Tuesday, October 1, 2024
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एनडी तिवारी के बेटे रोहित शेखर की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत, जाँच जारी

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के बेटे रोहित शेखर की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है। दक्षिण दिल्ली के DCP विजय कुमार ने स्टेटमेंट जारी कर मृत्यु की पुष्टि की। उनके कथन के मुताबिक रोहित को मृत अवस्था में ही साकेत के मैक्स अस्पताल में लाया गया था। मौत के कारणों की जाँच चल रही है, पर अभी तक कोई तस्वीर साफ़ नहीं हो पाई है।

नाक से बहने लगा यकायक खून, माँ पहले ही थीं अस्पताल में भर्ती

दिल्ली पुलिस के संयुक्त कमिश्नर देवेश श्रीवास्तव के मुताबिक मंगलवार को दिन में रोहित की नाक से अचानक खून बहने लगा। उनकी माँ उज्ज्वला पहले ही अपनी मेडिकल जाँच के लिए किसी अस्पताल में भर्ती थीं, और रोहित घर पर अकेले थे। उन्हें एम्बुलेंस से आनन-फानन में मैक्स अस्पताल पहुँचाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। रोहित दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी क्षेत्र के निवासी थे।

पितृत्व की लम्बी लड़ाई, पिछले वर्ष पिता की मृत्यु  

रोहित शेखर ने लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद अपने पिता एनडी तिवारी के नाम का हक़ जीता था। एक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद 2014 में जाकर तिवारी ने उन्हें अपने जैविक पुत्र के रूप में स्वीकार किया था। 2014 में ही उन्होंने रोहित की माँ उज्ज्वला से विवाह भी किया था। 18 दिसंबर, 2018 को लम्बी बीमारी के बाद 93 वर्ष की आयु में एनडी तिवारी की मृत्यु हो गई थी।

फ्रीलांस प्रोटेस्टर शेहला रशीद ने पुराना वीडियो रीट्वीट कर भाजपा की छवि बिगाड़ने की कोशिश की

जेएनयू की फ्रीलांस प्रोटेस्टर शेहला रशीद ने हाल ही में सक्रिय राजनीति में कदम रखा है। शेहला ने कुछ दिनों पहले ही भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) छोड़कर नेता बने शाह फैसल के द्वारा बनाई गई पार्टी में शामिल होकर राजनीतिक पारी की शुरुआत की है। शेहला ने आज सूरत के एक पुराने वीडियो को रीट्वीट करते हुए भाजपा सरकार की बुराईयों को दिखाने की कोशिश की।

शेहला रशीद द्वारा रीट्वीट किया गया पुराना वीडियो

ट्विटर यूजर द्वारा अपलोड किए गए वीडियो में ये दिखाने की कोशिश की गई है कि आज भाजपा समर्थकों द्वारा सूरत में एक बाइक रैली निकाली गई, जिसकी वजह से लोगों को काफी परेशानी हुई। लोग काफी गुस्सा हो गए थे। ट्वीटर अपलोड करने वाले ट्वीटर यूजर का यह भी कहना है कि चूँकि ये भाजपा के नकारात्मक छवि को दर्शाता है, इसलिए मेनस्ट्रीम के किसी भी मीडिया चैनल में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो इसे दिखा सके।

बता दें कि ट्विटर यूजर द्वारा किया गया ये दावा पूरी तरह से निराधार और बेबुनियाद है। सच्चाई तो ये है कि इस वीडियो या फिर इस मुद्दे को किसी मेनस्ट्रीम मीडिया ने इसलिए कवर नहीं किया, क्योंकि आज सूरत में भाजपा समर्थकों द्वारा कोई बाइक रैली नहीं की गई थी और ट्वीटर यूजर द्वारा जो वीडियो अपलोड की गई है, वो दिसंबर 2017 का एक पुराना वीडियो है। शेहला रशीद ने इस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों का प्रचार करना शुरू कर दिया।

वैसे ये पहली बार नहीं है कि शेहला रशीद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों और अफवाहों को फैलाने के लिए रंगे हाथों पकड़ी गई है। पुलवामा हमले के बाद अफवाहें फैलाने के लिए हाल ही में शेहला राशीद के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। इससे पहले एक ट्वीट कर नितिन गडकरी पर पीएम मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाने की वजह से शेहला के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई थी और जब गडकरी ने उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी, तो उन्होंने दावा किया कि ट्वीट केवल एक व्यंग्य था और फिर शेहला रशीद ने खुद को इस परेशानी से निकालने के लिए ‘इस्लामोफोबिया’ का कार्ड खेल दिया।

भाजपा के खिलाफ़ हिंसा बदस्तूर जारी, भाजपा नेता के दफ्तर पर हमला, मीडिया खामोश

भाजपा नेताओं के खिलाफ मौजूदा चुनावों में हिंसा का दौर खिंचता ही जा रहा है। विधायक की हत्या, नेताओं और समर्थकों की हत्या, मनसे द्वारा भाजपा-समर्थक के घर पर हमले के बाद अब केरल भाजपा के नेता और कई दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों में काम कर चुके चर्चित नेता व गायक सुरेश गोपी के कार्यालय पर हमला हुआ है। सुरेश गोपी राज्यसभा के सदस्य हैं और लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उन्हें त्रिसूर क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया है।

प्रचार सामग्री को ही बनाया निशाना, महज़ ₹50 के नुकसान का केस दर्ज  

हमले की राजनीतिक प्रकृति इस तथ्य से साफ़ हो जाती है कि हमले के वक्त गोपी के कार्यालय में मुख्यतः झंडे, पोस्टर आदि चुनाव-प्रचार से जुड़ी सामग्री ही मौजूद थी। इसी को हमलावरों ने निशाना बना कर नष्ट कर दिया। रात दो बजे के करीब हुए इस हमले का संज्ञान लेते हुए मन्नूति पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।

द न्यूज़ मिनट से बात करते हुए मन्नूति पुलिस ने बताया कि मामला भारतीय दण्ड विधान की धाराओं 153 (दंगे भड़काने के लिए उकसावा) और 427 (₹50 का शरारतपूर्ण नुकसान) के अंतर्गत दर्ज किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मामला अनाम आरोपियों के विरुद्ध दर्ज किया गया है, क्योंकि यह साफ नहीं हो पाया है कि हमला किसने किया था।

मीडिया के समुदाय विशेष में सन्नाटा

भाजपा और संघ पर राजनीतिक विपक्ष से भी ज्यादा हमलावर हो उनपर आतंकवाद से लेकर गुंडागर्दी तक का आरोप लगाने वाले मीडिया के समुदाय विशेष ने इस मुद्दे पर सन्नाटा मार लिया है। यह पिछले 8 दिनों में भाजपा पर हिंसक हमले की सातवीं घटना है, पर मीडिया पूरी तरह ‘मौन-संहिता’ का पालन कर रहा है। मामले पर कोई रिपोर्ट प्रकाशित करना तो दूर, न्यूज़ मिनट के अलावा किसी अन्य बड़े मीडिया हाउस ने हिंसा का संज्ञान तक नहीं लिया है। खबर लिखे जाने तक सोमवार रात को हुई घटना पर मीडिया हाउसों का ट्वीट तक नहीं आया है।

माकपा पर आरोप

हमले के पीछे भाजपा नेताओं ने माकपा का हाथ होने का दावा किया है। स्थानीय भाजपा नेता विनोद ने मीडिया से बात करते हुए कहा उनके कार्यकर्ता आधी रात तक कार्यालय में ही थे, अतः यह हमला रात 1 बजे के बाद का ही है। उन्होंने यह भी दावा किया कि क्षेत्र में राजग का बहुत सकारात्मक प्रभाव है; जिन दलों को इस क्षेत्र में भाजपा की बढ़त नहीं सुहा रही है, वही हमले के लिए जिम्मेदार हैं, और उन्हें (विनोद को) लगता है कि वह माकपा है।

उन्होंने यह भी खुलासा किया कि आसपास की सीसीटीवी फुटेज ने खुलासा किया है कि करीब दो बजे के आसपास कुछ लोगों का समूह कार्यालय के पास जा रहा था।

गोपी ‘देर आयद, पर दुरुस्त आयद’

गौरतलब है कि गोपी को भले ही इस लोकसभा क्षेत्र का उम्मीदवार देर से बनाया गया है पर कम समय में ही उन्होंने इलाके में अच्छी-खासी पैठ बना ली है। उनसे पहले तुषार वेलापल्ली यहाँ से उम्मीदवार थे, पर राहुल गाँधी के केरल के वायनाड से लड़ने की घोषणा होने पर तुषार को वहाँ भेज दिया गया। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा ज़ोरों पर है कि राहुल गाँधी ने वायनाड को इसीलिए चुना क्योंकि इस बार केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के हाथों उनकी अमेठी में हार का खतरा है। ऐसे में भाजपा उन्हें दक्षिण में भी घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, और इसीलिए केरल के प्रभावी नेता तुषार को उन्हें चुनौती देने त्रिसूर से वायनाड भेज दिया, और सुरेश गोपी को त्रिसूर में उतारा गया।

अय्यप्पा के लिए चुनाव आयोग के आदेश की अवहेलना

सुरेश गोपी सबरीमाला के भगवान अय्यप्पा के लिए चुनाव आयोग के आदेश की भी अवहेलना कर चुके हैं। उन्हें त्रिसूर की जिलाधिकारी टीवी अनुपमा ने चुनाव आयोग के निर्देशों की अवहेलना कर सबरीमाला और भगवान अय्यप्पा के नाम पर वोट माँगने को लेकर नोटिस जारी किया है

चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार में भगवान अय्यप्पा का नाम लेकर प्रचार करने पर रोक लगा दी थी, जिसका सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट सरकार के एलडीएफ़ गठबंधन और कॉन्ग्रेस के गठबंधन यूडीएफ़ ने समर्थन किया था; वहीं भाजपा ने इसका एक स्वर में विरोध था। भाजपा के राज्य अध्यक्ष के सुरेन्द्रन और पूर्व राज्य अध्यक्ष कुम्मानाम राजशेखरन ने स्पष्ट किया था कि वे और उनकी पार्टी इस मुद्दे को राज्य की जनता के बीच हर हाल में लेकर जाएगी। उसके संकल्प पत्र में भी आस्था के मुद्दों को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने का दावा किया गया है।

Tik Tok पर सरकार का बड़ा फैसला, Google और Apple से कहा- App Store से डिलीट करे ऐप

भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने गूगल और एप्पल को अपने ऐप स्टोर से चीनी वीडियो एप्लिकेशन टिक-टॉक को हटाने का निर्देश दिया है। यानी कि अब सिर्फ वही लोग टिक टॉक ऐप का इस्तेमाल कर सकेंगे, जिनके फोन में ये ऐप पहले से डाउनलोड है। नए यूजर्स इसे डाउनलोड नहीं कर सकेंगे। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (अप्रैल 15, 2019) को मद्रास उच्च न्यायालय के टिक टॉक एप पर प्रतिबंध लगाने के आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।

गौरतलब है कि 3 अप्रैल को मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने अश्लील सामग्री तक पहुँच होने की चिंताओं के चलते एक आदेश पारित कर सरकार को देश में टिक टॉक के डाउनलोड पर रोक लगाने का निर्देश दिया था, जिसके बाद इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया, जिसने इस आधार पर आदेश को रोकने से इनकार कर दिया कि यह मामला अभी भी विचाराधीन है और कोर्ट 22 अप्रैल को मामले की सुनवाई करेगा। मद्रास उच्च न्यायालय में 16 अप्रैल को इस मामले पर सुनवाई हो सकती है।

वहीं, टिक टॉक ने अपने बचाव में कहा कि उसे ‘अश्लील और अनुचित सामग्री’ के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, जो प्लेटफ़ॉर्म पर थर्ड-पार्टीज अपलोड करती है। टिक टॉक ने इस आदेश को भेदभावपूर्ण और मनमाना बताया है। कंपनी का कहना है कि इस ऐप को एक अरब से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है और उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ का ये आदेश एकतरफा  है।

टिक टॉक ऐप पिछले एक साल में कुछ ज्यादा ही लोकप्रिय हुआ है। बता दें कि कंपनी ने पहले इसे म्यूजिकली के नाम से लॉन्च किया था, लेकिन फिर बाद में इसका नाम बदलकर टिक टॉक कर दिया गया। इस कंपनी के अधिकार चीनी कंपनी बाइटडांस के पास है, जो दुनिया की सबसे ज्यादा वैल्यू वाली स्टार्टअप कंपनियों में से एक है।

अख्तर शेख ने नाबालिग को रेप के बाद दरगाह में रखा, फिर दोस्त के घर, मीडिया गिरोह ने किया इग्नोर

मुंबई की घाटकोपर पुलिस ने एक नाबालिग लड़की के बलात्कार के आरोपित अख्तर शेख के नाम को एफआईआर में शामिल करने से नकार दिया। चूँकि, पीड़िता दलित समुदाय से आने वाली एक नाबालिग थी फिर भी घाटकोपर पुलिस ने मामले को पोस्को एक्ट या फिर एससी/एसटी एक्ट से जोड़ना उचित नहीं समझा। इतना ही नहीं, मामले की जाँच को एक सब-इंस्पेक्टर को सौंप दिया गया। जबकि कानून में स्पष्ट है कि इस तरह के मामलों को केवल डीएसपी और एसीपी स्तर के अफसरों द्वारा ही संभाला जाएगा। इसके अलावा पीड़ित पक्ष के बयान को धारा 164 के तहत दर्ज नहीं करना इस संवेदनशील मामले को संभालने में मुंबई पुलिस द्वारा की गई लापारवाहियों का एक उदाहरण है। जिसके मद्देनजर आयोग ने मुंबई पुलिस आयुक्त से मामले में जवाब माँगा है।

स्वराज में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ दिन पहले एक नाबालिग के लापता होने की खबर आई थी। जिसमें लड़की के रात भर घर न लौटने के कारण उसके माता-पिता ने अगली सुबह पुलिस में एफआईआर कराई, जिसे पुलिस ने दर्ज तो किया लेकिन मामले के पहले ही स्तर पर उसमें गड़बड़ी कर दी।

पहले तो पुलिस ने अख्तर शेख नामक आरोपित का नाम एफआईआर में दर्ज ही नहीं किया, जबकि लड़की की माँ बार-बार अपने बयान में उसे लेकर संदेह जता रही थी। माँ के बयान को एफआईआर में बड़े ही साधारण तरीके से दर्ज किया गया कि उनकी 17 साल की बेटी एक अज्ञात व्यक्ति के साथ बिना अपनी मर्जी के कही चली गई है। इसके अलावा पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने के दौरान पोस्को (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्डरन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस) एक्ट को भी मामले से नहीं जोड़ा। इस मामले में लड़की 4 दिन तक घर से गायब रही।

लड़की की माँ की मानें तो जिस पुलिस अफसर ने उनका केस लिया वो उन पर चिल्लाई और उसने भी शेख का नाम एफआईआर में लिखना जरूरी नहीं समझा। मामले के तूल पकड़ने पर सब इंस्पेक्टर शीतल कनाडेडकर को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के रोष का सामना करना पड़ रहा है।

19 मार्च को पीड़िता के मिलने के बाद उसे किशोर गृह में भेज दिया गया है। जहाँ पर वो तब से अब तक रह रही है। पीड़िता की माँ की मानें तो उनकी बेटी धीरे-धीरे सभी जानकारी दे रही है। लड़की ने बताया है कि अख्तर शेख ने उसे पहले एक दरगाह में रात भर रखा और फिर तीन दिनों के लिए एक दोस्त के घर पर रखा।

पीड़िता की माँ ने बताया कि लड़की के मिल जाने के बाद जब वो आगे की जाँच की माँग के लिए सब-इंस्पेक्टर शीतल के पास गए तो उसने उन्हें दुतकार दिया। साथ ही पीड़ित पक्ष से यह भी कहा कि मामले को हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बनाकर सामप्रदायिक बनाना चाहते हैं।

बता दें कि अख्तर शेख को घटना के 10 दिन बाद यानी 28 मार्च को गिरफ्तार किया गया और जल्द ही जमानत पर रिहा भी कर दिया गया।

घाटकोपर की इस खबर को किसी भी मीडिया हाउस द्वारा नहीं उठाया गया। इस मामले के सामने आने के पीछे राकेश पाटिल नाम का एक शख्स है जिसने इस मामले पर ट्विटर पर शृँखला लिखी। जिसके आधार पर इस खबर के बारे में जानकारी प्राप्त होती रही।

गौरतलब है कि अग्निवीर नाम के एक अधिकार संरक्षण संगठन ने इस मामले पर ध्यान दिया और इसे एनसीएससी को भेज दिया। 15 अप्रैल को, आयोग ने मामले की अनदेखी के लिए मुंबई पुलिस को एक पत्र भेजा। इसके अलावा सीताराम जुवतकर नाम के एक स्थानीय कार्यकर्ता ने स्वराज्य को बताया कि जब उन्हें इस मामले का पता चला, तो वह 2 अप्रैल को लड़की की माँ के साथ पुलिस के पास गए, जिसमें प्राथमिकी में POCSO को शामिल करने के लिए कहा गया। लेकिन उनकी मानें तो तब भी शीतल ने इस पर काम करने की जगह उसे साफ़ मना कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए कि लड़की मिल गई है।

बताते चलें कि यह पहली बार नहीं है कि जब ऐसे पक्षपातपूर्ण मामले सामने आए हैं, जहाँ पुलिस ने नाबालिग लड़कियों के अपहरण के मामलों में ऐसी लापरवाही दिखाई हो, खासकर जब आरोपित समुदाय विशेष से है।

इस चुनाव में ऐसा छक्का मारो कि मोदी बाउंड्री से पार चला जाए: सिद्धू की बेलगाम जवान

लोकसभा चुनाव की बढ़ती सरगर्मी के बीच विवादित बयानों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक तरफ आज़म खान का जया प्रदा पर दिया गया विवादित बयान का शोर अभी थमा भी नहीं था कि पूर्व क्रिकेटर और पंजाब की कॉन्ग्रेस सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी इस फेहरिस्त में शामिल हो गया है।

बता दें कि बिहार के कटिहार में चुनाव प्रचार के लिए पहुँचे सिद्धू ने मुस्लिम समुदाय से एकजुट होकर कॉन्ग्रेस को वोट देने की अपील की। सिद्धू ने कहा, “आप (मुस्लिम समुदाय) यहाँ अल्पसंख्यक होकर भी बहुसंख्यक हैं। आप अगर एकजुटता दिखाएँगे तो आपके प्रत्याशी तारिक अनवर को कोई भी नहीं हरा सकता है।”

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सिद्धू कटिहार संसदीय क्षेत्र के बलरामपुर विधानसभा के बारसोई प्रखंड के उच्च विद्यालय ढठ्ठा के मैदान में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। सिद्धू ने भाषण के दौरान कहा, “आपकी आबादी यहाँ 64 % है। यहाँ के मुस्लिम हमारी पगड़ी हैं। अगर आपको कोई दिक्कत हो तो मुझे याद करना, मैं पंजाब में भी आपका साथ दूँगा।”

सिद्धू यहीं नहीं रुके। विरोधियों पर निशाना साधते हुए कहा, “ये लोग आपको बाँट रहे हैं। मुस्लिमों को बाँट रहे हैं। औवैसी जैसे लोगों को लाकर वोट बाँटना चाहते हैं और जीतना चाहते हैं।” इसके साथ ही सिद्धू ने कहा, “आप लोग इकठ्ठे होकर 64% एक साथ आ जाएँ तो सब उलट जाएँगे और मोदी सलट (हार जाएँगे) जाएँगे। इस बार के चुनाव में ऐसा छक्का मारो कि मोदी बाउंड्री से पार चला जाए।”

बता दें कि कुछ दिन पहले मायावती भी मुस्लिमों से एकजुट हो बसपा-सपा गठबंधन को वोट देने की अपील कर चुकी हैं। अब देखना ये है कि ध्रुवीकरण की अपील करने वाले सिद्धू पर राजनीतिक पार्टियों के साथ चुनाव आयोग की क्या प्रतिक्रिया आती है।

निर्मला सीतारमण ने जो किया, वो आजम खान जैसों के मुँह पर ‘तमाचा’ है – शशि थरूर ने भी किया सैल्यूट!

लोकसभा चुनावों के चलते एक ओर जहाँ नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौरा जारी है, हर ओर से सिर्फ़ आचार संहिता के उल्लंघन की खबरें आ रही हैं। वहीं दूसरी ओर राजनैतिक गलियारे से दिल को सुकून देने वाली तस्वीर सामने आई है। इसमें कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण एक दूसरे से हाथ मिलाते दिखाई दे रहे हैं।

इस तस्वीर में देश की रक्षा मंत्री कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर से तिरुवनंतपुरम के अस्पताल में मिलने पहुँची हैं। इसके बाद शशि थरूर ने खुद इस तस्वीर को साझा करते हुए रक्षा मंत्री की तारीफ़ की।

दोनों पार्टियों के मध्य अनेकों मतभेदों के बाद भी निर्मला सीतारमण का थरूर से मिलना उन्हें भावुक कर गया। उन्होंने ट्विटर पर अपनी तस्वीर को साझा करने के साथ कहा कि राजनीति में शिष्टाचार एक दुर्लभ गुण है।

थरूर ने अपने ट्वीट पर लिखा, “निर्मला सीतारमण का यहाँ आना दिल को छू गया। केरल में अपने व्यस्त चुनावी कार्यक्रम के बीच आज सुबह अस्पताल पहुँचकर उन्होंने मेरा हाल जाना। भारतीय राजनीति में शिष्टाचार एक दुर्लभ गुण है। उन्हें इसका बेहतरीन उदाहरण पेश करते देखकर बहुत अच्छा लगा।”

गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता और केरल के तिरुवनंतपुरम से मौजूदा सांसद शशि थरूर एक मंदिर में पूजा करने के दौरान बुरी तरह गिर पड़े थे। जिसके कारण उनके माथे पर गहरी चोट लगी। उन्हें वहाँ के जनरल अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहाँ डॉक्टरों ने बाद में उन्हें खतरे से बाहर बताया।

चोट गहरी होने के कारण उनके माथे पर 11 (पहले मीडिया में थरूर को 6 टाँके लगने की खबर थी) टाँके आए। खबरों के मुताबिक इस घटना के समय शशि थरूर मंदिर में तुलाभरम पूजा कर रहे थे। जो केरल के कुछ गिने-चुने मंदिरों में ही होती है। इस पूजा में देवी-देवताओं को अर्पित की जाने वाली वस्तुओं को व्यक्ति के बराबर तोला जाता है। इस कार्य के लिए वहाँ के मंदिरों में बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हुई हैं। तराजू में बैठकर जिस समय शशि वस्तुओं के साथ खुद को तोल रहे थे तभी चेन टूट गई थी और वे गिर गए थे।

धूँ-धूँ कर जला 800 साल पुराना नॉट्र डाम चर्च, मुस्लिमों ने मनाई ख़ुशी, रिएक्ट किया ‘हा-हा’

जब आप फ्रांस का नाम सुनते हैं तो आपके दिमाग में आइफल टॉवर की छवि उभरती होगी। लेकिन उससे भी पुरानी और ऐतिहासिक एक बिल्डिंग है… सही मायने में थी, जो हादसे का शिकार हो गई। दरअसल, फ्रांस में नॉट्र डाम नामक 800 वर्ष पुरानी ईमारत में आग लग गई। पेरिस स्थित यह चर्च विश्व प्रसिद्ध है। 9 घंटे बाद आग पर काबू तो पाया जा सका लेकिन तब तक इसके गुम्बद और छत गिर चुके थे। हाँ, मुख्य इमारत और दोनों मीनारों के हिस्सों को किसी तरह बचा लिया गया। लेकिन सोमवार (अप्रैल 15, 2019) शाम को लगी इस आग से इमारत बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। बेहद पुरानी होने के कारण ईमारत पहले से ही जर्जर स्थिति में थी और लोगों द्वारा इसके जीर्णोद्धार के प्रयास भी किए जा रहे थे। ईमारत के नवीनीकरण का कार्य भी चल रहा था। हर साल यहाँ लाखों लोग आते हैं।

जब पूरी दुनिया आग के जल्द ख़त्म होने और इमारत के बच जाने की दुआ कर रही थी, तब सोशल मीडिया पर कुछ मुस्लिम इस आपदा के मज़े ले रहे थे। कई मुस्लिम नाम वाले लोग ख़ुशी मनाते हुए नज़र आए। एक बुद्धिजीवी यूजर ने वीडियो शेयर कर बताया कि कैसे मुस्लिम थोक की संख्या में नॉट्र डाम में लगी आग से ख़ुश होकर फेसबुक पोस्ट्स पर ‘हा हा’ रिएक्ट कर रहे हैं।

इसके बाद एक अन्य यूजर ने भी कई सारे ऐसे ट्वीट्स शेयर किए, जिसमें मुस्लिम लोग इस की निंदा करने की बजाए ख़ुशी मना रहे थे। ये सभी हँस-हँस कर मज़े ले रहे थे। उधर फ्रांस के राष्ट्रपति व दुनिया भर के नेताओं ने इस ईमारत का दोबारा जीर्णोद्धार करने की शपथ ली है।

कुछ मुस्लिमों ने इसे विश्व की सबसे सुन्दर आग बताया तो कुछ मुस्लिमों ने पूरे फ्रांस के ही बर्बाद होने की कामना की। कुछ मुस्लिम आपस में बधाइयाँ देते हुए भी नज़र आए। युसूफ, वाहिद, खालिद, मोहम्मद नाम वाले ये मुस्लिम यूजर्स प्राचीन ईमारत में आग लगने से प्रफुल्लित नज़र आए। जब ऑपइंडिया ने कुछ ऐसी अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ वेबसाइट्स के सोशल मीडिया पोस्ट्स को खंगाला तो हमें भी ये दावे सही मिले। नीचे दिए स्क्रीनशॉट् में देखा जा सकता है कि मुस्लिम इस त्रासद आग से जुड़ी ख़बर पर ‘हा हा’ का रिएक्शन दे रहे हैं।

हा-हा रिएक्शन देने वालों के नाम पढ़ें

कुछ मुस्लिमों ने तो यहाँ तक कहा कि नॉन-मुस्लिम इमारतों व पूजा घरों का इस तरह से बर्बाद होना इस्लाम की सत्यता की पुष्टि करता है। कुछ ने कहा कि ये अल्लाह का दंड है जो इस्लाम न मानने वालों को मिलता है। किसी एक क्षेत्र नहीं बल्कि दुनिया भर के कई हिस्सों के मुस्लिमों ने इस आग को लेकर ख़ुशी मनाई। पुलवामा हमले के समय भी मुस्लिमों ने थोक की संख्या में वीरगति को प्राप्त हुए 40 सीआरपीएफ जवानों का मज़ाक उड़ाया था। तब भारत में कई मुस्लिम गिरफ़्तार भी किए गए थे।

मोदी बायोपिक, योगी पर बैन के बाद अब चुनाव आयोग ने किया ‘Saffron Swords’ का विमोचन रद्द

चुनाव आयोग की भाजपा और दक्षिणपंथी संस्थाओं के विरुद्ध कार्रवाई जारी है। मोदी की बायोपिक और योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार को प्रतिबंधित करने के बाद चुनाव आयोग ने अब दो किताबों का JNU में विमोचन करने को लेकर आयोजकों को नोटिस थमाया है।

इनमें से एक किताब ‘Safron Swords’ पिछले 1300 सालों में अंग्रेज़ और इस्लामी आक्रान्ताओं के आतंक से वीरतापूर्वक लड़ते हुए जान गँवाने वाले गुमनाम शूरवीरों में से 52 की कथाओं का संकलन है। इसकी लेखिका मानोशी भारतीय/हिन्दू संस्कृति के प्रचार और उत्थान के लिए स्थापित इंटरनेट पोर्टल ‘My India My Glory’ की भी संस्थापिका हैं, और सोशल मीडिया पर हिन्दू मंदिरों और पुरातात्विक स्थलों की अपनी यात्रा के बारे में अक्सर लिखती रहतीं हैं।

दक्षिण दिल्ली की रिटर्निंग अफ़सर निधि श्रीवास्तव ने JNU में इस कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा कार्यक्रम की पूर्वानुमति न लेने को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन माना है और इसी पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है

अकादमिक था कार्यक्रम, राजनीतिक नहीं: आयोजक

आयोजकों में से एक मनीष जांगिड़ ने इन्डियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि जिन किताबों का विमोचन प्रतिबंधित हुआ, वह दोनों, यानि मानोशी सिन्हा की ‘Safron Swords’, और पूर्व में मार्क्सवादी रह चुके आभास मालदहियार  की किताब ‘मोदी अगेन’, पहले से सार्वजनिक क्षेत्र में वितरण में हैं। इसके अलावा वह यह भी कहते हैं कि लेखकों की अनुपलब्धता के चलते 12 अप्रैल को ही कार्यक्रम को टाला जा चुका था, और यही बात चुनाव आयोग को दिए गए जवाब में कह दी गई है।

एक अन्य आयोजक और जांगिड़ सहित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े दुर्गेश कुमार के अनुसार यह कार्यक्रम राजनीतिक नहीं, अकादमिक था। उन्होंने किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेता को इस कार्यक्रम में निमंत्रण नहीं दिया था। साथ ही उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि यह (सार्वजनिक क्षेत्र में पहले से मौजूद किताबों पर आधारित गैर-राजनीतिक, अकादमिक वार्तालाप) भी चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन में आता है।

दोनों किताबें स्टार्टअप प्रकाशक ‘गरुड़ प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित की गईं हैं।

‘आभास’ होता है कि कार्यक्रम राजनीतिक था, इसलिए दिया नोटिस

वहीं इन्डियन एक्सप्रेस से ही बात करते हुए रिटर्निंग अफ़सर निधि श्रीवास्तव ने यह कहा कि भले ही यह किताबें पहले से वितरण में हों, पर इस कार्यक्रम को देखकर इसके राजनीतिक होने का ‘आभास’ होता है; ऐसा ‘लगता है’ कि एक नेता विशेष का प्रचार हो रहा है। इसीलिए यह नोटिस जारी किया गया।

सोशल मीडिया पर लेखकों, पत्रकारों का कड़ा विरोध शुरू

लेखक संक्रांत सानु ने इस निर्णय को आड़े हाथों लेते हुए लिखा:

Goa Chronicles व Indian Expose पोर्टलों के संस्थापक-मुख्य संपादक सैवियो रोड्रिग्वेज़ ने क्षुब्ध प्रतिक्रिया व्यक्त की:

वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने भी इसके औचित्य पर सवाल उठाते हुए लिखा:

जिन किताबों का विमोचन रद्द हुआ, उनमें से एक के लेखक आभास ने भी ट्विटर पर कड़ी आपत्ति जताई।

उन्होंने द हिन्दू अख़बार के विवादस्पद संपादक एन राम की राफेल विवाद पर आधारित किताब का भी उदाहरण दिया।

इंडिया टुडे की एक खबर का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि कैसे उस किताब की 5,000 प्रतियाँ दस-दस रुपए में बेचीं गईं। इंडिया टुडे की उसी रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि चुनाव आयोग के जिस उड़न-दस्ते ने इसमें हस्तक्षेप किया था, उसके सदस्यों को न केवल चुनावी ड्यूटी से हटा दिया गया है, बल्कि उन्हें खुद कारण बताओ नोटिस का सामना करना पड़ रहा है।

उनके इस ट्विटर-थ्रेड को रीट्वीट करते हुए दक्षिणपंथी स्तंभकार और रक्षा विशेषज्ञ अभिजित अय्यर-मित्रा ने लिखा:

‘कैसा लोकतंत्र है यह?’: मानोशी सिन्हा

‘Saffron Swords’ की लेखिका मानोशी सिन्हा ने ऑपइंडिया संवाददाता से बात करते हुए अपना विरोध जताया। उन्होंने कहा कि यह कैसा लोकतंत्र है जब EC उसी JNU के प्रांगण में अन्य किताबों के विमोचन में हस्तक्षेप नहीं करता पर उनकी ‘Saffron Swords’ और आभास की Modi ‘Again’ का विमोचन रोक देता है। उन्होंने पूछा कि क्या ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि आयोजक एबीवीपी था, या फिर कारण यह था कि उनकी किताब में कम्युनिस्ट-वामपंथी नैरेटिव नहीं था; क्या ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सिन्हा की किताब का दृष्टिकोण राष्ट्रवादी है; या फिर इसलिए कि इस किताब में हमारे वीर पूर्वजों का गुणगान है, जिनके कारण आज हम हज़ारों वर्ष पुरानी अपनी सभ्यता की पहचान को आगे ले जा पा रहे हैं।

AAP-कॉन्ग्रेस एक-दूसरे पर थूक कर चाटने की रेस में, बीच में कूदे 4 महान दरबारी पक्षकार

आम आदमी पार्टी और कॉन्ग्रेस का प्यार-तकरार-नफरत का रिश्ता हाल ही में सुर्खियों में रहा है। जहाँ एक तरफ जनाब केजरीवाल कहते नज़र आए कि “उन्होंने तो लगभग मना कर दिया जी” फिर भी अपने सिद्धांतों पर अडिग अपनी बात से बात-बे-बात पलटी मरने वाले जनाब केजरीवाल ने हार नहीं मानी। लाख उनके अपने ही पार्टी के पूर्व नेता और शुभचिंतक कुमार विश्वास जैसे लोग उनका कितना भी मज़ाक बनाए हों लेकिन वैकल्पिक राजनीति का घटिया उदाहरण प्रस्तुत करने वाले जनाब केजरीवाल लगे रहे। हाँ जो कहे उस पर कभी कायम नहीं रहे। लोगों ने बार-बार कहा “एक पे रहना, कभी घोड़ा-कभी चतुर मत कहना।”

दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए AAP और कॉन्ग्रेस कभी घोर प्रतिद्वंदी रहे थे। लेकिन कॉन्ग्रेस के घोटालों और काले कारनामों के समूल नाश के लिए अपने बच्चों की कसम खाने वाले केजरीवाल अब भी उसी कॉन्ग्रेस की गोद में झूला झूलने की उम्मीद पाले बैठे हैं। लोकसभा चुनाव की तारीखें नज़दीक आ रही हैं तो जो अंदर है वो सब उबल कर बाहर आ रहा है, इस उम्मीद में कि शायद ‘वो’ मान जाएँ। दोनों दलों के बीच गठबंधन की खिचड़ी पकाने के लिए रची गई कई कहानियों और तमाम टिप्पणियों के बाद, आखिरी प्रयास के रूप में या तो अब इसे अंतिम रूप दे दिया जाए या रद्द कर दिया जाए। अंतिम प्रयास के रूप में राहुल गाँधी और अरविंद केजरीवाल, जो एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं, परदे के पीछे के इस नाटक को जैसे ही ट्विटर पर ले आते हैं तो कहानी और भी मनोरंजक हो जाती है।

जनाब राहुल गाँधी ने कहा कि वह 7 में से 4 सीटों पर AAP को चुनाव लड़वाने को तैयार थे, राहुल ने आरोप लगाया कि केजरीवाल ही यू-टर्न कर गए। हालाँकि, कॉन्ग्रेस के दरवाजे अभी भी खुले हैं। उस पर, जनाब अरविंद केजरीवाल ने कहा कि AAP कोई यू-टर्न नहीं ले रही थी बल्कि कॉन्ग्रेस वास्तव में गठबंधन को अंतिम रूप नहीं देकर बीजेपी की मदद कर रही थी। उस बीजेपी का जो महात्मा गाँधी के कॉन्ग्रेस मुक्त भारत के सपने को अपना मूल-मन्त्र बनाए हुए है।

फिर क्या था, इस विस्तृत नाटक के बाद, लुटियंस का ‘पक्षकार’ मीडिया भी चक्कर खा गया। मम्मी मीडिया के लिए घोर चिंता की बात यह थी कि पक्षकार मीडिया के लाडले दो बिगड़े बच्चों के बीच लड़ाई से बीजेपी काफी हद तक लाभान्वित हो सकती है। पूरा गिरोह दो युद्धरत बच्चों के बीच बने नाटकीय स्थिति को संभालने और शांति स्थापित करने के लिए कूद पड़ा।

‘तेज तर्रार’ निखिल वाघले ने AAP नेता संजय सिंह को टैग करते हुए टिप्पणी की कि AAP पर भरोसा न करके, कॉन्ग्रेस बीजेपी को दिल्ली जीतने में मदद करने की कोशिश कर रही है।

इसके बाद निखिल कॉन्ग्रेस पदाधिकारी के साथ वाकयुद्ध में लग गए। जबकि कॉन्ग्रेस के पदाधिकारी ने कॉन्ग्रेस का बचाव किया, लेकिन ‘तटस्थ पक्षकार’ वाघले ने AAP का बचाव किया और कॉन्ग्रेस को दोषी ठहराया।

‘न्यूट्रल पक्षकार’ सबा नकवी ने भी बिगड़े बच्चों को कुछ अच्छी सलाह देने के लिए ट्विटर का सहारा लिया, जो सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे की मिट्टी-पलीद कर रहे थे।

नकवी ने ट्वीट किया कि राहुल गाँधी और अरविंद केजरीवाल को टेबल पर बैठना चाहिए, हाथ मिलाना चाहिए और गठबंधन की घोषणा करनी चाहिए। मोहतरमा ने कहा, “दिल्ली के लोग आपसे अच्छे व्यवहार की उम्मीद कर रहे हैं”।

आशुतोष, जो एक ‘पक्षकार’ से AAP राजनेता बनने के बाद फिर से एक तथाकथित ‘न्यूट्रल पक्षकार’ बन गए हैं, ने भी नानी-अम्मा का किरदार निभाने के लिए ट्विटर का ही सहारा लिया। उन्होंने केजरीवाल को ट्वीट कर कहा कि अगर वे मोदी और शाह को हराना चाहते हैं तो गठबंधन जरूरी है।

तटस्थ और धर्मनिरपेक्ष टिप्पणीकार तुफैल अहमद ने भी दो बच्चों, राहुल गाँधी और अरविंद केजरीवाल को सभी विवाद दफनाने की सलाह दी। उन्होंने जनाब केजरीवाल को सलाह दी कि ज़्यादा लालची न बनें, वे बीजेपी को फायदा पहुँचाने के बजाय जनाब राहुल गाँधी के उचित प्रस्ताव को मान लें।

अंत में, जबकि कई अन्य “तटस्थ” टिप्पणीकारों, पक्षकारों और तथाकथित पत्रकारों ने बिगड़े बच्चों को सम्भालने की कोशिश की, इस कड़ी में निखिल वाघले ने अंतिम फैसला सुनाया।

अंतिम फैसला बहुत ही महान और आसान है। यदि भाजपा सत्ता में लौटती है, तो पूरा चाटुकार, पक्षकार तथाकथित पत्रकार पारिस्थितिकी तंत्र या कम से कम इसका एक हिस्सा, कॉन्ग्रेस को दोष देने के लिए तैयार है। राहुल गाँधी को नहीं क्योंकि राजकुमार की हर हाल में रक्षा करना लुटियंस दरबारियों का राजधर्म है।

यह पूरा वाकयुद्ध पक्षकारों की तठस्थता, पत्रकारिता के पतन और चाटुकारिता की सभी सीमाएँ लाँघने का प्रमाण हैं। मोदी से नफ़रत और घृणा ने इन्हें इतना अँधा कर दिया है कि अब ये सेक्युलर, न्यूट्रल जैसे चोले से निकलकर खुलेआम मैदान में आ गए हैं। अभी तक गठबंधन की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही। लेकिन एक ओर 60 साल तक देश का बंटाधार करने वाली, घोटालों और देश को लुटने का कीर्तिमान स्थापित करने वाली और दूसरी ओर 5 साल तक दिल्ली की जनता से छल करने के बाद और अब पूर्ण राज्य का शिगूफा छोड़ने के बाद भी दिल्ली के कानों पर ज़ू रेंगता हुआ भी नहीं देखने वाली आम से बेहद खास बन चुकी पार्टी चोर-चोर मौसेरे भाई के सिद्धांत पर आखिरी दाँव खेलने को बेचैन है। अब देखना यह है कि क्या ये एक बार फिर बीजेपी के नाम पर जनता को डरा कर उनसे फिर से छल करने में कामयाब होते हैं। या जनता इनके छल को नंगा कर उसका मुहतोड़ जवाब देती है।

लड़ाई मजेदार है। इस चुनाव में AAP-कॉन्ग्रेस से लेकर उन तमाम न्यूट्रल पक्षकारों की भी अस्मिता दाँव पर लगी है जो अभी तक विभिन्न संस्थाओं पर कब्ज़ा जमाकर सत्ता की मलाई खा रहे थे।