Saturday, April 19, 2025
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पैसे लेकर वोट देना ‘कदाचार’, कंडक्टर का टिकट न देना ‘भ्रष्टाचार’… लेकिन जज के घर ‘करोड़ों’ मिलना ‘चिंताजनक’: कभी SC ने MP-MLA पर केस चलाने को पलटा था फैसला, आज ‘जस्टिस वर्मा’ मामले में ‘ट्रांसफर’

जस्टिस वर्मा के घर मिली नकदी को लेकर दिल्ली पुलिस के सूत्र ने कहा, "आग की घटना 14 मार्च को रात करीब 11.30 बजे हुई। स्टोर रूम में आग लगने की सूचना मिली थी। यह एक छोटी सी आग थी। दमकल की दो गाड़ियाँ भेजी गईं और 15 मिनट में आग पर काबू पा लिया गया। तुगलक रोड थाने में एक दैनिक डायरी दर्ज की गई, लेकिन हमने रिपोर्ट में किसी वित्तीय बरामदगी का उल्लेख नहीं किया है।" माना जाता है कि आग नोटों में ही लगी थी।

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर भारी मात्रा में नकदी मिलने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने सजा के तौर पर उन्हें वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया है। अब ‘इन-हाउस’ जाँच भी होगी। ‘पैसों के पहाड़’ का खुलासा एक दुर्घटना के चलते हुआ। कहा जा रहा है कि यह नकदी 15 करोड़ रुपए से अधिक है। हालाँकि, इसकी गिनती नहीं हुई है।

दरअसल, होली की छुट्टी में जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले में आग लग गई थी। उस समय जस्टिस वर्मा शहर से बाहर गए हुए थे। परिजनों ने आग को बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड को सूचित किया था। अग्निशमन कर्मियों ने आग पर काबू भी पा लिया। राहत एवं बचाव के दौरान अग्निशमन कर्मियों ने एक कमरे में भारी मात्रा में रखी गई नकदी देखी। कहा जा रहा है कि आग भी इस नकदी में ही लगी थी।

इसके बाद बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के बाद उन्होंने पुलिस को इसकी जानकारी दी। पुलिस ने यह जानकारी संबंधित एजेंसियों तक आगे पहुँचाई। यह मामला आखिरकार भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना तक पहुँचा। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह भी कहा जा रहा है कि CJI खन्ना ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय से इसमें फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट माँगी है।

इस दौरान कॉलेजियम के सदस्यों ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को सुझाव दिया कि वे इसे जल्द-से-जल्द प्राप्त करने का प्रयास करें, क्योंकि इससे यह निर्णय लेने में मदद मिलेगी कि आंतरिक जाँच का आदेश दिया जाए या नहीं। आनन-फानन में CJI खन्ना ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यों वाली कॉलेजियम की बैठक बुलाई। कॉलेजियम ने इस घटना को चिंताजनक माना।

इसके बाद सजा के रूप में सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा को वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट में वापस स्थानांतरण करने की सिफारिश की गई। जस्टिस वर्मा 2021 से दिल्ली हाई कोर्ट में जज के रूप में सेवाएँ दे रहे थे। इससे पहले 2014-21 तक वह इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज थे। बता दें कि इस तरह के मामले में आमतौर पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) कार्रवाई करती है, लेकिन यह मामला कोर्ट से जुड़ा है।

दिल्ली पुलिस के सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, “आग की घटना 14 मार्च को रात करीब 11.30 बजे हुई। स्टोर रूम में आग लगने की सूचना मिली थी। यह एक छोटी सी आग थी। दमकल की दो गाड़ियाँ भेजी गईं और 15 मिनट में आग पर काबू पा लिया गया। तुगलक रोड थाने में एक दैनिक डायरी दर्ज की गई, लेकिन हमने रिपोर्ट में किसी वित्तीय बरामदगी का उल्लेख नहीं किया है।”

स्थानांतरण के रूप में सजा देने को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना हो रही है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने शुक्रवार (21 मार्च) की सुबह एक पूर्ण बैठक की। इसमें सुझाव दिया गया कि दंडात्मक स्थानांतरण पर्याप्त नहीं होगा और जज के खिलाफ कुछ ठोस कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके बाद कोर्ट ने सर्वसम्मति से इन-हाउस जाँच पर सहमति जताई।

इस प्रक्रिया का पहला कदम स्थानांतरण है। स्थानांतरण अभी प्रक्रियाधीन है और सरकार ने अभी इसकी मंजूरी नहीं दी है। वहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और सभी न्यायाधीशों को कड़े शब्दों में पत्र लिखा है। एसोसिएशन ने कहा, “हम कूड़ेदान नहीं हैं।” एसोसिएशन ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार अस्वीकार्य है।

रिश्वत मामले में MP/MLA पर मुकदमा चलाने के लिए बदला था निर्णय

मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से 1998 के एक फैसले को पलट दिया था। 1998 के उस फैसले में विधायकों को रिश्वत लेकर सदन में भाषण देने या वोट देने पर अभियोजन से छूट दी गई थी। तत्कालीन CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संसद या विधानसभाओं में वोट या भाषण के लिए रिश्वत लेने वाले सांसदों और विधायकों पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीवी नरसिम्हा मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों के फैसले से वह असहमत है। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सांसद-विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय लोकतंत्र के कामकाज को नष्ट कर देती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “रिश्वतखोरी को संसदीय विशेषाधिकारों का संरक्षण प्राप्त नहीं है। 1998 का फैसला संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है।”

दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के प्रमुख शिबू सोरेन और उनके चार सांसदों ने 1993 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन में वोट देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत ली थी। इस मामले में शिबू सोरेन एवं चार अन्य सांसदों के खिलाफ CBI ने मुकदमा दर्ज किया था। हालाँकि, 1998 में 5 सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने विधायकों एवं सांसदों को राहत दे दी थी।

पैसे लेकर यात्रियों को टिकट नहीं देना विश्वासघात, नौकरी से निकालना सही: सुप्रीम कोर्ट

अक्टूबर 2016 में भी सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वतखोरी पर न्याय का पाठ पढ़ाया था। सुप्रीम कोर्ट ने एक बस कंडक्टर को नौकरी से निकालने के फैसले को इसलिए सही ठहराया था, क्योंकि उसने 78 यात्रियों से किराया तो ले लिया था, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया था। इस पर उसके नियोक्ता ने कंडक्टर को नौकरी से निकाल दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने नियोक्ता के फैसले को सही ठहराया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने लिखित आदेश में कहा था, “जहाँ कोई व्यक्ति सार्वजनिक धन से संबंधित काम करता है या वित्तीय लेन-देन में लगा होता है या किसी भरोसेमंद व्यक्ति की हैसियत से काम करता है, वहाँ उच्चतम स्तर की ईमानदारी और विश्वसनीयता अनिवार्य और अपवाद रहित है।”

दरअसल, 8 अक्टूबर 1990 को उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की एक निरीक्षण टीम ने औचक निरीक्षण किया था। इसमें पाया था कि 78 यात्रियों ने कंडक्टर प्रदीप कुमार को किराया दिया था, लेकिन कंडक्टर ने उन्हें टिकट नहीं दिए थे। घटना की विभागीय जाँच हुई और दो साल बाद परिवहन निगम ने उसे कदाचार के लिए नौकरी से निकाल दिया।

इसके बाद कंडक्टर प्रदीप कुमार ने श्रम न्यायालय का रुख किया और उसे नौकरी से निकालने के फैसले को ‘बहुत कठोर’ बताया। श्रम न्यायालय ने निगम को बकाया वेतन दिए बिना सेवा में निरंतरता और पूर्ण वेतन के साथ कंडक्टर को फिर से नौकरी पर रखने का निर्देश दिया। इसके बाद हाई कोर्ट ने भी 2008 में श्रम न्यायालय के फैसले के खिलाफ निगम की अपील को खारिज कर दिया था।

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ परिवहन निगम सुप्रीम कोर्ट पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट ने निगम की अपील पर सुनवाई करते हुए श्रम न्यायालय के निष्कर्ष को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की सजा का निर्धारण इसमें शामिल धनराशि से नहीं, बल्कि उसकी मानसिक स्थिति और उसके द्वारा किए गए सार्वजनिक कर्तव्य के प्रकार से होता है। इसके साथ ही उसने कंडक्टर को नौकरी से निकालने के फैसले को सही ठहराया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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