Sunday, October 13, 2024
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एक पुलिसवाले की हवस ने तबाह कर दी वैज्ञानिक की जिंदगी, कमरा बंद कर की जोर-जबर्दस्ती: जिसे केरल पुलिस ने बताया ISRO की जासूसी, उसका नग्न सच CBI ने किया बेनकाब

उसने फौजिया हसन को बाहर जाने के लिए कहा और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। वहाँ उसने मरियम रशीदा के साथ जोर-जबरदस्ती की।

CBI ने 1994 में ISRO वैज्ञानिक नम्बी नारायणन पर लगे विदेशी जासूस होने के आरोप के मामले में अब तिरुवनंतपुरम स्थित चीफ जुडिशल मजिस्ट्रेट के समक्ष 27 मार्च, 2024 को अंतिम चार्जशीट दायर की, जो बताता है कि कैसे एक IPS अधिकारी ने अपनी हवस के कारण बदले की पूरी साजिश रची और एक देशभक्त वैज्ञानिक को फँसा दिया। केरल का उक्त स्पेशल ब्रांच सर्किल इंस्पेक्टर S विजयन फ़िलहाल बरख़ास्त है। उसने मालदीव की एक महिला मरियम रशीदा को 1994 में 2 बार गिरफ्तार किया था।

इसने लिए उसने गलत इरादों से फर्जी रिपोर्ट दायर की थी। 20 अक्टूबर, 1994 को उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया था। तब उस पर वीजा की अवधि खत्म होने के बावजूद भारत में रुकने का आरोप था। उसकी पुलिस हिरासत खत्म होने से 1 दिन पहले S विजयन ने उसके व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर उन्हें जासूस ठहरा दिया। इस तरह मरियम रशीदा 13 नवंबर को फिर गिरफ्तार की गई। विजयन ने अपनी पहली रिपोर्ट में बताया था कि 13 सितंबर से मरियम रशीदा तिरुवनंतपुरम के एक होटल में रह रही हैं।

पुलिस अधिकारी ने दावा किया था कि विदेशी नागरिकों की रूटीन चेकिंग के दौरान उसे ये पता चला था। कुछ दिनों बाद वो मरियम रशीदा के उस घर में गया, जहाँ वो होटल से निकलने के बाद रह रही थीं, जहाँ उसने पाया कि उनका वीजा 17 अक्टूबर, 1994 को ही एक्सपायर हो चुका है। विजयन का कहना था कि मरियम रशीदा इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाईं कि भारत में रुकने के लिए उनके पास पैसे कहाँ से आ रहे हैं और वो फोन पर किन लोगों से क्या बात करती हैं।

इंस्पेक्टर ने इसे गिरफ़्तारी के लिए पर्याप्त आधार माना। हालाँकि, CBI जाँच में सामने आया कि विजयन ने फर्जी कहानी रची थी। इस कहानी में केवल यही बात सत्य है कि मरियम रशीदा और एक अन्य मालदीवियन महिला फौजिया हसन तिरुवनंतपुरम के उक्त होटल में रुकी हुई थीं। असल में विजयन उनके पास नहीं गया था बल्कि मरियम रशीदा ही उसके सामने पहुँची थीं। 10 अक्टूबर को वो अपने वीजा की अवधि बढ़वाने के लिए पुलिस कमिश्नर के दफ्तर पहुँची हुई थीं।

17 अक्टूबर, 1994 को उनकी श्रीलंका के लिए फ्लाइट थी। कमिश्नर के दफ्तर में ही उसे CI विजयन के केबिन में जाने के लिए कहा गया और विजयन ने उसका वीजा और विमान टिकट अपने पास रखते हुए बाद में आने के लिए कहा। 13 अक्टूबर को S विजयन उसके होटल और 20 अक्टूबर को उसके घर पहुँचा। उसने फौजिया हसन को बाहर जाने के लिए कहा और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। वहाँ उसने मरियम रशीदा के साथ जोर-जबरदस्ती की।

जब मरियम रशीदा ने विजयन के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया तो वो वहाँ से जल्दी-जल्दी में निकल कर चला गया। इसे अपना अपमान समझ कर उसने उनका वीजा और टिकट्स नहीं लौटाए। मज़बूरी में मरियम रशीदा को यहाँ रुकना पड़ा और इसी को आधार बना कर विजयन ने उसके खिलाफ मामला चला दिया। उसके बारे में खोद-खोद कर जानकारियाँ निकालने लगा, जिस क्रम में उसे पता चला कि वो ‘लिक्विड प्रोपल्सन सिस्टम्स सेंटर (LPSC)’ के वैज्ञानिक D शशिकुमारन से संपर्क में हैं।

उसने तत्कालीन सिटी पुलिस कमिश्नर VR राजीवन को इसकी रिपोर्ट सौंपी। IB को सूचित किया गया, लेकिन जाँच एजेंसी को कुछ गड़बड़ मिला ही नहीं। फिर पुलिस कमिश्नर ने ISRO के गुप्त राज़ चोरी होने की खबरें मीडिया में प्लांट करवाईं। मरियम रशीदा को दोबारा जिस रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तार किया गया था, उसमें विजयन ने लिखा था कि दोनों महिलाएँ देश-विदेश में कई लोगों से मिल कर भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ काम कर रही हैं, इससे भारत के अपने पड़ोसी देशों के साथ जो संबंध हैं उस पर असर पड़ सकता है।

CBI ने इस रिपोर्ट को भी गलत बताया। विजयन ने अपनी रिपोर्ट का स्रोत बताया ही नहीं। असिस्टेंट पब्लिक प्रॉसिक्यूटर हबीब पिल्लई की सलाह पर उसने दूसरी गिरफ्तार की बात कही, लेकिन हबीब पिल्लई ने नकार दिया कि उन्होंने ऐसी कोई सलाह दी थी। इसका सीधा अर्थ है कि मरियन रशीदा से बदला लेने के लिए फर्जी मामले बनाए गए थे। यहाँ तक कि कुछ IB अधिकारी भी इसमें लिप्त पाए गए। जाँच एजेंसी द्वारा पूछताछ वाली 4 रिपोर्ट CBI के समक्ष आई, किसी पर भी हस्ताक्षर नहीं थे।

केरल पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जो लोगों के बयान थे, उसके भी सिर का पाँव की कोई थाह नहीं थी। यानी, केरल पुलिस की रिपोर्ट भी फर्जी थी। रिपोर्ट में कहा गया कि मरियम और फौजिया ने कबूल किया है कि वो दोनों D शशिकुमारन के अलावा रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी Glavkosmos के बेंगलुरु में स्थित एजेंट K चंद्रशेखर से संपर्क में थीं और उन्होंने विदेश में कुछ ‘महत्वपूर्ण जानकारियाँ’ भेजीं, लेकिन, केस डायरी में ये नहीं लिखा था कि वो इन्फॉर्मेशन क्या था जिसे विदेश पहुँचाया गया।

खास बात ये है कि उस दिन दोनों महिलाओं से पूछताछ हुई ही नहीं थी। इन्हीं में से एक हस्ताक्षर-विहीन रिपोर्ट में नम्बी नारायणन का भी नाम था। क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर S जोगेश ने नम्बी नारायणन को गिरफ्तार किया था, लेकिन उसने CBI को बताया कि उसे इंटेररोगेशन रूम के आसपास भी फटकने नहीं दिया जाता था। SIT के मुखिया सीबी मैथ्यूज ने उन्हें बिना हस्ताक्षर वाली रिपोर्ट दी थी, जिसे उन्होंने आगे बढ़ाया। केरल पुलिस को पता था कि सारे बयान और सबूत फर्जी हैं, फिर भी इस मामले में वो आगे बढ़ती रही।

वांचियूर पुलिस थाने में मरियम रशीदा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। फौजिया हसन को भी गिरफ्तार किया गया था। D शशिकुमारन, K चंद्रशेखर और नम्बी नारायणन के अलावा बेंगलुरु स्थित लेबर कॉन्ट्रैक्टर सुधीर कुमार शर्मा को भी गिरफ्तार किया गया था। अंततः 1994 में ही दिसंबर में CBI ने मामले को हाथ में लिया। अप्रैल 1996 में एर्नाकुलम के CJM के समक्ष दायर रिपोर्ट में ही CBI ने बता दिया था कि आरोपितों के खिलाफ जो आरोप हैं वो साबित नहीं हो रहे।

अप्रैल 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार द्वारा दोबारा जासूसी काण्ड की जाँच वाले निर्णय को रद्द कर दिया। जून 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमान चांडी की सरकार ने CBI द्वारा दोषी पाए गए तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई से इनकार कर दिया। सिरांबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने 50 लाख रुपए मुआवजा देने के लिए केरल सरकार को आदेश दिया। अप्रैल 2021 में जैन कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने CBI से केरल पुलिस के 7 और IB के 11 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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