Monday, October 7, 2024
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पवित्र ग्रंथों में लिखा है, राम समस्त दुनिया के भगवान हैंः फ़ारुक़ अबदुल्ला

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फ़ारुक़ अब्दुल्ला ने भगवान राम को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि क्या भगवान राम सिर्फ़ हिंदुओं के भगवान हैं? हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई- हम सभी भाई हैं और भारत हर भारतीय के लिए है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी धर्म के लोगों को देश में सम्मान के साथ जीने का समान अधिकार है।

आम आदमी पार्टी की ओर से आयोजित विपक्ष की महारैली में अब्दुल्ला ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को आगामी लोकसभा चुनाव में हराना चाहिए क्योंकि, वे लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों के लिए ‘खतरा’ हैं।

‘मुल्क़ को बचाना के लिए क़ुर्बानी की ज़रूरत’

अब्दुल्ला ने कहा, “जब तक हमारे अपने दिल साफ़ नहीं होते हम उन्हें (मोदी और शाह को) आसानी से नहीं हटा सकते। अगर मुल्क़ को बचाना चाहते हैं तो हमें पहले कुर्बानी देने की ज़रूरत है और ऐसा देश के लिए करो न कि कुर्सी के लिए।”

उन्होंने कहा कि आज हम धार्मिक आधार पर हिंदुओं और मुस्लिमों के तौर पर बँटे हुए हैं। मैं हिन्दुओं से पूछना चाहता हूँ कि क्या राम सिर्फ़ आपके राम हैं? यह पवित्र ग्रंथों में लिखा है कि राम पूरी दुनिया के भगवान हैं। वह सब के भगवान हैं।

उन्होंने अफ़सोस जताया कि मुस्लिम समुदाय के लोगों को बताया जा रहा है कि उन्हें क्या नहीं करना है या कहाँ नहीं जाना है और पूछा कि क्या यह देश उनके आक़ाओं का देश है?

विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी पर साधा निशाना

महारैली के दौरान अब्दुल्ला समेत सभी नेताओं ने पीएम मोदी और बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, “लोगों ने 12वीं कक्षा पास व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बनाया है, लेकिन उन्हें 2019 में अपनी गलती को दोहराना नहीं चाहिए।

केजरीवाल ने कहा कि इस बार यह गलती मत दोहराइएगा और किसी शिक्षित को ढूंढिए, क्योंकि 12वीं कक्षा पास व्यक्ति को यह समझ नहीं होती कि वह अपने हस्ताक्षर कहाँ कर रहा है।” बता दें कि इस दौरान ममता बनर्जी, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू समेत कई विपक्षी नेता भी मौजूद रहे।

कश्मीरी पंडितों जैसा न हो जाए हमारा हाल: AMU के छात्र ने ख़ून से लिखा PM मोदी को पत्र

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के हिंदूवादी छात्र सौरभ चौधरी ने ख़ून से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पत्र में सौरभ ने राष्ट्रविरोधियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने की माँग की है। धर्म समाज महाविद्यालय के छात्र नेता सौरभ ने पीएम को लिखे पत्र में AMU में चल रही देश विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने की माँग की। सौरभ ने पीएम से भावुक अपील करते हुए लिखा कि कहीं AMU में पढ़ने वाले हिन्दू छात्रों का हाल भी कश्मीरी पंडितों जैसा न हो। ज्ञात हो कि कश्मीरी पंडितों को आतंकियों ने कश्मीर घाटी से भगा दिया था, जिस से वो अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन व्यतीत करने को मजबूर हो गए।

अपने पत्र में सौरभ ने लिखा:

“AMU देश विरोधियों का अड्डा बन गया है। आए दिन यहाँ हिन्दू छात्रों के साथ मारपीट होती है। कल भी हिन्दू छात्रों के साथ AMU प्रशासन की मौजूदगी में मारपीट की गई। ऐसी घटना होने पर हिन्दू छात्रों का यहाँ पढ़ना मुश्किल हो गया है। AMU राष्ट्रविरोधी ताक़त और आतंकवादियों का अड्डा बन गया है। कल भी दो महिला पत्रकारों पर AMU छात्रों ने हमला कर मीडिया की स्वतंत्रता पर रोक लगाने का प्रयास किया गया।”

बता दें कि छात्रों के गुटों में हुई भिड़ंत के बाद यूनिवर्सिटी में हिंसा भड़क गई थी। AMU के छात्रों द्वारा रिपब्लिक टीवी के क्रू को परेशान किया गया था जिसके बाद उपद्रवी छात्रों के ख़िलाफ़ धारा 307 और धारा 153 के तहत टीवी क्रू ने स्थानीय पुलिस में शिक़ायत दर्ज कराई थी।

AMU कैंपस में उपद्रवी छात्रों ने रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को धमकाया था, जिसमें एक महिला पत्रकार भी शामिल थी। भीड़ ने महिला क्रू मेंबर्स को धमकी दी थी कि किसी भी क़ीमत पर महिला होने की वजह से उन्हें नहीं बख़्सा जाएगा। यही नहीं छात्रों ने महिला पत्रकार के साथ अभद्रता करते हुए उसका कैमरा भी तोड़ दिया था।

सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते AMU के छात्र

बुधवार (फरवरी 13, 2019) को AMU में छात्रों ने प्रधानमंत्री मोदी व मुख्यमंत्री योगी के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की। छात्रों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा को उखाड़ फेंकने की बात कही। उन्होंने कुलपति के आवास का घेराव कर ‘संघी वीसी मुर्दाबाद’ के नारे भी लगाए। छात्रों ने कहा कि सरकार इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग देकर वोटों का ध्रुवीकरण कराना चाहती है। उन्होंने कैम्पस की सारी समस्याओं के लिए भाजपा को ज़िम्मेदार ठहराया।

फ़िलहाल इंतज़ामिया ने दोनों गुटों के 8 छात्रों को निलंबित कर दिया है। 24 घंटे से इंटरनेट सेवा भी ठप्प है। डीएम और एसपी AMU सर्कल पर ही डेरा जमाए हुए हैं। पूर्व छात्र संघ उपाध्यक्ष ने नदीम अंसारी ने पुलिस को धमकी देते हुए कहा कि अगर उनके ख़िलाफ़ केस वापस नहीं लिया गया तो वो मोदी-योगी का पुतला दहन करेंगे। गुस्साए छात्रों ने प्रॉक्टर कार्यालय पर भी ताला जड़ दिया

अजय सिंह का आरोप है कि विरोधी गुट के छात्र नेता जैद शेरवानी ने प्रॉक्टर के सामने खुलेआम चेतावनी दी कि कोई तहरीर नहीं दी जाएगी। उन्होंने साथ ही गोलियों से छलनी करने की भी धमकी दी। AMU के छात्रों ने मीडियाकर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर बेल्ट से पीटा था।

बौना, नीचता, अखंड-पाखंड, नारकीय बेशर्मी, राजनैतिक लंपट: किसने दी नेता’जी’ को इतनी गाली

बुधवार (फरवरी 13, 2019) को दिल्ली के जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी ने एक रैली का आयोजन किया। इस रैली का नाम ‘आप’ ने तानाशाही हटाओ, लोकतंत्र बचाओ दिया। अरविंद केजरीवाल की इस रैली में शरद पवार ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज की। जिसके बाद कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि जिन शरद पवार ने भरी संसद में लोकपाल बिल का मज़ाक उड़ाया था, उन्हीं से गले मिलकर लोकतंत्र को बचाने निकले आत्ममुग्ध ‘बौने’ की दाद देनी चाहिए।

अपने ट्वीट में कुमार विश्वास ने केजरीवाल पर परोक्ष रूप से तंज कसते हुए आत्ममुग्ध बौना भी बताया और इल्ज़ाम भी लगाया कि उन्होंने पार्टी को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना लिया है।

कुमार विश्वास ने अपने एक पुराने ट्वीट को रिट्वीट भी किया, जिसमें उन्होंने लिखा, “अपने-अपने दलों में हर संभव तरीक़े से लोकतंत्र की बहुधा निर्मम हत्या करने वाले हमारे नेता जब-जब “लोकतंत्र ख़तरे में है ,लोकतंत्र बचाओ, लोकतंत्र मज़बूत करो”, जैसे प्रलाप निहायत बेशर्मी के साथ करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे हाफ़िज़ सईद, विश्व-शांति पर प्रवचन कर रहा हो।”

ये पहली या दूसरी दफ़ा नहीं है कि कुमार विश्वास ने केजरीवाल को लेकर ट्वीट किया हो। इससे पहले भी कुमार ने अरविंद केजरीवाल पर तीके तंज कसते हुए ट्वीट किए हैं। पश्चिम बंगाल में जब योगी को वहाँ पर जाने से रोका गया था। तब उन्होंने ट्वीट करके लिखा था कि कल एक मुख्यमंत्री कोलकाता पहुँच रहे हैं! उनके वहाँ जाने से लोकतंत्र की रक्षा होगी, पर आज एक मुख्यमंत्री को कोलकाता में प्रवेश से रोक दिया गया, क्योंकि उनके आने से लोकतंत्र नष्ट हो जाता।


प्रिय केजरीवाल जी, मेरे पिता छठी पास हैं, और शिक्षित हैं, शायद आपसे ज़्यादा

पिछले दिनों दो खबरें सामने आईं थीं जिसमें गठबंधन या उनके नेताओं ने भारतीय मतदाताओं का मजाक उड़ाया था। पहली ख़बर चंद्रबाबू नायडू प्रायोजित महागठबंधन के धरने की थी, जिसपर सरकारी ख़ज़ाने से ₹11.2 करोड़ ख़र्च हुए, और वहाँ एक पोस्टर पर लिखा था कि ‘जिसके हाथों में चाय के जूठे कप पकड़ाने थे, उसके हाथों में देश पकड़ा दिया। दूसरी ख़बर कल की है जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री यह कहते पाए गए कि बारहवीं पास व्यक्ति को पिछली बार आपने प्रधानमंत्री बना दिया, इस बार किसी शिक्षित को चुनिए क्योंकि बारहवीं पास वाले को पता भी नहीं होता कि वो अपने हस्ताक्षर कहाँ कर रहा है।

ज़ाहिर है कि मर्यादा, गरिमा और बोलचाल की शालीनता से लेकर फ़ैक्ट चेक का टॉर्च लेकर घूमने वाले, आम आदमी पार्टी एवम् महागठबंधन के समर्थक इस बात से अत्यधिक प्रसन्न होंगे कि लोकतंत्र में एक बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री को, जिसके प्रधानमंत्री बनने की बात (उम्मीदवारी) चुनाव से पहले ही बता दी गई थी, चाय के जूठे कप से लेकर पकड़ने वाला से लेकर अशिक्षित तक कहा जा रहा है। 

पहले तो शिक्षित और अशिक्षित की बात कर लेते हैं कि केजरीवाल जी कहाँ ग़लत हैं। केजरीवाल जी के हिसाब से जो बारहवीं पास करके कॉलेज पास कर लेता है, वही शिक्षित है। उनके बयान से तो यही निकल कर आ रहा है, भले ही उनके समर्थक अब कुछ और बोलें। डिग्री चेक करवा ली, निकला कुछ भी नहीं। लेकिन राग वही छेड़ेंगे क्योंकि केजरीवाल जी जो कह देंगे वही परम सत्य है।

इस स्टेटमेंट में कई स्तर पर ग़लतियाँ हैं। शिक्षित होने का स्कूल या कॉलेज जाने से कोई मतलब नहीं होता। शिक्षित होने, साक्षर होने और डिग्री पाने में बहुत अंतर है। जैसे कि अरविन्द केजरीवाल के बयानों को सुनकर, उनके ट्वीट पढ़कर उनके साक्षर होने का प्रमाण तो मिलता है, लेकिन उनके शिक्षित होने पर बहुत लोगों को संदेह होता है।

फिर भी, लोकतंत्र है, और उसमें संवैधानिक तौर पर किसी निरक्षर, अशिक्षित या डिग्रीधारी लम्पट के भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी नहीं है, इसलिए अरविन्द केजरीवाल के मुख्यमंत्री होने पर मैंने कभी सवाल नहीं उठाया कि दिल्ली वालों ने किस मूढ़मति को मुख्यमंत्री चुन लिया। मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि वो दिल्ली के लाखों लोगों का अपमान होगा जिन्होंने केजरीवाल को अपना वोट और समय दिया। 

बावजूद इसके कि केजरीवाल ने कई बार बेहूदे बयान दिए हैं, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को बायपास कर अपने मन की बात करने की कोशिश की है, इनके कई विधायक औरतों से छेड़छाड़, बुज़ुर्गों से मारपीट से लेकर लाभ के पद जैसे मामलों में फँसे हुए हैं, दिल्ली की जनता को किसी ने यह नहीं कहा कि मैनेजमेंट कोटा से आईआईटी के थिएटर सोसायटी में पहुँचे व्यक्ति को सत्ता मत देना। जनता जाने कि उसे ऑक्सफ़ोर्ड या हार्वर्ड के सर्टिफ़िकेट वाले नेता चाहिए या तेजस्वी यादव जैसे नवीं पास! 

केजरीवाल का तो इतिहास ऐसा रहा है कि बच्चों की क़सम खाने से लेकर जिस ममता, राहुल, शरद पवार, लालू को समय-समय पर भ्रष्टाचार का तमग़ा बाँटते फिरते थे, आज उन्हीं के साथ खड़े होकर भ्रष्टाचार से लड़ने की बातें कर रहे हैं। जनता को यह दिखता हो, तो भी वो केजरीवाल को वोट करे, फिर भी मुझे जनता की समझ पर सवाल करने का कोई हक़ नहीं क्योंकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में ऐसा करना गलत नहीं। 

दूसरी ख़बर ‘चाय के जूठे कप’ वाली है। आप एक बार रुक कर सोचिए कि इस पर क्या प्रतिक्रिया दी जाए। महागठबंधन की राजनीति का स्तर यह है, और शायद यही है। ये दुर्भाग्य है देश का कि सारी विपक्षी पार्टियाँ मिलकर भी सरकार को मुद्दों पर घेरने में असफल रही है। यही कारण है कि बात इस पर अटक जा रही है कि जिसके हाथ में चाय का जूठा कप देना था, उसे सत्ता दे दी!

फ़र्ज़ी के एकेडमिक डिबेट करने लगूँ तो इन लोगों को इतनी बार इस बात पर लानतें भेजी जा सकती है कि कम पड़ जाए, लेकिन सामान्य स्तर पर ही देखते हैं कि ये सोच कहाँ से आती है। ऐसे ही पकौड़ा तलने वाली बात को ऐसे घुमाया गया था मानो यह कहा गया हो कि पकौड़ा तलना ही रोजगार है। आखिर चाय और पकौड़ों से इतनी चिढ़ क्यों है? 

क्या इस संवैधानिक ढाँचे में चाय के जूठे कप धोनेवाले को चुनाव लड़ने पर मनाही है? क्या इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा तीसरी क्लास में असफल रह चुकी महिला नहीं बन सकती? क्या क़ानून या संविधान ऐसा करने से किसी को रोकता है? अगर शिक्षित होना एक शर्त होती तो आख़िर केजरीवाल मुख्यमंत्री का पर्चा कैसे भर लेते हैं? उनसे अशिक्षित और असभ्य व्यक्ति तो भारतीय राजनीति के इतिहास में कहीं नहीं दिखता जो अपने बच्चों की क़सम खाता है, ताकि अपनी छवि को भुना सके! 

आख़िर क्या कारण है कि सारे लोग एक साथ आ रहे हैं और फिर भी एक क़ायदे का मुद्दा नहीं मिल रहा। कमाल की बात तो यह है कि स्टूडियो से भी पार्टियों को समुचित समर्थन मिल रहा है, कई लोग अख़बारों और चैनलों के ज़रिए ऑफ़िसों से ही रैलियाँ कर रहे हैं, फिर भी जो मुद्दा उठाते हैं, वो टिक नहीं पाता।

सुप्रीम कोर्ट से ठुकराए जाने पर कोर्ट को नकार देते हैं। कैग की रिपोर्ट माँगते रहे, जब आई तो उसको नकार दिया। डिबेट की बात की और लोकसभा में चर्चा हुई तो उस वक्त पेपर के जहाज उड़ाने लगे। नौकरियों पर घेरा तो पीएम ने उस पर भी समुचित जवाब दे दिया। राफेल पर हर संस्था ने बता दिया की डील सस्ती है। गंगा साफ दिखने लगी, सड़क-फ्लायओवर-वाटर वे बन रहे हैं। 

कॉलेज और उच्च शिक्षा संस्थान जितनी तेज़ी से इस सरकार ने बनाए, उतनी तेज़ी तो पिछली सरकारों ने नहीं ही दिखाई थी। किसानों के लिए लगातार काम हो रहे हैं। वित्तीय समावेशन हेतु कार्य हो रहे हैं। स्वच्छता अभियान से लेकर उज्ज्वला तक ग्रामीण लोगों की जीवनशैली में बदलाव आ रहा है। बिजली हर घर में लगभग पहुँच चुकी है। मज़दूरों के लिए निश्चित मज़दूरी और बीमा की व्यवस्था हो रही है। ग़रीबों और वंचितों को आरक्षण के दायरे में लाकर सही मायनों में आरक्षण का लाभ पहुँचाने की कोशिश शुरू की जा रही है। 

देश में करोड़ों लोगों के सर पर छत आई है, पीने का पानी उपलब्ध कराया जा रहा है, बिजली पहुँच रही है, घर में एक बैंक खाता है, डायरेक्ट सब्सिडी उन तक पहुँच रही है, उनका इलाज मुफ़्त में बड़े अस्पतालों में हो रहा है, लोग अपना काम शुरू करते हुए लाखों नए जॉब का सृजन कर रहे हैं, व्यापारियों को टैक्स देने में आसानी हो रही है, करोड़ों लोग इनकम टैक्स के दायरे से बाहर हुए हैं, कई करोड़ नए टैक्सदाता जुड़े हैं, भारत विश्व की पाँचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बना, विकास दर लगातार स्थिर और बेहतर है, लेकिन विपक्ष का मुद्दा है कि मोदी कितना पढ़ा-लिखा है! 

अगर साढ़े चार सालों में कोई सरकार इतना काम कर सकती है तो सही में मेरा सवाल यह है कि बाक़ियों ने इतने सालों में क्या किया? उनका ध्यान कहाँ था? और अगर इसे आप किसी भी तरह से टेक्नॉलॉजी आदि से जोड़कर देखते हैं, तो फिर इस सवाल का जवाब क्या है कि विपक्ष को ये सारी बातें दिखती ही नहीं? उन्हें ‘मोदी के पास कितने कपड़े हैं‘, और ‘उसके चश्मे का फ़्रेम कितने रुपए का है’ से लेकर उसकी डिग्री और उसकी पत्नी और माँ तक जाकर ख़त्म हो जाती है। 

ऐसा कब हुआ है कि विपक्ष ने कोई सवाल पूछा हो, चाहे वो कितना भी बेकार क्यों न हो, और सरकार ने उसका जवाब न दिया हो? मुझे ऐसा कोई सवाल याद नहीं आता। ये बात और है कि उन्हें और पत्रकारों के गिरोह को वो जवाब नहीं मिलते जो वो सुनना चाहते हैं, तो वो कुछ और करने लगते हैं। 

अमित शाह के बेटे को लेकर जो मामला बना था, और प्राइम टाइम हुए थे, उसका क्या हुआ? अजित डोभाल के बेटे पर जो काले धन और मनी लॉन्ड्रिंग की सनसनी फैलाई जा रही थी उस पर क्या हुआ? नितिन गडकरी पर जो भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे उसका फॉलोअप कहाँ तक पहुँचा? केजरीवाल ने जो दावे किए थे, उस पर कोर्ट के बाहर सेटलमेंट क्यों करना पड़ता है हर बार? 

चर्चा का स्तर गिरता जा रहा है, और हर नए दिन आपको विपक्ष के डेस्पेरेशन का नया उदाहरण मिल ही जाएगा। मुद्दे हैं ही नहीं कि विपक्ष कोशिश करे मोदी को घेरने की। ग़रीब के घर में शौचालय लगाने से लेकर भारतीय वैज्ञानिकों को गगनयान में बिठाने तक, मोदी सरकार हर विभाग में बेहतर प्रदर्शन करती दिखती है।

सरकारी आँकड़ों में साफ दिखता है कि नीयत सही हो तो साढ़े चार साल में सारे काम बेहतर तरीके, और तेज़ी से, पैसे बचाते हुए, किए जा सकते हैं। भले ही केजरीवाल को कॉलेज पास लोग ही शिक्षित लगते हों, लेकिन देश की जनता जानती है कि मोदी के हाथ में जो क़लम है, उससे किन जगहों पर सिग्नेचर करना है, और किन बातों को सिस्टम से हटाना है। इसलिए, देश की जनता को मोदी के सर्टिफ़िकेट से ज़्यादा केजरीवाल के पिछले चार साल के ट्वीट्स ही देखने हैं, उन्हें फ़ैसला करने में आसानी हो जाएगी।

मोदी सरकार को उखाड़ फेंककर 2019 में बनाएँगे अपनी सरकार: वाड्रा

यूपी में लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीति का पारा गरमाया हुआ है। एक तरफ जहाँ गठबंधन के कारण सपा-बसपा के समर्थक नहीं फूले समा रहे हैं, वहीं प्रियंका गाँधी के राजनीति में आने से कॉन्ग्रेस का आत्मविश्वास भी आसमान छू रहा है।

हाल ही में कॉन्ग्रेस की महासचिव बनी प्रियंका गाँधी वाड्रा लोकसभा चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए सिर से पैर तक का जोर लगा रही हैं। यूपी में कॉन्ग्रेस नेताओं के साथ प्रियंका ने बीते बुधवार (जनवरी 13, 2019) को भी देर रात तक बैठक की। इस बैठक में उन्होंने कार्यकर्ताओं को आश्वासन दिया कि यूपी में किसी पार्टी के साथ कॉन्ग्रेस का गठबंधन नहीं होगा।

यह बैठक कॉन्ग्रेस कार्यालय में बीती रात क़रीब पौने ग्यारह बजे हुई। 45 मिनट चली इस बैठक में लगभग 60 कार्यकर्ताओं से प्रियंका ने बात की। इस बातचीत के ज़रिए प्रियंका ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से गठबंधन को लेकर उनकी राय जाननी चाही। बता दें एक तरफ जहाँ प्रियंका इस मामले पर पूर्वी क्षेत्र के नेताओं से इस बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पश्चिम क्षेत्र के नेताओं से गठबंधन के बारे में उनकी राय ले रहे हैं।

इस बैठक में पार्टी के लगभग सभी कार्यकर्ताओं ने प्रियंका से गठबंधन को लेकर साफ़तौर पर मना किया। इनका मानना है कि किसी भी तरह के गठबंधन से सबसे ज़्यादा नुक़सान सिर्फ़ कॉन्ग्रेस को ही होता है।

कार्यकर्ताओं में गठबंधन को लेकर चिंता देखते हुए प्रियंका ने सबको आश्वाशन दिया कि 2019 के चुनाव में किसी भी पार्टी से कॉन्ग्रेस गठबंधन नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि यह चुनाव कॉन्ग्रेस अकेले लड़ेगी और मोदी सरकार को उखाड़ फेंककर, 2019 में सरकार बनाएगी। प्रियंका ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को कड़ी मेहनत करते हुए कमर कसने की सलाह दी।

बता दें बुधवार को गठबंधन से मना करने वाली प्रियंका की पार्टी ने मंगलवार को ही महान दल के साथ गठबंधन कर लिया है। दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने कॉन्ग्रेस राज्य मुख्यालय पर पार्टी के दोनों सचिवों से मुलाकात करते हुए गठबंधन की पेश की, जिसे मान भी लिया गया। माना जाता है कि महान दल का पश्चिमी यूपी में पिछड़े वर्ग पर असर माना जाता है।

इसके अलावा आपको याद दिला दें कि अभी कुछ दिन ही बीते हैं कि जब अखिलेश ने प्रियंका के पहले रोड शो के बाद कहा था कि सपा का गठबंधन सिर्फ़ बसपा के साथ नहीं है बल्कि आपको बाद में पता चलेगा कि इसमें कॉन्ग्रेस भी शामिल है।

आम आदमी पार्टी ने सनी देओल को किया याद, डायलॉग भी चिपकाया क्योंकि…

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच चल रहे झगड़े को सुलझाने के लिए दोनों की कार्यसीमा तय करते हुए अहम निर्णय सुनाया। दिल्ली सरकार बनाम केंद्र के अधिकारों पर फ़ैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संयुक्त सचिव से ऊपर के पदों के तबादलों और पोस्टिंग के अधिकार उपराज्यपाल के पास होंगे। अन्य पदों के तबादले और पोस्टिंग के अधिकार दिल्ली सरकार के नियंत्रण में होंगे। हालाँकि, जस्टिस सिकरी ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी प्रकार के मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।

DINACS (दिल्ली एवं अंडमान-निकोबार सिविल सर्विस) के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल के पास फाइल भेजने के निर्देश दिए। अर्थात यह कि इस मामले में भी उपराज्यपाल ही निर्णय लेंगे। बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट भी अपने फैसले में कह चुका है कि LG ही राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासक हैं। हाई कोर्ट में दिल्ली सरकार ने नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी। वहाँ से खारिज़ होने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा।कोर्ट की संवैधानिक बेंच के फैसले के बाद भी इन मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है।

जस्टिस सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण के फ़ैसलों में मतभेद होने के कारण अब सर्विसेज वाले मामले को तीन जजों की पीठ को भेज दिया गया है। अन्य मुद्दों पर दोनों जजों की राय एक है। जस्टिस भूषण ने दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले से सहमति जताते हुए कहा कि दिल्ली सरकार को सर्विसेज पर कार्यकारी शक्ति नहीं है। दिल्ली विधानसभा भी इस पर कानून नहीं बना सकती। इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड वाले मामलों पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण होगा। जस्टिस भूषण ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी अधिकारी केंद्र सरकार के अंतर्गत आते हैं।

अपना निर्णय सुनाते हुए जस्टिस सिकरी ने कहा:

“अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का अधिकार राष्ट्रपति के पास होगा। एक न्यायसंगत व्यवस्था बनना ज़रूरी है। सचिव स्तर के अधिकारियों पर फैसला एलजी करें। दानिक्स के अधिकारियों के मामला दिल्ली सरकार एलजी की सहमति से देखें। विवाद हो तो राष्ट्रपति के पास जाएँ।”

आम आदमी पार्टी ने अदालत के निर्णय से असंतुष्ट होकर ‘दामिनी’ फ़िल्म के उस बहुचर्चित दृश्य को शेयर किया, जिसमें सनी देओल अदालत में ‘तारीख़ पर तारीख़’ वाला डायलॉग बोलते दिख रहे हैं। बता दें कि अदालत ने एंटी करप्शन ब्यूरो के अधिकार भी केंद्र को ही दिए हैं।अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार के पास पुलिसिंग की ताक़त नहीं है। आप प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में स्पष्टता नहीं है।

25,000 लोगों की मौत की सौदागर कॉन्ग्रेस: आज ही के दिन सुप्रीम कोर्ट में खेला था गणित का ‘गंदा’ खेल

भोपाल गैस त्रासदी भारत की अब तक की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदा है। ये वो घटना है जिसके बारे में आज भी यदि सोच लिया जाए तो रूह काँप जाती है। ज़रा सोचिए! कितनी भयंकर घड़ी होगी वो जब फेफड़ो में घुसी ज़हरीली गैस की वजह से, सोते-जागते-भागते क़रीब 25 हज़ार लोग इसकी चपेट में आए और 5 लाख से ज़्यादा प्रभावित हुए।

साल 1984 में 2-3 दिसंबर की मध्यरात्रि में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित संयंत्र से जानलेवा गैस लीक होनी शुरू हुई। इस गैस का नाम ‘मिक’ (मिथाईल आइसो-साइनेट) था। जिसके हवा में घुलने की वजह से 25,000 से अधिक लोगों की मौतें हुई और जो आज ज़िदा है उनमें से कुछ अपंगता के कारण बेबस है तो कुछ अन्य बीमारियों की वजह से लाचार।

ये घटना जिस समय हुई थी, उस समय राजीव गाँधी के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस पार्टी सत्ता में थी। इस बात को करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि बिना सुरक्षा शर्तों के इतने ख़तरनाक कारखाने को लगाने की इजाज़त, अपने आपको ‘जन कल्याणकारी सरकार’ कहने वाली सरकार ने ही दी थी।

शायद इसलिए पहले इस कारखाने में सामान्य सुरक्षा की व्यवस्थाओँ पर ख़र्च में लगातार कटौती करके सिस्टम बंद किए जाते रहे। जब गैस लीक हुई तो लोगों को मरने के लिए बेसहारा छोड़कर सरकार भी भाग खड़ी हुई और बड़े-बड़े अफसर भी।

लेकिन, जब सवाल यूनियन कार्बाइड कंपनी पर लापरवाही के सवाल उठने शुरू हुए तो तात्कालीन सरकार (राजीव सरकार) एक बार फिर से कंपनी के साथ आकर खड़ी हो गई। सरकार ने इस दौरान एक क़ानून बनाया और गैस पीड़ितों से कर्बाइड कंपनी के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही करने का अधिकार भी छीनकर अपने हाथ में ले लिया।

इस घटना के बाद आज से ठीक 30 साल पहले सुप्रीम कोर्ट में एक समझौता पेश किया गया। इसके समझौते के अनुसार कंपनी को 3.3 बिलियन डॉलर (5355.9 करोड़ रुपए) के क्लेम के बजाए केवल 470 मिलियन डॉलर (762.81 करोड़ रुपए, 1 डॉलर = 16.23 रुपया वर्ष 1989 में) देने थे। इस समझौते के साथ ही कंपनी पर से लापरवाही से हत्या करने वाला आपराधिक केस भी खत्म होना था। सब सरकार के हाथ में था, नतीजन इस समझौते को कोर्ट में भी मान्यता भी मिल गई ।

14 फरवरी 1989 को सर्वोच्च न्यायालय ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन को उस ज़हरीली गैस रिसाव के पीड़ितों को हुए नुक़सान के लिए $ 470 मिलियन का भुगतान करने का आदेश दिया। शर्मनाक बात तो यह है कि जिस गणित के अनुसार यह रकम तय की गई थी, उसमें पीड़ितों की मूलभूत ज़रूरतों को सिरे से नकारा गया। जब इस राशि का बँटवारा गैस पीड़ितों में हुआ तो 5 लाख दावेदारों में से 90 प्रतिशत पीड़ितों के हिस्से में मात्र 25-25 हज़ार रुपए आए।

आदेश के लगभग 30 साल बाद भी पीड़ितों के ज़ख़्मों का किसी प्रकार का कोई मरहम नहीं लगा है। आज इस समझौते को पूरी तरह से धोखा करार दिया जाता है। क्योंकि दुर्घटना से पीड़ित लोग आज भी मुआवज़ो और बुनियादी सुविधाओं की लड़ाई को लगातार लड़ रहे हैं।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल ज़ब्बार का कहना है कि इस समझौते में मृतकों और घायल लोगों की संख्या को काफ़ी कम दर्शाया गया था, जबकि हकीक़त में यह बहुत ज़्यादा थी। समझौते पर उठे ऐसे सवालों पर 3 जनवरी 1991 को उच्चतम न्यायलय ने कहा था कि यदि मरने वालों की सँख्या में बढ़ौतरी होती है तो भारतीय सरकार इसका मुआवज़ा देगी।

आजतक की रिपोर्ट में लिखा है कि ज़ब्बार ने बताया कि इस समझौते में गैस के लीक होने की वजह से केवल 3,000 लोगों की मौत और 1.02 प्रभावित लोग दर्शाए गए थे। जबकि, इस दुर्घटना से अब तक वास्तविकता में 20,000 लोगों की मौत हुई है और 5 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए है।

इस दिल दहला देने वाली घटना के मुख्य आरोपी एंडरसन के बारे में बताया जाता रहा है कि तात्कालीन पीएम राजीव गांधी के इशारे पर राज्य के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने उनकी देश छोड़कर भागने में मदद की थी। इसलिए, एंडरसन को सरकारी प्लेन द्वारा कड़ी सुरक्षा के बीच भोपाल से दिल्ली पहुंचाया गया था, जिसके बाद वो अमेरिका वापस चला गया और कभी भारत लौट कर न लाया जा सका। 92 साल की उम्र में 29 सितंबर 2014 में एंडरसन की मौत भी हो गई, लेकिन भारत में इस मामले पर अब भी पीड़ितों को दिए जाने वाले हक पर विचार-विमर्श ही हो रहा है।

इस त्रासदी का 346 टन ज़हरीला कचरा निस्तारण अब भी भारत के लिए एक चुनौती बना हुआ है। ये कचरा आज भी कंपनी के कारख़ाने में कवर्ड शेड में मौजूद है। इसके ख़तरे को देखते हुए अब भी यहाँ पर आम जन को प्रवेश यहाँ पर वर्जित है।

सर्वोच्च न्यायलय के आदेश पर 13-18 अगस्त 2015 तक इंदौर के पीथमपुर में ‘रामके’ कंपनी के इंसीनरेटर में यहाँ का लगभग 10 टन ज़हरीला कचरा जलाया गया था। ट्रीटमेंट स्टोरेज डिस्पोजल फेसीलिटीज संयंत्र से इसके निष्पादन में पर्यावरण कितना प्रभावित हुआ, इसकी रिपोर्ट केंद्रीय वन-पर्यावरण मंत्रालय को भेज दी गई थी। लेकिन इस क़दम का असर क्या हुआ, ये अब भी सवाल बना हुआ है।

इस हादसे के बाद इस ज़हरीले कचरे को जर्मनी भेजने का प्रस्ताव तैयार किया गया था, लेकिन वहाँ के लोगों के विरोध की वजह से इस कूड़े को वहाँ पर नहीं भेजा जा सका। प्राप्त जानकारियों के अनुसार इस तरह के पदार्थ को 2 हज़ार डिग्री से अधिक के तापमान पर जलाया जाता है।

वैसे बता दूँ अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले में पीड़ितों और केंद्र सरकार द्वारा याचिका दायर की गई है। इस याचिका में यूनियन कार्बाइड कंपनी से 7413 करोड़ रुपयों की माँग की गई है। सरकार ने इस बात को माना है कि दुर्घटना पीड़ितों को उचित मुआवज़ा नहीं मिला है। इसी याचिका पर कोर्ट ने अप्रैल में सुनवाई करने के लिए कहा है।

1993 मुंबई ब्लास्ट: 26 वर्षों बाद दुबई में पकड़ा गया मोस्ट वॉन्टेड आतंकी अबू बकर, प्रत्यर्पण शीघ्र

भारतीय जाँच एजेंसियों को 1993 बम ब्लास्ट मामले में बड़ी क़ामयाबी मिली है। घटना के 26 वर्षों बाद मोस्ट वॉन्टेड आतंकी अबू बकर को दुबई में गिरफ़्तार कर लिया गया है। अबू बकर के साथ एक अन्य आतंकी को भी पकड़ा गया है। दूसरे आतंकी का नाम फ़िरोज़ है। दोनों को शीघ्र ही प्रत्यर्पित कर भारत लाया जाएगा। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। ज्ञात हो कि मार्च 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम ब्लास्ट में 257 लोग मारे गए थे और 700 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे।

पकड़े गए आतंकी का पूरा नाम अबू बकर गफ़ूर शेख है। वह खाड़ी देशों से सोना, कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की स्मगलिंग कर मुंबई और आसपास के लैंडिंग पॉइंट में सप्प्लाई किया करता था। दोनों आतंकी लंबे समय से ‘मोस्ट वॉन्टेड’ की सूची में शामिल थे। 1993 मुंबई धमाके वाले मामले में तैयार की गई 10,000 पन्नों की चार्जशीट में दाऊद इब्राहिम को मुख्य अभियुक्त बनाया गया था। आरोपितों की कुल संख्या 189 है। दाऊद अभी तक भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ से बाहर है।

अबू बकर के ख़िलाफ़ 1997 में ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया गया था। पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात में रह रहे अबू बकर के बारे में भारतीय एजेंसियों को ख़ुफ़िया इनपुट मिले थे। उसने ईरान की एक महिला से दूसरी शादी कर रखी है। दुबई में व्यापार चलाने वाले अबू बकर से पूछताछ के दौरान मुंबई धमाकों से जुड़े कई अन्य राज खुलने की संभावना है।

1993 में हुए धमाके बॉम्बे स्टॉक एक्चेंज, नरसी नाथ स्ट्रीट, शिव सेना भवन, सेंचुरी बाजार, माहिम, झावेरी बाजार, सी रॉक होटल, प्लाजा सिनेमा, जूहू सेंटूर होटल, सहार हवाई अड्डा और एयरपोर्ट सेंटूर होटल के आसपास हुए थे। आतंकियों ने कुल 12 जगहों को निशाना बनाया था। हमले के अन्य दोषियों में याकूब मेनन और मुस्तफ़ा दौसा शामिल है। याकूब मेनन को जुलाई 2015 में फाँसी दे दी गई थी। मुस्तफ़ा की जून 2017 में मुंबई के जेजे असपताल में मौत हो गई थी।

पकड़े गए आतंकी अबू बकर ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में ट्रेनिंग ली थी। अबू बकर ने मुंबई धमाकों के लिए आरडीएक्स लाने का काम किया था। दाऊद इब्राहिम के दुबई स्थित घर पर धमाकों की साजिश रची गई थी जिसमे अबू बकर भी शामिल हुआ था।

12वीं पास आदमी को हस्ताक्षर करने की समझ नहीं… केजरीवाल के बेहूदे बयान से करोड़ों युवा आहत!

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी पर विवादित टिप्पणी की है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर बुधवार (फरवरी 13, 2019) को आयोजित ‘तानाशाही हटाओ, लोकतंत्र बचाओ सत्याग्रह’ रैली को सम्बोधित करते हुए केजरीवाल ने मोदी की तुलना पाकिस्तान से तो की ही, साथ ही उन्हें 12वीं पास भी बताया। रैली में कई विपक्षी नेताओं का जमावड़ा लगा। तृणमूल कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू सहित और भी नेताओं ने अपनी उपस्थिति दिखाई।

प्रधानमंत्री मोदी की शैक्षणिक योग्यता को सवालों के घेरे में खड़ा करते हुए केजरीवाल ने कहा:

“पिछली बार आपने 12वीं पास व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बनाया। इस बार यह गलती मत दोहराइएगा और किसी शिक्षित को ढूंढिए क्योंकि 12वीं कक्षा पास व्यक्ति को यह समझ नहीं होती कि वह अपने हस्ताक्षर कहाँ कर रहा है। मैं सारे देश से कहना चाहता हूँ कि इस बार जब वोट करने जाओ, तो एक पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री के लिए वोट करना। जो देश के बारे में सोचे न किसी एक व्यक्ति के बारे में। मैं नरेंद्र मोदी से कहना चाहता हूँ कि वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की तरह बर्ताव करना बंद करें। देश को तोड़कर मोदी जी पाकिस्तान का सपना पूरा कर रहे हैं। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि वे भारत के प्रधानमंत्री हैं या पाकिस्तान के?”

केजरीवाल ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तारीफ़ में भी ख़ूब कसीदे पढ़े। ममता बनर्जी और सीबीआई की लड़ाई को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा:

“कुछ दिनों पहले केंद्र ने सीबीआई के 40 अधिकारियों को कोलकाता भेजा था। मैं मोदी जी को बताना चाहता हूं कि पश्चिम बंगाल भी भारत का हिस्सा है। उन्होंने सीबीआई को भेजकर बंगाल सरकार पर हमला किया है। इससे पहले उन्होंने दिल्ली पर भी हमला किया था। दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर हमला करने के बारे में केवल पाकिस्तान ही सोच सकता है। सरकार ने पश्चिम बंगाल में सीबीआई को भेजकर पूरे संघीय ढांचे का अपमान किया है। अगर उस दिन कमिश्नर गिरफ्तार हो जाते, तो पूरे देश की राज्य सरकार के लिए यह अच्छा मैसेज नहीं जाता। पूरे देश में डर का माहौल पैदा हो जाता। मोदी जी लोकतंत्र को खत्म करने पर तुले हैं। वह आंबेडकर के संविधान से अलग हटकर शासन करना चाहते हैं। मैं ममता जी को सैल्यूट करता हूं, जिन्होंने अधिकारियों को भगा दिया। वह संविधान बचाना चाहती हैं।”

अरविन्द केजरीवाल ने अपने धरने की तुलना अप्रैल 2011 में हुए अन्ना हजारे के अनशन से की। उन्होंने कहा कि जिस तरह जंतर-मंतर पर हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने कॉन्ग्रेस को उखाड़ फेंका था, ऐसे ही उनकी यह रैली मोदी सरकार को हटा देगी। केजरीवाल ने रक्षा मंत्रालय के एक कथित काग़ज़ को भी हवा में लहराया और लोगों से कहा कि मोदी ने ख़ुद राफेल की कम्पनी से बात की।

Valentine’s Day: फ्रैंक ड्रेक के फॉर्मूले से जानिए जीवनसाथी खोजने का गणित

बड़े शहरों में रहने वाले लड़के लड़कियाँ अपने जीवन साथी का चुनाव अपने तरीके से करते हैं जिनमें डेटिंग करना आम बात है। डेटिंग में लड़का लड़की मिलते हैं, बातें करते हैं, खाते पीते हैं और एक दूसरे को जानने की कोशिश करते हैं। डेटिंग के बाद घर जाकर अपने परिवारवालों या दोस्तों को अपनी ‘डेट’ के किस्से सुनाते हैं।

लेकिन सवाल ये है कि कोई अपने जीवन साथी की तलाश में कितनी डेट पर जा सकता है। जवानी से बुढ़ापे तक के सफर में कोई कितनी दोस्ती या डेटिंग कर सकता है? दिल तो बेचारा एक ही होता है, एक व्यक्ति उसे कितनी बार टूटने दे सकता है? एक आकलन के मुताबिक यदि विश्व का प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से हाथ भी मिलाए तो उम्र कम पड़ जाएगी। ऐसे में हम सबसे ‘सूटेबल पार्टनर’ की खोज में कितना इंतज़ार कर सकते हैं?

इसका जवाब देते हुए पीटर बैकस ने 2010 में एक फॉर्मूला सुझाया था। वॉरविक इकोनॉमिक समिट में बैकस ने एक शोधपत्र पढ़ा था: “Why I don’t have a girlfriend” जिसमें बैकस ने 1961 में डॉ फ्रैंक ड्रेक द्वारा दिए गए एक फॉर्मूले का इस्तेमाल यह जानने के लिए किया था कि उनके आसपास रहने वाली कितनी लड़कियाँ गर्लफ्रेंड बन सकती हैं।

डॉ फ्रैंक ड्रेक एक एस्ट्रोनॉमर थे। उन्होंने एक फॉर्मूला दिया था जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारी गैलेक्सी में हमारे अलावा कितनी सभ्यताएँ फल-फूल रही हैं। ड्रेक के फॉर्मूले के हिसाब से हमारी आकाश गंगा में हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकने में सक्षम 10,000 के लगभग सभ्यताएँ हो सकती हैं।

अब यदि ड्रेक के फॉर्मूले पर अमल किया जाए तो यह कैलकुलेट किया जा सकता है कि किसी लड़के को गर्लफ्रेंड बनाने के लिए कम से कम कितनी लड़कियाँ मिल सकती हैं। हैना फ्राय ने अपनी पुस्तक “Mathematics of Love” में इस फॉर्मूले का सरलीकरण कर इस प्रकार समझाया है:

सबसे पहले तो यह सोचिए कि आपके शहर में कितने लड़के या लड़कियाँ हैं। चलिए मान लेते हैं कि आप पुरुष हैं और लंदन जैसे बड़े शहर में रहते हैं जहाँ तक़रीबन 40 लाख महिलाएँ हैं। अब इन 40 लाख महिलाओं में से कितनी होंगी जो आपकी उम्र के आसपास की होंगी? मान लेते हैं कि 40 लाख महिलाओं में से करीब 20% प्रतिशत अर्थात 8 लाख युवतियाँ होंगी। अब इन 8 लाख में से कितनी कुँवारी होंगी? मान लेते हैं कि 50% या 4 लाख युवतियाँ कुँवारी हैं।

अब यदि आप यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट हैं तो ज़ाहिर है कि अपना पार्टनर भी यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट ही चुनना चाहेंगे। अनुमान लगाइये कि इन 4 लाख कुँवारी युवतियों में से यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट कितनी होंगी? मान लेते हैं कि आधे से कुछ ज़्यादा यानि 26% युवतियाँ यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट हैं। चार लाख का 26% हुआ 1,04,000 मतलब अंदाज़न इतनी युवतियाँ यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट हैं।

अब केवल यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट होना ही तो काफ़ी नहीं। हर लड़का या लड़की अपना पार्टनर आकर्षक चुनने की ख़्वाहिश रखता है तभी तो ‘लाखों में एक’ वाला मुहावरा बना। तो चलिए मान लेते हैं कि 1,04,000 में से मात्र 5% युवतियाँ ही आकर्षक होंगी। अब यह आँकड़ा 5,200 युवतियों पर आ गया।

इन 5,200 युवतियों में से सबके साथ डेटिंग की जा सके यह भी संभव नहीं और सबको आप उतने ही आकर्षक लगें इसकी भी गारंटी नहीं। तो मान लेते हैं कि इनमें से 5% या 260 युवतियाँ आपके प्रति आकर्षित होंगी। लेकिन अभी भी डेटिंग के लिए 260 की संख्या बहुत ज़्यादा है। इन 260 में से 10% यानि कुल 26 लड़कियाँ ही ऐसी होंगी जिनके साथ दोस्ती कर और कुछ समय बिताने के बाद आप अपना जीवन साथी चुन सकते हैं।

गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड कैसा होगा उसमें कौन सी खूबियाँ होनी चाहिए वह क्राइटेरिया और उसका प्रतिशत आप अपने हिसाब से प्रयोग कर सकते हैं। यह तरीका केवल एक अनुमान बताता है न कि कोई सटीक संख्या। अनुमान लगाने या ‘एस्टिमेशन’ के इस गणित को ‘फर्मी एस्टिमेशन’ भी कहा जाता है और इसका प्रयोग फ़िज़िक्स से लेकर गूगल के इंटरव्यू तक में किया जाता है।

पीटर बैकस ने जब इस तरीके को गर्लफ्रेंड की संख्या का अनुमान लगाने के लिए प्रयोग किया तो कुछ लोगों ने उनकी हँसी भी उड़ाई लेकिन कहा जाता है कि प्रकृति की भाषा गणित है और हम सब भी प्रकृति की ही संतानें हैं। क्या पता सच्चा प्रेम मिलने या न मिलने में किसी छिपे हुए गणितीय सूत्र का हाथ हो!