Sunday, September 29, 2024
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कश्मीर में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी; अलकायदा सरगना जाकिर मूसा के सहयोगी सहित छः आतंकी ढेर

कश्मीर घाटी के त्राल में हुए मुठभेड़ में सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली है। अवंतीपोरा में आतंकवादियों के छिपे होने की खुफिया सूचना पर पहुंची पुलिस से आतंकियों की मुठभेड़ हुई जिसमे छः आतंकी मारे गए। बताया जा रहा है कि पुलिस ने मौके पर पहुँच कर सबसे पहले इलाके को खाली कराया ताकि मुठभेड़ की स्थिति में जान-माल की क्षति ना हो। मारे गये आतंकवादियों में से एक अलकायदा सरगना और कश्मीरी आतंकी संगठन गजवातुल हिन्द के मुखिया जाकिर मूसा का करीबी सहयोगी सोलिहा भी शामिल है। ज्ञात हो कि जाकिर मूसा एक खूंखार कश्मीरी आतंकवादी है जो घाटी ही नहीं बल्कि आसपास के इलाकों में भी पुलिस के लिए एक बड़ा सरदर्द बना हुआ है। ऐसे में इस एनकाउंटर की सफलता को पुलिस बड़ी कामयाबी मान रही है। कश्मीर के आईजी एसपी पानी ने अधिक जानकारी देते हुए समाचार एजेंसी एएनआई से कहा;

“इस ऑपरेशन में कुल छः आतंकवादी मारे गए। सुरक्षाबलों और नागरिकों को जान-माल की कोई क्षति नहीं हुई है। मारे गए आतंकियों की पहचान और उनके संगठन की पुष्टि की जा रही है। मैं नागरिकों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद देता हूँ। ये एक क्लीन ऑपरेशन था।”

बताया जाता है कि जैसे ही सुरक्षाबलों को आतंकियों के छिपे होने की खुफिया जानकारी मिली वैसे ही सेना की 44 राष्ट्रीय राइफल्स, सीआरपीएफ की 180वीं बटैलियन और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अवंतीपोरा के आरामपोरा में संयुक्त ऑपरेशन चलाना शुरू कर दिया। सुरक्षाबलों की संयुक्त टीम के संदिग्ध स्थल पर पहुँचते ही वहां छिपे आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद दोनों और से भयंकर फायरिंग शुरू हो गई। इस दौरान सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में छह आतंकी मार गिराए गए।

टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक़ मुठभेड़ स्थल से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद हुआ है। इससे पहले पिछले हफ्ते भी पुलवामा जिले में एक मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने तीन आतंकियों को मार गिराया था। इस मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों में मोस्ट वॉन्टेड जहूर अहमद ठोकर भी था, जो पिछले वर्ष जुलाई में सेना के कैंप से फरार होकर आतंकी संगठन में शामिल हो गया था। उस एनकाउंटर के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने आतंकियों के समर्थन में ट्वीट भी किया था।

अभी कुछ दिनों पहले ही आतंकी जाकिर मूसा के पंजाब में छिपे होने की खुफिया जानकारी सामने आई थी। इसके बाद से ही बठिंडा और फिरोजपुर जिलों में सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। खुफिया रिपोर्टों में बताया गया था कि मूसा सिख के भेष में पगड़ी पहने छिपा हुआ हो सकता है।

बता दें कि कश्मीर में सेना द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन आल आउट के अंतर्गत मार्च 2017 से लेकर अब तक 500 से भी ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया है। इस वर्ष अभी तक पिछले वर्ष से इस समय तक मारे गए 207 आतंकियों के मुकाबले 240 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया है। इन में से 25 आतंकी संगठनों के टॉप कमांडर भी शामिल हैं। अकेले बीते नवम्बर में ही सुरक्षाबलों ने 35 आतंकवादियों को मार गिराया था। इस महीने भी यह आंकड़ा 30 के पार होने जा रहा है।

बिहार: सीट बँटवारे को लेकर राजग में बनी सहमति; आज हो सकती है घोषणा

ताजा ख़बरों के अनुसार बिहार में सीट बँटवारे को लेकर राजग में सहमति बन गई है। उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज दिल्ली पहुँच रहे हैं जहां वो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान सहित राजग के अन्य नेताओं से बातचीत करेंगे और इसके बाद सीट शेयरिंग को लेकर आधिकारिक घोषणा कर दी जाएगी। सूत्रों के अनुसार लोजपा ने छः लोकसभा सीट और एक राज्यसभा सीट की मांग की थी जिसे भारतीय जनता पार्टी ने मान लिया है और जनता दल यूनाइटेड ने भी इस फोर्मुले पर मुहर लगा दी है। अभी लोजपा से एक भी राज्यसभा सांसद नहीं है। बता दें कि लोक जनशक्ति पार्टी संसदीय दल के अध्यक्ष चिराग पासवान काफी दिनों से अपने बयानों द्वारा भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे।

कुछ दिनों पहले ही अपने ट्वीट्स के माध्यम से चिराग पासवान ने कहा था;

“टी॰डी॰पी॰ व रालोसपा के एन॰डी॰ए॰ गठबंधन से जाने के बाद एन॰डी॰ए॰ गठबंधन नाज़ुक मोड़ से गुज़र रहा है।ऐसे समय में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में फ़िलहाल बचे हुए साथीयों की चिंताओं को समय रहते सम्मान पूर्वक तरीक़े से दूर करें।”

चिराग पासवान फिलहाल जमुई से लोकसभा सांसद हैं। अभी कुछ दिनों पहले उन्होंने नोटबंदी पर भी सवाल खड़े कर के भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश की थी। कई लोगों का यह मानना था कि लोजपा राजग का साथ छोड़ कर महागठबंधन में शामिल हो सकती है लेकिन सीट शेयरिंग पर सहमति बनने के साथ ही इन कयासों पर विराम लग गया है। शुक्रवार को पासवान पिता-पुत्र ने भाजपा नेता अरुण जेटली से भी मुलाकात की थी जिसके बाद चिराग पासवान ने कहा था कि बात चल रही है और वह समय आने पर बोलेंगे।

ज्ञात हो कि बिहार में भाजपा के सहयोगी रहे उपेन्द्र कुशवाहा ने हाल ही में महागठबंधन का रुख कर लिया है। रालोस्पा अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से भी इस्तीफा दे दिया और भाजपा पर उनका अपमान करने का आरोप लगाया था। हालांकि इस से उपेन्द्र कुशवाहा की अपनी पार्टी के ही नेता ही उनसे नाराज हो गये और बागी तेवर अपना लिया। पार्टी के दो विधायक और एक विधान पार्षद ने रालोसपा सुप्रीमो के निर्णय का विरोध करते हुए एक प्रेस कांफ्रेंस कर राजग में बने रहने का ऐलान कर दिया।

2014 में हुए लोकसभा चुनावों में लोजपा ने 6 सीटों पर जीत हासिल की थी। राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 22, रोलसपा ने 3, जदयू ने 2, राजद ने 4, कांग्रेस ने 2 और एनसीपी ने 1 सीट पर जीत हासिल की थी। उस समय जदयू ने भाजपा से अलग चुनाव लड़ा था। इस बार भाजपा-जदयू-लोजपा के साथ चुनाव लड़ने के कारण बिहार में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में बड़ा फैसला, सभी 22 अभियुक्त हुए बरी

सीबीआई की विशेष अदालत ने बड़ा फैसला देते हुए सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में सभी 22 अभियुक्तों को सबूतों के आभाव में बरी करने का आदेश दिया है। अभियुक्तों में अधिकतर गुजरात और राजस्थान के पुलिस अधिकारी हैं। न्यायमूर्ति एसजे शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी गवाह और सबूत साजिश और हत्या को साबित करने के लिए काफी नहीं थे। अदालत ने यह भी पाया कि मामले से जुड़े परिस्थितिजन्य सबूत भी पर्याप्त नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने इस मुठभेड़ को फर्जी मानने से भी इनकार कर दिया। अदालत ने सीबीआई के बारे में कहा कि उसने 210 गवाहों को अदालत में पेश कर अपनी दलीलों को साबित करने की पूरी कोशिश की।

ज्ञात हो कि सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति एनकाउंटर मामले की जांच सीआईडी द्वारा की जा रही थी जिसे 2010 में सीबीआई को सौंप दिया गया था। अदालत ने कुल 210 गवाहों के बयान सुने जिनमे से 92 गवाह अपने बयानों से पलट गए थे इस महीने के शुरुआत में ही अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। बता दें कि न्यायाधीश वर्मा का कार्यकाल कुछ ही दिनों बाद समाप्त होने जा रहा है। अपने कार्यकाल का अंतिम फैसला सुनाते हुए उन्होंने कहा;

“सोहराबुद्दीन की मौत गोली लगने से हुए घावों से हुई जैसा कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से भी साबित होता है लेकिन इन अभियुक्तों में से कोई भी इस मौत की वजह थे, ऐसा साबित नहीं होता। तुलसीराम प्रजापति को एक साजिश के तहत मारा गया, यह आरोप भी सही नहीं है।”

अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस वर्मा ने आगे कहा;

“अगर गवाह अपने बयानों से पलट जाये तो इसमें पुलिस या वकीलों की कोई गलती नहीं है। हमें इस बात का दुख है कि तीन लोगों ने अपनी जान खोई है, लेकिन कानून और सिस्टम को किसी आरोप को सिद्ध करने के लिए सबूतों की आवश्यकता होती है। सीबीआइ इस बात को सिद्ध ही नहीं कर पाई कि पुलिसवालों ने सोहराबुद्दीन को हैदराबाद से अगवा किया था। इस बात का कोई सबूत नहीं है।”

इसी मामले में 16 लोगों को पहले ही सबूतों के आभाव में बरी किया जा चुका है। ज्ञात हो कि इस केस में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, राजस्थान के पूर्व गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, गुजरात पुलिस के पूर्व डीआईजी डीजी वंजारा के नाम भी आरोपियों में शामिल थे। अमित शाह 2014 में ही इस मामले में आरोप-मुक्त करार दिए गए थे वहीं डीजी वंजारा को 2017 में इन आरोपों से बरी कर दिया गया था।

क्या है मामला?

26 नवंबर 2015 में गुजरात एटीएस और राजस्थान एसटीएफ ने अहमदाबाद के निकट मध्य प्रदेश के अपराधी सोहराबुद्दीन को शेख एक पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया गया था। इस घटना के लगभग एक साल बाद दिसम्बर 2016 में सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम को भी एक एनकाउंटर में पुलिस ने मार गिराया था। सीबीआई ने इन दोनों को फर्जी एनकाउंटर बताया था।

किसानों की कर्जमाफ़ी के नुकसान; मध्य प्रदेश में कृषि संबंधित एनपीए 24 प्रतिशत बढ़ा

किसानों की कर्जमाफी आजकल चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन कर उभर रही है। नयी धरना ये बनी है कि अगर कोई पार्टी  चुनाव से ऐन पहले किसानों को उनके कर्ज माफ़ कर देने का वादा कर दे तो वह चुनावी वैतरणी सफलतापूर्वक पार कर जाती है। हाल के विधानसभा चुनावों में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस को मिली जीत को भी इसी वादे से जोड़ कर देखा जा रहा है। वहीं तीनो राज्यों में सरकार गठन के साथ ही कांग्रेस ने कुछ शर्तों के साथ किसानों की कर्ज माफ़ी की घोषणा भी कर दी। कांग्रेस ने इस निर्णय के बाद अपना चुनावी वादा निभाने का दावा किया। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले मध्य प्रदेश में कृषि सम्बंधित एनपीए तीन सालों में दोगुने से भी ज्यादा हो गया।

यहाँ ये बताना जरूरी है कि एनपीए का अर्थ नॉन-पेरफोर्मिंग एसेट होता है। रिज़र्व बैंक के अनुसार अगर अल्प सामायिक कृषि कार्य जैसे कि धान, बाजरा, ज्वार इत्यादि की खेती के लिए लिए गए कर्ज पर अगर दो क्रॉप सीजन तक किसी तरह का ब्याज नहीं दिया जाता है तो वह एनपीए के अंतर्गत आ जाता है। वहीं लॉन्ग टर्म वाले लोन में यह समय सीमा एक क्रॉप सीजन तक ही होती है। कहा जा रहा है कि कर्ज माफ़ी की उम्मीद में किसान लिए गए कर्ज पर ब्याज देना बंद कर देते हैं जिसके कारण बैंकों पर बोझ बढ़ता चला जता है। किसानों के कर्ज माफ़ होने से उन्हें त्वरित रहत तो मिलती है लेकिन इसका बैंक के प्रबंधन पर भी असर पड़ता है। और बैंकों द्वारा किसानों को कर्ज देने की प्रक्रिया धीमी करने से अंततः किसानों को ही मार पड़ती है। उन्हें मजबूरन रुपये के अन्य श्रोतों का अहारा लेना पड़ता है जिसे से उनके घाटे में जाने की संभावना रहती है।

होता ये है कि किसानों के ऋण भुगतान ना करने से बैंकों के वित्तीय प्रबंधन पर बुरा असर पड़ता है और वो नये कर्ज देना बंद कर देती है या धीमी कर देती है। ताजा आंकड़े भी इस दावे की पुष्टि करते दिखाई पड़ रहे हैं। मध्य प्रदेश की राज्य स्तरीय बैंकरों की समिति के अनुसार केवल एक साल की अवधि में राज्य के कृषि ऋण पर 24 प्रतिशत एनपीए बढ़ गया है। एक वरिष्ठ बैंकर ने इस बारे में कहा;

“लेनदारों के लिए यह स्वाभाविक है कि एक बार त्वरित राहत मिलने के बाद वह कर्ज की रकम का भुगतान करना बंद कर देते हैं। हमने इस तरह के ट्रेंड को राजस्थान में भी देखा है।”

वहीं एक अन्य बैंकर ने कहा;

“इससे क्रेडिट साइकिल टूट जाती है क्योंकि बैंक अपनी बकाया राशि को क्लीयर करना चाहते हैं।”

उदाहरण के तौर पर हम तमिलनाडु को देख सकते हैं। वहां राज्य सरकार ने एक योजना के तहत 2016 में 6,041 करोड़ की राशि की घोषणा की थी। वह पिछले पांच सालों में सहकारी संस्थानों को केवल 3,169 करोड़ रुपये ही वापस दे पाई है। कर्नाटक की भी यही स्थिति है। वहां हाल ही में हुई राज्य स्तरीय बैंकर समिति की बैठक में यह पाया गया कि 5,353 करोड़ रुपये के उत्कृष्ट कृषि ऋण में गिरावट आई।

ज्ञात हो कि कुछ ही दिनों पहले रीर्वे बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी कर्ज माफ़ी के बढ़ते चलन को लेकर चेताया था। किसानों की कर्ज माफ़ी का विरोध करते हुए उन्होंने कहा था;

“ऐसे फैसलों से राजस्व पर असर पड़ता है। किसान कर्ज माफी का सबसे बड़ा फायदा सांठगाठ वालों को मिलता है. अकसर इसका लाभ गरीबों को मिलने की बजाए उन्हें मिलता है, जिनकी स्थिति बेहतर है। जब भी कर्ज माफ किए जाते हैं, तो देश के राजस्व को भी नुकसान होता है।”

वहीं अर्थशास्त्री राधिका पाण्डेय ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि कर्ज माफ़ी का किसानों और राज्‍य सरकार की अपनी अर्थव्‍यवस्‍था पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा। उनका कहना था कि इस कर्जमाफी का बड़े किसानों पर कुछ हद तक हो सकता है, लेकिन छोटे किसानों पर इसका कोई असर नहीं होगा। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा;

“जिस तेजी से राज्‍य सरकारों ने कर्ज माफी की घोषणा की है उससे अब राज्‍यों का राजकोषीय घाटा काफी बढ़ जाएगा। इसकी भरपाई के लिए राज्‍यों को केंद्र से या फिर दूसरे विकल्‍पों के माघ्‍यम से कर्ज लेना होगा और उसके दूसरे विकास कार्य कहीं न कहीं इसकी वजह से प्रभावित होंगे। बाहर से कर्ज लेने पर राज्‍य सरकारों को इसकी अदायगी के लिए ज्‍यादा ब्‍याज भी देना होगा। इसकी वजह ये है कि भारत की बॉण्‍ड मार्किट या डेब्‍ट मार्किट दूसरे देशों के राज्‍यों की तरह से डेवलेप नहीं हैं। यही वजह है कि यहां पर ब्‍याज की दर ज्‍यादा होती है।”

ऐसे में इस सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या वाकई किसानों के कर्ज माफ़ होने से उनके अच्छे दिन आ जाते हैं?

राफेल विवाद: कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने वायुसेना प्रमुख को बताया ‘झूठा’

राफेल सौदे के मामले में केंद्र सरकार को शीर्ष अदालत द्वारा मिली क्लीन चिट के बाद तिलमिलाई कांग्रेस ने वायुसेना प्रमुख को ही झूठा बता दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली ने कल हैदराबाद में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि बीएस धनोआ झूठ बोल रहे हैं और सच को दबा रहे हैं। ज्ञात हो कि वायुसेना प्रमुख ने राफेल सौदे पर शीर्ष अदालत के निर्णय का स्वागत करते हुए रक्षा खरीद के राजनीतिकरण न करने की सलाह दी थी। साथ ही उन्होंने राफेल को गेम चेंजर भी बताया था। उन्होंने कहा था;

“सुप्रीम कोर्ट ने बहुत अच्छा फैसला दिया है। उसने यह भी कहा कि इस विमान की सख्त जरूरत है। जहां तक प्रौद्योगिकी की बात है तो राफेल विमान के खिलाफ कोई तर्क नहीं है। कौन कहता है कि हमें रफाल की जरूरत नहीं है? रफाल हमारी सेना की सबसे बड़ी जरूरत है और यह गेम चेंजर एयरक्राफ्ट है.”

विदित हो कि पिछले महीने में भी वायुसेना अधिकारीयों ने शीर्ष अदालत में राफेल सौदे के मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा था कि भारत को राफेल जैसे पांचवीं पीढ़ी के अत्याधुनिक विमान की दरकार है, जो दुश्मन के रडार और निगरानी उपकरणों को चकमा दे सकें।

यूपीए कार्यकाल के दौरान केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहे वीरप्पा मोइली ने एयर चीफ मार्शल बीरेंद्र सिंह धनोआ के इसी बयान को लेकर उन पर निशाना साधा। उन्होंने वायुसेना प्रमुख पर सीधा हमला करते हुए कहा;

“राफेल सौदे पर हस्ताक्षर से पहले वायुसेना प्रमुख और दसौल्ट एविएशन के प्रमुख हल (एच.ए.एल) के बेंगलुरु स्थित मुख्यालय गए थे और उन्होंने एचएएल को आवश्यक विशेषज्ञता के साथ सक्षम निकाय करार दिया था। आज, यह कहना कि शीर्ष अदालत का फैसला ठीक है, मुझे लगता है कि वायुसेना प्रमुख ठीक नहीं हैं। वह ठीक नहीं हैं, वह झूठ बोल रहे हैं। वह सच को दबा रहे हैं। सच को दबाने में वह भी एक पक्ष हैं।”

बाद में मोइली अपने इस बयान से पलट गए और सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने वायुसेना प्रमुख को झूठा नहीं कहा बल्कि सिर्फ सवाल पूछा था। उधर मोइली के बयान की आलोचना करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले का बिना नाम लिए कहा कि कांग्रेस की निराशा चरम पर पहुँच गई है क्योंकि अभी की सरकार तेजी से भ्रष्टाचार की जांच कर रही है। उन्होंने कहा;

“मोइली जैसे वरिष्ठ नेता की टिप्पणी कांग्रेस को पूरी तरह बेनकाब करती है। उन्होंने वायुसेना प्रमुख का नाम लिया है। यह दर्शाता है कि उसकी (कांग्रेस की) निराशा चरम पर पहुंच गयी है और सरकार जिस रफ्तार से भ्रष्टाचार की जांच कर रही है, उससे वह पूरी तरह बिखर गयी है।”

वहीं भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मोइली के इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि कांग्रेस नेता की टिप्पणी से न सिर्फ वायुसेना प्रमुख का निजी तौर पर अपमान हुआ है, बल्कि देश का भी अपमान हुआ है। बता दें कि वीरप्पा मोइली को संप्रग अध्यक्ष सोनिया गाँधी के करीबी सलाहकारों में से एक माना जाता रहा है।

अमेरिका के इलिनोइस प्रांत में 700 पादरियों पर यौन शोषण का आरोप; अटॉर्नी जनरल ने किया खुलासा

अमेरिका के इलिलोईस प्रांत में करीब 700 पादरियों पर बच्चों के यौन शोषण का आरोप लगा है। इलिनोइस के अटॉर्नी जनरल ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई है कि चर्च इन आरोपों से निपटने में अक्षम रहा है। ज्ञात हो कि चर्च ने यौन शोसन के आरोपित पादरियों की संख्या 185 बताई थी लेकिन अटॉर्नी जनरल लीसा मैडिगन के अनुसार ऐसे पादरियों की संख्या इस से कहीं बहुत ज्यादा है। अटॉर्नी जनरल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने अपनी जांच में पाया कि चर्च ने इन आरोपों की या तो अच्छे से जाँच नहीं की या फिर इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। अपने रिपोर्ट में मैडिगन ने कहा;

“चूंकि मैं यह जानता हूँ कि चर्च ने बहुतों बार पादरियों द्वारा यौन शोषण के पीड़ितों को नजरअंदाज किया है, मैं अपनी जांच में पाए गए निष्कर्षों को सामने रखना चाहता हूँ। हालांकि ये निष्कर्ष प्रारंभिक हैं लेकिन ये इस जाँच को जारी रखने की जरूरत को दर्शाते हैं।”

बता दें कि मैडिगनने ये जांच अगस्त में ही शुरू की थी और इसके बाद से वो कई बिशप्स, पादरियों, पीड़ितों और चर्च से जुड़े लोगों से बात कर चुकी है। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने आगे कहा है;

“इन यौन शोषण के आरोपों की जांच ना करने का फैसला लेकर चर्च अपने नैतिक दायित्वों का निर्वहन करने में असमर्थ रहा है। चर्च पीड़ितों, चर्च जाने वाले लोगों और आम जनों को ऐसी यौन शोषण की घटनाओं का पूर्ण और सही हिसाब देने में विफल रहा है जिसमे पद्द्रियों की संलिप्तता हो। जांच करने में असमर्थ रहना यह भी बताता है कि कैथोलिक चर्च ने ये जानने का कभी प्रयास ही नहीं किया कि पादरियों के ऐसे गलत व्यवहारों को नजरअंदाज किया गया या फिर उन्हें सीनियरों द्वारा ऐसी घटनाओं को गुप्त रखा गया।”

उन्होंने अपनी रिपोर्ट में अपनी जांच में पाए गए निष्कर्षों के हवाले से इस बात पर भी चिंता जताई कि अब चर्च अपनी निगरानी स्वयं नहीं कर सकता और अब ये उनका आतंरिक मुद्दा नहीं रहा। अटॉर्नी जनरल के ये खुलासे चौंका देने वाले हैं। उन्हें लोगों द्वारा अब तक तीन सौ से भी अधिक चिट्ठियाँ, मेल्स और सन्देश आ चुके हैं जिसमे चर्च के पादरियों की काली करतूतों के बारे में बताया गया है। ऐसे में इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि जब ऐसे यौन शोषण के आरोपित पादरियों कि संख्या 700 थी तब चर्च का आंकडा इतना कम यानी 185 कैसे था? क्या बचे हुए 500 पादरियों को बचाने की कोशिश की गई और पीड़ितों के आरोपों को पूरी तरह से नजरंदाज कर दिया गया?

अटॉर्नी जनरल के कार्यालय का यह भी कहना है कि आरोपों की जांच अधूरी रही और कई मामलों में कानून का पालन नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि बाल कल्याण संस्थाओं को सूचना भी नहीं दी गई

वहीं भारत में भी पादरियों पर बच्चों और महिलाओं के यौन शोषण के आरोप अक्सर लगते रहे हैं। यहाँ भी कई चर्च इन आरोपों के घेरे में हैं और उन पर अक्सर पीड़ितों के आरोपों पर गौर नहीं करने का आरोप लगता रहा है। इसी साल जून में केरल के कोट्टयम से एक चर्च में पांच पादरियों द्वारा एक विवाहित महिला का कई साल से यौन शोषण किए जाने की घटना सामने आई थी। पीड़ित महिला और उनके पति ने चर्च पर गंभीर आरोप लगाये थे और कहा था कि चर्च से जुड़े कुछ नामी-गिरामी लोगों ने महिला पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया था।

वहीं केरल में ही एक नन ने पंजाब के जालंधर स्थित डायोसीस कैथलिक चर्च के बिशप के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि कि बिशप ने 2014 के बाद से उसका 14 बार यौन उत्पीड़न किया। यही नहीं, पादरी के काले करतूतों का भंडाफोड़ करने के लिए उस नन को काफी विरोध का भी सामना करना पड़ा और केरल के विधायक पीसी जॉर्ज ने तो उसे वेश्या तक बता दिया था। विधायक ने कहा था;

“इस बात में किसी को शक नहीं है कि नन वेश्या है। 12 बार उसने एंजॉय किया तो 13वीं बार यह रेप कैसे हो गया?”

ऐसे बयानों से यह साफ़ हो जाता है कि चर्च और पादरियों को मिल रहे सत्ता संरक्षण के कारण पीड़ित उनके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं करा पाते और अगर उन्होंने आवाज उठाई भी तो उन्हें खासा परेशानी का सामना करना पड़ता है।

उधर जर्मनी में भी एक बड़े खुलासे के अनुसार 1946 से 2014 के बीच कैथोलिक चर्च के 1,670 अधिकारियों ने 3,677 नाबालिगों का यौन शोषण किया था। जांचकर्ताओं ने जर्मनी के 27 डियोसेजे में 38,156 फाइलों का विश्लेषण किया जिसमें 1,670 अधिकारियों के मामले में नाबालिगों का यौन शोषण किए जाने के आरोपों का पता चला था।

रोमन कैथोलिक चर्च के मुखिया पोप फ्रांसिस ने भी ये स्वीकार किया था कि यौन शोषण और आर्थिक अनियमितताआें के आरोपों से घिरे कैथोलिक चर्च से लोग दूर होते जा रहे हैं। पोप ने कहा था कि यौन शोषण के मामलों से निपटने में चर्च सफल नहीं हो पाया है।

वहीं ‘मी टू’ अभियान के तहत एक 40 वर्षीय  महिला ने मेघालय में कैथोलिक चर्च के दो पादरियों पर वर्षो पहले यौन शोषण करने का आरोप लगाया था। एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से पीड़ित महिला ने कहा था कि वह तीन बार आत्महत्या का प्रयास भी कर चुकी हैं। उसने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था;

“जब मैं पांच साल की थीं तभी से फ्रांसिस गेल ने मेरा यौन शोषण करना शुरू कर दिया था। मैंने जब अपने परिजनों को इस बारे में बताया तो उन्होंने मेरी ही पिटाई कर दी। 12 साल की उम्र तक यह सिलसिला जारी रहा। उसके बाद मैंने साहस करके और गर्भवती होने के डर से फ्रांसिस गेल (आरोपित पादरी) से मिलना बंद कर दिया।”

पूरे समाज में जहर फ़ैल चुका है; आज के भारत में गाय की पुलिस ऑफिसर से ज्यादा अहमियत: नसीरुद्दीन शाह

बॉलीवुड अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और विवादों का काफी पुराना नाता रहा है। वो आये दिन विवादित बयान दे कर सुर्खियाँ बनाते रहते हैं जिस से उन्हें आम लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ता है। अब उन्होंने ताजा बयान देते हुए कहा है कि आज के भारत में उन्हें अपने बच्चों को लेकर काफी डर महसूस होता है। अपने कथित डर को बुलंदशहर हिंसा से जोड़ते हुए उन्होंने कहा;

“आज देश में पुलिस ऑफिसर की मौत से ज़्यादा अहमियत गाय की है। इन दिनों समाज में चारों तरफ ज़हर फैल गया है। मुझे इस बात से डर लगता है कि अगर कही मेरे बच्चों को भीड़ ने घेर लिया और उनसे पूछा जाए कि तुम हिंदू हो या मुस्लिम? मेरे बच्चों के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा. पूरे समाज में ज़हर पहले ही फैल चुका है।”

उन्होंने आगे यह भी कहा कि उन्हें हालात सुधारते भी नजर नहीं आ रहे हैं और सरकार से मांग की कि क़ानून अपने हाँथ में लेने वालों को पूर्ण दंड दिया जाये।

बता दें कि अभी हाल ही में उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में कप्तान विराट कोहली की कड़ी आलोचना करते हुए उन्हें ख़राब व्यवहार वाला खिलाड़ी बताया था। अपने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से उन्होंने विराट कोहली को अहंकारी भी बताया था जिसके बाद वे सोशल मीडिया पर लोगों के गुस्से का शिकार बने थे। लोगों ने तो यहाँ तक कहा था कि वह आजकल काम की कमी से जूझ रहे हैं और सुर्ख़ियों में रहने के लिए ऐसे अलूल-जलूल बयान दे रहे हैं। अपने फेसबुक पोस्ट में शाह ने लिखा था;

“विराट कोहली दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज होने के साथ-साथ एक खराब व्यवहार वाले खिलाड़ी भी हैं। उनकी क्रिकेटिंग क्षमता उनके अहंकार और बुरे व्यवहार के आगे फीकी पड़ जाती है। वैसे मेरा इरादा देश छोड़ने का नहीं है।”

इस से पहले जुलाई 2016 में नसीरुद्दीन शाह ने बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार कहे जाने वाले दिवंगत राजेश खन्ना को एक ख़राब अभिनेता बताया था। उन्होंने अपने फैन्स के बीच काका नाम से मशहूर खन्ना के बारे में कहा था कहा था;

“उनकी तमाम सफलताओं के बावजूद मुझे लगता है कि मिस्टर खन्ना एक बेहद सीमित कलाकार थे। सच तो यह है कि वह एक खराब कलाकार थे।”

बाद में राजेश खन्ना की बेटी और अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना ने एक ट्वीट के माध्यम से उन्हें जवाब देते हुए नसीहत दी थी;”

“महोदय अगर आप जीवित लोगों का सम्मान नहीं कर सकते हैं तो मृतक का तो कीजिए, यह एक ऐसे व्यक्ति पर हमला है जो प्रतिक्रिया नहीं दे सकता।”

बाद में विरोध को देखते हुए शाह ने अपने बयान के लियी माफ़ी भी मांगी थी। बता दें कि अभिनेता राजेश खन्ना का निधन जुलाई 2012 में हो गया था।

वहीं अक्टूबर 2015 में भी एक विवादित बयान देते हुए नसीरुद्दीन शाह ने कहा था कि उन्हें मुस्लिम होने के कारण निशाना बनाया गया। दरअसल उस से पहले उन्होंने पाकिस्तानी मंत्री के किताब के प्रमोशन को भारत में रोकें जाने पर उनकी पैरवी करते हुए कहा था;

“मैं कई बार पाकिस्तान में परफॉर्मेंस करने जा चुका हूं और कभी भी मेरा शो वहां कैंसल नहीं किया गया। काश हम भी वैसा सम्मान कसूरी साहब के साथ दिखा पाते।”

इसके बाद लोगों ने उनके इस बयान का कड़ा विरोध किया जिस पर उन्होंने उपर्युक्त बयान दिया था।

अगस्ता-वेस्टलैंड करार: क्या फाइलों के बारे में बिचौलिए मिशेल को यूपीए के रक्षा मंत्री एके एंटनी से ज्यादा जानकारी थी?

केंद्र में यूपीए के कार्यकाल के दौराल अगस्ता-वेस्टलैंड करार में हुए घोटाले से जुड़े मामले में बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल के दुबई से प्रत्यर्पण होने के बाद नित नए खुलासे हो रहे हैं। अब ताजा ख़बरों के अनुसार ये दावा किया गया है कि बिचौलिए मिशेल ने इस हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले के दौरान पूरी संप्रग कैबिनेट को अपने इशारों पर नचाने की कोशिश की थी। दरअसल सीबीआई ने एक महत्वपूर्ण फैक्स मैसेज का पता लगाने में कामयाबी हासिल की है। ये वो फैक्स मैसेज है जिसे मिशेल द्वारा अगस्ता-वेस्टलैंड के इंटरनैशनल बिजनस के तत्कालीन वाइस प्रेसिडेंट जियाकोमो सैपोनारो को जनवरी 2010 में भेजा गया था।

इस फैक्स मैसेज में मिशेल के दावे चौंका देने वाले हैं। इसमें मिशेल ने जियाकोमो को कहा था कि वह तत्कालीन वित्त सचिव के दबाव से बाहर आ गया है। साथ ही उसने ये भी जोड़ा था कि उस समय के वित्त सचिव रशियन लॉबी की तरफ झुकाव रखते थे। इस फैक्स से ये साफ़ जाहिर हो जाता है कि मिशेल की उस समय के गृह और रक्षा मंत्रालय में काफी अच्छी पैठ थी और उसे ये भी जानकारी थी कि कौन सी फाइल कब, कहाँ और कैसे जाती है। सीबीआई ने तो यहाँ तक कहा है कि बिचौलिए मिशेल को फाइलों की और फाइलों के हलचल की तत्कालीन रक्षा मंत्री और कांग्रेस नेता एके एंटनी से भी ज्यादा जानकारी थी।

इस फैक्स में मिशेल ने कहा था;

“भारतीय वायुसेना को बेचे जाने 12 वीवीआईपी हेलिकॉप्टर्स में यूएस और रूस की कंपनियों को पीछे छोड़ने के लिए यूपीए की पूरी कैबिनेट को अपने समर्थन में करना होगा।”

बता दें कि सीबीआई को ये फैक्स इटली से मिला है। नवभारत टाइम्स के सूत्रों के अनुसार बिचौलिए मिशेल ने अगस्ता वेस्टलैंड के अपने आकाओं को यह बता रखा था कि उसने ‘बहुत ऊंची पहुंच’ के जरिए कई बाधाओं को पार करने के बाद यह डील कराई है। उसने बेहद आत्मविश्वास के साथ सैपोनारो को बताया था कि रूस और अमेरिका के दबाव के बावजूद कैबिनेट उनके समर्थन में कॉन्ट्रैक्ट को मंजूरी दे देगी।

इसी फैक्स में मिशेल ने जियाकोमो को कहा था;

“मुझे आगे होने वाली सभी मीटिंगों और फैसलों की जानकारी थी और इस बारे में फाइनैंस मिनिस्ट्री की इस सौदे पर आपत्तियों को शुक्रवार को रक्षा मंत्री के पास भेज दिया जाएगा जो उसके बाद वित्त मंत्री से इस मामले को सुलझाने के लिए मिलेंगे।”

ज्ञात हो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी ने 12 वीवीआईपी हेलिकॉप्टर्स के मामले में अगस्टा वेस्टलैंड को सौदे की मंजूरी दे दी थी। फरवरी 2010 में यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल दौरान प्रणब मुखर्जी के वित्तमंत्री रहते कैबिनेट कमिटी ने 12 हेलिकॉप्टर खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरीदी थी। सीबीआई के अनुसार कि अगस्ता डील के दौरान मिशेल 25 बार भारत आया था। यह भी जानने वाली बात है कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता सँभालने से पहले तत्कालीन कांग्रेस नीट सरकार ने इस करार को रद्द कर दिया था।

देवबंद का एक और फतवा: मर्दों और औरतों का शादी समारोहों में सामूहिक रूप से भोजन करना हराम

अपने अजीबोगरीब फतवों को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाले विवादित इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम देवबंद ने एक नया फतवा जारी करते हुए कहा है कि किसी भी शादी या अन्य बड़े समारोह में सामूहिक रुप से मर्दों और औरतों का भोजन करना हराम है। बता दें कि आजकल कई शादियों या अन्य समारोहों में मर्द और औरतों को साथ ही खाना परोसा जाता है या उनके साथ खाने का चलन भी बढ़ रहा है। वहीं मुफ्तियों ने दो कदम और आगे बढ़ते हुए शादियों में खड़े होकर खाने को भी नाजायज करार दिया।

ज्ञात हो कि किसी शख्स ने दारुल उलूम के इफ्ता विभाग (फतवा विभाग) के मुफ्तियों की खंडपीठ से किसी भी कार्यक्रम या समारोह में खाने पीने की सामूहिक व्यवस्था करने और उसमें मर्द और औरत के एक साथ खाना खाने और खड़े होकर भोजन करने को लेकर अलग-अलग सवाल पूछे थे। इसी के जवाब में देवबंद ये ये हैरान करने वाला फतवा जारी किया।

शादियों में खड़े हो कर खाना खाने के बारे में देवबंद ने कहा;

“खड़े हो कर खाना गैरों की तहजीब है, इस्लामी तहजीब नहीं है। इसलिए खड़े होकर भोजन करना सरासर नाजायज है। इस तरह के अमल से समाज की बर्बादी में देर नहीं लगेगी। मर्द और औरतों का एक साथ खाना नाजायज और हराम है। यह इस्लामी तहजीब के सरासर खिलाफ हैं। इससे बचना चाहिए।”

देवबंद के मुफ़्ती यहीं नहीं रुके और इसके अगले ही दिन उन्होंने अजीबोगरीब फतवे की कड़ी को आगे बढाते हुए एक और फतवा जरी किया। ताजा फतवे में महिलाओं को हिदायत दी गई है कि वो बिना बुर्के के शादी और अन्य समारोह में शामिल ना हो। ऐसा नहीं करने पर इसे गुनाह और गैरइस्लामी करार दिया है। मौलाना अथां उस्मानी ने फतवा जारी करते हुए कहा;

“मुस्लिम महिलाओं के सिर्फ शादी में ही नहीं बल्कि किसी भी समारोह में बिना बुर्के के जाना शरीयत के खिलाफ है। असल में मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दे में रहना फर्ज है। इस्लाम धर्म में महिलाओं का बिना पर्दे कहीं भी जाना जायज नहीं है। उन्हें बाजार भी बुर्का पहनकर जाना चाहिए।”

उधर एक और फतवे में देवबंद ने मोबाइल फोन पर बिना इजाजत एक दूसरे की कॉल रिकॉर्ड किए जाने को गुनाह करार दिया है। उन्होंने  बिना इजाजत किसी भी व्यक्ति की कॉल रिकॉर्ड करने को गुनाह और अमानत में खयानत बताया। इन हैरान कर देने वाले फतवों पर चुटकी लेते हुए रहत इन्दौरी सहित कई लोगों ने चुटकी ली। उर्दू शायर और गीतकार रहत इन्दौरी ने ट्वीट किया:


कवि कुमर विश्वास ने मर्द और औरतों के सामूहिक भोजन वाले फतवे को लेकर देवबंद से मजाकिया अंदाज में पूछा:


वहीं सीवोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख ने ट्वीट किया;


उधर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कल एक बयान देते हुए देवबंद को आतंक का अड्डा बताया था।  उन्होंने कहा था कि देवबंद शिक्षा का मंदिर नहीं हैं बल्कि शिक्षा का मंदिर गुरुकुल है।

58 आर्थिक भगोड़ों के प्रत्यर्पण को लेकर सख्त केंद्र सरकार; कईयों के खिलाफ जारी हुआ इंटरपोल नोटिस

ताजा ख़बरों के अनुसार केंद्र सरकार सिर्फ विजय माल्या ही नहीं बल्कि 58 अन्य भगोड़ों के भी प्रत्यर्पण की कोशिश में लगी है। यह बताता है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देश से आर्थिक गड़बड़ी या घोटाला कर के विदेश भागे कई भगोड़ों को वापस भारत में लाने के लिए सख्त रवैया अपनाया है। यही नहीं, केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने तो यहाँ तक कहा कि सरकार ने उन सभी भगोड़ों की धड़-पकड़ के लिए अलग-अलग देशों में इंटरपोल के रेड कार्नर नोटिस जारी करने में सफलता पाई है। बता दें कि इसी साल 25 जुलाई को संसद की कार्यवाही के दौरान जनरल सिंह ने एक सवाल के जवाब में ऐसे वक्तियों की सूची पेश की थी और कहा था;

“इन आरोपियों को एलओसी, आरसीएन (रेड कॉर्नर नोटिस) और प्रत्यर्पण के माध्यम से वापस लाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।”

वहीं इसी साल 23 मार्च को भी राज्यसभा में इसी मामले से सम्बंधित एक सवाल का जाब देते हुए जनरल सिंह ने बताया था;

“2014 के बाद से 23 भगोड़े अभी तक प्रत्यर्पित किए गए हैं. मार्च 2018 तक भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस सहित 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। इसमें जर्मनी, यूके, और हांगकांग के अलावा, क्रोएशिया, इटली और स्वीडन के साथ प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए गए हैं।”

इस से ये भी पता चलता है कि सरकार इस मामले में गंभीर है और कई दिनों से प्रयास कर रही है। वहीं इंटरपोल की नोटिस के साथ ही इसके परिणाम भी दिखने शुरू हो गए हैं।

सरकार ने कल संसद में इस बारे में विशेष जानकारी देते हुए बताया कि वह विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, नितिन और चेतन संदेसरा, ललित मोदी सहित कुल 58 ऐसे भगोड़ों को वापस लाना चाहती है जो यहां घोटाले करने के बाद भाग कर विदेशों में रह रहे हैं। विदेश मंत्रालय के एक विस्तृत जवाब में यह भी बताया गया है कि अक्टूबर में सरकार ने वीवीआईपी हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले में दो अन्य बिचौलियों के प्रत्यपर्ण की मांग भी इटली से की है। बता दें कि इन बिचौलियों के भारत वापस आने से वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले में और भी खुलासे होने की सम्भावना है क्योंकि इसी मामले में क्रिस्चियन मिशेल को पहले ही यूएई से प्रत्यार्पित किया जा चुका है।

वहीं विदेश मंत्रालय ने नीरव मोदी के बारे में कहा;

“नीरव मोदी के खिलाफ पहले ही रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया जा चुका है और इंग्लैंड में उसके खिलाफ अगस्त में प्रत्यर्पण की दो अन्य मांगें भी भेजी जा चुकी हैं। साथ ही, उसके भाई नीशल और नजदीकी सहयोगी सुभाष परब के लिए भी यूएई से प्रत्यर्पण की मांग की गई है। नीशल के लिए बेल्जियम और परब के लिए इजिप्ट से भी प्रत्यर्पण की मांग की गई है।”

मेहुल चोकसी के बारे में विदेश मंत्रालय ने बताया;

“ऐंटिगुआ से मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण की मांग की गई है और उसके खिलाफ हाल में इंटरपोल का रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया गया है।”

विदेश मंत्रालय ने बताया कि इसी प्रकार आईपीएल के कमिश्नर रहे ललित मोदी के प्रत्यर्पण के लिए भी सिंगापुर से मांग की गई है। इसके अलावे हामेल महेंद्रभाई लंगालिया, राजीव वर्मा, सैयद जैनुल हासन सहित कईयों के प्रत्यर्पण के लिए लगातार प्रयास किये जा रहे हैं।

वहीं विदेश राज्यमंत्री के अनुसार इसी तरह के मामले में शामिल रहे विजय माल्या के प्रत्यर्पण का आदेश ब्रिटेन की कोर्ट ने दिया है। जल्द ही उसे भारत लाने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। वहीं दूसरी तरफ गुजरात के वडोदरा के कारोबारी संदेसरा ब्रदर्स के खिलाफ भी प्रवर्तन निदेशालय रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने की प्रक्रिया पूरी करने में लगा हुआ है। इससे पहले इनके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी हो चुका है। वडोदरा के कारोबारी और बैंकों को 5700 करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लगाने वाले स्टर्लिंग बायोटेक के मालिक नितिन और चेतन संदेसरा भी आर्थिक भगोड़ों की सूची में शामिल हैं।

इस से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अंग्रेजी अमाचार चैनल रिपब्लिक के एक कार्यक्रम में इस बारे में बोलते हुए कहा था;

“बैंकों को लूटकर जो भगोड़े हो जाते हैं, उनके लिए भी सख्त कानून अपना काम कर रहा है। अब देश में ही नहीं विदेशों में भी ऐसे अपराधियों की संपत्ति कुर्क हो रही है। ऐसे तमाम अपराधियों को दुनिया के किसी भी कोने में छुपने की जगह नहीं मिले, इसके लिए ये सरकार प्रतिबद्ध है।”