Thursday, May 2, 2024
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कर्नाटक के बाद तमिलनाडु ने किया गुजरात के AMUL ब्रांड का विरोध, CM स्टालिन की अमित शाह को चिट्ठी: जानें कैसे राजनीति के लिए क्षेत्रवाद की आग को दी जा रही हवा

JDS के कुमारस्वामी ने कहा, “अमूल को केंद्र सरकार के समर्थन से पिछले दरवाजे से कर्नाटक में स्थापित किया जा रहा है। अमूल कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) और किसानों का गला घोंट रहा है। कन्नड़ लोगों को अमूल के खिलाफ बगावत करनी चाहिए। हमारे लोगों और ग्राहकों को प्राथमिकता पर नंदिनी उत्पादों का उपयोग करना चाहिए और किसानों की आजीविका को बचाना चाहिए।"

गुजरात की मिल्क कॉपरेटिव सोसायटी अमूल (AMUL) का मामला कर्नाटक से होते हुए तमिलनाडु तक पहुँच गया है। यह व्यवसायिक से ज्यादा राजनीतिक नजर आ रहा है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 से ठीक पहले अमूल बनाम राज्य की नंदिनी (Nandini) को लेकर राजनीति हुई थी। अब इस राजनीति में तमिलनाडु भी कूद गया है।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं डीएमके के नेता एमके स्टालिन (MK Stalin) ने केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने कहा है कि अमूल को आविन के मिल्क शेड क्षेत्र से दूध खरीदने से रोकने का निर्देश दिया जाए। स्टालिन ने यह पत्र स्थानीय सहकारी क्षेत्र को बचाने के नाम पर लिखी है और अमूल का विरोध किया है। अमूल के विरोध की मुख्य वजह उसका गुजरात से होना है।

यही कारण है कि भाजपा और उसके नेताओं, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से विरोधी भाव रखने वाले लोग अब गुजरात के इस दूध उत्पाद का का भी विरोध करने लगे हैं। इसके लिए ये नेता स्थानीय बनाम गैर-स्थानीय की विभाजनकारी राजनीति को हवा दे रहे हैं। बंगाल में ममता बनर्जी, बिहार में जदयू और राजद, कर्नाटक में कॉन्ग्रेस एवं जेडीएस, तमिलनाडु में स्टालिन, महाराष्ट्र में MNS जैसे क्षेत्रीय नेता क्षेत्रवाद को अपनी राजनीति का केंद्र बनाकर रखा है।

केंद्रीय मंत्री अमित शाह को लिखे अपने पत्र में एमके स्टालिन ने लिखा, “अन्य राज्यों की मजबूत डेयरी सहकारी समितियों की तरह तमिलनाडु में भी सन 1981 से तीन स्तरीय डेयरी सहकारी प्रणाली प्रभावी ढंग से काम कर रही है। आविन हमारा सर्वोच्च सहकारी विपणन संघ है। आविन सहकारी के दायरे में 9,673 दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। वे लगभग 4.5 लाख सदस्यों से 35 LLPD दूध खरीदते हैं।”

स्टालिन ने आगे लिखा, “हाल ही में यह हमारे संज्ञान में आया है कि कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ (अमूल) ने कृष्णागिरी जिले में चिलिंग सेंटर और एक प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित करने के लिए अपने बहुराज्यीय सहकारी लाइसेंस का उपयोग किया है। यह हमारे राज्य के कृष्णागिरी, धर्मपुरी, वेल्लोर, रानीपेट, तिरुपथुर, कांचीपुरम और तिरुवल्लूर जिलों और उसके आसपास के FPO और SHG के माध्यम से दूध खरीद योजना बना रहा है। इस तरह की क्रॉस-प्रोक्योरमेंट ‘ऑपरेशन व्हाइट फ्लड’ की भावना के खिलाफ है और देश में दूध की कमी के मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए उपभोक्ताओं के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला है।”

हिंदी का विरोध कर इसे क्षेत्रीय अस्मिता से जोड़ने वाले एमके स्टालिन अब आर्थिक क्षेत्र में भी इसे आजमा रहे हैं। इसी तहत उन्होंने Amul बनाम Aavin के जरिए अब स्थानीय बनाम गैर-स्थानीय की आग को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। यही कारण है कि वे अमित शाह से राज्य में अमूल के ऑपरेशन को रोकने की माँग की है। इस तरह की माँग करके क्षेत्रीयता की आग भड़काकर अपनी राजनीति चमकाने वाले स्टालिन पहले नेता नहीं हैं।

महाराष्ट्र में राज ठाकरे

जब राज ठाकरे ने अपनी पार्टी ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ (MNS) की शुरुआत की थी तो उन्होंने साफ कर दिया था कि उनका कार्यक्षेत्र ‘महाराष्ट्र’ पर केंद्रित होगा। मराठी वोटों को उनकी भूख ने धार्मिक मुद्दों को भी दरकिनार कर दिया, जिसको लेकर शिवसेना का निर्माण किया गया था। राज ठाकरे ने नासिक जिले में स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर के हालिया विवाद में मराठी मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश की।

त्र्यंबकेश्वर मंदिर में मुस्लिमों द्वारा लोबान दिखाने और चादर चढ़ाने की कोशिश का बचाव करते हुए राज ठाकरे ने कहा, “अगर यह सदियों पुरानी परंपरा है तो इस पर रोक लगाना बेमानी है। यह त्र्यंबकेश्वर के लोगों का मुद्दा है। महाराष्ट्र में सैकड़ों मंदिर और मस्जिद हैं, जहाँ इस तरह का आपसी समन्वय देखने को मिलेगा। हमारा धर्म इतना कमजोर नहीं है कि किसी दूसरे धर्म का व्यक्ति मंदिर में प्रवेश कर जाए तो वह भ्रष्ट हो जाए। मैं विभिन्न मस्जिदों में गया हूँ। हमारे कुछ मंदिरों में एक निश्चित जाति के लोगों को ही गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति है।”

राज ठाकरे दरअसल मराठी लोगों की राजनीति पर फोकस कर रहे हैं, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं। यही कारण है कि त्र्यंबकेश्वर की घटना को वो आपसी सौहार्द्र बताकर मराठी मुस्लिमों को अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहे हैं। कभी हिंदुत्व की वकालत करने वाले राज ठाकरे महाराष्ट्र के दंगों को नजरअंदाज करते हुए कहा, “मराठी मुस्लिम जहाँ भी रहते हैं, वहाँ कोई सांप्रदायिक तनाव नहीं है। यह मेरा अनुभव है। वे शांति से रहते हैं। कुछ लोग इस सद्भाव को भंग कर रहे हैं। एक हिंदू बहुल राज्य में हिंदू कैसे खतरे में हो सकता है?”

ये वही राज ठाकरे हैं, जिन्होंने MNS के गठन के शुरुआती दिनों में मराठी बनाम गैर-मराठी का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। उनकी पार्टी बिहार और उत्तर प्रदेश से मुंबई और आसपास के शहरों जैसे ठाणे, पुणे और नासिक में काम कर रहे लोगों की नौकरी छिनकर स्थानीय मराठी लोगों देने की बात करते थे। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता यूपी-बिहार के लोगों से आए दिन मारपीट करते थे। वे कहते थे कि इन्हीं लोगों के कारण मुंबई आदि शहरों में अपराध बढ़ा है।

कर्नाटक में कॉन्ग्रेस और JDS

राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद कॉन्ग्रेस कई मौकों पर स्थानीय बनाम गैर-स्थानीय राजनीति का खेल खेला है। कॉन्ग्रेस ने कर्नाटक में चुनावों से पहले अमूल बनाम Nandini दूध ब्रांड का खेल खेलकर कन्नड़ बनाम गुजरात की राजनीति करने की कोशिश की थी। उसने जनता दल सेक्युलर द्वारा किए जा रहे अमूल के विरोध का खूब साथ दिया। इसको लेकर कॉन्ग्रेस ने खूब फेक न्यूज फैलाए।

दरअसल, दिसंबर 2022 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अमूल और नंदिनी के बीच अधिक सहयोग अपील की थी। नंदिनी का स्वामित्व कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) के पास है। उन्होंने कहा था, “अमूल और केएमएफ मिलकर यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करेंगे कि राज्य के हर गाँव में एक प्राथमिक डेयरी हो। कर्नाटक में सहकारी डेयरी को बढ़ावा देने के लिए अमूल और केएमएफ को मिलकर काम करना होगा।”

इस बयान को इस तरह लोगों के सामने रखा गया कि अमूल जल्द ही नंदिनी को खरीद सकता है। इस तरह स्थानीय डेयरी ब्रांड नंदिनी को कर्नाटक की पहचान और संस्कृति से जोड़ दिया गया। इसको मुद्दा बनाकर राज्य में क्षेत्रवाद की खूब आग भड़काई गई। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उस समय कन्नडिगों से अमूल ब्रांड का बहिष्कार करने की अपील की थी। वहीं, कॉन्ग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने इसे एक बड़ी साजिश बताया था।

जनता दल (सेक्युलर) के नेता एचडी कुमारस्वामी ने तो यहाँ तक कह दिया, “अमूल को केंद्र सरकार के समर्थन से पिछले दरवाजे से कर्नाटक में स्थापित किया जा रहा है। अमूल कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) और किसानों का गला घोंट रहा है। कन्नड़ लोगों को अमूल के खिलाफ बगावत करनी चाहिए। हमारे लोगों और ग्राहकों को प्राथमिकता पर नंदिनी उत्पादों का उपयोग करना चाहिए और किसानों की आजीविका को बचाना चाहिए।”

बिहार में JDU और RJD

साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड), तेजस्वी यादव की राष्ट्रीय जनता दल और कॉन्ग्रेस ने भाजपा के खिलाफ महागठबंधन तैयार किया था। इन नेताओं ने अमित शाह और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को ‘बाहरी’ बताते हुए बिहार के लोगों से महागठबंधन को वोट देने के लिए कहा था। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने इस प्रोपेगेंडा को खूब फैलाया। यहाँ भी नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की पीएम मोदी और अमित शाह के प्रति नफरत साफ दिखी।

बताते चलें नीतीश कुमार भाजपा के सहयोग से बिहार में सरकार का आनंद उठाते रहे हैं। हालाँकि, साल 2013 में उन्होंने NDA छोड़ दिया। उसके बाद साल 2017 में वे राजद और कॉन्ग्रेस से गठबंधन तोड़कर भाजपा के साथ आ मिले।हालांकि, मौका देखकर वे एक बार फिर साल 2022 में भाजपा से अलग होकर महागठबंधन का हिस्सा बन गए। वे अब भी गुजरात बनाम स्थानीय नेता का राग समय-समय पर अलापते रहते हैं।

बंगाल में ममता बनर्जी

क्षेत्रवाद की आग भड़काने में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी भी पीछे नहीं हैं। साल 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान उन्होंने कहा था, “गुजराती (नरेंद्र मोदी और अमित शाह) यूपी और बिहार से गुंडे लाकर बंगाल पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं।” हावड़ा की एक चुनावी रैली में उन्होंने यह भी कहा था कि वे बंगाल को गुजरात नहीं बनने देंगी।

इसी तरह साल वह 2019 में राज्य में हुई हिंसा के लिए उन्होंने ‘बाहरी लोगों’ को जिम्मेदार ठहराया है। इसी तरह के क्षेत्रवाद को उन्होंने साल 2021 के चुनावों के दौरान भी बढ़ावा दिया। उन्होंने बंगाली समुदाय के भीतर भय पैदा करने की खूब कोशिश की। उन्होंने यहाँ तक कहा कि बंगाल की संस्कृति और भाषा को दूसरे राज्यों के प्रवासियों द्वारा नुकसान पहुँचाया जा रहा है।

यूपी में अखिलेश यादव की सपा और राहुल गाँधी की कॉन्ग्रेस

साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और कॉन्ग्रेस के राहुल गाँधी ने अपनी-अपनी विरासत को बचाने के लिए गठबंधन किया और इस गठबंधन को ‘यूपी के लड़के’ के रूप में प्रचारित किया। चूँकि उस दौरान राहुल गाँधी भी अमेठी से सांसद थे और अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे तो दोनों को खुद को यूपी के स्थानीय के रूप में प्रचारित किया।

इन दोनों नेताओं ने सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन पीएम मोदी, अमित शाह को परोक्ष रूप स बाहरी साबित करने की खूब कोशिश की थी। चुनावी रैलियों के दौरान वे दोनों नेताओं को गुजराती कहते थे। अखिलेश यादव ने उन्हें ‘गुजरात के गधे’ कहा था। इसका करारा जवाब देते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्हें गधे से प्रेरणा लेने पर गर्व है, जो बिना किसी पूर्वाग्रह और अपनी परवाह किए दिन रात अपने मालिक की सेवा करता है। मोदी ने कहा था, “देश की जनता मालिक है। मैं उनके लिए अथक रूप से काम करता हूँ और आगे भी करता रहूँगा।”

इस तरह देश में क्षेत्रीय दल अपनी राजनीतिक स्वार्थ के लिए क्षेत्रीयता की आग को खूब हवा देते रहे हैं। चाहे वह पंजाब हो या केरल, हर जगह भाजपा से मुकाबला करने के लिए वाजिब मुद्दों के अभाव में इस तरह के मुद्दे उठाए जाते रहे हैं। एमके स्टालिन ने भी Amul बनाम Aavin के नाम पर केंद्र को पत्र लिखकर अपने राज्य में एक और मुद्दे को हवा देने की कोशिश की है।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

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