Wednesday, June 26, 2024
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बॉलीवुड स्टार रणवीर सिंह ने करण के चैट शो में की महिला-विरोधी टिप्पणी

करण जौहर के पॉपुलर चैट शो ‘कॉफ़ी विद करण’ के दौरान हार्दिक पांड्या को महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी करना मँहगा पड़ गया। महिलाओं के बारे में हार्दिक के इस टिप्पणी पर बीसीसीआई ने कड़ा कदम उठाया। इस चैट शो में हार्दिक पांड्या के साथ के एल राहुल भी हिस्सा ले रहे थे। यही वजह है कि इन दोनों पर जाँच पूरी होने तक बीसीसीआई ने क्रिकेट खेलने से बैन लगा दिया है।

हार्दिक और केएल राहुल के बाद कॉफ़ी विद करण के इसी चैट शो का एक विवादास्पद वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में रणवीर सिंह महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी करते हुए नजर आ रहे हैं। इस वीडियो के ज़रिए लोग रणवीर को ट्रोल कर रहे हैं। हलाँकि, रणवीर की यह वीडियो पुरानी है, लेकिन सोशल मीडिया पर एक बार फिर से यह वीडियो वायरल हो रही है।

कॉफ़ी विद करण चैट शो में रणवीर ने ये कहा

कॉफ़ी विद करण के इस चैट शो में रणवीर ने करीना और अनुष्का के बारे में सेक्सिस्ट टिप्पणी की है। वीडियो में शो के दौरान रणवीर ने कहा, “मैं बचपन में जिस स्विमिंग क्लब में था वहाँ करीना कपूर आती थी। उनको स्विम सूट में देखते हुए मैं बच्चे से लड़का बन गया।” इसी शो में एक जगह रणवीर ने अनुष्का से कहा, “आप कहें तो मैं आपकी a** को पिंच कर सकता हूँ।”  शो के दौरान रणवीर से इस तरह की बात को सुनकर अनुष्का असहज हो गई। लेकिन शो में होने की वजह से उन्होंने इस बात को हँसी में टाल दिया।

चैट शो के दौरान इन दोनों ही बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने रणवीर के इस वीडियो को शेयर करते हुए जमकर आलोचना करनी शुरू कर दी।

राजद विधायक प्रह्लाद यादव की सरेआम गुंडागर्दी, जमीन विवाद में मार-पीट

बिहार के लखीसराय से एक वीडियो वायरल हो रही है। यह वीडियो राजद के सूर्यगढ़ा विधायक प्रह्लाद यादव की है। न्यूज एजेंसी एएनआई ने प्रह्लाद यादव से जुड़े 34 सेकेंड के इस वीडियो को ट्वीटर पर साझा किया है। इस वीडियो में प्रह्लाद यादव एक शख्स को थप्पड़ मारते हुए दिख रहे हैं। यही नहीं कई बार माँ-बहन से जुड़ी गंदी गालियाँ देते हुए भी राजद विधायक को इस वीडियो में सुना जा सकता है। इस पूरे वीडियो को देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह मामला जमीन विवाद से जुड़ा हुआ है। एएनआई ने अपने ट्वीट में लिखा है कि इस मामले में एक मुकदमा रजिस्टर कर लिया गया है।

प्रह्लाद यादव की शह पर जीवन यादव ने नबालिग को बेरहमी से पीटा था

यह अक्टूबर 2016 की बात है। लखीसराय विधायक प्रह्लाद यादव से जुड़ी एक ख़बर मुख्यधारा की मीडिया आ रही थी। इस ख़बर में राजद विधायक प्रह्लाद यादव और उनके भाई के दबंगई की चर्चा की गई थी। दरअसल राजद विधायक के भाई ने राजा कुमार नाम के एक नाबालिग को जमकर पीटा था। अपने विधायक भाई की शह पर जीवन ने इस घटना को अंजाम दिया था। राजा विधायक और उसके भाई के आतंक का शिकार सिर्फ इसलिए हो गया था, क्योंकि उसने अपने जमीन पर विधायक के भाई द्वारा जबरन कब्ज़े का विरोध किया था। लखीसराय में प्रह्लाद यादव का आतंक कुछ इस तरह है कि लोग उसके ख़िलाफ़ बोलने के लिए मुँह तक नहीं खोलते।

2002 में विधायक के भाई पर 14 लोगों की हत्या का आरोप

जानकारी के लिए आपको बता दें कि प्रह्लाद यादव और उनके भाई जीवन यादव लखीसराय व आसपास जिला में बड़े बालू माफ़िया के रूप में जाने जाते हैं। 12 मई 2002 में बालू उठाव के दौरान जातिय रंजिश में 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। इस मामले में मोस्ट वांटेड विधायक प्रह्लाद यादव के भाई जीवन यादव पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया था।

आलोक वर्मा एक दीमक था, जो CBI को लंबे समय से कर रहा था खोख़ला! ये रहे सबूत

सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हाल ही में उच्च स्तरीय समिति द्वारा उनके पद से हटाया गया था। इस समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, न्यायाधीश सीकरी (जो चीफ़ जस्टिस की जगह आए थे) और कॉन्ग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल थे। आलोक वर्मा को पद से हटाए जाने का महत्वपूर्ण कारण उन पर लगे भ्रष्टाचारों के आरोप हैं। इस मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज़ की थी।

केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट में आलोक वर्मा के ख़िलाफ बहुत ही संज़ीदा आरोप लगाए गए थे। इस रिपोर्ट में आयोग ने बताया कि 31 अगस्त 2018 को उन्हें शिकायत मिली। जिस पर उन्होंने सीबीआई से 11 सितंबर को मामले से जुड़े प्रासंगिक रिकॉर्डों को 14 सितंबर तक पेश करने को कहा। लेकिन आयोग के कई बार याद दिलाने के बाद भी इन रिकॉर्डों को 23 अक्टूबर तक पेश नहीं किया गया। जिसके बाद ही आलोक वर्मा को उनके पद से हटाने का फैसला लिया गया।

पद से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा के लिए मुश्किलें और भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे मामले जो उनके पद के कारण दबे रह गए थे, अब खुल कर सामने आ रहे हैं। जो साबित करते हैं कि अपने पद और दायित्वों के प्रति की गई बेईमानी उनके गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये का परिणाम नहीं हैं, बल्कि उनके भीतर छिपे बेईमान शख़्स की हकीकत है। इस लेख में हम आपको आलोक वर्मा पर लगे कुछ केसों के बारे में बताएंगें, जो साबित करते हैं कि सीबीआई प्रमुख के पद से हटाया जाना कितना अनिवार्य था।

हाल ही में आयोग ने आलोक वर्मा को 6 नए आरोपों में फिर से घेरे में ले लिया है। इन मामलों पर एंटी करप्शन वॉचडॉग ने जाँच के बाद पिछले साल 12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में शिकायत दायर की थी।

आलोक पर लगाए गए 6 नए आरोपों में नीरव मोदी मामला और विजय माल्या के केस भी शामिल हैं। आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 26 दिसंबर 2018 को सीबीआई से एक ख़त के ज़रिए, इन मामलों से जुड़े हर दस्तावेज़ पेश करने को कहा गया था, ताकि पूरी जाँच को तार्किकता के धरातल पर सँभव किया जा सके। देश से फ़रार हुए माल्या और नीरव मोदी से जुड़े कागज़ों की माँग अगले बुधवार (जनवरी 16, 2019) तक की गई है, जबकि बाकि दस्तावेज़ों की तारीख़ को पेंडिंग रखा गया है।

आलोक वर्मा पर आरोप है कि उन्होंने नीरव मोदी के मामले में जाँच बिठाकर छानबीन कर अपराधियों को पकड़ने से ज्यादा मामला को रफ़ा-दफ़ा करने का प्रयास किया था। इसके बाद आलोक पर सी शिवशंकरन का मामला समेट कर उन्हें बचाने का भी आरोप है। बता दें कि सी शिवशंकरन पर IDBI बैंक के साथ 600 करोड़ रुपए के लोन फ्रॉड का आरोप है।

मोइन कुरैशी केस में भी आयोग की रिपोर्ट में आलोक वर्मा पर संदेह जताया गया कि उन्होंने सतीश साना से 2 करोड़ की रिश्वत ली थी। इस रिपोर्ट के सबूतों (circumstantial evidence) के आधार पर पूरा सच सामने आ सकता है, अगर कोर्ट के द्वारा जांच का आदेश मिले।

आईआरसीटीसी केस में भी आलोक वर्मा पर आरोप है। इस केस में उन्होंने संदिग्ध राकेश सक्सेना का नाम FIR से नाम हटवा दिया था। जिसके पीछे कारण बताया गया कि राकेश सक्सेना उनके करीबियों में से एक थे।

पशु तस्करी के मामले से भी आलोक अछूते नहीं हैं। इस मामले में भी उन पर कई आरोप लगे हैं, हालांकि इनकी अभी पुष्टि नहीं हुई है।

हरियाणा में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रही जाँच में पुख़्ता सबूत के लिए समय और रिसोर्सेज की जरूरत पर आयोग ने बल दिया। हालाँकि आयोग का कहना है कि अगर इस पर उन्हें कोर्ट से जाँच का आदेश मिलेगा तो वो इसका निष्कर्ष दो हफ्तों में जरूर निकाल देंगे।

दिल्ली एयरपोर्ट पर सोने की तस्करी करने वाले राज़कुमार पर भी आलोक वर्मा ने कोई कदम नहीं उठाया था। इसकी पुष्टि भी आयोग की रिपोर्ट द्वारा की गई है।

इसके अलावा भी बहुत से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जो आलोक की साख पर सवाल उठाते हैं। लखनऊ की ब्राँच में नियुक्त एडिशनल एसपी सुधाँशु खरे ने भी आलोक पर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में एटीएस एडिशनल एसपी राजेश साहनी की आत्महत्या के मामले पर आलोक ने जाँच करने से मना कर दिया था। खरे का कहना है कि ऐसा उन्होंने यूपी पुलिस के कुछ अफसरों को बचाने के लिहाज़ से किया था। जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस मामले पर सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

खरे ने आलोक वर्मा पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले में पकड़े गए कुछ लोगों को बचाने का भी आरोप लगाया था। साथ ही रंजीत सिंह और अभिषेक सिंह नाम के लोगों को लखनऊ एसबीआई बैंक फ्रॉड के आरोपों से बचाने का भी प्रयास किया था।

आश्चर्य की बात है कि खरे ही वो अधिकारी हैं, जिन्होंने संयुक्त निदेशक राजीव सिंह के खिलाफ विभाग जाँच करने की माँग की थी, लेकिन राजीव पर जाँच बिठाने की जगह आलोक ने खरे पर ही प्रारंभिक जाँच के आदेश दे दिए।

ये सारे मामले और सीवीसी की रिपोर्टों में लगाए गए आरोप निश्चित रूप से ही बेहद गंभीर हैं। मुख्य रूप से विजय माल्या, नीरव मोदी, आईआरसीटीसी मामले जैसे हाई प्रोफाइल मामले। इनके साथ अन्य मामलों को मिलाकर देखेंगे तो ऐसा प्रतीत होता है कि आलोक वर्मा सीबीआई डायरेक्टर नहीं बल्कि वो दीमक थे, जो अपने पद और कुर्सी से जुड़े दायित्वों के साथ-साथ सीबीआई जैसी संस्था को लगातार खोखला कर रहे थे।

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न्यायमूर्ति सीकरी ने सीवीसी रिपोर्ट को पढ़ने के बाद
आलोक वर्मा को पद से हटाने का फ़ैसला किया जबकि कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इन दोनों के फ़ैसले पर अपनी आपत्ति दर्ज़ की थी।

बरखा जी, पीरियड्स को पाप और अपवित्रता से आप जोड़ रही हैं, सबरीमाला के अयप्पा नहीं!

बरखा एक सुंदर-सा नाम है जिसका अर्थ है वर्षा या बारिश। बारिश की प्रक्रिया बहुत ही रोचक होती है। धरती का पानी किसी भी रूप में हो, चाहे वो गंदा नाला हो, नदी हो, समुद्र हो, पोखर हो या झील, गर्मी के कारण वाष्प बनकर, तमाम गंदगी को त्यागकर अपने शुद्ध रूप में, आसमान में पहुँचता है। वहाँ शीतलता के कारण वो बादल बनता है, फिर वही पानी बनकर हम पर वापस बरसता है। ये होती है बरखा!

ये नाम मुझे इसलिए याद आया क्योंकि भारत की मशहूर पत्रकार हैं बरखा दत्त जो अमेरिका को बराबर याद दिलाती हैं कि हमने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाया, तुम्हारे यहाँ आजतक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनीं। ये बात उनके उस आर्टिकल में दिखी जिसे उन्होंने ट्विटर के माध्यम से शेयर किया है और कहा है कि आइए और असहमति जताइए।

इस आर्टिकल के शीर्षक से लेकर अंत तक कई जगह कॉन्सैप्चुअल ग़लतियाँ हैं, जो नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि बरखा तो वो है जो तमाम प्रदूषणों को तज कर शुद्ध, शीतल जल बनकर आती है। यहाँ बरखा ने जो लिखा है वो मानसिक प्रदूषण का वैयक्तिकरण है क्योंकि लिखने वाले को इतनी मेहनत तो करनी चाहिए कि वो जिस विषय पर लिख रही है, उसके बारे में अपनी अवधारणाओं और पूर्वग्रहों से बाहर निकलकर कुछ सोचने की कोशिश करे!

बरखा दत्त ने ऐसा कुछ नहीं किया, बस पहले पैराग्राफ़ से एक गलत सोच को सार्वभौमिक सत्य और सनातन धर्म का निचोड़ मानकर ऐसे समाँ बाँधा कि लेफ़्ट-लिबरल आह-वाह करते पगला गए होंगे। वाशिंगटन पोस्ट के ‘ग्लोबल ओपिनियन’ स्तम्भ में शीर्षक से ही बरखा जी ने क्रिएटिविटी और अपनी नासमझी दोनों का परिचय दिया है। ‘स्टेन्स’ शब्द पर किया गया खेल रोचक ज़रूर है, लेकिन जैसा कि वोल्टेयर ने कहा है, ‘अ विटी सेईंग प्रूव्स नथिंग’, तो उस शब्द से साबित कुछ नहीं हुआ।

बरखा दत्त के विचारों के मूल में जो बात है, वो यहाँ आकर शुरु और ख़त्म हो जाती है कि “menstruation should not bar us from praying at a temple”। मतलब, माहवारी या पीरियड्स के लिए किसी भी महिला को मंदिरों में पूजा करने से रोका नहीं जाना चाहिए। ऊपर से यह कथन बिलकुल सही लगता है, तर्कसंगत भी कि आज के दौर में ऐसी बातों की कोई जगह कैसे है?

लेकिन बात ‘अ टेम्पल’ की नहीं है, बात है ‘द टेम्पल’ की। अंग्रेज़ी का थोड़ा बहुत ज्ञान मुझे भी है, इसलिए पता चल जाता है कि बुद्धिजीवी जो ढेला फेंक रहे हैं, वो कहाँ गिरेगा। एक अक्षर से आपने जेनरलाइज़ कर दिया कि महिलाओं को पीरियड्स के कारण पूजा करने से मंदिरों में रोकना ग़लत है, लेकिन आप यह तो बताइए कि कितने मंदिरों में, और क्यों?

आगे बरखा जी ने लिखा है कि ‘मायथोलॉजी के अनुसार’ स्वामी अयप्पा, जो कि वहाँ के देवता हैं, वो ‘एक बैचलर थे’ इसलिए उन्होंने नियम बनाए कि उनके यहाँ कौन आकर आशीर्वाद ले सकता है। बरखा जी, हम लोग एक विचित्र देश में रहते हैं। विचित्र इस कारण कि आप इस देवता के मंदिर में जाने का ढिंढोरा दुनिया भर में भारतीय महिलाओं के प्रोग्रेस पर धब्बे के रूप में दिखा सकती हैं, लेकिन आपको और धब्बे नहीं दिखते।

दूसरी विचित्र बात यह है कि इस देश में मंदिरों के देवी-देवता को ‘लीगल पर्सन’ का दर्जा मिला हुआ है। जैसे कि आपको शायद ज्ञात होगा, और आपने अनभिज्ञता में उसे ज़रूरी नहीं समझा हो, कि अयोध्या केस में ‘रामलला’ भी एक पार्टी है जिसे सुप्रीम कोर्ट तक स्वीकारती है। उसी तरह, अयप्पा स्वामी भी अपने परिसर में कौन आए, न आए उसी तरह डिसाइड कर सकते हैं जैसे कि आप, अपने घर के लिए करती हैं। घर तो छोड़िए, आपके टाइमलाइन पर कोई कुछ बोल देता है तो वो ट्रोल कह दिया जाता है।

आखिर मूर्ति और मंदिर को पत्थर से ज़्यादा क्यों मानते हैं हिन्दू?

जो लोग ईश्वर को मानते हैं, वो मंदिरों को मानते हैं, वो उन बातों को भी मानते हैं जो जानकार पुजारी या शास्त्र बताते हैं। जैसे कि हनुमान की उपासना महिलाएँ कर सकती हैं, पर आप उन्हें छू नहीं सकती। इसके पीछे तर्क यह है कि बजरंगबली की प्राण-प्रतिष्ठा किसी मंदिर या पूजाघर में होने के बाद उनमें उस देवता का एक अंश आ जाता है, और हमारे लिए पत्थर की मूर्ति देवता हो जाती है। जब आप मूर्ति को देवता मानते हैं, और प्राण-प्रतिष्ठा कराकर स्थापित करते हैं, तो आप यह नहीं कह सकते कि मैं तो नहीं मानती कि हनुमान को छूने से उनका ब्रह्मचर्य नष्ट हो जाएगा।

उसी तरह सबरीमाला में जो देवता हैं, उनकी प्रकृति ब्रह्मचारियों वाली है, और आप वहाँ, वहाँ के स्थापित नियमों के साथ छेड़-छाड़ करके जा रही हैं, तो आपको मनोवांछित फल नहीं मिलेगा। यहाँ आप सामाजिक व्यवस्थाजन्य जेंडर इक्वैलिटी की बात को ग़लत तरीके से समझने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि अगर यहाँ स्त्रियों का जाना वर्जित नहीं रहा तो क्या मूर्ति के पास बैठकर मांसाहार सही होगा? वहाँ क्या जूठन फेंक सकते हैं? क्योंकि मांसाहार तो संविधान प्रदत्त अधिकार है कि हमारी जो इच्छा हो, हम खा सकते हैं। यहाँ मंदिर को आप एक स्थान मात्र नहीं, देवस्थान मानते हैं इसलिए आप उसके नियमों को भी मानते हैं कि यहाँ मांसाहार वर्जित है। कल को संवैधानिक अधिकारों के नाम पर मंदिर में मांस ले जाना भी सही कहा जाएगा क्योंकि बस स्टेशन में तो मना नहीं होता!

उसके बाद बरखा जी ने “institutional weaponization of bigotry against women” का ज़िक्र किया है जिसका मतलब उतना ही ख़तरनाक है जितनी अंग्रेज़ी के ये भारी-भरकम शब्द। कुल मिलाकर मैडम यह कह रही हैं कि व्यवस्थित तरीके से महिलाओं के साथ भेदभाव करने का हथियार तैयार कराया जा रहा है! जी! कल को इसी तर्क से पुरुषों के ट्वॉयलेट महिलाओं को न घुसने देने की बात भी व्यवस्थित तरीके से महिलाओं के साथ भेदभाव की संज्ञा दी जा सकती है? जब एबसर्ड बातें ही करनी हैं, तो ये भी सही!

बरखा दत्त को न तो हिन्दू धर्म के बारे में पता है, न ही वो ऐसी कोशिश करती दिखती हैं। क्योंकि मैंने कोशिश की तो मुझे वैसे लोग मिल गए जो इस पर शोध कर चुके हैं, या इस विषय की अच्छी समझ रखते हैं। हो सकता है वो बेकार ही लोग होते, जिन्हें बरखा दत्त समझ नहीं पाती, यही कह देतीं कि कुतर्की है, लेकिन कोशिश तो कर लेती! उन्होंने नहीं की।

क्या कहते हैं इस विषय पर जानकार

मैंने नितिन श्रीधर नाम के एक लेखक से बात की जिन्होंने सबरीमाला और पीरियड्स को लेकर एक पुस्तक लिखी है जिसमें तमाम समाजों और संस्कृतियों में इसकी अवधारणा को लेकर बात की गई है। उन्होंने बरखा दत्त के आर्टिकल को पढ़ने के बाद संक्षेप में यह कहा:

“बरखा दत्त का लेख सिर्फ़ इसलिए ग़लत नहीं है कि वो हिन्दू संस्कृति की इन बुनियादी बातों से अनभिज्ञ हैं जैसे कि मंदिर ऊर्जा का एक केन्द्र होता है, न कि घूमने-फिरने की जगह; या यह कि मंदिर में उस देवता का एक विशिष्ट तत्व और विशिष्ट ऊर्जा का वास होता है, जिसे सुरक्षित रखना ज़रूरी है; बल्कि इस स्तर पर भी उनके लेखन में समस्या है कि वो पश्चिमी संस्कृति के ईसाई मत में पीरियड्स को लेकर फैली भ्रांतियों को हिन्दू धर्म पर थोप रही हैं।

हिन्दू धर्म में माहवारी या पीरियड्स को ‘अशौच’ कहते हैं जिसका ‘नैतिक पतन’ से कोई वास्ता नहीं। ये किसी भी तरह से किसी पाप की तरफ़ इशारा नहीं करता। हिन्दू धर्म में अशौच का मतलब बस इतना है कि रजस्वला स्त्री ‘रजस्’ की ऊँची अवस्था को प्राप्त है। यहाँ ‘रज’ का तात्पर्य रक्त से है, और ‘रज’ को राजसिक ऊर्जा भी कहते हैं। ‘रज’ ही ‘रजोगुण’ भी है।

यही कारण है कि जब आप ‘रजस्’ की ऊँची अवस्था में होते हैं तो आप धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने या मंदिरों में जाने की स्थिति में नहीं होते। जब पीरियड्स के लिए ‘अशौच’ का प्रयोग होता है तो उसका मतलब बस यही है। पीरियड्स को अशुद्धता से जोड़ने की बात ईसाई मत में है जहाँ इसे ईव के पतन से जोड़कर देखा जाता है। उनके लिए पीरियड्स में होना पाप की स्थिति में होने जैसा है। ये हमारा दुर्भाग्य है कि भारतीय लोग पश्चिमी संस्कृति की इन बातों का अंधानुकरण करते हैं, और फिर उन्हें हिन्दू परम्पराओं के साथ मिलाकर कुछ का कुछ बना देते हैं।”

बरखा दत्त चाहतीं तो इसके दूसरे नज़रिए को देख पातीं क्योंकि वो एक पत्रकार हैं, राजनेता नहीं कि उन्हें विचारधारा के खूँटे में बँधे रहने की बाध्यता है। केरल के ही क़रीब छः मंदिर ऐसे हैं जहाँ पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। दुर्गा को सिंदूर सिर्फ़ महिलाएँ ही लगा सकती हैं। कामख्या मंदिर के बारे में मैं क्या लिखूँ जहाँ रजस्वला होती देवी की उपासना होती है क्योंकि बरखा दत्त की बुनियाद ही हिली हुई है जहाँ वो ‘अ टेंपल’ कहते हुए भारत के हर मंदिर में रजस्वला लड़की के जाने पर प्रतिबंध की बात ‘ग्लोबल ओपिनियन’ में रख रही हैं।

आर्टिकल का अंत झूठ और अनभिज्ञता की बुनियाद पर खड़े लेख के अंत होने के नैसर्गिक तरीक़े से ही होता है जहाँ वो कहती हैं कि औरतों की उपलब्धियों का जश्न मनाने की हर बात बेकार है अगर ये माना जाता रहे कि “female blood is a social blot” (स्त्री का ख़ून समाज पर लगा कलंक है)।

अपने आप को वो एक जगह नारीवादी भी बताती हैं जो कि कोई बुरा काम नहीं है लेकिन अगर वो नारीवाद को समझ पातीं तो उन्हें इस बात का अहसास होता कि नारीवाद, नारी के पुरुष बनने की कोशिश नहीं है, बल्कि नारीवाद नारियों को समान अवसर देने की बात है। साथ ही, कोई भी ‘वाद’ सामाजिक या धार्मिक दायरे से बाहर नहीं हो सकता क्योंकि हम इसी समाज का हिस्सा हैं, जो आप चाहें, या न चाहें, धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से चलता है।

जो मान्यताएँ ग़लत हैं, उन्हें हम नकारेंगे। कोई परम्परा है जो कि स्त्री की स्वतंत्रता का हनन करती है, तो उसका विरोध होना चाहिए लेकिन स्त्री की स्वतंत्रता का ये बिलकुल मतलब नहीं है कि आप ज़िद करके एक बड़ी जनसंख्या के धार्मिक अनुष्ठान को सिर्फ़ इसलिए भंग करने पर तुली हैं क्योंकि उसके कुछ नियम आपकी समझ से बाहर हैं।

अंत में, बरखा जी, मंदिर वो जाते हैं जिनकी आस्था है भगवान में। मंदिरों को पर्यटन स्थल की तरह देखने के लिए भी लोग जाते हैं, उस पर मनाही नहीं है। लेकिन किसी दूसरे की धार्मिक मान्यताओं का हनन सिर्फ़ इसलिए करना क्योंकि आप कर सकती हैं, सर्वथा अनुचित है। मैं चाहूँगा कि आप इस धर्म को समझने की कोशिश करें, कुछ जानकार लोगों से बात करें, अपने आप को अंतिम अथॉरिटी मानने की कुलबुलाहट पर नियंत्रण रखें और दूसरों को सुनने की कोशिश करें।

चूँकि आप गोमांस खा सकती हैं, तो क्या कल आप संविधान के मौलिक अधिकारों का हवाला देकर किसी मंदिर के गर्भगृह में बैठकर गोमांस खाएँगी? क्योंकि आपके तर्क के अनुसार आप ‘ग्लोबल ओपिनियन’ वाले स्तम्भ में यह भी लिख सकती हैं कि इक्कीसवीं सदी के भारत में मंदिरों में मन का भोजन खाने पर पाबंदी हैं। आपको शायद पता न हो, पर कुतर्क इसी को कहते हैं। आप अगर चाहें तो सबरीमाला पर अपने दस मिनट इस लेख पर दे सकती हैं, क्या पता नए आर्टिकल के लिए किसी ‘बिगट’ के कुछ शब्द आपको स्ट्राइक कर जाएँ!

कोशिकाओं में ऊर्जा स्रोत की खोज करने वाले महान वैज्ञानिक डॉ सुब्बाराव का भी आज है जन्मदिन

आज स्वामी विवेकानंद का जन्मदिवस है जो सदैव विज्ञान की वकालत करते थे और धर्म को भी एक प्रकार का विज्ञान मानते थे। दैवयोग से आज एक महान वैज्ञानिक डॉ येल्लाप्रगडा सुब्बाराव का भी जन्मदिन है जिनका नाम बहुत कम लोगों ने सुना है। सुब्बाराव का जन्म 12 जनवरी 1895 को तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के भीमावरम नगर में हुआ था। स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनके परिजनों की मृत्यु हो जाने के कारण उन्होंने मैट्रिकुलेशन तीन साल में पास किया था। उसके बाद उनकी शिक्षा मित्रों के सहयोग से पूरी हुई।

डॉ येल्लाप्रगडा सुब्बाराव ने Adenosine Triphosphate (ATP) मॉलिक्यूल की कार्यप्रणाली का पता लगाया था जिससे कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है। हम हाई स्कूल में विज्ञान की पुस्तकों में पढ़ते हैं कि कोशिकाओं में ऊर्जा तब उत्पन्न होती है जब उसमें कार्बोहायड्रेट ऑक्सीजन के साथ जलता है। कोशिकाओं में माईटोकोन्ड्रिया होता है जहाँ यह ऊर्जा ATP मॉलिक्यूल के रूप में उत्पन्न होती है। हमारे शरीर की मांसपेशियाँ इस ऊर्जा की मदद से कार्य करती हैं। डॉ सुब्बाराव की यह खोज उन्हें डीएनए की खोज करने वाले वाटसन और क्रिक जैसे वैज्ञानिकों के समतुल्य ला खड़ा करती है।

परन्तु दुर्भाग्य से अधिकांश भारतीयों ने पाठ्यपुस्तकों में डॉ सुब्बाराव का नाम तक नहीं पढ़ा होगा। डॉ सुब्बाराव की प्रारंभिक अकादमिक पढ़ाई मद्रास मेडकल कॉलेज में हुई थी। सुब्बाराव राष्ट्रवादी विचारधारा के व्यक्ति थे और गाँधी के विचारों से प्रभावित होकर खादी का लैबकोट पहनते थे, इसीलिए अंग्रेज प्रोफेसर उनसे नाराज थे। पढ़ाई में अच्छा होने के बावजूद सुब्बाराव को MBBS के स्थान पर LMS की कमतर डिग्री दी गई थी जिसके कारण उन्हें मद्रास मेडिकल सर्विस में दाख़िला नहीं मिला था।

लक्ष्मीपति आयुर्वेदिक कॉलेज में एनाटोमी पढ़ाते हुए उनकी रुचि आयुर्वेद में बढ़ी और उन्होंने इस विषय पर काफ़ी रिसर्च भी किया। उनकी आगे की पढ़ाई का खर्च उनके होने वाले श्वसुर कस्तूरी सत्यनारायण मूर्ति ने वहन किया। बाद में जब वे हार्वर्ड पढ़ने गए तब भी उनके श्वसुर ने उनकी सहायता की। डॉ सुब्बाराव ने 1930 में पीएचडी की डिग्री अर्जित की थी।

उन दिनों अमेरिका में बाहर से आने वालों को सरलता से वीसा नहीं मिलता था। डॉ सुब्बाराव ‘फिज़िशियन’ बनकर अमेरिका गए और उन्होंने वहाँ उन्होंने सायरस फिस्के के साथ मिलकर ATP की खोज की। हमारे शरीर को जब ऊर्जा की आवश्यकता होती है तब वह ATP को Adenosine Diphosphate (ADP) में कन्वर्ट करता है। डॉ सुब्बाराव के शोध ने शरीर में मौजूद फॉस्फोरस के महत्व को समझाया था। उन्होंने विभिन्न प्रकार के एंटीबायोटिक पर भी काम किया था जिसके फलस्वरूप ऑरियोमाइसीन नामक शक्तिशाली एंटीबायोटिक बना।

डॉ सुब्बाराव ने कैंसर के इलाज के लिए मेथोरेक्सेट नामक केमिकल को भी सिन्थेसाइज़ किया था जिससे कीमोथेरेपी के लिए सबसे पहला एजेंट निर्मित हुआ। भारत के स्वतंत्र होने के एक वर्ष पश्चात ही 1948 में डॉ सुब्बाराव का देहांत हो गया था। उनके बारे में पत्रकार डोरोन एट्रिम ने लिखा था “आपने शायद डॉ सुब्बाराव का नाम नहीं सुना होगा जबकि वे इसलिए जिए ताकि आप जीवित रह सकें।”

शारदा घोटाले में नलिनी चिदंबरम पर CBI ने की चार्जशीट दायर

सीबीआई ने शारदा चिट फंड घोटाले के मामले में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम पर चार्जशीट दायर की है। सीबीआई ने कहा है कि शारदा स्कैम में नलिनी चिदंबरम ने 2010 से 2012 के बीच 1.4 करोड़ रुपए लिए। उनके खिलाफ कोलकाता की अदालत में चार्जशीट दायर की गई है। नलिनी के खिलाफ शारदा कंपनियों के समूह के प्रॉपराइटर सुदीप्तो सेन के साथ मिल कर आपराधिक साजिश रचने, ठगी और रुपयों के गबन के आरोप भी लगाए गए हैं।

बता दें कि पश्चिम बंगाल में हुए करीब 2500 करोड़ के शारदा चिट फण्ड घोटाले का खुलासा 2013 में हुआ था। इस मामले को लेकर शारदा ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर एवं चेयरमैन सुदीप्तो सेन को गिरफ्तार भी किया गया था जिन पर फ्रॉड कर के रुपयों के गलत इस्तेमाल करने का मामला चलाया गया। उन्हें फरवरी 2014 में पश्चिम बंगाल की विधान नगर अदालत ने तीन साल की सज़ा सुनाई थी।

इसी घोटाले के मामले में ममता बनर्जी की तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) के नेताओं के नाम भी सामने आए थे। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री रहे मदन मित्रा से इस मामले में पूछताछ भी की थी। वो फिलहाल जमानत पर बाहर हैं।

अगर चिदंबरम परिवार की बात करें तो पी चिदंबरम पर एयरसेल-मैक्सिस मनी लॉन्डरिंग के मामले में ED ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था। फिलहाल जमानत पर बाहर चिदंबरम को अदालत द्वारा कई बार राहत प्रदान किया जा चुका है। ED भी उनसे अब तक चार बार पूछताछ कर चुकी है। वहीं पी चिदंबरम व नलिनी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम पर भी आईएनएक्स मीडिया के लिए फॉरेन इन्वेस्टमेंट में अनियमितता बरतने का मामला चल रहा है। ED ने उन्हें पिछले वर्ष फरवरी में गिरफ़्तार भी किया था, जिसके बाद वो भी लगातार जमानत पर बाहर हैं।

आज (जनवरी 11, 2019) भी सीबीआई की विशेष अदालत ने पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम की गिरफ़्तारी पर 1 फरवरी तक रोक लगा दी है। इस मामले में कॉन्ग्रेस के दो नेता- कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी वकील के तौर पर चिदंबरम पिता-पुत्र की तरफ से अदालत में पैरवी कर रहे हैं।

अब शारदा चिट फंड घोटाले में नलिनी चिदंबरम का नाम आने के बाद पूरे चिदंबरम परिवार की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

‘आ जाओ मोदी जी, वसुंधरा जी… सबको पेटी में पैक करके भेजूंगा; पत्थर का जवाब AK-47 से दूँगा’

राजस्थान के अलवर से बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के नेता जगत सिंह अपने एक बयान के चलते विवादों में आ गए हैं। समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से जारी किए गए वीडियो में बीएसपी नेता जगत सिंह ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी, अशोक गहलोत और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर निशाना साधा है। इस वीडियो में उन्होंने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा “मैं पीछे नहीं हटूँगा भाईयों। गोली चलेगी तो पहली गोली मेरे सीने में लगेगी। पत्थर का जवाब AK-47 के साथ करता हूँ मैं। “

सिंह इतने पर भी नहीं रुके बल्कि उन्होंने बीजेपी को चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा कि आ जाओ अशोक जी, आ जाओ मोदी जी, आ जाओ वसुंधरा जी, सबको पेटी में पैक करके भेजूंगा। ANI ने यह वीडियो बुधवार (जनवरी 9, 2019) को अपने ट्विटर हैंडल से शेयर किया था।

दरअसल, रामगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़ रहे बीएसपी उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह के निधन के चलते चुनाव रद्द करना पड़ा था। अब इस सीट पर आगामी 28 जनवरी को मतदान होगा, जिसके लिए बीएसपी ने जगत सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है। ऐसा अंदेशा लगाया जा रहा है कि यह विवादित वीडियो नामांकन वाले दिन का है, जिसमें वो एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे।

आपको यह भी बताते चलें कि जगत सिंह जिनके तीखे बोल आज बीजेपी के ख़िलाफ़ हैं, वो कभी बीजेपी से विधायक थे। बीजेपी से उनका रिश्ता नया ना होकर 10 साल पुराना है, जो अब दुश्मनी में बदल गया है। बता दें कि दुश्मनी में बदले इस रिश्ते की बुनियाद उन्हें बीजेपी द्वारा टिकट ना दिया जाना था। जिसके चलते उनके बोल इस क़दर बिगड़ गए हैं।

बीजेपी पर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर करने के लिए जगत सिंह ने जनसभा को संबोधित करने का रुख़ किया और वो सब बोल गए, जो उन्हें शोभा नहीं देता। अपने भड़काऊ भाषण में बीजेपी को टारगेट करके उन्होंने अपनी जिस भाषा का परिचय दिया, उससे साफ़ पता चलता है कि वो बीजेपी की छवि ख़राब करना चाहते हैं।

अपने पति के हत्यारों से भला सोनिया को इतनी सहानुभूति क्यों है?

भारतीय राजनीतिक इतिहास में 9 दिसंबर का दिन बेहद महत्वपूर्ण है। इसी दिन 200 साल के ब्रिटिश हुकूमत से आजादी के बाद देश के भावी-भविष्य के लिए संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली के कंस्टीट्यूशनल हॉल में हुई थी। और अब इसी दिन 9 दिसंबर 2018 को अपने जन्मदिन के मौके पर सोनिया ने डीएमके नेताओं से मिलकर कॉन्ग्रेस-डीएमके गठबंधन को लोकसभा चुनाव के लिए एक तरह से हरी झंडी दिखाई। ऐसा करके सोनिया ने एक ऐसे राजनीतिक दल के साथ गठबंधन किया है, जिस दल के नेता पर राजीव गाँधी हत्याकांड में शामिल होने का आरोप है।     

सोनिया गाँधी के 72वें जन्मदिन 9 दिसंबर 2018 के मौके पर राहुल गाँधी ने ट्वीट करके कुछ तस्वीर साझा की थी, इस तस्वीर में सोनिया गाँधी डीएमके के नेताओं से मिलते हुए दिख रही हैं। डीएमके नेता टीआर बालू, स्टालिन और ए राजा ने दिल्ली में सोनिया से मुलाकात करके शॉल ओढ़ाकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी। इसके साथ ही यह ज़ाहिर हो गया कि आने वाले चुनाव में कॉन्ग्रेस-डीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। लेकिन राजनितिक बहस यहाँ आकर खत्म नहीं होती है, बल्कि यहाँ से शुरू होती है।

यह सोचने वाली बात है कि एक राजनीतिक पार्टी, जिसके नेताओं पर राजीव गाँधी हत्या का आरोप है, उस पार्टी के नेताओं से अपने जन्मदिन की सुबह सबसे पहले मिलकर सोनिया क्या संकेत देना चाहती है? क्या ऐसा करके सोनिया ने उस दल से दोस्ती कर ली है, जिसके उपर राजीव गाँधी के क़त्ल का इल्जाम है? इस सवाल का जवाब है, ‘हाँ, सोनिया ने अपने पति के हत्यारोपी से दोस्ती आज नहीं बल्कि एक दशक पहले ही कर ली थी।’ इस गठबंधन के बाद कई लोगों को हैरीनी हुई थी। लोगों की यह हैरानी जायज़ भी थी, क्योंकि राजीव सिर्फ़ सोनिया के पति नहीं बल्कि देश के प्रधानमंत्री भी थे।

जब राजीव की हत्या में डीएमके नेताओं का नाम आया

राजीव गाँधी की हत्या के बाद जाँच के लिए एक जैन कमीशन का गठन किया गया था। इस कमीशन को राजीव गाँधी हत्याकांड को सुलझाने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस कमीशन ने अपने अंतरिम रिपोर्ट में इस बात को ज़ाहिर किया कि श्रीपेरेंबदूर में राजीव की हत्या करने वाले आतंकवादी, राज्य के डीएमके नेताओं के संपर्क में थे। जब यह घटना हुई तब राज्य में डीएमके की सरकार थी। ऐसे में रिपोर्ट में इस बात की चर्चा है कि कई डीएमके नेताओं को भी इस साज़िश की जानकारी थी।

हालाँकि, बाद में जब जैन कमीशन की रिपोर्ट आई तब केंद्र में आईके गुजराल साहब की सरकार थी। गुजराल सरकार में डीएमके गठबंधन दल के रूप में शामिल थी। ऐसे में इस बात की संभावना ज़ाहिर की गई कि सरकार ने जानबूझकर अंतरिम रिपोर्ट से उस हिस्से को अलग कर दिया जिसमें डीएमके उपर कार्रवाई करने की बात कही गई थी। तब कॉन्ग्रेस ने भी गठबंधन सरकार से डीएमके को बाहर करने की बात कही थी। जब कॉन्ग्रेस पार्टी की बात को गुजराल ने नज़रअंदाज़ कर दिया तो पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था।

लेकिन आश्चर्च की बात यह है कि इसी डीएमके से सोनिया ने 2004 लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर लिया। इस गठबंधन के पिछे सोनिया ने यह तर्क दिया था कि एक सांप्रदायिक पार्टी को हराने के लिए मैंने ऐसा किया है। लेकिन ऐसा करके अपने पति की मौत को अंजाम देने वाले डीएमके को भले ही सोनिया ने माफ़ कर दिया हो, परंतु उसी डीएमके ने 2G घोटाले की बात सामने आने के बाद अपने नेताओं को भ्रष्टाचार में फँसता देख समर्थन वापस ले लिया।

एक भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए अपने पति की मौत को भूल जाने वाली सोनिया की डीएमके ने जरा भी परवाह नहीं की। इन सबके बावजूद एक बार फ़िर से मोदी सरकार को गिराने के लिए दोनों दलों ने पहले के किए-धरे पर मिट्टी डालकर गठबंधन कर लिया है।

जब करुणानिधि ने खुद प्रभाकरण को दोस्त बताया

भारतीय जाँच एजेंसी इस बात को ज़ाहिर कर चुकी है कि राजीव के मौत में लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण का हाथ था। प्रभाकरण ने इस घटना को अंजाम देने के लिए पूरी रणनीति तैयार की थी। देश के एक भावी युवा नेता को मारने के लिए कोई और नहीं बल्कि प्रभाकरण जिम्मेदार है, यह जानते हुए भी 2009 को अपने एक इंटरव्यू में करुणानिधि ने बताया कि प्रभाकरण उनके काफ़ी अच्छे दोस्त थे। ऐसा कहकर डीएमके नेता ने एक तरह से राजीव के हत्यारे से अपनी दोस्ती होने की बात को स्वीकार कर लिया। यह सोचने वाली बात है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद  सोनिया के नेतृत्व वाले कॉन्ग्रेस ने करुणानिधि से हाथ मिलाना स्वीकर किया।

अपने पति के हत्यारे से दोस्ती कैसी?

यह कितना आश्चर्य की बात है कि राजनीतिक नफ़ा-नुकसान को देखते हुए एक महिला नेता उस पार्टी के साथ मंच साझा करने लगती है, जिसने कभी उसके पति की मौत का ताना-बाना बुना था। यही नहीं इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि सोनिया ने अपनी बेटी को पिता के हत्यारे से मिलने के लिए जेल भेजा। प्रियंका ने यह कहकर लोगों को चौंका दिया कि वह अपने पिता के हत्यारों को माफ़ करना चाहती है। ऐसा करते हुए प्रियंका ने ज़रा भी नहीं सोचा कि वो भारतीय कानून व्यवस्था से आगे निकल रही हैं।  किसी हत्यारे की सज़ा क्या होगी इस फ़ैसले का अधिकार प्रियंका नहीं बल्कि देश के न्यायपालिका का होता है।

2019 में भाजपा को वोट न देने के पक्ष में 5 भयंकर (और ठोस) तर्क – (नंबर फ़ोर विल ब्लो योर माइंड)

तर्क १ – राहुल गाँधी शायद चुप हो जाएँ और ध्वनि प्रदूषण कम करें

एक समय था जब राहुल गाँधी जी अधिकतर समय ननिहाल वगैरह घूम लिया करते थे और साल में चार बार नज़र आते थे जब मनमोहन जी को उनकी औकात दिखाने की ज़रूरत दिखाई देती थी। पर अब उनको दिन में चार बार नज़र आना पड़ता है रफ़ाल-रफ़ाल जपने, ऊपर से जिस मज़दूर के मुँह पर पहले ऑर्डिनेंस फाड़ के फेंका करते थे, अब उसके बर्थडे पे जबरदस्ती मुँह में केक ठूसना पड़ता है। तीन-चार साल तो राहुल जी ने आलू की फैक्ट्री, मक्डोनल्ड का ढाबा, कोका कोला शिकंजी जैसी भसड़ मचा कर थोड़ा मनोरंजन भी किया, पर अब वो भी नहीं कर रहे।

राहुल जी अगर प्रधानमंत्री बन जाये तो उसका फ़ायदा ये भी है की आपको आपके खुदके शहर गाँव मोहल्ले में बना मोबाइल भी मिल जायेगा। हालाँकि, सुतिया गाँव के लोग शायद ‘MADE IN SUTIYA’ फ़ोन न चाहें। पर रिस्क यह भी है कि अगर राहुल जी ने हर गली में मोबाइल फ़ैक्ट्री नहीं दिए तो हम सबको खुद अपने फ़ोन पे “MADE IN SUTIYA” लेबल लगाना पड़ सकता है।

तर्क २ – अपनी विफलताओं के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराने का मौका फिर से मिल पाए

जब से मोदी जी आए हैं सरकार लूट खसोट छोड़ के काम में लग गई है। जब ससुरी सरकार अपना काम करने लगेगी तो आम आदमी के पास भी काम करने के आलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचता। अब आपकी बात तो मैं नहीं कर सकता पर मैं पुराने वक़्त ज़रूर याद करने लगा हूँ, जब सरकार इतनी निक्कम्मी थी कि किसी भी विषय के लिए उसको गालियाँ दी जा सकती थी। ऐसा करने पर कोई आपको शक की निगाहों से भी नहीं देखता था बल्कि सुनने वाले अपनी तरफ से चार गाली और जोड़ देते थे। सरकार ऐसी होनी चाहिए कि आम आदमी जब रात को थका-हारा घर आए तो कोई हो जिससे गाली दिया जा सके बे-रोकटोक। ये काम कांग्रेस 70 साल से कर रही है और भाजपा इसमें कॉन्ग्रेस को पछाड़ नहीं सकती।

तर्क ३ – लिबरल वामपंथी अख़बार में वही चार घिसी-पिटी ख़बरें बंद हों और नया मसाला आये

हिन्दू-मुस्लिम, दलित, रफ़ाल से मुक्ति मिले। पहले तो कुछ तैमूर बाबा की न्यूज़ फिर भी आ जाती थी मन बहलाने को, पर जैसे इलेक्शन पास आ रहें हैं तैमूर तक को बेरहम पत्रकारों ने अपने पन्नो से निकाल फेका है। मोदी जी जाएँ तो फिर कुछ वरायटी आए। सोनिया जी क्या खाती हैं, क्या पकाती हैं, किस मंत्री पर आक्रोशित हैं, आदि महत्वपूर्ण ख़बरों के बिना जीवन सूना-सूना हो चला है।

तर्क ४ – कुछ बड़े आतंकवादी हमले हों और पाकिस्तान को पकिस्तानियत दिखने का मौक़ा मिले

अगर जैसे चल रहा है वैसे चलता रहा तो जल्द पाकिस्तान खुद भूल जायेगा की उसके अस्तित्व का मक़सद क्या है। साँप का डसना, कुत्ते का भौंकना, केजरीवाल का पगलाना और पाकिस्तान का आतंकवाद करना प्रकृति का नियम है और इसमें अड़ंगा डालना पाप है। राहुल जी इस बात को समझते हैं। राहुल जी सत्ता में आएँगे तो उनका दिया हुआ मैसेज कि ‘हर हमले को हम रोक नहीं सकते’ पाकिस्तान को हौसला देगा की इस तरफ कोई है जो उसकी वेदना समझता है।

तर्क ५ – हम किसी लिस्ट में तो विश्व में अव्वल दर्जा पा सकें

मोदी जी चाहे जो कर ले, भारत कितनी भी तेज गति से अपनी अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ा ले, कभी इथियोपिया जैसे छोटे देशों की गति से ज़्यादा तेज़ नहीं बढ़ेगा। हो सकता है इस साल भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था बन जाये पर फिर भी तीसरा ही रहेगा।

पर भारत दो लिस्टों में अव्वल आ सकता है, अगर मोदी जी जाएँ और कॉन्ग्रेस आ जाए।

अगर कॉन्ग्रेस वापस आ जाए तो वो इस्लामी देशों से आबादी भर-भर के भारत ला सकती है। इस से हम जल्द ही चीन को आबादी के मामले में पीछे छोड़ देंगे। अगर मोदी जी रहे तो रोहिंग्या, बांग्लादेशी तो वापस भेजे ही जाएँगे बल्कि हो सकता है, आबादी को काबू करने के लिए क़ानून भी ले आएँ। ऐसा हुआ तो भारत किसी चीज़ में अव्वल नहीं आ पाएगा। भारत को कम से कम एक जगह तो अव्वल लाने के लिए मोदी जी का जाना ज़रूरी है।

दूसरा लिस्ट जहाँ हम तुरंत एक नंबर पे हो सकते हैं, वो है घोटाला। कॉन्ग्रेस और सेक्युलर बंधुओं की घोटाला करने की क्षमता पे तो बस UNESCO की मोहर लगना बाकी है वरना भारतवासी तो नाज़ करते आएँ है इनकी इस कला पर 70 साल से।

लगे हाथों, एक और बोनस लिस्ट दिए देता हूँ जहाँ हमारी शान बढ़ जाये अगर मोदी जी जाएँ और राहुल जी आएँ।

ऐसा हुआ तो भारत दुनिया का पहला और एक मात्र देश होगा जिसके प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री बनने के पहले कभी कुछ करने में समय व्यर्थ नहीं किया, सीधा प्रधानमंत्री बने। अंग्रेज़ी में इसे ‘क्लैरिटी ऑफ़ पर्पस’ कहते हैं। मतलब पैदा होने के पहले से तय था कि देश हमारे बाप का ही है तो क्यों अपना और दूसरों का समय व्यर्थ करें कुछ काम करके! इस से पूरी दुनिया में मैसेज जायेगा की सोच में क्लैरिटी होनी चाहिए।

अगर अब भी आप सहमत नहीं होंगे कि मोदी जी को हटाना चाहिए तो आप ज़रूर घनघोर संघी मानसिकता से पीड़ित हैं। JNU जाकर इलाज कराइए। और जो सहमत हो गए उनको सलाम। और राहुल जी को वोट न करना हो तो NOTA ही दबा आएँ, कुल्हाड़ी पैर पर उतनी ही ज़ोर से पड़ेगी और न्यूट्रल का ठप्पा भी बरकरार रहेगा।

जय हिन्द! जय NOTA!

गौ-भक्त केजरीवाल, क्या से क्या हो गए देखते देखते

देश को पिछले एक-दो साल में जितने गौ-भक्त मिले हैं, इतने आज़ादी के 60 साल बाद तक कभी नहीं मिले थे। गौ भक्तों की श्रेणी में आज एक और नाम जुड़ गया है। ये नाम कोई और नहीं बल्कि देश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री का है, जिन्होंने अपने कई प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त करवाने से कई सौ साल पहले घोषणा कर दी थी कि वो ‘अलग किस्म की राजनीति’ करेंगे। हालात ये हुए कि दिल्ली में चुनाव प्रचार के पहले ही दौर में वो खुद को ‘पीड़ित बनिया’ बता गए।

जब भी केजरीवाल जी को ऐसी अलग किस्म की राजनीति करते हुए देखता हूँ तो मुझे क्रान्ति के शुरुआती दिनों में चंदा माँगकर ‘वॉलंटियर्स’ जोड़ने वाले वो भोले-भाले युवक याद आते हैं, जो कह रहे थे कि उन्होंने अपनी तनख्वाह का फ़लाना प्रतिशत आम आदमी पार्टी को दे दिया है। तभी दूसरा वॉलंटियर एक सत्संगी लेख लिखता हुआ मिलता था, जिसमें वो बताता था कि कैसे वो अपने कॉलेज से मिलने वाली स्कॉलरशिप आम आदमी पार्टी को देने के बाद ‘हल्का’ महसूस कर रहा था। भैया, हल्का ही महसूस करना था तो ‘पेट-सफ़ा’ ले लेते, बेकार में राजू श्रीवास्तव पीला कोट पहनकर सुबह शाम टेलीविज़न पर उसकी मार्केटिंग कर रहा है, जबकि वो अपने खाली समय में फ़ेसबुक पर लोगों को गाली दे सकता था।

देश की जनता बहुत समय से परेशान थी कि जब उनके क्रांतिकारी नेता अरविन्द केजरीवाल हाथों में पेचकस-प्लास लेकर बिजली नहीं बना रहे हैं, ना ही उनके फिल्मों के रिव्यु आ रहे हैं, तो वो मुख्यमंत्री होकर आखिरकार आजकल अपना कौन सा फ़र्ज़ निभा रहे हैं?

जवाब आज ही आम आदमी पार्टी द्वारा जारी किए गए एक विडियो में आ चुका है। मित्रों, केजरीवाल बाबू गौ माता को धुप-अगरबत्ती लगा रहे हैं, मैंने देखा कि विडियो में जिस गाय माता को वो आरती की थाली घुमा रहे हैं और तिलक लगा रहे हैं, वो केजरीवाल जी की गौभक्ति के कारण बहुत तंदुरुस्त हो गई है। मने कहाँ योगी जी असल गौसेवक होने का वादा करते रहे और कहाँ केजरीवाल जी ने यहाँ भी बाज़ी मार डाली।

ये गौभक्ति का निर्णय शायद केजरीवाल जी ने ट्विटर पर लोगों से जनादेश लेकर ही किया है। वो ट्वीट कर के जनता की राय पूछ भी चुके हैं कि क्या दिल्ली की जनता भी यही चाहती है की गाय की सेवा की जाए? जवाब शायद “हाँ” ही था

दोस्तों, देश में आस्था का सैलाब आ चुका है। अब बस मोदी जी ही ऐसे इंसान रह गए हैं जो हिन्दुओं के लाख चाहने के बावज़ूद भी हिन्दुओं के तुष्टिकरण के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं। वरना तो 48 वर्ष के युवा द्वारा जनेऊ धारण कर लिया जा चुका है, पहली रोटी गाय माता को खिलाई जाने लगी है। लिबरल-फेमिनाज़ी महिलाओं में मंदिरों में प्रवेश के लिए होड़ मची हुई है, कुछ तो सुबह 3 बजे उठकर मंदिर में घुसी जा रही हैं। जबकि किसी कट्टर हिन्दू शेर से अगर आप पूछेंगे कि वो आख़िरी बार कब नहा-धोकर ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर में भगवान के दर्शन करने गया था तो उसे यही याद करने में हफ्ता लग जाएगा कि वो आखिरी बार 10 बजे से पहले भी कब उठा था?

लेकिन आस्था का माहौल टाईट है, रोज सुबह उठकर सबसे पहले नाश्ते के साथ पित्रसत्ता और लंच में ब्राह्मणवाद को कोसने वाली फेमिनाज़ियों को भी अगर आप कह देंगे कि बहन आजकल मंदिर जाकर कॉन्ट्रोवर्सी हो रही है, तो वो भी बिना पिंक कलर के खरगोश के मुँह वाले ज़ुराब पहने ही दौड़ लगाकर झट से मंदिर में जाकर खड़ी हो जाएगी।

लेकिन अभी तो चुनाव आने में कुछ और महीने बाकी हैं। अभी मैं उम्मीद लेकर चल रहा हूँ कि देश में गाय माता खूब फूलेंगी-फलेंगी। आख़िरी बार गौ-माताओं का स्वर्णिम काल तब आया था जब मामले की नज़ाकत को भांपते हुए एक समाजवादी नेता ने बैलों को और एक लौह महिला ने गाय और बछड़े को अपनी पार्टी का चिन्ह घोषित कर दिया था। ये बात अलग है कि जरुरत पड़ने पर उसी कॉन्ग्रेस ने केरल में वामपंथियों के साथ मिलकर गाय को काटकर जबरदस्त प्रदर्शनी लगाकर उत्सव भी मनाया।

तो भैया, ये गाय माता हैं, बच्चों का बड़े से बड़ा अपराध भी क्षमा कर देना माता का स्वभाव होता है। इसलिए जितना हो सके चुनावों से पहले अपराध कर डालिए। जनता तो सब देख ही रही है।