केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए गए वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। वक्फ संशोधन वक्फ में जिस विषय को लेकर सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है ‘वक्फ बाय यूजर’ (Waqf by User)। यहाँ हम समझने की कोशिश करते हैं क्या है, वक्फ बाय यूजर और इसको लेकर मुस्लिमों को क्या है समस्या? सुप्रीम कोर्ट में इस क्या बहस हुई, इसकी भी बात करेंगे।
वक्फ बाय यूजर का साधारण भाषा में कहें तो इसका अर्थ है कि ऐसी संपत्ति जिसका उपयोग मुस्लिम समुदाय लंबे समय अपने मजहबी उद्देश्यों के लिए करता रहा है। ऐसी संपत्ति भले ही लिखित रूप से पंजीकृत करवाई गई हो या नहीं। यानी, जिसका वक्फ डीड नहीं होगा, उसका भी ऐसे मामलों में कोई अहमियत नहीं होगी और वह संपत्ति वक्फ बाय यूजर के तहत वक्फ संपत्ति मानी जाएगी।
कई बार कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति मुस्लिमों की हित के लिए या इस्लाम को फैलाने आदि के लिए दान कर देता है। इसके बाद वह संपत्ति मुस्लिमों के ईश्वर ‘अल्लाह’ की हो जाती है। अब उस संपत्ति को ना ही खरीदा जा सकता है और ना ही बेचा सकता है। उसे किराया पर दिया जा सकता है। वहीं, कुछ लोग अपने समाज के लिए मदरसा, अनाथालय आदि खुलवाते हैं। वह भी वक्फ बाय यूजर है।
किसी संपत्ति को मुस्लिमों द्वारा इस्तेमाल करने के नाम पर भी वक्फ बाय यूजर घोषित कर दिया जाता है। मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने सु्प्रीम कोर्ट में इस मुद्दे को सबसे पहले उठाया और बहस की शुरुआत की। सिब्बल ने कहा, “‘वक्फ बाय यूजर’ वक्फ की एक शर्त है।” उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, “मान लीजिए मेरे पास एक प्रॉपर्टी है और मैं चाहता हूँ कि वहाँ एक अनाथालय बनवाया जाए तो इसमें समस्या क्या है?”
वक्फ बाय यूजर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चर्चा
सिब्बल ने आगे दलील दी, “यह मेरी जमीन है, मैं उस पर अनाथालय बनवाना चाहता हूँ। ऐसे में सरकार मुझे रजिस्टर्ड कराने के लिए क्यों मजबूर करेगी?” इस पर CJI संजीव खन्ना ने कहा, “अगर आप वक्फ का रजिस्ट्रेशन कराएँगे तो रिकॉर्ड रखना आसान होगा, लेकिन सरकार ने ‘वक्फ बाय यूजर’ ही खत्म कर दिया है।” वक्फ संशोधन अधिनियम में वक्फ बाय यूजर प्रावधान को खत्म कर दिया गया है।
वहीं, जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, “कानून के मुताबिक फर्जी दावों से बचने के लिए पंजीकरण कराना जरूरी है। इसलिए वक्फ डीड बनवाना होगा।” इस पर एडवोकेट सिब्बल ने तर्क दिया कि वक्फ डीड बनवाना इतना आसान नहीं है। उन्होंने कहा, “वक्फ सैकड़ों साल पहले किए गए थे। सरकार 300 साल पुरानी संपत्ति की वक्फ डीड माँगेगी तो लोग कहाँ से लाएँगे।”
CJI संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस विश्वनाथ की खंडपीठ ने कहा कि ब्रिटिश हुकुमत से पहले वक्फ रजिस्टेशन की व्यवस्था नहीं थी। बहुत-सी मस्जिदें 14वीं-15वीं-16वीं सदी की बनी हैं। इनके पास बिक्री विलेख (Sale Deed) कहाँ होगा? आप वक्फ बाय यूजर को कैसे रजिस्टर करेंगे? यह पहले से स्थापित किसी चीज को खत्म करने जैसा होगा।ठ
CJI ने कहा, “हम जानते हैं कि पुराने कानून का कुछ गलत इस्तेमाल हुआ, लेकिन कुछ वास्तविक वक्फ संपत्तियाँ भी हैं। उन संपत्तियों की पहचान लंबे समय से इस्तेमाल करने के कारण वक्फ संपत्ति के रूप में हुई है। वक्फ बाय यूजर मान्य किया गया है। अगर इसे खत्म किया गया तो समस्या होगी।” इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को खत्म करने को लेकर केंद्र सरकार से जवाब माँगा है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए प्रस्तुत सॉलिसीटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन पूरी तरह संविधान सम्मत हैं। उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण की बात वक्फ अधिनियम 1995 में है। उन्होंने कहा कि अगर वक्फ का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो मुतवल्ली जेल जाएगा, यह 1995 से है।
SG ने कहा कि इस कानून पर संयुक्त संसदीय कमिटी (JPC) ने लंबी बहस की है। उन्होंने कहा कि JPC ने इसके लिए 38 बैठकें की हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न समाज के लोगों से बातचीत और फिर 9 लाख से अधिक सुझावों पर चर्चा करके इस कानून को बनाया गया है। तुषार मेहता ने कहा कि इस कानून में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की कोई बात नहीं है।
संसद में ‘वक्फ बाय यूजर’ पर हुई थी चर्चा
दरअसल, वक्फ बाय यूजर का जिक्र करते हुए भाजपा सांसद राधा मोहन अग्रवाल ने इस महीने के शुरू में राज्यसभा में कहा था, “जिस तरह से फिल्मों में गुंडे जिस औरत पर हाथ रख देते थे वह उसकी हो जाती थी, उसी तरह से ये (मुस्लिम) जिस जमीन पर हाथ रख देते थे, वह जमीन इनकी हो जाती थी। वक्फ बाय यूजर इनका सबसे बड़ा हथियार था।”
उन्होंने आगे कहा था, “किसी की जमीन पर (मुस्लिमों ने) कुछ दिन नमाज पढ़ ली तो वक्फ बाय यूजर के तहत वो जमीन वक्फ बोर्ड की हो जाती थी। तमिलनाडु में 1500 साल पुराने मंदिर को भी वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दिया गया था।” इसी तरह केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में वक्फ संशोधन बिल को प्रस्तुत करते हुए वक्फ बाय यूजर पर खड़ा किया था।
रिजिजू ने कहा था कि कोई भी प्रॉपर्टी हो उसके दस्तावेज होने चाहिए। उन्होंने कहा था, “वक्फ बाय यूजर के नाम पर हम मुँह से कह देंगे कि ये प्रॉपर्टी हमारी है, यह नहीं चलेगा। अभी सिर्फ इस्तेमाल के आधार पर किसी प्रॉपर्टी को वक्फ घोषित किया जा सकता था। इसे हमने हटा दिया है। वक्फ बाय यूजर में जो सैटल केस हैं या पहले से रजिस्टर्ड प्रॉपर्टी है, उसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।”
वक्फ बाय यूजर को लेकर संयुक्त संसदीय कमिटी (JPC) के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने भी स्पष्टीकरण दिया था। उन्होंने कहा था कि अब वक्फ बाय यूजर नहीं, वक्फ बाय डीड होगा। वह वक्फ संपत्ति भी रजिस्टर्ड होगा, जैसे कि सिविल प्रॉपर्टी रजिस्टर होती हैं। उन्होंने कहा था कि वक्फ संपत्ति को रजिस्टर कराने के बाद उसे पोर्टल पर 6 महीने के भीतर कराना होगा।
भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने इसका कारण बताते हुए कहा था, “इसका मकसद है कि अगर कोई जमीन वक्फ की है तो बाकी लोगों को भी पता होना चाहिए। इसके साथ ही उस जमीन के कानूनी दस्तावेज भी होने जरूरी हैं। अब तक वक्फ अधिनियम की धारा 40 में किसी भी प्रॉपर्टी पर अगर बोर्ड दावा कर देता था तो वह वक्फ की संपत्ति मानी जाती थी। इस धारा को अब खत्म कर दिया गया है।”