Wednesday, May 1, 2024
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2.2 करोड़ रुपए में एक दवा बेचती थी विदेशी कंपनी, अब मिलेगी सिर्फ ₹2.5 लाख में: दुर्लभ बीमारियों की दवा देश में विकसित, खर्च 100 से 60 गुना कम

चार दुर्लभ बीमारियों से संबंधित 8 दवाओं को भारत में विकसित कर लिया गया है। विदेशी Nitisinone नाम की कैप्सूल का सालाना खर्च पहले करीब 2.2 करोड़ रुपए था, जो अब करीब 2.5 लाख रुपए होगा।

करोड़ रुपए की दवाई के बारे में सुने हैं कभी? दुर्लभ बीमारियों को ठीक करने के लिए इतनी महँगी दवाएँ बेचती थीं विदेशी कंपनियाँ। अब नहीं चलेगा ऐसा। क्यों? क्योंकि भारत ने इनकी सस्ती दवाएँ विकसित कर ली हैं। केंद्र सरकार की यह सफल योजना उन मरीजों के लिए रामबाण होगी, जो कम पैसों के कारण ऐसी बीमारियों के कारण मरने को मजबूर होते थे।

भारत ने चार दुर्लभ बीमारी की दवाई बनाने में कामयाबी हासिल की है। पहले विदेशों से मँगाने पर इन दवाओं की सालाना कीमत करोड़ों रुपए तक चली जाती थी। अब ये 100 से 60 गुना कम कीमत पर मरीजों को मुहैया हो पाएँगी। यह चमत्कार एक दिन में नहीं हुआ है। भारत में साल भर पहले 13 प्रकार की दुर्लभ बीमारी की दवाई बनाने पर काम शुरू हुआ था।

13 दुर्लभ बीमारियों में से चार बीमारियों की दवा बना ली गई है। इससे इलाज का खर्च करोड़ों रुपए से सिमट कर लाख रुपए तक पहुँच जाएगा। सरकार की इन दवाओं को जन औषधि केंद्र तक भी पहुँचाने की योजना है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ मनसुख मंडाविया और नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने शुक्रवार (24 नवंबर,2023) को एक प्रेस कॉन्फ्रेस में इस बात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सरकार ने उद्योग जगत के साथ मिलकर 13 दुर्लभ बीमारियों की दवाएँ भारत में बनाने का फैसला लिया था। इनमें से अब तक 4 दुर्लभ बीमारियों की सस्ती और प्रभावी दवाएँ देश के लोगों को मिल सकेंगी।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंडाविया के मुताबिक, चार दुर्लभ बीमारियों से संबंधित 8 दवाओं को भारत में विकसित कर लिया गया है। इनमें से 4 दवाओं को बाजार के लिए उपलब्ध करा दिया गया है और बाकी चार तैयार दवाओं को भी नियामक की रजामंदी मिलते ही बाजार में उतार दिया जाएगा।

बाकी बची अन्य दुर्लभ बीमारियों की दवाएँ बनाने पर भी काम तेजी से किया जा रहा है। इन दवाओं के अलावा सिकल-सेल (Sickle cell) बीमारी का सिरप बनाने पर भी काम चल रहा है। सिकल सेल रोग (एससीडी) खून के विकारों का एक समूह है, जो आमतौर पर विरासत (पीढ़ी दर पीढ़ी जो बीमारी ट्रांसफर होती जाती है) में मिलता है।

गौरतलब है कि देश में लगभग 8.4 करोड़ से लेकर 10 करोड़ दुर्लभ बीमारियों के मरीज़ हैं। इन दुलर्भ बीमारियों यानी रेयर डिजीज की 80 फीसदी बीमारी वंशानुगत होती है, जो रोगी को बचपन में ही अपनी गिरफ्त में ले लेती है।

भारत ने जिन चार दुर्लभ बीमारी की दवाई बनाने में सफलता हासिल की है, वो इस प्रकार है:

  • Tyrosinemia Type 1 : इस बीमारी में Nitisinone नाम की कैप्सूल का सालाना खर्च पहले करीब 2.2 करोड़ रुपए था, जो अब करीब 2.5 लाख रुपए होगा।
  • Gaucher : इस बीमारी के लिए Eliglustat नाम की कैप्सूल का सालाना खर्च 1.8 से 3.6 करोड़ रुपए का आता था। अब यह सिर्फ 3 से 6 लाख रुपए में हो जाएगा।
  • Wilson : इस रोग के लिए Trientine नाम की दवाई विदेश से आती थी। इसका सालाना खर्च पड़ता था 2.2 करोड़ रुपए। अब महज 2.2 लाख रुपए ही खर्च बैठेगा।
  • Dravet-Lennox Gastaut Syndrome : इसके लिए Cannabidiol नाम की दवा आती थी। सालाना खर्च होता था करीब 7 से 34 लाख रुपए। अब खर्च होगा सिर्फ 1 से 5 लाख रुपए।

अगले कुछ महीनो में अन्य 4 दुर्लभ बीमारियों Phenylketonutoria, Hyperammonemia, Cytic Fibrosis, Sickle Cell की दवाएँ भी बाजार में आने वाली हैं – सस्ती, देशी और प्रभावी दवाएँ।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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