Tuesday, May 6, 2025
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यूँ ही अडानी के पीछे नहीं पड़ा था हिंडनबर्ग, राहुल गाँधी के अंकल सैम पित्रोदा का हाथ होने का रिपोर्ट में दावा: मोसाद ने बिगाड़ दिया गेम, OpIndia ने भी इस नेक्सस को लेकर जताया था संदेह

इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने गौतम अडानी की हिंडनबर्ग समूह से लड़ने में सहायता की। हिंडनबर्ग सिर्फ अकेले ही काम नहीं कर रही बल्कि उसकी मदद तमाम NGO, मीडिया, वकील और बाकी लोग कर रहे हैं। इस काम में कई ऐसे लोग भी जुड़े हुए थे, जिनको पैसा कमाना था।

भारतीय कारोबारी समूह अडानी ग्रुप के मुखिया की गौतम अडानी की मदद मोसाद और इजरायली प्रधानमन्त्री नेतन्याहू ने की थी। उन्होंने यह मदद अमेरिकी शोर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग के हमले के बाद की थी ताकि कारोबारी समूह इसका सामना कर सके।

इजरायल के जवाबी हमले के चलते ना सिर्फ अडानी समूह वापस बाजार में उभर कर वापस आया, बल्कि उसके ऊपर आरोप लगाने वाली हिंडनबर्ग रिसर्च पर ताला जड़ गया। यह सारी बातें हाल ही में सामने आई रिपोर्ट्स में खुली हैं। इन्हीं रिपोर्ट में कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी और सैम पित्रौदा का भी नाम है।

नेतन्याहू ने बढ़ाया मदद का हाथ

समाचार वेबसाइट स्पुतनिक इंडिया की एक रिपोर्ट में इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के अडानी को सहायता करने का जिक्र किया गया है। इस रिपोर्ट बताया गया है कि जनवरी, 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च के अडानी के खिलाफ आरोपों से भरी रिपोर्ट प्रकाशित की।

रिपोर्ट बताती है कि इसके एक सप्ताह बाद ही 31 जनवरी, 2023 को अडानी समूह ने इजरायल के हाइफा पोर्ट को खरीदा। इसी दौरान उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हुई। रिपोर्ट बताती है कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अडानी से इस रिपोर्ट के विषय में पूछा, इसका जवाब में अडानी ने बताया कि रिपोर्ट झूठ है और इससे उनके व्यापार को कोई खतरा नहीं है।

स्पुतनिक रिपोर्ट के अनुसार, इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने लेकिन इस पर चिंता जताई और साफ़ कर दिया कि वह किसी भी ऐसे हमले को स्वीकार नहीं करेंगे। नेतन्याहू की चिंता के पीछे हाइफा पोर्ट की डील थी जो अडानी के साथ पूरी हुई थी, यह इजरायल के लिए काफी महत्वपूर्ण थी और इसे अडानी ने कई हजार करोड़ में खरीदा था।

प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बारे में कहा, “हाँ, हम जानते हैं कि यह फर्जी है। लेकिन अगर आपको कोई खतरा नहीं दिखता है, तो भी हमें चिंतित होना चाहिए। अगर यह आपको कमजोर करता है, तो यह न केवल इस पोर्ट डील को बल्कि भारत के साथ मिलकर हमने जो कुछ भी अब तक हासिल किया है, उसे नुकसान पहुँचा सकता है।”

इसी मामले पर एक ऑनलीफैक्ट्स नाम की एक वेबसाइट ने भी एक बड़ी रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमे कमोबेश यही जानकारियाँ हैं। उसके अनुसार, इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के इस वादे के बाद मोसाद ने एक ऑपरेशन चालू किया। यह ऑपरेशन मोसाद की ज़ोमेत और केशेत नाम की दो यूनिट ने चालू किया।

रिपोर्ट कहती है कि एक साइबर जबकि एक परम्परागत तरह से खुफिया ऑपरेशन करने में माहिर है। इसके बाद इन्होने अमेरिका से लेकर यूरोप और भारत तक जानकारी जुटाना चालू कर दिया। यह टीमें हिंडनबर्ग के ऑफिस तक पहुँचे।

ऑफिस हैक किया, सारी जानकारी निकाली

ऑनलीफैक्ट के अनुसार, मोसाद के एजेंट इसके बाद न्यूयॉर्क स्थित हिंडनबर्ग के दफ्तर पहुँचे। मोसाद के एजेंटों ने इसके बाद इस दफ्तर में आने-जाने वाले हर आदमी के बारे में जानकारी इकट्ठा की। उन्होंने यहाँ दरवाजों, दीवालों और बाकी जगह अपने खुफिया डिवाइस लगाए और सारी जानकारी इकट्ठा करना चालू किया।

रिपोर्ट बताती है कि इसके बाद उन्हें पता चला कि हिंडनबर्ग सिर्फ अकेले ही काम नहीं कर रही बल्कि उसकी मदद तमाम NGO, मीडिया, वकील और बाकी लोग कर रहे हैं। इस काम में कई ऐसे लोग भी जुड़े हुए थे, जिनको पैसा कमाना था। रिपोर्ट बताती है कि अडानी के खिलाफ इस हमले में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी।

इस खुलासे में बताया गया है कि मोसाद को हिंडनबर्ग की जाँच के दौरान अमेरिका के एक और पते के बारे में पता चला जो कि अडानी के खिलाफ शामिल था। स्पुतनिक की रिपोर्ट कहती है कि यह पता कॉन्ग्रेस नेता सैम पित्रोदा से जुड़ा हुआ था। वहीं ऑनलीफैक्ट की वेबसाइट बताती है कि इस पते का कम्यूटर भी हैक कर लिया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, हैक किए गए कम्यूटर से कई चौंकाने वाली जानकारियाँ मिली। बताया गया कि इसी कम्यूटर में अडानी को नुकसान पहुँचाने सम्बन्धी ईमेल मिले। यह भी पता चला कि इस साजिश में और भी कई लोग जुड़े थे जो भारत के थे। कई बड़े कारोबारी घराने भी इस कम में शामिल मिले।

अडानी ने वापस हिंडनबर्ग पर किया वार

यह सब पता चलने के बाद अडानी ने हिंडनबर्ग पर वार किया। इसके लिए मोसाद ने ‘ऑपरेशन जेपलिन’ लॉन्च किया। दरअसल, जेपलिन भी एक हवाई गुब्बारे का नाम था। इस ऑपरेशन के लिए अडानी से मोसाद के लोग स्विट्ज़रलैंड में मिले थे। यह मुलाक़ात जनवरी, 2024 में हुई थी।

अडानी को पता चला कि तीन अलग-अलग देशों में बैठे हुए शेयर मार्केट ऑपरेटर उनके खिलाफ गड़बड़ी कर रहे हैं। यह पता चला कि वह यह काम एक अमेरिकी फंड के लिए कर रहे थे जो कि चीन के भरोसे चल रही थी।

अडानी को सिर्फ यही नहीं पता चला, बल्कि उन्हें यह भी मालूम हुआ कि भारत के भीतर से भी कई प्रतिद्वंदी कारोबारी घराने भी उनके खिलाफ साजिश में शामिल हैं। यही नहीं, अडानी के खिलाफ एक राजनीतिक पार्टी के लोग भी शामिल थे, यह भी पता चला।

रिपोर्ट बताती है कि अडानी ने इसके बाद अहमदाबाद में एक अपनी टीम बिठाई। इसने इस बात की जाँच की कि कहाँ से उनके खिलाफ सूचनाएँ फैलाई जा रही हैं। इसके बाद अडानी ने अमेरिका में तब सत्ताधारी डेमोक्रेट पार्टी में भी खेमे ढूंढ लिए। उनका समर्थन उस खेमे ने किया जो चीन के खिलाफ थे।

अडानी ने अक्टूबर, 2024 तक 350+ पेज का एक डोजियर हिंडनबर्ग के खिलाफ बनाया। इसमें उनके खिलाफ साजिश करने वाले NGO, कारोबारी घराने, एक महिला नेता और पत्रकारों समेत बाकी के विषय में सबूत थे। यहाँ तक कि अडानी ने उन अख़बारों की भी जानकारी निकाली जो उनके खिलाफ प्रोपेगेंडा कर रहे थे।

रिपोर्ट कहती है कि इसके बाद कैसे अमेरिका, USAID और बाकी ने मिलकर अडानी पर हमला किया, यह बात फ्रांसीसी संस्थान मीडियापार्ट ने छाप दी। इसके बाद सच्चाई सामने आई।

हिंडनबर्ग को भी करवा दिया बंद

रिपोर्ट कहती है कि यह सब सामने आने के बीच अमेरिका बायडेन प्रशासन ने एक बार फिर अडानी को एक मुकदमे के माध्यम से पीछे धकेलने का प्रयास किया लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। यहाँ तक भारत ने खुले तौर पर अमेरिका की इस बीच आलोचना की।

अडानी समूह ने इसके बाद हिंडनबर्ग को कानूनी तौर पर चुनौती देने का फैसला किया। अडानी समूह ने हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन को एक 7 पन्ने का कानूनी नोटिस भेजा। इसमें उनके सारे कारनामों की लिस्ट थी और उस पर होने वाली कानूनी कार्रवाई के विषय में भी जानकारी थी।

इसके चलते एंडरसन को समझ आया कि उसने कहाँ हाथ डाला है। एंडरसन इसके बाद समझौते के लिए रास्ता ढूंढना लगा। उसने एक बार अडानी समूह से जुड़े एक व्यक्ति से भी मुलाकात की। रिपोर्ट कहती है कि एंडरसन ने इसके बाद हामी भरी कि वह हिंडनबर्ग पर ताला जड़ देंगे अगर अडानी उन पर मुकदमा ना करें।

यह समझौता हो गया और जनवरी, 2025 में हिंडनबर्ग ने अपना बोरिया बिस्तर समेटने का ऐलान कर दिया। इसे ऐसे दिखाया गया कि हिंडनबर्ग को नाथन अपने मन से बंद कर रहे हैं, लेकिन असल में यह अडानी के दबाव का कमाल था। इस बीच अमेरिका में सरकार भी बदल गई और ट्रम्प प्रशासन का रवैया अडानी के प्रति और नर्म था।

इस तरह कभी जो हिंडनबर्ग रिसर्च कहता था कि वह अडानी समूह पर ताला डलवाएगा, वह खुद ही 2 साल के भीतर बोरिया बिस्तर समेटने पर मजबूर हो गया। इसमें सबसे बड़ा किरदार रहा गौतम अडानी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का।

सैम-पित्रोदा के NGO और राहुल गाँधी के विदेशी दौरों को लेकर उठते रहे हैं सवाल

जैसे इस पूरे मामले में मोसाद ने सैम पित्रोदा को लेकर जो सन्देश जताया है, इसी तरह के सवाल उनके NGO की USAID से फंडिंग पर प्रश्न ऑपइंडिया ने उठाए थे। इसके अलावा राहुल गाँधी की विदेश यात्राओं और भारतीय हितों को नुकसान पहुँचाने के प्रयास सम्बन्धी बात भी ऑपइंडिया ने की थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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