Tuesday, October 1, 2024
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पश्चिम बंगाल में निर्वाचन अधिकारी लापता, चुनाव आयोग ने की रिपोर्ट तलब

पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के राणाघाट संसदीय क्षेत्र के कृष्णानगर में तैनात ईवीएम-वीवीपैट प्रभारी नोडल अधिकारी पिछले 24 घंटे से लापता हैं। एक अधिकारी ने शुक्रवार (अप्रैल 19, 2019) को इसकी जानकारी दी। राज्य प्रशासनिक सेवा के 2010 बैच के अधिकारी राय राणाघाट लोकसभा क्षेत्र के कृष्णानगर में बतौर नोडल अधिकारी के रूप में ईवीएम एवं वीवीपैट प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।

ख़बर के अनुसार, नदिया के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि 30 वर्षीय अर्णब रॉय नामक अधिकारी चुनाव ड्यूटी के लिए अपने सरकारी आवास से बृहस्पतिवार (18 अप्रैल) की सुबह बिप्रदास चौधरी पॉलिटेक्निक कॉलेज के लिए निकले लेकिन दोपहर बाद से उन्हें नहीं देखा गया। अधिकारी ने बताया कि अर्णब का वाहन कॉलेज के बाहर पार्क किया हुआ पाया गया।

जिला पुलिस के सूत्रों ने बताया कि उनके दोनों मोबाइल फोन बंद हैं और उनकी अंतिम लोकेशन नदिया जिले में शांतिपुर के पास की बताई जा रही है। एक अन्य पुलिस अधिकारी ने कहा कि शांतिपुर के बाद उनकी लोकेशन का पता नहीं चल पाया है क्योंकि वहाँ से उनका फोन बंद आ रहा है।

जिला मजिस्ट्रेट के साथ भी हुआ था कुछ दिन पहले झगड़ा

प्रारंभिक जाँच में यह पता चला है कि रॉय का नदिया के जिला मजिस्ट्रेट सुमित गुप्ता के साथ कुछ दिनों पहले कथित रूप से झगड़ा हुआ था। गुप्ता और रॉय का झगड़ा निर्वाचन के सिलसिले में ड्यूटी को लेकर हुआ था। इस बीच आयोग ने रॉय की जगह नए अधिकारी को तैनात कर दिया है। उल्लेखनीय है कि राणाघाट संसदीय क्षेत्र को तृणमूल कॉन्ग्रेस का गढ़ माना जाता है और वहाँ चौथे चरण में 29 अप्रैल को मतदान होगा।

गुप्ता ने झगड़े की बात से किया मना

गुप्ता से जब इस संबंध में संपर्क किया गया तो उन्होंने रॉय के साथ किसी प्रकार का झगड़ा होने से इनकार किया। गुप्ता ने पीटीआई को बताया, “जिस किसी ने आपको यह सूचना दी है उसने झूठी जानकारी दी है। हमारे बीच कुछ नहीं हुआ था। हमने उनकी तलाश के लिए पहल की है।” विफल खोज अभियान के बाद जिला प्रशासन ने कृष्णानगर कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई है। रॉय की पत्नी ने भी शिकायत दर्ज कराई है।

साध्वी प्रज्ञा को गोमाँस खिलाने वाले, ब्लू फिल्म दिखाने वाले लोग कौन थे?

साध्वी प्रज्ञा को भाजपा द्वारा टिकट दिए जाने के बाद लोकसभा चुनावों की दिशा बदलती हुई नजर आ रही है। भोपाल सीट से साध्वी प्रज्ञा का नाम हर किसी के लिए चौंकाने वाला साबित हुआ है। साध्वी प्रज्ञा मालेगाँव धमाकों में शामिल होने के आरोपों में अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मात्र शक के आधार पर जेल, साजिश और सियासत की यातनाओं में गँवा चुकी हैं। इस बीच अगर कोई चीज लिबरल्स बुद्धिजीवीयों के बीच नदारद मिली है तो वो है साध्वी प्रज्ञा के मानवाधिकार! क्या हिन्दुओं के मानवाधिकार इस सेक्युलर देश में चर्चा का विषय नहीं हैं?

मोदी सरकार के दौरान वॉशरूम के नल में पानी ना होने पर भी नेहरुवियन सभ्यता के दौरान मिले हुए अवार्ड वापस कर देने वाले लोग तब क्यों सोते रहे जब मात्र शक (संभवतया साजिश) के आधार पर एक महिला की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई, उसे लगातार 14 दिन तक पीटा जाता रहा, उसकी ऑक्सीजन सप्लाई बंद कर दी गई और उसे अपने मृतक पिता तक से नहीं मिलने दिया गया?

सोशल मीडिया पर इसके बाद से लगातार साध्वी प्रज्ञा से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं, जिन पर बात करना और ‘प्राइम टाइम’ करना मेनस्ट्रीम मीडिया ने कभी शायद अपनी जिम्मेदारी नहीं समझा। प्रश्न उठता है कि पत्रकारिता के स्वघोषित ऐसे बड़े नाम भी इस इकतरफी यातना के मुद्दे पर चुप किन कारणों से रहे? क्या यही उन पत्रकारों की निष्पक्षता की परिभाषा है, जो उन्हें अपने प्रोपेगेंडा के नाम पर सुबह शाम प्राइम टाइम करवाती है, लेकिन जिन विषयों पर उन्हें ‘बड़ा नाम’ बनाने वाले राज परिवारों पर प्रश्नचिन्ह लगता हो, उन पर वो एकदम खामोश रहने का फैसला लेते हैं?

2014-2015 के दौरान सुदर्शन टीवी द्वारा एक ऑडियो-वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। इस वीडियो में बताया गया है कि पुलिस ने किस प्रकार बिना किसी सबूत प्रज्ञा को हिरासत में लेकर उन पर अमानवीय जुर्म किए। उनके सामने ‘भागवत गीता’ के पन्ने फाड़कर उड़ाए जाते, हिन्दुओं के इस पवित्र ग्रन्थ को पैरों तले कुचला जाता था और साध्वी प्रज्ञा से पूछा जाता था, “क्या तुम्हारे राम तुम्हे बचाने आएँगे?”

साध्वी प्रज्ञा के पिता एक RSS कार्यकर्ता थे, उनकी मृत्यु पर साध्वी प्रज्ञा को उनसे मिलने और आखिरी बार देखने तक की इजाजत नहीं दी गई। पुलिस दल, जिसमें कि हेमंत करकरे भी थे, प्रज्ञा को टॉर्चर करते थे। उन्हें फुटबॉल की गेंद की तरह पीटा जाता था, जिससे उनके फेफड़ों में घाव हो गए।

वीडियो में बताया गया है कि साध्वी प्रज्ञा को इसी हालात में अस्पताल में 3-4 फ्लोर तक चढ़ाया जाता था। उन्हें तरह-तरह के इंजेक्शन दिए जाते रहे, ऑक्सीजन सप्लाई बंद कर दी जाती थी और उन्हें तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता था। लगातार 14 दिन की प्रताड़नाओं के बीच साध्वी प्रज्ञा की रीढ़ की हड्डी भी टूट गई थी, इसी बीच उन पर एक और केस फाइल कर दिया गया। ये सब इतनी आसानी से होता रहा, मीडिया की गैरमौजूदगी और सियासत की साजिशों के बीच कोई इस मामले में बात करने वाला नहीं था।  

“पहले मेरा इलाज करो, मैं उसके बाद जेल जाऊँगी”, सुदर्शन टीवी द्वारा जारी वीडियो में टूटी हुई रीढ़ की हड्डी के कारण भोपाल एयरपोर्ट पर साध्वी प्रज्ञा यह कहते हुए सुनी जा सकती हैं। इस वीडियो क्लिप में साध्वी प्रज्ञा की बहन प्रतिभा और उनके पति भगवान झा को इस प्रकरण पर बात करते देखा जा सकता है।

यातनाओं के दौरान पुलिस घेरा बनाकर साध्वी प्रज्ञा को मारती थी, एक के थक जाने पर दूसरा उन्हें मारता था। इतना ही नहीं, हिन्दू होने के कारण उनकी आस्थाओं को आहत करने के लिए पवित्र ग्रंथ गीता को उनके सामने लाकर फाड़ा और पैरों से कुचला जाता था। जब इतने से भी टॉर्चर करने वालों को तसल्ली नहीं हुई तब उन्होंने गाय का माँस साध्वी प्रज्ञा को खिलाया और उन्हें अश्लील फिल्में दिखाईं।

ये सोचने की बात है कि गाय का माँस खिलाकर आस्थाओं को आहत करने की बात 2014-2015 से पहले की हैं, मीडिया द्वारा तब कभी इस तरह का प्रकरण ‘मेनस्ट्रीम’ नहीं किया गया था। आप सोचिए कि 2019 में एक पाकिस्तानी जिहादी 40 भारतीय सैनिकों को मारने से पहले सन्देश देता है कि उसे गाय का पेशाब पीने वाले हिन्दुओं से नफरत है। इसी विचारधारा की झलक हमें साध्वी प्रज्ञा की यातनाओं में भी देखने को मिलती है, क्या ये मात्र एक संयोग ही हो सकता है?

खास बात ये भी है कि इस दौरान समाचार पत्र और मीडिया चैनल्स में कोई अन्य डाटा उपलब्ध नहीं है। ये भी हो सकता है कि आज के समय पर अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले पत्रकारों को इस पर लिखने और बोलने की उनके ‘अन्नदाताओं’ द्वारा इजाजत नहीं दी गई थी, या फिर किसी ने भी इस मामले पर बात करना आवश्यक नहीं समझा होगा। जाहिर सी बात है कि यह प्रकरण ‘हिन्दू/भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द रचने वाले दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की विचारधारा के अनुरूप चल रहा था और भविष्य में उनके राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप उनके काम आ सकता था।

साध्वी प्रज्ञा पर की गई हर यातना एक प्रपंच का हिस्सा नजर आता है। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जो लोग पुलवामा आतंकी हमले को इस्लामिक जिहाद से जोड़ने में हिचकिचाते रहे वही लोग आज साध्वी प्रज्ञा को एक घोषित आतंकवादी बना देने की हर कोशिश कर रहे हैं। ये संस्थाओं का उपहास उड़ाते हैं। अदालत और न्यायिक प्रक्रियाओं में अपने एजेंडा के अनुसार विश्वास करते हैं और नहीं करते हैं और ऐसा करते वक्त वो ये भी भूल जाना पसंद करते हैं कि इन संस्थाओं में उनके नेहरू जी भी विश्वास करते थे, खुलेआम संविधान से छेड़छाड़ करने वाली इंदिरा गाँधी भी।

न्याय समय के गर्भ में है। साध्वी प्रज्ञा के प्रकरण को इकतरफा होकर नहीं देखा जा सकता है, लेकिन अफजल गुरु, बुरहान वानी, यहाँ तक की मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों और कश्मीरी पत्थरबाजों से संवेदना दिखाने वाले नेता, पत्रकार और सामाजिक विचारकों को साध्वी प्रज्ञा से भी सहानुभूति होनी चाहिए। मानवाधिकारों और व्यक्तिगत मामलों का सम्मान होता नहीं दिख रहा है। सेक्युलर राष्ट्र होने की वजह से हम सब नकारना चाहते हैं, लेकिन इन सबके पीछे का कारण साध्वी प्रज्ञा का हिन्दू होना ही है।

बाबर की औलाद को देश सौंपना चाहते हैं क्या: योगी आदित्यनाथ

पिछले दिनों आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में चुनाव आयोग ने योगी आदित्यनाथ पर 72 घंटे का प्रतिबन्ध लगा दिया था। यह अवधि समाप्त होते ही योगी फिर से चुनाव प्रचार में सक्रीय हो गए हैं। हालाँकि, रिपोर्ट के अनुसार, वह संभल में एक जनसभा को संबोधित करते हुए फिर कुछ ऐसा बोल गए जिस पर नया विवाद खड़ा हो सकता है। जनसभा में योगी ने कहा, “एक तरफ देश को राम कृष्ण की परम्परा को आगे बढ़ने वाले लोग हैं दूसरी तरफ वो हैं जो खुद को बाबर की औलाद कहते हैं। आप ‘बाबर की औलाद को देश सौंपना चाहते हैं क्या?’ कानून की उन्नति की वजह से आज कोई प्रदेश में दंगा करने का प्रयास नहीं कर सकता। अखिलेश राज में मंदिरों का बुरा हाल था।”

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनके लिए राजनीति अपनी जगह है और आस्था अपनी जगह। यही वजह है कि 72 घंटे के बैन के बीच भी उन्होंने आस्था के लिए जगह निकाल ली। इस दौरान वो लखनऊ, अयोध्या और वाराणसी के मंदिरों में दर्शन-पूजन के लिए गए।

बता दें कि इससे पहले उनके बयान, “उनके साथ अली हैं तो हमारे साथ बजरंग बली हैं” चुनाव आयोग ने इस बयान को आचार संहिता का उल्लंघन मानते हुए उन पर 72 घंटों का प्रतिबन्ध लगा चुका है।

अब जब योगी आदित्यनाथ प्रतिबन्ध के बाद पहली जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में कहा, सपा-बसपा परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली पार्टियाँ हैं। योगी ने यह भी कहा कि जनता बजरंग बली के विरोधियों को हराएगी।  

बता दें कि संभल से बीजेपी ने परमेश्वर लाल सैनी को टिकट दिया है। वहीं सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से शफिकुर रहमान बर्क को चुनाव मैदान में उतरा गया है, कॉन्ग्रेस की तरफ से जेपी सिंह चुनाव मैदान में हैं।

टुकड़े-टुकड़े गैंग को समर्थन देकर कॉन्ग्रेस अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गई: जावड़ेकर

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कॉन्ग्रेस पार्टी पर हमला करते हुए कहा कि वह मुख्यधारा की पार्टी से हाशिए पर यानी कि अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गई है, जिसे अब टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करने के बावजूद अपना भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है। जावड़ेकर ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस बयान को ख़ारिज कर दिया कि मोदी के शासन में लोकतंत्र और संविधान ख़तरे में हैं और मोदी के सत्ता में आने पर कोई चुनाव नहीं होगा, क्योंकि यह ग़लत और आधारहीन है।

गहलोत की टिप्पणी पर पलटवार करते हुए जावड़ेकर ने कहा कि मोदी ने 2014 का चुनाव जीता था और अब 2019 के लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2024, 2029 में भी चुनाव होंगे लेकिन कॉन्ग्रेस के पास इन चुनावों में कोई मौक़ा नहीं रहेगा।

जावड़ेकर ने कहा, “कॉन्ग्रेस मुख्यधारा की पार्टी थी और अब वह ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का समर्थन करके एक हाशिए पर जाने वाली पार्टी बन गई है। कॉन्ग्रेस इस बात का प्रमाण ख़ुद दे रही है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, और वो इस तरह से इनका (टुकड़े-टुकड़े गैंग) बचाव करती है।”

बता दें कि केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर राजस्थान के चुनाव प्रभारी हैं। उन्होंने दावा किया कि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 2014 के मुक़ाबले शानदार जीत मिलेगी और चुनाव में NDA को दो-तिहाई बहुमत मिलेगा।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि दो चरणों के चुनावों के बाद, भाजपा अपनी प्रचंड जीत को लेकर आश्वस्त है। हम 2014 के अपने टैली में सुधार करेंगे, अपने दम पर 300 का आंकड़ा पार करेंगे और NDA के पास दो तिहाई बहुमत होगा। हम देश भर में सभी राज्यों में लोगों का समर्थन प्राप्त कर रहे हैं और इससे विपक्ष पूरी तरह से घबराया हुआ है। कॉन्ग्रेस हार का सामना कर रही है और इसलिए वो इस तरह की प्रतिक्रिया दे रही है।

विपक्षी पाटीदारों की निंदा करते हुए जावड़ेकर ने कहा कि वे जानते हैं कि वे हारने वाले हैं और इसलिए वे EVM के इस्तेमाल के बहाने भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस जानती है कि वो हारने वाले हैं और इसलिए वो अपनी हार का कोई न कोई बहाना ढूँढने में व्यस्त है। जावड़ेकर ने कहा कि हम अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि लोग मोदी के नेतृत्व का जवाब दे रहे हैं और वे चाहते हैं कि मोदी ही फिर से प्रधानमंत्री बनें।

रोहित शेखर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चौकाने वाले खुलासे, मौत को अप्राकृतिक बताया गया

बीते दिनों उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत में एक सनसनीखेज़ खुलासा हुआ है। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो रोहित की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस अधिकारी अंदाजा लगा रहे हैं कि उनकी मौत छाती और गले पर दवाब पड़ने से हुई है।

रोहित की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनकी मौत को आप्राकृतिक बताया गया है। जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने इस मामले की जाँच क्राइम ब्रांच को सौंप दी है। आईपीसी की धारा 302 के तहत इस मामले को अज्ञात के ख़िलाफ़ दर्ज किया गया है।

खबरों की मानें तो आज (अप्रैल 19, 2019) दिन में क्राइम ब्रांच की टीम और वरिष्ठ अधिकारी डिफेंस कॉलोनी स्थित रोहित के निवास स्थान पर पहुँचे थे। क्राइम ब्रांच की टीम रोहित के घर से उनकी मौत की वज़ह पता लगाने की कोशिशों में जुटी हुई है।

बता दें कि रोहित शेखर तिवारी की संदिग्ध परिस्थितियों में मंगलवार (अप्रैल 16, 2019) को मौत हुई थी। तबीयत खराब होने पर शाम करीब 4 बजकर 41 मिनट पर साकेत स्थित मैक्स अस्पताल ले जाया गया था। जाँच के बाद डॉक्टरों ने रोहित को मृत घोषित कर दिया।

गौरतलब है कि रोहित की मौत पर उनके घर में मौजूद नौकरों ने बताया था कि रोहित की नाक से खून बह रहा था जबकि रोहित की माँ का दावा था कि उनके बेटे की मौत नैचुरल है। लेकिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आने के बाद अब देखना है कि क्राइम ब्रांच के पास पहुँच चुका ये मामला कैसे अनसुलझी गुत्थी को सुलझाता है।

बलात्कार का आरोपी ‘अतानासियो मोंसेरेट’ कॉन्ग्रेस में शामिल, उत्पल पर्रिकर के ख़िलाफ़ लड़ने की संभावना

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, गुरुवार को नाबालिग के साथ बलात्कार के आरोपी पूर्व शिक्षा मंत्री अतानासियो मोंसेरेट को कॉन्ग्रेस पार्टी में शामिल कर लिया गया। ऐसा अनुमान है कि पणजी निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा उपचुनाव के लिए उसे उम्मीदवार बनाया जाएगा। राज्य में उपचुनाव 19 मई को निर्धारित किया गया है।

कथित तौर पर, बलात्कार के आरोपी अतानासियो मोंसेरेट को कॉन्ग्रेस द्वारा पणजी से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भावी उम्मीदवार उत्पल पर्रिकर (दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे) के ख़िलाफ़ मैदान में उतारने की तैयारी है।

बता दें कि मोंसेरेट को राजनीतिक दल बदलने की आदत है। उसने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत यूनाइटेड गोअन डेमोक्रेटिक पार्टी (UGDP) के सदस्य के रूप में की, फिर 2004 में भाजपा में शामिल हुआ और 2007 में UGDP में वापस आ गया।

इसके बाद वो कॉन्ग्रेस का सदस्य बन गया, लेकिन बाद में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए 2015 में उसे पार्टी से निकाल दिया गया। तब से वह गोवा फॉरवर्ड (GF) में था।

माना जाता है कि 2018 में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और मानव तस्करी के आरोप में मोंसेरेट के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल होने के बावजूद वो राज्य की राजधानी में एक प्रमुख नेता है। अधिकारियों ने पहले भी उसके ख़िलाफ़ जबरन वसूली का एक मामला दर्ज किया था।

कॉन्ग्रेस में शामिल होने के बाद मोंसेरेट ने मीडियाकर्मियों से कहा, “आप इसे विलक्षण पुत्र की वापसी कह सकते हैं, बेटे ने हर जगह घूमते हुए सबक सीखा है। यह घर वापसी जैसा है। मैं यहाँ भाजपा को हराने के लिए हूँ।”

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि मोंसेरेट की राजनीतिक पकड़ और उनके प्रभाव के साथ, कॉन्ग्रेस अब पणजी विधानसभा सीट जीतने की उम्मीद कर सकती है और राज्य की दो लोकसभा सीटों पर भी लाभ प्राप्त कर सकती है।

रवीश जी, साध्वी प्रज्ञा पर प्राइम टाइम में आपकी नग्नता चमकती हुई बाहर आ गई (भाग 4)

कुछ समय पहले की बात है एक नवयुवक को 1994 में पुलिस ने पकड़ा था और 2016 में उसे कोर्ट ने रिहा किया क्योंकि वो बेगुनाह था, और सबूत नहीं मिले। नाम जानना ज़रूरी नहीं है, क्योंकि रवीश कुमार के प्राइम टाइम का यह इंट्रो आप आँख मूँद कर सुनेंगे तो भी आपको नाम और मज़हब का अंदाज़ा हो जाएगा। रवीश ने सालों को 365 से गुणा करके दिन निकाले और बताया कि वो संख्या कितनी बड़ी है।

सामान्य आदमी इसे देख कर दुःखी हो जाएगा कि कई बार निर्दोष लोग जेल पहुँच जाते हैं, और उन्हें न्याय के लिए कितना इंतजार करना पड़ जाता है। ये जानना ज़रूरी नहीं है कि किस सरकार के कार्यकाल में वो व्यक्ति पकड़ा गया था, और किस सरकार के कार्यकाल में रिहा हुआ। वो बताने पर दोनों का क्रेडिट गलत सरकारों को चला जाएगा। हें, हें, हें…

अब नया प्राइम टाइम आया साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर। असीमानंद और कर्नल पुरोहित को कोर्ट से राहत मिल चुकी है, और हिन्दू टेरर, या भगवा आतंकवाद की लॉबी और कोरस का सच बाहर आ चुका है। चिदम्बरम और कॉन्ग्रेस ने कथित अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया था, और मकोका जैसी धाराएँ लगा कर, भाजपा, संघ और यहाँ तक सेना से जुड़े डेकोरेटेड अफसर को इसमें लपेटा था, उसे कोर्ट और एजेंसियों ने बारी-बारी से या तो रिहा किया या चार्ज हटा लिए।

रवीश कुमार एक ज्ञानी व्यक्ति हैं। ज्ञानी व्यक्ति के साथ एक समस्या होती है। चूँकि, उसके पास शब्द होते हैं, तो वो प्रोपेगेंडा करने में महारत हासिल कर लेता है। वो समुदाय विशेष के व्यक्ति पर केस साबित न होने पर आपको इस तरह के शब्द सुनाएगा कि आप रो देंगे। वो बताएगा कि जब वो जेल गया था, तब उसकी उम्र क्या थी, और बाहर आने पर कितने हजार दिन बीत गए।

मैं यह नहीं कह रहा कि ऐसा कहना गलत है। लेकिन प्रपंच तब बाहर आता है, और क्लीन, स्मूथ तरीके से चमकता हुआ बाहर आता है जब साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को, जिस पर हिन्दू आतंक की मुहर लगाकर, पुलिस ने कॉन्ग्रेस के आकाओं को संतुष्ट करने के लिए मकोका लगाया था, और उसे आतंकवादी बनाने की सारी क़वायद पूरी की, भाजपा उसे चुनाव लड़ने के लिए टिकट देती है।

यहीं पर ज्ञानी आदमी धूर्त हो जाता है। यहाँ पर वो यह भूल जाता है कि जो संवेदना उसने विशेष समुदाय के आरोपित पर दिखाई थी, जैसे 365 को सालों से गुणा करके दिनों की संख्या निकाली थी, वही संवेदना उसे उस लड़की के लिए भी दिखानी थी जिसे युवावस्था में आतंक के आरोप में जेल में जाला गया। सबूत के नाम पर एक स्कूटर जो उसने सालों पहले बेच दिया था, और उसके काग़ज़ात पुलिस को दे दिए। फिर टॉर्चर का एक निर्मम दौर जिसमें मार-पीट से लेकर अश्लील ऑडियो और विडियो दिखाने और पुरुषों के साथ जेल में रखना तक शामिल है।

यहाँ पर रवीश ने गम्भीर चेहरा बना यह नहीं कहा कि यहाँ दो तस्वीरें हैं, एक युवती की जो अपने जीवन को सही तरीके से जी रही थी, जो साधना और ईश्वर को समर्पित थी, और एक दिन पुलिस उसे उठा कर ले जाती है, उस पर भगवा आतंक का ठप्पा लग जाता है। दूसरी तस्वीर सालों बाद की है जब वो बाहर आती है, और उस पर लगे इल्जाम हटा लिए जाते हैं क्योंकि पुलिस के सबूत बेकार और कोर्ट में नकारे जाने योग्य साबित हुए।

रवीश और भी गम्भीर होकर कहते कि सोचिए उसने अपने परिवार के साथ बिताए कितने लाख सेकेंड खोए, सोचिए कि एक युवती जिसके सामने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण और रचनात्मक साल थे, उसे पुलिस ने सिर्फ इसलिए नोंच लिया क्योंकि उसका कपड़ा भगवा था, और वो ईश्वर की साधना करती थी, और सबसे बड़ी बात कि वो सनातन थी, वो हिन्दू थी।

लेकिन रवीश ने ऐसा कहना नहीं चुना। रवीश भूल गए कि संविधान, कानून और चुनाव आयोग हर उस व्यक्ति को चुनाव लड़ने की आज़ादी देता है जिस पर अपराध साबित न हुए हों। रवीश का दोहरापन तब सामने आ जाता है जब वो बेगूसराय जाकर कन्हैया को लगभग माउथ-टू-माउथ फ़्रेंच किस विद टंग एक्शन दे देते हैं, लेकिन चूँकि साध्वी प्रज्ञा पर कभी आतंक के इल्जाम लगे थे तो इल्ज़ाम लगने मात्रा से आतंकी हो जाती है।

जब-जब मैं सोचता हूँ कि ये व्यक्ति और कितना गिरेगा, तब-तब यह मुझे आश्चर्य में डाल देते हैं कि अजीत भाई, ये तो इब्तिदा है, रोता है क्या, आगे-आगे देख, होता है क्या!

रवीश इतने घटिया स्तर के पत्रकार हो चुके हैं कि लालू तक के फ़ेवर में बोल लेते हैं, और ममता के बंगाल की तस्वीर बताने में उन्हें शर्म आती है, लेकिन किसी पर महज़ आरोप लगने को, अगर वो उनकी विचारधारा से अलग हो, उसे अपराधी मान लेते हैं। ये जो भी हो, पत्रकारिता तो नहीं है। रवीश को अपने दर्शकों में यह ज़हर भरने का कोई अधिकार नहीं है।

रवीश एक घोर साम्प्रदायिक और घृणा में डूबे व्यक्ति हैं जो आज भी स्टूडियो में बैठकर मजहबी उन्माद बेचते रहते हैं। साम्प्रदायिक हैं इसलिए उन्हें मजहबी व्यक्ति की रिहाई पर रुलाई आती है, और हिन्दू साध्वी के कानूनी दायरे में रह कर चुनाव लड़ने पर यह याद आता है कि भाजपा नफ़रत का संदेश बाँट रही है।

अवसादग्रस्त रवीश के लिए उनका स्टूडियो ही लोकतंत्र के तीनों पिलर पर ब्रासो मारने वाली अकेली जगह है जहाँ वो हर सुबह इन तीनों पिलर की जड़ों में पानी डालते हैं, फिर उसके आस-पास झाड़ू लगाते हैं, और फिर ध्यान में बैठकर कहते हैं कि हे पिलरो! मैंने सालों से तुम्हारा ख़्याल रखा है, अब मैं चाहता हूँ कि मैं ही लोकतंत्र बन जाऊँ, मैं ही न्यायाधीश, मैं ही संविधान, मैं ही विधायिका, मैं ही सब कुछ हो जाऊँ। अतः, आप मेरे अंदर समाहित हो कर मुझे ऊर्जा प्रदान करें।

फिर रवीश स्वयं ही संविधान को अपने हिसाब से देखते हैं, न्यायपालिका जब उनके हिसाब की जजमेंट देती है, तो लोकतंत्र की जीत बताते हैं, वायर पर मानहानि का दावा करती है तो उसे डाँटते हैं कि आखिर जज नेताओं को कैसे एंटरटेन कर लेते हैं। वो बताते हैं कि चुनाव आयोग, या रीप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट तब ही सही होगा जब उनके द्वारा सत्यापित लोग चुनाव लड़ें। अन्यथा, बाकी किसी पर आरोप भी लगे हैं, तो भी वो चुनाव नहीं लड़ सकता।

रवीश कुमार पत्रकार हैं, और फेसबुकिया बुद्धिजीवी भी। वो जो कर रहे हैं, उसे अभिव्यक्ति कहते हैं। लेकिन वो जो कर बैठते हैं, और स्वयं को सर्वेसर्वा मान कर ज्ञान बाँच देते हैं, कि दाग़ी और ऐसे आरोप वाले लोगों को चुनाव लड़ाना गलत है, तो फिर रवीश कुमार के बौद्धिक आतंकवाद का क्या इलाज है?

स्वयं पूरी दुनिया को टीवी देखना छोड़ने से लेकर मोबाइल बंद कर लीजिए, और टीवी फोड़ लीजिए बताने वाले, स्वयं टीवी पर क्या घास छीलने आते हैं? ज़ाहिर है कि इनका प्रपंच और प्रोपेगेंडा उसी दुकान से चलेगा जहाँ हर दिन इनके चेहरे की चमक, मोदी सरकार द्वारा तमाम एलईडी बाँटने के बाद भी, मंद पड़ती जाती है।

आखिर रवीश कुमार अपने ही टाइमलाइन पर पड़ने वाली गालियों का संज्ञान लेकर, स्वयं ही इसे अपनी घटिया पत्रकारिता पर जनता की वृहद् राय मानते हुए, इसे ऑनररी (अर्थात मानद) आरोप मान कर, पत्रकारिता की दुनिया से निकल कर कहीं किसी पार्टी में क्यों नहीं चले जाते? क्योंकि इनका मालिक तो पैसों की हेराफेरी में भीतर जाएगा ही, नौकरी भी बहुत दिन नहीं कर पाएँगे।

लेकिन रवीश ऐसा नहीं करेगा। रवीश एक घाघ व्यक्ति हैं। रवीश कोर्ट पहनते हैं, और अब टाई नहीं लगाते। रवीश अब मज़े नहीं ले पाते। रवीश पूरे पाँच साल से स्टूडियो से कैम्पेनिंग कर रहे हैं। रवीश को राहुल गाँधी द्वारा ‘हम बीस लाख सरकारी नौकरियाँ देंगे’ विजनरी बात लगती है, लेकिन वो पूछ नहीं पाते कि कैसे दोगे? लेकिन रवीश मोदी जी से रात के चार बजे भी फेसबुक पर कुछ भी पूछ लेते हैं।

फ़िलहाल, रवीश की धूर्तता आती रहनी ज़रूरी है ताकि ऐसे नकली पत्रकारों पर से लोगों का विश्वास उठे जो कि समाज में घृणा और भय के अलावा कुछ नहीं पहुँचा रहा। ये वो व्यक्ति है जो शांत समुदायों को यह कह कर भड़काता रहता है कि मोदी और उसके नेता उन्हें सताते हैं, डराते हैं, उनके खिलाफ माहौल बनाते हैं। इस व्यक्ति को लोकतंत्र में कोई विश्वास नहीं क्योंकि इस लोकतंत्र ने मोदी को चुना है, और वो उस मोदी को जिसे बहुमत प्राप्त है, सुप्रीम लीडर, यानी तानाशाह कहता रहता है।

खैर जो भी हो, रवीश जैसों के अजेंडे को बाहर लाने के लिए उसकी हर बात पर लेख लिखना ज़रूरी है। उनकी हर धूर्तता पर यह कहना ज़रूरी है कि सर आपने दो बार में, एक ही तरह की बात पर दो अलग बात कही थी क्योंकि एक हिन्दू था, एक दूसरे समुदाय का। रवीश जैसे लोग पत्रकारिता के नाम पर कलंक हैं, और इस बात का अच्छा उदाहरण हैं कि पक्षपाती पत्रकारिता आपको किस गर्त में ले जा सकती है।

साध्वी प्रज्ञा चुनाव लड़ेगी क्योंकि आज ही चुनाव आयोग ने उन पर उठाए जा रहे प्रश्नों को निरस्त करते हुए कहा है कि जब तक आरोप सिद्ध नहीं हो जाते, कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ने को स्वतंत्र हैं। ये बात और है कि रवीश कुमार स्वयं को हर बात का सबसे बड़ा विशेषज्ञ मान कर चलते हैं, और गाँव की कहावत की तरह विष्ठा को देखने के बाद, छू कर पहचानने की कोशिश करते हैं, तब भी मन नहीं भरता तो नाक तक लाकर सूँघते हैं, और कहते हैं, ‘अरे! ये तो टट्टी है!’

हें… हें… हें…

यह रविश शृंखला पर चौथा लेख है, बाकी के तीन लेख यहाँ, यहाँ, और यहाँ पढ़ें।

इलाहाबाद HC ने कॉन्ग्रेस के ‘न्याय योजना’ पर पार्टी से माँगा जवाब, योजना को बताया रिश्वतखोरी

लोकसभा के मद्देनजर कॉन्ग्रेस पार्टी ने जनता से वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आती है, तो देश के 25 फीसदी गरीब परिवारों को हर साल ₹72,000 दिए जाएँगे। कॉन्ग्रेस पार्टी इस वादे का जोर-शोर से प्रचार कर रही है और इस वादे के दम पर चुनाव जीतने का भी ख्वाब देख रही है, लेकिन अब कॉन्ग्रेस पार्टी ‘न्याय योजना’ को लेकर परेशानियों में घिरती नजर आ रही है। दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस वादे को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के खिलाफ मानते हुए कॉन्ग्रेस पार्टी को नोटिस जारी किया है।

बता दें कि, कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि इस तरह की घोषणा वोटरों को रिश्वत देने की कैटगरी में क्यों नहीं आती और क्यों न पार्टी के खिलाफ पाबंदी या दूसरी कोई कार्रवाई की जाए? कोर्ट ने इस मामले में चुनाव आयोग से भी जवाब माँगा है। कोर्ट का मानना है कि इस तरह की घोषणा रिश्वतखोरी व वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश है। इसलिए अदालत ने कॉन्ग्रेस पार्टी और चुनाव आयोग को जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते का वक्त दिया है।

यह आदेश चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और एसएम शमशेरी की डिवीजन बेंच ने वकील मोहित कुमार और अमित पाण्डेय द्वारा दाखिल की गई जनहित याचिका पर दिया है। इस याचिका में कहा गया है कि कॉन्ग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र में ₹6 हजार प्रतिमाह के हिसाब से ₹72 हजार सालाना 25 फीसदी गरीबों के खाते में भेजने का वादा किया है। यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता ने कॉन्ग्रेस के खिलाफ कार्रवाई की माँग करते हुए कहा है कि इस घोषणा को घोषणापत्र से हटाया जाए।

वहीं, कॉन्ग्रेस के न्याय योजना को लेकर चुनाव आयोग ने राहुल गाँधी को आचार संहिता उल्लंघन का नोटिस जारी किया है। आयोग ने उनसे अमेठी में एक मकान की दीवार पर ‘न्याय’ योजना के दावे के प्रचार संबंधी बैनर लगाने को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आयोग का कहना है कि यह बैनर बिना मकान मालिक के आदेश के लगाया गया था। इसको लेकर आयोग ने 24 घंटे के अंदर उनसे जवाब माँगा है।

गेस्ट हाउस कांड भुला मैनपुरी में 24 साल बाद मुलायम से मिलने पर मायावती ने कहा: ‘जनहित में लेने पड़ते हैं कठिन फैसले’

मैनपुरी में आज (अप्रैल 19, 2019) सपा, बसपा और रालोद की संयुक्त रैली हुई। इस रैली के दौरान बसपा प्रमुख मायावती ने सपा के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव की जमकर तारीफ़ की। साथ ही उन्होंने मंच से भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी पर भी जमकर निशाना साधा।

गेस्टहाउस कांड के कारण एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे मायावती और मुलायम सिंह यादव 24 साल बाद एक मंच पर दिखाई दिए। इस दौरान उनके समर्थकों ने जमकर ‘बसपा-सपा आई है’ के नारे लगाए। मुलायम सिंह यादव ने भी मायावती का स्वागत किया और जनता से अपील की कि वे हमेशा मायावती का सम्मान करें, क्योंकि उन्होंने हमेशा उनका साथ दिया है।

इस मंच के जरिए मायावती ने जनता से गुहार लगाई कि वे इस बार मैनपुरी लोकसभा सीट में एसपी प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव को रिकॉर्ड तोड़ वोटों से जीत दिलाएँ। इस दौरान उन्होंने मुलायम सिंह यादव पर विश्वास जताते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुलायम ने सपा के बैनर तले सभी समाज के लोगों को जोड़ा है और अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को भी बड़े पैमाने पर जोड़ा।

मुलायम की तारीफ़ों का पुल बाँधते हुए बीएसपी अध्यक्ष ने पीएम मोदी पर हमला बोला और कहा कि मुलायम सिंह यादव पीएम नरेंद्र मोदी की तरह नकली और पिछड़े वर्ग के नहीं हैं।

मायावती की मानें तो मुलायम सिंह यादव असली, वास्तविक और जन्मजात पिछड़े वर्ग के हैं। जबकि नरेंद्र मोदी के लिए वो कहती हैं कि उन्होनें (मोदी) ने गुजरात में अपनी सरकार के समय में सत्ता का दुरुपयोग करके अपनी अगणी-उच्च जति को पिछड़े वर्ग का घोषित कर लिया। उन्होंने पिछले आम चुनावों में इसका लाभ उठाया और प्रधानमंत्री बन गए।

इस मंच के जरिए मायावती ने सपा के साथ गठबंधन करने के फैसले पर अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि “देश-आमहित में और पार्टी के मूवमेंट के हित में कभी-कभी हमें ऐसे कठिन फैसले लेने पड़ते हैं जिसको आगे रखकर ही हमने देश के वर्तमान हालातों के चलते हुए यूपी में एसपी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला किया है।”

बता दें कि गेस्ट हाउस कांड के 24 साल बाद मुलायम सिंह और मायावती एक साथ किसी मंच पर दिखाई दिए हैं। गौरतलब है साल 1993 में सपा और बसपा ने भाजपा की सरकार को सत्ता में आने से रोकने के लिए गठबंधन किया था। जिसके बाद मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार बनी थी, लेकिन बाद में 2 जून 1995 को एक रैली में मायावती ने सपा से गठबंधन वापसी की घोषणा कर दी।

इसके बाद पार्टी विधायकों के साथ लखनऊ के मीराबाई गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में थीं। जहाँ अचानक समाजवादी पार्टी समर्थक गेस्ट हाउस में घुस आए और मायावती के साथ अभद्रता की और साथ ही अपशब्द भी कहे। खुद को बचाने के लिए मायावती इस दौरान एक कमरे में बंद हो गईं थी और बाद में सुरक्षाकर्मियों ने उनकी जान बचाई थी। मायावती पर लिखी किताब बहनजी में इस घटना का जिक्र किया गया है।

रजनी ने डाला वोट, चुनाव आयोग ने माँगी रिपोर्ट

गुरुवार को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के दौरान, तमिल सुपरस्टार रजनीकांत की बाईं की जगह दाईं उँगली पर स्याही लगाने की भूल के लिए चुनाव अधिकारी को क़ानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। मामला स्टेला मैरिस कॉलेज के मतदान केंद्र का है, जहाँ यह ग़लती हुई।

दरअसल, वोट देने के दौरान, अधिकारी को अभिनेता रजनीकांत की बाईं उँगली पर स्याही लगानी थी, लेकिन ग़लती से उनकी दाईं उँगली पर लगा दी। मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) सत्यव्रत साहू ने कहा, “नियम के अनुसार, यदि बाईं उँगली में कोई दिक्कत हो, तो बाएँ हाथ की ही दूसरी उँगलियों पर स्याही लगाई जा सकती है।”

ख़बर के अनुसार, साहू ने यह बताने से इनकार कर दिया कि यह किससे हुई थी। इस मामले पर CEO ने जिला निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट माँगी है।

रजनीकांत ने कई बार वोट देने के अपने अधिकार के बारे में बोला है और साथ ही राजनीति में आने के अपने फैसले की भी वो घोषणा कर चुके हैं। फ़िलहाल इन संकेतों से अब तक कुछ स्पष्ट नहीं हो सका है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि अभिनेता रजनीकांत का नाम किसी विवाद से जुड़ा हो। 2016 के विधानसभा चुनाव के दौरान, वीडियो में उन्हें किसी विशेष पार्टी के उम्मीदवार के लिए समर्थन करते दिखाया गया था।

अभिनेता शिवकार्तिकेयन और श्रीकांत के ख़िलाफ़ शिक़ायतें मिली हैं जिन्होंने गुरुवार को मतदान तो किया था, लेकिन उनका नाम मतदाता सूची में नहीं था।