Wednesday, October 2, 2024
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DM से मायावती के जूते साफ़ करवाने वाले आज़म ख़ान, आपकी तो पूरी पार्टी ही जूते चाट रही है

सपा नेता आज़म ख़ान नित नए स्तर पर गिरते चले जा रहे हैं। कभी महिलाओं के अंगवस्त्रों पर टिप्पणी करते हैं तो कभी हनुमानजी को लेकर अनाप-शनाप बकते हैं। अब उन्हीं आज़म ख़ान ने डीएम से जूते साफ़ करवाने की बात कही है। आज़म ख़ान ने नया विवादित बयान देते हुए कहा, “सब डटे रहो, कलेक्टर-पलेक्टर से मत डरियो, ये हैं तनखैया.. हम इनसे नहीं डरते हैं। देखे हैं मायावती के कई फोटो कैसे बड़े-बड़े अफसर रुमाल निकालकर जूते साफ़ करते रहे हैं। हाँ उन्हीं से है गठबंधन, हाँ उन्हीं से जूते साफ कराऊँगा इनसे अल्लाह ने चाहा तो…। आज़म ख़ान ने मायावती राज का उदाहरण देते हुए ऐसा कहा। ज्ञात हो कि फरवरी 2011 में एक डीएसपी लेवल के पुलिस अधिकारी पद्म सिंह ने झुक कर मायावती की जूती को साफ़ किया था। उन्होंने अपने पॉकेट से रुमाल निकाल कर मायावती की जूती साफ़ की थी।

आज जो आज़म ख़ान मायावती की उसी हरकत को उदाहरण के तौर पर पेश कर रहे हैं, उन्हीं आज़म ख़ान ने तब इसका विरोध किया था। सपा का सम्प्रदाय विशेष का चेहरा माने जाने वाले आज़म ने तब मुख्यमंत्री रहीं मायावती पर निशाना साधते हुए कहा था, “यह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की सामंती मानसिकता को दर्शाता है। वो शाही राजतन्त्र को फिर से जीना चाहती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सुरक्षा अधिकारी की कुछ गंभीर मजबूरियाँ थीं जिसने उसे शर्मनाक कृत्य करने के लिए मजबूर किया। मैं सुझाव दूंगा कि मायावती अपने मार्ग पर धूल की देखभाल करने और अपने सैंडल की सफाई जैसे कामों को करने के लिए एक अलग दल की नियुक्ति करेंगी।

आज़म ख़ान को ख़ुश होना चाहिए क्योंकि मायावती ने उनकी बात सुन ली, भले ही उसमें 7 वर्ष लग गएउन्होंने शायद अब उस दल की नियुक्ति कर ली है, जो उनके मार्ग पर धूल की देखभाल करेगा और उनके सैंडल की सफाई करेगा उसका नाम समाजवादी पार्टी ही है, जिसके आज़म संस्थापक सदस्य हैं।

कितनी असमानता है आज़म ख़ान के दोनों बयानों में। इन 7 वर्षों में ऐसा नहीं है कि आज़म ख़ान की प्रकृति बदल गई है। वो तब भी इतने ही विवादित थे, जितने आज हैं। वो तब भी ऐसे ही अलूल-जलूल बयान दिया करते थे, जैसे आज देते हैं। वो तब भी इतने ही महिला विरोधी और हिन्दू विरोधी थे, जितने आज हैं। फ़र्क़ बस इतना है कि राजनीतिक समीकरण बदल गया है। जो मायावती और यादव परिवार एक दूसरे को कोसते थकते नहीं थे, आज वो एक ही थाली में लपेस-लपेस कर खा रहे हैं। अखिलेश-माया एक हो गए हैं और अपने नेता अखिलेश की तरह मायावती का भी गुणगान करना आज़म ख़ान का नया मज़हब बन गया है। तभी तो जो घटना सामंती मानसिकता और शाही राजतन्त्र का परिचायक थी, वो अब छाती चौड़ी करने वाली और गर्व से भर देने वाली घटना हो गई है उनके लिए।

9 बार विधायक चुने गए आज़म ख़ान सपा सरकारों के दौरान मंत्री रह चुके हैं। मोदी के आ जाने से एक-दूसरे के साथ सड़क पर गठजोड़ कर घूमने वाले इन नेताओं को जनता ने अब सही जगह पहुँचाया है। डीएम से जूता साफ़ करवाने वाले आज़म ख़ान को समझना चाहिए कि उनकी इसी मानसिकता के कारण आज वो न तो सत्ता में हैं और न ही सत्ता की रेस में। असल में मायावती की जूती साफ़ करने का काम तो उनकी अपनी ही समाजवादी पार्टी कर रही है, जिसके वो संस्थापक सदस्य हैं। लोकसभा में शून्य सीट वाली मायावती को सपा ने ख़ुद से 1 ज्यादा सीट दी, इससे ज्यादा झुकने का कोई अन्य उदाहरण कहीं और कहाँ मिल सकता है?

आज़म ख़ान को समझना चाहिए कि अब वो ज़माना गया जब उनकी खोई भैंसे खोजने के लिए पूरा सरकारी महकमा सड़कों पर उतर आता था। यूपी में अब वो ज़माना गया जब अधिकारियों को सत्ताधीशों के जूते साफ़ करने पड़ते थे। अब वो ज़माना गया जब मुख़्तार अंसारी, राजा भैया और अतीक अहमद की तूती बोलती थी और सत्ता के संरक्षण के कारण पुलिस और अधिकारी तक उनके सामने झुकते थे। इस यूपी में अपराधी भाग कर पड़ोस के राज्यों की जेल में बंद हो जाते हैं। जो जेल में हैं, वो बाहर नहीं निकलना चाहते। जो बाहर हैं वो फूँक-फूँक कर क़दम रखते हैं। इस यूपी में सड़कों पर विचर रहे बौखलाए आज़म ख़ान को कभी ख़ुद को भी निराहना चाहिए कि जनता ने उनकी और उनकी पार्टी की क्या हालत की है।

अव्वल तो यह कि सम्प्रदाय विशेष के एक अन्य नेता उमर अब्दुल्ला ने भी जूती साफ़ करने वाली घटना के समय मायावती पर तंज कसा था। आज वो भी चुप रहेंगे क्योंकि उनके ही साथी अब उसी घटना को गर्वित करने वाला वृत्तांत की तरह पेश करते फिर रहे हैं। कट्टरपंथियों के स्वघोषित नेताओं के बयानों पर कोई ख़ास आउटरेज नहीं होता, इसे नॉर्मल मान लिया जाता है। माना जाता है कि इनका तो काम ही है ये सब बोलना, किसी पर भी भद्दी टिप्पणियाँ कर देना, हिन्दू देवी-देवताओं का मज़ाक उड़ाना, महिलाओं का अपमान करना और साल दर साल प्राथमिकताएँ बदलते हुए अपने ही बयानों से पलट जाना। इसीलिए, इनके बयानों को ज्यादातर नज़रअंदाज़ ही किया जाता है।

आज़म ख़ान सपा नेता अखिलेश यादव के समक्ष ही ऐसे बयान दिया करते हैं। उस समय नैतिकता, राजनीतिक शुचिता और युवाओं की बात करने वाले अखिलेश यादव हँस कर बगले झाँकते नज़र आते हैं। अगर ऐसा ही बयान किसी भाजपा के सरपंच के समधी के साले की तरफ से आया होता तो इस पर यही अखिलेश आज हंगामा कर रहे होते और कह रहे होते कि भारत में महिलाओं का सम्मान नहीं किया जाता, भाजपा के नेतागण महिलाओं की इज़्ज़त नहीं करते और देश में महिला विरोधी माहौल को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर सरकारी अधिकारियों के बारे में किसी भाजपा नेता का ऐसा बयान आता तब तो कहना ही क्या। इससे ‘मोदी सारी सरकारी संस्थाओं को अपने इशारे पर नचा रहा है‘ वाले नैरेटिव को और मज़बूती मिल जाती। हालाँकि, निंदा हर मामले में होनी चाहिए, चाहे बयान भाजपा नेता का हो या सपा नेता का।

लेकिन, होता इसके एकदम उलट है। जैसा कि हमने ऊपर चर्चा किया, भाजपा के वार्ड सदस्य के रिश्तेदार के व्यक्तिगत बयान या हरकत को ऐसे पेश किया जाता है, जैसे ख़ुद मोदी ने ऐसा किया हो या कहा हो। वहीं दूसरी तरफ चुनावी मंच पर एक बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की मौजूदगी में उनके वरिष्ठ नेता द्वारा महिला विरोधी बयान दिया जाता है और इसे आयाराम-गयाराम मान कर हवा में उड़ा दिया जाता है। वैसे सही है, आज़म ख़ान डीएम से अपना जूता साफ़ करवाएँ न करवाएँ, उनकी पार्टी तो मायावती के सामने दंडवत हो ही रखी है। ख़ुद मुलायम सिंह यादव ने भी कह दिया है कि अपने ही लोग पार्टी को बर्बाद करने में लगे हुए हैं। कहीं उनका इशारा आज़म ख़ान जैसे लोगों की तरफ ही तो नहीं था? वैसे आज़म को बोया मुलायम ने ही है, अब फसल काटिए बैठ कर।

मोदी समर्थक को घर में घुस के महिला व बुज़ुर्ग के सामने मारा, NDTV पत्रकार हुआ ख़ुश

एनडीटीवी के पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने उस घटना को कमतर आँकने की कोशिश की है जिसमे कुछ गुंडों को एक मोदी समर्थक के घर में घुस कर उसके साथ मारपीट करते हुए दिखाया जा रहा है। असल में ट्विटर पर एक वीडियो शेयर किया गया, जिसमे कहा गया है कि किसी भाजपा समर्थक ने फेसबुक पर मनसे सुप्रीमो राज ठाकरे की आलोचना की थी जिसके बाद कुछ मनसे के गुंडों ने उसके घर मे घुस कर उसके साथ मारपीट किया। उस वीडियो में देखा जा सकता है कि उस घर में उक्त पीड़ित व्यक्ति का बीच-बचाव करने के लिए घर का एक बुज़ुर्ग सामने आता है। एक बुज़ुर्ग महिला भी सामने ही बैठी हुई है, जिनके सामने ही गुंडे मारपीट और गाली-गलौज में लगे हुए हैं।

इसके बाद एनडीटीवी के श्रीनिवासन जैन ने एक फेसबुक पोस्ट की तुलना वास्तविक मारपीट से कर दी। उसने ट्विटर पर लिखा ‘गुंडागर्दी को गुंडागर्दी से नहीं जीता जा सकता’। उस पत्रकार का यह मानना था कि भाजपा समर्थक ने फेसबुक पोस्ट में राज ठाकरे की आलोचना की, जो कि गुंडागर्दी है। और, बदले में राज ठाकरे की पार्टी के गुंडे जो कर रहे हैं, वो भी वही है। असल में उस पत्रकार ने वास्तविक गुंडागर्दी की तुलना भाजपा समर्थक के फेसबुक पोस्ट से करते हुए यह साबित करने का प्रयास किया कि दोनों ही एकसमान हैं, दोनों ही पक्षों की समान गलती है।

इसके बाद एक अन्य ट्विटर यूजर ने भी इस हिंसा को सही ठहराते हुए कहा, ‘भक्त इसी भाषा को समझते हैं’। इस पर उसे जवाब देते हुए एक समझदार व्यक्ति ने पूछा कि अगर उसके मोदी-विरोधी स्टैंड के लिए कुछ गुंडे उसके घर में घुस आएँ और घर के बुज़ुर्गों व महिलाओं के सामने उसके साथ गाली-गलौज करने लगे और मारपीट करने लगे तो क्या आप इसका समर्थन करेंगे?

दिव्या नामक ट्विटर यूजर ने एनडीटीवी के प्रोपेगंडा परस्त पत्रकार से पूछा कि आख़िर वीडियो में दिख रहे पीड़ित ने ऐसी कौन सी गुंडागर्दी की थी? उसे रिप्लाई देते हुए एक अन्य यूजर ने कहा कि ये पत्रकार अपनी ही गुंडागर्दी की बात कर रहा है। इससे पहले जब लश्कर-ए-तैयबा ने आतंकी इशरत जहाँ और अन्य की मदद से पीएम मोदी की हत्या की योजना बनाई थी, तब इसी पत्रकार ने कहा था कि ये आतंकी बस छोटा-मोटा ब्लास्ट ही करना चाहते थे।

मंदिर में पूजा के दौरान शशि थरूर को लगी गहरी चोट, माथे पर आए 6 टाँके

कॉन्ग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता और केरल के तिरुवनंतपुरम से मौजूदा सांसद शशि थरूर एक मंदिर में पूजा करने के दौरान बुरी तरह गिर पड़े। जिसके कारण उनके माथे पर गहरी चोट लग गई। उन्हें वहाँ के जनरल अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें खतरे से बाहर बताया।

चोट गहरी होने के कारण उनके माथे पर छह टाँके आए हैं। मीडिया खबरों की मानें इस घटना के समय शशि थरूर मंदिर में तुलाभरम पूजा कर रहे थे।

तुलाभरम एक ऐसी पूजा है जो केरल के कुछ गिने-चुने मंदिरों में ही होती है। इस पूजा में देवी-देवताओं को अर्पित की जाने वाली वस्तुओं को व्यक्ति के बराबर तोला जाता है। इस कार्य के लिए वहाँ के मंदिरों में बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हुई हैं।

साभार: शशि थरूर का ट्विटर अकॉउंट

तराजू में व्यक्ति के बराबर वस्तुओं में फल, मिठाई, अनाज, सिक्के आदि को रखा जाता है। खबरों की मानें पूजा संस्कार के दौरान जब शशि तराजू पर बैठे तो तराजू की चेन टूट गई, जिसके कारण उनके सिर में चोट लग गई।

साल 2009 में केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद चुने जाने वाले शशि थरूर एक बार फिर यहाँ से अपनी किस्मत आजमाने को तैयार हैं। वे तिरुवनंतपुरम से कॉन्ग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार हैं। इस बार उनका मुकाबला भाजपा के नेता और मिजोरम के पूर्व राज्यपाल कुम्मानेम राजशेखरन और सीपीआई विधायक और राज्य के पूर्व मंत्री सी. दिवाकरन से है।

चुनाव आयोग पहले मोदी पर बनी फिल्म देख ले फिर निर्णय करे: सुप्रीम कोर्ट

माननीय उच्चतम न्यायालय ने आज (अप्रैल 15, 2019) निर्वाचन आयोग से कहा कि वह पहले नरेंद्र मोदी पर बनी बायोपिक देख ले उसके बाद निर्णय करे कि इस फिल्म को चुनाव के समय रिलीज़ करना है या नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग को निर्देश दिया कि वह फिल्म को देखे और 22 अप्रैल तक अपना मत एक सीलबंद लिफाफे में प्रदान करे।

फिल्म के निर्माताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी थी कि निर्वाचन आयोग ने बिना फिल्म को देखे ही उसकी रिलीज़ पर बैन लगा दिया था। इसलिए न्यायालय ने आयोग से कहा कि पहले वह फिल्म को देखे फिर उसकी रिलीज़ पर निर्णय ले। तब तक के लिए न्यायालय की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।

इसके पहले निर्वाचन आयोग ने यह कहकर फिल्म को रिलीज़ होने से रुकवा दिया था कि इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में व्यवधान उत्पन्न होने की संभावना है। निर्वाचन आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि फिल्म में दिखाए गए राजनैतिक दृश्य सोशल मीडिया में प्रचारित हो रही चीज़ों को सच मानने का भ्रम उत्पन्न कर सकते हैं।

आयोग ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता में सभी पार्टियों को समान अवसर प्राप्त कराने के लिए और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव के समय फिल्म की विषयवस्तु में परिवर्तन आवश्यक था। आयोग ने फिल्म पर बैन लगाने के पीछे आचार संहिता का हवाला भी दिया था।

उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले विवेक ओबेरॉय द्वारा अभिनीत नरेंद्र मोदी के जीवन पर आधारित फिल्म को रिलीज़ करने की अनुमति दे दी थी। फिल्म पहले 5 अप्रैल को रिलीज़ होने वाली थी लेकिन विपक्षी दलों की आपत्ति के कारण इसकी रिलीज़ 11 अप्रैल तक टल गई थी। फिर निर्वाचन आयोग के आदेश के कारण इसकी रिलीज़ पर अनिश्चितकालीन बैन लग गया था जिसके बाद निर्माताओं ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।  

मुस्लिम महिला ‘पक्षकार’ ने मुस्लिम नेता के ‘अंडरवियर कमेंट’ को ‘ढकने’ की कोशिश की, नाम है…

एक विवादास्पद ‘पत्रकार’ हैं आरफा खानम शेरवानी। यह अक्सर ‘द वायर’ के कर्मचारियों की तरह ही फर्जी समाचारों और प्रोपेगेंडा को शेयर करने के लिए जानी जाती हैं। अब यह समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता आजम खान के बचाव में आ गई हैं। आजम खान ने अभिनेत्री से नेता बनीं जया प्रदा के खिलाफ अपमानजनक सेक्सिस्ट टिप्पणियाँ की थीं, जिसका बचाव करने के लिए आरफा खानम शेरवानी जमाने के सामने आ गईं। नाम और पहनावे से आरफा एक महिला हैं लेकिन न जाने क्या मजबूरी रही कि ‘अंडरवियर कमेंट’ का बचाव करके उन्होंने अपने ‘मर्दवादी-मनुवादी-ब्राह्मणवादी’ चेहरे को दुनिया के सामने रख दिया।

दरअसल, आजम खान के द्वारा किए गए महिला विरोधी बयान की वजह से महागठबंधन को किसी तरह का कोई राजनीतिक नुकसान ना हो, इसलिए आरफा खानम शेरवानी आजम खान के समर्थन में आ गई। उन्होंने दावा किया कि आजम खान ने जो बयान दिया था, वो जया प्रदा के लिए नहीं, बल्कि पूर्व सपा नेता अमर सिंह के खिलाफ था। लेकिन प’क्ष’कार आरफा को यह मालूम होना चाहिए कि अमर सिंह का रामपुर लोकसभा क्षेत्र से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।

आरफा ने अपने ट्ववीट में दावा किया कि आजम खान द्वारा दिया गया भद्दा बयान रामपुर की भाजपा उम्मीदवार जया प्रदा के खिलाफ नहीं था, यह अमर सिंह द्वारा चलाया गया ‘प्रोपेगेंडा वॉर’ था। हालाँकि आरफा ने जल्द ही अपने ट्वीट को डिलीट कर दिया क्योंकि इससे उसका ढोंग और बनावटीपन जाहिर हो रहा था।

आरफा खानम शेरवानी द्वारा डिलीट कर दी गई ट्वीट

समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और रामपुर निर्वाचन क्षेत्र के विधायक आज़म खान ने रामपुर से भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार जया प्रदा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करके अपनी रही सही इज्जत को और भी गिरा लिया। आजम खान ने अपने भाषण में जया प्रदा के खिलाफ बेहद अपमानजनक बयानों का इस्तेमाल करते हुए दावा किया कि उनके अंडरवियर का रंग खाकी था।

गौरतलब है कि आजम खान ने रामपुर में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि उन लोगों ने 17 सालों में उनको (जया प्रदा) को नहीं पहचाना, जबकि उन्होंने केवल 17 दिन में उनकी वास्तविकता को पहचान लिया। उन्होंने कहा, “उसकी असलियत समझने में आपको 17 साल लग गए। मैं तो 17 दिन में ही पहचान गया कि इनके नीचे का जो अंडरवियर है, वो भी खाकी रंग का है। यह टिप्पणी करते हुए आजम खान ये दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि जया प्रदा के संबंध आरएसएस से थे और जया ने जो उनके खिलाफ आरोप लगाए थे, वो भी आरएसएस की साजिश थी। आजम ने जब यह शर्मनाक टिप्पणी की थी, उस समय सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी मंच पर मौजूद थे।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि आजम खान ने जया प्रदा के खिलाफ इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है। आजम खान और उनकी पार्टियों ने पहले भी जया प्रदा के खिलाफ अपमानजनक बयानबाजी और सेक्सिस्ट बयानों का इस्तेमाल किया है। जया प्रदा ने यह भी आरोप लगाया है कि आजम खान ने पिछले दिनों उन पर एसिड हमले का प्रयास किया था और साथ ही उन्हें परेशान और बदनाम करने के लिए उनकी भद्दी तस्वीरों को भी फैलाया था।

इतनी घटिया स्तर की महिला विरोधी बात राजनीतिक मंच से कह दी गई और आरफा उसका बचाव करने आ गई! खैर, वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ से जुड़े पत्रकारों के लिए इस तरह की ढोंग और बनावटीपन का सामने आना कोई बड़ी बात नहीं है। द वायर को काफी लंबे समय से आधे सच और पूरे झूठ के लिए जाना जाता है। ये इस वेबसाइट की आदत बन चुकी है। द वायर, जिस पर मानहानि का मुकदमा चल रहा है, अक्सर हुर्रियत प्रेस के बयानों की तरह पढ़ने वाले आर्टिकल प्रकाशित करता है। द वायर को हाल ही में सीबीईसी द्वारा फेक न्यूज़ फैलाने के लिए लताड़ लगाई गई थी।

EVM के खिलाफ विपक्ष एकजुट, मामले को लेकर SC जाने का एलान

लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद विपक्ष एक बार फिर से ईवीएम को लेकर हमलावर हो गया है। इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं ने रविवार (अप्रैल 14, 2019) को एक बैठक की। इसमें तय हुआ कि 21 विपक्षी दल आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट जाएँगे। कोर्ट से आग्रह किया जाएगा कि चुनाव आयोग हर विधानसभा में कम से कम 50% मतों का ईवीएम-वीवीपैट से मिलान करे। इस बात को लेकर विपक्ष ने पूरे देश में अभियान चलाने की भी बात कही है।

नायडू ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से खुश नहीं हैं, जिसमें कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि लोकसभा सीट की प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के पाँच बूथों पर ईवीएम और वीवीपैट का मिलान हो। बैठक में शामिल नेताओं का कहना है कि लोकतंत्र की रक्षा और मतदाता के अधिकार के हित के लिए फिर से सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए।

इस दौरान कॉन्ग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पहले चरण के चुनाव के बाद से ही ईवीएम पर सवाल उठे हैं, उन्हें नहीं लगता कि चुनाव आयोग इस पर पर्याप्त ध्यान दे रहा है। उनका कहना है कि जिस पार्टी का बटन दबाया जा रहा है, वोट उस पार्टी को न जाकर किसी और पार्टी को जा रहा है और वीवीपैट में भी पर्ची 7 सेकंड की जगह केवल 3 सेकंड में ही दिख जाती है।

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मशीनों में कोई गड़बड़ी नहीं है, बल्कि उनके साथ छेड़छाड़ की गई है। केजरीवाल ने कहा कि ईवीएम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि बटन दबाने पर सिर्फ भाजपा को ही वोट जाता है। सीएम केजरीवाल ने कहा कि वे इंजीनियर हैं, ऐसे में वे इन चीजों को अच्छी तरह से समझते हैं। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग पर ईवीएम के हेरफेर की शिकायतों पर ध्यान नहीं देने का भी आरोप लगाया है।

गौरतलब है कि इससे पहले चंद्रबाबू नायडू के साथ विपक्षी दलों के कई नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने 50% ईवीएम-वीवीपैट का मिलान करने की माँग की थी। 21 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में भी इसके लिए याचिका दाखिल की थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच, विपक्षी पार्टियों की 50% पर्चियों के मिलान की माँग पर सहमत नहीं हुई और कहा था कि इसके लिए बड़ी संख्या में लोगों की जरूरत पड़ेगी, बुनियादी ढाँचे को देखते हुए ये मुमकिन नहीं लगता। मगर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को ईवीएम और वीवीपैट के मिलान का दायरा बढ़ाते हुए हर लोकसभा सीट के प्रत्येक विधान सभाओं के 5 बूथों पर ईवीएम और वीवीपैट का मिलान करने के निर्देश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हमने कभी नहीं कहा चौकीदार चोर है, राहुल गांधी को किया जवाब तलब

राफ़ेल डील पर पीएम मोदी को ‘चौकीदार चोर है’ की टिप्पणी करना राहुल गाँधी को काफी महँगी पड़ गई। सुप्रीम कोर्ट ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ नोटिस जारी किया है। अब इस मामले की सुनवाई 23 अप्रैल को होगी। तब तक राहुल गाँधी को अपना जवाब देना होगा।

जस्टिस रंजन गोगोई ने यह स्पष्ट किया कि हमने यह बयान कभी नहीं दिया, इसलिए हम इस मसले पर सफाई माँगेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम यह बात साफ करना चाहते हैं कि कोर्ट के संदर्भ में राहुल गाँधी ने जो भी बातें मीडिया में कहीं, वे पूरी तरह से ग़लत हैं। इस मामले की पूरी जानकारी हम सफाई माँगना चाहते हैं। हमें उम्मीद है कि राहुल गाँधी अपने बयान पर सफाई देंगे।

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद कोर्ट का नाम लेकर पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए टिप्पणी की थी, “सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि चौकीदार चोर है।” इसी बयान पर आपत्ति दर्ज करते हुए भारतीय जनता पार्टी की नेता मीनाक्षी लेखी ने शुक्रवार (12 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ अवमानना याचिका दाखिल की थी।

अपनी याचिका में मीनाक्षी लेखी ने कहा था कि राहुल ने अपनी निजी टिप्पणियों को शीर्ष अदालत द्वारा किया गया बताया और लोगों के मन में पीएम के ख़िलाफ़ ग़लत धारणा पैदा करने की कोशिश की। मीनाक्षी लेखी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा था कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने टिप्पणी की थी कि ‘अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया, चौकीदार चोर है।’

आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट राफ़ेल मसले पर केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे चुकी है। कोर्ट ने राफ़ेल विमान की ख़रीद प्रक्रिया को सही ठहराया था। वहीं प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा ने कोर्ट के फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था और एक अख़बार द्वारा छापे गए दस्तावेज़ों को सबूत मानने की सहमति व्यक्त कर दी थी।

’42 लोगों की चिता की राख से मोदी करेंगे राजतिलक’: कॉन्ग्रेस नेता अज़ीज़ क़ुरैशी

फारूक़ अब्दुल्ला द्वारा पुलवामा हमले पर शक जताए जाने के बाद कॉन्ग्रेस के कद्दावर नेता ने पुलवामा को आधार बनाकर पीएम मोदी पर निशाना साधा है। मिजोरम के 15वें राज्यपाल रह चुके अजीज कुरैशी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी ने प्लान करके पुलवामा हमले को अंजाम दिया है।

एएनआई द्वारा ट्वीट वीडियो में अजीज कुरैशी कह रहे हैं “पुलवामा में आपकी आर्मी, आपकी फौज, आपका पूरा भारत सरकार, आपकी केंद्रीय सरकार के रहते… RDX लेकर… (आवाज साफ़ नहीं) हाइवे के ऊपर कोई कैसे घुस गया? गाड़ी कैसे घुस गई वहाँ पर? प्लान करके आपने यह करवाया ताकि आपको मौका मिले। लेकिन जनता समझती है और मोदीजी चाहें कि 42 (शहीदों?) को मारकर 42 लोगों की हत्या करके उनकी चिताओं से अपना राजतिलक कर लें। जनता नहीं करने देगी उनको अब। वह चाहेंगे 42 लोगों के खून से अपने माथे पर तिलक लगा लें, लोग नहीं करने देंगे उनको।”

अजीज के अलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पीएम पर निशाना साधते हुए कहा है कि सैन्य बलों और जवानों को हमेशा राजनीति से दूर रखा गया है। उनकी मानें तो 70 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है कि सेना का राजनीतिकरण हो रहा है। गहलोत ने सीएम योगी के बयान के आधार पर कहा “योगी जी कहते हैं कि ये मोदी की सेना है, इस तरह के बयान के लिए योगी जी के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए।” 

इतना ही नहीं, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी पीएम पर निशाना साधते हुए कहा कि जब मोदी ने पैंट और पायजामा पहनना शुरू नहीं किया था तब नेहरू और इंदिरा गांधी ने फौज बना दी थी। कमलनाथ ने यह बयान खंडवा जिले के हरसूद में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए दिया, “मोदी जी आप देश की सुरक्षा की बात करते हैं। क्या 5 साल पहले (मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले) देश सुरक्षित हाथों में नहीं था?” उन्होंने आगे कहा, “मोदी जी जब आपने पायजामा और पैंट पहनना सीखा नहीं था, तब जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने इस देश की फौज बनाई थी, एयरफोर्स बनाई थी, नेवी बनाई थी और आप कहते हो देश सुरक्षित है आपके नीचे।”

जब समुदाय विशेष खुद को स्वतः घुसपैठिया समझ कर सोशल मीडिया पर बकवास करता है

अमित शाह का एक बयान खूब चर्चा में रहा जहाँ उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार पूरे देश में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) लागू करवाएगी और हर एक घुसपैठिए को यहाँ से निकाल बाहर करेगी सिवाय बौद्ध, हिन्दू और सिक्खों के। इस बयान में क्या समस्या है, मुझे नहीं पता, लेकिन इस बयान को तोड़-मरोड़ कर हर जगह शेयर करते हुए, समुदाय विशेष में एक दुर्भावना फैलाने की बात करने वालों में क्या समस्या है, यह मुझे बख़ूबी पता है।

जब साफ-साफ घुसपैठियों की बात की है, और उसमें यह कहा है कि बौद्ध, सिक्खों और हिन्दुओं के अलावा जो भी बाहर से आए लोग हैं, उन्हें बाहर किया जाएगा, तो इसमें समुदाय विशेष खुद को कहाँ से देख रहा है? उसमें भी वह व्यक्ति क्यों चिंतित है जो इस देश का नागरिक है? न तो अमित शाह ने ऐसा कहा, न मोदी ने, न ही इस बयान में खास मजहब का कोई ज़िक्र है, फिर कुछ मजहबी दूसरे मजहबी को यह क्यों बता रहे हैं कि उन्हें देश से बाहर निकालने की साज़िश हो रही है?

We will ensure implementation of NRC in the entire country. We will remove every single infiltrator from the country, except Buddha, Hindus and Sikhs: Shri @AmitShah #NaMoForNewIndia— BJP (@BJP4India) April 11, 2019

एक बात और, जब आप संदर्भ ले आएँगे तो चीज़ें और साफ हो जाएँगी कि आखिर अमित शाह ने हिन्दुओं, सिक्खों और बौद्धों की ही बात क्यों की। क्योंकि ये लोग बाहर के देशों में अल्पसंख्यक हैं, जो बहुसंख्यकों के अत्याचार या सरकार की उदासीनता के शिकार हैं। पाकिस्तान, बंग्लादेश आदि जगहों पर हिन्दुओं, सिक्खों या बौद्धों की हालत बहुत खराब है। इनकी संख्या लगातार घट रही है, और चूँकि इन तीनों धर्मों का उदय भारत में हुआ है, तो ये उनका नैसर्गिक घर है।

अगर बौद्धों, हिन्दुओं और सिक्खों को भारत शरण नहीं देगा तो आखिर वो जाएगा कहाँ? अब इसे रोहिंग्या और बंग्लादेशियों के संदर्भ में देखा जाए तो पता चलता है कि एक आबादी अपने देश से भारत में, यहाँ के कुछ नेताओं द्वारा ग़ैरक़ानूनी रूप से बसाए गए हैं ताकि इनका वोट इन्हें मिलता रहे। इनकी संख्या बहुत ज़्यादा है, और इन्हें अपने देश में इसलिए रहना चाहिए क्योंकि वहाँ का मज़हब, वहाँ की संस्कृति और सरकार उनके लिए ज़्यादा उपयुक्त है।

भारत में रोहिंग्या और बंग्लादेशी घुसपैठियों ने काफी समय से कैंसर की तरह जकड़ बना रखी है। ये लोग व्यवस्थित तरीक़ों से आधार कार्ड और वोटर कार्ड बनवा ले रहे हैं। ये लोग उत्तरपूर्व से भारत में घुसते हुए कश्मीर और राजस्थान कैसे पहुँच रहे हैं, ये कोई नहीं जानता। दक्षिण भारत की ट्रेनों में बैठ कर उधर घुसपैठ करने की कोशिशें नाकाम की गई हैं हमारी एजेंसियों के द्वारा।

मानवतावाद का दृष्टिकोण तब लगता है, और उसके लिए लगता है, जब शरण देने वाला देश स्वयं उन्हें पालने में सक्षम हो। दूसरी बात, शरण लेने वाला देश स्वयं यह बताता है कि वो किसे रखना चाहता है, किसे नहीं। उसकी शर्तें देश तय करता है, सुरक्षा के लिहाज से और इस लिहाज से भी कि क्या उनकी संख्या जितनी है, उतनी वो झेल पाएँगे। इसलिए, बहुत ही कम संख्या में आए हिन्दुओं, सिक्खों और बौद्धों के लिए भारत उनका सहज आवास है, लेकिन मजहब विशेष के लिए नहीं क्योंकि वो एक बहुत बड़ी आबादी बन कर घुसपैठ कर रहे हैं।

अगर बंग्लादेशी घुसपैठियों की बात करें तो लगभग 40 लाख नाम तो सिर्फ असम में निकले हैं जो NRC की शर्तों पर सही नहीं उतरते। 2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तिब्बत के बौद्ध शरणार्थियों की संख्या लगभग 1,92,000 है, और श्रीलंका से भागे और तमिलनाडु में रहने वाले लोगों की संख्या एक लाख के क़रीब बताई जाती है। पाकिस्तान से, अगर बँटवारे को अलग रखें, आए हिन्दुओं की संख्या लगभग 20,000 है, जिसमें से 13,000 को भारतीय नागरिकता दी जा चुकी है। ये सारी संख्या 2007 तक की ही है। हाल-फ़िलहाल में सिर्फ बंग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ अचानक से बढ़ा है, जिनमें बंग्लादेशी तो लगातार लाए और बसाए जाते रहे हैं। वहीं वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान में हिन्दुओं और सिक्खों की संख्या सिमट कर 5000 रह गई है। पाकिस्तान में हिन्दुओं का क्या हाल है, यह किसी से छुपा नहीं है।

लेकिन आज के समय में यह समस्या अतिविकट हो चुकी है। असम, मणिपुर, त्रिपुरा जैसे राज्यों में वहाँ के स्थानीय लोग स्वयं अल्पसंख्यक बन कर रह रहे हैं, और दंगे आम हो गए हैं। यहाँ हिंसक झड़पें होती हैं और यहाँ की सामाजिक संरचना पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। 2012 का कोकराझार दंगा इसी कारण से हुए था जिसमें 80 लोगों की मौत हुई थी। इन सारे समयों में आप इन राज्यों की सरकारों को देखेंगे तो आपको वही लोग मिलेंगे जिनके लिए ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ महज़ दो शब्द हैं, जिसको ताक पर रख कर लगातार घुसपैठ कराए गए, कैम्प बनाए गए, और हालात यह हैं कि वो कई जगहों पर किंगमेकर की भूमिका में हैं।

रोहिंग्याओं को उनकी अपनी सरकार ही राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा मानती है, तो फिर भारत उन्हें कैसे अपने पास रख ले? इस्लामी आतंक का जितना दंश भारत ने सहा है, उसके बाद भी मानवीय आधार पर इन्हें लेने की गलती करना जीती मक्खी निगलने जैसा है। रोहिंग्या को बर्मा वाले अपना नहीं मानते क्योंकि वो लोग बंग्लादेशी हैं जिन्होंने बर्मा में बौद्धों को भी हिंसा के लिए मजबूर कर दिया था। इनका इतिहास इतना क्रूर है कि इनका वर्तमान में विक्टिमहुड खेलना मजाक लगता है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मई 2018 की एक रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि रोहिंग्याओं ने राखिने में हिन्दू अल्पसंख्यकों को समूहों में काटने की वारदातों को अंजाम दिया है। ये हिन्दू अंग्रेज़ों द्वारा कामगारों के रूप में भारत से ले जाए गए थे और फिर वही हुआ जो हर इस्लामी देश में किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के साथ होता है।

रोहिंग्या की मिलिटेंट आर्मी ने हिन्दुओं को जगह-जगह जाकर काटना शुरु किया और बौद्ध धर्मावलम्बियों तक अपनी हिंसा की छाप छोड़ते हुए ऐसा आतंक मचाया कि वहाँ के बौद्ध लोगों को हथियार उठाना पड़ गया। बौद्ध लोगों को वर्चस्व के लिए नहीं, अस्तित्व के लिए हथियार उठाना पड़ा, वहीं इस्लामी आतंक वर्चस्व और ‘हम दुनिया को क़दमों में और इस्लाम की ख़िलाफ़त के अंदर लाना चाहते हैं’ की तर्ज़ पर चलता है।

फिर इन लोगों को आखिर भारत क्यों जगह दे? भारत के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार और फ़िक्शन राइटर रामचंद्र गुहा ने, जो कॉन्ग्रेसियों के फ़ेवरेट इतिहासकार भी माने जाते हैं, ने अमित शाह के बयान में वह भी पढ़ लिया जो कहा ही नहीं गया। लेकिन, गुहा जैसे कहानीकारों ने भारत के इतिहास के साथ भी तो वही किया है कि जो कहीं है नहीं, उसे इतिहास बनाकर पढ़ा दिया हमें। अमित शाह ने घुसपैठियों की बात की है, और भारत में 15 करोड़ आबादी है खास मजहब की, जो भारतीय हैं। क़ायदे से देखा जाए तो राम चंद्र गुहा ऐसा मानते हैं कि भारत में रह रहे सारे समुदाय विशेष वाले लोग घुसपैठिए हैं, जो कि निहायत ही निंदनीय और बकवास बात है।

Amit Shah’s insinuation, that Muslims shall not and cannot be safe and secure in India, will be widely acclaimed in one country: Pakistan. Shah’s majoritarian bigotry is music to the ears of those who rule that country.— Ramachandra Guha (@Ram_Guha) April 11, 2019

इसलिए, गुहा की तो मजबूरी है कि वो भारतीय कथित अल्पसंख्यकों में डर भरना चाहते हैं ताकि वो चुनावों में भाजपा या मोदी को वोट न दें, लेकिन मजहब के उन लोगों की बात मेरी समझ से बाहर है जो स्वयं को एक घुसपैठिए के रूप में देखने लगे हैं। आखिर, किसने और कब कहा कि मजहब विशेष के सारे लोगों को भगा दिया जाएगा? किसी ने नहीं। ये कहने वाले या तो स्वयं उसी मजहब के हैं, या गुहा टाइप के सड़कछाप लुच्चे उपन्यासकार जिन्हें इस समाज में दुर्भावना और मजहबी घृणा फैलाने से फ़ुरसत नहीं है।

कॉन्ग्रेस-DMK समर्थक द्वारा मोदी के 75 वर्षीय प्रशंसक की बेरहमी से पीटकर हत्या

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक होने के कारण तमिलनाडु में एक 75 वर्षीय व्यक्ति की हत्या कर दी गई। ख़बर के अनुसार, बुजुर्ग व्यक्ति लोकसभा चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी के लिए प्रचार कर रहा था। गोविंदराजन के रूप में पहचाने जाने वाले, इस व्यक्ति ने अपनी शर्ट पर मोदी और जयललिता की तस्वीरें लगा रखी थीं।

शनिवार (13 अप्रैल) की शाम को उनका सामना गोपीनाथ नाम के एक व्यक्ति से ओरथानडू में हुआ, जो कॉन्ग्रेस-डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम) गठबंधन का समर्थक था। उनके बीच राजनीतिक मतभेद के कारण बहस होने लगी। आपसी बहस का यह विवाद इतना बढ़ गया कि गोपीनाथ ने गुस्से में 75 वर्षीय गोविंदराजन पर हमला कर दिया। DMK समर्थक द्वारा बुज़ुर्ग को बेरहमी से पीटा गया। इसके बाद उनकी हालत काफ़ी गंभीर हो गई और अंतत: उनकी मृत्यु हो गई।

गोपीनाथ को पुलिस ने रविवार सुबह गिरफ़्तार कर लिया और अदालत में पेश किया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के अनुसार अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया। पुलिस ने भी इस बात की पुष्टि की कि गोपीनाथ DMK-कॉन्ग्रेस समर्थक था।