Saturday, April 20, 2024

सामाजिक मुद्दे

विश्व की 15% जनसंख्या का समाप्त होना निश्चित: विनाश से सृजन का बीज है चीनी कोरोना वायरस

अगले 10 वर्षों में कोरोना वायरस के कारण राष्ट्रों के बीच टकराव एवं आर्थिक विभीषका के परिणामस्वरूप, विश्व की 15% जनसंख्या समाप्त होगी और...

हलाल का हल्ला: आयुर्वेद व ऋषि-परंपरा को इस्लामी देशों ने अपनाया, समझौता उन्होंने किया, जीत हमारी हुई

पतंजलि को हलाल सर्टिफिकेट मिला लेकिन क्या कंपनी में कोई बदलाव किया गया? नहीं। तो फायदा किसे हुआ और समझौता किसे करना पड़ा? समझिए!

‘वायर’ के वेणु! मस्जिदों से जिहाद, जकात का पैसा काहे नहीं माँगते? मंदिरों के सोने पर क्यों है तेरी कुदृष्टि?

वक़्फ़ के पास हर बड़े शहर की प्राइम लोकेशन पर दसियों एकड़ जमीनें हैं, जकात का अथाह पैसा है। कोरोना काल में मंदिर से सोने के बजाय मस्जिद को...

तेजस्वी सूर्या के ट्वीट पर छाती पीटते लिबरलों को क्यों खटक रहे भारत-अरब के मैत्रीपूर्ण रिश्ते

तेजस्वी सूर्या प्रसंग में वामपंथी और कट्टरपंथी जमात एक हो गए। ऐसे प्रतिक्रिया कर रहे हैं जैसे वे भारतीय ना होकर सऊदी अरब के एजेन्ट हों।

भगवा झंडे से समुदाय विशेष को परेशानी क्यों? वो ध्वजा है, मिर्ची नहीं!

भगवा रंग किसी की आँखों को चुभता है तो समस्या उसकी है। ये उसकी दुष्टता है कि उसे हमारे धर्म के प्रतीक चिह्नों से घृणा है।

हिटलर ने बंकर में अपने डॉक्टर से पूछा- आत्महत्या का सबसे अच्छा तरीका क्या – जहर या बंदूक की गोली?

आत्महत्या सायनाइड या गोली से? हिटलर ने डॉक्टर से पूछा। फिर सायनाइड का असर जाँचने के लिए अपनी प्यारी पालतू बिल्ली ब्लॉन्डी को उसने...

लॉकडाउन की 3 बड़ी उपलब्धियाँ, आगे की योजनाएँ ताकि बेहतर तरीके से हो सके चुनौती का सामना

3 मई के बाद लॉकडाउन को हटाने के लिए भी दो स्तरों पर काम करने की आवश्यकता है। भारत को भविष्य में ऐसी किसी आपदा से निपटने के लिए...

अभिव्यक्ति की आजादी देश की चूलें हिलाने में नहीं, देशहित में अभिव्यक्त हों: आजादी के सिपाहियों की मंशा

कुछ लोगों को लगता है कि सत्ता के खिलाफ आवाज उठाना ही सबसे बड़ा वाक्शौर्य है, लेकिन वो भूल जाते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब सिर्फ...

लॉकडाउन में घरेलू हिंसा: महिलाओं पर बढ़े अत्याचार, क्या महामारी भी नहीं दे रही पुरुषों को सीख?

लॉकडाउन के दौरान दुनियाभर में घरेलू हिंसा तेजी से बढ़ी है। इसमें हमारा देश भी है। शर्मनाक है, लेकिन आज का सच यही है।

संतों की लिंचिंग: पालघर पर लेफ्टिस्ट-सेक्युलर खामोशी और कुछ अनुत्तरित सवाल

पालघर में संतों की लिंचिंग से कई सवाल खड़े होते हैं। इनके जवाब के लिए उच्च स्तरीय जॉंच जरूरी है। नरराक्षसों पर कठोर से कठोर कार्यवाही होनी चाहिए।

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