सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (16 मई 2025) को रोहिंग्या शरणार्थियों के कथित तौर पर म्यांमार भेजे जाने की याचिका पर सुनवाई की। याचिका में दावा किया गया कि भारत सरकार ने बच्चे, औरतें, बुजुर्ग और कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों से पीड़ित 41 रोहिंग्याओं को जबरदस्ती म्यांमार भेज दिया।
याचिका में दावा किया गया है कि इन लोगों को अंडमान ले जाकर समुद्र में फेंक दिया गया। जस्टिस सूर्या कांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने इस याचिका पर सवाल उठाए और इसे ‘बड़ी खूबसूरती से गढ़ी कहानी’ बताया। कोर्ट ने कहा कि याचिका में कोई पक्का सबूत नहीं है, सिर्फ हवा-हवाई और बिना आधार वाले दावे किए गए हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई राहत नहीं दी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जस्टिस सूर्या कांत ने याचिकाकर्ता के वकील से सख्त लहजे में कहा, “हर दिन आप नई-नई कहानी लेकर आते हैं। इस कहानी का आधार क्या है? बहुत खूबसूरती से बनाई गई कहानी! कोई सबूत तो दिखाइए।” कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई वीडियो या गवाह है जो इन दावों को साबित कर सके। याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने बताया कि दिल्ली में मौजूद याचिकाकर्ताओं को फोन कॉल से यह खबर मिली। उन्होंने कहा कि म्यांमार के तट से टेप रिकॉर्डिंग मौजूद है और सरकार इसकी जाँच कर सकती है। लेकिन जस्टिस कांत ने सवाल किया कि दिल्ली में बैठा याचिकाकर्ता अंडमान की घटना को कैसे सच साबित कर सकता है।
कोर्ट ने इस याचिका को 31 जुलाई 2025 को सुनवाई के लिए एक दूसरे रोहिंग्या मामले के साथ जोड़ दिया, जो तीन जजों की बेंच के सामने है। कोर्ट ने फौरन सुनवाई और निर्वासन रोकने की याचिकाकर्ता की माँग को खारिज कर दिया। गोंसाल्वेस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (UN-OHCHR) की एक रिपोर्ट का जिक्र किया, जिसमें इस मामले की जांच शुरू होने की बात थी। इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि वे इस रिपोर्ट पर तीन जजों की बेंच में बात करेंगे और याचिकाकर्ता को यह रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा। उन्होंने आगे कहा, “बाहर बैठे लोग हमारे देश की संप्रभुता को चुनौती नहीं दे सकते।”
Supreme Court hears a plea over the deportation of 38 Rohingya refugees who were allegedly taken to Andaman and thrown in the sea by the Indian government.
— ANI (@ANI) May 16, 2025
After hearing the counsel for the petitioner for sometime, a bench led by Justice Surya Kant tagged the present plea with…
जस्टिस कांत ने यह भी बताया कि 8 मई को तीन जजों की बेंच ने ऐसी ही एक याचिका में निर्वासन (डिपोर्टिंग) रोकने से मना कर दिया था। उस सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि अगर रोहिंग्याओं को भारत में रहने का हक नहीं है, तो उन्हें कानून के मुताबिक निर्वासित किया जाएगा। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब देश मुश्किल वक्त से गुजर रहा है, तब ऐसी ‘काल्पनिक कहानियाँ’ सामने लाई जा रही हैं। गोंसाल्वेस ने कोर्ट से रोहिंग्याओं के मानवाधिकारों की रक्षा की गुहार लगाई और बताया कि देश में 8000 रोहिंग्या UNHCR कार्ड के साथ मौजूद हैं।
याचिका में दावा था कि दिल्ली पुलिस ने बायोमेट्रिक डेटा लेने के बहाने रोहिंग्याओं को हिरासत में लिया, उन्हें बसों और वैन में ले जाया गया, फिर पोर्ट ब्लेयर भेजकर नौसेना के जहाजों पर हाथ-पैर बाँधकर समुद्र में छोड़ दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने माँग की कि निर्वासित लोगों को वापस भारत लाया जाए, उन्हें रिहा किया जाए और आगे से UNHCR कार्ड वालों को गिरफ्तार न किया जाए।