जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद लगातार आंतकियों पर कार्रवाई की माँग हो रही है। हमले में शामिल 2 आतंकी पाकिस्तानी भी थे। लोगों की माँग है कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जाए। लेकिन इस बीच पहलगाम आतंकी हमले के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की लिबरल जमात ने माँग कर दी है। इस बार यह अटपटी माँग करने वाले कपिल सिब्बल हैं।
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने पहलगाम हमले के बाद कहा, “यह मामला राज्य प्रायोजित आतंकवाद का है। हमारे कानूनों के अनुसार, पाकिस्तान को आंतकी राष्ट्र ठहराया जाना चाहिए। इस आतंकी हमले के जिम्मेदारों को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय में दोषी ठहराया जाना चाहिए।”
#WATCH | Delhi | On Pahalgam terrorist attack, Senior advocate Kapil Sibal says, "Those responsible for this should be prosecuted in the international court. I urge the Home Minister to proscribe Pakistan as a terrorist state and move the International Criminal Court. I am sure… pic.twitter.com/eYHdRnUHRy
— ANI (@ANI) April 23, 2025
सिब्बल ने आगे कहा, “मैं गृह मंत्री से माँग करता हूँ कि पाकिस्तान को हमारे क़ानून के अनुसार आतंकी राष्ट्र घोषित किया जाए और फिर इस मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय लेकर जाया जाए। वह इस न्यायालय में पाकिस्तान को आतंकी राष्ट्र घोषित करने की माँग करें।”
जहाँ यह 100% सच है कि पाकिस्तान की शह पर यह हमला हुआ है और वह स्वयं में एक आतंकी राष्ट्र है, लेकिन इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में नहीं ले जाया जा सकता। इस मामले पर भारत का स्पष्ट रुख रहा है कि भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ के मसले को खुद ही निपटा लेगा।
भारत का स्टैंड है कि कश्मीर और उससे जुड़ा कोई भी मामला अंतरराष्ट्रीय नहीं है और इसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर नहीं ले जाया जाएगा। कश्मीर का सीमा विवाद का मामला हो या फिर पाकिस्तान का कश्मीर के बड़े हिस्से पर अनाधिकृत कब्जा, भारत इसे द्विपक्षीय तरीके से हल करने की बात करता आया है।
ऐसे में इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाना कहीं से भी ठीक नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर का मुद्दा ले जाना भारत के लिए कभी लाभदायक नहीं रहा है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू यह गलती एक बार कर चुके हैं। आजादी के बाद पाकिस्तान में कश्मीर पर हमले को वह संयुक्त राष्ट्र लेकर गए थे।
इसके बाद कश्मीर का मामला फंस कर रह गया और भारतीय सेना आगे के आगे बढ़ने के बजाय भारत को भी सीजफायर करना पड़ा। इसके चलते कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान समेत तमाम इलाका पाकिस्तान के अनाधिकृत कब्जे में चला गया। यह कब्ज़ा 7 दशक के बाद भी जारी है।
इस बीच स्पष्ट हो चुका है कि यह अंतरराष्ट्रीय मंच भारत को लेकर पक्षपात करते हैं। 3 दशक से कश्मीर को आतंक की आग में झोंकने के बाद भी पाकिस्तान पर वह कोई कार्रवाई नहीं कर पाए हैं। ना ही वह पाकिस्तान से यह कह पाए हैं कि वह भारत को उसका इलाका वापस करे।
पहलगाम हमले के बाद जहाँ पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई जरूरी है लेकिन इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की सलाह देना मूर्खता भरी बात है। यह तब और मूर्खता भरा काम होगा जब भारत 1972 में पाकिस्तान के साथ शिमला समझौता कर चुका है। इसमें पाकिस्तान ने इस बात पर हामी भरी थी कि वह भारत के मामले को द्विपक्षीय स्तर पर हल करेगा।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय मंच पर किसी मामले को ले जाने का मतलब यह होगा कि भारत इन मामलों में अपने स्तर हल नहीं कर सकता। अंतरराष्ट्रीय मंच पर मदद माँगना दिखाएगा कि वह अकेले ही पाकिस्तान को उसके पापों के लिए भी नहीं दण्डित कर सकता।
ऐसे में कपिल सिब्बल की यह राय एकदम अप्रासंगिक है और सच्चाई से कोसों दूर है। यह राय उसी कॉन्ग्रेसी मानसिकता से उपजती है जो सोचता है कि पाकिस्तान को दशकों तक शह देने वाले अंग्रेज अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के साथ न्याय करेंगे। पाकिस्तान का एक ही इलाज है जो मोदी सरकार करती आई है।
एक तरफ उसे अप्रासंगिक बना देना और जब भी वह कोई ऐसी हरकत करे तो उसे ऐसी सजा देना कि वह खुद काँप जाए। 2016 में आतंक के कैम्पों पर सर्जिकल स्ट्राइक और 1019 में बालाकोट में हुआ हवाई हमला मोदी सरकार की इसी दृढ़ता का उदाहरण था। पहलगाम का जवाब इससे भी बड़ा होना चाहिए।