सड़क पर पिस्टल लहरा कर गोलीबारी करते शाहरुख़ को देश भुला नहीं है। शरजील इमाम और वारिस पठान जैसे नेताओं के बयान अभी भी जेहन में हैं। फैसल फ़ारूक़ के स्कूल को दंगाइयों द्वारा अटैक बेस बनाया जाना याद ही होगा। ताहिर हुसैन ने अपने हजारों लोगों के साथ मिल कर जो कत्लेआम मचाया, उसकी जाँच जारी है। अमानतुल्लाह ख़ान ने जिस तरह दंगाइयों का बचाव किया, वो सभी को पता ही है।
दिल्ली को लंदन बनाने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल ने आज दिल्ली को वुहान बनने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। दुर्भाग्य यह है कि जिस जनता के साथ आज उन्होंने छल किया है, उसी को वोट बैंक बनाकर वो तीसरी बार सत्ता में लौटे हैं।
जब 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा हुई तो पूरा देश उपलब्ध संसाधनों के साथ वायरस को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा था। लेकिन AAP के लोग क्या कर रहे थे? वो #ShameOnNitishKumar को ट्रेंड करवा रहे थे। वो प्रवासी मजदूरों के पलायन का लाइव स्ट्रीमिंग कर रहे थे।
अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट और मीडिया के अनुसार 1990 में वहाँ 1 लाख हिन्दू और सिख आबादी थी, जोकि अब 3000 के आसपास है। यह समझना कोई कठिन काम नहीं है कि उन 97,000 हिन्दुओं और सिखों के साथ क्या हश्र हुआ होगा।
सर्बिया के राष्ट्रपति ने तो यूरोपीय सहयोग और बंधुत्व को महज एक 'दिवास्वप्न' करार देते हुए कहा कि सिर्फ चीन ही था, जिसने उनकी मदद की। - चीन के इसी प्रोपेगेंडा का शिकार होने की लाइन में ईरान, इराक और इटली जैसे देश भी हैं। जहाँ रोजाना हजारों मौतें हो रहीं, वहीं चीन इस दुर्भाग्यपूर्ण समय को एक अवसर के तौर पर देख रहा।
कल गुरूद्वारे पर हमले के बाद पूरा अफगानिस्तान अपने सिख-हिन्दू भाइयों के लिए उमड़ पड़ा और अपनी सहानुभूति व्यक्त कर उसके साथ खड़े होने की दृढ़ता दिखाई। इस हमले पर अभी तक तालिबान की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस्लामिक स्टेट ने इसकी जिम्मेदारी लेकर एक बार फिर अपना घिनौना चेहरा दुनिया के सामने रख दिया। इधर भारत में लिबरल-वामपंथी गिरोह इसको लेकर चुप्पी साधे हुए है। जैसे उसने सुकमा में नक्सली हमले के वक्त साधा था।
"मुस्लिमों में भारतीयता का बहुत अभाव है। इसलिए वे सभी भारतीयता के महत्व को नहीं समझते हैं और अरबी एवं फारसी लिपि को पसंद करते हैं। पूरे भारत की एक भाषा होनी चाहिए और वह भी हिंदी। जिसे वे कभी नहीं समझते हैं, इसलिए वे अपनी उर्दू की प्रशंसा करते रहते हैं और एक तरफ बैठते हैं।"
NPR बनने और उसके प्रभावी हो जाने पर बाहर जाने वाले 'घुसपैठियों' की संख्या के अनुपात में CAA के उपरोक्त 'लाभार्थी' बहुत ही कम हैं। साथ ही, धार्मिक आधार पर प्रताड़ित अपने पूर्व-नागरिकों को शरण और नागरिकता देना भारत का संवैधानिक और मानवीय दायित्व भी है।
ये वह समाज है जिससे मोदी कह दें कि विष्ठा मलद्वार से करनी चाहिए तो वह अपने मुख से करने लगेगा। इनका ऑक्सीजन भी मोदी-विरोध है। इनका गड़बड़ाया पाचन तंत्र भी मोदी को गाली देकर दुरुस्त होता है। इस समाज के गाँजा और सेक्स लाइफ का एक्स फैक्टर है मोदी विरोध।
विश्व खुशहाली रिपोर्ट में पाकिस्तान को 66वाँ खुशहाल देश बताना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। आखिर किस आधार पर उसे यह रैंकिंग दी गई, क्योंकि गैलप के सर्वे ने तो पाकिस्तान की जनता की नाखुशी और नापसंदगी को जाहिर कर ही दिया और वहाँ की अर्थव्यवस्था तो माशाल्लाह!!! ताज्जुब की बात है कि फिर भी रैंकिंग में 66वाँ खुशहाल देश?