Tuesday, May 21, 2024
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गली में सूअरों के कटे हुए सिर, नमाज़ के वक्त तेज़ आवाज़ में गाना… मस्जिद निर्माण से डरे दक्षिण कोरियाई ऐसे कर रहे विरोध, पोस्टरों में लिखा – आतंकियों का अड्डा

"केवल हिजाब पर उनके नियम ही पर्याप्त कारण हैं कि उन्हें कभी भी हमारे देश में पैर नहीं रखना चाहिए। हम बहिष्कारवादी दिख सकते हैं, लेकिन इन लोगों ने ही हमें ऐसा बना दिया है।"

दक्षिण कोरिया के डेगू शहर के दाहेयोंग-डोंग में रहने वाले स्थानीय लोग और अप्रवासी मुस्लिम आमने-सामने आ गए हैं। इस विवाद का कारण एक मस्जिद है, जिसका निर्माण 2020 के अंत में शुरू हुआ था। नाटकों और पॉप संस्कृति के लिए मशहूर दक्षिण कोरिया तेजी से बदल रही डेमोग्राफी चुनौती का सामना कर रहा है। साल 2020 के आँकड़ों के अनुसार, ‘अप्रवासी’ अब कुल आबादी का 3.3% हैं और उनकी संख्या तेजी से बढ़ने की उम्मीद है।

दाहेयॉन्ग-डोंग में मस्जिद बनने से स्थानीय दक्षिण कोरियाई डरे हुए हैं और वह अपने घरों को छोड़ने के लिए भी तैयार हैं। यहाँ की क्यूंगपुक नेशनल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले मुस्लिम छात्र 2014 से नमाज अदा करने के लिए दाहेओंग-डोंग में एक घर का इस्तेमाल कर रहे थे।

नमाज पढ़ते हुए मुस्लिम छात्र (फोटो साभार: द न्यूयॉर्क टाइम्स)

हालाँकि, साल 2020 में 6 मुस्लिमों (पाकिस्तान और बांग्लादेश से) के एक ग्रुप द्वारा यहाँ जमीन खरीदे जाने के बाद से यहाँ सब कुछ बदलने लगा। उसी साल दिसंबर में, इन मुस्लिम ने स्थानीय अधिकारियों की अनुमति लेकर 20 मीटर लंबी मस्जिद बनानी शुरू कर दी। अप्रवासी मुस्लिमों का तर्क था कि अब तक जहाँ वह नमाज पढ़ रहे थे, वहाँ एक बार में केवल 150 लोग ही इकट्ठे हो सकते हैं।

स्थानीय कोरियाई लोगों की शिकायतें

स्थानीय कोरियाई लोगों का कहना है कि बीते कई वर्षों से वे लोग मुस्लिमों के साथ ही रह रहे हैं और उन्हें उनसे कोई समस्या नहीं है। लेकिन, उनका कहना है कि अब यहाँ मस्जिद बन जाने से नमाज से होना वाला शोर बढ़ जाएगा। लोगों की यह भी आशंका है कि मस्जिद निर्माण से यह इलाका भीड़-भाड़ भरा हो जाएगा।

62 वर्षीय जेंग नामक व्यक्ति ने ‘द कोरियन हेराल्ड’ से हुई बातचीत में कहा है कि यदि यह मस्जिद बनती है तो वह यह इलाका छोड़ देंगे। उन्होंने कहा, “हम पिछले कई वर्षों से मुस्लिम समुदाय के साथ सद्भाव से रहते थे, छुट्टियों के मौसम में भोजन और उपहार साझा करते थे। हमने उनकी सभाओं के बारे में शिकायत नहीं की। कल्पना कीजिए कि लोगों की बड़ी भीड़ दिन में कई बार आपके घर के दरवाजे से होकर निकलती है। लोगों के बात करने, चलने और बाइक और मोटरसाइकिल चलाने की आवाज़ें आपको पागल कर देंगी।”

जनवरी 2020 में मस्जिद निर्माण का हुआ था विरोध (फोटो साभार: द न्यूयॉर्क टाइम्स)

एक अन्य स्थानीय महिला ने इस क्षेत्र में बढ़ रही भीड़भाड़ के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा, “मैंने देखा है कि उनमें से बहुत से लोग गली में अपनी बाइक और मोटरसाइकिल पार्क करते हैं। वे ग्रुपों में आते और जाते हैं। यह स्पष्ट है कि यह इलाका अधिक भीड़भाड़ वाला हो जाएगा।”

इसी इलाके में रहने वाले किम केओंग-सुक ने न्यूयॉर्क टाइम्स से हुई बातचीत में कहा, “हम उनके मजहब के खिलाफ नहीं हैं। हम अपने भीड़ भरे इलाके में कोई नई मजहबी सुविधा नहीं रख सकते, चाहे वह इस्लामी, बौद्ध या ईसाई हो। इससे दहेयोंग-डोंग से स्थानीय कोरियाई लोगों के बड़े पैमाने पर पलायन की आशंका बढ़ गई है।” पार्क जेओंग-सुक नामक एक अन्य व्यक्ति का कहना है, “मैंने पहले कभी उनके जैसे लोगों को नहीं देखा था। वहाँ कभी कोई महिला नहीं दिखी, सिर्फ पुरुषों का झुंड ही दिखता है।

मस्जिद निर्माण को मिली हरी झंडी, कोरियाई अब भी कर रहे हैं विरोध

साल 2020 मस्जिद निर्माण शुरू होने के बाद से स्थानीय जिला प्रशासन के यहाँ के लोगों ने लगातार शिकायतें भेजनी शुरू कर दीं। इसके बाद लोगों के दबाव में आकर मस्जिद बनाने की अनुमति रद्द कर दी थी। इसके बाद मस्जिद का निर्माण रुक गया था। लेकिन, स्थानीय कोरियाई लोगों की यह खुशी थोड़े दिनों की ही थी, क्योंकि इसके बाद मुस्लिमों ने जिला प्रशासन के फैसले के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी और उन्हें कोर्ट से जीत भी मिल गई थी। इसके बाद, इसी साल सितंबर में कोरियाई सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए मस्जिद निर्माण की अनुमति दे दी थी।

मस्जिद के विरोध में लगे हुए पोस्टर (फोटो साभार: कोरियाई हेराल्ड)

हालाँकि, इसके बाद भी स्थानीय लोगों ने हार नहीं मानी और जिला प्रशासन से मस्जिद को ‘स्थानांतरित’ करने की अपील करने लगे। लेकिन, उनकी यह अपील भी किसी काम नहीं आई। हालातों से मजबूर कोरियाई लोग अब दाहेओंग-डोंग में मस्जिद के निर्माण को किसी न किसी तरह रोकने की कोशिश कर रहे हैं। कोरियाई लोग अब मस्जिद के गेट पर वाहनों को खड़ा कर रहे हैं और गली में सूअरों के कटे हुए सिर (सूअर का मांस को इस्लाम में हराम माना जाता है) रख रहे हैं यहाँ तक कि खुले में सूअर का माँस भी पका रहे हैं। यही नहीं, नमाज के समय तेज आवाज में गाने भी बजा कर विरोध कर रहे हैं।

इसके अलावा, स्थानीय लोगों ने मोहल्ले में पोस्टर लगाकर भी मस्जिद निर्माण का विरोध किया है। इन पोस्टरों में ‘इस्लाम एक दुष्ट मजहब है जो लोगों को मारता है’, ‘हम इस्लामी मस्जिद के निर्माण का कड़ा विरोध करते हैं’, ‘कोरियाई लोग पहले आओ’ और ‘आतंकवादियों का अड्डा’ जैसे वाक्य लिखे हुए हैं। स्थानीय लोगों के विरोध के बाद भी मस्जिद का निर्माण 60% तक पूरा हो चुका है। इसके 2022 के अंत तक शुरू होने की भी उम्मीद है।

अप्रवासी विरोधी आंदोलन ‘रिफ्यूजी आउट’ के नेता ली ह्युंग-ओह ने इस में द न्यूयॉर्क टाइम्स से हुई बातचीत में कहा, “केवल हिजाब पर उनके नियम ही पर्याप्त कारण हैं कि उन्हें कभी भी हमारे देश में पैर नहीं रखना चाहिए। हम बहिष्कारवादी दिख सकते हैं, लेकिन इन लोगों ने ही हमें ऐसा बना दिया है।” बता दें कि साल 2007 में, इस्लामी कट्टरपंथी संगठन तालिबान ने दक्षिण कोरिया के 23 सहायता कर्मियों को बंधक बना लिया था और एक ईसाई पादरी की हत्या कर दी थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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