बांग्लादेश में क्रिकेट का मैदान मानो शादी की शहनाई से गूँज उठा हो क्योंकि पेसर मुस्तफ़िज़ुर रहमान ने ढाका विश्वविद्यालय की छात्रा सामिया परवीन के साथ निकाह के बंधन में बंध गए जो रिश्ते में उनकी कज़िन लगती हैं। चूँकि कज़िन (cousin) शब्द का अर्थ चचेरा, ममेरा, फुफेरा कुछ भी हो सकता है इसलिए यह निश्चित नहीं है कि सामिया के साथ मुस्तफिजुर का रिश्ता क्या कहलाता है। बता दें कि इस्लाम में कज़िन के साथ निकाह किया जाना जायज़ माना जाता है।
जानकारी के मुताबिक़ निकाह शुक्रवार शाम को बांग्लादेश के सातखिरा के हादीपुर में सम्पन्न हुआ, जहाँ दूल्हा दुल्हन के परिवार समेत अन्य रिश्तेदार भी मौजूद थे। मुस्तफिजुर के भाई, महफ़ूज़ुर रहमान मिठू ने देशवासियों से नव-दंपत्ति के लिए प्रार्थना करने की अपील की।
मिठू ने कहा, “न्यूज़ीलैंड में हुई घटना के बाद मुस्तफिजुर घर आने के बाद बहुत परेशान था। इसीलिए हमने उससे शादी करने के लिए कहा। निकाह का यह निर्णय मेरी माँ ने लिया था। फ़िलहाल निकाह का रिसेप्शन विश्व कप के बाद होगा।”
बांग्लादेशी क्रिकेटर पेसर मुस्तफ़िज़ुर रहमान के निकाह की ख़बर जैसे ही लोगों की नज़र में आई वैसे ही सोशल मीडिया पर इसकी जमकर तफ़री ली गई। किसी ने लिखा कि ख़ुशी में शायद तलाक़ लेंगे और किसी ने लिखा कि ये क्या सच में कोई न्यूज़ है, या कोई मज़ाक है वरना ”ऐसा कौन करता है भई”।
ये सच मे न्यूज़ है, या कोई मज़ाक है वरना ”ऐसा कौन करता है भई”।
— Chowkidar Deepak Sharma (@deepaksharmaji_) March 23, 2019
बता दें कि बीते शुक्रवार (15 मार्च) की सुबह न्यूज़ीलैंड के क्राइस्टचर्च शहर के अल नूर मस्जिद में गोलीबारी हुई थी जिसमें कई लोगों के हताहत होने की ख़बर थी। इस घटना के बारे में न्यूज़ीलैंड पुलिस ने अपने बयान में क्राइस्टचर्च में गंभीर स्थिति पैदा होने की स्थिति को स्वीकारा था हमले से बिगड़ते हालात में शहर के सभी स्कूलों को बंद कर दिया गया था और भीड़भाड़ वाले इलाक़े से बचने की सलाह दी गई थी।
जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव के बीच पिछले कुछ महीनों से काफी नज़दीकियाँ देखी जा रही थी। दोनों साथ में मंच साझा करते और एक दूसरे के पक्ष में बोलते नज़र आ रहे थे जिसको लेकर ये कयास लगाया जा रहा था कि तेजस्वी, कन्हैया कुमार को गठबंधन में शामिल करेंगे या टिकट देंगे। लेकिन बिहार में महागठबंधन के बीच सीटों के बँटवारे के साथ ही ये साफ हो गया कि महागठबंधन ने कन्हैया को दूध में गिरी मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया। महागठबंधन ने कन्हैया को 3 साल चुनावी मंच पर परफ़ॉर्म करवाकर आगे का रास्ता दिखा दिया है।
महागठबंधन में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) को भी जगह नहीं मिली। लिहाज़ा कन्हैया कुमार का राजनीतिक भविष्य अंधेरे में जाता दिख रहा है। दरअसल कन्हैया सोच रहे थे कि आरजेडी के नेतृत्व में महागठबंधन में सीपीआई शामिल होगी और उनको आसानी से लोक सभा का रास्ता मिल जाएगा। मगर क्रिकेट की तरह राजनीति भी अनिश्चितताओं का खेल है, जहाँ कई बार वह नहीं होता जिसकी उम्मीद की जाती है।
सीपीआई ने पहले ही कन्हैया कुमार को बेगूसराय से उम्मीदवार घोषित कर दिया था, तो अब ऐसे में बेगूसराय सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने वाला है। एक तरफ आरजेडी बेगूसराय सीट से तनवीर हसन को मोर्चे पर उतारेगी, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से गिरिराज सिंह को उतारा जाएगा। इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच में से बेगूसराय सीट निकाल पाना कन्हैया के लिए काफी मुश्किल होगा।
बिहार के महागठबंधन में सीपीआई को शामिल नहीं किए जाने पर पार्टी के महासचिव सुधाकर रेड्डी ने दुख जताते हुए कहा कि इस मामले में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद से सहमति कायम होने के बावजूद उन्होंने इस पर अमल नहीं किया, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।
बता दें कि लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में महागठबंधन के बीच सीटों के बँटवारे का ऐलान हो गया है। आरजेडी प्रवक्ता मनोज झा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि राजद 20, कॉन्गेस 9, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को 5, जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को 3 और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को 3 सीटें दी गई है।
इस बीच कुछ विवादित सीटों को लेकर मामले सुलझाने की कोशिश की जा रही है। माले और रालोसपा, काराकाट सीट के लिए अड़े हुए हैं। वहीं वीआईपी पार्टी के मुकेश सहनी दरभंगा सीट चाहते है, जबकि कॉन्ग्रेस इस सीट पर कीर्ति आजाद को उतारना चाहती है। इसके साथ ही खबर है कि भाजपा के बागी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा 24 मार्च को कॉन्ग्रेस में शामिल हो सकते हैं और पार्टी की तरफ से उन्हें पटना साहिब सीट से उतारा जा सकता है। हालाँकि पहले शत्रुघ्न सिंहा के राजद में शामिल होने की खबरें आ रही थी। वहीं शरद यादव राजद की टिकट पर मधेपुरा से चुनाव लड़ेंगे। राजद एवं कॉन्ग्रेस के बीच चार या पाँच सीटों को लेकर मामला फंसा हुआ है। जिस पर सहमति बनने के बाद दूसरे फेज में इसकी घोषणा की जाएगी।
लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी ने देर रात अपनी दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट के जरिए आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा की सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उपस्थिति में हुई पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की चौथी बैठक के बाद इन 36 उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगी।
BJP releases list of 36 candidates from Andhra Pradesh, Assam, Maharashtra, Odisha. Girish Bapat to contest from Pune (Maharashtra), Sambit Patra to contest from Puri (Odisha). #LokSabhaElections2019
इस लिस्ट में सबसे बड़ा नाम भाजपा के तेज़ तर्रार राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा का है, जो ओडिशा की धार्मिक नगरी पुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। इससे पहले पुरी की सीट से इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लड़ने की खूब चर्चा थी, मगर इस लिस्ट के जरिए बीजेपी ने इन अटकलों पर भी विराम लगा दिया। इसके साथ ही दूसरी लिस्ट में गिरीश बापट का नाम भी शामिल है, जो महाराष्ट्र की पुणे लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। जारी की गई 36 उम्मीदवारों की लिस्ट में 23 उम्मीदवार आंध्र प्रदेश के हैं, जहाँ पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होगा। महाराष्ट्र से 6 और ओडिशा के 5 उम्मीदवारों के नाम है। इसके अलावा असम और मेघालय से भी एक-एक नाम शामिल है।
गौरतलब है कि बीजेपी ने गुरुवार (21 मार्च 2019) को 184 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की थी। जिसमें प्रमुख उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की गई। इस लिस्ट के मुताबिक पीएम मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ेंगे। पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के स्थान पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गांधीनगर से मैदान में उतरेंगे। गृह मंत्री राजनाथ सिंह अपनी पुरानी सीट लखनऊ से ही लड़ेंगे, जबकि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी नागपुर से प्रत्याशी होंगे। वहीं स्मृति ईरानी अमेठी से चुनाव लड़ेंगी।
BJP releases list of 51 candidates for elections to the legislative assembly of Andhra Pradesh, 22 candidates for Odisha and 1 candidate for by-election in Selsella (Meghalaya). pic.twitter.com/jtXFqFlQ3h
बता दें कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के अलावा तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए भी उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 51 उम्मीदवारों, ओडिशा विधानसभा चुनाव के लिए 22 उम्मीदवारों और मेघालय के सेलसेला विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव के लिए एक उम्मीदवार की लिस्ट जारी की है।
अस्सी और नब्बे के दशक की बॉलीवुड की फिल्मों में एक ख़ास बात हुआ करती थी कि विलेन चाहे शक्ल से चांदनी चौक पर झालमुड़ी बेचने वाले जितना बेबस, लाचार और दीन-हीन ही क्यों न दिखता हो, लेकिन उस ‘डागर साब’ के पास एक लाल डायरी और अटैची जरुर हुआ करती थी। इस लाल डायरी के साथ अगर विलेन गंजा भी हो, तो ये घातक मिश्रण उसे सारी कायनात के साथ मिलकर सदी का सबसे खतरनाक विलेन साबित कर देने में जुट जाती थी।
ऐसी ही एक ‘लाल डायरी’ ऑपइंडिया तीखी मिर्ची सेल के हाथों लगी है, जिसके पन्नों की गहराई में जाने से ये संकेत मिलता है कि ये कोई आजादी के बाद से ही शाही शरण प्राप्त भूमिभक्षी दामाद रहा होगा। इस लाल डायरी में वर्णित सभी लेखों को पढ़ने के बाद आपके अंदर भी ऐसी तीव्र कामना जन्म ले बैठेगी, जो आपको भी राबर्ट ठठेरा के दिव्य दर्शन प्राप्त करने के लिए व्याकुल कर देगी।
इस डायरी में लिखे गए खुलासों से यह महसूस होता है कि विलक्षण प्रतिभा के धनी इस भूमिभक्षी राबर्ट ठठेरा की नज़र जहाँ पड़ती है, वह ज़मीन फ़ौरन उसके नाम हो जाती है। इस डायरी को पढ़कर आपके मुँह से बस एक ही शब्द निकलेगा, वो है ‘नमन’।
जब हमने इस लाल डायरी की सत्यता प्रमाणित करने के लिए ‘सॉल्ट न्यूज़’ से सम्पर्क किया, तो उन्होंने डायरी से उठने वाली सौंधी-सौंधी महक से ही पहचान कर इसके ‘वायरल’ होने की आशंका के चलते इस का फैक्ट चेक किया। साथ ही उन्होंने ‘एक्सपोज़’ करते हुए ये भी बताया कि उनके नाम 2019 के लोकसभा चुनाव तक उभरता हुआ ‘इंटरनेट ट्रॉल’ बनने का आदेश जिस पत्र में आया था, उसमें भी इसी डायरी की सौंधी-सौंधी महक थी।
देखते हैं कि अपने सुख-दुःख को इस ‘भूमिभक्षी’ साहित्यकार किसान, यानि राबर्ट ठठेरा ने किस प्रकार से सुन्दर पंक्तियों में अपनी इस लाल डायरी में पिरोया है।
प्रियंका बनेगी महासचिव 2009
डायरी के पहले पन्ने से खुलासा हुआ है कि किसी ‘प्रियंका’ नाम की महिला को यह लेखक महासचिव बनता देखना चाहता था। सॉल्ट न्यूज़ ने इस पन्ने की कार्बन डेटिंग निकालकर बताया कि इस पन्ने के ऊपर ही 20 अक्टूबर 2003 की तारीख लिखी गई थी, जिसका मतलब है कि ये लेख जरुर 20 अक्टूबर 2003 को ही लिखा गया होगा।
15 लोगों को पद्म श्री और 18 को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिलाने की थी योजना
12 अप्रैल 2011 को लिखे गए इस पन्ने में किसान राबर्ट ठंठेरा ने ‘लगभग’ 15 लोगों को पद्म पुरस्कार और 18 लोगों को साहित्य अकादमी पुरस्कार का टेंडर पीएमओ को भेजने का जिक्र किया है। साथ ही इस टेंडर के पीछे कारणों के बारे में लिखा गया है कि भविष्य में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के कारण आने वाले कठिन दिनों में, थोक में बाँटे गए इन पुरुस्कारों द्वारा तैयार की गई ये ‘बुद्दिजीवी टुकड़ियाँ’ इन्हीं पुरस्कारों को लौटाकर भाजपा को लोकतंत्र की हत्या करने से रोकने के काम आएँगी।
लोकसभा चुनाव 2019 की बना रहा था प्लानिंग
लाल डायरी से होने वाले खुलासों में सबसे तगड़ा खुलासा 2019 के लोकसभा चुनावों को लेकर है। राबर्ट ठठेरा नाम के इस किसान लेखक ने इस पन्ने में अपने मन की बात लिखी है। 02 अक्टूबर 2018 को लिखे गए इस पन्ने में लेखक ने फ्लेक्स और बैनर मुरादबाद से लेकर गाजियाबाद तक के कार्यकर्ताओं को सौंपकर उन्हें 2019 के चुनाव से पहले वायरल करने का जिक्र किया है। इस में यह भी लिखा गया है कि वो 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं।
चंद्रयान में भेजना चाहते हैं ‘अपना आदमी’ #लॉन्गटर्म_गोल्स
राबर्ट ठठेरा नाम के इस व्यक्ति के पत्रों में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जैसी दूरदर्शी नजर देखने को मिली है। 15 दिसंबर 2017 के दिन इस डायरी में जिक्र किया गया है कि चंद्रयान-II के जरिए चन्द्रमा पर अपना आदमी भेजकर जमीन बुक करवाई जाएगी। समकालीन साहित्यकारों से प्रभावित होकर उन्होंने अपने लेख के अंत में कुछ हैशटैग भी लगाए हैं, जिनमे लिखा है कि ये उनके लॉन्ग टर्म गोल्स हैं। शायद यह किसान चाँद पर जमीन बुक कर के वहाँ भी ‘खेती’ करना चाहता था।
राहुल को ATM जाता देख फूट-फूटकर रोए थे राबर्ट ठठेरा #नोटबंदी
इस पन्ने पर लिखे गए इन अश्रुपूरित कालजयी शब्दों को देखकर पता चलता है कि यह किसी फासिस्ट सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के दौरान लिखी गईं थी। राबर्ट ठठेरा का दुःख इसमें खुद को लेकर नहीं बल्कि राहुल गाँधी जी को उस लम्बी कतारों में लगते देखकर उमड़ा है, जिसके बारे में सक्रिय मीडिया गिरोह ने भी लिखा था। गुस्से में राबर्ट ठठेरा ने मंगल ग्रह पर जमीन खरीदने का भी निर्णय लिया है। जिस तरह से साबू को गुस्सा आने पर बृहस्पति ग्रह पर ज्वालामुखी फूटता था उसी तरह से राबर्ट ठठेरा को जब भी गुस्सा आता है, तो किसी ना किसी ग्रह पर जमीन इसके नाम हो जाती है। ऐसे आँकड़ें वास्तविक हैं या नहीं लेकिन 9 बजे के विशेष समय में टेलीविजन ना देखने की सिफारिश करने वाले एक मनचले पत्रकार का कहना है, “हें हें हें, ये सच है।”
राहुल गाँधी के विवाह की चिंता
लाल डायरी के लेखक राबर्ट ठठेरा की चिंता सिर्फ प्रियंका तक ही सीमित नहीं, बल्कि देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी के चिरयुवा की शादी को लेकर भी थी। इस पन्ने की यदि तारीख देखी जाए, तो पता चलेगा की 22 मार्च 2001 के दिन भी राहुल गाँधी युवा थे और अब समय के साथ वे ‘चिर युवा’ हो चुके हैं। शायद वो NDTV पर नजर आने वाले पतंजलि के विज्ञापनों और उन के उत्पादों का भरपूर प्रयोग करते हैं, जो 48 की उम्र में भी उनके ‘चिर युवा’ विशेषण को बनाए रखने में सहायता कर रहा है। वरना अगर देखा जाए तो आम आदमी पार्टी अध्यक्ष और मौका देखते ही धरना देने की क्षमता रखने वाले सर अरविन्द केजरीवाल (50) और राहुल गाँधी (48) की उम्र में मात्र 2 वर्ष का ही तो अंतर है।
अमेरिका में बैठे देसी मूल के टेक एक्सपर्ट को भेजना था पैसा
शूजा नाम के किसी टेक एक्सपर्ट को EVM सम्बंधित कामों का ठेका देने के लिए पैसा देने की बात इस लाल डायरी में 03 जनवरी 2019 को लिखी गई है। इससे पता चलता है कि यह किसान राबर्ट ठठेरा सिर्फ भूमि में ही नहीं बल्कि देश में टेक्नोलॉजी के बढ़ावे के प्रति भी संवेदनशील था। इसका कहाँ है कि यदि यह विदेश में बैठकर लाइव प्रसारण कर दे तो वो खुद ही टेक एक्सपर्ट कहलाएगा।
वीरप्पन और चंदन के जंगल
चंदन तस्कर वीरप्पन की मौत पर राबर्ट ठठेरा ने ख़ुशी जताई है, लेकिन साथ ही ‘डेविल इमोजी’ बनाकर चन्दन के जंगलों के भविष्य को लेकर प्रश्नवाचक चिह्नों के ज़रिये अपने विचार भी जाहिर किए हैं।
BJP जॉइन कर होना चाहते हैं भगवा, आखिर क्यों?
मार्च 2019 में लिखे गए इस नोट में राबर्ट ठठेरा ने भाजपा जॉइन करने की इच्छा जताई है। इसके पीछे उनकी मोटिवेशन उनकी ‘पिंक कलर’ की पैंट नजर आ रही है। रंगीन मिजाज राबर्ट वाड्रा के पास इस तरह से ‘ऑफ पिंक’ और ‘लाईट भगवा’ का मिश्रण हो जाएगा और साथ ही उसको लगता है कि ऐसा करने से उसे रोजाना ED दफ्तर के चक्कर से छुटकारा मिल पाएगा और उन्हें सोशल मीडिया पर अपनी बूढ़ी मम्मी के साथ वाली तस्वीरें भी नहीं डालनी पड़ेंगी।
हवा पर अधिकार करने की महत्वकांक्षा के चलते 2G को समझने की प्रबल इच्छा
लग्नशील राबर्ट वाड्रा के संज्ञान में जब 2G पहली बार आया था तब उसने उसी दिन से इस पार आगे काम करने की इच्छा इस डायरी के पन्नों में जाहिर कर दी थी। जमीन घोटालों से शायद वो उसी दौरान ऊब चुके थे और ‘फॉर अ चेंज’ हवा पर कब्जा कर के अपने सपनों को नई ऊँचाई देना उनका सपना बन चुका था। राबर्ट ठठेरा को बचपन में ही उनकी आई ने सीख दी थी कि कोई भी धंधा बड़ा या छोटा नहीं होता।
केंद्र सरकार ने आतंकी संगठन जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट पर प्रतिबंध लगा दिया है। केंद्रीय गृह सचिव राजीव गाबा ने प्रेस से बात करते हुए बताया कि सरकार ने यह निर्णय गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) के तहत लिया है। गौरतलब है कि लगभग 40 वर्षों तक JKLF पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका था इस दृष्टि से अलगाववाद को रोकने के लिए उठाया गया यह बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।
It took India almost 50 years to ban Kashmir’s first major terror group #JKLF, which was at the forefront of massacring Pandits & driving them out of their homes! From hijacking of IA plane in 1971 to assassinating diplomat Ravindra Mhatre in 1984, JKLF was pioneer in terrorism.
जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट पर यह कार्रवाई पुलवामा आतंकी हमले के बाद कश्मीर के अलगाववादियों पर सरकार की जीरो-टॉलरेन्स नीति का परिणाम है। गत 14 फरवरी को हुए इस हमले में 40 CRPF जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। हमलावर आदिल अहमद डार कश्मीर का ही रहने वाला था, और हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी।
यासीन मलिक एक आतंकी है और ‘अलगाववादी नेता’ के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। वह जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट का चीफ भी है। जेकेएलएफ मूलतः एक आतंकवादी संगठन है जिसकी स्थापना 1977 में की गई थी। सन 1989 में इसी संगठन के आतंकियों ने हाई कोर्ट के जस्टिस नीलकंठ गंजू समेत कई कश्मीरी पंडितों की हत्या की थी। दिसंबर 1989 में JKLF द्वारा मुफ़्ती मुहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का अपहरण किया गया था जिसके बदले में पाँच आतंकियों को छोड़ा गया था।
दिसंबर 8, 1989 को रुबैया सईद के अपहरण के बाद पंद्रह दिनों तक ड्रामा चला था जिसके बाद वी पी सिंह सरकार द्वारा अब्दुल हमीद शेख़, शेर खान, नूर मोहम्मद कलवल, अल्ताफ अहमद और जावेद अहमद जरगर नामक आतंकियों को जेल से छोड़ा गया था। चौदह साल बाद जेकेएलएफ के जावेद मीर ने रुबैया सईद के अपहरण की बात कबूल की थी।
अगले साल जनवरी 25 जनवरी 1990 को जेकेएलएफ ने भारतीय वायु सेना के पाँच अधिकारियों की हत्या कर दी थी। खुद यासीन मलिक ने भी बीबीसी को दिए इंटरव्यू में यह स्वीकार किया था कि उसने ड्यूटी पर जा रहे 40 वायुसैनिकों पर गोलियाँ चलाई थीं। कुछ समय पहले ही सीबीआई ने यासीन मलिक पर शिकंजा कसा था। प्रवर्तन निदेशालय ने भी कई अलगाववादी नेताओं समेत मलिक की सम्पत्ति जब्त की थी।
जिस जेकेएलएफ और यासीन मलिक पर महबूबा मुफ्ती की बहन के अपहरण का आरोप है, महबूबा उसी के समर्थन में खड़ी हो गईं हैं। ट्वीट करते हुए उन्होंने कहा कि यासीन मलिक ने हिंसा कब की छोड़ दी है। उनके अनुसार उसके संगठन को प्रतिबंधित करने से कुछ हासिल नहीं होगा, बल्कि कश्मीर खुली जेल में तब्दील हो जाएगा।
हाल ही में ऑपइंडिया ने राहुल गाँधी और HLपाहवा के बीच जमीनों की खरीद-फ़रोख्त के माध्यम से लम्बी हेराफेरी का खुलासा किया था जिसके तार आर्म डीलर संजय भंडारी से भी जुड़ते हैं। पूरा खुलासा इस बारे में था कि कैसे राहुल, प्रियंका और वाड्रा की तिकड़ी ने संजय भंडारी और CC थम्पी के साथ मिलकर औने-पौने दाम पर जमीन खरीद कर उन्ही को कई गुना अधिक दाम पर बेच देते थे। इससे इनकी आय तो लगातार बढ़ रही थी लेकिन सवाल अपनी जगह था कि भला कोई अपनी ही जमीन कम दाम में बेचकर कई गुना अधिक दाम में क्यों खरीदेगा। यहाँ दाल में काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली नज़र आ रही है।
जमीनों की इस खरीद का जिक्र राहुल के 2009 के इलेक्शन एफिडेविट में भी है। जिसे कॉन्ग्रेस ने भी अपने बयान में स्वीकार किया है कि हाँ जमीन की डील हुई थी। लेकिन कॉन्ग्रेस ने आर्म डीलर संजय भंडारी से कनेक्शन पर कमेंट करने से इनकार किया।
इस पूरी कहानी के बाहर आने और कॉन्ग्रेस के इस पर कमजोर रेस्पॉन्स के कारण ये सवाल गहरा गया कि आखिर कहाँ से राहुल गाँधी इतने पैसे बना रहे हैं। राहुल गाँधी के एसेट्स पिछले कई सालों में बेतहाशा तरीके से बढ़े हैं। जिसका पता उनके 2004, 2009 एवं 2014 के इलेक्शन एफिडेविट से भी चलता है।
राहुल गाँधी की संपत्ति 2004 में 55,38,123 रुपए से बढ़कर 2009 में 2 करोड़ और आखिरकार, 2014 में 9 करोड़ रुपए से अधिक हो गई। यहाँ यह भी बताना ज़रूरी है कि 2011-12 में, राहुल गाँधी आय से अधिक इनकम के एक मामले में आरोपित थे। राहुल को AJL के माध्यम से 155 करोड़ रुपए के मामले में, आईटी विभाग ने राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को 100 करोड़ रुपए का टैक्स नोटिस भेजा था।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल के आय में इस तरह की खगोलीय वृद्धि देखकर, हर कोई आश्चर्यचकित है कि राहुल गाँधी की आय का स्रोत क्या है? यह देखते हुए कि उनके सार्वजनिक रिकॉर्ड के अनुसार एकमात्र वैध आय उनके द्वारा संसद सदस्य के रूप में निकाला गया वेतन है और वह ब्याज जो उन्हें उनके द्वारा जमा राशि से मिलता है।
हालाँकि, हलफनामे में आय के स्रोत का खुलासा नहीं किया गया है, राहुल गाँधी राजनीति में आने से पहले न तो पेशेवर थे और न ही उनके किसी वैध व्यवसाय में उनकी हिस्सेदारी हैं।
हमने राहुल की आय का स्रोत क्या हो सकता है के बारे में पड़ताल की तो…
2013 में राहुल और प्रियंका ने दिल्ली में 4.69 एकड़ के फार्महाउस को 6.7 लाख प्रति महीने की दर से FTIL (Financial Technologies (India) Ltd.) को रेंट पर दिया। 8 महीने 22 दिन (1 फ़रवरी 2013 से 22 अक्टूबर 2013) के रेंट से जो आय हुई उस पर इनकम टैक्स भी चुकाया गया, ऐसा रणदीप सुरजेवाला ने अपने बयान में जिक्र भी किया।
2013 में ही NSEL (National Spot Exchange Ltd) स्कैम बाहर आया। मार्च 2018 में CBI ने FTIL के मुम्बई मुख्यालय पर रेड मारा, साथ ही जिग्नेश शाह और उनके एक सहयोगी के ऑफिस और घर पर भी रेड डाला गया। जून 2013 में जब NSEL स्कैम बाहर आया, तब ये पता चला कि तब तक FTIL से राहुल और प्रियंका गाँधी मुनाफा कमा रहे थे और इसके एवज में कॉन्ग्रेस ने कंपनी को खुली छूट दे रखी थी।
2007-08 से 2012-13 के फाइनेंसियल ईयर के बीच, एक दूसरे औद्योगिक समूह से 3 करोड़ रुपए रेंट के रूप में राहुल और प्रियंका को प्राप्त हुआ। मजेदार बात ये है कि ये प्रॉपर्टी राहुल गाँधी के एफिडेविट में 9 लाख की प्रॉपर्टी के रूप में लिस्टेड है। अब यहाँ प्रमुख सवाल ये है कि जो प्रॉपर्टी मात्र 9 लाख की है उसको राहुल और प्रियंका ने 4-9 गुना अधिक रेंट पर कैसे दे दिया। एक और महत्पूर्ण बात ये कि इन औद्योगिक समूहों ने कभी भी इन सम्पत्तियों का, जिसका वे किराया दे रहे हैं, कभी पजेशन नहीं लिया। अर्थात उसका कोई उपयोग ही नहीं किया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 2G स्कैम के आरोपी Unitech से अक्टूबर 2010 में एक 1.44 करोड़ रुपए और दूसरा 5.36 करोड़ रुपए (टोटल- 6.8 करोड़ रुपए) की संपत्ति खरीदी, ये दोनों संपत्ति गुरुग्राम के सिग्नेचर टावर-II में है। यह प्रॉपर्टी Unitech की ही थी। यहाँ खास बात यह भी है कि जब सरकारी कम्पनियाँ घाटे में थी तो उस समय Unitech फायदे में चल रहा था।
टाइम्स नाउ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010-2011 में राहुल ने अपनी इनकम 68 लाख रुपए डिक्लेअर की थी। अब यहाँ प्रश्न ये उठता है कि राहुल के पास प्रॉपर्टी खरीदने के लिए, वो भी मात्र 18 महीने में 6 करोड़ रुपए कहाँ से आए?
इसके बाद यूनाइटेड किंगडम का Backops Private Limited और उसकी तीन यूरोपीय अकाउंट का भी एक मामला है, जिसका 2004 के राहुल के हलफनामे में जिक्र भी है। यह वही फर्म है जिसमे राहुल गाँधी लिस्टेड हैं एक ब्रिटिश नागरिक के रूप में, यह भी आरोप है कि राहुल इस ब्रिटिश बेस्ड कंपनी में निदेशक और सचिव भी थे। राहुल की Backops में 83% हिस्सेदारी है। बाद में प्रियंका वाड्रा भी इसमें एक डायरेक्टर हुई। सवाल यहाँ ये भी है कि राहुल गाँधी के उस 83% हिस्सेदारी का क्या हुआ?
रेडिफ की जून 2004 के एक रिपोर्ट में उल्लेख है कि Backops सर्विसेज की स्थापना भारत में मई 2002 में एक फेमिली फ्रेंड मनोज मुत्तु (Manoj Muttu) द्वारा की गई थी, जिसमें राहुल को एक डायरेक्टर बनाया गया था। 25 मार्च 2009 को एफिडेविट भरे जाने से कुछ दिन पहले प्रियंका गाँधी वाड्रा इसकी डायरेक्टर बनाई गई। यहाँ एक सवाल ये भी है कि जब 2009 में ही Backops Private Limited UK स्थित कंपनी HSBC- UK में डिजॉल्व हो चुकी थी तो भारत में 31 मार्च 2010 तक कैसे चलती रही।
इसके अलावा, जून 2004 के रेडिफ के एक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि फर्म के पास 25 लाख रुपए की अधिकृत शेयर पूँजी थी, जो 100 रुपए के 25,000 इक्विटी शेयरों में विभाजित थी। और राहुल गाँधी 2,500 शेयरों के साथ सबसे बड़े शेयरधारक थे। लेकिन 2004 के अपने चुनावी हलफनामे से कुछ महीने पहले, गाँधी ने उल्लेख किया कि फर्म में उनका 83% हिस्सा था। इसलिए, कुछ महीनों के दौरान उनके स्वामित्व वाले 83% शेयरों का क्या हुआ? अगर उन्होंने अपने शेयर बेच दिए, तो 2009 के चुनावी हलफनामे में इसका कोई उल्लेख क्यों नहीं है?
कुछ सवाल जिसका जवाब राहुल गाँधी को देना चाहिए
1. 2004 से 2014 के बीच राहुल गाँधी की संपत्ति मात्र 55 लाख से 9 करोड़ रुपए तक कैसे पहुँची? जबकि उनकी एकमात्र वैध आय एमपी की सैलरी थी और वह राजनीति से बाहर कभी अपने आप में पेशेवर नहीं थे?
2. कथित मानदंड के उल्लंघन के लिए FTIL द्वारा प्रमोटेड कंपनी नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (NSEL) को कारण बताओ नोटिस जारी किए जाने के महज 10 महीने बाद राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने अपने फार्महाउस को FTIL को लगभग 9 महीने के लिए किराए पर क्यों दिया? चूँकि, कॉन्ग्रेस सरकार ने एफटीआईएल को इस घोटाले में मदद करने के लिए कई रियायतें दी थीं, क्या राहुल गाँधी और उनके परिवार को घोटाले के बारे में पता था? यदि उन्होंने ऐसा किया तो उनका रोल कितना था?
3. एफटीआईएल को फार्महाउस किराए पर दिया गया था, जबकि जाँच जारी थी। आरोप यह भी हैं कि एनएसईएल घोटाले के अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने में कॉन्ग्रेस सरकार धीमी रही। क्या राहुल गाँधी और एफटीआईएल के बीच व्यापारिक लेन-देन भी एक कारण था?
4. FTIL से पहले, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने अपने फार्महाउस को दूसरे औद्योगिक घराने को किराए पर दे दिया था। राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने 9 लाख के मूल्य वाले फार्महाउस से इतना किराया कैसे कमाया जो फार्महाउस के मूल्य का 4 से 9 गुना था? क्या यह क्रोनी कैपिटलिज्म की ओर इशारा करता है?
5. जब राहुल गाँधी ने यूनिटेक लिमिटेड से दो सम्पत्तियाँ खरीदीं, एक की कीमत 1.44 करोड़ रुपए और दूसरा 5.36 करोड़ की दो सम्पत्तियाँ गुरुग्राम के सिग्नेचर टावर्स- II में स्थित थीं, जो यूनिटेक के स्वामित्व में थे, क्या उन्होंने इस संपत्ति का पूरा भुगतान किया? यदि नहीं, और यदि यह सच है कि केवल 4 करोड़ रुपए ही चुकाए गए। तो बाकी का पैसा क्यों नहीं चुकाया गया?
6. यूनिटेक 2-जी घोटाले में आरोपित था। अक्टूबर 2009 में, सीबीआई ने 2-जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में कथित अनियमितताओं का मामला दर्ज किया। 8 अक्टूबर 2010 को, सुप्रीम कोर्ट ने इस घोटाले पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट पर तत्कालीन यूपीए सरकार से जवाब माँगा। उसी साल अक्टूबर में, राहुल गाँधी ने गुरुग्राम के सिग्नेचर टावर्स-II में दो व्यावसायिक प्रॉपर्टी खरीदीं, जो यूनिटेक के स्वामित्व में थी। जबकि 2G घोटाले पर CAG की रिपोर्ट पर SC ने कॉन्ग्रेस सरकार से जवाब माँगा था, इसके बावजूद यूनिटेक लिमिटेड से संपत्ति क्यों खरीदी गई थी?
7. SC ने 2017 में कहा था कि 2-जी मामले में पेश किए जाने वाले किसी भी साक्ष्य के लिए उन्होंने 7 साल तक इंतजार किया लेकिन सरकार ने कभी भी इस पर अमल नहीं किया। इस मामले का अधिकांश हिस्सा कॉन्ग्रेस सरकार के अधीन था। जहाँ तक यूनिटेक का संबंध है, क्या यह एक परस्पर लेन-देन व्यवस्था थी?
8. यूके स्थित Backops Pvt 2009 में भंग कर दिया गया था, जबकि 31 मार्च, 2010 तक भारत में Backops Services का अस्तित्व बना रहा। 2009 में ही, प्रियंका गाँधी को डायरेक्टर के रूप में राहुल गाँधी द्वारा अपना हलफनामा दाखिल करने से कुछ ही दिन पहले फर्म में पदस्थापित किया गया। राहुल गाँधी के स्वामित्व वाले 83% शेयरों का क्या हुआ?
9. 2004 के चुनावी हलफनामे में, राहुल गाँधी ने अपनी कुल संपत्ति 55,38,123 घोषित की थी। और उनकी देनदारियाँ शून्य थीं। 2009 में, राहुल गाँधी ने दिल्ली के मेट्रोपॉलिटन मॉल साकेत में 2 दुकानें खरीदीं। 1,63,95,111 रुपए में यह पैसा कहाँ से आया? इस आय का स्रोत क्या था?
10. राहुल गाँधी ने 2011-12 में अपने इसी संपत्ति से आय के रूप में 68 लाख रुपए दिखाए। उस समय मार्केट दर 150 रुपए प्रति वर्ग फीट था। राहुल गाँधी के पास जो संपत्ति थी वह 514 वर्ग फीट और 996 वर्ग फीट थी। अब इस दर से कितना भी गणित लगा लें, उन दो संपत्तियों से राहुल 68 लाख रुपए किराए के रूप में नहीं कमा सकते। तो बाकी पैसे कहाँ से आए? उनकी आय पर विचार करने के लिए 2009 के हलफनामे में सूचीबद्ध केवल यही दो सम्पत्तियाँ थीं।
11.ऑपइंडिया द्वारा राहुल गाँधी के खुलासे के बाद, कॉन्ग्रेस ने स्वीकार किया था कि राहुल गाँधी ने एचएल पाहवा से जमीन खरीदी थी। हालाँकि, उन्होंने कहा था कि भूमि तब प्रियंका गाँधी वाड्रा को उपहार में दी गई थी। प्रियंका के पास एचएल पाहवा के साथ कई जमीन सौदे और भी हैं जो प्रियंका को कम दाम पर जमीन बेचता था और फिर उसी जमीन को बहुत ऊँचे मूल्य पर खरीद लेता था। Backops की डायरेक्टरशिप भी उस समय प्रियंका गाँधी को हस्तांतरित की गई थी। क्या प्रियंका गाँधी वाड्रा 2019 में चुनाव इसलिए नहीं लड़ रही हैं, क्योंकि चुनाव शपथ पत्र में ये सारी बातें बाहर आ जाएँगी?
OpIndia (English) की एडिटर नुपुर शर्मा के मूल लेख का अनुवाद रवि अग्रहरि ने किया है।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा, पत्रकार आशुतोष (गुप्ता, वही आम आदमी पार्टी वाले), कॉन्ग्रेस पार्टी (व उसका वृहत्तर इको-सिस्टम), बॉलीवुड, 80%+ भारतीय बौद्धिक वर्ग, और (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्यारोहण के बाद से) भाजपा-संघ- इन सब में क्या समानता है?
मोहनदास करमचंद गाँधी इन सब के मानक (model) हिन्दू हैं।
अगर इनमें से किसी को भी अपने विरोधी के हिन्दू होने पर प्रश्न उठाना होता है तो वे फटाक से “अगर महात्मा गाँधी होते तो क्या वे आपकी इस बात का समर्थन करते?” की मिसाइल दाग देते हैं। गोया गाँधी जी की शाबाशी ही हर हिन्दू के जीवन का अंतिम ध्येय है!
गाँधी जी का भारत राष्ट्र-राज्य के निर्माण में योगदान निःसंदेह महत्वपूर्ण है। सत्य के प्रति उनका आग्रह यानि सत्याग्रह की बेशक भारत की आज़ादी में भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। पर ‘कोबिगुरू’ रबीन्द्रनाथ टैगोर से ‘महात्मा’ की उपाधि पाने वाले गाँधी का दर्शन भारतीय प्रचलन, आध्यात्म, और परम्पराओं से उतना ही दूर है जितना तेल पानी की प्रकृति से दूर होता है।
आधुनिक हिन्दू की आत्मा और उसके विश्वदर्शन को वेदों-उपनिषदों-महापुराणों, पतंजलि के योग सूत्रों, श्रीकृष्ण की गीता आदि से जोड़ने वाले गाँधी जी नहीं, श्री ऑरोबिन्दो और स्वामी विवेकानंद थे। और प्रमुखतम विषयों पर उनके विचारों का गाँधी जी से कोई साम्य नहीं था- दूर-दूर तक नहीं।
अहिंसा
गाँधी जी ने जितना दुरूपयोग ‘अहिंसा’ शब्द का किया, भारतीय राजनीति में उतना दुरुपयोग शायद ही, कभी भी, किसी भी शब्द या सिद्धांत का हुआ होगा। अहिंसा को उसके भावार्थ और परिप्रेक्ष्य के बिना literally प्रयोग करना शुरू कर दिया। न केवल खुद किया बल्कि दूसरे (केवल) हिन्दुओं के लिए भी अनिवार्य कर दिया। यहाँ तक कि जिस भगवद्गीता का उद्देश्य ही अर्जुन को युद्ध और धर्मोचित वध के लिए प्रेरित करना था, उसे भी गाँधी जी ने पता नहीं किस कोण से तोड़-मरोड़कर उसमें भी हिंसा को हर परिस्थिति में नकारने की सीख तलाश ली। और खुद के लिए ही नहीं तलाशी, बल्कि हिन्दुओं के गले भी जबरन बाँधने लगे।
नतीजन हिन्दुओं में जहाँ यथोचित हिंसा के लिए भी घृणा उत्पन्न हुई, वहीं दूसरे समुदाय (खासकर कि मुस्लिम) हिन्दुओं में इसी पलटवार की क्षमता के ह्रास के बल पर बढ़ते चले गए। इसी बढ़त की चरम परिणति थी 1947 का नरसंहार।
इसी के उलट थे श्री ऑरोबिन्दो और स्वामी विवेकानंद के विचार।
स्वामी विवेकानंद से जब अहिंसा के बारे में उनके विचार पूछे गए तो उन्होंने साफ कहा कि शत-प्रतिशत अहिंसा केवल सन्यासियोंके लिए उचित है; गृहस्थ के लिए आत्मरक्षा सर्वोपरि है। जीएस बाणहट्टी की किताब ‘लाइफ एण्ड फ़िलॉसॉफ़ी ऑफ़ विवेकानंद’ के अनुसार विवेकानंद से जब पूछा गया कि यदि कमज़ोर को ताकतवर के हाथों शोषित देखें तो क्या करना चाहिए, तो उन्होंने कहा, ‘(शोषक को) पीटना चाहिए, और क्या?’
अपने ग्रन्थ ‘एसेज़ ऑन गीता’ (गीता पर निबंध) में श्री ऑरोबिन्दो लिखते हैं (अनूदित), “यदि आपका केवल आत्म-बल आसुरिक शक्ति को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है और इसके बाद भी आप शारीरिक प्रतिरोध नहीं करते, तो असुर बिना किसी विरोध के मनुष्यों और राष्ट्रों को कुचलता आगे बढ़ता है, विनाश करता है, हत्याएँ करता है, सब कुछ बहुत आसानी से नष्ट-भ्रष्ट कर देता है, और आपकी अहिंसा दूसरों की हिंसा जैसी ही तबाही करती है।”
हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्ध
गाँधी जी हिन्दुओं और सम्प्रदाय विशेष को अपनी दो आँखें कहते थे, यह तो बड़ी अच्छी थी, पर जब एक आँख दूसरी आँख के विनाश को आमादा थी तो गाँधी जी का हिन्दुओं के प्रति सौतेला व्यवहार घोर निराशाजनक था।
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी खबर के अनुसार गाँधी जी ने हिन्दुओं से कहा कि वे (दंगों से बचने के लिए) नोआखली छोड़ दें या क़त्ल हो जाएँ। 6 अप्रैल, 1947 को नई दिल्ली की एक प्रार्थना सभा में उन्होंने कहा, “…अगर मुस्लिम हम सभी (हिन्दुओं) की हत्या कर देना चाहते हैं तो हमें ‘वीरतापूर्वक’ मृत्यु स्वीकार कर लेनी चाहिए। यदि वे हम सबको मारकर अपना राज स्थापित करना चाहते हैं तो हम अपने प्राणों को उत्सर्ग कर उन्हें एक नई दुनिया में पहुँचाएँगे…” (Collected Works of Mahatma Gandhi, Vol. 94 page 249)
क्या कोई बता सकता है कि उन्होंने मुस्लिमों को भी ऐसी ही कोई सलाह दी हो?
वहीं श्री ऑरोबिन्दो ऐसी कोई अव्यवहारिक राय नहीं रखते थे। हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रश्न पर उन्होंने कहा(अनूदित), “जिस मज़हब/पंथ के सिद्धांत में सहिष्णुता हो, उसके साथ (बेशक) शांति के साथ रहा जा सकता है। पर उनके साथ शांति के साथ रह पाना कैसे संभव है जिनका सिद्धांत ही ‘मैं तुम्हें (अपने से भिन्न ईश्वर के तुम्हारे विचारों को) नहीं सहूँगा’ है? ऐसे व्यक्तियों के साथ एकता कैसे संभव है?”
‘प्रबुद्ध भारत’ पत्रिका के संपादक से वार्तालाप में स्वामी विवेकानंद ने भी साफ कहा कि वह इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद से बहुत प्रभावित नहीं हैं। वह मुहम्मद के प्रशिक्षित योगी न होने की भी बात कहते थे, और कहते थे कि चरमपंथी तरीकों से नुकसान ही अधिक हुआ है।
ऐसा नहीं है कि ऑरोबिन्दो-विवेकानंद व्यक्तिगत मुस्लिमों से व्यक्तिगत हिन्दुओं के संघर्ष का समर्थन करते थे- वे दोनों इसके खिलाफ थे। पर वे इस्लाम और हिंदुत्व में निहित नैसर्गिक विरोधाभासों को साफ-साफ देखते समझते थे (गाँधी जी के उलट), और हिन्दुओं को केवल इसके प्रति सदा सजग रहने की सलाह देते थे।
आंतरिक दमन व ‘हिंसा’ पर था गाँधी जी का जोर
गाँधी जी के आत्मकथ्यों को यदि कोई निष्पक्ष भाव से पढ़े तो यह साफ हो जाएगा कि स्व-दमन ही गाँधी जी के सारे अजीबोगरीब सिद्धांतों का मूल था। और यह क्रूर था, निष्ठुर था, बलात् था। खुद को हिन्दू मानते हुए भी हिन्दुओं से कट जाने की अपील भी इसी दमन का बाह्य, सार्वजनिक अभिव्यक्ति थी- और उनके अन्य ‘प्रयोग’, जिनमें विवाहित युगलों को शारीरिक सम्बन्ध न बनाने की सीख शामिल हैं, इसी विचार के अन्य व्यक्त स्वरूप थे। यह नैतिकता का चरमपंथ था।
और, स्व-दमन व चरमपंथी नैतिकता कभी भी हिन्दू दर्शन नहीं रहे। विवेकानंद सन्यासी होते हुए भी धूम्रपान करते थे, मटन खाते थे– उनके गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस भोजन के शौकीन थे। हिन्दू दर्शन बाह्य, जबरिया, इच्छा होते हुए भी स्थायी त्याग का कभी नहीं रहा। स्थायी त्याग तभी किया जाता था जब इच्छा (वासना) समाप्त हो जाती थी।
समय है बदलाव का
उपरोक्त उदाहरण केवल राजनीति पर आधारित हैं- यदि राजनीति छोड़ और गहरे जाएँगे तो गाँधी जी का दर्शन और भी अहिंदू होता जाता है। इसका यह अर्थ नहीं कि भारत के राजनीतिक इतिहास में गाँधी जी का एक विशेष, महत्वपूर्ण स्थान नहीं है। बिलकुल है। सौ बार है।
पर समय आ गया है कि गाँधी जी के मापदण्ड पर हिन्दुओं का, या किसी के हिंदुत्व का, आकलन बंद किया जाए। यदि किसी के हिंदुत्व का आकलन होना ही है तो वह श्री ऑरोबिन्दो और स्वामी विवेकानंद के मानक पर किया जाए।
भाजपा के ख़िलाफ़ एक अजीब आरोप में, कॉन्ग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर अपने कार्यकाल के दौरान वरिष्ठ भाजपा नेताओं को भुगतान करने का आरोप लगाते हुए एक डायरी शेयर की है। सुरजेवाला ने एक पेपर की फोटोकॉपी शेयर की, जिसमें हाथ से लिखे हुए नोट थे। इस प्रकार के नोट के लिए दावा किया गया कि यह नोट येदियुरप्पा द्वारा लिखे गए हैं जिस पर उनके हस्ताक्षर थे। इसमें येदियुरप्पा द्वारा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को दी गई राशि का उल्लेख किया गया।
बता दें कि बीएस येदियुरप्पा को फँसाने की कोशिश में कॉन्गेस ने इस तरह के नोट को माध्यम बनाया है। सोशल मीडिया पर तमाम यूज़र्स ने इस नोट की चौतरफा आलोचनाएँ की और इस बेतुकी हरक़त के जवाब में उन्होंने कॉन्ग्रेस को आईना भी दिखाया।
Yeah I also sign in my secret diary after noting down my crimes. Just trying to be helpful to any investigator who may catch hold of the diary at a later stage https://t.co/eavDwlMsqt
कुछ लोगों ने कॉन्ग्रेस की ‘डायरी’ के आरोपों का मजाक उड़ाने और उसके जवाब के लिए ख़ुद के लिखे नोट को शेयर करना शुरू कर दिया।
Snapshot of our diary entry detailing payments made to various folks – placed at an easy-to-find location in our office for convenience of income tax officials who may want to raid us pic.twitter.com/dKQ3pE1CBq
जैसा कि ऊपर देखा जा सकता है ऑपइंडिया के सीईओ राहुल रौशन पर आरोप लगाया गया था कि उन्हें UnReal Times द्वारा ₹25 करोड़ का भुगतान किया गया। इन आरोपों से लैस, शुभचिंतकों ने रोशन के ख़िलाफ़ विद्रोह करने के मक़सद से ऑपइंडिया के कर्मचारियों को न सिर्फ़ उकसाने का प्रयास किया बल्कि उन्हें टैग करना भी शुरू कर दिया कि राहुल रौशन ₹25 करोड़ में से किसी को एक पैसा नहीं देंगे।
हालाँकि, ऑपइंडिया के कर्मचारियों ने बताया था कि उनके सीईओ राहुल रौशन वास्तव में अपने कर्मचारियों से पैसे लेते हैं ताकि वे उन्हें नौकरी दे सकें।
बीएस येदियुरप्पा को फँसाने की लिए जिस डायरी का इस्तेमाल किया जा रहा है बीजेपी ने उसे फ़र्ज़ी करार देते हुए येदियुरप्पा के असल हस्ताक्षर और लिखावट को सोशल मीडिया पर शेयर किया, जो कॉन्ग्रेस की फ़र्ज़ी डायरी से बिल्कुल मेल नहीं खाते।
Randeep Surjewala just wasted good amount of media personals time talking absolute nonsense & releasing fake diary written & scripted by Congress themselves
Handwriting & the signature on the dairy released by @INCIndia is as fake as the diary itself.
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भारत की ओर से पाकिस्तान पर आतंक के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर जो अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाया गया था, उसका असर अब दिखने लगा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को आखिरकार बोलना पड़ा कि उनके देश में ‘जिहादी संगठनों’ और ‘जिहादी कल्चर’ के लिए कोई जगह नहीं है।
मीडिया से बातचीत करते हुए इमरान खान ने कहा कि पाकिस्तान शांतिप्रिय देश है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान दुनिया को यह भरोसा दिलाना चाहता है कि वह केवल शांतिप्रिय देश ही नहीं है, बल्कि वह लघुकालीन और दीर्घकालीन नीतियों से इस ‘जिहादी कल्चर’ एवं आंतकवाद को समाप्त करने को लेकर भी ईमानदार है। इसके साथ ही FATF (Financial Action Task Force) द्वारा प्रतिबंधित किए जाने के डर से इमरान खान ने बयान देते हुए कहा कि हम ब्लैकलिस्टेड नहीं होना चाहिए।
पाकिस्तान के PM का ये बयान ऐसे वक्त आया है, जब पाकिस्तान पर मोदी सरकार की कूटनीतिक पहलों द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंक के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं किए जाने के कारण दबाव बनाया जा रहा है। हाल ही में अमेरिकी सचिव माइकल आर पोम्पेओ ने भी भारत में हुए पुलवामा हमले को लेकर चेतावनी देते हुए कहा कि अगर दूसरी बार भारत में आतंकी हमला हुआ तो पाकिस्तान के लिए काफी दिक्कत हो सकती है।
हालाँकि, इमरान खान ने पोम्पेओ के इस बयान पर सीधे तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उन्होंने कहा, “भारत बेवजह ही पाकिस्तान पर आरोप लगा रहा है। उनका कहना है कि जैश ने हमले की जिम्मेदारी ली है, इसका ये मतलब नहीं कि पाकिस्तान का इसमें कोई हाथ है। साथ ही ईरान भी हम पर आरोप लगा रहा है कि आतंकवादी आतंक फैलाने के लिए हमारी जमीन का इस्तेमाल कर रहे है।”
इमरान खान ने देश में कानून-व्यवस्था के बारे में कहा कि प्रतिबंधित संगठनों को बहुत पहले ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन यह उनकी सरकार है जो ऐसे संगठनों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए भारी धन खर्च कर रही है।
जम्मू-कश्मीर में बीते 24 घंटों में चार अलग-अलग जगहों पर हुई मुठभेड़ में छह आतंकी मारे गए हैं। बांदीपोरा में 2 आतंकियों के मरने की खबर है। पुलिस ने बताया कि यह दोनो आतंकी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे। इनमें से एक लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर भी था। वहीं शोपियाँ जिले में हुई मुठभेड़ में भी दो आतंकी मारे गए हैं। इसके अलावा सोपोर के वारपोरा में हुई मुठभेड़ में भी दो आतंकी मारे गए हैं। इस बीच दो पुलिसकर्मियों के घायल होने की भी खबर है।
पुलिस का कहना है कि बांदीपोरा में मुठभेड़ अब खत्म हो चुकी है, लेकिन अन्य दो जगहों पर अभी मुठभेड़ चालू हो रखी है। सोपोर में सुरक्षा के लिहाज से सभी शैक्षिक संस्थानों को बंद किया हुआ है और एहतियात के लिए इंटरनेट सेवा को भी बंद कर दिया गया है।
SSP Bandipora Rahul Malik: Two terrorists were eliminated in Hajin encounter, both were affiliated to LeT. One of the terrorists was involved in many civilian killings. We have recovered arms and ammunition. #JammuAndKashmirpic.twitter.com/YJugy7klTo
बांदीपोरा में गुरुवार (मार्च 21, 2019) की शाम को एनकाउंटर तब शुरू हुआ, जब एक घर में दो आतंकियों के छिपे होने की खबर आई। घर में दो सिविलियनों समेत एक 11 साल के बच्चे को आतंकियों द्वारा बंधक बनाया गया था। जिसमें बुजुर्ग तो आतंकियों की पकड़ से बच निकला, लेकिन बच्चा उन्हीं की गिरफ्त में रहा। सुरक्षाबल द्वारा रात भर चलाए गए इस ऑपरेशन में आतंकवादी और नाबालिग मारा गया।
वहीं खबरों के मुताबिक एक आधिकारी ने बताया है कि दक्षिण कश्मीर में शोपियाँ के इमामसाहिब इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना मिली, जिसके बाद सुरक्षाबलों ने इलाके को घेर लिया और तलाश अभियान शुरू किया। उन्होंने बताया कि पहले आतंकवादियों ने सुरक्षाबलों पर गोलियाँ चलानी शुरू की जिसके बाद सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई की और मुठभेड़ शुरू कर दी। इसमें 2 आतंकियों के मरने की खबर आई है।
इसके अलावा इंडिया टीवी की खबर के अनुसार पुलिस अधिकारी ने बताया है कि उत्तर कश्मीर के बारामूला में भी मुठभेड़ चालू हो रखी हैं। बता दें कि सुरक्षाकर्मियों द्वारा दिल्ली में भी जैश का एक आतंकी सज्जाद गिरफ्तार हुआ है, जो पुलवामा के मास्टरमाइंड मोहम्मद भाई के लगातार संपर्क में था और दिल्ली में भी बड़ा हमले करने की फिराक में था।