Wednesday, July 2, 2025
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हमारा घर जला दिया, अब उस पर टेम्पो चलते हैं: 30 साल बाद भी वही ‘डर’, कहा- द कश्मीर फाइल्स देखने की नहीं हो रही हिम्मत

"हमारा एक छोटा सा बगीचा था। माँ उसमें सब्जियाँ उगाती थीं। वे लोग कहते थे कि अच्छी किस्म बोना, खानी तो हमें ही हैं, तुम्हारे नसीब में नहीं हैं। लेकिन उनके ये इशारे हम समझ नहीं सके।"

विमल कौल 52 साल के हैं। जब कश्मीर से जान बचाकर भागे थे तो 22 साल के थे। लेकिन, वह डर 30 साल बाद भी उनकी रूह कॅंपा देती है। यहाँ तक कि वे ‘द कश्मीर फाइल्स (The Kashmir Files)’ देखने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे हैं। विवेक अग्निहोत्री की यह फिल्म नब्बे के दशक में घाटी में हिंदुओं के नरसंहार पर आधारित है। इसी दौर में कौल को भी अपना घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

उन्होंने अपनी कहानी दैनिक भास्कर के साथ साझा की है। फिलहाल जयपुर में रहने वाले कौल पेशे से सेल्स मैनेजर हैं। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में चावल के ड्रम में बीके गंजू के छिपने का दृश्य दिखाया गया है। ऐसा ही उनके साथ भी हुआ था। वे भी अपनी जान बचाने के लिए चावल के ड्रम में छिप गए थे। हालाँकि गंजू के ड्रम में छिपे होने की बात उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने आतंकियों को बता दी थी। जिसके बाद उन्होंने गंजू की हत्या कर खून से सना चावल उनकी पत्नी को खाने के लिए मजबूर किया था।

कौल ने बताया, ‘हमारा घर जला दिया गया था। अब वहाँ मिट्टी का ढेर है। उसके ऊपर से अब टेम्पो चलते हैं।’ उनके अनुसार हिंदुओं के साथ जो कुछ हुआ उसका इशारा पहले से दिया जा रहा था, लेकिन वे लोग इसे मजाक समझ रहे थे। जैसा कि उन्होंने बताया है, “हमारा एक छोटा सा बगीचा था। माँ उसमें सब्जियाँ उगाती थीं। वे लोग कहते थे कि अच्छी किस्म बोना, खानी तो हमें ही हैं, तुम्हारे नसीब में नहीं हैं। कोई कश्मीरी पंडित नया मकान बना रहा होता तो वे कहते कि खिड़की फलां दिशा में ही रखना, हमें पसंद है, आखिर रहना तो हमें ही है। लेकिन उनके ये इशारे हम समझ नहीं सके।”

कौल के अनुसार एक दिन इस्लामी आतंकी उन्हें खोजते उनके घर तक आ गए थे। लेकिन उनकी माँ ने उनसे बोला था कि मैं अखरोट के बाग में खेलने गया हूँ तो वे लोग चले गए। इसके बाद कौल अनंतनाग के दांतर स्थित अपने घर से पोर्टेबल ब्लैक एंड व्हाइट टीवी कंधे पर उठाकर भाग गए। माता-पिता ने घर छोड़ने से इनकार कर दिया तो अकेले ही जम्मू के लिए निकल पड़े। कई किलोमीटर पैदल चले। वे बताते हैं, 90 के दशक में वहाँ हिंदुओं को सरेराह मारा जाने लगा, जिससे और दहशत बढ़ गई थी। उन दिनों मस्जिदों से पुकारे जाने वाले शब्द जब कानों में पड़ते हैं तो रुह काँपने लगती है।

गौरतलब है कि पिछले दिनों 74 वर्षीय कश्मीरी पंडित विजय माम ने बताया था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के एक जलसे के बाद से कश्मीर के हालात हिंदुओं के लिए बदतर होते चले गए थे। माम को भी अपना घर छोड़ घाटी से भागने को मजबूर किया गया था। वे दो बेटियों के साथ दिल्ली आ गए थे, जिनकी अब शादी हो चुकी है। लेकिन उनके बेटे का आज तक पता नहीं चल पाया है।

इसी तरह पिछले दिनों एक टीवी शो के दौरान कश्मीरी हिंदू महिला सरला ने 1990 के उस भयावह मंजर को साझा किया था। उन्होंने बताया था कि किस तरह से इस्लामिक आतंकियों ने उनके रिश्तेदारों के साथ क्रूरता की। सरला ने बताया था, “हमारे पैरों में चप्पल नहीं थी, हमने कुछ भी नहीं खाया था और हम किसी तरह वहाँ से निकल गए… मैं जब तक मैं जिंदा हूँ उस रात को कभी नहीं भूलूँगी।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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