Tuesday, July 15, 2025
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सड़कों पर बिखरी लाशें, औरतों को नंगा कर घूमा रहे, डर से देश छोड़ भाग रहे लोग… इस्लामी हुकूमत में रहेगा सीरिया, अंतरिम राष्ट्रपति ने 5 साल के लिए किया कबूल

सुन्नी मुस्लिम अल-शरा के नेतृत्व वाली सरकार का दूसरे इस्लामी समूह समर्थन नहीं करते हैं। इनमें एक अल्पसंख्यक अलावी समूह है, जो पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन करता है। बशर भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। अलावी सहित कई धार्मिक एवं जातीय समूह अल-शरा पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए उनका विरोध करते हैं। यही कारण है कि दोनों समूहों के विद्रोही आमने-सामने हैं।

सीरिया में असद अल-बशर की सरकार का तख्तापलट के बाद वहाँ इस्लामवादियों का शासन लागू कर दिया गया है। सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा ने एक संवैधानिक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया है। इस घोषणा-पत्र में कहा गया है कि बदलाव के दौर से गुजर रहे देश में पहले पाँच वर्ष इस्लामी शासन रहेगा। दरअसल, सीरिया तख्तापलट के बाद से हिंसा के दौर से गुजर रहा है।

नए संविधान में कहा गया है कि इस्लाम देश के राष्ट्रपति का धर्म है, जैसा कि पिछले संविधान में था। मसौदा समिति के अनुसार, दस्तावेज़ यह भी मानता है कि इस्लामी न्यायशास्त्र यानी शरिया ‘कानून का मुख्य विधायी स्रोत’ है, न कि ‘एक मुख्य स्रोत’। इसमें शक्तियों के पृथक्करण, न्यायिक स्वतंत्रता, मीडिया की स्वतंत्रता, महिला अधिकारों की गारंटी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही गई है।

संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत गेइर पेडरसन ने इसका स्वागत किया है और कहा है कि यह कानूनी शून्यता को भरने वाला कदम है। वहीं, उत्तर-पूर्वी सीरिया में कुर्द नेतृत्व वाले प्रशासन ने संवैधानिक घोषणा की निंदा की है और कहा है कि यह सीरिया की वास्तविकता और इसकी विविधता का खंडन करता है। सीरिया में नया एवं स्थायी संविधान लागू होने तक घोषणा-पत्र वाली व्यवस्था लागू रहेगी।

बता दें कि इस साल जनवरी में विद्रोही सैन्य समूहों के कमांडरों ने शारा को सीरिया का अंतरिम राष्ट्रपति बनाया था। सत्ता में आने के तुरंत बाद शारा ने असद शासन में साल 2012 में बनाए गए संविधान को रद्द कर दिया। इसके साथ ही उस समय की संसद, सेना और सुरक्षा एजेंसियों को भंग कर दिया था। इस घोषणापत्र से दस दिन पहले शारा ने इसका मसौदा तैयार करने के लिए 7 सदस्यीय समिति गठित की थी।

सुन्नी मुस्लिम अल-शरा के नेतृत्व वाली सरकार का दूसरे इस्लामी समूह समर्थन नहीं करते हैं। इनमें एक अल्पसंख्यक अलावी समूह है, जो पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन करता है। बशर भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। अलावी सहित कई धार्मिक एवं जातीय समूह अल-शरा पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए उनका विरोध करते हैं। यही कारण है कि दोनों समूहों के विद्रोही आमने-सामने हैं।

सीरिया वॉर मॉनिटर का दावा किया है कि इन झड़पों में लगभग 1,500 लोग मारे गए हैं। ब्रिटेन के मानवाधिकार संगठन ‘सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स’ ने 9 मार्च 2025 चौंकाने वाला आँकड़ा जारी किया। इसमें 745 नागरिकों के अलावा 125 सरकारी सैनिक और असद के वफादार 148 लड़ाके भी मारे गए हैं। ये हिंसा गुरुवार (6 मार्च 2025) से शुरू हुई और अब तक थमने का नाम नहीं ले रही।

फिर से क्यों सुलग रहा है सीरिया

रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये सब तब शुरू हुआ जब गुरुवार (6 मार्च 2025) को तटीय शहर जबलेह के पास सुरक्षा बल एक भगौड़े अपराधी को पकड़ने पहुँचे, लेकिन इस दौरान उन पर कथित तौर पर असद के समर्थकों ने घात लगाकर हमला कर दिया। इसके बाद हालात बेकाबू हो गए। नई सरकार का कहना है कि वो असद के बचे हुए लड़ाकों के हमलों का जवाब दे रही है। हालाँकि झड़पें बदले की कार्रवाई में बदल गईं।

सुन्नी लड़ाकों ने 7 मार्च को अलावी गाँवों और कस्बों में घुसकर लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। अलावी समुदाय के ज्यादातर पुरुषों को सड़कों पर या उनके घरों के बाहर ही गोली मार दी गई। कई जगहों पर घरों को लूटा गया और फिर आग के हवाले कर दिया गया। महिलाओं को नंगा करके सड़क पर घुमाया गया। बनियास जैसे शहरों में हालात इतने खराब हैं कि सड़कों पर शव बिखरे पड़े रहे।

हयात तहरीर अल-शाम के लिए मुसीबत

ये हिंसा उस गुट ‘हयात तहरीर अल-शाम’ (HTS) के लिए बड़ा झटका है, जिसने असद को हटाकर सत्ता हासिल की थी। HTS के नेतृत्व में विद्रोही समूहों ने दमिश्क पर कब्जा किया था, लेकिन अब उनके सामने अपने ही देश को संभालने की चुनौती है। अलावी समुदाय के खिलाफ ये हमले सीरिया में गहरी धार्मिक और जातीय दरार को दिखाते हैं। अगर ये हालात काबू में नहीं आए, तो ये हिंसा और खतरनाक रूप ले सकती है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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