Saturday, April 20, 2024
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213 देश, 15 करोड़ सदस्य: अल्लाह का संदेश पहुँचाने के नाम पर तबलीगी जमात का आतंकी कनेक्शन

हरियाणा के नूंह से वर्ष 1927 में शुरू हुई तबलीगी जमात की पहली मरकज 14 साल बाद वर्ष 1941 में 25 हजार लोगों के साथ हुई थी। विश्व के अलग-अलग देशों में हर साल इसका वार्षिक कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसे 'इज्तेमा' कहते हैं।

राजधानी दिल्ली स्थित निजामुद्दीन में हुए तबलीगी जमात के मरकज का खुलासा होते ही कोरोना वायरस के संक्रमण का सबसे बड़ा स्रोत बनकर उभरा यह समूह देखते ही देखते इस वैश्विक महामारी के समानांतर चर्चा का एक प्रमुख विषय बन गया। अब सबकी जुबान पर सबसे पहला सवाल 1920 के दशक में इस्लामिक पुनर्जागरण के नाम पर भारत से शुरू हुए इस समूह की संदिग्ध गतिविधियों को लेकर है।

विश्वभर में हुई विभिन्न आतंकवादी घटनाओं में तबलीगी जमात के लोगों का सम्बन्ध नजर आने के बाद इसके मूल और इसके उद्येश्यों पर अतीत में भी खूब बहस हो चुकी है। दरअसल, तबलीगी जमात विश्व में सुन्नी इस्लाम के प्रचार के लिए किया गया आंदोलन था। जिसका प्रमुख उद्देश्य समुदाय के लोगों को प्राचीन इस्लामी पद्धतियों की ओर ले जाने की प्रेरणा देना था। मूल रूप से, ये प्रशिक्षित इस्लामिक मिशनरी हैं, जिन्होंने दुनिया भर में इस्लाम फैलाने में अपना अधिकांश जीवन समर्पित कर दिया।

तबलीगी जमात

सबसे पहले यहाँ पर जान लेना आवश्यक है कि ‘मरकज, तबलीगी, जमात’ ये तीनों शब्द अलग-अलग हैं। तबलीगी का शाब्दिक अर्थ होता है, अल्लाह के संदेशों का प्रचार करने वाला। जमात मतलब, समूह और मरकज का अर्थ होता है बैठक के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जगह। यानी, अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला समूह।

तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी के मूल 6 उद्देश्यों (इसी लेख में आगे वर्णित है) का प्रचार-प्रसार दुनियाभर में करते हैं। वे आम लोगों तक इन्हें पहुँचाते हैं और उनके विश्वास को इस्लाम में पुनर्जीवित करने का काम करते हैं। आज यह कम से कम 213 देशों तक फैल चुका है। इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। बताया जाता है कि इस जमात के दुनिया भर में आज के समय में 15 करोड़ सदस्य हैं।

हालाँकि भारत में रहने वाले इसके सदस्य निजामुद्दीन को ही इसका प्रमुख आधार मानते हैं क्योंकि यह आंदोलन इस्लाम के देवबंद स्कूल से ही तैयार हुआ था और जो कि अधिक तार्किक भी है फिर भी पाकिस्तान के रायविंड और बांग्लादेश स्थित तंगी में इसके बुजुर्गों ने अपने देशों की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी का हवाला देते हुए निजामुद्दीन को ही इसका प्रमुख केंद्र मानने पर अक्सर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा है कि यह महज निजामुद्दीन तक सीमित न होकर अधिक व्यापक तौर पर काम करता है।

औपनिवेशिक काल में भारत से शुरुआत

तबलीगी जमात आंदोलन, 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने भारत में हरियाणा के नूंह जिले के एक गाँव से शुरू किया था। वह प्रमुख देवबंदी मौलवी, विद्वान और तबलीगी जमात के प्रस्तावक थे। हरियाणा के नूंह से वर्ष 1927 में शुरू हुई तबलीगी जमात की पहली मरकज 14 साल बाद वर्ष 1941 में 25 हजार लोगों के साथ हुई थी। विश्व के अलग-अलग देशों में हर साल इसका वार्षिक कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसे ‘इज्तेमा’ कहते हैं।

छह प्रमुख उद्देश्यों के साथ तबलीगी जमात की एक सबसे बड़ी शर्त और विशेषता इसकी गोपनीयता ही है। इसी गोपनीयता ने इसकी हरकतों पर हमेशा आवरण का काम किया है। समूह की आंतरिक कार्यप्रणाली के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है क्योंकि यह अपनी सदस्यता और नेतृत्व के कोई भी आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं रखता है।

भारत में मशहूर देवबंदी आन्दोलन की उपज इस तबलीगी जमात को एक राजनीतिक, जनवादी संगठन के रूप में तैयार किया गया था, जो दुनिया भर के मिशनरियों को इस्लाम की कट्टर रूढ़िवादी प्रथाओं के लिए स्वच्छंद रूप से उन्हें वापस लाने (या विश्वास को कायम रखने) के उद्देश्य से जगह-जगह भेजता है।

तबलीगी जमात के मूलतः 6 प्रमुख उद्देश्य

कलिमा (एकेश्वरवाद के अंतर्गत यह घोषणा कि दुनिया में सिर्फ और सिर्फ एक अल्लाह ही भगवान है और प्रोफेट मोहम्मद उनके दूत हैं)
सलात (पाँच वक्त की नमाज)
इल्म-ओ-ज़िक्र (मजहबी ज्ञान)
इक्राम-ए-मुस्लिम (मजहब के लोगों का आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना और मदद करना- भाईचारा)
इख्लास-ए-निय्यत (इरादे की ईमानदारी)
तफ्रीह-ए-वक़्त (रोजाना के कामों से दूर रहकर समय का इस्तेमाल अल्लाह के संदेश को घर-घर तक पहुँचाना)
इनके अलावा एक सातवाँ और शायद सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है- दावत-ओ-तबलीग (मस्जिद में आने की दावत: धर्मांतरण का हिस्सा)

20वीं सदी में तबलीगी जमात को इस्लाम का एक बड़ा और अहम आंदोलन माना गया था। औपनिवेशिक ब्रिटिश काल के दौरान भारत में आर्य समाज ने दयानंद सरस्वती के पुनर्जागरण के अभियान के अंतर्गत उन लोगों को दोबारा से हिंदू बनाने का ‘घरवापसी’ अभियान शुरू किया था, जिन्हें मुगल आक्रान्ताओं ने इस्लाम में परिवर्तित किया था। जिसके चलते मौलाना इलियास कांधलवी ने इस्लाम की शिक्षा देने का काम प्रारंभ किया। लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि तबलीगी लोग सूफ़ियों के आदेश में विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन इस्लाम के भीतर कुछ समुदाय इसे मानते हैं और खुद को सुन्नियों के रूप में बुलाते हैं।

जिहाद से तबलीगियों का सम्बन्ध

समय के साथ विश्वभर में ऐसी तमाम घटनाएँ और खुलासे होते गए, जिनमें तबलीगी जमात को आतंकवाद में भर्ती की पहली सीढ़ी बताया गया। बाहरी तौर पर तबलीगी जमात एक शांतिपूर्ण, समतावादी और भक्ति आंदोलन के रूप में ही काम करता रहा है। यहाँ तक कि आज भी भारत में लेफ्ट-लिबरल मीडिया के उपदेशक शेखर गुप्ता और दी वायर की पत्रकार आरफा खानम इनकी तमाम बदसलूकियों के सामने आने के बावजूद यही दावा करते हुए नजर आते हैं कि ये महज अल्लाह के संदेशवाहक हैं और इनको सिर्फ बदनाम किया जा रहा है।

सबसे पहले इस समूह के बीच अप्रत्यक्ष संबंध और शिया-विरोधी सांप्रदायिक समूहों, कश्मीरी आतंकवादियों और तालिबान से बने कट्टरपंथी/चरमपंथी देवबंदियों से साँठ-गाँठ के सबूत मिले। यह सम्बन्ध एक ऐसा माध्यम प्रदान करता है, जिसके जरिए वो लोग जो तबलीगी समूह के राजनीतिक कार्यक्रम (6 उद्देश्यों) से असंतुष्ट हैं, को छोड़कर आतंकवादी संगठनों में शामिल हो सकते हैं।

इस समूह के सदस्यों पर 1995 में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के खिलाफ तख्तापलट की साजिश रचने का भी आरोप लगाया गया था। हालाँकि, इस संगठन की अत्यधिक गोपनीयता के कारण, इसके बारे में बहुत जानकारी नहीं जुटाई जा सकी थी, लेकिन कम से कम यह स्पष्ट हो गया था कि तबलीगी महज धार्मिक परिधि तक ही सीमित न होकर अपने दावे के उलट राजनीतिक महत्वाकांक्षा में भी सक्रिय रहे। तबलीगी धीरे-धीरे हरकत-उल-मुजाहिद्दीन (HuM) और अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों में जिहादी लड़ाकों की भर्ती का प्रमुख जरिया बनता गया।

ऐसे भी प्रमाण मिले, जिनमें यह खुलासा हुआ कि तबलीगियों ने धर्म प्रचारक के रूप में जाकर वहाँ कट्टरपंथ का रास्ता चुना और लोगों को वही रास्ता दिखाया भी। इन तबलीगियों की एक बार पाकिस्तान में भर्ती होने के बाद, विभिन्न कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के प्रतिनिधियों, जैसे कि हरकत-उल-मुजाहिदीन, तालिबान और अल-कायदा, को उन्हें अपनी जिहादी सेना में सैन्य प्रशिक्षण देकर भर्ती करने के लिए कहा जाता है। इसके लिए उन्हें लुभावने प्रलोभन दिए जाते हैं। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण था जॉन वॉकर लिंड – एक अमेरिकी, जिसे अफगानिस्तान के खिलाफ जिहाद में तालिबान के समर्थन के लिए जेल की सजा काटनी पड़ी। उसने वर्ष 1998 में पाकिस्तान में तबलीगी प्रचारकों के साथ यात्रा की, ताकि तालिबान में शामिल होने से पहले इस्लामिक मजहबी शिक्षा ले सके।

तबलीगी समय के साथ कट्टर जिहादी समूहों में बढ़ते गए और यह विश्वास करने लगे कि ‘अच्छे मुस्लिमों’ को इसी जीवन में यातनाएँ भोगनी चाहिए। जुलाई 07, 2005 में लंदन बम विस्फोटों के लिए जिम्मेदार सेल के दो प्रमुख सदस्य – मोहम्मद सिद्दीक खान और शहजाद तनवीर ने 2001 में ही तबलीगी मस्जिद छोड़कर कुछ ‘जमीनी काम’ करने की ठानी थी। ये तबलीगी जमात के मंच से निकलकर कट्टर इस्लामिक गतिविधियों में उतरने वाले ही कुछ उदाहरणों में से एक थे।

इसके बाद कई अन्य लोग तबलीगी जमात छोड़कर इराक़, पाकिस्तान, चेचन्या, दागेस्तान आदि इलाकों में ‘पर्यटक’ और ‘उपदेशक’ का आवरण ओढ़कर कट्टर जिहादी संगठन तैयार करने में लगे रहे। इनकी संदिग्ध गतिविधियों पर संज्ञान लेते हुए कुछ देशों ने इन्हें उसी समय ब्लैक-लिस्ट कर प्रतिबंधित करने का साहसिक फैसला लिया था।

हाल ही में सबसे बड़ा आश्चर्य यह देखना था कि उत्तराखंड के सुदूर इलाकों में बसे (कॉन्ग्रेस सरकार का शुक्रिया, जिसने बांग्लादेशियों और मजहब विशेष के अवैध प्रवास के काम में खूब मदद भी की), लोग भी दिल्ली में आयोजित निजामुद्दीन मरकज से घर वापस लौटे थे। एक वीडियो में देखा जा सकता है कि स्थानीय ग्रामवासियों के सवालों का किस बेपरवाही से वह जवाब दे रहे हैं। वह कह रहा है, “हमारा मालिक’ सबसे बड़ा है, इसलिए मेरी जिन्दगी पूरी मजे से कटेगी।”

तबलीगियों का नेटवर्क ही उनकी सबसे बड़ी ताकत

उत्तराखंड में एक वर्षों पुरानी स्थानीय कहावत भी सुनी जाती थी- “मच्छर, मक्खी, मु###न- ये तीन पहाड़ों पर नहीं होते।” बेशक यह कहावत आपसी हँसी-मजाक के तौर पर इस्तेमाल की जाती थी। लेकिन विगत कुछ समय में पहाड़ों पर इनकी संख्या बढ़ती देखी गई। जहाँ पलायन के कारण उत्तराखंड के गाँव के गाँव खाली होते जा रहे हैं, वहीं समुदाय विशेष ने अपने गाँव में मस्जिदें बनाकर उन पर माइक लगाने शुरू कर दिए हैं। उल्लेखनीय है कि यह गाँव कुछ साल पहले तक बिना माइक के ही सुबह की अजान पढ़ते थे।

हम पहले भी बता चुके हैं कि किस प्रकार तबलीगी जमात के सदस्य अमेरिका के 9/11 हमले से लेकर कश्मीर, अफगानिस्तान आदि जगहों पर जिहादी षड्यंत्र के जिम्मेदार रहे। यद्यपि तबलीगी संगठन अल कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के लिए एक प्रमुख स्रोत की तरह काम करता है, लेकिन इस बात का कोई आधिकारिक सबूत नहीं है कि तबलीगी स्वेच्छा से वैश्विक रूप से जिहादी संगठनों के लिए कार्य करता है। बल्कि बताया जाता रहा है कि ऐसी गतिविधियाँ तबलीगी नेताओं की जानकारी या सहमति के बिना घटित होती हैं। यानी, तबलीगियों की गोपनीयता का सूत्र फिर से इनका बचाव करता नजर आता है।

तबलिगी जमात का नाम आतंकवादी साजिश रचने में के संबंध में पहले भी आया है, जिसमें अक्टूबर 2002 पोर्टलैंड सेवन (The Portland Seven), सितंबर 2002 लाकवाना, अमेरिका में छह मामले, साथ ही अगस्त 2006 में लंदन हवाई मार्ग पर बम विस्फोट करने की साजिश शामिल है। संयुक्त राज्य अमेरिका, 7 जुलाई 2005, लंदन बम विस्फोट और जुलाई 2007 में लंदन और ग्लासगो, स्कॉटलैंड में बम विस्फोट का प्रयास भी इनके द्वारा किया गया था।

कोरोना वायरस के संक्रमण का हॉट-स्पॉट

दिल्ली निजामुद्दीन मरकज में 1 से 15 मार्च के बीच हुए जमात के जलसे में देश-विदेश के 5 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। लेकिन, इसके बाद भी करीब 2000 से ज्यादा लोग लॉकडाउन के बावजूद यहाँ रुके रहे, जबकि ज्यादातर लॉकडाउन से पहले अपने घरों को लौट गए। यहाँ से संक्रमण का कनेक्शन दिल्ली समेत देश के 22 राज्यों से जुड़ गया।

इस मरकज में इंडोनेशिया, मलेशिया, थाइलैंड, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और किर्गिस्तान सहित 16 देशों के लोग शामिल हुए और इसके बाद विभिन्न हिस्सों में लौट गए। यह मरकज तब सरदर्द बन गई, जब इसमें शामिल कुछ लोग कोरोना के संक्रमण से पॉजिटिव पाए गए। और पता चला कि 31 मार्च तक जहाँ भारत में कोरोना के संक्रमण का ग्राफ बेहद निम्न स्तर पर था, वही अचानक से बढ़ने लगा।

यहाँ मौजूद लोगों को देशभर में मौजूद विभिन्न मस्जिदों में छुपाया गया, पुलिस जब इन्हें ढूँढने गई तो कट्टरपंथियों ने पुलिस पर भी हमला किया। और यहाँ से तबलीगियों के एक नए घिनौने इतिहास का सृजन होने लगा। यह कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलाने के लिए यहाँ-वहाँ थूकते हुए नजर आए। डॉक्टर्स से बदसलूकी से लेकर अस्पताल में महिला कर्मचारियों से अश्लीलता की ख़बरें सामने आने लगीं। ये लोग क्वारंटाइन सेंटर में जगह-जगह थूक रहे हैं। इन लोगों ने डॉक्टरों और देखरेख में जुटे स्टाफ को गालियाँ दीं और उन पर थूका। सोशल डिस्टेंस के निर्देशों का मजाक बनाते नजर आ रहे हैं। यहाँ तक कि तबलीगी जमात के ही एक व्यक्ति ने तो आत्महत्या की भी कोशिश की।

निजामुद्दीन मरकज के कोरोना वायरस के सबसे बड़े हॉट-स्पॉट बनने के पीछे का क्रम देखिए। मलेशिया में पिछले दिनों तबलीगी जमात के सम्मेलन में गए 620 लोग कोरोना पॉजिटिव मिले हैं। इनमें 15 अलग-अलग देशों के लोग हैं। सम्मेलन में शामिल हुए दो लोग फिलस्तीन गए। दो पाकिस्तान के लाहौर पहुँच गए। उसी दौरान दो लोग किर्गिस्तान गए। वहाँ कई लोगों से मिलने के बाद वे दोनों पॉजिटिव मिले। इधर, लाहौर पहुँचे दोनों लोगों से कई लोगों को संक्रमण हुआ। यहीं से संक्रमण पाकिस्तान के सबसे समृद्ध प्रांत पंजाब में पहुँचा। पाकिस्तान के सबसे ज्यादा 748 संक्रमित पंजाब में ही हैं। वहीं, पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ की रिपोर्ट के अनुसार सिंध के हैदराबाद में कुल 43 लोग संक्रमित हैं, जिनमें से 36 तबलीगी जमात के आयोजन में शामिल थे।

मलेशिया के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर अधम बाबा ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कोरोना वायरस से हुई पहली मौत पेटालिंग मस्जिद में 27 फरवरी से 1 मार्च के बीच हुए कार्यक्रम से जुड़ा था। इस कार्यक्रम में 16,000 लोग शरीक हुए थे। इनमें 1,500 विदेशी नागरिक थे। ज्यादातर दक्षिण-पूर्व एशियाई नागरिक थे। सबसे बड़ी बात ये है कि मलेशिया में अभी तक कोरोना वायरस के जो 673 पॉजिटिव केस सामने आए हैं, उनमें से करीब दो-तिहाई मामले इसी दौरान उस मस्जिद में मौजूद रहे लोगों से जुड़े हैं।

कश्मीर से कन्याकुमारी तक संक्रमित तबलीगी

यदि तबलीगी मरकज में शामिल लोग कानून और व्यवस्था में यकीन करते हुए शासन-प्रशासन का सहयोग करते तो शायद इक्कीस दिनों के लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाने की नौबत नहीं आती। सहयोग करने के बजाए हालात यह हो गए कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और उड़ीसा से लेकर गुजरात और पंजाब की सीमाओं तक यह मानव बम बनकर संक्रमण फैलाने के प्रमुख स्रोत बन गए। उत्तराखंड पुलिस को तो यह घोषणा करने पर मजबूर होना पड़ा कि दिल्ली मरकज में शामिल लोग स्वयं बाहर आ जाएँ वरना उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाएगा। यूपी में तबलीगी जमात में शामिल हुए करीब 1600 लोगों को चिह्नित कर 1300 को क्वारंटाइन कर लिया गया है।

यूपी में अब तक 410 कोरोना पॉजिटिव केस सामने आए हैं, जिनमें से 221 तबलीगी जमात से जुड़े हुए मिले हैं। यही कहानी तमिलनाडू, तेलंगाना सहित लगभग हर संक्रमित राज्य की है। तमिलनाडू के स्वास्थ्य सचिव डॉ. बीला राजेश ने बताया कि राज्य में दर्ज कुल 738 मामलों में से 679 मामले तबलीगी जमात के एक ही सोर्स से जुड़े हुए हैं। वर्तमान में कुल मामलों में 64% आँकड़ा सिर्फ उन जमातियों का ही है, जिन्होंने निजामुद्दीन मकरज में हुए कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।

अप्रैल 04 को इंडिया टुडे के पत्रकार राहुल कँवल ने अपने ट्विटर अकाउंट से एक ऐसा ग्राफ ट्वीट करते हुए बताया कि भारत में दर्ज किए गए कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों में 60% तबलीगी जमात से जुड़े हुए मिले हैं। हालाँकि मात्र एक सूचना को सामने रखने के कारण उन्हें ट्विटर पर राना अयूब और आरफा खानम जैसे ‘कट्टरपंथी उदारवादियों’ का विरोध झेलना पड़ा और राहुल कँवल को ‘इस्लामोफोबिक’ घोषित कर दिया गया।

इस चित्र में टोपी पहने हुए प्रतीकात्मक चित्र का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए किया गया था कि तबलीगी जमात के लोग कोरोना के संक्रमण के लिए किस स्तर तक जिम्मेदार हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की वकालत करने वाले यह लोग दुसरे व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से अक्सर असंतुष्ट नजर आते हैं।

मरकज से लौटे एक तबलीगी का खुलासा

यह खुलासा तेलंगाना के एक ऐसे व्यक्ति ने किया है, जो मरकज में बीते साल नवंबर में 21 दिनों तक ठहरा था। जॉनी (बदला हुआ नाम) शुरू में ईसाई था। उसने धर्मांतरण कर इस्लाम अपना लिया। उसने अपनी प्रेमिका के परिवार को ख़ुश करने के लिए ऐसा किया। एक डॉक्टर ने उसका लिंग-विच्छेद (खतना) किया और उसकी सलाह पर ही जॉनी ने तबलीगी जमात में शामिल होने का फ़ैसला किया।

नवंबर में मरकज़ में जाने से पहले वह कई दिनों तक तेलंगाना की विभिन्न मस्जिदों में प्रवास कर चुका था। उसने बताया कि तबलीगी जमात पूरी दिनचर्या तय करता है। खाने-पीने से लेकर मल-मूत्र त्याग करने तक सब कुछ। यहाँ तक कि सेक्स कैसे करना है, ये भी जमात ही सिखाता था। जॉनी को भी उस ‘ऑर्थोडॉक्स’ संस्था से जुड़ाव हो गया था और वो सब कुछ करता था, जैसे कहा जाता था।

जॉनी ने मरकज के लोगों के बेहद असभ्य संस्कृति के बारे में बताया कि साफ़-सफाई से नफरत करने वाले वो लोग इतने ज्यादा गंदे हैं कि उसे कोई आश्चर्य नहीं कि यह कोरोना का हॉट-स्पॉट बन गया। जॉनी ने कहा

“मरकज में 4 लोग एक साथ बैठ जाते हैं और एक ही प्लेट में भोजन करते हैं। रोटी, चावल और करी वगैरह भी एक ही प्लेट में खाते थे। यहाँ तक कि हम चम्मच का भी प्रयोग नहीं किया करते थे और साथ ही खाते थे। कभी-कभी 6-7 लोग भी ऐसा ही करते थे। अंदर बाथरूम बहुत कम हैं और सभी को शेयर करना पड़ता है। हालाँकि, एक समय पर मरकज़ में निश्चित लोग ही रहते हैं। लोग वहाँ आते-जाते रहते हैं। कभी-कभी तो वहाँ हज़ार से भी अधिक लोग एक साथ रह रहे होते हैं। इतनी भीड़ होती है कि आप दिन में कभी भी बाथरूम जाएँ, अंदर कोई न कोई होता है और आपको 5-7 मिनट इन्तजार करना ही करना पड़ेगा।”

वहीं, मलेशिया के लेखक फारिश अ नूर ने अपनी किताब, ‘इस्लाम ऑन द मूव’ में इसी से संबधित एक और चौंकाने वाला खुलासा किया है। उन्होंने अपनी किताब में बताया है कि जो जमाती मरकज़ में रहते हैं, वे एक-दूसरे के सामने खुलेआम शौच करने व पेशाब करने में शर्म नहीं करते क्योंकि उनके भीतर अपने शरीर को लेकर शर्म खत्म हो चुकी होती है।

किताब में बताया गया है कि वहाँ टॉयलेट का डिजाइन इस तरह से बनाया जाता है कि तबलगियों को शौच करते हुए सब देख सकें। ताकि अन्य तबलीगी अपने भाइयों को आँकें और उनके पेशाब करने की मुद्रा को सुन्नत के अनुरूप सुधार सकें। किताब में इस बात का उल्लेख है कि समुदाय विशेष को बैठकर पेशाब करना चाहिए, खड़े होकर नहीं। यह खुलासा क्वारंटाइन में रखे हुए उस जमाती की हरकत से भी पर्दा उठाती है, जिसने अस्पताल में खुले में ही शौच कर डाली और वह इस बात को लेकर बिलकुल भी चिंतित नहीं था। यही नहीं, अस्पताल में पेशाब से भरी हुई बोतलें भी बरामद हुई हैं।

कोरोना के संक्रमण को बढ़ाने के लिए हर जगह थूक रहे, जाँच करने वालों पर हमला कर रहे और मस्जिद में इन जमातियों को छुपा रहे लोगों की ख़ास बात यह है कि इनका यह आचरण भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि ऐसे केस पाकिस्तान में भी सामने आ रहे हैं। वहाँ पर भी डॉक्टर्स पर हमले और थूकने की घटनाएँ देखने को मिली हैं।

सवाल यह है कि इन सबके कारनामों में इतनी आश्चर्यजनक एकरूपता आखिर कैसे हो सकती है? वास्तव में इसका जवाब यह है कि उनके धर्मग्रन्थ ने ही उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा दी है कि नमाज पढ़ते समय या मजहबी कार्य करते समय शैतान की दखलअंदाजी खत्म करने के लिए वो ये करें।

उल्लेखनीय है कि इन सभी बातों के अलावा हमें मरकज़ के मुखिया मौलाना साद की वो वायरल ऑडियो भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है, जिसमें वह सभी जमातियों को यह शिक्षा देने की कोशिश कर रहा था कि कोरोना वायरस एक साजिश है, जिसे मजहब विशेष के समर्थकों को मारने के लिए रचा जा रहा है। साथ ही सरकार को एक शैतान के रूप में प्रदर्शित किया था क्योंकि उन्होंने कोरोना वायरस के मद्देनजर किसी भी धार्मिक स्थल पर भीड़ इकट्ठा करने को मना किया था। तबलीगी जमात का मुखिया मौलाना साद फिलहाल गायब है। पुलिस ने नोटिस भी जारी किया लेकिन मौलाना की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है।

सिर्फ मजहब के नाम पर बिहार के मधुबनी से लेकर इंदौर में अपने ही धर्म के लोगों की छुपाने के लिए पुलिस पर हमले किए गए, फायरिंग और पथराव किए गए। यह लोग शाहीनबाग में भी यही कहते देखे गए थे कि मौत तो एक ना एक दिन आनी ही है। इनके मौलवी कहते सुने जा रहे हैं कि उन्हें इस बात की चिंता नहीं कि वो मरेंगे, वह चाहता है कि अपने साथ काफिरों को लेकर मरे।

कोरोना वायरस को नोटों की गड्डियों के द्वारा संक्रमण बढ़ाने की सीख देने के लिए उन पर अपने नाक-मुँह पर पोंछते हुए भी यही सन्देश देते देखे जा रहे हैं कि कोरोना अल्लाह का हिन्दुओं के खिलाफ कहर है। चेतावानी वाले वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किए गए कि सुन्नत ना पढ़ने वालों को कोरोना होगा जबकि नमाज में ही कोरोना का इलाज छुपा हुआ है। मौलवी तक अल्लाह से यह दुआ माँग रहे हैं कि कोरोना कम से कम 50 करोड़ भारतीयों को खत्म कर दे। यह धार्मिक कट्टरता की एकरूपता तो पूरे विश्व के लिए सीख है। मौत में भी मजहब ढूँढने वालों के लिए कोरोना सिर्फ एक अवसर माना जा सकता है।

क्या हो सकता है विकल्प?

तबलीगी जमात के लोगों ने थूकने को नई पत्थरबाजी बना दिया है। यदि यह सब इतना सुनियोजित है तो फिर क्या यह एक अन्य किस्म की आतंकवादी गतिविधि नहीं मानी जा सकती है? ऐसे समय में, जब शासन व्यवस्था का सारा ध्यान कोरोना की महामारी से लड़ने में केन्द्रित होना चाहिए था, उसके संशाधनों का इस्तेमाल मजहबी कारणों से उपजी अलग किस्म की महामारी में जाया हो रहा है। साथ ही यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि ऐसा करने में कहीं देश के उदारवादियों की गंगा-जमुनी तहजीब को ठेस ना पहुँचे।

पुलिस और डॉक्टर्स तबलीगी जमातियों की विष्ठा साफ़ कर रहे हैं जबकि कुछ सरकार विरोधी दलों से पोषित गोदी फैक्ट चेकर्स सिर्फ ऐसे अवसर की तलाश में बैठे हुए हैं कि उन्हें विष्ठा को तबलीगियों के बजाए किसी अन्य मजहब की साबित करना है। वह यह साबित करने में लगे हैं कि शेरू मियाँ फलों पर मार्च में नहीं बल्कि फरवरी में थूक लगा रहे थे। पत्थर को वॉलेट साबित करने वाले ये फैक्ट चेकर्स ऐसे साक्ष्य जुटा रहे हैं, जिनसे ये साबित किया जा सके कि चाकू पर थूक लगाकर तरबूज बेचने वाला व्यक्ति स्टील का चाकू इस्तेमाल कर रहा था या फिर प्लास्टिक का? इनका मर्म यह है कि बिहार-लखनऊ की जिस मस्जिद में विदेशी तबलीगियों को छुपाकर रखा गया था, वो चीन के नहीं बल्कि तुर्कमेनिस्तान के मुल्ला थे।

निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के मरकज का सम्बन्ध और समाज के प्रति इसका नजरिया कोरोना वायरस के बहाने ही सही लेकिन आख़िरकार सबकी नजरों में यह मुद्दा आखिर आ ही गया। गृह मंत्रालय ने 690 ऐसे तबलीगी जमातियों के वीजा निरस्त कर इनके सदस्यों को ब्लैक-लिस्ट कर दिया है। जाँच में पता चला है कि निजामुदीन स्थित इस मरकज की बिल्डिंग को अवैध तरीके से धीरे-धीरे कर तैयार किया जाता रहा। 1960 के दशक में यह पहले महज स्थानीय लोगों के नमाज पढ़ने की जगह हुआ करती थी, जो बाद में मस्जिद और फिर 7 मंजिला (इसके अलावा दो भूमिगत फ्लोर भी) मरकज में तब्दील कर दिया गया।

ऐसे में एक निराशा हर किसी को सरकार से यह जरूर हो सकती है कि आखिर इतने वर्षों तक इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया। जबकि कई देशों में पर्यटक वीजा के नाम पर मजहबी गतिविधियों में शामिल यह तबलीगी जमात कई वर्ष पहले प्रतिबंधित कर दी जा चुकी थी। यह यकीन अवश्य किया जा सकता है कि वर्तमान में केंद्र की दक्षिणपंथी सरकार ने जिस दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ तीन तलाक जैसे फैसलों को साकार कर दिया, वह तबलीगी जमात की कारस्तानी पर तो अवश्य ही कोई बड़ा फैसला लेगी।

हमने गत वर्षों में देखा है कॉन्ग्रेसी तुष्टिकरण का अभ्यस्त हमारे समाज और वामपंथी मीडिया गिरोहों के अपार विरोध के बावजूद सरकार ने अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त करने से लेकर विदेशों में रह रहे हिन्दू शरणार्थियों के लिए नागरिकता कानून जैसे अहम फैसले लिए हैं। यही मीडिया गिरोह और देश का स्वघोषित उदारवादी संगठन तबलीगी जमात के सदस्यों की तमाम अनुचित कारस्तानियों के बावजूद यह रोना रो रहा है कि डॉक्टर्स से लेकर सरकार और मीडिया मजहब को बदनाम करने का प्रयास कर रहा है। जबकि देखा जाए तो डॉक्टर्स, मीडिया और सोशल मीडिया वही चीज सामने ला रही है, जो कि एक ख़ास समुदाय के लोग कर रहे हैं। यह बात सराहनीय है कि उदारवादी वर्ग को यह महसूस हुआ कि यह सब कारनामे बदनाम ही करते हैं, ना कि इनसे कोई भारत रत्न हासिल किया जाता है।

हाँ! देश के वामपंथी उदारवादियों के लिए नया संघर्ष अवश्य खड़ा हो गया है, वह ये; कि ना ही वह तबलीगियों के कारनामों पर यह सवाल उठा पा रहे हैं कि सरकार इनके खिलाफ कार्रवाई में देर ना करे और ना ही खुलकर यह बात स्वीकार कर पा रहे हैं कि देशभर में आज संक्रमण के सबसे बड़े स्रोत तबलीगी जमाती ही हैं। क्योंकि तबलीगी ‘उपदेशकों’ की गोपनीय मंशा पर सवाल उठाना उन्हें एक ही बार में कट्टर और इस्लामोफोबिक साबित कर देगा।

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आशीष नौटियाल
आशीष नौटियाल
पहाड़ी By Birth, PUN-डित By choice

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