Wednesday, October 2, 2024
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कॉन्ग्रेस का प्रियंकास्त्र: ‘इंदिरा क्लोन’ की राजनैतिक एंट्री के 6 कारण

कॉन्ग्रेस पार्टी ने प्रियंका गाँधी को नई ज़िम्मेदारियाँ देते हुए उनकी राजनीतिक एंट्री का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। उन्हें उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रभारी बनाया गया है और साथ ही महासचिव भी बनाया गया है।ऐसा माना जाता रहा है कि प्रियंका पहले भी परदे के पीछे से कॉन्ग्रेस पार्टी के प्रमुख फ़ैसलों में हस्तक्षेप करती रहीं हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब आधिकारिक तौर पर उन्होंने राजनीति का रुख़ किया है। उत्तर प्रदेश में प्रियंका पूर्वांचल की कमान सँभालेंगी।

प्रियंका की राजनीतिक एंट्री के साथ ही ये क़यास लगने शुरू हो गए हैं कि आख़िरकार ऐसा क्या हुआ कि अचानक से उन्हें पार्टी में प्रमुख भूमिका दे दी गई। सालों से ऐसी चर्चा चल रही है कि प्रियंका गाँधी राजनीति में कूद सकती हैं लेकिन किसी को ये नहीं पता था कि ऐसा कब होगा? अब जब पार्टी ने ऐलान कर दिया है, हमें उन कारणों पर ग़ौर करना चाहिए जो प्रियंका की राजनीतिक एंट्री की वजह हो सकती है।

1. पूर्वांचल साधे, सब सधे

प्रियंका को यूपी में पूर्वांचल की कमान दी गई है। पूर्वांचल के बारे में कहा जाता है कि अगर यूपी साधना हो तो पहले पूर्वांचल से शुरू करना चाहिए। गाँधी परिवार और योगी आदित्यनाथ के प्रभाव वाला क्षेत्र होने के कारण राजनीतिक रूप से पूर्वांचल काफ़ी महत्वपूर्ण है।

2009 के आम चुनावों में कॉन्ग्रेस को इस क्षेत्र में 21 में से सिर्फ 6 सीटें मिली थी। 2014 में पार्टी एक तरह से पूरी यूपी से ही साफ़ हो गई थी। प्रियंका के कमान सँभालने से पार्टी को अपने खोए वोटर्स फिर से वापस लाने की उम्मीद है।

यूपी के साथ-साथ पूर्वांचल के क्षेत्रों में कॉन्ग्रेस की ढीली होती पकड़, गाँधी परिवारके हाथों से फिसलते गढ़ और नरेंद्र मोदी की वाराणसी में एंट्री ने पार्टी की परेशानियों को बढ़ाने का काम किया है। ऐसे में एक नए चेहरे की एंट्री से कॉन्ग्रेस को यहाँ के समीकरण में बदलाव की उम्मीद है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर और प्रधानमंत्री मोदी का नया गढ़ काशी- ये सब पूर्वांचल में ही आते हैं। राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या भी इसी क्षेत्र का हिस्सा है। ऐसे में कॉन्ग्रेस ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है।

2. जाति और जेंडर का भी है अहम रोल

उत्तर प्रदेश का इतिहास रहा है कि ब्राह्मणों के समर्थन के बिना यहाँ कोई पार्टी चुनाव नहीं जीत सकी है। मायावती जैसे बड़े नेता को भी सतीश मिश्रा जैसे ब्राह्मण चेहरे की जरूरत पड़ी थी जिसका उपयोग कर उन्होंने ब्राह्मणों को साधा था। बसपा अक्सर ‘हाथी चलता जाएगा, ब्राह्मण शंख बजाएगा’ जैसे नारे देती रही है और ‘पैर छुओ अभियान’ चलाती रही है। ब्राह्मणों के इसी दबदबे को देखते हुए प्रियंका गाँधी को लाया गया है।

अमेठी में पिछले चार सालों में स्मृति को ईरानी के बढ़ते प्रभाव ने भी कॉन्ग्रेस को ये कदम उठाने के लिए मज़बूर कर दिया। गाँधी के गढ़ में स्मृति और गठबंधन के बाद और शक्तिशाली बन कर उभरी मायावती के मुक़ाबले पार्टी ने एक महिला चेहरे को कमान दे कर एक अलग छवि बनाने की कोशिश की है।

3. कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार

प्रियंका गाँधी को फ़ोरफ़्रंट पर लाकर कॉन्ग्रेस ने मुरझाए कार्यकर्ताओं में जान फूँकने की एक नई कोशिश की है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा चुनाव- राज्य में पार्टी तीसरे-चौथे स्थान के लिए भी संघर्ष करती दिख रही है। ऐसे में कॉन्ग्रेस कार्यकर्तागण में ऊर्जा के संचार के लिए पार्टी ने ये अंतिम ब्रह्मास्त्र चलाया है।

उत्तर प्रदेश इंदिरा गाँधी की भी कर्मभूमि रही है और प्रियंका पहले भी रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार की कमान सँभालती रही हैं। कार्यकर्ताओं में यह धारणा है कि 2014 आम चुनावों में पूरे प्रदेश में कॉन्ग्रेस की करारी हार के बावजूद अमेठी-रायबरेली में पार्टी को जीत मिली थी, इसका कारण प्रियंका गाँधी ही हैं।

4. कॉन्ग्रेस नेताओं को एक रखने के लिए

कॉन्ग्रेस पार्टी का यह पुराना इतिहास रहा है कि जब-जब नेहरू-गाँधी परिवार के अलावे किसी अन्य नेता का उदय हुआ है- तब-तब पार्टी के बिखरने का संकट बढ़ा है। नरसिम्हा राव के पराभव के बाद अगर सोनिया गाँधी पार्टी की कमान नहीं सँभालती तो शायद पार्टी के कई फाड़ हो चुके होते। परिवार हमेशा से कॉन्ग्रेस नेताओं को एक सूत्र में पिरोने का जरिया रहा है। गठबंधन साथी भी कॉन्ग्रेस के अन्य बड़े नेताओं के ज़्यादा गाँधी परिवार पर भरोसा करते हैं। ऐसे में, पार्टी के प्रथम परिवार के एक और व्यक्ति का राजनीति में आना इस ट्रेंड को और मज़बूत करता है।

राहुल गाँधी की छवि बहुत हद तक नकारात्मक या मज़ाकिया किस्म की हो गई है। उन्हें उनके विरोधी या अपने लोग भी सीरियसली नहीं लेते। सोनिया गाँधी अब राजनीतिक रूप से पहले जितनी सक्रिय नहीं हैं। कॉन्ग्रेस के हाईकमान में नेतृत्व के अभाव को देखते हुए ये दाव खेला गया है। प्रियंका गाँधी पहले भी पार्टी से जुड़े निर्णय लेने वाली मण्डली का अप्रत्यक्ष रूप से हिस्सा रही हैं। परिवार के वफ़ादारों और कॉन्ग्रेस के संकटमोचकों को एक रखने के लिए पार्टी ने प्रियंका को आगे कर दिया है। पार्टी इस से यह सन्देश देने की कोशिश कर रही है कि उसके पास नेतृत्व का अभाव नहीं है।

5. योगी-मोदी के मुक़ाबले नया चेहरा

उत्तर प्रदेश हमेशा से चेहरों के खेल से चला है। वाजपेई, कल्याण सिंह से लेकर मुलायम-माया तक- जनता ने बड़े चेहरों पर भरोसा जताया है और उनके नाम पर वोट करती रही है। ताज़ा उदाहरण नरेंद्र मोदी का है। मोदी को पूर्वांचल में एंट्री देकर भाजपा ने लगभग पूरे यूपी को क्लीन स्वीप कर लिया था। कार्यकर्ताओं के पास जनता को बताने के लिए कोई चेहरा नहीं था। अब नेता प्रियंका के नाम पर वोट माँग सकते हैं।

कार्यकर्ताओं की लम्बे समय से माँग थी कि उन्हें प्रियंका के रूप में एक ऐसे चेहरे की ज़रूरत है जिसके नाम पर जनता से वोट बटोरा जा सके। लम्बे समय से चल रही इस बहस को देखते हुए पार्टी ने आख़िरकार इस बारे में निर्णय लिया और प्रियंका के रूप में जनता के सामने एक ऐसा चेहरा पेश किया है जो माया-अखिलेश और मोदी-योगी जैसे शक्तिशाली चेहरों से मुक़ाबला कर सके।

अब देखना यह है कि पार्टी को इस से क्या फ़ायदा मिलता है। 2019 के आम चुनाव आने वाले हैं। माहौल गरम है और राजनीतिक रूप से यह काफ़ी संवेदनशील समय है। अब समय ही बताएगा कि इस बदलाव का क्या असर होता है।

6. इंदिरा गाँधी की छवि

2014 आम चुनावों से पहले कॉन्ग्रेस के शिकायत प्रकोष्ठ की अध्यक्ष अर्चना डालमिया ने इंडिया टुडे में एक लेख लिख कर बताया था कि कैसे प्रियंका गाँधी में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की छवि दिखती है। ये कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की प्रियंका के प्रति राय को दिखता है।

उस लेख में उन्होंने बताया था कि कैसे अगर शक्लो-सूरत की बात करें तो प्रियंका गाँधी का हेयरस्टाइल भी इंदिरा गाँधी से मिलता-जुलता है। इतना ही नहीं, उनके अनुसार प्रियंका की नाक की बनावट भी अनायास इंदिरा की याद दिलाती है। वो इंदिरा की तरह ही लम्बी है और लम्बे-लम्बे डग भर कर चलती है। इंदिरा गाँधी की तरह वह भी गाँधी परिवार के संसदीय क्षेत्रों में आम लोगों से मिलती-जुलती रहीं हैं।

कॉन्ग्रेस के अधिकतर पदाधिकारियों की प्रियंका के बारे में यही राय है जो अर्चना की है। ऐसे में समझा जा सकता है कि कॉन्ग्रेस के लोग उनमें इंदिरा को देखते हैं। ये एक बड़ा कारण है कि कार्यकर्ताओं में उन्हें कॉन्ग्रेस के सुनहरे काल की याद दिखती है।

नरोदा पाटिया नरसंहार: सुप्रीम कोर्ट ने चार आरोपितों को जमानत दी, कहा कन्विक्शन है डिबेटेबल

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के नरोदा पाटिया मामले में चार आरोपितों को जमानत दी है।कोर्ट ने कहा की गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया फ़ैसला बहस का मुद्दा है। गुजरात में 2002 में दंगों के दौरान हुए इस नरसंहार में 97 लोगों की मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली बेंच ने चार आरोपितों उमेशभाई सुराभाई भारवाड़, राजकुमार, पद्मेंद्रसिंह जसवंतसिंह राजपूत और हर्षद उर्फ मुंगडा जिला गोविंद छाड़ा परमार की जमानत मंगलवार (जनवरी 22, 2019) को मंजूर कर ली।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट की सजा का फ़ैसला “डिबेटेबल” है, जिसमें लम्बा समय लगेगा और उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई होने के बाद उन्हें जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। एक को अपनी बेटी की शादी के लिए अस्थायी जमानत दी गई है।

नरोदा पाटिया नरसंहार की यह घटना गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बों में हुये अग्निकांड के एक दिन बाद की है। इस घटना में अहमदाबाद के नरोदा पाटिया क्षेत्र में 28 फ़रवरी 2002 को भीड़ ने 97 लोगों की हत्या कर दी थी। जिनमें ज़्यादातर कर्नाटक और महाराष्ट्र के प्रवासी थे, भीड़ द्वारा दंगों में मारे गए थे। भीड़ ने आक्रोश में लगभग 800 घरों वाले इलाके में आग लगा दी थी।

गुजरात उच्च न्यायालय ने पिछले साल 20 अप्रैल को इस मामले के 29 आरोपितों में से में से 12 को दोषी ठहराया था और भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी सहित 17 अन्य को आरोप सिद्ध न होने पर बरी कर दिया था। इससे पहले निचली अदालत ने सभी 29 आरोपितों को दोषी ठहराया था।

प्रियंका गाँधी वाड्रा की राजनीति में एंट्री, कॉन्ग्रेस का मास्टर स्ट्रोक?

लोकसभा चुनाव 2019 को ध्यान में रखते हुए कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पार्टी के संगठन में फ़ेरबदल किया है। कॉन्ग्रेस पार्टी अध्यक्ष ने प्रेस रिलीज़ जारी करके संगठन में होने वाले बदलाव की जानकारी मीडिया को दी है।

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राहुल गाँधी द्वारा जारी प्रेस रिलीज में प्रियंका गाँधी को पूर्वी यूपी के लिए कॉन्ग्रेस जनरल सेक्रेटरी की ज़िम्मेदारी दी गई है। अब तक सिर्फ चुनाव प्रचार का ज़िम्मा संभालने वाली प्रियंका गाँधी की राजनीति में औपचारिक एंट्री हो गई है। इसी प्रेस रिलीज़ में कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता वेणु गोपाल को ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमिटी का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया है। इसके साथ ही वेणु गोपाल को कर्नाटक की ज़िम्मेदारी भी दी गई है।

प्रियंका गाँधी कॉन्ग्रेस पार्टी में यह ज़िम्मेदारी फ़रवरी के पहले सप्ताह से संभालेंगी। इसके अलावा कॉन्ग्रेस पार्टी में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी नई ज़िम्मेदारी दी गई है। मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव के बाद यह संभावना थी कि सिंधिया को पार्टी ने भले ही मुख्यमंत्री की गद्दी न दी हो, परंतु संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारी देने की संभावना है। हालाँकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए जनरल सेक्रेटरी बनाकर एक तरह से पार्टी ने सिंधिया को लॉलीपॉप थमा दिया है।

प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा ने उनको कॉन्ग्रेस पार्टी की ओर से नई ज़िम्मेदारी मिलते ही फेसबुक पर बधाई दी।

कॉन्ग्रेस ने गुलाम नबी आजाद को हरियाणा का जनरल सेक्रेटरी नियुक्त किया है। इससे पहले
गुलाम नबी आजाद उत्तर प्रदेश जनरल सेक्रेटरी की भूमिका निभा रहे थे।

कॉन्ग्रेस पार्टी के संगठन में हुए इस बदलाव पर टिप्पणी करते हुए भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, “बीजेपी में पार्टी ही परिवार है, जबकि कॉन्ग्रेस में परिवार ही पार्टी है। यूपी में तो गठबंधन से नकारे ही गए, बिहार में भी मनमुटाव चल रहा है।”


सबरीमाला से लौटी कनकदुर्गा को ससुराल और मायके वालों ने घर से निकाला

800 वर्षों की परंपरा को तोड़ कर सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली कनकदुर्गा को लेकर चल रहा ड्रामा थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब मीडिया में ख़बर आई है कि कनकदुर्गा को उसके ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया है। इतना ही नहीं, उसके मायके वालों ने भी उसे घर में घुसने की इजाज़त नहीं दी है। पुलिस के अनुसार जब वो कनकदुर्गा को लेकर उसके ससुराल पहुँची तो पाया कि कनकदुर्गा के पति घर में ताला लगा कर बच्चों संग कहीं और चले गए हैं।

कनकदुर्गा के परिवार ने कहा है कि उसके ‘कृत्य’ से पूरे समुदाय को शर्मसार होना पड़ा है और लाखों श्रद्धालुओं की भावना को ठेस पहुँची है। उसके सरकारी कर्मी पति ने कहा कि वे उसे तब तक नहीं स्वीकार करेंगे, जब तक कि वह अपने पाप का प्रायश्चित नहीं कर लेती है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सितम्बर 2018 में महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने की इजाज़त दे दी थी जिसके बाद श्रद्धालुओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था। उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय के बाद कनकदुर्गा सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली पहली महिला थी। 39 वर्षीय कनकदुर्गा ने एक अन्य महिला के साथ सबरीमाला की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को धता बताते हुए मंदिर में प्रवेश किया था।

ताजा ख़बरों के अनुसार कनकदुर्गा के भाई ने उस से साफ़-साफ़ कह दिया है कि उसे उसके पैतृक आवास में घुसने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। फ़िलहाल कनकदुर्गा को पुलिस की निगरानी में सरकारी आश्रय गृह में रखा गया है। उसके भाई ने पहले ही कहा था कि जब तक कनकदुर्गा हिन्दुओं और सबरीमाला मंदिर के श्रद्धालुओं से माफ़ी नहीं माँग लेती, तब तक उसे घर में नहीं घुसने दिया जाएगा।

अभी कुछ दिनों पहले ही कनकदुर्गा ने अपनी सास पर उसकी पिटाई करने का आरोप लगाया था। उसने कहा था कि जैसे ही वो घर पहुँची, उसकी सास ने लकड़ी के तख़्ते से उस पर हमला कर दिया और उसके सिर पर वार किया। बाद में ख़बर आई कि कनकदुर्गा की उसकी सास ने पिटाई नहीं की थी, बल्कि उसने ही अपनी सास के साथ मारपीट की थी। पुलिस ने दोनों के ख़िलाफ़ एक-दूसरे से मारपीट करने का केस दर्ज़ किया था।

कनकदुर्गा का परिवार उस से तभी से नाराज़ चल रहा था जब से उसके सबरीमाला में प्रवेश करने की ख़बर आई थी। उसके भाई ने इसे CPM और केरल पुलिस की साज़िश बताया था। ज्ञात हो कि केरल के मुख्यमंत्री पिन्नाराई विजयन ने सबरीमाला में प्रवेश करने वाली इन महिलाओं को पूरी सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद इन्हे पुलिस प्रोटेक्शन के साथ उसे आधी रात को मंदिर की सीढ़ियों पर ले जाया गया।

भतीजी मीसा भारती के हाथ काटने वाले बयान पर भावुक हुए रामकृपाल

केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री रामकृपाल यादव ने मीसा भारती के विवादित बयान पर अपनी टिप्पणी दी है। बता दें कि राजद सुप्रीमो लालू यादव की बेटी मीसा भारती ने हाल ही में विवादित बयान देते हुए कहा था- “जब रामकृपाल बीजेपी में शामिल हो रहे थे, तब मेरा मन उनका हाथ गँड़ासे से काटने का हुआ था।” इस पर प्रतिक्रया देते हुए रामकृपाल ने कहा कि मीसा उनकी बेटी की तरह है और उनका कटा हुआ हाथ भी उसे आशीर्वाद देने के लिए ही उठेगा।

16 जनवरी को दिए बयान में मीसा भारती ने कहा था कि राम कृपाल यादव उनके घर में चारा काटते थे। उन्होंने कहा था कि रामकृपाल के लिए उनके मन में सम्मान तभी ख़त्म हो गया था जब उन्होंने सुशील मोदी से हाथ मिला लिया। मीसा ने रामकृपाल के बारे में आगे कहा था कि वे जिस दिन सुशील मोदी के साथ हाथ पकड़कर खड़े थे, उन्हें उस दिन इतनी ईर्ष्या हुई कि मन किया कि उसी कुट्टी काटने वाले गँड़ासे से हाथ काट दें।

बिहार के पाटलिपुत्र क्षेत्र से सांसद रामकृपाल यादव ने मीसा के विवादित बयान पर आगे कहा;

“मीसा भारती ने जैसा बयान दिया, वह लोकतंत्र में दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा बयान लोकतंत्र में विश्‍वास करने वाला नहीं दे सकता। ऐसा बयान कोई सेवक नहीं, शासक ही दे सकता है। मैं एक किसान ग़रीब परिवार का बेटा हूँ। पिताजी दूध बेचते थे, कुट्टी काटते थे। जब तक राजनीतिक-समाजिक जीवन में रहूँ गा, तब तक मेरा हाथ गरीबों की सेवा के लिए उठेगा।”

रामकृपाल यादव ने अपनी ग़रीब पारिवारिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए मीसा के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि मीसा उनकी भतीजी है, बेटी के समान है और उनका आशीर्वाद हमेशा उसके साथ रहेगा।

ज्ञात हो कि राम कृपाल यादव को कभी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का ‘हनुमान’ कहा जाता था। मार्च 2014 में जब लालू ने पाटलिपुत्र सीट से रामकृपाल की जगह अपनी बेटी मीसा को टिकट देने का फ़ैसला लिया, तभी से दोनों के रिश्तों में खटास आ गई। इसके बाद रामकृपाल भाजपा में शामिल हो गए और पाटलिपुत्र सीट से ही चुनाव लड़ते हुए मीसा भारती को 40,000 से भी अधिक मतों से हराया।

हाल ही में तेज प्रताप यादव ने ये ऐलान कर दिया कि मीसा फिर से पाटलिपुत्र से ही चुनाव लड़ेगी और वो इसके लिए प्रचार शुरु करने जा रहे हैं। पाटलिपुत्र सीट पर आगामी चुनावों में फिर से चाचा-भतीजी की लड़ाई देखने को मिल सकती है। ऐसे में उम्मीद कम है कि बयानबाज़ी का ये दौर थमेगा।

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला: मिशेल ने रिश्वत में मिली रक़म को लंदन में ठिकाने लगाया

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में नित नए ख़ुलासे हो रहे हैं। अब CBI ने नया ख़ुलासा करते हुए कहा है कि मिशेल ने अगस्ता वेस्टलैंड में इस्तेमाल न होने वाले फ़ंड्स को लंदन स्थित बैंक एकाउंट्स में ट्रांसफ़र किए। ये उसने तब किया, जब भारत उसके प्रत्यर्पण के लिए प्रयास कर रहा था। सीबीआई के अनुसार बिचौलिया मिशेल ने प्रत्यर्पण से पहले रिश्वत में मिली रक़म को ठिकाने लगा दिया।

जाँच एजेंसी ने इस सम्बन्ध में ब्रिटिश अधिकारीयों से संपर्क किया है और उन्हें इन ट्रांसफ़र्स की जानकारी दे दी है। सीबीआई ने ब्रिटिश अधिकारीयों से इन ट्रांसफ़र्स के विवरण भी माँगे हैं और इसके लिए उन्हें जुडिशल रिक्वेस्ट (Judicial Request) भेज दिया गया है। जाँच एजेंसी के मुताबिक़ ₹3,700 करोड़ के अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में मिशेल को ₹300 करोड़ रिश्वत के रूप में दिए गए थे। इन में से कई करोड़ रुपयों का अभी तक कोई हिसाब-किताब नहीं पता चल पाया है।

सीबीआई ने दावा किया कि मिशेल को ट्रांसफ़र किए गए रुपयों को उसे भारतीय रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों और नेताओं तक पहुँचाना था ताकि डील पूरी की जा सके। टाइम्स ऑफ इंडिया के सूत्रों के अनुसार मिशेल ने कैश के रूप में काफ़ी रुपए भारत में पहुँचाए थे। बावजूद इसके, उसके बैंक खातों काफ़ी रुपए बचे हुए थे जिन्हे उसने ठिकाने लगा दिया। ये रुपए उसके दो कंपनियों के बैंक खातों में थे। उन कंपनियों के नाम हैं- ग्लोबल सर्विसेज FZE (दुबई) और गोबल ट्रेड एंड कॉमर्स सर्विसेज (लंदन)।

2017-18 के दौरान सीबीआई मिशेल के प्रत्यर्पण के लिए लगातार दुबई सरकार के संपर्क में थी। तब मिशेल दुबई में ही ज़मानत पर बाहर था। अधिकारियों का मानना है कि मिशेल को इस बात की भनक लग गई थी कि भारतीय जाँच एजेंसियाँ उसके नजदीक है और इसी कारण उसने रुपयों को ठिकाने लगाना बेहतर समझा।

मिशेल ने पिछले दो सालों में कई बार दुबई छोड़ने की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हो पाया। भारतीय एजेंसियों से बचने के लिए वो दुबई में अपना व्यापार समेटना चाहता था लेकिन सीबीआई ने उसे पहले ही अपने गिरफ़्त में ले लिया। जनवरी 10, 2019 को प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा था कि अगस्ता वेस्टलैंड के मामले में आरोपित बिचौलिया मिशेल को रक्षा मामले में कैबिनेट की मीटिंग और रक्षा से जुड़ी सरकार की गुप्त फ़ाइलों के बारे में कैसे पता चल जाता था।

इम्तियाज़ और अब्दुल ने कॉन्स्टेबल प्रकाश को पिकअप ट्रक चढ़ाकर मार दिया, कहीं ख़बर पढ़ी?

इम्तियाज़ अहमद फ़ैयाज़ (19) और मोहम्मद रज़ा अब्दुल क़ुरैशी (20) गाय चुराकर ले जा रहे थे, कॉन्स्टेबल पेट्रोलिंग कर रहे थे। गायों को दो पिकअप ट्रक में डालकर यवतमाल से नागपुर ले जाया जा रहा था। सड़क पर पुलिस ने रूटीन चेक के लिए बैरिकेड लगा रखे थे। इन्हें लगा कि पकड़ लिए जाएँगे तो बिना रुके गाड़ी भगाते रहे।

इसी चक्कर में पुलिस जवान धीरज मेशराम और सूरज मेशराम घायल हो गए। उन्होंने आगे ख़बर कर दी कि दो गाड़ियाँ गाय लेकर भाग रही हैं। पुलिस कॉन्स्टेबल प्रकाश मेशराम और कमलेश मोहमरे अगले चेकपोस्ट पर तैनात थे। गाड़ियाँ वहाँ की ओर आईं, तो प्रकाश मेशराम ने रुकने का इशारा किया। न तो अब्दुल रुका, न क़ुरैशी। गाय लेकर जा रहे ट्रक से अब्दुल और क़ुरैशी में प्रकाश मेशराम को कुचल दिया, जिससे उनकी वहीं पर मृत्यु हो गई।

इनके दो और साथी, मोहम्मद फ़ाहिम अजीम शेख़ (23) और आदिल ख़ान उर्फ़ मोहम्मद क़ादिर ख़ान (21), मौक़े से भाग गए थे, जिन्हें पुलिस ने बाद में पकड़ लिया।

अब आप इसी हत्या की कहानी के नाम बदल दीजिए, प्रकाश को ट्रक पर बिठा दीजिए, फ़ैयाज़ और क़ुरैशी को पुलिस बना दीजिए। तब ये घटना, भले ही इसमें घृणा का एंगल न हो, साम्प्रदायिक हो जाएगी। हिन्दू के हाथों समुदाय विशेष के युवक की दुर्घटनावश हुई मौत में भी गोमांस डालकर लोग प्राइम टाइम कर लेते हैं। पता चलता है कि जुनैद तो सीट के लिए लड़ रहा था, झगड़े के कारण मारा गया।

मेरी कोई मंशा इस अपराध को धार्मिक रंग देने की नहीं है। मेरी मंशा कुछ असहज सवाल पूछने की है कि क्या प्रकाश की हत्या, पहले के डिजिटल क्रोध, प्लाकार्ड संवेदनशीलता और असहिष्णु समाज के मानदंडों पर खरा उतरेगा? क्या समुदाय विशेष के युवकों द्वारा गाय की स्मग्लिंग, जबकि ये ग़ैरक़ानूनी होने के साथ-साथ धार्मिक तौर पर भी संवेदनशील मुद्दा है, एक सामान्य अपराध है?

और सामान्य अपराध है तो फिर गौरक्षकों को यही पत्रकार, यही सेलिब्रिटी और यही बुद्धिजीवी छिटपुट हिंसा की घटनाओं पर आड़े हाथों क्यों लेते हैं? आख़िर, तब पूरा देश ही कैसे इनटॉलरेंट हो जाता है? यहाँ तो अब्दुल और क़ुरैशी ने दो पुलिस जवान को घायल किया और तीसरे को कुचल कर मार ही दिया। क्या इस घटना में से और कुछ निकलकर नहीं आता?

क्या मैं, पिछली घटनाओं को आधार मानकर, ये सवाल न पूछूँ कि समुदाय विशेष के लोगों को गाय काटकर खाने की ऐसी भी क्या चुल्ल मचती है कि वो पुलिस कॉन्स्टेबल की हत्या करने पर आमादा हो जाते हैं? कानून के लिए कितनी इज़्ज़त है कि बुलंदशहर में भी इसी तरह गायों के काटे जाने की ख़बर की परिणति एक पुलिस अफसर और एक नवयुवक की मौत के रूप में हुई?

आख़िर बवाल तब ही क्यों होता है जब गायों की चोरी करते हुए अपराधियों को कुछ हिन्दू गौरक्षक घेरकर पीटते हैं, या कभी-कभी पिटाई के कारण उनकी मौत हो जाती है? अगर मोदी इन गौरक्षकों को फोन करके गाय चोरी करनेवालों को पीटने कहता है, तो फिर इन समुदाय विशेष के लड़कों को पुलिस के ऊपर गाड़ी चढ़ाने के लिए कौन फोन करता है?

जब गौरक्षक कानून हाथ में लेते हैं तो पूरा हिन्दू समाज असहिष्णु हो जाता है, फिर इस दूसरे मजहब द्वारा पुलिस की हत्या पर क्या कहा जाए? जब गाय का मसला संवेदनशील और भावनात्मक है तो फिर एक ख़ास मज़हब के लोग बार-बार वही काम क्यों करते हैं जिससे भावनाएँ भड़कती हैं और दंगे तक होते हैं? क्या हिन्दू समाज को उकसाकर, अपने अल्पसंख्यक होने की बात कहकर मजहबी अपराधी अपने दुष्कृत्यों को अंजाम देते रहेंगे?

सवाल बहुत हैं, आउटरेज बहुत कम है। कानून और दूसरे धर्म के संवेदनशील प्रतीकों को लेकर इस तरह की सोच जो लोगों की जान ले लेती है, तथा हमारे मीडिया में इन बातों को हमेशा ‘छिटपुट’ हिंसा कहकर टरका दिया जाता है, एक समाज की मानसिकता के बारे में बहुत कुछ कहता है।

दस मिनट में रॉड, लाठी और पत्थर लेकर सड़कों पर उतरती भीड़, और वोट के लिए पुलिस स्टेशन में दंगाइयों के साथ बैठकर बातचीत करना, ऐसे नवयुवकों को हिम्मत देता है कि वो पुलिस कॉन्स्टेबल के ऊपर गाड़ी चढ़ाकर निकल जाते हैं।

‘कमलनाथ सरकार का हाल कर्नाटक जैसा हो जाएगा, वरना मुझे मंत्री बनाओ’

मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस की कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की विधायक रामबाई ने एक बार फिर तीख़े तेवर दिखाए। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि मंत्री-पद नहीं दिया गया तो कमलनाथ सरकार का हाल भी कर्नाटक जैसा ही होगा।

मध्यप्रदेश के पथरिया से बसपा विधायक रमाबाई ने कहा कि सरकार बनाने से पहले कॉन्ग्रेस ने हमें मंत्री-पद का वादा किया था। लेकिन अभी तक उनकी ओर से इस पर फ़ैसला नहीं लिया गया है। रमाबाई ने कहा कि मुख्यमंत्री कमलनाथ जल्द से जल्द अपना वादा पूरा करें, वरना राज्य में कर्नाटक जैसे हालात बन जाएगा।

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक निर्वाचित हुए हैं। मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं। इनमें कॉन्ग्रेस के 114 विधायक हैं। कमलनाथ ने बसपा के 2, सपा के एक और 4 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई थी।

राज्य सरकार की स्थिरता और निर्दलीय विधायकों की विश्वसनीयता पर तंज़ कसते हुए विधायक रमाबाई ने कहा कि निर्दलीय विधायकों का कोई भरोसा नहीं है। वो किसी भी वक़्त किसी से भी हाथ मिला लेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि बसपा का समर्थन पार्टी का समर्थन है। इसलिए कोई विधायक हिल-डुल नहीं सकता। ऐसे में कमलनाथ को इस बारे में सोचना चाहिए।

10% जनरल कोटा: 3 लाख सीटें बढ़ेंगी IIT-IIM सहित केंद्र-पोषित विश्वविद्यालयों में

सामान्‍य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों के लिए 10 प्रतिशत रिजर्वेशन के बाद केंद्र सरकार अब इसे धरातल पर उतारने की भी तैयारी में है। इसी दिशा में केंद्र द्वारा पोषित शिक्षण संस्थानों में सीटों को बढ़ाने के संबंध में मोदी सरकार ने अहम फैसला लिया है। IIT और IIM सहित सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में तीन लाख तक सीटें बढ़ाई जाएंगी। सरकार ने इसे दो चरणों (2019-20 और 2020-21) में पूरा करने का निर्णय लिया है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर के अनुसार मोदी सरकार के इस निर्णय से प्रीमियम शिक्षा संस्थानों और बड़े विश्वविद्यालयों में वर्ष 2021 तक लगभग इतनी सीटें बढ़ जाएंगी:

  • IIT – 5100 नई सीटें
  • IIM – 817 नई सीटें
  • NITs – 4500 नई सीटें
  • दिल्ली विश्वविद्यालय – 16375 नई सीटें
  • JNU – 346 नई सीटें
  • जामिया – 2275 नई सीटें
  • विश्व भारती – 822 नई सीटें

केंद्र सरकार ने देश की सभी राज्य सरकारों को भी उनके द्वारा पोषित शिक्षण संस्थानों में सामान्‍य वर्ग कोटे को समाहित करने के लिए नई सीटों के सृजन को लेकर पत्र लिखा है। अगर राज्य सरकारें इस दिशा में पहल करती हैं तो पूरे देश के शिक्षण संस्थानों में 25 प्रतिशत नई सीटों के और सृजन होने की उम्मीद है।

9.3 लाख छात्र: केंद्र वित्तपोषित संस्थाओं की वर्तमान स्थिति

IIT, IIM, NIT, IISC सहित सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, केंद्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, सरकारी कॉलेज, डीम्ड यूनिवर्सिटी और अनुदान प्राप्त कॉलेजों में फ़िलहाल 9.3 लाख विद्यार्थियों के शिक्षा की व्यवस्था है।

विश्व की सबसे बड़ी सेनिटेशन योजना ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से हमें क्या मिला

साठ के दशक के आरंभिक दिनों में जब विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल अपने पुरखों की भूमि भारत आए थे तब उन्हें कश्मीर से लेकर मद्रास तक और गोवा से लेकर उत्तर प्रदेश तक हर जगह लोग खुले में शौच करते दिखते थे। उन्होंने अपने अनुभव 1964 में आई अपनी पुस्तक ‘An Area of Darkness’ में लिखे हैं।

नायपॉल ने लिखा है कि भारतवासी कहीं भी शौच कर सकते हैं: चाहे वह रेलवे ट्रैक हो, बस अड्डा, समुद्र का किनारा, पहाड़ी, सड़कें या नदी का किनारा। भारतीयों को खुले में शौच करने से कोई परहेज नहीं होता। नायपॉल के 50 वर्ष पुराने अनुभव उस जमाने के भारत का ऐसा चित्रण करते हैं जिसका उल्लेख नायपॉल की पुस्तक आने के कई दशक बाद भी तत्कालीन साहित्य में लगभग नहीं के बराबर हुआ।

इसकी पीड़ा स्वयं नायपॉल ने भी अनुभव की थी। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा था कि खुले में शौच करने की गंदी आदत के बारे में कहीं भी लिखा नहीं जाता, उसपर चलचित्र नहीं बनते न ही कोई बात करता है। यह समाज में एक प्रकार से स्वीकार्य प्रथा थी जिसका कोई विरोध नहीं करता था। लोग अपनी परंपरागत आदतों जैसे दाहिने हाथ से खाने और प्रतिदिन नहाने को यूरोप के लोगों की आदतों से ज़्यादा अच्छा मानते थे लेकिन खुले में शौच को बुरा नहीं मानते थे। नायपॉल के अनुसार तर्कों से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का यह भारतीय तरीका था।

बहुत से लोगों को बाहर शौच करना अधिक सुविधाजनक लगता था और बंद कमरे में शौच करने में डर लगता था। नायपॉल के जमाने में एक व्यक्ति ने उनसे यहाँ तक कहा था कि उसे बाहर शौच करना इसलिए पसंद था क्योंकि उस समय वह कुदरत के क़रीब होता था जिससे वह उर्दू में अच्छी शायरी लिख पाता था।  

आज से पचास वर्ष पहले जो भी मान्यताएँ रही हों, लेकिन विडंबना यह है कि आज भी लोग खुले में शौच करने के पीछे विचित्र और अनर्गल तर्क देते दिखाई देते हैं। गाँवों में कुछ लोगों को लगता है कि घर में शौचालय बनवाना गंदगी को घर में लाने के समान है।

नायपॉल ने 50 वर्ष पहले ही यह लिखा था कि भारतीयों को पश्चिम की आलोचना करने से पहले उनसे ‘म्युनिसिपल सैनिटेशन’ सीखना चाहिए। इस सिद्धांत को ली कुआन यू ने सिंगापुर में अपनाया था। सिंगापुर को ‘फर्स्ट वर्ल्ड’ देशों की श्रेणी में लाने के लिए ली कुआन यू ने 1959 में स्वयं झाड़ू उठाई थी और सड़कों को साफ़ किया था। यह वही समय रहा होगा जब नायपॉल भारत में भ्रमण कर रहे होंगे और अपने विचारों को पुस्तक के रूप में लिखने के बारे में सोच रहे होंगे।   

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि नायपॉल की पुस्तक को भारत की खराब छवि दिखाने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन खुले में शौच की समस्या के निदान के बारे में सोचना तो दूर उसे समस्या माना ही नहीं जाता था। सरकारों, नीति निर्माताओं और नेताओं को इसका भान ही नहीं था कि गंदगी जनित विभिन्न प्रकार की बीमारी होने पर इलाज में होने वाले खर्च का सीधा संबंध खुले में शौच करने से था।

अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त एंगस डीटन के शोध के अनुसार गंदगी में जीने से मनुष्य क़द में छोटा रह जाता है। यूरोप के लोग भारतीयों से लंबे इसलिए भी होते हैं क्योंकि वे सेनिटेशन का ध्यान रखते हैं।  

हमें शौचालय के प्रयोग और स्वछता के महत्व को समझने में 50 वर्षों से अधिक का समय लगा। शौचालय को लेकर मनःस्थिति में परिवर्तन आज से पाँच वर्ष पूर्व देखने को मिला था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं आगे आकर स्वच्छ भारत अभियान का नेतृत्व किया था। स्वच्छ भारत अभियान के पीछे सरकार की मंशा यह थी कि लोगों की मानसिकता में परिवर्तन हो।

जब जनमानस की मानसिकता बदलती है तभी सरकारी योजनाएँ फल देती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई अपील के फलस्वरूप न केवल लोगों की आदतों में सुधार हुआ बल्कि स्वच्छ भारत अभियान को महिला सशक्तिकरण की दिशा में किए गए सबसे महत्वपूर्ण प्रयासों में गिना जा रहा है। ऐसी अनेक कहानियाँ हैं जहाँ ग्रामीण महिलाओं को शौच के लिए घर से एक किमी से अधिक दूर जाना पड़ता था लेकिन अब घर में शौचालय बनने से उनकी दिक्कतें खत्म हो गई हैं।

शौच जैसे काम के लिए महिलाओं को प्रतिदिन (कभी-कभी दिन में दो बार) घर से दूर एकांत में जाने की अनिवार्यता किसी अनहोनी का बहाना भी हो सकती है। इसका उदाहरण मई 2014 में घटित हुए बदायूं कांड में दो बहनों की मृत्यु के रूप में देखने को मिला था। कारण चाहे जो कुछ भी रहा हो किंतु दोनों बहनें शौच के बहाने ही घर से बाहर गई थीं।

समस्या युवतियों और महिलाओं के घर से बाहर जाने में नहीं है, समस्या यह है कि शौच के लिए उन्हें ऐसे समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है जब अंधकार हो जाए और स्थान ऐसा खोजना पड़ता है जहाँ एकांत हो। अनहोनी और अपराध का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय और स्थान होता है। कई बार महिलाओं को इन परिस्थितियों की प्रतीक्षा करने के चलते शौच को काफी देर तक रोककर रखना पड़ता है जिसके कारण शारीरिक पीड़ा भोगनी पड़ती है।

स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत अब तक देश भर में नौ करोड़ से अधिक शौचालय बनाए जा चुके हैं। 2014 में देश में सैनिटेशन कवरेज 39% था जो अब बढ़कर 98% तक पहुँच चुका है। स्वच्छता और शौचालय अब ऐसे विषय बन गए हैं जिनपर बात होती है, फिल्म बनती है, प्रशंसा और आलोचना भी होती है। इस दृष्टि से अब हम खुले में शौच करने के कारण होने वाली बीमारियों के प्रति सचेत हो चले हैं। मानसिकता में यह परिवर्तन जो स्वतंत्रता के सत्तर वर्षों तक नहीं आया था अब दिखने लगा है। और ऐसा भी नहीं कि यह एकदम से आया और इसके लिए केवल नरेंद्र मोदी ही ज़िम्मेदार हैं।

नगरों में शौचालय बनवाने का प्रथम अभियान बिंदेश्वर पाठक ने सुलभ शौचालय बनवा कर चलाया था लेकिन सुलभ की पहुँच नगरों तक ही सीमित थी। सुलभ के बारे में यह जानना भी आवश्यक है कि इसकी प्रेरणा मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के विचार से मिली थी। जबकि स्वच्छ भारत अभियान समग्रता में नगरों के साथ गाँवों को भी सैनिटेशन की प्रक्रिया से जोड़ता है।

शौचालयों के निर्माण में केंद्र के साथ राज्य सरकारों की 60:40 के अनुपात में सहभागिता सही मायने में ‘कोऑपरेटिव फेडरलिज़्म’ से ‘कंस्ट्रक्टिव फेडरलिज़्म’ की ओर उन्मुख नीति को दर्शाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2014-19 के मध्य गाँवों में 3,00,000 लोगों को डायरिया और प्रोटीन की कमी से मरने से बचाया जा चुका है।

बीमारियों से ग्रसित न होने से अब लोग अधिक दिनों तक काम कर सकते हैं जिसके कारण उनकी कमाई में वृद्धि हुई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार जो गाँव पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुके हैं वहाँ एक घर को औसतन ₹50,000 प्रतिवर्ष बचत हो रही है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार गंदगी के कारण 2011 में भारत की जीडीपी को जहाँ 6% की हानि हो रही थी वहीं 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार यह हानि 5.2% रह गई है।

पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय में सचिव परमेश्वरन अय्यर स्वच्छ भारत अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। अय्यर बताते हैं कि विश्वभर में खुले में शौच करने वालों की संख्या में से 60% लोग भारत में थे जिनमें से लगभग 55 करोड़ जनसंख्या ग्रामीण है। इन 55 करोड़ लोगों में से 45 करोड़ लोग आज की तारीख में खुले में शौच करने की बाध्यता से मुक्त हो चुके हैं। शौचालय निर्माण में महिलाओं ने बढ़चढ़ कर भागीदारी की है। हजारों महिलाओं ने शौचालय निर्माण को रोज़गार के एक अवसर के रूप में लिया है।