हलाल प्रमाण पत्र पर प्रतिबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 फरवरी 2025) को सुनवाई की। इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत को बताया कि सीमेंट, लोहे की छड़ जैसे विभिन्न उत्पादों के लिए भी हलाल प्रमाण पत्र देकर करोड़ों रुपए जुटाए जा रहे हैं। इससे सामानों की कीमतें बढ़ रही हैं। वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया हर भारतीय उपभोक्ता के अधिकार का हिस्सा है।
जमीयत ने कहा कि इस्तेमाल होने वाले वस्तुओं के के संबंध में जानकारी देना भारतीय उपभोक्ता के अधिकारों का हिस्सा है। इस्लामी संगठन ने कहा कि हलाल सर्टिफिकेशन को केवल मांसाहारी खाद्य पदार्थों और निर्यात उद्देश्यों तक सीमित नहीं किया जा सकता है। हलाल प्रमाण पत्र जारी करने वाले इस ट्रस्ट ने सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता की दलीलों को पूरी तरह से गलत और निंदनीय बता दिया।
दरअसल, इस मामले की पिछली सुनवाई के दौरान 20 जनवरी 2025 को तुषार मेहता ने अदालत में कहा था, “जहाँ तक हलाल मांस आदि का सवाल है, किसी को कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन, आश्चर्य है कि इनके (जमीयत) अनुसार सीमेंट का भी हलाल-प्रमाणन होना चाहिए। सरिया का भी हलाल-प्रमाणन होना चाहिए। पानी की बोतलें जो हमें मिलती हैं, उनका भी हलाल-प्रमाणन होना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश SG तुषार मेहता ने कहा, “यहाँ तक कि आटा, बेसन का भी हलाल-प्रमाणन होना चाहिए। बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है?” उन्होंने कहा कि हलाल प्रमाण पत्र देने वाली एजेंसियों ने इस तरह के सर्टिफिकेट जारी करके लाखों करोड़ों रुपए कमाए हैं। उन्होंने कहा कि हलाल प्रमाण पत्र जारी करने सामानों की कीमतें बढ़ रही हैं।
सरकार के इन आरोपों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत से जवाबी हलफनामा दायर करने के कहा था। जमीयत ट्रस्ट ने 22 फरवरी 2025 को अपने हलफनामे में कहा कि SG की दलीलें याचिकाकर्ताओं को बदनाम करने वाला बताया। ट्रस्ट ने कहा, “कई मीडिया संगठनों ने इस मुद्दे पर बहस की शुरुआत की, ताकि पूरी प्रक्रिया को बदनाम किया जा सके। ये दलीलें हलाल की अवधारणा और इसकी प्रमाणन प्रक्रिया के खिलाफ एक नैरेटिव बन गईं।”
जमीयत ट्रस्ट ने अपनी याचिका में शीर्ष न्यायालय से यह भी आग्रह किया है कि वह केंद्र सरकार इस तथ्य का खुलासा करने का निर्देश कि किस अधिकारी ने SG को कोर्ट में ऐसा बयान देने का निर्देश दिया। ट्रस्ट का कहना है कि इन बयानों से हलाल की अवधारणा के प्रति गंभीर पूर्वाग्रह पैदा हो गया है, जो एक बहुत बड़े समुदाय के व्यवहार और जीवनशैली की बुनियादी आवश्यकताओं में से एक है।
ट्रस्ट ने अपने हलफनामे में कहा है, “यह भारतीय नागरिकों के एक बड़े वर्ग की धार्मिक आस्था और व्यवहार का गंभीर मुद्दा है और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित किया गया है। केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार किसी व्यक्ति की यह स्वतंत्रता नहीं छीन सकती कि कोई व्यक्ति क्या खा रहा है।” ट्रस्ट ने कहा कि कंपनियाँ माँग करती हैं, इसलिए हलाल प्रमाण पत्र दिया जाता है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार की खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन ने नवंबर 2023 में हलाल-प्रमाणित उत्पादों के निर्माण, बिक्री, भंडारण और वितरण तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट ने कोर्ट में याचिका दायर की है।