Thursday, July 17, 2025
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न किसी की ‘पंचायती’ स्वीकारी, न किसी की ‘पंचायती’ करेंगे स्वीकार… 35 मिनट में PM मोदी ने डोनाल्ड ट्रंप को बता दी उनकी ‘औकात’: अमेरिकी राष्ट्रपति के बावलेपन पर कूद रहे थे कॉन्ग्रेसी

ट्रंप का पोस्ट आते ही सोशल मीडिया पर मोदी सरकार की आलोचना शुरू हो गई थी। कहा जाने लगा कि हमेशा मोदी सरकार कहती थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर विपक्ष साथ नहीं दे रहा, मगर ऑपरेशन सिंदूर के समय जब सब एकजुट थे तो भारत क्यों पीछे हटा… यहाँ तक कहा गया कि मोदी सरकार अमेरिका के आगे झुक गई और पाकिस्तान से मुँह की खा बैठी।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान हुए सीजफायर के फैसले में अमेरिका की कोई मध्यस्थता नहीं थी… ये बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से 35 मिनट लंबी बातचीत में स्पष्ट की। उन्होंने कनाडा दौरे के वक्त डोनाल्ड ट्रंप से कॉल पर बात करते हुए साफ कहा कि भारत अपने मुद्दों में तीसरे पक्ष को स्वीकार नहीं करेगा चाहे वो पक्ष अमेरिका का ही क्यों न हो।  उन्होंने ये भी कहा कि भारत अब आतंक के खिलाफ पर्दे के पीछे से नहीं लड़ेगा, सामने से लड़ेगा और जवाब देगा।

भारतीय पीएम का ये रुख देखने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने भी आतंक के खिलाफ समर्थन किया। बाद में ये सारी बातें विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने मीडिया को बताई।

ये पूरी बातचीत पिछले महीने ऑपरेशन सिंदूर के वक्त जो खबरें आईं थीं उससे संबंधित थीं, जिनमें ट्रंप के एक पोस्ट के बाद धड़ल्ले से चलाया गया कि भारत ने तो ऑपरेशन सिंदूर इसलिए रोका क्योंकि अमेरिका ने हस्तक्षेप किया था। इस एक दावे पर उन कॉन्ग्रेसियों और वामपंथियों को भी बोलने का मौका मिला जो चाहकर भी ऑपरेशन सिंदूर पर मोदी सरकार की आलोचना नहीं कर पा रहे थे।

ट्रंप का पोस्ट आते ही सोशल मीडिया पर मोदी सरकार की आलोचना शुरू हो गई। कहा जाने लगा कि हमेशा से कहा जाता था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर विपक्ष साथ नहीं दे रहा, मगर ऑपरेशन सिंदूर के समय जब सब एकजुट थे, सरकार की कार्रवाई का समर्थन दे रहे थे तो सरकार क्यों पीछे हटी…।

हर तरह से माहौल बनाया गया कि देश की आम जनता यही सोचे कि मोदी सरकार अमेरिका के आगे झुक गई और पाकिस्तान से मुँह की खा बैठी।

सोशल मीडिया पर चल रहे तमाम प्रपंच के बाद विदेश सचिव विक्रम मिस्री इस मुद्दे पर सामने आए। उन्होंने बताया कि ये सीजफायर सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान के गिड़गिड़ाने के कारण हुआ है, अमेरिका की मध्यस्थता की वजह से नहीं।

हालाँकि, तब भी कॉन्ग्रेसी जानबूझकर झूठ फैलाते रहे। उन्होंने मोदी सरकार के प्रति कुंठा निकालने के लिए अपने ही देश पर सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया। नतीजा ये हुआ कि जब पाकिस्तान को अपनी हार के बावजूद अपने लोगों में जीत का माहौल बनाना था, तो उन्होंने कॉन्ग्रेस नेताओं के बयान का इस्तेमला किया। वहीं पाकिस्तान हैंडल्स ने भी इन्हें जमकर शेयर किया।

टीवी शो में वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेताओं के बयान चलाए गए जिसमें वो मोदी सरकार से जवाब माँग रहे थे कि उन्होंने अमेरिका को मध्यस्थता का मौका क्यों दिया। इस सीजफायर को ‘राष्ट्र शर्म’ तक की बात कही जाने लगी। ताना दिया गया कि नाम ‘नरेंद्र’ और किया ‘सरेंडर’। सवाल उठे कि अगर ट्रंप ने मध्यस्थता नहीं की होती तो फिर वो पोस्ट क्यों करते और क्यों इतना साफ होकर बताते कि ये जंग उनकी वजह से रुकी है।

कॉन्ग्रेसियों जिस समय ऑपरेशन सिंदूर को देखते हुए जब भारतीय सेना की कार्रवाई पर देश को गौरवान्वित होने के लिए कहना था, उस समय वो अपने निराधार व फर्जी सवालों से देश की जनता को सिर्फ इसलिए आशंकित कर रहे थे ताकि मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बन सके। पवन खेड़ा जैसे नेता इस प्रोपगेंडे को हवा देने में प्रमुख नाम थे।

कुछ दिन पहले की ही बात है पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 34 दिनों (10 मई 2025 से 13 जून, 2025) के बीच में, तीन अलग-अलग देशों में 13 अलग-अलग मौकों पर सार्वजनिक रूप से ढिंढोरा पीटा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आखिर इस पर कब बोलेंगे।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 35 मिनट की ट्रंप के साथ हुई बातचीत उन्हीं प्रश्नों का जवाब है। पीएम ने डोनाल्ड ट्रंप से बात करके उन्हीं के सामने ये कह दिया कि भारत किसी की मध्यस्था नहीं स्वीकार करेगा, तो ये अमेरिका से ज्यादा उन विपक्षियों को जवाब है जिन्होंने मोदी सरकार के साथ-साथ भारतीय सेना पर भी सवाल खड़े किए थे और ये पूछा था कि आखिर पता होना चाहिए कि पाकिस्तान के कितने विमान मार गिराए गए हैं।

वैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर कॉन्ग्रेसियों द्वारा सवाल उठाना कोई नया नहीं है। ऑपरेशन उड़ी हो या फिर ऑपरेशन बालाकोट… जब-जब इससे पहले भी मोदी सरकार ने पाकिस्तान के विरुद्ध एक्शन लिया है, तब-तब कॉन्ग्रेसी इस तरह के सवाल लेकर खड़े हुए हैं। उन्हें न तो देश की सेना पर भरोसा है और न ही देश की सरकार पर। कॉन्ग्रेसियों को तो अपने भी नेताओं से समस्या होती है अगर वो विदेश जाकर भारत के इन ऑपरेशन का बखान कर दें। शशि थरूर के साथ पार्टी द्वारा किया गया व्यवहार इसका ताजा उदाहरण है।

भारत पर शक करने की आदत विपक्ष में पुरानी

याद दिला दें कि ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद सरकार ने सर्वदलीय डेलीगेशन को अलग-अलग देश भेजा था ताकि वो लोग भारतीय सेना की कार्रवाई के बारे में विश्व को बता सकें। इनमें एक डेलीगेशन का प्रतिनिधित्व शशि थरूर भी कर रहे थे। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभाया, और भारतीय सेना के शौर्य के बारे में दुनिया को बताया, लेकिन ये प्रतिबद्धता देख उनकी पार्टी के नेता उनपर भड़क गए। उन्हें ये तक सुनना पड़ा कि वो भाजपा मे शामिल होने वाले हैं। बाद में उन्होंने इन सवालों का जवाब ये कहकर दिया कि अगर कोई देश की सेवा कर रहा है तो उसे इन बातों से फर्क नहीं पड़ना चाहिए।

वहीं 2019 की बात याद दिलाएँ तो जब पुलवामा में इस्लामी आतंकियों ने भारतीय सेना के काफिले को निशाना बनाकर फिदायीन हमला करवाया था, तब जब मोदी सरकार ने सेना को खुली छूट देकर एक्शन लेने को कहा था, उस समय ऑपरेशन बालाकोट हुआ था। वायु सेना ने चुन-चुनकर पाकिस्तानी आतंकियों को निशाने पर लिया था। पूरा देश इस पर गर्व कर रहा था मगर विपक्ष ने उसमें भी ये कहा था कि मोदी सरकार सेना की कार्रवाई पर राजनीतिक लाभ ले रही है।

पीएम मोदी कर रहे वही, जो कहा था

दिलचस्प बात ये है कि जो कॉन्ग्रेस सेना के एक्शन पर मोदी सरकार की तारीफ होने से ऐतराज जताती है उनके कार्यकाल में भी कई घटनाएँ ऐसी हुई थी जब सेना सीमा पार बैठे आतंकियों औकात दिखा सकते थे। हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ इसके पीछे क्या वजह रही, ये कॉन्ग्रेस ही जानती होगी। मगर, नरेंद्र मोदी का ये पक्ष हमेशा से था कि पाकिस्तान को उसकी भाषा में ही जवाब देना जरूरी है।

उनकी इसपर एक वीडियो अक्सर वायरल रहती है जिसमें वो आप की अदालत में कह रहे थे- पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए ये लव लेटर लिखने बंद करना चाहिए। इंटरनेशनल प्रेशर पैदा करने की ताकत भारत पे है। पूरी दुनिया पर प्रेशर हम पैदा कर सकते हैं। पाकिस्तान हमें मारकर चला गया, हम पर हमला बोल दिया और हमारे मंत्री अमेरिका जाकर रोने लगे। पड़ोसी मारकर चला गया तो आप अमेरिका क्यों गए, आपको अमेरिका जाना चाहिए था।

आज पीएम मोदी पर जब अपनी उस बात को पूरा करने का मौका है तो वो हर बार इसे चरितार्थ करते हैं। देश के डिफेंस सेक्टर को मजबूत करने के अलावा वो समय-समय पर देश की सेना में आत्मविश्वास भरने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उनपर विश्वास दिखाने पर पीछे नहीं हटते। नतीजा ये आता है कि पाकिस्तान को उसी की जवाब में भाषा दिया जाता है और अगर नेता अमेरिका जाते हैं तो ये साफ करने कि हम आतंरिक मामलों में और आतंकवाद के मुद्दे पर उसकी मध्यस्थता नहीं स्वीकारेंगे चाहे जो हो जाए।

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