Saturday, September 28, 2024

विचार

GDP से क्या होता है? क्या सचमुच बर्बाद हो गई है हमारी अर्थव्यवस्था? (भाग 1)

ऑक्सफोर्ड से पढ़े हुए मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था पर ज्ञान दिए जा रहे हैं। मनमोहन सिंह कहते हैं कि मोदी की नीतियों ने भारत को इस स्थिति में पहुँचाया है। लेकिन आँकड़े इस दावे के उलट कुछ और ही कहानी कहते हैं।

हिन्दू होने के नाते भारत की राष्ट्रीयता मिल जाने का प्रावधान जब तक लागू नहीं होगा, तब तक…

एनआरसी में जिन 19 लाख लोगों का आँकड़ा निकाला गया है, उसमें से अधिकांश हिन्दू ही हैं। जिन 19 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर किया गया है, उनकी अपील को अगर फोरेनर ट्रिब्यूनल ने ठुकरा दिया तो उन्हें लम्बी कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी।

मुस्लिम महिला सबसे गोरी, ब्राह्मण सबसे काले: Cadbury वालो, धंधा करो ज्ञान मत बाँटो

कॉर्पोरेट को समझना होगा कि उसके एजेन्डाबाज और राजनीतिक रूप से वामपंथी झुकाव वाले प्रोफेशनल किसी मुद्दे का समाधान करने की कोशिश नहीं कर रहे। यही कारण है कि मूल व्यवसाय से ज्यादा ऐसी फ़िज़ूल की गतिविधियों में ऊर्जा खपाना धंधे पर भारी पड़ रहा है।

घोघो रानी… चुल्लू भर ही था पानी, इसलिए छेनू उसमें डूब के मर न सका!

लोकतंत्र के चार खम्भे जब गिनवाए जाते हैं तो विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद पत्रकारिता का नंबर भी आता है। जब पहले तीन से जनता सवाल कर सकती है तो आखिर ऐसा क्यों है कि पत्रकारिता सीजर्स वाइफ की तरह सवालों से बिलकुल परे करार दी जाती है?

मीडिया को सत्ता का गुंडा बताने वाले रवीश के 4P- प्रपंच, पाखंड, प्रोपेगेंडा, प्रलाप

रवीश कुमार ने बीजगणित के अध्याय की तरह सब कुछ अब 'मान लिया' है। इससे बड़ी हानि यह है कि वो चाहते हैं कि उनके इसी 'मान लेने' को बाकी लोग भी मान लें, जबकि उनकी यह बीजगणित एकदम ऊसर है, इससे कुछ भी सृजन नहीं हो सकता है।

काश! कश्मीर में दंगे हो जाते, घरों में आग लगाई जाती, सैकड़ों लोग मारे जाते! कितना मजा आता…

प्रपंच फैलाया जा रहा है कि अस्पतालों में लोग मर रहे हैं, जीवनरक्षक दवाइयाँ नहीं हैं। आप सोचिए कि आखिर यही चार-पाँच मीडिया वाले, इसी एक तरह की रिपोर्टिंग क्यों कर रहे हैं? आखिर दो लोगों के बयान के आधार पर पूरी सेना को बर्बर कहने की रिपोर्टिंग का लक्ष्य क्या है? अमेरिकी अखबार को भारत के एक हिस्से के अस्पतालों पर झूठ लिखने की क्यों जरूरत पड़ती है?

‘मुल्लों से आज हर कोई डरता है’: रेप के अड्डे बने मदरसे, मुँह खोलने पर 19 साल की नुसरत को जलाकर मारा डाला

यौन शोषण के ज्यादातर मामले मौलवियों के खौफ में दबा दिए जाते हैं। जो मामले सामने आते हैं उनमें भी पीड़िताओं के साथ नुसरत जैसी घटना अंजाम दी जाती है। आखिर क्यों कभी धर्म तो कभी तुष्टिकरण के नाम पर आरोपी मौलवियों के कुकर्म धुल जाते हैं?

अरुंधति रॉय: धूर्त, कपटी और प्रपंची वामपंथन

हर यूनिवर्सिटी या सार्वजनिक मंच पर ये विशुद्ध झूठ बोलते हैं, फिर इनका गिरोह सक्रिय हो जाता है और ऐसे दिखाता है कि ब्रो, अरुंधति रॉय ने बोला है ब्रो… ब्रो… समझ रहे हो ब्रो? अरुंधति फ्रीकिंग रॉय ब्रो! ये ब्रो-ब्रो इतना ज्यादा होने लगता है कि वो ब्रोहाहा कॉलेज के 22-25 साल के युवा विद्यार्थियों के लिए तथ्य का रूप ले लेता है।

अरुंधति रॉय, प्रपंच कब तक चलाओगी: अजीत भारती का सवाल | Ajeet Bharti on Arundhati Roy Propaganda

अरुंधति रॉय जैसे लोग भारत को टुकड़ों में बाँटने की मंशा रखते हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर भारतीय सेना को तानाशाह के रूप में दिखाते हैं।

थूक कर कितनी बार चाटेंगे राहुल गॉंधी, अब तो पाकिस्तानी भी कहने लगे कंफ्यूज्ड

राहुल गॉंधी की बाल बुद्धि और बाल हठ से देश अरसे से परिचित है। जब से उन्हें मोदी के मुकाबिल खड़ा करने की कोशिश की गई उनका यह गुण बार-बार प्रकट होने लगा और हर बार वे 'गलती हो गई माफ कर दो' वाले भाव में आ जाते हैं। यह और बात है कि यूपीए काल में उनकी यह हरकत 'वाह जहॉंपनाह' के शोर में दब जाया करती थी।

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