पकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों का बचाव करते हुए भारतीय सेना के खिलाफ जहर उगला है। गौरतलब है कि हाल ही में कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में तीन आतंकियों को मार गिराया है। इस मुठभेड़ में सात पत्थरबाज़ भी ज़ख़्मी हो गए जिन्हें बाद में अस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया। मारे गए आतंकियों में सेना की नौकरी छोड़कर आतंकी बना जहूर ठोकर भी शामिल था। इस घटना पर ट्वीट करते हुए इमरान खान ने कहा:
“मै भारत के कब्जे वाले कश्मीर में भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा कश्मीरी नागरिकों के मारे जाने की कड़ी निंदा करते हूँ। हिंसा और हत्याएं नहीं बल्कि केवल संवाद द्वारा ही इस संघर्ष का हल निकाला जा सकता है। हम भारतीय कब्जे वाले कश्मीर में भारत द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के विषय को उठाएंगे और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् से मांग करेंगे कि वह कश्मीर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करे।”
Strongly condemn killing of innocent Kashmiri civilians in Pulwama IOK by Indian security forces. Only dialogue & not violence & killings will resolve this conflict. We will raise issue of India's human rights violations in IOK & demand UNSC fulfil its J&K plebiscite commitment
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) December 16, 2018
सबसे पहले ये जान लेना जरूरी है कि ऐसा उन्होंने कश्मीरी आतंकियों और पत्थरबाजों का बचाव करते हुए कहा है। मुठभेड़ में मारा गया जहूर अहमद एक कुख्यात आतंकी था जिसकी कई दिनों से पुलिस तालाश कर रही थी। इस साल कश्मीर में 230 से भी ज्यादा आतंकी मारे गये हैं, ऐसे में पकिस्तान की बौखलाहट का कारण समझा जा सकता है।
यहाँ सबसे पहले पाक पीएम इमरान खान के सुरक्षा परिषद के कश्मीर रिजोल्यूशन को लेकर कही गई बात की पड़ताल करते हैं। उपर्युक्त ट्वीट से आफ है कि इमरान खान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से ये अपेक्षा रखते हैं कि वह कश्मीर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करे। लेकिन यहाँ पर वो ये भूल जाते है कि अप्रैल 1948 में सुरक्षा परिषद् द्वारा कश्मीर समस्या को लेकर स्वीकृत किये गए प्रस्ताव 47 में क्या कहा गया था। इस प्रस्ताव में कश्मीर समस्या के समाधान की प्रक्रिया को तीन प्रमुख चरणों में बांटा गया है। इसके पहले चरण में ये साफ़-साफ़ कहा गया है कि सबसे पहले पाकिस्तान कश्मीर में अपनी किसी भी प्रकार की उपस्थिति को ख़तम करे। ऐसे में इमरान खान का ये बयान विरोधाभास भरा प्रतीत होता है क्योंकि जिस सुरक्षा परिसद को वो कश्मीर को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने को कह रहे हैं, असल में उसी सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव पर अमल करने में वो नाकाम रहे हैं।
इस प्रस्ताव में सुझाई गई प्रक्रिया का दूसरा चरण है भारत द्वारा धीरे-धीरे कश्मीर में तैनात अपने सेना के जवानों की संख्या में कमी लाना। लेकिन ये तभी संभव है जब पकिस्तान पहले चरण पर पूरी तरह अमल करे और सीमा पार से घुसपैठ करने वाले आतंकियों की संख्या में कमी आये। बता दें कि पाकिस्तान ने कश्मीर के एक बड़े भाग पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है जिसे वहां “आज़ाद कश्मीर” बुलाया जाता है।
अब इतिहास की बात करते हैं क्योंकि पकिस्तान आज जिस सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को अमल में लाने की बात बार-बार कर रहा है, असल में उसने इस प्रस्ताव को 1948 में अस्वीकार कर दिया था। ये इस बात को दिखाता है कि पकिस्तान अपने ही स्टैंड पर कायम रहने में विफल रहा है और कश्मीर पर समय के हिसाब से पैंतरा बदलने में उसने महारत हासिल कर ली है। ये उस देश की अविश्वसनीयता को दिखाता है जो कभी अपने द्वारा ही पूरी तरह अस्वीकार कर दिए गए प्रस्ताव की आज रट लगाये हुए है। और ये भी जानने वाली बात है कि भारत ने उस समय इस प्रस्ताव को स्वीकार किया था क्योंकि वह भारत ही था जिसने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र तक पहुँचाया था, इस आशा में कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुझाये गए समाधान पर काम किया जाए जिस से घाटी में अमन-चैन बहाल हो। लेकिन पकिस्तान की पैंतरेबाजी के कारण ये निर्णय भारत को ही भारी पड़ गया।
सुरक्षा परिषद से कश्मीर को लेकर उसकी प्रतिबद्धता याद दिलाने वाले इमरान खान से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या वह सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 47 पर अमल करने को तैयार हैं? क्या वो कश्मीर से सभी पाकिस्तानी नागरिकों को हटाने तो तैयार है? और अगर आज वो जिस सुरक्षा परिषद की दुहाई दे रहे हैं, उसके प्रस्ताव को उनके देश ने 1948 में अस्वीकार क्यों कर दिया था? अगर पकिस्तान का कश्मीर को लेकर आज का स्टैंड सही है तो क्या इमरान खान यह मानने को तैयार हैं कि उनके पूर्ववर्तियों ने पकिस्तान को लेकर सही नीति नहीं अपनाई?
इसके अलावे पकिस्तान समय-समय पर कश्मीर में जनमत-संग्रह कराने की भी मांग करता रहा है लेकिन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर इस बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है जो पकिस्तान की दुहरी नीति को पूरी तरह से बेनकाब करता है। इसमें ये बताया गया है कि असल में वो भारत ही था जिसने कश्मीर को लेकर सबसे पहले जनमत-संग्रह कराने की बात की थी। भारत ने 1947, 48 और 1951 में कई बार अपने इस स्टैंड को साफ़ किया था। लेकिन पकिस्तान बार-बार जनमत-संग्रह की बात पर मुकरता रहा। रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि इस बात के कई सबूत हैं कि पकिस्तान ने वो हर-संभव कोशिश की जिस से कश्मीर में जनमत-संग्रह टल सके।
अब उसी पकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान घाटी में जनमत-संग्रह कराने की मांग करते हैं। ये फिर से पकिस्तान की पैंतरेबाजी को बेनकाब करता है। इमरान खान को यह साफ़ करना चाहिए कि कश्मीर को लेकर हर मामले में उनके देश का स्टैंड बदलता क्यों रहता है। और ऐसे में कोई भी अमन और शांति चाहने वाला देश उनपर भरोसा क्यों करे?
वैसे ये पहली बार नहीं है जब इमरान खान ने इस तरह की गलतबयानी की हो। इस से पहले वह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर व्यक्तिगत टिपण्णी करते हुए उन्हें”छोटा आदमी” तक बता चुके हैं।
Disappointed at the arrogant & negative response by India to my call for resumption of the peace dialogue. However, all my life I have come across small men occupying big offices who do not have the vision to see the larger picture.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) September 22, 2018
इसके लगभग एक महीने बाद उन्होंने फिर से भारतीय सेना के खिलाफ जहर उगलते हुए जनमत-संग्रह और सुरक्षा परिषद प्रस्ताव का राग अलापा था और मारे गए आतंकवादियों को “निर्दोष कश्मीरी नागरिक” बताया था।
Strongly condemn the new cycle of killings of innocent Kashmiris in IOK by Indian security forces. It is time India realised it must move to resolve the Kashmir dispute through dialogue in accordance with the UN SC resolutions & the wishes of the Kashmiri people.
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) October 22, 2018
बता दें कि पकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को तालिबान से सहानुभूति रखने और तालिबानी आतंकियों की बार-बार पैरवी करने के कारण “तालिबान खान” भी कहा जाता रहा है। कश्मीरी आतंकियों के साथ साथ वह अमेरिका के ड्रोन हमले में मारे जाने वाले तालिबानी आतंकियों के बचाव में भी अक्सर बयान देते रहे हैं।