Sunday, September 29, 2024
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ABVP ने 6000 LGBT मतदाताओं को जागरूक करने के लिए लखनऊ में चलाया अभियान

चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना व मतदान करना प्रत्येक नागरिक का न केवल अधिकार है बल्कि कर्तव्य भी है। जनता को अपने अधिकारों को लेकर जागरूक करने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने 19 अप्रैल को ‘नेशन फर्स्ट वोटिंग मस्ट’ कार्यक्रम आयोजित किया। इसके तहत परिषद के सदस्यों ने लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। इस अभियान का मुख्य मकसद थर्ड जेंडर के लोगों को वोटिंग के लिए जागरूक करना था।

खबर के अनुसार, लखनऊ में लगभग 6,000 ट्रांसजेंडर रहते हैं, लेकिन उनमें से केवल 150 के पास ही उनके वोटर आईडी कार्ड हैं। लखनऊ किन्नर सोसाइटी की अध्यक्ष पायल का कहना है कि सिस्टम उनके खिलाफ धांधली करता है, जिससे उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है। वो अपने अधिकार से वंचित रह जाते हैं। थर्ड जेंडर को वोट देने का अधिकार तो प्राप्त है, मगर उनके लिए खुद को इस प्रक्रिया में शामिल करना काफी मुश्किल होता है, जिसकी वजह से वो वोट नहीं डाल पाते हैं और अपने अधिकार का उपयोग नहीं कर पाते हैं। इसके लिए पायल ने सरकार से अपील की है कि वोटर आईडी कार्ड बनवाने के तरीकों में बदलाव किया जाए, ताकि ट्रांसजेंडर्स आसानी से, बिना किसी परेशानी के अपने अधिकारों का उपयोग कर सकें।

हालाँकि सरकार ने ट्रांसजेंडर्स के वोट करने के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए साल 2014 में ही एक सकारात्मक कदम उठाते हुए उनके द्वारा किए जाने वाले मतदान के लिए एक नई श्रेणी जोड़ी थी, मगर इसका भी कुछ खास लाभ नहीं दिख रहा है, क्योंकि ट्रांसजेंडर जब भी कभी अपना वोटर कार्ड बनवाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें नगरपालिका द्वारा पहचान पत्र दिखाने के लिए कहा जाता है और इनमें से अधिकांश ट्रांसजेंडर ऐसे हैं, जिन्हें ना तो अपने जन्मस्थान के बारे में पता है और ना ही अपनी जन्मतिथि के बारे में। ऐसे में उनका वोटर कार्ड बनना काफी मुश्किल हो जाता है और यही कारण है कि लखनऊ जैसे शहर में 6000 ट्रांसजेडर्स में से सिर्फ 150 ट्रांसजेंडर्स के पास ही अपने वोटर आईडी कार्ड हैं।

श्री लंका आतंकी हमला: पुलिस ने जारी की संदिग्ध हमलावरों की तस्वीर, महिलाएँ भी शामिल

श्री लंका में हुए बम धमाके ने पूरे विश्व को झकझोर के रख दिया। इस हमले में शुरू में खबर आई थी कि 350 लोगों ने अपनी जान गंवाईं लेकिन ताजा समाचार के अनुसार 253 मृतकों की पहचान हुई है। कुछ लोगों ने इसे न्यूजीलैंड में हुए हमले का बदला बताया। हमले के बाद से ही वहाँ की सुरक्षा एजेंसियाँ हमलावरों की तलाश करने में जुटी हैं। हालाँकि इसकी जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएस ने ली है, लेकिन एजेंसियों को शक हैं कि इसमें वहाँ के स्थानीय संगठन एनटीजे (नेशनल तौहीद जमात) का भी हाथ शामिल हो सकता है। अभी तक वहाँ की पुलिस हमले की जाँच के दौरान 16 लोगों को गिरफ्तार भी कर चुकी है। कल (अप्रैल 25, 2019) को इसी सिलसिले में वहाँ की सीआईडी ने 6 संदिग्धों की तस्वीरें जारी की। इन 6 तस्वीरों में 3 महिलाएँ भी शामिल हैं।

श्री लंका की पुलिस ने इन 6 संदिग्धों को पकड़ने के लिए वहाँ की मीडिया से अपील की है कि वे उन्हें गिरफ्तार करवाने में उनकी मदद करें। साथ ही जनता से भी कहा गया है कि यदि कोई भी जानकारी इन संदिग्धों से जुड़ी उन्हें प्राप्त होती है, तो वे इस बात की जानकारी अवश्य सीआईडी को दें।

पुलिस ने संदिग्धों की सूची में शामिल तीन पुरुषों के नाम की पहचान मोहम्मद इवुहीम सादिक अब्दुल हक, मोहम्मद इवाहिम शैद अब्दुल हक, मोहम्मद कासिम मोहम्मद रिलवान के रूप में की है। वहीं संलिप्तता के संदेह में तीन महिलाओं को फातिमा लतीफ, पुलस्तनी राजेंद्रन उर्फ सारा, अब्दुल कादेर फातिमा कादिर के रूप में पहचाना गया है।

सीआईडी हमले में जारी की गई संदिग्धों की तस्वीर (साभार: स्वराज)

गौरतलब है कि हिरू न्यूज़ ने एक वरिष्ठ CID अधिकारी के हवाले से बताया है कि अब्दुल कादर फातिमा क़ादिया, तौहीद जमात के नेता ज़हरान हाशिम की पत्नी थीं। यह ज़ाहरान हाशिम उन दो संदिग्धों में से एक है, जिसने शांगरी-ला होटल में आत्मघाती बम विस्फोट किया था। वहीं पुलस्थिनी राजेंद्रन उर्फ सारा को काटुवापियतिया सेंट सेबेस्टियन चर्च पर आत्मघाती हमला करने वाले की पत्नी माना जा रहा है।

‘डोम राजा’ भी होंगे प्रस्तावकों में सम्मिलित, PM नरेंद्र मोदी आज बनारस से भरेंगे नामांकन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज (अप्रैल 26, 2019) को लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी के रूप में वाराणसी से अपना नामांकन दाखिल करेंगे। यहाँ उनके प्रस्तावकों में एक अनोखा नाम भी है। मोदी के प्रस्तावकों में दाह संस्कार करने वालों के प्रमुख ‘डोमराजा’ जगदीश चौधरी भी शामिल होंगे। इससे पहले 2014 में महामना मालवीय जी के पोते गिरिधर मालवीय और प्रख्यात संगीतकार छन्नूलाल मिश्र मोदी के प्रस्तावक रह चुके हैं।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक जगदीश का मानना है कि मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने निर्धन और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए कार्य किया है। जगदीश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रस्तावकों में से एक महत्वपूर्ण स्थानीय व्यक्ति होंगे।

मणिकर्णिका घाट पर स्थित अपने निवास स्थान पर ET को दिए साक्षात्कार में जगदीश कहते हैं कि जिस तरह नरेंद्र मोदी ने कार्य किया है उसे देखते हुए उनके आसपास कोई नहीं हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने वाराणसी का जिक्र करते हुए कहा कि घाटों की दिन और रात में सफाई की जा रही है।

साल 2017 में ईटी को दिए एक साक्षात्कार में जगदीश ने मोदी और सपा अध्यक्ष अखिलेख यादव दोनों की जमकर तारीफ़ की थी, लेकिन चुनावों के वक्त वह मोदी का साथ देते नजर आ रहे हैं।

जगदीश का कहना है, “जो कार्य कर रहा है उसी का तो गुणगान करेंगे ना। मोदी के कार्यकाल में देश में बहुत सुधार हुआ है और निर्धन तबके को कई लाभ मिले हैं।”

बता दें जगदीश चौधरी का परिवार कई कई पीढ़ियों से मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार कर रहा है। उन्हें वहाँ का ‘डोम राजा’ भी कहा जाता है। इसके साथ ही उनका परिवार कई गायों को भी पालता है। 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर जगदीश का कहना है कि वाराणसी में मोदी का कोई मुकाबला नहीं है,और मोदी रिकॉर्ड मार्जिन से जीत हासिल करेंगे।

डोम राजा के अनुसार, “मोदी का जादू पूरे शहर में है और उनके खिलाफ किसी उम्मीदवार के लिए संभावना न के बराबर है।” उनका कहना है कि अगर मोदी के ख़िलाफ़ प्रियंका गाँधी चुनावों में उतरती तो प्रियंका के जीतने की संभावना बिलकुल भी नहीं थी। क्योंकि वह एक चेहरा हो सकती हैं लेकिन वाराणसी में मोदी के ख़िलाफ़ लड़ना उनके सामने एक बहुत मुश्किल कार्य होता।

तजिंदर बग्गा और नव-कॉन्ग्रेसी उदित राज में ट्विटर पर तीखी झड़प, याद दिलाए पुराने दिन

कहते हैं समुदाय विशेष में नए-नए पहुँचे लोग अपनी निष्ठा साबित करने के लिए प्याज का अत्यधिक ही सेवन करने लगते हैं। कुछ ऐसा ही मंजर आज ट्विटर पर देखने को मिला जब दलितों के स्वघोषित सर्वश्रेष्ठ नेता डॉ. उदित राज ने भाजपा को बुरा भला कहना शुरू कर दिया। उदित राज अभी-अभी भाजपा छोड़कर (घोषित रूप से, टिकट न मिलने की नाराजगी के कारण) कॉन्ग्रेस में शामिल हुए हैं, और इसलिए जाहिर तौर पर उनके लिए जरूरी था कि वे कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के प्रति ‘स्वामिभक्ति’ साबित करें- जो कि कॉन्ग्रेस के सुप्रीमो कल्चर का हिस्सा है।

मोदी और भाजपा को, जिनके साथ वह खाली एक हफ्ते पहले तक इस हद तक खड़े थे कि नाम में भी चौकीदार लगा लिया था, गरियाने में राहुल गाँधी के प्रति स्वामिभक्ति दिखाने के साथ-साथ उदित राज ने खुद को भी अवसरवादी नहीं बल्कि बलिदानी और कमजोरों का मसीहा दिखाने की कोशिश की। पर उद्यमी और दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तजिंदर पाल सिंह बग्गा ने उनकी कोशिश पर तीखा तंज कस दिया।

तिलमिलाए उदित राज ने उन्हें छोटा मुँह बड़ी बात कहने वाला कहने के साथ यह जताने की भी कोशिश की कि जब भाजपा में बग्गा की कोई सुनवाई नहीं थी, तब उदित राज ने उन्हें ‘सहारा’ दिया था। यानि फिर से खुद को बग्गा की ‘गद्दारी’ का पीड़ित दिखाने की कोशिश। (जोकि अपने आप में हास्यास्पद है, यह देखते हुए कि खुद उदित राज ने एक टिकट कटते ही भाजपा को गच्चा दे दिया)

बग्गा भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने भी उदित राज को कुछ पुराने दिन याद दिला दिए…

सोशल मीडिया ने लेने शुरू किए मजे

इस बीच सोशल मीडिया यूजर्स ने भी डॉ. उदित राज के मजे लेने शुरू कर दिए।

एक ने लिखा:

इसी बीच किसी ने उनके ही पुराने tweet उठा कर स्क्रीनशॉट चिपकाने शुरू कर दिए, जिनमें उदित राज ने कॉन्ग्रेस की घनघोर आलोचना की थी।

वाराणसी से PM मोदी के ख़िलाफ़ प्रियंका गाँधी को मैदान में ना उतारने पर ‘न्यूट्रल’ मीडिया ने बदला पाला

28 मार्च को कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रियंका गाँधी से रायबरेली से चुनाव लड़ने के संबंध में सवाल पूछा था, जो कि उनकी माँ का गढ़ है। उस समय, प्रियंका गाँधी वाड्रा ने जवाब दिया था – ‘वाराणसी क्यों नहीं’? लगभग एक महीने के अंतराल के बाद, कॉन्ग्रेस ने वाराणसी से अजय राय को प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ मैदान में उतारने का फ़ैसला किया है और इस फ़ैसले पर ‘न्यूट्रल’ मीडिया अपनी नाराज़गी को नहीं रोक पा रहा है।

कॉन्ग्रेस द्वारा अजय राय की उम्मीदवारी घोषित होने से पता चलता है कि कॉन्ग्रेसी खेमे में उम्मीदवारों की कितनी किल्लत है। प्रियंका गाँधी, जिन्होंने कभी महिलाओं का उद्धार करने का बीड़ा उठाया था, असल में वो चुनावी मैदान से दूरी बनाती दिख रही हैं। क्षेत्र की महिलाओं के विकास करने का मुद्दा उठाने वाली प्रियंका का मोदी के ख़िलाफ़ न खड़ा होना इस बात का संकेत है कि कॉन्ग्रेस अपनी स्वांगरुपी राजनीति का प्रमाण देने में ख़ुद ही सक्षम है।   

बरखा दत्त जो अक्सर बुरहान वानी जैसे आतंकवादियों के साथ सहानुभूति रखती हैं और कश्मीरी पंडित नरसंहार के बहाने नाजी जैसी कहानी कहती हैं। उन्होंने ट्वीट किया कि अगर कॉन्ग्रेस उन्हें मैदान में उतारने के पक्ष में नहीं थी तो प्रियंका को वाराणसी से लड़ने की इच्छा नहीं जतानी चाहिए थी। हम प्रियंका के दर्द को समझते हैं, आख़िरकार, एक बार आशा बन जाने के बाद जब वो टूट जाती है तो वाकई दिल को चोट पहुँचती है।

अभिसार शर्मा, जो कॉन्ग्रेस के वफ़ादार पत्रकारों में से एक थे, उन्होंने भी अपना ग़ुस्सा कॉन्ग्रेस पार्टी पर उतारा। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, “डरपोक.. क्या भस्मासुरी पार्टी है! कोई विज़न नहीं है। कोई साहस नहीं।
राहुल के पास न तो कोई अधिकार ही है और न ही क्षेत्रीय तानाशाह उनकी बात सुनते हैं।

हरिंदर बावेजा ने प्रियंका गाँधी पर तीखा प्रहार करते हुए लिखा कि यह उन लोगों की मूर्खता थी जो मानते थे कि @priyankagandhi वाराणसी में @narendramodi के ख़िलाफ़ लड़ेंगी।

बरखा दत्त ने जवाब दिया कि कॉन्ग्रेस ने जो वादा किया था, वो यही था।

पल्लवी घोष ने @priyankagandhi और @RahulGandhi के केट में सस्पेंस पर सवाल उठाए।

इस सब के बाद, निखिल वागले ने ट्वीट किया कि @RahulGandhi को महान सेनानियों के जीवन की कहानियों का अध्ययन करना चाहिए। खेल, कला, संगीत, राजनीति, उद्योग…. तब उन्हें एहसास होगा कि कैसे सभी ने एक सही समय पर जोख़िम उठाया और बहुत से सलाहकारों की बात नहीं मानी। इसके लिए वो मोदी से भी सीख सकते हैं!

कॉन्ग्रेस के इस फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बचाव करने के मूड में रिफ़त जावेद ने प्रियंका गाँधी को बहादुरी के तमगे से नवाज़ने का काम किया।

शिवम विज ने गाँधी से बेहतर केजरीवाल को बताया।

संकर्षण ठाकुर ने मूल रूप से कॉन्ग्रेस भी मोदी के ख़िलाफ़ एक प्रतीकात्मक लड़ाई नहीं करना चाहती है; वाराणसी में अजय राय की तुलना में उनसे अधिक थका हुआ और परखा हुआ कोई दूसरा नहीं है।

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर राजदीप सरदेसाई भी अपनी राय रखने से नहीं चूके। उन्होंने ट्वीट किया कि आख़िरकार @priyankagandhi के वाराणसी से चुनाव न लड़ने की तस्वीर साफ़ हो ही गई।

अब यह तस्वीर साफ़ हो चली है कि कॉन्ग्रेस के हिमायती रही वफ़ादार मीडिया ने किस तरह से प्रियंका गाँधी वाड्रा को एक हमदर्द और रक्षक के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने का काम किया था। उन्हें उम्मीद थी कि प्रियंका गाँधी वाड्रा उनकी रक्षक होंगी। और इसीलिए उन्होंने भाई-बहन (राहुल-प्रियंका) की जोड़ी को मसीहा के रूप में प्रचारित करने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें यह एहसास हो चला है कि वो अब तक किसी हारने वाले घोड़े पर ही दाँव लगाते रहे।

नुपुर शर्मा के मूल अंग्रेजी लेख का अनुवाद प्रीति कमल ने किया है।

श्री लंका: गर्भवती फातिमा ने खुद को बच्चों सहित उड़ाया

श्री लंका को जेहादी झटके लगने बंद नहीं हो रहे हैं। ईस्टर के बम धमाकों में मरने वालों की बढ़ती संख्या के बीच आत्मघाती हमलावरों में से एक की गर्भवती बीवी ने गिरफ़्तारी से बचने के लिए खुद को बम से उड़ा लिया। वह भी अपने दो बच्चों के साथ। उसके इस हमले में श्री लंका पुलिस के तीन अफसरों को भी अपनी जान गँवानी पड़ी है। वह तीनों आत्मघाती हमलावरों में से दो भाइयों के घर छापा मारने पहुँचे श्री लंका पुलिस के दल का हिस्सा थे।

इंसाफ-इल्हाम इब्राहीम थे धमाकों के मास्टरमाइंड

अब तक आई ख़बरों के मुताबिक श्री लंका में मसालों और ताँबे का व्यापार करने वाले व्यापारी घराने के ये दो भाई ‘गरीब/अनपढ़’ आतंकवादी की छवि के बिलकुल उलट थे। इनमें से इल्हाम तो खुल कर अपनी कट्टरता का प्रदर्शन करता था- यहाँ तक कि वह स्थानीय कट्टरपंथी संगठन नेशनल तौहीद जमात की मीटिंगों में खुल कर हिस्सा लेता था। मगर इंसाफ इब्राहीम अपने आपको उदारवादी दिखाता था। अपने ताँबा कारखाने के कर्मचारियों और अन्य गरीब लोगों की भी भरपूर मदद करता था। धमाकों के केंद्रबिंदु माने जा रहे इन भाइयों के पिता मोहम्मद इब्राहीम को श्री लंका पुलिस ने पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया है।

‘नैरेटिव-बाजी’ से बाज नहीं आ रहा मीडिया  

चरम-वामपंथी वैचारिकता से ग्रसित मुख्यधारा का मीडिया यहाँ भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। श्री लंका धमाकों के मृतकों, घायलों और पीड़ितों की बजाय वह लोगों का ध्यान बाँटने के लिए मुद्दे खोज रहा है। आप किसी भी मुख्यधारा के मीडियाहाउस की कवरेज खोल कर पढ़ेंगे तो लंबे-चौड़े लेखों में शायद 40% भी पीड़ितों के लिए नहीं छोड़ा है। उनके लेख धमाकों की सोशियोलोजी नापने, धमाकों के बाद ‘लोगों के गुस्से से सहमे (बेचारे?) मुस्लिम समाज’ के प्रति सहानुभूति जताने, इन हमलों की गंभीरता कम कर के दिखाने जैसे मुद्दों से भरे पड़े हैं। यहाँ तक कि और कुछ नहीं मिल रहा तो यही शिगूफा छेड़ा जा रहा है कि कैसे श्री लंका में लगे आपातकाल से वहाँ ‘नागरिक अधिकारों के हनन की संभावना’ है।

शासन का ‘नमो’काल: 2014 में प्रधान सेवक से 2019 तक चौकीदार बनने की यात्रा

पूर्ण बहुमत की सरकार को पाँच साल पूरा हुआ। इन पाँच वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधान सेवक से चौकीदार तक की यात्रा तय की है। ऐसे में उस समय की कुछ मजेदार बातें याद आती हैं जब नरेंद्र मोदी भाजपा की तरफ से लोकसभा के प्रत्याशी बनाए गए थे। सन 2014 जैसा चुनाव का मौसम मैंने कभी नहीं देखा था। और यदि बड़े-बूढ़ों की मानें तो इंदिरा गाँधी के बाद देश ने भी किसी नेता के प्रति ऐसी दीवानगी पहली बार देखी थी। वह दिन था 24 अप्रैल 2014 जब नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा सीट से नामांकन भरा था।

आम चुनाव के उस मौसम में बनारस मीडिया वालों से अटा पड़ा था। सड़कों पर केवल बड़े-बड़े ओबी वैन दिखाई पड़ते थे और उनसे भी बड़े पत्रकार यूँ ही टहलते मिल जाते थे। नगर में सड़कों की वास्तविक चौड़ाई नज़र आने लगी थी। एक न्यूज़ चैनल का ड्रोन कैमरा देख कर कुछ लोग छोटा हेलीकॉप्टर समझ रहे थे। चौराहे के आसपास ‘मोदी’ चाय के साथ ‘मोदी’ लस्सी भी बिक रही थी। न जाने कितने वर्षों के बाद किसी भावी प्रधानमंत्री ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सामने खड़े महामना के सामने शीश झुकाया था।

सन 2014 में देश में एक करिश्माई व्यक्तित्व उभरा था। बनारस से बहुत दूर गुजरात में। मज़बूत कद काठी और दमदार जन संवाद की शैली उस व्यक्ति की विशेषता थी। वह एक बेहद शक्तिशाली इंसान था। बनारस आने पर उन्होंने कहा था, “सोमनाथ की धरती से विश्वनाथ की धरती पर आया हूँ।” यह ताक़त उधार की नहीं थी। मेरी समझ से नरेंद्र मोदी अंतःकरण से शक्तिशाली हैं। उन्हें नियंत्रण, संकर्षण और समर्पण में नियमन के साथ संतुलन कैसे और कितना रखना है इसका भरपूर ज्ञान है।

पाँच वर्ष पहले नरेंद्र मोदी के चुनावी नामांकन वाले दिन स्थिति ऐसी थी कि जिस चौराहे से विवेकानंद की मूर्ति तक जाने में साधारण ट्रैफिक में मात्र पाँच मिनट लगते हैं उस दूरी को तय करने में मोदी के काफिले को 2 घंटे से अधिक समय लगा था। शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के परिवारवालों को नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बनने का निमंत्रण दिया गया था जिसे उस समय उस्ताद के पुत्र और पोते द्वारा ठुकरा दिया गया था। इसके बाद महामना मालवीय जी के पोते गिरिधर मालवीय और प्रख्यात संगीतकार छन्नूलाल मिश्र नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक बने थे। शायद इस वर्ष उस्ताद के पोते और बेटे को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने इस बार ‘प्रधानमंत्री’ नरेंद्र मोदी का प्रस्तावक बनने की इच्छा जताई है।   

नरेंद्र मोदी द्वारा नामांकन भरने के बाद राहुल गाँधी बनारस में रोड शो करने आए थे तब एक हास्यास्पद बात हुई। अस्सी क्षेत्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता मोहन प्रकाश का पुश्तैनी घर है। राहुल का छोटा सा रेला उधर से गुजरने वाला था। रोड शो से एक दिन पहले मोहन प्रकाश के घर से 10 घर आगे और 10 घर पीछे हर घर में कॉन्ग्रेस का झंडा लगा दिया गया था। मजेदार बात यह थी पूरे शहर में सिर्फ यही 20-21 घर थे जहाँ खाँटी भाजपाई वोटरों के घरों पर कॉन्ग्रेस का झंडा लगा था। राहुल के जाने के बाद लोगों ने अगले दिन फिर से भाजपा का झंडा लगा लिया था।

वाराणसी में प्रत्याशी के रूप में नामांकन भरने के बाद चुनाव जीतकर जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए जो उन्हें विशिष्ट बनाते हैं। एक बार प्रधानमंत्री ने संसद की कैंटीन में खाना खाया और ₹29 स्वयं अपनी जेब से भुगतान किया। ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो उन्हें कुछ अलग बनाती हैं। पुराने ज़माने में अटल जी जैसे नेता और सांसद अपने निवास से संसद तक पैदल चल कर चले जाते थे और ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती थी। लेकिन आज के समय में कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने के बाद जब पहली बार संसद जाए और चौखट पर शीश नवाए तो यह कोई छोटी बात नहीं समझी जानी चाहिए। हमारी पीढ़ी के कुछ लोग आश्चर्यचकित रह गए थे जब नरेंद्र मोदी ने संसद की दहलीज पर सर झुका कर भारत के प्रजातंत्र को नमन किया था।   

जिस दिन नरेंद्र मोदी को सांसद दल का नेता चुना जाना था उस दिन अपने भाषण में उन्होंने दक्षिण की किसी पार्टी के एक सांसद की पत्नी के काम को बहुत सराहा था। उस पार्टी का नाम तक किसी ने नहीं सुना था और राजग (NDA) में उस पार्टी का एक ही सांसद है। जहाँ गठबंधन में 315 से अधिक का आँकड़ा हो वहाँ एक के काम को महत्व देना बड़ी बात थी। इसके अलावा उसी दिन नरेंद्र मोदी ने 5000 चुनावी रैलियों में से एक रैली को याद किया जो नहीं हो सकी थी क्योंकि भाजपा के किसी स्थानीय जिला अध्यक्ष की मृत्यु हो गयी थी। अपने संगठन में नीचे से ऊपर तक सबकी खबर रखना नरेंद्र मोदी की कई खूबियों में से एक है।

जब नरेंद्र मोदी अस्सी घाट की सफाई करने बनारस आये थे तो जिस सहजता से उन्होंने एनजीओ के मालिक से बात की थी वह देख कर शहर के लोग आश्चर्य में पड़ गए थे। दूसरी बार प्रधानमंत्री ने बड़ी तन्मयता से फावड़ा चला कर कई मिनट तक सफाई की थी। उनके बगल में खड़ा बनारस का मेयर काठ की तरह खड़ा था। उन्होंने उससे मिट्टी हटाने को कहा तब उसने फावड़ा उठाया। उसके बाद नरेंद्र मोदी आए तो अस्सी पर ही एक गली की बहुत दूर तक सफाई की थी। बाहरी लोग नहीं जानते हैं उस गली में लोग पेशाब करते थे।

उस दिन मुझे अपने नगर के लोगों पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई थी। एक बार अपनी वाराणसी यात्रा में नरेंद्र मोदी माता आनंदमयी अस्पताल गए थे जो बहुत छोटा सा अस्पताल है। वहाँ ₹10-20 में अच्छे डॉक्टर मिल जाते हैं। वह कोई नामी गिरामी आधुनिक सुविधाओं युक्त बड़ा अस्पताल नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी वहाँ इसलिए गए थे क्योंकि कई साल पहले एक बार किसी क्षेत्र में संघ के प्रचारक के तौर पर जब उन्हें और उनके साथियों को बड़ी भूख लगी थी तब माता आनंदमयी के आश्रम में उन्हें भोजन मिला था। इतने बड़े पद पर पहुँच कर इतनी पुरानी बात याद रखना अचंभे में डालती है।

नवंबर 2014 में सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत गाँव को गोद लेने जब प्रधानमंत्री वाराणसी के जयापुर गाँव गए थे तो उन्होंने गाँव की ग्राम प्रधान के लिए स्वयं उठकर माइक नीचे कर दिया था और वो भी बहुत सहज भाव से। ध्यान रहे की ग्राम प्रधान भारतीय शासन व्यवस्था में सबसे नीचे का पद होता है और प्रधानमंत्री सबसे ऊंचा ओहदा। यानी शासन व्यवस्था (Governance) में सबसे ऊँचे पद पर बैठे व्यक्ति का समन्वय सबसे निचले स्तर पर बैठे व्यक्ति से इस तरह से हो सकता है यह दिखाकर नरेंद्र मोदी ने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया था। उस महिला ग्राम प्रधान ने बाद में कहा की मैं इस दिन को जीवन भर नहीं भूल सकती।

2014 चुनाव से पहले लोग कहते थे कि नरेंद्र मोदी आएगा तो मुस्लिमों का जीना दूभर हो जाएगा। मुझे याद है मार्च 2017 में जब बनारस में रोड शो हुआ था तब प्रधानमंत्री ने मुस्लिम मोहल्ले में अपना काफिला रुकवाकर एक व्यक्ति से द्वारा दिया गया शॉल स्वीकार किया और उसे माथे पर रखा था। दाउदी बोहरा समुदाय हो या साईं बाबा को मानने वाले, सभी की आस्था को एक आदर्श नेता और स्टेट्समैन की भाँति नरेंद्र मोदी ने सर माथे लगाया।  

नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में भारत के लोगों को ही नहीं विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को भी गले लगाया है। वो चाहे ओबामा हों, पुतिन, शिंज़ो आबे या बेन्जामिन नेतान्याहू। यह वही नरेंद्र मोदी थे जिन्हें कॉन्ग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा था कि उन्हें जिओपॉलिटिक्स, डिप्लोमेसी और अंतरराष्ट्रीय राजनीति की समझ नहीं है। पिछले महीने (मार्च 2019) ही इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने वॉशिंगटन में दिए अपने व्याख्यान में इस्राएल की तकनीक के गुण गाए और नरेंद्र मोदी को अपना ‘मित्र’ संबोधित करते हुए कहा कि आज गुजरात के किसानों के खेतों की पैदावार में इस्राएली तकनीक के कारण उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

लगभग हर महत्वपूर्ण देश में जाकर मोदी ने प्रवासी भारतवासियों से भारत माता की जय के नारे लगवाकर सॉफ्ट डिप्लोमेसी का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया। जब हम भारत में टीवी के सामने बैठकर प्रवासी भारतीयों को मातृभूमि की जय बोलते सुनते थे तो सहसा विश्वास नहीं होता था। यह अकल्पनीय बात थी क्योंकि भारत के आर्थिक-राजनैतिक तंत्र ने हमें हमेशा ही ‘अमेरिकन ड्रीम’ को जीना सिखाया था। नरेंद्र मोदी ने एक झटके में उसे एक ‘ग्रेट इंडियन ड्रीम’ में परिवर्तित कर दिया था।

एक प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की पाकिस्तान नीति राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही, जनता की सोच में भी ऐसा परिवर्तन हुआ जो कई दशकों से नहीं देखा गया था। पाकिस्तान पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के विकल्प अटल जी और मनमोहन सिंह के समय भी थे। किसी चीज की कमी थी तो वह था ‘नेशनल कनसेन्सस।’ किसी भी मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति होना आवश्यक है जो किसी भी सरकार से वह करवा सकती है जो अन्यथा संभव नहीं होता।

यही लोकतंत्र की शक्ति है। नरेंद्र मोदी ने इस शक्ति को पहचाना और जनता के आक्रोश को सेना के मनोबल में बदल दिया। जब कन्हैया कुमार ने सेना पर लांछन लगाए थे तब सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी डीपी में सेना के चित्र लगाकर जवाब दिया था। लेकिन जब एयर स्ट्राइक की गई तब जनता ने वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल का चित्र लगाकर पाकिस्तान पर की गई दंडात्मक कार्यवाही का स्वागत किया। यह अनोखा बदलाव था क्योंकि देश ने 1971 के बाद वायुसेना का पराक्रम देखा ही नहीं था। एयर स्ट्राइक ने देश को वायुसेना से अभिनंदन नामक एक हीरो दिया।   

नरेंद्र मोदी कार्यकाल की आलोचना, विवेचना अपनी जगह है। देश के विकास की योजनाओं का मूल्यांकन भी समय करेगा ही लेकिन नरेंद्र मोदी ने देश के जनमानस के मन पर एक छाप जरुर छोड़ी है। भविष्य में जब कभी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे तब लोग इतना ज़रूर कहेंगे की शासन तंत्र के तंतुओं को अलग तरीके से बुनने वाला एक ऐसा नेता भी था।

J&K के किश्तवाड़ में तिरंगा फहराने के लिए भारतीय छात्रों को करना पड़ रहा है आन्दोलन

जम्मू-कश्मीर राज्य भारत-विरोधी ताकतों के चंगुल में किस कदर फँसता चला जा रहा है, इसका जीता-जागता उदाहरण किसी को देखना हो तो जम्मू के किश्तवाड़ में चले जाना चाहिए। सरकारी डिग्री कॉलेज में छात्रों को देश का राष्ट्रीय झंडा फहराने के लिए आंदोलनरत होना पड़ रहा है। एएनआई के ट्वीट के मुताबिक छात्रों ने उन्हें पत्र लिखकर दो दिन के भीतर झंडा फहराए जाने की माँग की। इसपर उन्होंने कहा कि ‘नियमों के दायरे के भीतर’ इसके लिए कार्रवाई की जाएगी। सवाल है कि देश के अन्दर राष्ट्रीय झंडा फहराने के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता ही क्यों हो?

‘बाहरी लोग’ लगा रहे ‘आग’, पुलिस से कर दी है शिकायत: प्रिंसिपल

इस बीच कॉलेज के प्रिंसिपल पवन कुमार ने यह भी कहा कि भारत का झंडा फहराने की माँग की घटना पहली बार हो रही है। उन्हें यह माँग लिखित में दो दिन पहले मंगलवार को ही प्राप्त हो गई थी। बुधवार को हुए विरोध प्रदर्शन के बारे में उनका आरोप है कि यह कुछ बाहरियों का काम है, जो छात्रों को भड़का रहे हैं, उन्होंने यह भी जोड़ा कि उन्होंने पुलिस को बाहरियों को यथासंभव ढूँढ़ निकालने के लिए इत्तला दे दी है

कुटाई की खबरों के बाद लौटा ‘आत्ममुग्ध बौना’, लोगों ने ‘जग्गा जासूस’ बनकर तलाशे घूँसों के निशान

आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल काफी दिनों से गायब चलने के बाद आज लोकसभा चुनाव 2019 के लिए आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र रिलीज करते हुए नजर आए। अरविन्द केजरीवाल कुछ दिनों से गायब चल रहे थे, यहाँ तक कि वो अपने ही पार्टी के नेताओं के नामांकन के दौरान भी नदारद रहे।

2 दिन पहले ही सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी के बागी विधायक द्वारा यह खबर भी वायरल की गई थी कि आम आदमी पार्टी के विधायकों ने अपनी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल का लप्पड़ और घूँसों से मार-मारकर मोर बना डाला।

हालाँकि, इस दावे की वास्तविकता की अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है, फिर भी ट्विटर यूज़र्स ने ये जिम्मेदारी अपने कन्धों पर लेते हुए खुद जानने की कोशिश की है कि अरविन्द केजरीवाल के चेहरे पर मार-पीट के निशान हैं या नहीं? सोशल मीडिया यूज़र्स ने लिखा है कि केजरीवाल की नाक पकौड़े जैसी फूली-फूली लग रही है और सूजी हुई नजर आ रही है, इसका मतलब है कि सच में उन्हें तबीयत से कूटा गया है।

एक अन्य ट्विटर यूज़र ने केजरीवाल की ‘पहले और बाद’ (Before and After Images) की तस्वीरों के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया है कि जब अरविन्द केजरीवाल गायब हुए, उस दिन वो कैसे दिख रहे थे और वापस दोबारा नजर आने पर वो कैसे दिख रहे हैं।

ट्विटर यूज़र्स इतने पर ही नहीं रुके, एक कदम आगे जाते हुए उन्होंने आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल के चश्मे तक की समीक्षा कर डाली और बताया कि उनके चश्मे का फ्रेम बदला-बदला नजर आ रहा है। इसके साथ उन्होंने आशंका जताई कि शायद चेहरे पर मुक्का पड़ने के कारण उनका चश्मा टूटा हो, जैसा कि AAP विधायक कपिल शर्मा ने दावा किया था।

वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने अरविन्द केजरीवाल जी के वापस सकुशल नजर आने पर ख़ुशी प्रकट की है। अभी तक भी अरविन्द केजरीवाल के साथ हुई इस कथित मार-कुटाई की घोषणा नहीं हुई है लेकिन, मीडिया और चर्चा से अचानक से उनके गायब हो जाने की वजह से उनके समर्थकों को उनकी चिंता जरूर थी।

स्पष्टीकरण होना अभी बाकी है लेकिन, इस प्रकार की मारपीट की घटनाओं को मजाक के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। भले ही सच्चाई यह है कि सोशल मीडिया पर हर दूसरी खबर लोगों के बीच Fun और मनोरंजन का जरिया बन जाती है।

दुश्मनों से निपटने के लिए आर्मी बनाएगी 4 सुरंगे, रखे जाएँगे गोले-बारूद

कई सालों से आर्मी अपना गोला-बारूद सुरक्षित रखने के लिए सुरंग बनाने की कोशिशों में जुटी हुई थी, जो कि अब जल्द ही बनने वाली है। आर्मी NHPC (नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन) की मदद से ये सुरंग बनाएगी। इस संबंध में गुरुवार (अप्रैल 25,2019) को आर्मी और एनएचपीसी ने एक एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए हैं।

बता दें कि सेना लंबे समय से पाक और चीन बॉर्डर के समीप गोला बारूद रखने के लिए सुरंग तैयार करने के लिए प्रयासरत थी, लेकिन सेना के पास इसे बनाने की विशेषज्ञता नहीं थी। जब टनल बनाने की कोशिशें शुरू हुईं तो कभी सीलन की दिक्कत आई तो कभी सीपेज की। इन परेशानियों को देखते हुए सेना ने तय किया कि वे टनल बनाने में एक्सपर्ट NHPC की योग्यता का इस्तेमाल करेगी।

गत वर्ष इसे लेकर बात शुरू हुई थी, जिसके बाद NHPC ने डिटेल प्रपोजल आर्मी को दिया था। इस प्रपोजल पर ही तय हुआ कि पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 4 टनल बनेंगी। इसके बाद बाकी टनल बनाने पर विचार होगा।

इन सुरंगों का निर्माण भारतीय सेना के ऑपरेशन की तैयारियों के तहत किया जा रहा है जिससे सेना तक हथियार और गोला बारूद पहुँचाने में भी आसानी होगी।

NHPC और आर्मी के बीच जो एमओयू साइन किया गया है उसके अनुसार इन 4 सुरंगों को बनाने की लागत 15 करोड़ रुपए आएगी। नवभारत टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक एक सुरंग जम्मू-कश्मीर (भारत-पाकिस्तान बॉर्डर) पर और अन्य तीन सुरंगे नार्दन बॉर्डर( भारत-चीन बॉर्डर) पर बनाई जाएँगी। प्रत्येक सुरंग में करीब 200 मिट्रिक टन गोला बारूद रखा जाएगा। खबर के मुताबिक ये सुरंग दो साल में पूरी होंगी।

बता दें कि इन सुरंगों के बन जाने से आर्मी को अपना गोला-बारूद रखने की सुरक्षित जगह मिलेगी। साथ ही ये सुरंगे बारूद को दुश्मन की नज़रों से बचाएँगी। दुशमनों के सैटेलाइट भी इसे पकड़ने में अक्षम होंगे।