Thursday, October 3, 2024
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‘हुनर हाट’ के माध्यम से बदला है अल्पसंख्यकों का जीवन

उत्तर प्रदेश के रामपुर में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पटवाई स्थित दीक्षित कालेज ऑफ हायर एजुकेशन में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से स्वीकृत छात्रावास एवं कौशल विकास केंद्र एवं अन्य योजनाओं का उद्घाटन किया।

6 लाख लोगों को मिले हैं रोजगार के अवसर

सरकार द्वारा चलाई जा रही कौशल विकास के अंतर्गत तमाम योजनाओं से लगभग 6 लाख युवाओं को कौशल विकास व रोजगार के अवसर मिले हैं। इनमें से लगभग 50% लड़कियाँ हैं, जिन्हे इसका लाभ प्राप्त हुआ है। इस मौके पर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि ‘हुनर हाट’ के माध्यम से पिछले 2 सालों में 2 लाख से ज्यादा अल्पसंख्यक समुदाय के दस्तकारों-शिल्पकारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के साथ ही राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी मौक़े दिए गए हैं।

उन्होंने कहा कि पिछले लगभग साढ़े 4 वर्षों में विभिन्न स्कॉलरशिप योजनाओं से अल्पसंख्यक समाज के लगभग 3 करोड 83 लाख ग़रीब विद्यार्थी लाभान्वित हुए हैं, जिनमे लगभग 60% छात्राएँ हैं।

उत्तेजित मीडिया मोशाय, शांत हो जाइए; प्रियंका कभी अपने ही गढ़ में फेल हो चुकी हैं

प्रियंका गाँधी की राजनीति में एंट्री हो गई है और मीडिया के एक वर्ग की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं है। जैसे किसी चिड़िया के दाना लेकर घौंसले में लौटने पर उसके बच्चे आह्वादित होकर नाच उठते हैं, ठीक वैसे ही मीडिया का एक बड़ा समूह चोंच उठाए दाने की प्रतीक्षा में झूम उठा है। उनके आनंदित, उत्तेजित एवं उल्लासित मन और तन-बदन की स्थिति यह हो गई है कि उन्हें न भूत दिख रहा है और न भविष्य। तैमूर अली खान की चड्डी के रंग तक को ‘बड़ी ख़बर’ और ‘डेली डोज़ ऑफ़ क्यूटनेस‘ बता कर लोगों को समक्ष परोसने वाला मीडिया का यह वर्ग उत्साह की उस चरम सीमा पर जा पहुँचा है जहाँ प्रियंका ही प्रियंका हैं… चोपड़ा नहीं, गाँधी। क्षमा कीजिए, गाँधी नहीं, वाड्रा।

रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी के बीच अंतर यह है कि एक पूछताछ से बचने के लिए अदालत के सामने अपनी बेटी की सर्जरी का बहाना बनाता है, तो दूसरे का उसके ठीक दो दिन बाद ही राजनीति में धमाकेदार एंट्री होती है। मीडिया के उस वर्ग की ज्ञानेन्द्रियों को सचेतन अवस्था में लाने के लिए उन्हें इतिहास रूपी ऐसे दर्पण के समक्ष ला खड़ा करना होगा, जहाँ उन्हें इस बात की अनुभूति हो कि उनके ‘झूम बराबर झूम’ का अंत ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया‘ पर होने वाला है।

बात शुरू करते हैं 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से। गाँधी परिवार के पुरातन गढ़ अमेठी और रायबरेली के भीतर 10 विधानसभा सीटों के लिए कॉन्ग्रेस पार्टी चतुष्कोणीय चुनावी संग्राम में पूरी शक्ति के साथ उत्तरी थी। केंद्र में पिछले 8 वर्षों से शासन कर रही कॉन्ग्रेस के लिए दोनों संसदीय क्षेत्रों में प्रियंका गाँधी ने स्वयं चुनावी प्रचार अभियान की कमान संभाली हुई थी। मीडिया का कहना है (और कॉन्ग्रेस नेताओं का भी) कि जनता प्रियंका में इंदिरा को देखती है। 2012 में प्रियंका गाँधी अपेक्षाकृत नई थी। उस से पहले वाले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पहली रैली की थी। सक्रियता के मामले में 2012 में उनका कोई सानी न था।

मीडिया के एक वर्ग की नई राजमाता ने 1 महीने भी अधिक अवधि तक अमेठी-रायबरेली में जम कर प्रचार-प्रसार किया। 2007 के विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस यहाँ 7 सीटों पर जीत का परचम लहरा चुकी थी। ऐसे में, पार्टी के वफ़ादारों को अनुमान ही नहीं बल्कि विश्वास भी था कि पार्टी का झंडा और बुलंद होगा, और कॉन्ग्रेस यहाँ क्लीन स्वीप करेगी। कॉन्ग्रेस की स्टार प्रचारक ने अमेठी-रायबरेली का कोना-कोना छान मारा। वह जनता से मिलतीं, बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करतीं। एक बार तो उन्होंने लगातार पाँच दिनों तक अमेठी में डेरा डाला।

चुनाव परिणाम ऐसे आए जिसे सुनकर मीडिया का एक वर्ग अचेत हो जाएगा। कॉन्ग्रेस पार्टी के सीटों की संख्या (अमेठी-रायबरेली में) 7 से घट कर 2 पर आ गई। प्रियंका गाँधी का योगदान रहा- माइनस 5। एक महीने के अंतराल में 150 सार्वजनिक बैठकें कर चुकी प्रियंका की कथित करिश्मा का परिणाम जिस रूप में मिला- उसे याद दिला कर मीडिया के ‘झूम बराबर झूम‘ गैंग को चूहे के बिल में छुपने को बाध्य किया जा सकता है।

ये रहा इतिहास। अब आते हैं वर्तमान पर। बीबीसी के अनुसार“रायबरेली और अमेठी में ज़्यादातर लोगों को हर तरह की सरकारी योजना का लाभ मिलता है क्योंकि प्रियंका ये ध्यान रखती हैं कि एक-एक व्यक्ति तक योजना की जानकारी पहुँचे और अगर वो उन योजनाओं के योग्य हैं, तो उसका लाभ मिले।”

अमेठी और रायबरेली के ग़रीब किसानों, झुग्गी-झोपड़ियों, और रुके हुए विकास कार्यों के समाचार हमारे पास पहुँचते रहे हैं। ऐसे में बीबीसी के दावे के अनुसार अगर वहाँ की जनता को प्रियंका सारी की सारी सरकारी योजनओं के लाभ दिलाती है- तो फिर आज तक वहाँ इतनी ग़रीबी क्यों है, शिक्षा की उचित व्यवस्था क्यों नहीं थी, और सारे विकास कार्य क्यों ठप्प थे? एक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पोर्टल का कहना है कि अमेठी के ‘एक-एक’ व्यक्ति तक सरकारी योजनाएँ पहुँची है- यह इतना हास्यास्पद है कि इस पर किसी प्रकार की चर्चा करना भी समय बर्बाद करने के सामान होगा।

रेडिफ्फ (Rediff) की वेबसाइट के अनुसार प्रियंका गाँधी के बारे में एक ‘महत्वपूर्ण’ बात यह है कि वो ‘हमारी-आपकी‘ तरह हैं और ‘सामान्य जीवन’ पसंद करती हैं। ये एक चौंकाने वाला ख़ुलासा है। वह ‘सामान्य जीवन’ जीती नहीं हैं, बल्कि ‘पसंद’ करती हैं। वैसे ख़बरों के अनुसार, अम्बानी और बिरला भी ‘सामान्य जीवन’ पसंद करते हैं (जीते नहीं हैं, पसंद करते हैं)। अर्थात, वो भी ‘हमारी-आपकी‘ तरह ही हैं।

द प्रिंट ने तो कमाल ही कर दिया। उसने प्रियंका गाँधी की प्रशंसा के लिए ऐसे शब्दों का चयन किया, जैसे वो नेता न हो कर कोई क्रिकेटर या अभिनेत्री हों। प्रियंका ‘स्मार्टर’ हैं, ‘क्लासिअर’ हैं। वेबसाइट के अनुसार प्रियंका को स्वयं को एक ‘पीड़ित’ के रूप में पेश करने का अधिकार है, क्योंकि उनके पति और सास- ED के रडार पर हैं। ऐसे में हर अपराधी के परिवार राजनीति में होना चाहिए ताकि वो ख़ुद को ‘पीड़ित’ दिखा सकें और इसे ‘वेंडेटा (बदले की भावना)’ का नाम देकर वोट बटोर सकें। शेखर गुप्ता यहाँ पिघल कर पानी हो चुके हैं।

इंडिया टुडे की एक पत्रकार तो प्रियंका गाँधी की राजनैतिक एंट्री से इतनी उत्साहित हो गई कि उन्होंने कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं को कैमरा के सामने चिल्लाने के लिए ‘प्रियंका गाँधी ज़िंदाबाद‘ जैसे नारे भी दिए और कब, कैसे, क्या बोलना है- इसका निर्देश भी दिया। कुछ ऐसे फ़िल्म निर्देशक जिनकी फ़िल्में फ्लॉप हो रही हैं, और जिनका धंधा चौपट है- इंडिया टुडे के ‘नए जमाने के पत्रकार’ को देख कर उन्होंने भी इसी क्षेत्र में क़दम रखने का मन बना लिया है।

राहुल गाँधी, ठीक से याद कीजिए, नफ़रत की नर्सरी से लेकर झूठ के विश्वविद्यालय तक कॉन्ग्रेस से जुड़े हैं

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के राजनीति में कदम रखने से लेकर आजतक उन्हें किसी न किसी मुद्दे पर ट्रोल किया जाता रहा है। लेकिन इसमें किसी और का कोई दोष नहीं हैं। राहुल की बातें, उनके भाषण, उनके द्वारा पेश किए गए तथ्य हर बार कुछ न कुछ ऐसी चीज़ लेकर आते हैं जो इंसान अपनी पूरी मानसिक क्षमता के साथ भी समझना चाहे तो उसे समझने में देर हो ही जाती है कि आख़िर राहुल जी कहना क्या चाहते हैं।

निराधार बातें करके अपनी छवि को बूस्ट करने वाले राहुल गाँधी एक बार फिर से अपनी कही बातों की वजह से पकड़ में आ गए हैं। इस बार भी उनकी बातों में अपना या अपनी पार्टी का कोई ज़िक्र नहीं था हमेशा की तरह सिर्फ़ मोदी ही थे।

ये बात उनके अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी की है। यहाँ पर राहुल सफ़ाई से झूठ बोलते हुए अमेठी की जनता के मन में पीएम मोदी के ख़िलाफ़ बेवजह के सवाल-जवाब गढ़ते नज़र आए। जनता को संबोधित करते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि पीएम सिर्फ नफ़रत फैलाने का ही काम करते हैं। समाज में हो रहे अलग-अलग समुदायों के बीच लड़ाई-झगड़े का आरोप भी बड़ी बेबाकी से कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष महोदय ने पीएम मोदी पर लगाया।

एनएनआई के ट्वीट में राहुल गाँधी की इन बातों को जस का तस पेश किया गया। ऐसा लगता है कि राहुल गाँधी की याद्दाश्त खोती जा रही है या ये भी कह सकते हैं कि उनपर मोदी का डर इस तरह छाया हुआ है कि वो अपनी पार्टी में क्या चल रहा है, इसपर ध्यान ही नहीं देना चाहते।

सितंबर 2018 में गुजरात में कॉन्ग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर ग़ैर-गुजराती (ख़ासकर यूपी और बिहार) लोगों के लिए द्वेष भरे भाषण देते हुए कैमरे में पकड़े गए थे। कैमरे में रिकॉर्ड हुए वीडियो में अल्पेश गुजरात के लोगों को ये कहते नज़र आए थे कि बाहर से आए लोग यहाँ पर आकर अपराध करते हैं जिसके कारण गुंडागर्दी में वृद्धि हो रही है। अल्पेश का कहना था कि ये लोग गाँव वालों को पीटकर अपने घर दूसरे राज्यों में भाग जाते हैं। वो जनता से पूछते नज़र आए कि क्या उनका गुजरात ऐसे लोगों के लिए है?

लोगों में नफ़रत की भावना भड़काते हुए अल्पेश ये भी कहते नज़र आए कि जो कंपनियाँ गुजरातियों को 85 प्रतिशत रोजगार नहीं प्रदान करेंगी, उनके कंटेनरों को रोक दिया जाएगा, ट्रकों को रोक दिया जाएगा और ज़रूरत पड़ी तो ट्रकों के टायरों को भी जला देंगे। वो अपनी इन्हीं बातों को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि उनका मानना है कि सभी गुजरातियों को उग्रता के साथ लड़ाई करनी चाहिए।

अल्पेश के बयानों पर ग़ौर करें तो साफ होगा कि उनके मन में क्या चल रहा था जो वो अपनी इन बातों को इतने बड़े स्तर पर बोलते हुए एक बार भी नहीं झिझके। कॉन्ग्रेस में सिर्फ अल्पेश ठाकोर ही नहीं हैं बल्कि एक और कॉन्ग्रेस विधायक जेनी बेन ठाकुर भी गुजरात में हिंसा भड़काती हुई पाई गई थीं।

एक तरफ जहाँ कोई भी नया कानून बनने पर कॉन्ग्रेस में संविधान के साथ छेड़-छाड़ पर हाय-तौबा मचना शुरू हो जाता है वहीं जेनीबेन का बयान था कि “भारतीय कानून का पालन किया जाना चाहिए लेकिन घटना के समय उसी दौरान… 500, 100, 50, 150 लोग वहाँ होते हैं… उन्हें पेट्रोल का इस्तेमाल करते हुए आग में झोंक देना चाहिए, इससे कुछ नहीं होगा।” उनका कहना था कि “…बलात्कारी पुलिस के हाथों में नहीं सौंपा जाना चाहिए उसे वहीं तुरंत समाप्त कर देना चाहिए।” इसके अलावा भी वो बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ हिंसात्मक बयान देती पाई गई हैं

पीएम मोदी को नफरत फैलाने के लिए दोषी ठहराने वाले राहुल अपनी पार्टी में काम कर रहे नेताओं के बयानों पर न जाने कैसे चुप्पी साध लेते हैं। अल्पेश और जेनी बेन के अलावा अभी हाल ही में मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के बाद कॉन्ग्रेस नेता कमलनाथ वहाँ पर यूपी और बिहार के प्रवासियों के लिए नफ़रत उगलते सुनाई पड़े थे।

लेकिन कमलनाथ के मुँह से ऐसे शब्द हैरान करने वाले बिल्कुल भी नहीं लगते हैं। ये वही लोग हैं जो 1984 में हुए सिख दंगों में रकाबगंज गुरुद्वारे के पास लगाई जाने वाली आग में भीड़ का नेतृत्व करने के आरोपित हैं। आज यही आदमी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर अगर यूपी और बिहार वालों के लिए ज़हर उगल रहा है तो अचंभे की बात नहीं है।

अपनी पार्टी में लगे इतने दागों के बावजूद भी राहुल गाँधी पीएम पर ऊँगली उठाने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं। स्पष्ट है कि वो अगर अपनी ऐसी बेबुनियादी बातों पर ट्रॉल नहीं किए जाएँगे तो फिर कौन किया जाएगा। पीएम पर नफ़रत फैलाने का आरोप लगाते हुए वो अगर अपने पार्टी के नेताओं पर दो-तीन बात रखें तो शायद देश की जनता उनके अस्तित्व पर सवाल उठाते समय डाँवाडोल नहीं होंगे।

26 जनवरी विशेष: क्या है राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद? जानिए भारत जैसे देश के लिए इसकी अहमियत

राष्ट्रीय सुरक्षा क्या है? भारत के राष्ट्रीय रक्षा महाविद्यालय (National Defence College) के अनुसार किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय सुरक्षा उसके राजनैतिक लचीलेपन एवं परिपक्वता, मानव संसाधन, आर्थिक ढाँचे एवं क्षमता, तकनीकी दक्षता, औद्योगिक आधार एवं संसाधनों की उपलब्धता तथा अंत में सैन्य शक्ति के समुचित व आक्रामक सम्मिश्रण से प्रवाहित होती है।

इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा का अर्थ केवल भारी भरकम सेना और आयुध भंडार से ही नहीं समझा जाना चाहिए। भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व महानिदेशक एवं रणनीतिक चिंतक डॉ प्रभाकरन पलेरी ने अपनी पुस्तक National Security: Imperatives and Challenges में राष्ट्रीय सुरक्षा के पन्द्रह घटक बताये हैं: सैन्य सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, संसाधनों की सुरक्षा, सीमा सुरक्षा, जनसांख्यिकीय सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, भूरणनीतिक सुरक्षा, सूचना सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, जातीय/सामुदायिक सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा, साइबर सुरक्षा तथा जीनोम सुरक्षा।

राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ राष्ट्रीय शक्ति की अवधारणा अंतर्निहित है। राष्ट्रीय शक्ति की अवधारणा तब बलवती होती है जब हम राष्ट्रीय सुरक्षा के मूल्यों को संस्थागत स्वरूप देते हैं। इसे समझना आवश्यक है। उदाहरण के लिए डॉ पलेरी द्वारा बताए गए राष्ट्रीय सुरक्षा के 15 घटकों को देखें तो उसमें हमने प्राकृतिक आपदा से सुरक्षा की बात की है। इस विचार को मूर्त रूप तब दिया गया जब हमने 2005 राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन किया। उससे पहले सन 1965 में सीमा सुरक्षा के लिए हमने BSF का गठन किया। जब खाद्य सुरक्षा की बात हुई तो हमने 2013 में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया।  

यह प्रक्रिया विगत सात दशकों तक चलती रही और भारत का सुरक्षा ढाँचा धीरे-धीरे सिद्धांतों से संस्थानों में विकसित हुआ। यह ढाँचा आज भी पूर्ण रूप से निर्मित नहीं हुआ है जिसके कारण सरकारें आलोचनाओं का शिकार होती रही हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति एकदम उदासीन रहे हैं।   

सन 1998 में जब हमने स्वयं को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र घोषित कर दिया तब हमारा यह दायित्व भी बन गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के समग्रता में अध्ययन हेतु एक शीर्ष संस्था बनाई जाए। एक ऐसी संस्था जो राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं पर अध्ययन करे और सरकार को भविष्य की रूपरेखा बनाने और नीति निर्धारण में सुझाव दे।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसी संस्था बनाने के लिए एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया जिसके सदस्य थे कृष्ण चंद्र पंत, जसवंत सिंह और एयर कमोडोर जसजीत सिंह (सेवानिवृत्त)। दिसंबर 1998 में इस समिति के सुझावों पर अमल करते हुए ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद’ (National Security Council) का गठन किया गया।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद तीन अंगों वाली परिषद है जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Adviser) राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का पूरा काम-काज देखते हैं। इस परिषद के तीनों अंग इस प्रकार हैं: Strategic Policy Group, National Security Council Secretariat (NSCS) और National Security Advisory Board (NSAB).

स्ट्रेटेजिक पॉलिसी ग्रुप में सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों के सचिव, सशस्त्र सेनाओं के अध्यक्ष, गुप्तचर सेवाओं के अध्यक्ष, डीआरडीओ के प्रमुख, रिज़र्व बैंक के गवर्नर तथा परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष होते हैं। इनका कार्य है देश के लिए दीर्घकालिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का दस्तावेज तैयार करना।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद बनने के पश्चात एकाध राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज बने भी थे किन्तु अटल जी की सरकार जाने के बाद कोई विस्तृत नीति सामने नहीं आई। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) में अकादमिक जगत के विशेषज्ञ और सेवानिवृत्त अधिकारियों को आमंत्रित किया जाता है ताकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा पर अपने सुझाव दे सकें।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) सीधा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के नीचे काम करने वाला महत्वपूर्ण अंग है। देश की इंटेलिजेंस एजेंसियाँ पहले जॉइंट इंटेलिजेंस कमिटी (JIC) को अपनी रिपोर्ट भेजती थीं जहाँ गोपनीय सूचनाओं के ढेर में से काम की सूचना छाँटकर सरकार को उस पर कार्रवाई करने का सुझाव दिया जाता था। इस प्रक्रिया को ‘raw intelligence’ में से ‘actionable intelligence’ छाँटने की संज्ञा दी जाती है।

जॉइंट इंटेलिजेंस कमिटी को अब राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के अधीन कर दिया गया है। विभिन्न इंटेलिजेंस एजेंसियाँ अब NSCS को अपनी रिपोर्ट भेजती हैं। अक्टूबर 2018 में भारत सरकार ने NSCS का पुनर्गठन करते हुए उसमें तीन डिप्टी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किए। यह बड़ा परिवर्तन है क्योंकि अब तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के अधीन एक ही डिप्टी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होता था।

तीन डिप्टी एनएसए को तीन अलग कार्यक्षेत्रों की ज़िम्मेदारी दी गई है। आर एन रवि को आंतरिक सुरक्षा, सीमा प्रबंधन, आतंकवाद, वास्तविक नियंत्रण रेखा के समीप चीन की हरकतों पर निगरानी इत्यादि काम सौंपे गए हैं। भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी पंकज सरन को मूलतः बाह्य सुरक्षा संबंधी मामले देखने को कहा गया है।

उन्हें चीन, रूस और अमेरिका के साथ राजनयिक और रणनीतिक संबंध प्रगाढ़ करने तथा थिंक टैंकों से संवाद स्थापित करने का भी काम दिया गया है। तीसरे डिप्टी एनएसए राजिंदर खन्ना पूर्व R&AW अधिकारी हैं। उन्हें साइबर सिक्योरिटी और सशस्त्र सेनाओं के लिए अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीक और इसरो की उपयोगिता सुनिश्चित करने के कार्यभार सौंपा गया है।

तीन डिप्टी एनएसए के अतिरिक्त NSCS में एक बड़ा परिवर्तन करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल वी जी खंडारे (सेवानिवृत्त) को मिलिट्री एडवाइजर बनाया गया है। जनरल खंडारे तीनों डिप्टी एनएसए के संपर्क में रहेंगे और थलसेना, वायुसेना तथा नौसेना मुख्यालय से NSCS का सीधा संवाद स्थापित करेंगे।

यह उल्लेखनीय निर्णय है क्योंकि रणनीतिक चिंतकों की लंबे समय से यह शिकायत रही है कि सरकार सुरक्षा संबंधी नीति निर्धारण में सशस्त्र सेनाओं के अध्यक्षों की भूमिका को नकारती रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) की भूमिका अब केवल राष्ट्रीय सुरक्षा पर मंडराते खतरों का मूल्यांकन करना ही नहीं है बल्कि अब वह राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी नीतियाँ बनाने में भी प्रत्यक्ष सहयोग करेगा।

जानकारों की माने तो अब NSCS के अधिकारी रक्षा, गृह और विदेश मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के अतिरिक्त लगभग हर मंत्रालय जैसे कि रेलवे, नागरिक उड्डयन, पर्यावरण आदि के सचिवों से भी लगातार परामर्श करते रहेंगे। इससे किसी भी आपात स्थिति में सभी पक्षों का विश्लेषण कर त्वरित निर्णय लेने में सुविधा होगी।

ध्यातव्य है कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को एक निष्प्रभावी संस्था माना जाता रहा है क्योंकि यह अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल के तर्ज़ पर बनी थी लेकिन इसे संवैधानिक दर्ज़ा नहीं दिया गया था। जहाँ अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल 1947 के अधिनियम से बनी थी और वह देश की सुरक्षा संबंधी निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है वहीं भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद एक प्रशासनिक आदेश से बनाई गई संस्था है और आज भी भारत में सुरक्षा संबंधी निर्णय सर्वोच्च स्तर पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति ही लेती है।

फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री ही होते हैं और अटल जी के कार्यकाल से ही यह परिपाटी रही है कि प्रधानमंत्री और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के मध्य जितना अच्छा तालमेल बनता गया, यह संस्थान उतना ही मजबूत होता गया।

हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका के हित भारत से भिन्न और बड़े हैं। अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल के इतिहास और कार्यशैली पर डेविड रॉथकोप्फ ने एक पुस्तक लिखी है: Running the World: The Inside Story of the National Security Council and the Architects of American Power.

इस पुस्तक में रॉथकोप्फ लिखते हैं कि यद्यपि नेशनल सिक्योरिटी कॉउंसिल कानूनी तौर पर अमेरिका के राष्ट्रपति और उनके अधिकारियों को असीम शक्ति प्रदान करती है लेकिन कानून और इतिहास उतने महत्वूर्ण नहीं हैं जितना राष्ट्रपति और उनके विश्वस्त अधिकारियों के बीच संबंध। इससे हमें पता चलता है कि भले ही कोई एजेंसी क़ानूनी तौर पर बनी हो लेकिन उसका सुचारू रूप से कार्य करना अधिकारियों की दक्षता पर निर्भर करता है।

26 जनवरी को राजपथ पर इतिहास में पहली बार दिखेगी बेटियों की ‘बहादुरी’

देश 70वाँ गणतंत्र दिवस को मनाने के लिए तैयार है। राजपथ से इतिहास में पहली बार देश को बेटियों द्वारा किया जाने वाला बाइक स्टंट देखने को मिलेगा। भारतीय सेना सिग्नल कोर डिवीजन में तैनात कैप्टन शिखा 26 जनवरी को भारतीय सेना की महिला टुकड़ी ‘डेयर डेविल्स’ की ओर से चलती हुई बाइक रॉयल एनफील्ड 350 CC पर स्टंट करते हुए तिरंगे को सलामी देंगी।

शिखा इसके लिए पिछले तीन महीने से लगभग आठ घंटे अभ्यास कर रही हैं। सेना में सिग्नल कोर डिवीजन में तैनात शिखा अभी पंजाब के भटिंडा में पोस्टेड हैं। इतिहास गढ़ने के मामले में लेफ़्टिनेंट भावना कस्तूरी भी भारतीय सेना की पहली ऐसी महिला होंगी, जो पहली बार 144 पुरुष सैन्यदल की परेड को लीड करेंगी।

शिखा के पिता शैलेंद्र कुमार सिंह कहते हैं, “वह बचपन से ही साहसी थी और खेलकूद में बहुत रुचि लेती थी।” बता दें कि बीते 15 जनवरी ‘आर्मी डे’ पर भी इतिहास में पहली बार महिला अधिकारी ने परेड का नेतृत्व किया था।

बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं शिखा

शिखा का खेलकूद में अधिक रुचि है, यही कारण है सेना में अधिकारी के पद पर रहते हुए शिखा ने महिला बॉक्सिंग में ऑल इंडिया प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किया है। मार्शल आर्ट, कराटे, बॉक्सिग, पर्वतारोहण और बाइक राइडिंग में भी इनकी पहचान है। सेना की ओर से शिखा दो बार पर्वतारोहण और एडवेंचर स्पोर्ट का प्रशिक्षण प्राप्त कर भूटान तक मोटरसाइकिल से यात्रा कर चुकी है।

‘खेल में रुचि होने से मिली आर्मी जॉइन करने की प्रेरणा’

एक इंटरव्यू में कैप्टन शिखा ने बताया, “मैं शुरू से ही एक स्पोर्ट्सपर्सन थी, और बॉक्सिंग करना बास्केटबॉल खेलना मुझे अच्छा लगता था। और खेल में रुचि होने के चलते ही मुझे इंडियन आर्मी जॉइन करने की प्रेरणा मिली।” बता दें कि शिखा ने IT से बीटेक किया हुआ है और उसके बाद इंडियन आर्मी जॉइन करने के लिए उन्होंने जमकर मेहनत की है।

शिखा के पिता शैलेंद्र बताते हैं कि बीटेक में शिखा के अच्छे नंबर के आधार पर यूनिवर्सिटी इंट्री स्कीम के तहत एसएसबी साक्षात्कार के लिए वो चुनी गई थीं। जिसमें पास होने के बाद 2013 में वह आर्मी ऑफिसर बनीं।

भावना कस्तूरी लीड करेंगी पुरुषों के दल को लीड

एक तरफ शिखा पहली बार बाइक स्टंट करके इतिहास बना रहीं हैं, तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय आर्मी सर्विस कॉर्प्स की लेफ़्टिनेंट भावना कस्तूरी भी भारतीय सेना की पहली ऐसी महिला होंगी, जो पहली बार 144 पुरुष सैन्यदल की परेड को लीड करेंगी। 26 साल की भावना हैदराबाद की हैं। भावना कहती हैं, “23 साल बाद आर्मी कॉर्प्स के दस्ते को परेड करने का मौक़ा मिला है और वो भी मुझे लीड करना है, ये मेरे लिए बहुत ही गर्व करने वाला पल है।”

प्रैक्टिस के दौरान लेफ़्टिनेंट भावना कस्तूरी

गणतंत्र दिवस पर न गाएँ वंदे मातरम, ‘भारत माता की जय’ भी न बोलें: देवबंद दारुल उलूम का फ़तवा

एक ओर जहाँ सारा देश इस वक़्त 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की तैयारियों में व्यस्त है और बेसब्री से इंतज़ार भी कर रहा है, वहीं देवबंद उलेमा ने एक विवादित फ़रमान जारी कर दिया है कि गणतंत्र दिवस पर वन्दे मातरम न गाया जाए। इसी के साथ ‘भारत माता की जय’ बोलने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

मदरसा जामिया हुसैनिया के मुफ़्ती तारिक़ कासमी ने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर वंदे मातरम न गाने और ‘भारत माता की जय’ भी न बोलने पर पाबंदी लगा दी है। इस बात पर उन्होंने तर्क दिया है कि वन्देमातरम और भारत माता के नारे इस्लाम के ख़िलाफ़ हैं।

उनके अनुसार, “इस्लाम में सिर्फ़ अल्लाह की इबादत होती है। भारत माता की जय बोलते समय एक प्रतिमा का ख़याल आता है, इसी कारण मुस्लिमों को यह नारा नहीं लगाना चाहिए।” अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि मुस्लिम सिर्फ़ हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगा सकते हैं और देशभक्ति ज़िन्दा रखने का यही तरीका सही है। उन्होंने पूछा कि वन्दे मातरम में ऐसा कौन सा शब्द है जो इस बात की दलील देता हो कि यह देशभक्ति है?

मुफ़्ती तारिक़ कासमी ने कहा कि मुस्लिमों ने पहले भी देशभक्ति नारे लगाए हैं और आगे भी लगाते रहेंगे, लेकिन ‘भारत माता की जय’ के नारे बिल्कुल नहीं लगाएँगे। इस किस्से के चर्चा में आने के बाद उलेमा ने कारण दिया है कि वन्दे मातरम गाने और ‘भारत माता की जय’ बोलने से देशभक्ति साबित नहीं होती है।

बता दें कि कुछ दिन पहले ही इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद गणतंत्र दिवस पर अपने छात्रों के बाहर आने-जाने पर पाबंदी का फ़रमान जारी कर चुका है। पाबंदी के लिए जारी किए गए सर्कुलर के अनुसार, अगर 26 जनवरी के मौक़ पर छात्र बाहर जाते हैं तो उन्हें कई मुसीबतों का का सामना करना पड़ सकता है। इसमें कहा गया था कि इस दौरान उनका उत्पीड़न हो सकता है। इस नाते एहतियाद बरतते हुए छात्र संस्थान परिसर से बाहर न जाएँ, इसके साथ ही छात्रों को ट्रेन में सफर न करने को भी कहा गया था।

अपने अज़ीबोग़रीब फ़तवों को लेकर अक्सर चर्चा में आने वाले इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद के इफ़्ता विभाग (फ़तवा विभाग) ने इसी जनवरी माह में मोबाइल फोन से सेल्फ़ी लेने पर फ़तवा जारी करते हुए कहा था कि यह नाजायज़ चीज़ है। उन्होंने बयान दिया था कि सेल्फ़ी के सोशल मीडिया पर प्रकाशित होने से मर्दों और औरतों की नज़र इस पर पड़ती है, जिससे बेशर्मी बढ़ती है। उन्होंने यह भी कहा था कि सिर्फ़ सरकारी दस्तावेज़ों के लिए ही फ़ोटो ली जानी चाहिए।

इसके अलावा फ़तवा विभाग ने कहा था कि सार्वजानिक स्थानों और शादी- विवाह में महिला और पुरुषों को साथ खाना नहीं खाना चाहिए और औरतों को सलीके से ही कपड़े पहनकर जाना चाहिए।

छात्रों द्वारा महज़ 6 दिन में निर्मित विश्व के सबसे हल्के ‘कलामसैट’ की लॉन्चिंग के साथ इसरो ने रचा इतिहास

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संस्थान (ISRO) लगातार कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा है। कल देर रात इसरो ने विश्व का सबसे छोटा सैटेलाइट लॉन्च कर दुनिया के अग्रणी देशों में एक बार फिर ख़ुद को शुमार किया।

बता दें कि कल देर रात PSLV C-44 रॉकेट ने श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से 2019 के पहले मिशन के रूप में 28 घंटे की कॉउंटडाउन के बाद रात 11 बजकर 37 मिनट पर उड़ान भरी। इस मिशन में भारतीय सेना के सैटेलाइट ‘माइक्रोसैट’ के साथ छात्रों का बनाया सबसे हल्का सैटेलाइट ‘कलामसैट’ भी लॉन्च किया गया। कलामसैट इतना छोटा है कि इसे ‘फेम्टो’ श्रेणी में रखा गया है।

मिशन की सफलता के बाद इस बात की जानकारी के साथ एक तस्वीर भी इसरो ने ट्विटर पर भी शेयर की।

इसरो प्रमुख, के सिवन, के अनुसार ‘कलामसैट’ दुनिया का सबसे कम भार का उपग्रह है जिसे पृथ्वी की कक्षा में सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया गया है। यह PSLV की 46वीं उड़ान थी। इसरो ने बताया कि PSLV C-44 द्वारा 740 किलोग्राम भार वाले माइक्रोसैट-R को, प्रक्षेपण के करीब 14 मिनट बाद, 274 किलोमीटर की ऊँचाई पर ध्रुवीय सूर्य तुल्यकालिक कक्षा (Polar Satellite Orbit) में स्थापित कर दिया। इसके बाद 10 सेंटीमीटर के आकार और 1.2 किलोग्राम भार वाले ‘कलामसैट’ को और ऊपरी कक्षा में स्थापित किया।

आजतक की रिपोर्ट के अनुसार इस ख़ास सैटलाइट को तमिलनाडु के स्पेस किड्स नाम की निजी संस्था के 10वीं कक्षा के छात्रों ने महज़ 6 दिन में तैयार किया है। भारतीय छात्रों द्वारा बनाए गए ‘कलामसैट’ सैटेलाइट का नाम पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है। कलामसैट एक कम्यूनिकेशन सैटलाइट है, जिसको बस 12 लाख रुपए में तैयार किया गया है।

गुरुवार रात प्रक्षेपण के सफल होने के बाद इसरो प्रमुख के सिवन ने इस मिशन के लिए अपनी टीम और सारे देश को बधाई दी। साथ ही देश के छात्रों को इसके लिए ख़ास बधाई देते हुए सिवन ने कहा, “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान देश के सारे छात्रों के लिए हमेशा उपलब्ध है। ऐसे में मैं छात्रों से कहना चाहता हूँ  कि आप अपनी बनाई सैटलाइट्स को हमारे पास लाएँ और हम इसे आप के लिए लॉन्च करने में आपकी मदद करेंगे।” बता दें कि अंतरिक्ष विज्ञान में शोध को बढ़ावा देने के लिए इसरो ने ‘कलामसैट’ की लॉन्चिंग के लिए संस्था से कोई भी शुल्क नहीं लिया है।

वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो को बधाई दी है।

प्रधानमंत्री ने कहा है, “पीएसएलवी के एक और सफल प्रक्षेपण के लिए हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को हार्दिक बधाई। इस प्रक्षेपण ने भारत के प्रतिभाशाली छात्रों द्वारा निर्मित कलामसैट को कक्षा में स्‍थापित कर दिया है। यही नहीं, इस प्रक्षेपण के साथ ही भारत सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण संबंधी प्रयोगों के लिए एक कक्षीय प्‍लेटफॉर्म के रूप में एक अंतरिक्ष रॉकेट के चौथे चरण का उपयोग करने वाला पहला देश बन गया है।”

इसरो प्रमुख, के सीवन, के अनुसार वर्ष 2019 में कुल 32 मिशनों को अंजाम दिया जाएगा। इसमें सैटेलाइट मिशन के साथ बहुप्रतीक्षित चंद्रयान-2 और गगनयान मिशन भी शामिल है।

सरकार परमानेंट नहीं : CBI को कॉन्ग्रेस नेता आनंद शर्मा की धमकी; हुड्डा पर पड़े थे छापे

कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रोहतक स्थित आवास पर सीबीआई द्वारा की गई छापेमारी पर कॉन्ग्रेस नेता आनंद शर्मा ने अधिकारियों को धमकी देते हुए कहा है कि सरकार ‘परमानेंट’ नहीं होती। उन्होंने धमकी में यह भी याद दिलाया कि चुनाव आने वाले हैं।

सीबीआई ने यह छापेमारी 2005 में असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को गलत तरीके से ज़मीन आवंटित करने के मामले में की है। बताया जा रहा है कि छापेमारी के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुद भी अपने आवास के अंदर मौजूद रहे। सीबीआई की टीमें इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर में एक साथ 20 से अधिक जगहों पर भी छापेमारी कर रही हैं।

क्या है भ्रष्टाचार से जुड़ा पूरा मामला

सीबीआई की ये छापेमारी जहाँ साल 2005 में असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को गलत तरीके से ज़मीन आवंटित करने के मामले में मारी गई, वहीं दूसरी ओर एक रिपोर्ट की मानें तो सीबीआई ने हुड्डा के खिलाफ एक नया मामला भी दर्ज किया है, जो 2009 में गुड़गाँव में भूमि आवंटन में हुई कथित अनियमितताओं से संबंधित है।

सीबीआई ने हुड्डा के साथ कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा और एजेएल के खिलाफ चार्जशीट फ़ाइल कर दी है। बता दें कि हाल ही में हरियाणा के राज्यपाल नारायण आर्य ने (एजेएल) मामले में सीबीआई को भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी दी थी।

ऐसे किया गया था ज़मीन का फर्जी आवंटन

पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप है कि 30 अगस्त 1982 में एजेएल को ज़मीन आवंटित कर दी थी जिसमें शर्त थी कि कंपनी 6 महीने में ज़मीन पर कंस्ट्रक्‍शन करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो 30 अक्टूबर 1992 को पंचकूला के संपदा अधिकारी ने ज़मीन रिज्यूम कर ली। साथ ही, 10% राशि में कटौती कर बाकि राशि 10 नवंबर 1995 को लौटा दी गई।  

अब एजेएल ने इसका विरोध किया और राजस्व विभाग के पास अपील की, लेकिन यहाँ उसे कोई राहत नहीं मिली। आरोप है की साल 2005 में मुख्यमंत्री हुड्डा ने एजेएल को यह ज़मीन दोबारा से अलॉट करवाने का रास्ता तैयार कर दिया।

बताया जाता है कि तब हुड्डा के तत्कालीन मुख्य प्रशासक ने तर्क दिया था कि पुरानी कीमत पर ज़मीन को आवंटित करना संभव नहीं है। लेकिन बावजूद इसके 28 अगस्त 2005 को पंचकूला की ज़मीन 1982 की दर पर ही एजेएल को अलॉट कर दी गई।

ध्वस्त किया जाएगा भगोड़े नीरव मोदी का आलीशान बंगला, ED की स्वीकृति

पंजाब नैशनल बैंक को ₹13 हजार करोड़ का चूना लगाने वाले भगोड़े हीरा कारोबारी के अवैध बंगले ध्वस्त किए जाएँगे। महाराष्‍ट्र के रायगढ़ जिले में अलीबाग बीच के पास उसके ‘अवैध’ बंगले हैं, जिन्हें इसी सप्ताह ध्वस्त किया जाएगा। ये वही बंगले हैं जहाँ कभी नीरव भव्‍य पार्टियाँ दिया करता था। हाल ही में इस बंगले को कलेक्‍टर ऑफ़िस ने जाँच के बाद अवैध घोषित किया था।

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो बंगले की सभी मूल्‍यवान वस्‍तुओं को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने निकाल कर कलेक्ट्रेट ऑफिस में जमा करवा दिया है। कलेक्ट्रेट बंगले को गिराने के लिए अब केवल ईडी के औपचारिक संदेश का इंतजार कर रहा है। तहसील के एक अधिकारी की मानें तो बंगले को गिराने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों को बुलाना शुरू कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि 20 हजार वर्गफुट में बने इस बंगले को ध्वस्त करने के लिए करीब 4 दिन लग सकता है।

प्रशासन से मिल चुकी है बंगले को ध्वस्त करने की अनुमति

एक महीने पहले ही प्रवर्तन निदेशालय जिला प्रशासन को इस बंगले को गिराने की अनुमति दे चुका है। बता दें कि इससे पहले पर्यावरण मंत्री रामदास कदम ने भी अवैध बंगलों पर समीक्षा बैठक के बाद इन्हें ध्वस्त करने के आदेश दिए थे। इसके अलावा हाई कोर्ट का आदेश है कि सरकार उन सभी बंगलों को गिराए जो पर्यावरण के नियमों का उल्‍लंघन करके बनाए गए हैं। जिले के अलीबाग में इस प्रकार के कुछ 121 और मुरुद में 151 बंगले हैं जो अवैध तरीके से पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन करके बनाए गए हैं।

AJL ज़मीन आवंटन मामले में बढ़ी हुड्डा की मुश्किलेंः 30 जगहों पर CBI की छापेमारी

कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रोहतक स्थित आवास पर सीबीआई द्वारा छापेमारी की गई। सीबीआई ने यह छापेमारी 2005 में असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को गलत तरीके से ज़मीन आवंटित करने के मामले में की है। बताया जा रहा है कि छापेमारी के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा खुद भी अपने आवास के अंदर मौजूद रहे। सीबीआई की टीमें इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर में एक साथ 20 से अधिक जगहों पर भी छापेमारी कर रही हैं।

क्या है भ्रष्टाचार से जुड़ा पूरा मामला

सीबीआई की ये छापेमारी जहाँ साल 2005 में असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) को गलत तरीके से ज़मीन आवंटित करने के मामले में मारी गई, वहीं दूसरी ओर एक रिपोर्ट की मानें तो सीबीआई ने हुड्डा के खिलाफ एक नया मामला भी दर्ज किया है, जो 2009 में गुड़गाँव में भूमि आवंटन में हुई कथित अनियमितताओं से संबंधित है।

सीबीआई ने हुड्डा के साथ कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा और एजेएल के खिलाफ चार्जशीट फ़ाइल कर दी है। बता दें कि हाल ही में हरियाणा के राज्यपाल नारायण आर्य ने (एजेएल) मामले में सीबीआई को भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी दी थी।

ऐसे किया गया था ज़मीन का फर्जी आवंटन

पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप है कि 30 अगस्त 1982 में एजेएल को ज़मीन आवंटित कर दी थी जिसमें शर्त थी कि कंपनी 6 महीने में ज़मीन पर कंस्ट्रक्‍शन करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो 30 अक्टूबर 1992 को पंचकूला के संपदा अधिकारी ने ज़मीन रिज्यूम कर ली। साथ ही, 10% राशि में कटौती कर बाकि राशि 10 नवंबर 1995 को लौटा दी गई।  

अब एजेएल ने इसका विरोध किया और राजस्व विभाग के पास अपील की, लेकिन यहाँ उसे कोई राहत नहीं मिली। आरोप है की साल 2005 में मुख्यमंत्री हुड्डा ने एजेएल को यह ज़मीन दोबारा से अलॉट करवाने का रास्ता तैयार कर दिया।

बताया जाता है कि तब हुड्डा के तत्कालीन मुख्य प्रशासक ने तर्क दिया था कि पुरानी कीमत पर ज़मीन को आवंटित करना संभव नहीं है। लेकिन बावजूद इसके 28 अगस्त 2005 को पंचकूला की ज़मीन 1982 की दर पर ही एजेएल को अलॉट कर दी गई।