ये नव-उदारवादी बहरूपिए ऐयारों की तरह दुनिया भर में इस्लामिस्ट्स और कम्युनिस्ट मानव अधिकारों, महिला अधिकारों, अल्पसंख्यक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सहिष्णुता की वकालत करते नज़र आते हैं।
डोकलाम में दोनों सेनाओं के पीछे हटने के बाद राहुल गाँधी वीडियो लेकर इसलिए आए, क्योंकि ये चीनी सेना के समर्थन में हैं। उन्होंने चीन की गोद में बैठकर भारत सरकार की असफलताओं पर 'चर्चा' की।
जिस राहुल गाँधी को अपने पार्टी के भीतर ही आए दिन खिसक रहे विधायकों की कानों कान खबर नहीं लगती, वह भी रोज विदेश नीति और फॉरेन पॉलिसी पर ज्ञान दे रहे हैं।
1979 में तत्कालीन ज्योति बसु सरकार की पुलिस व सीपीएम काडरों ने बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों के ऊपर जिस निर्ममता से गोलियाँ बरसाईं उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती।
कॉन्ग्रेस राज में ही चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा किया और अब चिल्ला भी वही रहे हैं। मगर अब लोग समझने लगे हैं। हमें अपनी सेना पर विश्वास रखना चाहिए और कॉन्ग्रेसियों के प्रपंच से बचना चाहिए।
यह स्पष्ट है कि आज के भारतीय जहाज के तल में एक बड़ा छेद है जिसे हमें दुरुस्त करने की आवश्यकता है। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो यह जहाज सागर में डूब सकता है।
भारत-चीन विवाद के बीच प्रधानमंत्री का लेह-लद्दाख पहुँच जाना सेना के लिए कैसा होगा इस बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। पुराने दौर में “दिल्ली दूर, बीजिंग पास” कहने वाले तथाकथित नेता पता नहीं किस बिल में हैं। ऐसे मामलों पर उनकी टिप्पणी रोचक होती।