Wednesday, October 2, 2024
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टॉम वडक्कन ही नहीं, मोदी का बढ़ता कद देख कॉन्ग्रेस के 8 नेताओं ने थामा BJP का हाथ

2019 में लोकसभा चुनाव को देखते हुए विपक्षी नेता जितना नरेंद्र मोदी पर भर-भरके बयानबाजी कर रहे हैं, मोदी सरकार उतनी ही मजबूत होती जा रही है। चुनाव की तारीखें पास होने के साथ ही भाजपा की नीतियों और प्रधानमंत्री के उचित नेतृत्व को पहचानते हुए कॉन्ग्रेस पार्टी के कई नेता पहले ही बीजेपी में शामिल हो चुके हैं और अब सोनिया गांधी के करीबी टॉम वडक्कन ने भी पार्टी को छोड़ते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया है।

गुरुवार (मार्च 14, 2019) को कॉन्ग्रेस पार्टी की नीतियों से परेशान होकर केरल में कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता टॉम वडक्कन बीजेपी में शामिल हो गए हैं। कॉन्ग्रेस प्रवक्ता रह चुके टॉम वडक्कन सोनिया गांधी के क़रीबी भी माने जाते थे। लेकिन, बीजेपी में शामिल होने के साथ ही उन्होंने कॉन्ग्रेस पर जमकर हमला बोला है। उनका कहना है कि पहले कॉन्ग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगा जिससे वो काफी आहत हुए थे। 20 साल पार्टी को सेवा प्रदान करने के बाद उन्होंने कहा कि पार्टी में “यूज एंड थ्रो” की नीति है। इसलिए उनके पास कोई और विकल्प नहीं था।

केवल टॉम वडक्कन ही नहीं बल्कि कई नेता इन दिनों अपनी पार्टियाँ छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। उम्मीद है इससे उन लोगों के सुरों पर सवालिया निशान लगेगा जो मोदी को तानाशाह बताकर उनकी तुलना हिटलर से करते हैं। वैसे तो चुनावी हवा में बहकर बहुत से नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। लेकिन इस सूची में कॉन्ग्रेस नेताओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। टॉम की ही तरह आज तृणमूल कॉन्ग्रेस विधायक अर्जुन सिंह ने भी भाजपा के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया।

हाल ही में कॉन्ग्रेस पार्टी को छोड़ने वालों में कर्नाटक के पूर्व विधायक उमेश जाधव का नाम भी शामिल है।

इनके साथ ही महाराष्ट्र कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे सुजय भी मंगलवार (मार्च 12, 2019) को पिता के ख़िलाफ़ जाते हुए बीजेपी में शामिल हुए।

ऐसे ही कुछ दिन पहले कॉन्ग्रेस के 3 विधायकों ने गुजरात में इस्तीफ़ा दिया था। इन में जामनगर के विधायक वल्लभ धारविया ने विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र त्रिवेदी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। पार्टी के पूर्व सहयोगी परषोत्तम सबारिया भी भाजपा में शामिल हो गए हैं। बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 के बाद से अब तक कॉन्ग्रेस के 5 विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। 8 मार्च को माणवदर से कॉन्ग्रेस विधायक जवाहर चावड़ा ने भी विधानसभा से इस्तीफा देकर बीजेपी जॉइन कर लिया था।

एक ओर कॉन्ग्रेस के लिए बेहद हैरान करने वाली बात होगी कि जिस भाजपा पार्टी को वह दिन-रात हराने की कोशिशों में जुटी हुई है, उसे कॉन्ग्रेस के ही नेता मजबूत बना रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भाजपा के लिए यह सफलता के संकेत हैं कि उसे हर ओर से समर्थन प्राप्त हो रहा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में और अमित शाह की नीतियों से भाजपा का जादू 2019 के लोकसभा चुनावों में भी उतना ही बोल रहा है, जितना कि 2014 में था।

2014 के मुकाबले 2019 में भाजपा की नीतियों और शक्तियों का अंदाजा आप ऑपइंडिया के इस आर्टिकल में विस्तृत ढंग से पढ़ सकते हैं – सहयोगी दलों को साथ रखने की कला जानते हैं मोदी-शाह, कॉन्ग्रेस की एकता बस मंचों तक ही सीमित

रॉबर्ट वाड्रा का स्व-घोषित ‘चेला’, ‘गोल्ड बडी’ जगदीश शर्मा ED द्वारा PMLA मामले में तलब

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने आज कॉन्ग्रेस नेता जगदीश शर्मा, राहुल गाँधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा के स्व-घोषित ‘चेला’ (शिष्य) को धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत जाँच के सिलसिले में तलब किया। उन्हें ईडी के सामने जामनगर हाउस कार्यालय में पेश होना है।

दिसंबर 2018 में, प्रवर्तन निदेशालय ने पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के कार्यालयों पर छापे मारे थे, साथ ही वाड्रा के करीबी सहयोगी जगदीश शर्मा से संबंधित अन्य स्थानों पर भी।

ईडी के सूत्रों ने कथित तौर पर सूचित किया है कि छापे उन संदिग्धों पर डाले गए थे जिन्होंने कथित तौर पर रक्षा आपूर्तिकर्ताओं से रिश्वत के पैसे लिए थे।

हालाँकि, पूछताछ के लिए ले जाने से पहले शर्मा ने कहा था कि यह रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ एक साजिश थी। रिपोर्ट्स ने जगदीश शर्मा को वाड्रा के करीबी सहयोगियों में से एक के रूप में उद्धृत किया था।

वास्तव में, शर्मा हमेशा रॉबर्ट वाड्रा के साथ अपनी निकटता के बारे में बहुत मुखर रहे हैं। 2012 में AAP सुप्रीमो, अरविंद केजरीवाल पर जूता फेंकने के बाद, शर्मा ने वाड्रा के ‘गोल्ड बडी’ होने की शेखी बघारी थी। इसी तरह, दिसंबर 2018 में, जगदीश शर्मा ने कहा था कि वह “वाड्रा साहब के चेले” हैं।

इस बीच, प्रवर्तन निदेशालय ने गाँधी परिवार के दामाद, रॉबर्ट वाड्रा पर उस मामले में भी कड़ी रोक लगा रखी है, जब लंदन में बेनामी संपत्ति खरीदने के आरोप में उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगाए गए थे। लन्दन के 12-Bryanston Square पर 1.9 मिलियन पाउंड की कीमत की संपत्ति उनके पास है।

पिछले महीने, सीबीआई की एक विशेष अदालत ने रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े जाँच के मामले में स्टे देने से इनकार कर दिया था और उन्हें उन पर चल रहे मनी लॉन्ड्रिंग जाँच में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा था। इसी तरह, पिछले महीने के शुरू में, ED ने रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी M/s स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी (P) लिमिटेड को 4.62 करोड़ रुपए के मामले में अटैच किया था।

पिछले साल अप्रैल में ईडी ने वाड्रा के सहयोगी जय प्रकाश बगरवा की संपत्तियों को बीकानेर भूमि घोटाला मामले में संलग्न किया था। बीकानेर भूमि घोटाला मामले में, राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा कुछ रियल एस्टेट डेवलपर्स की मिलीभगत से गैर-मौजूद व्यक्तियों के नाम पर भूमि आवंटित की गई थी।

वाड्रा पर उनके खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत एक आपराधिक मामला भी दर्ज है, जहाँ उनकी फर्म स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी ने सस्ते में कोलायत और बीकानेर में जमीन खरीदी थी और उसी को अवैध रूप से ट्रांजेक्शन द्वारा बहुत ऊँचे दाम पर बेचा दिया था।

गाँधी-वाड्रा परिवार के आसपास के जाल हर गुजरते दिन के साथ और अधिक उलझते जा रहे हैं। एक खुलासे में, OpIndia ने हाल ही में संजय भंडारी से जुड़े संदिग्ध भूमि सौदों में गाँधी परिवार के गठजोड़ का भंडाफोड़ किया है, जो गाँधी-वाड्रा परिवार का करीबी सहयोगी हैं।

मध्य प्रदेश: सीनियर IPS अफसर की मनमानी पर 2 महीने से मृत पिता का चल रहा है इलाज, जाँच करने पर होता है विरोध!

वर्णव्यवस्था के अलावा आज हमारा समाज ‘अमीर-गरीब’ मानसिकता की ऐसी कसी हुई जकड़ में है, जिसके कारण हम समानता का अधिकार हासिल करने के बाद भी दो वर्गों में विभाजित हैं। हालाँकि, इस विभाजन में ज्यादा और कम के फर्क से अधिक ‘गहराई’ का अंतर है।

एक ऊँचे पद पर बैठे व्यक्ति में और एक आम इंसान में क्या फर्क़ होता है? इस सवाल से हम अक्सर हर दूसरे इंसान को जूझते हुए देखते हैं बशर्ते उसके लिए व्यक्ति की ‘आय’ मापदंड न हो। लेकिन हकीक़त तो यही है कि ओहदे पर बैठा व्यक्ति चाहे तो समाज के बनाए नियमों को अपनी मर्जी के अनुसार ढाल सकता है लेकिन एक आम जन ऐसा करता है तो उसे मानवाधिकारों का हनन करने वाला माना जाता है। साथ ही उसपर कानूनी कार्रवाई करते वक्त एक भी बार विचार नहीं होता। वहीं पद पर आसित व्यक्ति की मनमानियों की ढाल खुद कानून बनता है। इसका हालिया उदाहरण मध्य प्रदेश में एक आईपीएस अफसर की बचकानी हरकत से लगाया जा सकता है, जो अपने मृत पिता की जाँच को रोकने के लिए अपने पद का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।

कमलनाथ सरकार वाले मध्यप्रदेश में पिछले दो महीनों से एक वरिष्ठ आईपीएस अफ्सर अपने बंगले में अपने मृत पिता का इलाज करा रहे हैं। जी हाँ, मृत पिता। आज से ठीक दो महीने पहले एक निजी अस्पताल ने राजेन्द्र मिश्रा के 84 वर्षीय पिता को मृत घोषित किया था और साथ ही उनका डेथ सर्टिफिकेट भी दिया था। लेकिन राजेंद्र का कहना है कि उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं है।

सोचिए!

राजेंद्र का कहना है कि उनके पिता का इलाज अभी चालू है और वह अपनी पत्नी (राजेन्द्र की माँ), अपने बच्चों और पारंपरिक जड़ी-बूटियों से उनका इलाज करने वाले वैद्य के सिवा किसी से भी मुलाकात नहीं करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि हर किसी को अपने माता-पिता से अटूट प्रेम होता है… अगर कोई उन्हें जीवित रखने के लिए इलाज करा रहा है तो इसमें हैरानी कैसी?

लेकिन सोचिए, यह अधिकार किसी आम व्यक्ति के पास है क्या? समाज की बनाई रीतियाँ क्या उसे ऐसा करने के लिए स्वतंत्रता देती है? और अगर कोई अड़ कर ऐसा करे भी तो क्या आधिकारिक पुष्टि के बाद वो अपनी जिद पर अड़ा रह सकता है ? ऐसे बहुत से सवालों का सिर्फ़ एक जवाब है “शायद नहीं।”

आईपीएस पद पर आसित एक व्यक्ति सरकारी बंगले में मृत पिता का इलाज कराता है और साथ ही जब प्रदेश मानवाधिकार आयोग से डॉक्टरों की टीम को उनकी स्थिति का जायजा लेने के लिए भेजता है तो वो अफसर इसके विरोध तक करने पर उतर आता है। हम किसी के पिता-प्रेम पर सवाल नहीं उठा रहे। लेकिन जानने की इच्छा जरूर रखते हैं कि अगर 84 वर्षीय बुजुर्ग वाकई जीवित हैं तो फिर उनकी एक रूटीन जाँच कराने में क्या आपत्ति है? साथ ही अगर राजेन्द्र के पिता जीवित हैं तो उन्हें उस निजी अस्पताल से कोई शिकायत क्यों नहीं है, जो उन्हें मृत घोषित कर चुका है?

वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी का कहना है कि चिकित्सा के क्षेत्र में एलोपैथी, आखिरी विकल्प नहीं है। बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो विज्ञान से आगे हैं। उनकी मानें तो उनके पिता जिंदा है और उनका इलाज चल रहा है। अपने पिता द्वारा 6 दशकों से योग करने का हवाला देते हुए वह कहते हैं कि वह ‘योग निंद्रा’ में हैं। जाँच पर रोक लगाने के लिए वो तर्क देते हैं कि क्या होगा अगर डॉक्टरों ने उनको योग निंद्रा से उठाने का प्रयास किया और उन्हें कुछ हो गया? क्या इसे मर्डर नहीं कहा जाएगा?

जाँच रोकने के लिए पहुँच गए कोर्ट तक

इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के अनुसार राजेन्द्र कहते हैं कि उनके पिता का इलाज कराना उनका मौलिक अधिकार है और बाहर वाले इसमें दखलअंदाजी क्यों कर रहे हैं? यह उनकी समझ से बाहर है। 23 फरवरी को 6 डॉक्टरों की टीम जब राजेन्द्र के बंगले पर पहुँची तो बाहर तैनात पुलिस ने उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया। इसके अलावा पिछले महीने राजेश की माँ भी मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट में इस मामले में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ अपनी याचिका लेकर पहुँची थी, उन्होंने मानवाधिकार आयोग को भी लिखा, जिसमें दावा किया गया था कि पैनल द्वारा उनके जीवन, सम्मान और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है।

आँकड़ेबाजी: मोदी के आने के बाद जागरूक हुई जनता, कई विजयी उम्मीदवारों को मिल रहे 50% से अधिक मत

अक्सर ये बातें कही जाती हैं कि चुनावों में 20-30 प्रतिशत मत लेकर उम्मीदवार विजयी हो जाते हैं और वे उस 70% जनता के भी नेता बन बैठते हैं, जिन्होंने उन्हें वोट दिया ही नहीं। भारतीय लोकतंत्र में बहुदलीय व्यवस्था है, न कि अमरीका या यूरोप के देशों की तरह द्विदलीय प्रणाली। चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 465 है, जबकि 7 राष्ट्रीय दल, 60 से अधिक क्षेत्रीय दल एवं 54 से अधिक गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल हैं। निर्दलीय भी चुनाव में प्रत्याशी हो सकते हैं। ऐसे में विधानसभा व लोकसभा के चुनावों में एक-एक क्षेत्रों में उम्मीदवारों की संख्या कभी-कभी 40-50 तक पहुँच जाती है।

राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों का अपना जनाधार अर्थात ठोस मतदाता होते हैं। ऐसे में किसी भी प्रत्याशी के लिए 50% या इससे अधिक मत प्राप्त करना टेढ़ी खीर है। किंतु इस विषय का एक दूसरा पहलू भी है कि क्या किसी उम्मीदवार के लिये 50% मत प्राप्त करना असंभव है। इसका जवाब हाँ नहीं हो सकता, क्योंकि कई नेताओं ने कुल मतों का आधे से अधिक प्राप्त कर अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराया है। जयपुर से स्वतंत्र पार्टी की उम्मीदवार महारानी गायत्री देवी ने 1962 व 1967 के आम चुनाव में क्रमश: 77.08 व 64.01 प्रतिशत मत प्राप्त किए। 2004 में पश्चिम बंगाल के आरामबाग लोकसभा क्षेत्र से मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के अनिल बसु को 77.16% मत मिले थे। इसी श्रेणी में काकिनाडा से एमएस संजीव राव (1971), रामविलास पासवान, संतोष मोहन देव, द्रमुक के एनवीएन सोमू, गुजरात के राजकोट के बल्लभभाई रामजीभाई, नगालैंड के के.ए. संथम, नगा पीपुल्स पार्टी के सीएम चांग आदि का नाम आता है।

1977 के चुनाव में राज नारायण ने 53.51% वोट प्राप्त कर इंदिरा गाँधी को हराया था और जनता दल से लड़े अनिल शास्त्री को 1989 के चुनाव में बनारस से 62.31% मत मिले थे, जबकि अमेठी से जनता पार्टी के रविंद्र सिंह ने 60.47% मतों के साथ कॉन्ग्रेस के संजय गाँधी को पराजित किया था। 50% से अधिक वोट पाकर प्रतिद्वंद्वी को चित करने वाले इन सारे नामों में एक बात सामान्य है कि इनकी राजनीति का आधार पारिवारिक पृष्ठभूमि न होकर, स्वयं जनता के बीच किये गए संघर्ष का परिणाम था। लेकिन ऐसा बहुत कम हुआ, इन्हें आपवादिक स्थिति कही जाएगी।

इसके बाद वर्ष 2014 में भारतीय मतदाताओं की रुचि व रुझान दोनों ने करवट ली और एक अलग तरह की धारा चली। नरेंद्र मोदी बनारस लोकसभा क्षेत्र से 56.37% और वडोदरा से 72.75% मत पाकर विजयी हुए। साथ ही गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी के सभी उम्मीदवार 50 प्रतिशत से अधिक मत पाकर जीते, जबकि सीटों की संख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 41% सीटों पर उम्मीदवारों ने 50% से अधिक मत प्राप्त कर प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाई। 2014 के लोकसभा चुनाव में 206 विजयी प्रत्याशी ऐसे रहे, जिन्हें 50% से अधिक मत मिले और खास बात यह रही कि इनमें से 70% से अधिक उम्मीदवार भारतीय जनता पार्टी के थे।

इस तरह यह कहा जा सकता है कि मतदाताओं में चुनाव को लेकर जागरूकता आई है और वे अपना मतदान निश्चित व स्पष्ट दृष्टि के साथ करते हैं। इसलिए अल्पमतों के साथ प्रतिनिधित्व करने का राग अप्रासंगिक होता जा रहा है। इसके कारणों की समीक्षा की जाए तो कई बातें निकल कर आती हैं। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने जनसंवाद और मतदाताओं के साथ अंतर्संवाद की शैली से लोगों के बीच गये और आम नागरिकों के मन में राजनीति व राजनेताओं के प्रति दशकों से बैठी उदासीनता को समाप्त कर पाने में बहुत हद तक सफलता हासिल की। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी द्वारा जनता से ख़ुद को प्रधानसेवक बनाने की अपील से जनता में यह संदेश गया कि राजनेता विशिष्ट व्यक्ति नहीं, बल्कि वह होता है, जो उनके बीच का और उनके लिये हो, जिससे वे अपनी आकांक्षाएँ, अपेक्षाएँ, आवश्यकताएँ कह सकें।

इसके अतिरिक्त सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव व संचार साधनों के आगमन होने से जनता को राजनेताओं से सवाल पूछने, अंतर्संवाद करने और शिकायत प्रकट करने का हथियार भी मिला। इन सबका प्रभाव यह हुआ कि राजनीति में गैर राजनीतिक व्यक्तियों व आम जनता की रुचि बढ़ी और किसी दल या नेता के प्रति धारणा अपने आकलन एवं विश्लेषण पर करने लगा। अतः जनता ने भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को न केवल स्पष्ट बहुमत दिया, बल्कि करीब 38% उम्मीदवारों को 50% से अधिक मतों से जिताया।

इधर 2014 में विजय के बाद मोदी सरकार ने सुलभ व सस्ता इंटरनेट एवं मोबाइल नीति लागू करते हुए डिजिटल भारत अभियान को गाँव -गाँव तक पहुँचाया है। एक ओर सरकार अपने कार्यक्रमों, नीतियों व योजनाओं का लाभ सीधे जनता तक पहुँचा रही है और अपने पाँच साल के कामकाज एवं पार्टी की गतिविधियों व विचारों को भी आम लोगों तक पहुँचाने के लिए डिजिटल प्लेटफार्मों का आक्रामक उपयोग कर रही है तो दूसरी तरफ विपक्षी दल भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहते हैं।

यह सच है कि जब समाज में मतदाताओं के पास सूचना का आदान-प्रदान, सूचना तक पहुँच होगी तो वह उम्मीदवार या दल के पक्ष अथवा विपक्ष पर विचार कर अपना निर्णय देगा। डिजिटल इंडिया और संचार क्रांति के कारण मतदाताओं के पास सरकार, पार्टी व उम्मीदवार के विषय में जानकारी इकट्ठा करने के साथ अपना हित व अहित सोचकर मतदान के दिन निर्णय लेने की संभावना और बढ़ चुकी है। ऐसे में संभव है कि इस बार के चुनाव में जनता अपना निर्णय जब सुनायेगी तो किसी दल व उम्मीदवारों को सरकार बनाने के लिये 50% से अधिक मत देकर भारतीय राजनीति में आये इस सकारात्मक बदलाव की धारा का प्रवाह और तीव्र करेगी।

(लेखक सामाजिक व राजनीतिक विश्लेषक हैं)

EXCLUSIVE: दो और ज़मीन सौदे के दस्तावेज़, गाँधी-वाड्रा परिवार व दलाली के रिश्तों का खुलासा पार्ट-2

ऑपइंडिया ने कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और हथियार दलाल संजय भंडारी के बीच संबंधों का ख़ुलासा कर बताया था कि एचएल पाहवा ने राहुल गाँधी को काफ़ी कम दाम कर ज़मीन बेची। पाहवा को वित्त उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति का नाम सीसी थम्पी था। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ऑपइंडिया की रिपोर्ट को आधार बना कर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और राहुल गाँधी पर सवाल दागे। रिपोर्ट के प्रकाशित होने और रिपब्लिक भारत पर इस पर चर्चा होने के साथ खड़ा हुए राजनीतिक तूफ़ान में गाँधी परिवार बुरी तरह फँसता नज़र आ रहा है।

हमारे ख़ुलासे का आधार राहुल गाँधी और एचएल पाहवा के बीच हुआ भूमि सौदा था। राहुल ने पाहवा से ज़मीन ख़रीदी, जिसके रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी से भी अच्छे सम्बन्ध हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि पाहवा से ख़रीदी गई ज़मीन को फिर वापस उसे ही काफ़ी ज्यादा क़ीमतों पर बेच दिया गया। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा एचएल पाहवा के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान कई महत्वपूर्ण दस्तावेज मिले, जिनमें इस लैंड डील का विवरण था।

इन दस्तावेजों से पता चलता है कि पाहवा के पास इतने अधिक मूल्य में ज़मीन ख़रीदने के लिए मुद्रा भंडार ही नहीं था। पाहवा को इस कार्य के लिए सीसी थम्पी द्वारा वित्त उपलब्ध कराया गया। सीसी थम्पी और संजय भंडारी के बीच रुपयों का कई बार लेन-देन हुआ है। दोनों के बीच कई ट्रांजैक्शंस हुए हैं। ये दोनों वाड्रा से भी जुड़े हुए हैं। थम्पी ने वाड्रा के लिए बेनामी संपत्ति की ख़रीद की थी और भंडारी ने उस करार के दौरान सेतु का कार्य किया था। ऑपइंडिया द्वारा जारी किए गए तीन दस्तावेज राहुल गाँधी, एचएल पाहवा और रॉबर्ट वाड्रा के बीच रिश्तों को उजागर करते हैं।

अब हमारे पास दो अतिरिक्त दस्तावेज भी हैं जो गाँधी-वाड्रा परिवार को एचएल पाहवा से जोड़ते हैं। वही पाहवा, जो संजय भंडारी और सीसी थम्पी से अटूट रूप से जुड़ा हुआ है। हमने जो प्रॉपर्टी डील के काग़ज़ात जारी किए थे, वो हसनपुर स्थित ज़मीन के थे। अब हमें और भी काग़ज़ात मिले हैं, जो रॉबर्ट वाड्रा और एचएल पाहवा के बीच हुए ज़मीन के सौदे से जुड़े हैं। यह हरियाणा के अमीपुर में हुए ज़मीन सौदे से जुड़ा है। इसमें एचएल पाहवा से रॉबर्ट वाड्रा को ट्रांजैक्शन किए गए हैं।

ज़मीन सौदे का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि वही महेश नागर जिसने रॉबर्ट वाड्रा और राहुल गाँधी की ओर से पिछले कागजात पर हस्ताक्षर किए थे, उसने इस ज़मीन के सौदे के लिए वाड्रा की ओर से भी हस्ताक्षर किए थे।

रॉबर्ट वाड्रा, प्रियंका गाँधी वाड्रा और राहुल गाँधी के सौदों के बीच में HL पाहवा है।

इसके अलावा हमने एक और भूमि सौदे के कागज़ात खोजे हैं, जिसमें इस बात का स्पष्टीकरण मौजूद है कि रॉबर्ट वाड्रा ने HL पाहवा को भी ज़मीन बेची थी।

HL पाहवा, CC थम्पी और संजय भंडारी के बीच सांठगांठ के साथ कुछ ऐसे सवाल भी हैं जिनसे राहुल गाँधी का बच पाना लगभग न के बराबर है।

1. राहुल गाँधी ने HL पाहवा से जो ज़मीन ख़रीदी उसका संबंध संजय भंडारी और CC थम्पी से था। अब सवाल यह उठता है कि क्या ज़मीन ख़रीदने से पहले राहुल गाँधी को इस अवैध सांठगांठ के बारे में पहले से पता था?

2. HL पाहवा ने रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गाँधी वाड्रा को ज़मीन बेची है और उसके बाद ज़मीन को वापस बढ़े हुए दामों पर ख़रीदा, जबकि उसके पास ऐसा करने के लिए पर्याप्त नकद धन भी नहीं थी। इस प्रक्रिया में, उसने इन भुगतानों के लिए CC थम्पी से पैसे लिए। क्या राहुल गाँधी को अपनी बहन प्रियंका गाँधी वाड्रा और बहनोई रॉबर्ट वाड्रा के इस अवैध भूमि सौदों के बारे में पता था?

3. HL पाहवा अपने परिवार के लेन-देन में क्या भूमिका निभाते हैं और वह एकमात्र सूत्रधार क्यों है जिसके माध्यम से ऐसे भूमि सौदे संचालित होते हैं? HL पाहवा ने CC थम्पी से पैसे क्यों लिए और जब उसके पास नकद धन नहीं था, बावजूद इसके उसने ज़मीन फिर से क्यों खरीदी?

4. इसका सीधा लिंक हथियार डीलर संजय भंडारी से है, जो राफ़ेल सौदे पर कॉन्ग्रेस शासन की वार्ता के दौरान दसौं के लिए एक ऑफसेट भागीदार बनना चाहता था। अधिकांश भूमि ख़रीद और बिक्री कॉन्ग्रेस शासन के दौरान हुई जबकि उस समय राफ़ेल वार्ता चल रही थी। क्या राहुल गाँधी को कॉन्ग्रेस के राफ़ेल सौदे में संजय भंडारी की भागीदारी के बारे में पहले से पता था?

5. न्यूज रिपोर्टें इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि MMRCA डील समझौते में रक्षा मंत्रालय से MMRCA की कई फाइलें गायब हुई थीं। ये फाइलें संजय भंडारी द्वारा फोटोकॉपी कराई गई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जब राहुल गाँधी और उनका परिवार  HL PAHWA के साथ डील कर रहे थे, जो कि सीसी थम्पी और संजय भंडारी से जुड़ा हुई था, तो उन्हें पता था कि संजय भंडारी क्या कर रहे है?

6. इसके अलावा एयरबस के लिए भी संजय भंडारी बिचौलिया की भूमिका में थे। एयरबस कॉन्सॉर्टियम का एक पार्ट है जिससे यूरोफाइटर तैयार होता है, जो कि  MMRCA सौदे के दौरान राफेल के साथ सीधे प्रतिस्पर्धा में था। क्या राहुल गाँधी जानते थे कि एच एल पाहवा जिनके संबंध थंपी के जरिए संजय भंडारी से थे वो एयरबस के लिए बिचौलिए रह चुके हैं?

7. क्या राहुल गाँधी बार-बार राफेल मुद्दे को इसीलिए उठा रहे हैं क्योंकि राफेल MMRCA करार में उनके क़रीबी संजय भंडारी को कोई हिस्सा नहीं मिल पाया। या हो सकता है उन्हें अब यूरोफाइटर ज्यादा लाभप्रद नज़र आ रहा हो।

8. एबीपी के एक पत्रकार ने बताया कि राहुल गाँधी जर्मनी में यूरोफाइटर प्रतिनिधियों से मिले। क्या वर्तमान राफेल सौदे में उनकी निंदा में कोई भूमिका थी? क्या संजय भंडारी इन कथित बैठकों में शामिल थे?

9.क्या ‘चौकीदार चोर है’ के नारे इसलिए लगाए जाते हैं ताकि हथियारों के सौदागर के साथ राहुल की अपनी सांठगांठ का खुलासा न हो?

10 मौजूदा राफेल सौदे को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिलने के बाद भी राहुल गाँधी तमाम कुतर्कं से राफेल के पीछे पड़े हुए हैं क्योंकि अगर राफेल डील नाकाम नहीं साबित होती तो यूरोफाइटर पर विचार वापस नहीं किया जा सकता?

चूँकि, राहुल गाँधी राफेल डील के खिलाफ़ हाथ-धो कर पड़ चुके हैं तो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से यह भी महत्तवपूर्ण हो जाता है कि वह केवल जमीन की खरीद-बिक्री पर बात न करते हुए एचएल पाहवा, सीसी थंपी और संजय भंडारी जैसे लोगों से अपने संबंधों के बारे में भी खुलकर बात करें, जिसके कारण उन पर सवालों की पकड़ और गहराती जा रही है।


भाई ने बहन की सुरक्षा के लिए किया रेल मंत्री को ट्वीट, रेलवे पुलिस ने तुरंत एक्शन ले किया सबको अरेस्ट

रेल यात्रा को सहज और सुगम बनाने की दिशा में प्रशासन की ओर से लगभग हर संभव प्रयास किया जाने लगा है। इस प्रयास में हर वो सुविधा शामिल की जाती है, जिससे रेल यात्रा के दौरान यात्रियों को किसी भी तरह की असुविधाजनक स्थिति का सामना न करना पड़े। लेकिन अगर किसी यात्री के समक्ष ऐसी कोई असुविधा या आपत्तिजनक स्थिति आ भी जाती है तो उसका तुरंत निवारण करना प्रशासन की प्राथमिकता होती है और यह किया भी जा रहा है।

ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के आगरा का है, जहाँ एक महिला पैसेंजर को कुछ मनचले परेशान कर रहे थे। इस पर उस महिला ने अपने भाई से संपर्क साधा और अपनी परेशानी उनसे साझा की। भाई मौक़े पर तो वहाँ मौजूद नहीं था लेकिन उन्होंने ट्विटर के माध्यम से इस घटना की जानकारी रेल मंत्री पीयूष गोयल, इंडियन रेलवे और एसपी जीआरपी को टैग करते हुए दे दी। भाई द्वारा की गई मदद की ये गुहार फौरी तौर पर रंग लाई और महिला पैंसेजर को परेशान करना मनचलों पर भारी पड़ गया।

महिला पैसेंजर के भाई के ट्वीट पर एसपी जीआरपी आगरा ने रिप्लाई किया और उनसे उनका मोबाइल नंबर माँगा। इसके बाद तत्काल प्रभाव से उस गाड़ी की लोकेशन देखकर कार्रवाई के लिए प्रभारी निरीक्षक आगरा कैंट विजय कुमार को बताया गया। प्रभारी निरीक्षक ने सूचना पाकर तुरंत मामले को गंभीरता से लिया और मौके पर पहुँचकर आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया गया।

जानकारी के अनुसार, यह घटना 12 मार्च 2019 की है। महिला पैसेंजर के भाई ने अपने ट्वीट में लिखा, “सर मेरी बहन को मदद की ज़रूरत है वह 22415 नंबर ट्रेन में यात्रा कर रही है। उसके पास वाली सीटों पर 6 लोग बैठे हैं और उन्होंने शराब भी पी रखी है, नशे की हालत में वो लोग उससे ग़लत हरक़त कर रहे हैं। इस वजह से वो ख़ुद को असहज महसूस कर रही है। कृपया करके उसकी मदद करें।”

प्रशासन द्वारा यदि इस मामले को गंभीरता से न लिया गया होता तो यह रेल यात्रा उस महिला के लिए एक भयानक याद बन जाती। प्रशासन द्वारा की गई इस तरह की कार्रवाई निश्चित तौर पर महिला वर्ग को भी निश्चिंत व सुरक्षित यात्रा करने का सुखद एहसास दिलाने में कारगर साबित होगा।

राहुल और प्रियंका को ज़मीन बेचने वाले पाहवा से ED करेगी पूछताछ, कॉन्ग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ीं

प्रवर्तन निदेशालय ने दलाल एचएल पाहवा पर शिकंजा कसते हुए उससे पूछताछ की तैयारी शुरू कर दी है। बता दें कि ऑपइंडिया ने राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी और रॉबर्ट वाड्रा के साथ रक्षा दलाल संजय भंडारी, सीसी थम्पी व पाहवा के बीच रिश्तों का ख़ुलासा किया था। इंडिया टुडे में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, राहुल और प्रियंका को ज़मीन बेचने वाले पाहवा को पूछताछ के लिए कभी भी बुलाया जा सकता है। इस ख़बर में बताया गया है कि एजेंसी ने सीसी थम्पी और पाहवा को पहले भी पूछताछ के लिए समन जारी किया था। पाहवा ने एजेंसी के समन का अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। थम्पी फिलहाल अमेरिका में इलाज करा रहा है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) जल्द ही उसका बयान दर्ज करेगी।

एजेंसी ने 2017 में एचएल पाहवा से जुड़े ठिकानों पर छापे के दौरान कई दस्तावेजों की बरामदगी की थी। इन दस्तावेजों से पता चलता है कि हरियाणा में पाहवा ने तीन लोगों को ज़मीन बेची थी। इन दस्तावेजों में उस लेन-देन का विवरण मौजूद था। दस्तावेजों के अनुसार, एचएल पाहवा ने मार्च 2008 में हरियाणा के हसनपुर में राहुल गाँधी को 6.5 एकड़ ज़मीन बेची। पाहवा को जमीन के लिए 26,47,000 रुपए का भुगतान किया गया था। स्पष्ट है कि यह राशि बाजार मूल्य से काफ़ी कम है। उसी महीने, उसी गाँव में 9 एकड़ जमीन रॉबर्ट वाड्रा ने अपने सहयोगी महेश नागर के माध्यम से ख़रीदी थी। महेश नागर रॉबर्ट वाड्रा का क़रीबी है और बीकानेर ज़मीन हेरा-फेरी के मामले में प्रवर्तन निदेशालय के रडार पर है। उस मामले में वाड्रा से भी पूछताछ की जा चुकी है।

पाहवा ने 2016 में प्रियंका गाँधी को 15 लाख रुपए में ज़मीन बेची थी। एजेंसी इस बात की भी जाँच कर रही है कि कहीं ये बिक्री डीड बैकडेटेड तो नहीं हैं। जाँचकर्ताओं का मानना है कि पाहवा को सीसी थम्पी से लगभग 54 करोड़ रुपए मिले थे, जिसका इस्तेमाल उसने ज़मीन में निवेश करके किया। एजेंसी ने ऐसे किकबैक्स के मनी-ट्रेल का भी विश्लेषण किया है। यह किकबैक पिलाटस (Pilatus) और सैमसंग के बीच हुए करार के लिए मिला था। पेट्रोलियम सौदे पर ONGC और सैमसंग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के बीच हस्ताक्षर किए गए थे। इस सौदे को 2008 में मंजूर किया गया था। किकबैक को डायरेक्ट देने के बजाय संजय भंडारी की शारजाह स्थित कम्पनी सैन्टेक इंटरनेशनल FZC और सीसी थम्पी की दुबई स्थित कंपनी स्काईलेस्ट इंवेस्टमेंट्स के जरिए भेजा गया था।

ईडी का यह भी दावा है कि सैमसंग और पिलाटस सौदे से प्राप्त किकबैक राशि का उपयोग लंदन में बेनामी संपत्तियों और भारत में ज़मीन ख़रीदने के लिए किया गया था। सैमसंग ने 13 जून, 2009 को सैन्टेक को 49.9 लाख अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया। ऑपइंडिया के ख़ुलासे के निम्लिखित निष्कर्ष हैं, जिसे आप आसान भाषा में समझ सकते हैं:

  1. राहुल गांधी ने कथित रूप से कम कीमत पर एचएल पाहवा से जमीन खरीदी।
  2. रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा भी एचएल पाहवा से जमीन खरीदी गई थी। कई मामलों में, एचएल पाहवा द्वारा इन्हीं ज़मीनों को बढ़े हुए मूल्य पर वापस खरीदा गया था। वो भी तब जबकि पाहवा का कैश बैलेंस निगेटिव में था।
  3. इस खरीद पर साफ-सुथरा दिखाने के लिए, एचएल पाहवा ने सीसी थम्पी से पैसे लिए थे।
  4. सीसी थम्पी और संजय भंडारी करीबी दोस्त हैं। उनके बीच कई वित्तीय लेनदेन भी हुए थे।
  5. संजय भंडारी एक हथियार डीलर है और रॉबर्ट वाड्रा का करीबी दोस्त भी। उसे रक्षा सौदे और पेट्रोलियम सौदे में कमिशन (किकबैक) भी मिला था।
  6. कमिशन (किकबैक) की इसी राशि से संजय भंडारी ने रॉबर्ट वाड्रा से बेनामी संपत्ति खरीदी थी, यहाँ तक ​​कि उसने इन संपत्तियों के नवीनीकरण (रेनोवेशन) के लिए भी भुगतान किया था।
  7. इस संपत्ति को फिर सीसी थम्पी को बेचा गया था।
  8. फिलहाल ईडी थम्पी के साथ रॉबर्ट वाड्रा की निकटता की जाँच कर रहा है।
  9. ये सभी सौदे कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान हुए थे।
  10. संजय भंडारी एक हथियार डीलर है। 2012 से 2015 के बीच राफेल सौदे में ऑफ़सेट पार्टनर बनने की पैरवी संजय भंडारी कर रहा था लेकिन राफेल बनाने वाली कंपनी दसौं ने उसे अपने साथ करने से मना कर दिया था।
  11. 126 राफेल जेट की खरीद से संबंधित फाइल रक्षा मंत्रालय से गायब हो गई थी और बाद में इसे सड़क पर पाया गया था। आरोप है कि भंडारी ने फाइल चुराई थी। आरोप यह भी है कि भंडारी महत्वपूर्ण फाइलों की फोटोकॉपी करता था और जिन डिफेंस कॉन्ट्रैक्टरों के साथ उसके संबंध अच्छे थे, उन्हें वो कॉपी उपलब्ध करवाता था।
  12. अरुण जेटली ने आरोप लगाया था कि जब कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान राफेल को अंतिम रूप दिया जा रहा था, तो यूरोफाइटर के बारे में बैकरूम बातें हुआ करती थीं।
  13. ऐसी अफवाहें भी हैं कि राहुल गाँधी जर्मनी में यूरोफाइटर के प्रतिनिधियों से मिले थे।

लोकसभा चुनाव 2019: कॉन्ग्रेस के ये 21 उम्मीदवार सांसद बनने की परीक्षा में पास करेंगे जनता का टेस्ट?

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कॉन्ग्रेस ने 21 उम्मीदवारों के नाम की दूसरी लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में 16 नाम उत्तर प्रदेश के और 5 नाम महाराष्ट्र के हैं। बता दें कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से चुनाव लड़ने का मौक़ा प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के हाथ लगा है और हाई प्रोफाइल मानी जानी वाली सुल्तानपुर की सीट से संजय सिंह को टिकट दिया गया है।

बात अगर उत्तर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की करें तो चुनावी मैदान में पूर्व कैबिनेट मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को कानपुर से टिकट दिया गया है। इनके बारे में बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में ये मुरली मनोहर जोशी से हार गए थे। सुशील कुमार शिंदे को महाराष्ट्र की सोलापुर से टिकट दिया गया है, वहीं प्रिया दत्त मुंबई-नॉर्थ सेंट्रल से चुनावी मैदान में उतरेंगी। बीजेपी को छोड़कर कॉन्ग्रेस का हाथ थामने वाले नाना पटोले नागपुर से चुनाव लड़ेंगे। मिलिंद देवड़ा को मुंबई-दक्षिण से चुनाव लड़ने का मौक़ा मिला है।

इससे पहले कॉन्ग्रेस ने 15 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की थी। उसमें उत्तर प्रदेश के 11 और गुजरात के 4 नाम शामिल थे। रायबरेली से पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी मैदान में उतरेंगी तो वहीं दूसरी तरफ अमेठी से राहुल गाँधी चुनाव लड़ेंगे। इनके अलावा पहली लिस्ट में निर्मल खत्री, आरपीएन सिंह, सलमान खुर्शीद, इमरान मसूद, अनु टंडन, जितिन प्रसाद जैसे उम्मीदवारों के नाम शामिल थे।

पहली लिस्ट में कॉन्ग्रेस ने गुजरात के लिए चार नाम जारी किए थे। इनमें गुजरात प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी के अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी, प्रशांत पटेल, रणजीत मोहन सिंह और राजू परमार के नाम शामिल हैं।

राहुल और हथियार दलाल के ख़ुलासे को बौखलाए मीडिया गिरोह ने दबाया, चलाई बेकार और बकवास ख़बरें, देखें सैम्पल

ऑपइंडिया ने बुधवार (मार्च 13, 2019) को राहुल गाँधी और हथियार दलाल संजय भंडारी के बीच क़रीबी संबंधों का ख़ुलासा कर बताया था कि कैसे कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने हसनपुर, पलवल में 6.5 एकड़ ज़मीन ख़रीदी थी। भंडारी रॉबर्ट वाड्रा का ख़ास आदमी है। उस ख़ुलासे में इसके अलावा अन्य रक्षा दलालों एचएल पाहवा और सीसी थम्पी के साथ उनके संबंधों को लेकर भी सबूत पेश किए गए। ख़बर का असर काफ़ी दूर तक हुआ और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राहुल गाँधी से जवाब माँगा। रिपब्लिक भारत ने इस ख़बर को प्रमुखता से चलाई और केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ सहित अन्य भाजपा नेताओं ने जीजा-साले की इस हेराफेरी के आधार पर राहुल को घेरा। वित्त मंत्री और कद्दावर नेता अरुण जेटली ने ब्लॉग लिख कर कॉन्ग्रेस की करतूतों को जनता के सामने रखा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी बात का समर्थन किया। एक दिन में इतना कुछ हो गया लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हे साँप सूंघ गया था।

कुछ मुट्ठी भर लोग ऐसे भी थे जो हतप्रभ थे कि आख़िर चल क्या रहा है? तैमूर की लंगोट गीली होने की ख़बर को प्रमुखता से चलाने वाले इस गिरोह विशेष ने राहुल गाँधी, संजय, भंडारी, एचएल पाहवा और सीसी थम्पी के क़रीबी संबंधों वाले ख़ुलासे को ऐसे नज़रअंदाज़ किया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। भाजपा के ग्राम प्रधान के साले के ससुर के किसी बयान को उठा कर भाजपा के झूठ के रूप में प्रचारित कर एक-एक घंटे का शो कर लेने वाली तथाकथित पत्रकारों की इस जमात ने भ्रष्टाचार, वित्तीय हेराफेरी, अवैध करार से सम्बंधित इस ख़बर को तवज्जोह ही न दी। अपनी नई ‘कुलदेवी’ प्रियंका गाँधी की आराधना में व्यस्त इन डिजाइनर पत्रकारों ने इस ख़बर को कहीं भी स्थान नहीं दिया। उलटा उन्होंने इसे ढकने की भरपूर कोशिश की। अगर आप इनकी करतूतों को देखेंगे तो आप भी अपनी हँसी नहीं रोक पाएँगे। इसकी कुछ बानगी आपको नीचे दिख जाएगी।

सबसे पहले बात शुरू करते हैं लेखक, विचारक, दार्शनिक, समाचार एंकर, पत्रकार, भविष्यवक्ता और समाजसेवी रवीश कुमार से। सुदूर किसी गाँव के छोटे से जंगल में एक बिजली खम्भे में जंग लगने पर एक घंटे का प्राइम टाइम करने वाले रवीश ने कल राहुल गाँधी के पोल-खोल को दरकिनार करते हुए चंद्रशेखर आजाद की बात की। अब आप सोच रहे होंगे कि ये तो अच्छी बात है कि रवीश अब स्वतंत्रता सेनानियों के गुण गा रहे हैं। लेकिन यहाँ पेंच है। जरा ठहरिए। ये वो वाले चंद्रशेखर आजाद नहीं हैं। ये ‘चंद्रशेखर आजाद रावण’ है, जो एक वर्ष से भी अधिक जेल में रह कर बाहर निकला है। राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट के तहत आरोपित आजाद सहारनपुर में दंगा भड़काने के लिए कुख्यात है। भीम आर्मी के अध्यक्ष आजाद को उभरता हुआ दलित नेता बता कर रवीश ने उसके गुणगान में कसीदे पढ़े और अपने चैनल पर राहुल गाँधी वाली ख़बर को चालाकी से छिपाया।

‘बिहारी’ रवीश कुमार ने राहुल गाँधी द्वारा यूपी-बिहार के लिए कहे गए अपमानजनक शब्दों को भी अपने प्राइम टाइम को कोई स्थान नहीं दिया। उलटा राहुल गाँधी को बेबाक नेता की तरह पेश करते हुए बताया गया कि देखिए कैसे उन्होंने परिपक्वता से हर एक सवाल का जवाब दिया। कुल मिला कर इस प्राइम टाइम में वो सब कुछ था जिस से असली मुद्दे को छिपाने की कोशिश की जाए। इसमें राहुल तो थे पर भंडारी नहीं था, इसमें प्रियंका तो थी पर वाड्रा नहीं थे, इसमें आजाद तो था लेकिन पाहवा और थम्पी नहीं थे, इसमें राजनीति तो थी पर कॉन्ग्रेस की करतूतों का जिक्र नहीं था।

रवीश ने राहुल गाँधी को बचाने के लिए ढूँढा नया मसीहा

उधर फेक न्यूज़ में दक्ष ‘द वायर’ का तो कहना ही क्या। उसने तो प्रियंका गाँधी को घृणा की हवा के ख़िलाफ़ प्रेम की आँधी बता कर उनकी सफलता की कामना करने वाली ओपिनियन पीस को भ्रष्टाचार के मुद्दे के ऊपर प्राथमिकता दी। प्रियंका गाँधी की डिक्शनरी को समझाते हुए इस रिपोर्ट में उन्हें राष्ट्रप्रेम की प्रतिमूर्ति दर्शाया गया। पोर्टल अभी तक ज़ोया अख्तर की अमेज़न सीरीज, नोटबंदी के कथित घाटे इत्यादि पर ही अटका पड़ा है। वायर के सौतेले भाई ‘द क्विंट’ की बात करें तो उसने आमिर खान, राफेल, योगेंद्र यादव के चुनाव आयोग से सवाल, इन्हीं चीजों को प्राथमिकता दी और राहुल गाँधी-संजय भंडारी के रिश्तों के बारे में कुछ भी नहीं कहा। क्विंट और वायर के बुआ के बेटे स्क्रॉल ने तो दो क़दम और आगे बढ़ कर प्रियंका गाँधी की ट्विटर प्रोफाइल पिक्चर को अपनी हेडलाइन बना दिया। स्क्रॉल ने प्रियंका गाँधी द्वारा ट्विटर प्रोफाइल पिक्चर बदलने को एक बड़ी बहस की चिंगारी कहा।

जींस और और टॉप पर अटका पड़ा है स्क्रॉल

ये सोचनीय है कि अगर कोई राजनेता या राजनेत्री (जिसकी अभी-अभी राजनीति में एंट्री हुई है) अपनी डीपी बदल ले तो उसे एक बड़ी बहस का आधार बता दिया जाता है। लेकिन, देश की पुरानी पार्टी के अध्यक्ष के रक्षा दलालों के साथ क़रीबी सम्बन्ध होने की बात सामने आती है तो उसे दबा दिया जाता है। ये आज का मीडिया है। प्रियंका गाँधी ने जीन्स पहन रखी है और अगर ट्विटर पर किसी ने कह दिया कि ये रिफ्रेशिंग है तो ये उनके लिए सबसे बड़ी ख़बर बन जाती है। अब कोई राजनेता जीन्स टॉप पहने या कुर्ता-पाजामा, मीडिया वालों के लिए ये चुनावी मुद्दा है और इसी आधार पर राजनेताओं की विश्वसनीयता तय की जाएगी। भ्रष्टाचार उनके लिए बस एन राम द्वारा लिखे बिना सिर-पैर के लेखों तक ही सीमित है। ऐसे लेख, जिसमें तथ्यों को घुमा-फिरा कर पाठक को एक भूल-भुलैया में ऐसा उलझाया जाता है, जैसे कि वो कोई अर्थशास्त्र की पुस्तक पढ़ रहा हो।

आख़िर क्या कारण है कि जिस ख़बर पर विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, रिपब्लिक भारत जैसे बड़े चैनल पर बहस चली, राहुल गाँधी द्वारा इस से जुड़े सवालों को दरकिनार कर दिया गया लेकिन मीडिया के इस वर्ग विशेष के कानों में जूँ तक न रेंगी। गिरोह ने जिस तरह इतनी आसानी से इस ख़बर को दरकिनार किया और अलूल-जलूल ख़बरों को प्रकाशित कर इसे दबाने की कोशिश की, उसे लगा कि लोगों को कुछ भी पता नहीं चलेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। दक्षिणपंथियों को बेवकूफ, अनपढ़ और अज्ञानी दिखाने के चक्कर में सर्फ एक्सेल और माइक्रोसॉफ्ट एस्केल को लेकर ख़बरें बनाने वाली मीडिया के इस जमात की पोल अब खुल चुकी है। जनता जागरूक है, इनके कुटील प्रयासों को देख रही है और समझ भी रही है।

मध्य प्रदेश: 5 साल के बच्चे का दो टुकड़ों में शव बरामद, लालू के बिहार की याद दिला रही कमलनाथ सरकार

हाल ही में मध्य प्रदेश के चित्रकूट में दो जुड़वा बच्चों के अपहरण और हत्या की ख़बर सामने आई थी। इस घटना को अभी 20 दिन भी नहीं बीते थे कि सतना में 5 साल के एक मासूम की हत्या ने फिर से सबको हिला कर रख दिया।

बुधवार (मार्च 12, 2019) की दोपहर सतना ज़िले नागौद थाना इलाक़े के रहिकवारा में 5 वर्षीय मासूम शिवकांत प्रजापति अपने घर के बाहर खेल रहा था, जब उसके चाचा ने ही उसका अपहरण कर उसके दो टुकड़े कर दिए। हत्या के बाद आरोपित ने बच्चे को डालडा के डिब्बे में डालकर उसे बोरी में बांधकर गाँव के पोखर में फेंक दिया।

इस निर्मम हत्या के बाद आरोपित ने पुलिस को गुमराह करने के लिए सुदहा सड़क से गुजर रही एक महिला का फोन लेकर मृतक के दूसरे चाचा से ₹2 लाख की फिरौती की माँग की। बच्चे की अपहरण से घबराए परिवार वालों ने नागौद पुलिस को पूरी घटना के बारे में सूचित किया, जिसके तुरंत बाद पुलिस हरक़त में आ गई।

सिम की जानकारी और लोकेशन के आधार पर पहले तो दुकानदार को हिरासत में लिया गया। दुकानदार से कड़ी पूछताछ के बाद महिला का नाम पता चला उसके बाद महिला से भी कड़ाई से पूछताछ की गई। कुछ देर बाद महिला ने स्वीकार किया कि एक राह चलते व्यक्ति ने कुछ समय के लिए महिला का फोन माँगा था क्योंकि उसे किसी से ज़रूरी बात करनी थी।

जानकारी प्राप्त होने के साथ ही पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह अपनी टीम बनाकर बच्चे की तलाश में जुट गए। नदी नाले के सर्चिंग के साथ ही पारिवारिक रंजिश वाले एंगल को खंगालते हुए 4-5 लोगों को (जिनपर संदेह था) पकड़कर पूछताछ शुरू हुई, साथ ही डॉग स्कॉट भी सक्रिय हुआ।

छानबीन के दौरान बच्चे के चाचा अनुताप पर शक़ की सुई ठहरने लगी। जब सख़्ती से पूछताछ हुई तो उसने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बच्चे के शव के बारे में बताया।

एक बार फिर अपनों की रंजिशों के चलते एक मासूम को अपनी ज़िंदगी गँवानी पड़ी। इस घटना ने गाँव में तनावपूर्ण स्थिति को जन्म दे दिया है। पहले दो जुड़वा बच्चों की निर्मम हत्या और अब 5 साल के मासूम का ऐसा क़त्ल झकझोर देने वाला है।