Thursday, June 19, 2025
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मंदिर ट्रस्टों के पास प्रॉपर्टी पर दावा करने का अधिकार नहीं, ना ही चलाते हैं अपनी ‘अदालत’, फिर भी वक्फ बोर्ड से हो रही तुलना: जानिए दोनों में क्या हैं अंतर, सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार ने क्या बताया?

मंदिर बोर्ड वक्फ बोर्ड की तुलना में ना किसी सम्पत्ति पर अपनी तरफ से दावा ठोंक सकते हैं और उनके पास अपना कोई ट्रिब्यूनल होता है। वक्फ बोर्ड के पास अब तक यह शक्तियाँ भी थीं। यहाँ तक कि वह किसी सम्पत्ति को अपना बता कर सरकारी एजेंसियों से उस पर कब्जा दिलाने को कह सकता था।

वक्फ कानून की संवैधानिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में सुनवाई चल रही है। इसी कड़ी में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि वक्फ बोर्ड और हिन्दू धार्मिक न्यास (ट्रस्ट) अलग-अलग तरह की संस्थाएँ हैं और दोनों का काम भी भिन्न है। केन्द्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि दोनों की तुलना नहीं की जा सकती।

बुधवार (21 मई, 2025) को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून के संबंध में हुई सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलीलें दी हैं। CJI बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है लेकिन मंदिरों के धार्मिक ट्रस्ट धार्मिक संस्थाएँ हैं।

वक्फ बोर्ड सेक्युलर – केन्द्र सरकार

SG तुषार मेहता ने कहा कि दान सभी धर्म के लोग करते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे हिन्दू धर्म में दान है वैसे ही इस्लाम में वक्फ का जिक्र भी है। उन्होंने इसके बाद कहा कि लेकिन वक्फ इस्लाम का जरूरी हिस्सा नहीं है। उन्होंने इसके बाद वक्फ बोर्ड के कामों को गिनाते हुए इसे एक सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) संस्था बताया।

उन्होंने कहा, “वक्फ बोर्ड के कामों पर एक बार नजर डालें। इसके काम वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन, इनका ऑडिट और इनका लेखा जोखा रखना है ये पूरी तरह से सेक्युलर काम हैं।” उन्होंने इसके बाद वक्फ बोर्ड के नए क़ानून में दो गैर मुस्लिम सदस्यों की न्युक्ति को इस आधार पर सही बताया।

उन्होंने कहा, “अधिकतम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने से – क्या इससे कोई चरित्र बदल जाएगा? वक्फ बोर्ड किसी भी वक्फ की किसी भी धार्मिक गतिविधि को नहीं छू रहा है।” गौरतलब है कि वक्फ के नए कानून का विरोध करने वाले इसकी तुलना हिन्दू मंदिरों के लिए बनने वाले धार्मिक ट्रस्ट से कर रहे हैं।

इसको लेकर SG मेहता ने कहा, “हिंदू ट्रस्ट केवल धार्मिक गतिविधियों से संबंधित है जबकि वक्फ धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों से संबंधित है। हिंदू ट्रस्ट के काम कई सारे हैं… हिंदू ट्रस्ट के आयुक्त मंदिर के अंदर जा सकते हैं। यहाँ पुजारी का फैसला राज्य सरकार करती है जबकि वक्फ बोर्ड धार्मिक गतिविधियों को बिल्कुल भी नहीं छूता।”

SG मेहता ने स्पष्ट किया कि हिंदू ट्रस्ट पूरी तरह से धार्मिक हैं। उन्होंने बताया कि यह ट्रस्ट जहाँ धार्मिक संपत्तियों के लिए ही बनते हैं तो वहीं वक्फ सम्पत्ति कोई मस्जिद, दरगाह, अनाथालय, स्कूल हो सकती है।

जानिए क्यों मंदिर बोर्ड और वक्फ में है अंतर

नए वक्फ कानून में मोदी सरकार ने प्रावधान किया है कि वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्य भी शामिल किए जा सकते हैं। इस कानून का विरोध करने वाले दलील देते हैं कि वक्फ सम्पत्तियाँ पूरी तौर से मुस्लिमों का निजी मसला हैं, इसलिए इन पर किसी फैसले और प्रबन्धन को लेकर गैर मुस्लिम कैसे दखल दे सकते हैं।

उन्होंने यह भी दलील सुप्रीम कोर्ट में दी है कि जहाँ वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल करने की बात कही गई है वहीं मंदिरों का प्रबन्धन करने वाले बोर्ड या हिन्दू न्यासों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने इसे पक्षपात करार दिया है। हालाँकि, इस दलील में कई खामियाँ हैं।

गौरतलब है कि मंदिरों के प्रबन्धन के लिए बनाए जाने वाले बोर्ड का गठन सरकार करती है। इन बोर्ड में सरकारी अधिकारी और कुछ और व्यक्ति नियुक्त किए जाते हैं। यह मंदिर के कामकाज को देखते हैं। इनका अधिकार क्षेत्र मंदिर के कामकाज तक ही होता है।

मंदिर ट्रस्ट, वक्फ बोर्ड की तुलना में ना किसी सम्पत्ति पर अपनी तरफ से दावा ठोंक सकते हैं और उनके पास अपना कोई ट्रिब्यूनल होता है। वक्फ बोर्ड के पास अब तक यह शक्तियाँ भी थीं। यहाँ तक कि वह किसी सम्पत्ति को अपना बता कर सरकारी एजेंसियों से उस पर कब्जा दिलाने को कह सकता था।

वक्फ बोर्ड के खिलाफ यदि कोई व्यक्ति अपील करता तो उसे वक्फ ट्रिब्यूनल में जाना पड़ता। इसके उलट मंदिर बोर्ड ना ऐसा कोई दावा ठोंक सकते थे, ना वह सरकारी एजेंसियों को इससे सम्बन्धित कोई आदेश दे सकते थे। उनका अपना कोई ट्रिब्यूनल भी नहीं होता था।

इसके अलावा आर्थिक मामलों में भी मंदिर बोर्ड को उतने अधिकार नहीं होते हैं। मंदिरों में आने वाला सारा दान का पैसा इन ट्रस्ट के जरिए सरकार के पास जाता है। वक्फ बोर्ड के जरिए इन संपत्तियों से आने वाला पैसा वापस मुस्लिमों के हित के लिए लगाया जाता है। इसके लेखाजोखा में भी गड़बड़ रहती है।

ऐसे में इन दोनों की तुलना एकदम ठीक नहीं है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि शायद ही ऐसा कोई मामला सामने आया हो जहाँ किसी मंदिर बोर्ड ने किसी गाँव की पूरी जमीन पर दावा ठोंक दिया हो। लेकिन वक्फ बोर्ड यह भी कर चुका है। मंदिर बोर्डों के कभी गैर हिन्दुओं को परेशान करने के मामले भी सामने नहीं आए।

ऐसे में यह दलील देने वाले लोग मात्र धार्मिक सिरा खोज कर वक्फ कानून में कमियाँ ढूंढ रहे हैं। हालाँकि केन्द्र सरकार लगातार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सभी बातों का जवाब दे रही है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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