाने के लिए किसी बैंक से होम लोन लिया था। इस ख़बर को दैनिक जागरण ने प्रकाशित किया था। ख़बर में इस मानवीय पहलू का जिक्र किया गया कि इकलौते बेटे दीपक ने तो देश के लिए बलिदान दिया, लेकिन उनके माता-पिता बैंक का यह कर्ज कैसे चुकाएँगे। इस खबर पर कैबिनेट मंत्री सतीश महाना ने तुरंत संज्ञान लिया और दीपक के परिजनों से मिले। उन्हें पता चला कि दीपक ने एलआईसी हाउसिंग से होम लोन लिया था। इसके बाद मंत्री ने कहा कि वो स्टेटस निकालकर देखेंगे कि लोन की कितनी राशि बकाया है। उसके बाद से खुद उसे चुकाएँगे।

होम लोन चुकाने की बात पर सतीश महाना का कहना है कि दीपक पांडेय ने देश के लिए बलिदान दिया है, इस का कर्ज तो कोई नहीं उतार सकता। मगर वो उनके माता-पिता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने ये होमलोन चुकाने की जिम्मेदारी ली है।

‘खलनायकों’ और ‘डरे’ हुए ख़ानों से आगे का नाम है अभिनंदन, पर्दे के हीरो से आगे आ चुके हैं हम

फ्लेमिंग की जेम्स बॉन्ड श्रृंखला किताबों के रूप में प्रसिद्ध रही, लेकिन उससे ज्यादा प्रसिद्धि शायद फिल्मों की वजह से मिली होगी। जैसा कि सबको पता है, इसमें जेम्स बॉन्ड एक ऐसे ब्रिटिश जासूस बने होते हैं जो साजिशों से देश-दुनियाँ को बचा रहा होता है। जेम्स बॉन्ड श्रृंखला की प्रसिद्धि के ही समय का कॉन्ग्रेसी जुमला, “इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है!” संभवतः कॉन्ग्रेसियों ने अपने बगलबच्चा कॉमरेडों से सीखा होगा। हर कामयाबी का श्रेय खुद ले लेना और नाकामियों के लिए किसी बेचारे मासूम को कुर्बान करना उनकी आदतों में शुमार रहा है।

शुरुआत की दौर की फिल्मों में जब जेम्स बॉन्ड का किरदार साव्न कॉनरी निभा रहे होते थे, तब किताब पर आधारित जेम्स बॉन्ड की कहानी होती थी मगर बाद में अलग से भी, सिर्फ फिल्मों के लिए कहानियाँ गढ़ी गईं। हर बार जेम्स बॉन्ड विदेशी साजिशों से भी नहीं निपट रहा होता। एक-आध फ़िल्में ऐसी भी हैं, जिसमें उसका शत्रु उतना स्पष्ट नहीं है। ऐसी एक फिल्म थी “टूमोरो नेवर डायज़” जिसका खलनायक एक बड़ी सी मीडिया कंपनी का मालिक होता है। वो अपने फायदे के लिए तीसरा विश्व युद्ध करवाने पर तुला होता है।

मीडिया के बड़े आदमी इलियट कार्वर को खलनायक के रूप में दिखाती इस फिल्म की ख़ास बात इसके किरदारों के नाम, उनकी भूमिका में भी दिखेंगे। खलनायक के साथ जो साइबर-टेररिस्ट काम कर रहा होता है, उसका नाम हेनरी गुप्ता, जी हाँ, गुप्ता था। इसमें जो लड़की जेम्स बॉन्ड की मदद कर रही होती है, वो चीनी जासूस थी। कंप्यूटर-इन्टरनेट जगत में बढ़ते भारतीय प्रभाव और चीन के प्रति बदल रहे नजरिये की झलक दिखती है। फिल्म की शुरुआत में ही खलनायक कहता है, “अच्छी खबर वो है जो बुरी खबर हो!”

बुरी खबरों से टीआरपी ज्यादा मिलती, इसलिए मीडिया वाला बुरी खबर फैलाना चाहता था। ये बिलकुल भारत और इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ (ना)पाकिस्तान के हालिया घटनाओं में दिख जाएगा। सीआरपीएफ के जवानों का मारा जाना उनके लिए अच्छी खबर थी, क्योंकि वो हमारे लिए बुरी खबर थी। एक विंग कमांडर के जहाज का शत्रु सीमा में दुर्घटनाग्रस्त होना उनके लिए अच्छी खबर थी, क्योंकि वो हमारे लिए बुरी खबर थी। गिद्ध और बच्चे वाली तस्वीर जैसा ही वो घात लगाए इंतजार करते रहे ताकि लाशों से बोटियाँ नोची जा सके।

आतंकियों का हमला हम पर लगातार 1947 से ही जारी है। सीधी लड़ाई में बार-बार हार जाने वाला पड़ोसी ऐसे जेहादियों को चुनता है, जो परोक्ष युद्ध जारी रख सके। हम हमलों का जवाब दें तो वो बेशर्मी से #SayNoToWar भी कहते हैं! युद्ध चाहने वालों को सीमा पर क्यों जाना चाहिए? अक्षरधाम, मुम्बई तो क्या सीधा संसद पर भी तो हमला कर चुके हैं। मैं सीमाओं से बहुत दूर भी युद्ध क्षेत्र से बाहर कहाँ हूँ? शांति और अमन का ये सन्देश लेकर आप लश्कर और जैश-ए-मुहम्मद के कैंप में क्यों नहीं जाते ये तो #शांतिदूतों को बताना चाहिए!

फिल्मों से बात शुरू हुई थी तो “फ़िल्में समाज का आईना होती हैं” वाला जुमला भी याद आता है। एकतरफा मुहब्बत में जैसे मासूम लड़कियों पर एसिड अटैक होता है, वैसी ही फिल्म “डर” के आने के बाद से काफी कुछ बदला था। लोग उस दौर में “खलनायक” वाले संजय दत्त और शाहरुख़ जैसे बाल रखने लगे थे। कई बच्चों का नाम भी “डर” के उस दौर में “राहुल” पड़ गया था। कल जब अभिनन्दन लौटे तो कई बच्चों का नाम अभिनन्दन रखे जाने की खबर भी आने लगी। रील लाइफ से मुँह मोड़कर भारत अब रियल लाइफ के नायकों को “हीरो” मानने लगा है।

बाकी जिन्हें ये असहिष्णुता लगती हो उन्हें समझना होगा कि आबादी में युवाओं-युवतियों का प्रतिशत बढ़ते ही भारत अब बदल गया है। इमरान के लिए अगर क्रिकेट भी जिहाद है तो उनके जुल्मो-सितम पर ही नहीं, ऐसी हरकतों के समर्थकों के दोमुँहेपन के लिए भी असहिष्णुता बरती जाएगी। अन्याय के प्रति असहिष्णु होना ही चाहिए।

Pak पीएम इमरान को बताया शांति का मसीहा, सस्पेंड हुए मास्टर साब

भारत-पाकिस्तान में तनाव के बीच एक शिक्षक ने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान को शांति का मसीहा बता दिया। मास्टर साब सोचे होंगे कि वाहवाही मिलेगी, लेकिन मिला सस्पेंशन लेटर। इन दिनों सोशल मीडिया पर ऐसी टिप्पणियों का सिलसिला जारी है और ऐसे ही मामले में ये शिक्षक भी लपेटे में आ गए।

दरअसल ये मामला उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर का है। यहाँ के एक शिक्षक ने पाकिस्तान की तरफ से भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करने के बाद किसी व्हाट्सऐप ग्रुप में इमरान खान को शांति का मसीहा बताते हुए उन्हें सलाम किया। इस मैसेज को लेकर जब किसी ने शिकायत की तो मास्टर साब को संबंधित जाँच के बाद तत्काल सस्पेंड कर दिया गया।

बता दें कि प्राथमिक विद्यालय इसौंली के सहायक शिक्षक अमरेंद्र कुमार आजाद ने यूपीपीएसएस लम्भुआ नाम से बने व्हाट्सऐप ग्रुप में एक पोस्ट डाली थी। इसमें उन्होंने इमरान खान को शांति का मसीहा तो बताया ही और साथ ही देशभक्ति के विरोध में और भी कई सारे पोस्ट डाले थे।

इस मामले के सामने आने के बाद खंड अधिकारी बल्दीराय ने जाँच करते हुए शिक्षक अमरेंद्र से उनके पोस्ट के लिए स्पष्टीकरण मांगा और जब वो अमरेंद्र की स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुए तो उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। इसके साथ ही मामले पर आगे की जाँच के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को फाइल बढ़ा दी गई है। उन्हें ये रिपोर्ट 15 दिनों के अंदर देनी होगी और फिर आगे की कार्रवाई जाँच रिपोर्ट के सामने आने के बाद की जाएगी।

राष्ट्रवाद है, सिगरेट नहीं कि अल्ट्रा और माइल्ड होगा

‘नफ़रतों का दौर है’, ये एक ऐसा जुमला है जो आमतौर पर माओवंशी कामपंथी छद्मबुद्धिजीवी गिरोह द्वारा लगातार इस्तेमाल होता रहता है ये बताने के लिए कि इस देश की बहुसंख्यक जनसंख्या, इस देश के करोड़ों राष्ट्रवादी और वैसे सारे लोग जो देश की अखंडता बचाने का हर प्रयास करते हैं, वो लोग नफ़रत फैला रहे हैं। 

हालाँकि, इन पाक अकुपाइड पत्रकारों (Pak Occupied Patrakaar) ने इतनी नफ़रत फैलाई है सोशल मीडिया पर कि अगर आदमी कुछ वर्षों से देश में न रह रहा हो, और अचानक आए, तो वो शायद हवाई जहाज पर फोन ऑन करके यहाँ के ख़बरों को पढ़ने लगे, या यहाँ की पत्रकारिता के समुदाय विशेष के ट्वीट आदि पढ़ ले तो एयरपोर्ट से ही लौट जाएगा। उसे यह लगने लगेगा कि बाहर में टैक्सी वाला उससे उसका नाम पूछेगा, और कहीं सुनसान में ले जाकर काट देगा।

ये विषाक्त वातावरण बहुत ही क़ायदे से, व्यवस्थित तरीके से, गिरोह के पूरे विश्व में फैले नेटवर्क के द्वारा बनाया गया है। हमारे देश के ऊपर जो सहिष्णुता का ओज़ोन लेयर था, उसमें हमारे इन कामपंथी गिरोह के लोगों ने अपनी हानिकारक बातों से ऐसा छेद किया है कि वो अभी तो रिपेयर होने से रहा। जब लगता है कि अब ये कौन सा मुद्दा लाएँगे, तब पता चलता है कि इन्होंने नई परिभाषाएँ और शब्दावली तैयार कर ली हैं। 

पुलवामा हमला हुआ, पूरा देश एकजुट होकर खड़ा हो गया। इन्होंने पहले पीएम को कोसा कि कैसे हो गए हमले, उसने क्या किया है। उसके बाद गिरोह के छुटभैये लोगों ने जवानों की जाति पता कर ली। उसके बाद उन्होंने ‘राष्ट्रवाद’ को एक गाली या नकारात्मक भाव की तरह दिखाते हुए इसे चुनाव से जोड़ा, और साथ ही, इसमें भी जाति निर्धारण कर दी कि ‘भारत माता की जय’ बोलने वाले और कैंडल लेकर मार्च करने वाले लोग, बड़े शहरों में रहने वाले ऊँची जाति के हिन्दू हैं। 

चालीस जवानों की बलि चढ़ गई, और देश अपनी संवेदना प्रकट कर रहा था तो देश और सेना के साथ खड़े होने को गाली की तरह डीलेजिटिमाइज करने की तमाम कोशिशें होती रहीं। आम जनता ऐसे मौक़ों पर पार्टी, विचारधारा से ऊपर आकर जवानों के साथ खड़ी हो जाती है। लेकिन इस समय जीभ लपलपाती धूर्त गिरोह उन्हें नकारने में लग जाता है कि ‘भारत माता की जय’ बोलना ‘हायपर नेशनलिज्म’ है। 

उसके बाद आने वाले कुछ दिनों में नेशनलिज्म को गाली बनाने के लिए ‘हायपर’, के बाद ‘अल्ट्रा नेशनलिज्म’, ‘नीयो नेशनलिज्म’, ‘मसकुलर नेशलिज्म’, और ‘जिंगोइज्म’ नामक जुमले फेंके जाते हैं। आप देखेंगे कि जब देश संवेदना प्रकट कर रहा होता है, जब देश भावुक होता है, तब ये ट्विटर के शेर, इनमें से एक-एक विशेषण बाँट लेते हैं, और धिक्कारने लगते हैं वैसे तमाम लोगों को, जिनके लिए ‘भारतीयता’ ही एकमात्र पहचान रह जाती है। 

उसके बाद इनके विश्लेषण आते हैं कि ‘भारत की माता की जय बोलने से कौन मना कर रहा है, लेकिन इतना जोर से क्यों बोलना?’ ये आपको बताएँगे कि आप अपनी भावनाएँ उन सैनिकों के लिए मुँह के फैलाव को कितने सेंटीमीटर तक रखकर, कितने डेसिबल में चिल्लाएँगे तो वो नेशनलिज्म रहेगा, और कितने के बाद वो ‘अल्ट्रा’ हो जाएगा।

ऐसे समय में ऐसे लोग भी खूब निकल कर आते हैं जो ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ से लेकर आतंकियों को शुक्रिया कहते नज़र आते हैं। अब इन दीमकों को कोई पुलिस के सुपुर्द कर देता है तो वो गुंडा कैसे हो गया? गुंडा तो वो है जो इस देश का खाता है, यहाँ की सुविधाएँ लेता है, और ऐसे मौक़ों पर आतंकियों का हिमायती बना फिरता है। 

ये तो निचले स्तर के गुंडे हैं, लेकिन इन्हीं मौक़ों पर आपको देश के तथाकथित ओपिनियन मेकर्स भी दिख जाएँगे, जो हमेशा ‘नया एंगल’ ले आते हैं। पाकिस्तान की मजबूरी और आतंकी देश का तालिबानी प्रधानमंत्री इनके लिए ‘मोरल हाय ग्राउंड’ लेने वाला और ‘स्टेट्समेन’ इमरान खान हो जाता है। वो क्यूट और कूल हो जाता है क्योंकि उसने धूर्तता की चाशनी में डुबोकर कुछ शब्द बोले हैं, जो उसकी मजबूरी थी।

उसके बाद जब देश में पाकिस्तान को गाली पड़ती है तो ये विशेषणों की फ़ैक्टरी चालू हो जाती है। हर तरफ से ऐसे नैरेटिव बनाने की कोशिश होती है, जहाँ राष्ट्रवादी गुंडा और लुच्चा हो जाता है! मतलब, इस देश में मातृभूमि के लिए जान देने की क़समें खाना लफुआगीरी हो जाती है! आप जरा सोचिए, कि भारत छोड़कर दुनिया में कोई और देश होगा जहाँ पाकिस्तानी आतंकी ब्लास्ट करके चालीस जवानों की हत्या कर देते हैं, और हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी जो देश-विदेशों में आख्यान देते हैं, अख़बारों में कॉलम लिखते हैं, उन्हें घेरते हैं जो देश के लिए खड़ा होता है। 

इनसे जब आप पूछिएगा कि इन विशेषणों से सज्जित राष्ट्रवाद की परिभाषा बताएँ, इसको विस्तार से बताएँ, तो वो वही बात करेंगे, एक ही बात कि ‘भारत माता की जय’ इतने जोर से क्यों बोलना, दूसरों से क्यों बुलवाना, जो आतंकियों को इंशाअल्लाह लिखता है उसको क्यों पीटना… 

जब एक ही परिभाषा है, और वो भी बेकार ही है, तो इतने वैरिएशन क्यों गढ़ना? सेक्सी लगता है सुनने में? जीभ ऐंठ के ‘मस्कुलर नेशनलिज्म’ बोलने में अलग चरमसुख मिलता है। वैसे भी वरायटी तो जीवन का मसाला है, एक ही बात को तीस तरह से कहते रहिए। 

लेकिन सत्य यही है कि आपके ‘हायपर’, ‘अल्ट्रा’, ‘मस्कुलर’ आदि के चिल्लाने की आवाज़ का डेसिबल ‘भारत माता की जय’ बोलने वालों से ज़्यादा ही होता है। लेकिन याद रहे चोर जितना भी चिल्ला ले कि वो चोर नहीं है, उससे साबित कुछ नहीं होता। 

राष्ट्रवाद अपने हर रूप, हर रंग, हर तरीके में सुंदर है। अगर अपनी मातृभूमि के लिए चिल्लाना गुनाह है तो लोगों को अपना गला हर दिन खराब करना चाहिए। ऐसे गुनाह होते रहने चाहिए। इन्हीं गुनाहों ने इस देश को एकजुट किया है। ऐसे हजार गुनाह भारत माता के नाम!