Thursday, April 25, 2024
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मोदी सरकार के आर्थिक सुधारों का नतीजा: अर्थव्यवस्था ज्यादा फॉर्मल, आँकड़े पहले से ज्यादा ठोस

भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में बड़े महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है और सरकार के गंभीर प्रयास समुचित परिणाम ला रहे दिखते हैं।

पिछले तीन वर्षों में देश में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का साइज 52% से घटकर लगभग 15% से 20% तक पहुँच गया है। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान कम से कम 13 लाख करोड़ विभिन्न चैनलों से देश की औपचारिक अर्थव्यवस्था में आए हैं। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में इस परिवर्तन के पीछे केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई कई आर्थिक योजनाएँ और प्रशासनिक कार्रवाई का हाथ रहा है। रिसर्च के अनुसार नोटबंदी, जीएसटी, डिजिटल पेमेंट से लेन-देन में लगातार हो रही वृद्धि और ई-श्रम पोर्टल पर लागू विभिन्न योजनाओं की वजह से ऐसा संभव हो सका है।

औपचारिक और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था

औपचारिक अर्थव्यवस्था किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का वह हिस्सा है, जिसका रिकॉर्ड सरकार के आर्थिक आँकड़ों में दिखाई देता है और जिसके आधार पर किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद का आकलन किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में करों के भुगतान से लेकर लेन-देन की प्रक्रिया का आँकड़ा सरकार के विभिन्न विभागों के पास रहता है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था देश के सकल घरेलू उत्पाद का वह हिस्सा है, जिसका कोई औपचारिक आँकड़ा उपलब्ध नहीं रहता क्योंकि उसमें उद्योग, व्यापार या व्यवसाय में जो लेन-देन होता है उसमें न केवल करों से बचने का काम होता है बल्कि वह सरकारी आँकड़ों का हिस्सा नहीं बन पाता। भारतीय स्टेट बैंक के अनुसार करीब तीन वर्ष पहले तक देश की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था का साइज औपचारिक अर्थव्यवस्था का लगभग 50-52% था जो सरकार के विभिन्न प्रयासों के चलते अब सिकुड़कर लगभग 20% तक रह गया है। इसका असर यह हुआ है कि अब उपलब्ध हो रहे आँकड़े देश के सकल घरेलू उत्पाद को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करते हैं।

इसका अर्थ यह भी है कि अब देश में अब काले धन की मात्रा में कमी आई है और पहले से उपलब्ध काला धन किसी न किसी तरीके से औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन गया है। उद्योग, व्यापार और आर्थिक लेन-देन का उपलब्ध हिसाब-किताब अब अधिक परिष्कृत है।

विभिन्न सरकारी योजनाओं और प्रशासनिक क़दमों का परिणाम

भारतीय स्टेट बैंक के अनुसार वर्ष 2016 से सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों जैसे नोटबंदी, डिजिटल पेमेंट में बढ़ोतरी के लिए वातावरण तैयार करना, कर सुधार, जीएसटी और अन्य प्रशासनिक कदमों को वजह से न केवल ऐसा संभव हो सका, बल्कि भारतीय अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के औपचारिक होने की गति किसी भी अन्य देश से तेज़ रही है। डिजिटल पेमेंट के आँकड़ों को देखा जाए तो भारत आज विश्व का सबसे बड़ा डिजिटल पेमेंट की सहायता से लेन-देन करने वाला देश बन गया है। पिछले कई दशकों में जीएसटी देश का सबसे बड़ा आर्थिक सुधार रहा है, जिसकी वजह से न केवल कर चोरी को रोकने में काफी मदद मिली है बल्कि उसकी वजह से एक बेहतर सप्लाई चेन स्थापित करने में मदद मिली है। जनधन बैंक अकाउंट और उसमें डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर ने लेन-देन को न केवल आसान बनाया है, बल्कि उसकी वजह से आर्थिक लेन-देन का एक बड़ा हिस्सा अब सरकारी आँकड़ों में अधिक सुविधाजनक और बेहतर तरीके से लक्षित होता है।

इन सुधारों के अतिरिक्त असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का डेटा बेस ई-श्रम पर करीब 5.7 करोड़ मजदूरों का रजिस्ट्रेशन इस बात का सबूत है कि सरकार औपचारिक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कटिबद्ध है और इसके लिए आवश्यक सुधार और प्रशासनिक कदम उठाने के लिए तैयार है। उपलब्ध आँकड़ों और भारतीय स्टेट बैंक के इस रिसर्च के अनुसार इनमें से 62% मजदूर 18-44 वर्ष के हैं और 92% मजदूरों की मासिक आय दस हजार रुपए से कम है। ऐसे आँकड़ों की उपलब्धता न केवल अर्थव्यवस्था के लिए सही मजदूर के चयन में सहायक होगी, बल्कि भविष्य में उनके रोजगार सम्बंधित आँकड़ों को कई अन्य तरह से उपलब्ध करवाने में भी सहायक होंगे।

ई-श्रम पर असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों के रजिस्ट्रेशन सम्बंधित आँकड़े बताते हैं कि अभी तक पंजीकृत मजदूरों में से लगभग 81.2% यानी लगभग 4.6 करोड़ मजदूरों के पास बैंक अकाउंट है। हालाँकि उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार इन बैंक अकाउंट में अभी तक केवल 1.1 करोड़ बैंक अकाउंट ही आधार कार्ड से लिंक किए जा सके हैं। स्टेट बैंक द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार केवल ई-श्रम पोर्टल की वजह से अभी तक असंगठित क्षेत्र के करीब 17 प्रतिशत मजदूर अब औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं और इनकी वजह से केवल कुछ महीनों में करीब 6.8 करोड़ रुपए (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3 प्रतिशत) अब औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है।

रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार केवल कृषि क्षेत्र में छोटे और मझोले किसानों द्वारा किसान क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल की वजह से करीब 4.6 करोड़ रुपए अब औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा हैं और भविष्य में कृषि क्षेत्र में किसान क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से यह आँकड़ा तेजी से बढ़ने की उम्मीद है।

भविष्य में अन्य आर्थिक सुधारों का असर

सरकार द्वारा उठाए जा रहे विभिन्न कदमों में पिछले वर्ष पास हुए कृषि कानूनों का औपचारिक अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। इन कानूनों में जिस तरह से कृषि में सहकारिता को महत्व दिया गया है उसकी वजह से कृषि सम्बंधित आय और आँकड़ों के औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा होने का मार्ग खुल जाएगा। कानून में कृषि उत्पादों के व्यापार के लिए पैन कार्ड का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन इन्हीं सुधारों का एक हिस्सा रहेगा। उसके अलावा लगातार बन रहे फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) के कारण कृषि उत्पादों के अंतर्राजीय व्यवसाय को सरल बनाने में न केवल सुविधा होगी, बल्कि कृषि व्यवसाय सम्बंधित आँकड़ों की उपलब्धता बढ़ेगी जिससे इन उत्पादों के व्यापार में कर चोरी कम होती जाएगी।

कृषि और आर्थिक सुधारों में कृषि की जमीन की जियो टैगिंग को लेकर सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास भविष्य में महत्वपूर्ण साबित होंगे। जियो टैगिंग की वजह से न केवल कृषि उत्पादों के खेतों को पहचानना न केवल सरल होगा, बल्कि उसकी वजह से भारतीय कृषि उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय व्यापार में स्वीकार्यता बढ़ जाएगी। भविष्य में जियो टैगिंग का एक महत्वपूर्ण पहलू यह होगा कि किसी खेत की उत्पादकता की निगरानी न केवल आसान हो जाएगी, बल्कि इस निगरानी की वजह से उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर कृषि क्षेत्र के लिए बैंकों और अन्य आर्थित संस्थानों से ऋण की उपलब्धता सरल हो जाएगी।

भारतीय औपचारिक अर्थव्यवस्था का भविष्य

सरकार द्वारा उठाए जा रहे प्रशसनिक कदम और आर्थिक सुधारों की राजनीतिक मंचों पर आलोचना राजनीति का हिस्सा है। पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इन सुधारों के परिणाम अब दिखने लगे हैं। राजनीतिक रैलियों और टीवी डिबेट में नोटबंदी या जीएसटी को अर्थव्यवस्था के विरुद्ध उठाया जाने वाले कदम बता कर उनपर बिना बहस के फैसला सुना देना राजनीतिक कारणों से समझ में आता है, पर उसके होने वाले असर से मुँह मोड़ लेना नेताओं को अर्थव्यवस्था में हो रहे गंभीर परिवर्तनों को देखने से रोकता है। जो भी हो, भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में बड़े महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है और सरकार के गंभीर प्रयास समुचित परिणाम ला रहे दिखते हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक विरोधों के बावजूद सरकार आर्थिक और प्रशासनिक सुधारों को लागू करने के अपने निर्णयों से पीछे न हटे।

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