Sunday, May 19, 2024

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मीडिया गिरोह

‘मंदिर के भगवान को बीच सड़क पर रख कर जूते से मारो’ – आसिफा गैंगरेप को हिंदुत्व से जोड़ने की कोशिश में पत्रकार

कठुआ की नाबालिग आसिफा के गैंगरेप को हिंदुत्व से जबरदस्ती जोड़ने की एक और कोशिश। कुख्यात पत्रकार प्रशांत कनौजिया ने इसके लिए मंदिर और देवता को..

सुशांत जब भी सेक्स करता है… कतरा-कतरा कर उनको मारा गया है: कंगना रनौत ने बताया मीडिया ने कैसे की लिंचिंग

कंगना रनौत का एक वीडियो सामने आया है। इसमें वह मीडिया रिपोर्टों का हवाला देकर बता रही हैं कि कैसे सुशांत सिंह राजपूत की मीडिया ने मूवी माफिया की शह पर लिंचिंग की।

‘स्क्रॉल’ पत्रकार सुप्र‌िया शर्मा के खिलाफ वाराणसी में FIR, ‘भुखमरी’ को लेकर प्रकाशित की थी फ़ेक न्यूज़

FIR में माला देवी ने कहा है कि वह किसी के घर में काम नहीं करती हैं, और 'स्क्रॉल' की पत्रकार ने उनकी टिप्पणियों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है।

इस्लामी कट्टरपंथियों के बाद ऑल्टन्यूज ‘फैक्टचेक’ के बहाने चीनी प्रोपेगेंडा को क्यों दे रहा है बढ़ावा

ऑल्टन्यूज़ को चीनी सैनिकों के घायल होने या उनके मारे जाने की खबरें ज्यादा पसंद नहीं आईं और उन्होंने इसका भी फैक्ट चेक करते हुए भारतीय मीडिया को फर्जी साबित करने का प्रयास किया है।

‘सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की जाँच क्यों?’ राजदीप के सवाल पर IPS अधिकारी ने याद दिलाया कानून, सुनते ही पलटे

सुशांत सिंह राजपूत के शव का पोस्टमॉर्टम के बाद आत्महत्या मामले में मुंबई पुलिस ने जाँच शुरू की लेकिन राजदीप सरदेसाई को ये रास नहीं आया।

अमरोहा में दलित हत्या पर छाती पीटने वाले जौनपुर में दलितों के गाँव फूँके जाने पर चुप क्यों हैं?

क्या दलितों की पीड़ा की बात तभी की जाएगी जब आरोपित सवर्ण हों? आरोपित समुदाय विशेष के होंगे तो पीड़ितों का दलित होना भूला दिया जाएगा?

मुस्लिम असलम का अपराध हिन्दुओं के नाम: आजतक समेत मेन्स्ट्रीम मीडिया ने नाम छुपाया, गलत शब्द लिखे

बहुत ही बारीकी से कभी प्रतीकात्मक तस्वीर के नाम पर तो कभी सीधे खुल्ले में खेलते हैं कि कौन सी जनता जा रही है तहकीकात करने? अगर बाद में पता भी चला तो क्या हो जाएगा? क्योंकि आजतक कभी इन्हें अपनी इन हरकतों पर कोई बड़ा आउटरेज नहीं झेलना पड़ा।

प्रिय वामपंथियो! अपनी खून की प्यास को सही ठहराने के लिए माँ के गर्भ का ‘इस्तेमाल’ बंद करो

आखिर क्यों न किया जाए सफूरा से सवाल? दिल्ली दंगे क्या कोई फिल्मी सीन था, जिन्हें स्मृतियों से डिलीट कर दें? या कोई काल्पनिक घटना थी, जिसे...

तबरेज हो या अखलाक, जैनब जैसों को दो पैसा फर्क नहीं पड़ता, सारा ज्ञान वामपंथी विचार के लिए है

ज़ैनब सिकंदर एक लाइन का कुछ लिखें या हजार शब्दों का कुछ लिखें, उसका एक ही मकसद है अपनी हिन्दूघृणा को साकार रूप देना और अपने 'मजहबी टार' को अपनी कल्पनाओं के साहित्य से सींचना।

न्यूजलॉन्ड्री का पाक प्रेम: पाकिस्तानी पत्रकार को किया हमदर्दी भरा व्हाट्सएप्प… जो हमारे हाथ लग गया

न्यूजलॉन्ड्री का पाकिस्तान के पत्रकार से ऐसे सवाल पूछना कि क्या ‘घृणा फैलाने के लिए’ वो पैसे लेकर ऐसी करती हैं, विचित्र सोच का परिचायक है।

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