Sunday, October 6, 2024
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जमानत पर चल रहे रॉबर्ट वाड्रा का पत्नी प्रियंका के नाम ‘अश्रुपूरित’ पोस्ट

कॉन्ग्रेस के पूर्वी उत्तर प्रदेश मामलों की प्रभारी महासचिव नियुक्त की गई रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गाँधी वाड्रा ने आज लखनऊ में पहला रोड शो किया। इसी बीच जमानत पर चल रहे उनके पति रॉबर्ट वाड्रा ने उनके नाम एक बेहद भावुक फेसबुक पोस्ट लिख कर उन्हें शुभकामनाएँ दी हैं।

रॉबर्ट द्वारा फेसबुक पर किए गए इस पोस्ट में उन्होंने अपनी पत्नी प्रियंका गाँधी वाड्रा को अपनी सबसे अच्छी दोस्त और परफेक्ट पत्नी बताया है। फेसबुक पोस्ट पर उन्होंने लिखा, “भारत के लोगों की सेवा और यूपी में कार्य करने की नई यात्रा के लिए ‘P’ तुम्हें मेरी शुभकामनाएँ। तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त, परफेक्ट पत्नी और हमारे बच्चों के लिए सबसे बेहतरीन माँ हो। देश के राजनैतिक माहौल की स्थिति अच्छी नहीं है। लेकिन, मैं जानता हूँ देश की सेवा करना उनका (प्रियंका) कर्तव्य है। अब हमने उन्हें देश के लोगों को सौंप दिया है, प्लीज़ उन्हें सुरक्षित रखना।”

रॉबर्ट वाड्रा ने अपने इस पोस्ट में प्रियंका गाँधी वाड्रा को ‘P’ कहकर संबोधित किया है। इससे पहले भी जब प्रियंका गाँधी वाड्रा ने राजनीति में कदम रखा था, तब रॉबर्ट वाड्रा ने उन्हें ‘P’ कहकर ही शुभकामनाएँ दी थी।

बता दें कि प्रियंका गाँधी वाड्रा को लोकसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गई है। प्रियंका के जिम्मे राज्य की 80 में से 42 सीटें हैं। कॉन्ग्रेस की महासचिव होने के नाते उनके पास काफ़ी बड़ी चुनौती है क्योंकि पूर्वी यूपी में भाजपा के कई बड़े नेताओं के निर्वाचन क्षेत्र भी आते हैं। इसमें यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी का क्षेत्र भी शामिल है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि रॉबर्ट वाड्रा द्वारा मिली शुभकामनाओं के साथ प्रियंका गाँधी वाड्रा अपने लक्ष्य के कितने निकट पहुँच पाती हैं। पिछले चुनावों में कॉन्ग्रेस पूरे देश में केवल 44 सीटों पर ही सिमट गई थी। उत्तर प्रदेश की बात करें तो मोदी लहर के कहर में कॉन्ग्रेस वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ़ अपनी परंपरागत सीटें यानी अमेठी और रायबरेली ही बचा सकी थी।

ट्विटर के भूत बातों से नहीं मानते, संसदीय समिति ने कहा ‘जाओ अपने मालिक को लेकर आओ’

ट्विटर इंडिया के प्रतिनिधियों सहित ट्विटर टीम आज इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी के मुद्दे पर संसदीय समिति के समक्ष पेश होने के लिए संसद पहुंची। इससे पहले शॉर्ट नोटिस का हवाला देते हुए ट्विटर ने संसदीय समिति के समक्ष पेश होने से मना कर दिया था।

रिपोर्ट्स के अनुसार इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी के मुद्दे पर संसदीय समिति ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है कि वे ट्विटर के किसी भी अधिकारी से तब तक नहीं मिलेंगे जब तक कि समिति के समक्ष कोई वरिष्ठ सदस्य या ट्विटर ग्लोबल टीम के सीईओ पेश न हों। इसके लिए ट्विटर को 15 दिन की डेडलाइन दी गई है। 

ट्विटर के सीईओ जैक दोरजी ने संसद की समिति के सामने पेश होने से इनकार कर दिया था। खबरों के मुताबिक, बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता वाली सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़ी संसदीय समिति ने 1 फरवरी को ट्विटर सीईओ के लिए समन जारी किया था। समन में उनसे अगली बैठक में पेश होने को कहा गया था। बता दें कि सोशल मीडिया पर भारतीय नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के मसले पर जवाब-तलब के लिए उन्हें बुलाया गया था।

मेरे प्यारे PRIME MINISTER: खुले में शौच पर रोकथाम, स्वच्छता अभियान की मुहीम को आगे बढ़ाएगी यह फ़िल्म

सामाजिक मुद्दों पर पिछले कई वर्षों से एक से बढ़कर एक फ़िल्में रिलीज़ हो रही हैं। इसी कड़ी में डायरेक्टर राकेश ओमप्रकाश मेहरा की खुले में शौच, स्वच्छता जैसे विषयों को छूती फ़िल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ का ट्रेलर रिलीज़ हो गया है। इस ट्रेलर को देखकर फ़िल्म की कहानी दिल को छू जाने वाली लग रही है।

फ़िल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ की कहानी शौचालय की समस्या को एक अलग नज़रिए से समझाती नज़र आ रही है। दो दिन पहले रिलीज़ पोस्टर में एक छोटा सा लड़का अपनी माँ के साथ खड़ा है और दीवार पर लिखा है, “Meri Arzi Sunlo Zara”। और अब ट्रेलर देखकर लग रहा है कि फ़िल्म की कहानी इस 8 साल के बच्चे की अर्ज़ी की कहानी है जो अपनी माँ के लिए टॉयलेट बनवाना चाहता है।

फ़िल्म के ट्रेलर को देखकर ऐसा लग रहा है कि खुले में शौच, बलात्कार, यौन उत्पीड़न और ग़रीबी जैसे कई मुद्दों को इसमें भावनात्‍मक तरीके से उठाया गया है। इसके अलावा बाल मनोविज्ञान और भेदभाव जैसे सामाजिक मुद्दों को भी पूरी संवेदनशीलता और संजीदगी से उठाया गया है।

मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर ट्रेलर

ट्रेलर की शुरुआत दिल्ली के राजपथ पर राष्ट्रपति भवन से होती है, जहाँ कुछ बच्चे प्रधानमंत्री से मिलने के लिए पहुँचे हैं। उन बच्चों में से कन्हैया गार्ड से पूछता है कि क्या पीएम यहीं रहते हैं? संजीदगी के साथ हँसी-मज़ाक के पलों को भी समेटती फ़िल्म के ट्रेलर में अरिजीत सिंह की आवाज़ में टाइटल ट्रैक चलता रहता है।

ट्रेलर देखकर अभी इतनी कहानी समझ आ रही है कि 8 साल का एक लड़का कन्हैया अपनी माँ के साथ मुंबई की स्लम एरिया में रहता है। माहौल वैसा ही है जैसा आमतौर पर स्लम में होता है लेकिन उनकी ज़िदगी में बड़ा बदलाव तब आता है। जब खुले में शौच के लिए जाने पर उसकी माँ के साथ रेप हो जाता है। शौचालय की समस्या को दूर करने के लिए कन्हैया प्रधानमंत्री के नाम लिखी चिट्ठी जिसमें व्यथा का जिक्र करते हुए शौचालय बनवाने की अपील होती है।

सरगम अपने बेटे कनु से ये वादा करवाती है कि ‘बोल लाइफ में कभी गंदे काम नहीं करेगा” प्राइम मिनिस्टर को लिखे ख़त में कनु का एक मासूस सवाल है “आप तो देश के प्रधानमंत्री हैं अगर आपकी माँ के साथ ऐसा होता तो आपको कैसा लगता?” जो शौचालय न होने से महिलाओं को किन ख़तरों से गुजरना होता है, उस पर सोचने को विवश कर देता है।

ट्रेलर में एक जगह एक तंज भी है जब कन्हैया नोट को ध्यान से अपने दोस्तों को दिखाते हुए कहता है “माँगने से कुछ नहीं होता, करने से होता है और वह सिर्फ़ एक ही आदमी कर सकता है- गाँधी जी।

इस फ़िल्म में मुख्य भूमिकाओं में नेशनल अवॉर्ड विनिंग ऐक्ट्रेस अंजलि पाटिल, मकरंद देशपांडे, रसिका अगाशे, सोनिया अलबिजूरी और नचिकेत पूर्णपत्रे हैं। फिल्म 15 मार्च 2019 को रिलीज़ होगी। फ़िल्म  में अंजलि पाटिल ने कन्हैया की माँ सरगम का रोल निभाया है। अतुल कुलकर्णी फ़िल्म में एक सरकारी अधिकारी के रोल में है। फ़िल्म का म्यूज़िक शंकर, एहसान और लॉय ने दिया है।

इससे पहले राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आख़िरी फ़िल्म ‘मिर्जिया’ थी, जो साल 2016 में आई थी। मेहरा को ‘रंग दे बसंती’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ जैसी फ़िल्मों के लिए जाना जाता है।

इस फ़िल्म का आईडिया भी राकेश को ‘भाग मिल्खा भाग’ की शूटिंग से लौटते हुए एक स्लम एरिया से गुज़रते हुए आया, जहाँ रास्ते के किनारे खुले में शौच करने को मज़बूर महिलाएँ गाड़ी की लाइट देखते ही खड़ी हो जाती हैं।

इससे पहले ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ जैसी फ़िल्म भी खुले में शौच जैसे मुद्दे को गंभीरता से उठा चुकी है। उम्मीद है ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ फ़िल्म भी शौचालय और स्वच्छता जैसी मूलभूत ज़रूरतों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करेगी।

प्रियंका गाँधी रोड-शो के राजनीतिक मायने: राहुल के लिए ख़तरा, सिंधिया बनेंगे बलि का बकरा

प्रियंका गाँधी ने आज सोमवार (फरवरी 11, 2019) को उत्तर प्रदेश में पदार्पण के साथ ही अपनी आधिकारिक राजनीतिक सक्रियता का आग़ाज़ कर दिया। अध्यक्ष राहुल गाँधी, उनकी बहन प्रियंका गाँधी और मध्य प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया- पार्टी के तीनो बड़े नेताओं ने उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं में जोश भरा। हालाँकि, इस रैली से कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ, इस से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर कार्यकर्ताओं के मूड विश्लेषण किया जाए तो राहुल गाँधी के पक्ष में कुछ पॉजिटिव निकलता नज़र नहीं आ रहा। हाँ, उनके लिए बुरी ख़बर ज़रूर है।

प्रियंका गाँधी की इस रैली के साथ ही पार्टी, कार्यकर्ताओं व नेताओं की रणनीति काफ़ी हद तक साफ़ होती नज़र आ रही है। आइए एक-एक कर कॉन्ग्रेस के नए आग़ाज़ के हर एक पहलू का विश्लेषण कर यह समझने की कोशिश करते हैं कि यूपी के इस शक्ति प्रदर्शन के पीछे क्या रणनीति है और से पार्टी को इस से क्या नफ़ा-नुक़सान होने की उम्मीद है। प्रियंका गाँधी के सक्रिय राजनीति में आने के पीछे के 6 प्रमुख कारणों को हम पहले ही गिना चुके हैं।

कार्यकर्ताओं के नारों से राहुल गायब

ढोल-नगाड़ों के साथ कार्यकर्ताओं ने प्रियंका गाँधी के स्वागत में कोई कमी नहीं की। उत्साहित कॉन्ग्रेसीयों ने पार्टी के नए चेहरे को सिर-आँखों पर बिठाया लेकिन राहुल गाँधी के लिए उनके मन में कोई ख़ास उत्साह नहीं दिखा। कम से कम उनके द्वारा लगाए जा रहे नारों को देख कर तो यही कहा जा सकता है। कार्यकर्ताओं ने उनके जयकारे लगाने से लेकर उन्हें ‘बदलाव की आँधी’ तक करार दिया लेकिन राहुल गाँधी को लेकर ऐसे कोई ख़ास नारे नहीं लगे। हाँ, राफ़ेल ज़रूर छाया रहा।

रैली के दौरान कार्यकर्ताओं ने ‘प्रियंका गाँधी- देश की दूसरी इंदिरा गाँधी’ और ‘देश के सम्मान में- प्रियंका जी मैदान में’ जैसे अनेक नारे लगाए। इसे देख कर कहा जा सकता है कि कार्यकर्ताओं के उत्साहवर्द्धन में सफल हुई प्रियंका को ही कॉन्ग्रेसीयों ने अपना नया नेता मान लिया है, राहुल गाँधी अध्यक्ष होने के बावजूद अब उनके लिए दूसरे स्थान पर आ गए हैं। पार्टी में प्रियंका का क़द इस कदर बढ़ना राहुल गाँधी के लिए बैकफायर करता नज़र आ रहा है। प्रियंका का आधिकारिक एलिवेशन राहुल का अप्रत्यक्ष डिमोशन बनता दिख रहा है।

पोस्टरों में प्रियंका की प्रमुख उपस्थिति, राहुल पीछे छूटे

कॉन्ग्रेस तिकड़ी की रोड-शो में एक और प्रमुख बात जिसने हमारा ध्यान खींचा, वो है पोस्टरों में प्रियंका गाँधी को राहुल से ज्यादा तवज्जोह दिया जाना। यहाँ तक कि रैली की बसों में लगे अधिकतर पोस्टर भी प्रियंका के ही गुणगान करते दिखे और राहुल को उनकी बहन से कम स्पेस मिला।

पोस्टरों में प्रियंका की राहुल के मुक़ाबले मज़बूत उपस्थिति

नीचे इस पोस्टर में आप देख सकते हैं कि कैसे प्रियंका गाँधी को एकदम बीचो-बीच रखा गया है और साथ ही बाईं तरफ उनको पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के बैकग्राउंड के साथ अलग से जगह दी गई है। जबकि, राहुल, सिंधिया और बब्बर को उनके दोनों तरफ रखा गया है। ये प्रदेश के नेताओं का मूड बताता है। प्रदेश कॉन्ग्रेस यह जान गई है कि अगर वोट बटोरने हैं तो प्रियंका और इंदिरा के बीच समानता दर्शानी होगी और इसके लिए प्रियंका को ही केंद्र में रखना होगा।

केंद्र में प्रियंका, बाईं तरफ इंदिरा-प्रियंका

इसी तरह जिस बस पर प्रियंका सवार थी (और अन्य कई बसों पर भी, जिसमे सवार होकर कार्यकर्ता रोड शो में हिस्सा लेने पहुँचे), उस पर भी प्रियंका गाँधी को केंद्र में रख कर उनका बड़ा सा चित्र लगाया गया, जबकि राहुल को तो कई पोस्टरों में तो जगह तक नहीं मिली। इन पोस्टरों को लोकल नेताओं और प्रदेश कॉन्ग्रेस ने छपवाया था।

कई पोस्टरों से पार्टी अध्यक्ष राहुल ही गायब

कुल मिला कर देखा जाए तो आपको इस रोड-शो ऐसे पोस्टर्स तो दिखेंगे जिस से राहुल गायब हों, लेकिन ऐसे पोस्टर्स शायद ही दिखें जिसमे प्रियंका न हो। प्रदेश कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं का मूड शायद राहुल गाँधी के लिए अच्छा न हो। इस शक्ति-प्रदर्शन से प्रियंका की इमेज तो बन रही है- राहुल का पता नहीं। तो क्या अब कॉन्ग्रेस ने यह मान लिया है कि कम से कम उत्तर प्रदेश में उनका चेहरा राहुल नहीं, बल्कि सिर्फ़ प्रियंका हैं।

सिंधिया को यूपी में व्यस्त रखना कॉन्ग्रेस की मजबूरी?

इस रैली में ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपस्थिति ने कइयों का ध्यान खींचा और कई लोगों को तो ये तक समझ नहीं आया कि उत्तर प्रदेश में जरा सा भी जनाधार न रखने वाले सिंधिया को पश्चिमी यूपी की कमान कैसे दे दी गई। ना तो वहाँ के कार्यकर्ताओं में उनकी पैठ है और न ही वहाँ कार्य करने का उनका कोई पुराना अनुभव। ऐसे में, विश्लेषकों का मानना है कि मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ को पूर्ण स्वतन्त्रता देने और निर्बाध कार्य करने के लिए ऐसा किया गया है। माना जा रहा है कि एमपी में कमलनाथ के साथ-साथ दिग्विजय भी परदे के पीछे से सक्रिय हैं और सिंधिया की उपस्थिति इन दोनों के लिए सिरदर्द साबित हो रही थी।

जब यह सन्देश देने की ज़रूरत पड़ी थी की मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस में सब ठीक-ठाक है

मध्य प्रदेश में सीएम को लेकर कितनी माथापच्ची हुई थी, वो सबने देखी थी। राहुल को कमलनाथ और सिंधिया के साथ फ़ोटो शेयर कर यह सन्देश तक देने की ज़रूरत पड़ गई कि एमपी में सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है। एक कारण यह भी हो सकता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से डूबी हुई कॉन्ग्रेस की अगर हार होती है तो सिंधिया को बलि का बकरा बनाया जा सकता है। सिंधिया द्वारा उप-मुख्यमंत्री के पद को पहले ठुकराने और फिर स्वीकार करने को उनके बढ़ते क़द से जोड़ कर देखा जा रहा है। यह भी हो सकता है कि वंशवाद की परंपरा को क़ायम रखने के लिए उनका क़द छोटा करने के प्रयास किए जा रहें हों।

सिब्बल की अधिकारियों को धमकी: मोदी से नज़दीकी न रखें, जेटली का मजे़दार जवाब

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने सरकारी अधिकारियों को धमकी भरे लहज़े में चेतावनी देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ज़्यादा नज़दीकी न रखने की सलाह दी है। इतना ही नहीं, सिब्बल ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) राजीव महर्षि की भी जम कर आलोचना की। उन्होंने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि महर्षि राजग सरकार को बचाने की पूरी कोशिश करेंगे। सिब्बल ने कहा कि पीएम मोदी से नज़दीकी रखने वाले सभी अधिकारियों पर उनकी पैनी नज़र है।

सिब्बल ने राजीव महर्षि पर राफ़ेल सौदे के मामले में ‘हितों के टकराव’ का आरोप मढ़ा। रविवार को कॉन्ग्रेस ने महर्षि को राफ़ेल लड़ाकू विमानों की ख़रीद के करार की ऑडिट प्रक्रिया से अलग रखने की माँग भी की। सिब्बल का कहना था कि महर्षि को इस मामले से इसीलिए अलग किया जाना चाहिए क्योंकि वह राफ़ेल सौदे के वक़्त केंद्रीय वित्त सचिव थे। सिब्बल ने अधिकारियों को धमकाया कि पीएम मोदी के प्रति ज़्यादा वफ़ादारी न दिखाएँ।

कॉन्ग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा:

“CAG राजीव महर्षि अपनी रिपोर्ट में राजग सरकार को बचाने वाले हैं। पूरी राफ़ेल डील राजीव महर्षि की निग़रानी में ही हुई थी, क्योंकि उस समय वही वित्त सचिव थे। जब डील के लिए बातचीत शुरू हुई थी तो वित्त मंत्रालय भी उसका हिस्सा था। राजीव महर्षि ख़ुद अपने ख़िलाफ़ कार्रवाई कैसे कर सकते हैं, यह हितों का टकराव होगा। चूँकि तत्कालीन वित्त सचिव के तौर पर वह इस वार्ता का हिस्सा थे इसलिए उन्हें ऑडिट प्रक्रिया से ख़ुद को अलग कर लेना चाहिए। महर्षि द्वारा संसद में राफ़ेल पर रिपोर्ट पेश करना अनुचित होगा।”

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कपिल सिब्बल के बयान को लेकर कॉन्ग्रेस पार्टी पर निशाना साधा। जेटली ने ट्विटर पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए लिखा कि सरकार में दस साल रहने के बाद यूपीए के पूर्व मंत्रियों को अभी भी पता नहीं है कि वित्त सचिव केवल वित्त मंत्रालय में वरिष्ठतम सचिव को दिया गया ओहदा है।

सिलसिलेवार ट्वीट्स करते हुए जेटली ने लिखा:

“झूठ के आधार पर कॉन्ग्रेस द्वारा एक और संविधान संस्था CAG पर हमला किया जा रहा है। रक्षा मंत्रालय की फ़ाइलों को सचिव (व्यय) द्वारा निपटाया जाता है। रक्षा मंत्रालय की व्यय फ़ाइलों में सचिव (आर्थिक मामलों) की कोई भूमिका नहीं है।”

जेम्स बॉन्ड भी जुड़ेंगे ‘प्रियंका सेना’ से, अत्याधुनिक पिंक गैजेट्स से ‘लैस’ है यह सचल दस्ता

24 घंटे पति के साथ खड़ी रहने वाली रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका वाड्रा आज से मिशन उत्तर प्रदेश पर हैं। मीडिया गिरोहों में फ़िल्म सिटी नोएडा से लेकर ग्रेटर कैलाश तक ख़ुशी की लहर देखी जा सकती है। ख़ुद कॉन्ग्रेस ने नहीं सोचा था कि चिरयुवा राहुल गाँधी की नेतृत्व क्षमता को नकारने से सारा कॉन्ग्रेस दल इस तरह जश्न मनाएगा।

आत्मबोध ऐसा शब्द है जो किसी भी उम्र, वर्ग और राजनीतिक दल में स्वीकार्य और ‘हाइली डिज़ायरेबल’ चीज है। लेकिन ऐसा तो नहीं हो सकता है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी, जो अनुभव की धनी है, उसे अपने नेतृत्व को लेकर आत्मबोध न रहा हो। यानी स्पष्ट है कि कॉन्ग्रेस का मुख्य मर्म आत्मबोध नहीं बल्कि निर्णय ले पाने की असमर्थता है।

तो अब कॉन्ग्रेस निर्णय ले पाने की इस असमर्थता से पार पा चुकी है। राहुल गाँधी को बैकफुट पर डाल कर अब उसने जो सबसे ऐतिहासिक निर्णय लिया है वो है ‘प्रियंका सेना’ के गठन का।

अत्याधुनिक गैजेट्स और उपकरणों से ‘लैस’ है प्रियंका सेना

ऐसे में, जब कि फ़रवरी का महीना चल रहा है और हर ओर बागों में बहार ही बहार है, पिंक लिबास में रंगी इस सेना का अवतरण युवाओं में जोश भर देना वाला निर्णय साबित हो सकता है। जहाँ अब तक फ़रवरी के महीने युवा सिर्फ़ ‘बजरंग सेना’ और ‘हिन्दू राष्ट्र सेना’ जैसे कट्टर दलों के नाम ही सुनते आए थे, ऐसे में उनके सामने अब एक प्रियंका सेना का ‘क्यूट ऑप्शन’ भी आ गया है। उम्मीदें लगाई जा रही हैं कि जिस तरह की अत्याधुनिक सुविधाओं से ‘लैस’ यह प्रियंका सेना है, इसमें जेम्स बॉन्ड और IMF टीम भी अप्प्लाई करने वाली है।    

पिंक मेट्रो के बाद पिंक सेना

युवाओं के मन में उमड़-घुमड़कर सवाल फूट रहे हैं। जैसे, क्या अब इस पिंक रंग के चलते रणवीर सिंह भी प्रियंका सेना में शामिल होंगे? क्या हर दूसरे दिन नाराज़ गर्लफ्रेंड को मनाने के लिए ‘पिंक पिलो’ और ‘पिंक टेड्डी बिअर’ ख़रीदने के लिए पिंक लाइन मेट्रो से सरोजिनी नगर का सफर करने वाले युवाओं को यह सेना अपनी भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण देगी?

‘जनेऊ’ के बाद ‘सेना’ भी कहीं कॉन्ग्रेस का मास्टरस्ट्रोक तो नहीं?

कॉन्ग्रेस पिछले चार साल में जितनी ‘हिंदूवादी पार्टी’ बनकर उभरी है, उतना अन्य कोई दल आज़ादी के इतने सालों में नहीं हो सका है। अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी गले में जनेऊ पहनकर घूम रहे हैं, मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री कमल नाथ भी कट्टर नव-गौ-भक्त बनकर उभर रहे हैं। इसी तरह से चुनावी मौसम में ‘सेनाओं’ के योगदान को देखते हुए अब कॉन्ग्रेस भी मैदान में उतर रही है, जिसका पहला सचल दस्ता आज सबके सामने आ चुका है।

सही खेल रहे हैं आप, कम्प्यूटर जी लॉक कर दीजिए

चौंकाने वाली बात यह है कि ‘सेना’, ‘दल’ और गौ-भक्त’ अब तक सिर्फ़ दक्षिणपंथियों के ही विशेषण हुआ करते थे, लेकिन अगर अब कॉन्ग्रेस भी ‘सेना’ और ‘दल’ के मुद्दों पर मोर्चा संभालने लगे तो स्टारबक्स में बैठकर, की-बोर्ड पटककर ‘गौ-भक्तों’ की जानकारी सार्वजनिक कर रहा आदर्श-लिबरल नामक क्रान्तिजीव तो सड़क पर ही आ जाएगा। क्या कॉन्ग्रेस उन लोगों के विचारों का सम्मान नहीं करती है, जो उसको लेकर सत्संगी माहौल बनाता है?

भाई साहब, किस लाइन में आ गए आप ?

‘प्रियंका सेना’ के कार्यकर्ताओं ने जो टीशर्ट पहनी है, उस पर लिखा है, ‘देश के सम्मान में प्रियंका जी मैदान में, मान भी देंगे, सम्मान भी देंगे, वक़्त पड़ेगा तो जान भी देंगे।’ अरे भाई साहब, ये मरने-मारने वाले जुनूनी काम तो आपके अनुसार दक्षिणपंथियों के नारे हुआ करते थे! आपका परिचय तो सत्संग है, आतँकवादियों और पत्थरबाज़ों की रिहाई में सुकून ढूँढना है, चाहे वो अफ़ज़ल गुरू हो या फिर फ़ारुक़ डार हो। इस तरह की सेना आपको शोभा नहीं देती है।

यह आदर्श लिबरल नामक जीव सोशल मीडिया से लेकर घरेलू चर्चा और शादी में जूता चुराई की रश्म तक में मौक़ा ढूँढते ही भाजपा और ख़ासकर हिन्दुओं को ‘ओल्ड स्कूल थिंग’ बताता फिरता है। वो तो मानता है कि ‘सेना’ शब्द गँवारपन का प्रतीक है। यह आदर्श सतसंगी गिरोह कहता है कि विशेष कारणों से ‘पिंक कलर’ चुनना या बोलना आपको ‘Sexist’ और ‘मिसोजेनिस्ट’ बनाता है। फिर भी कॉन्ग्रेस अपने भक्तों का दमन करते हुए लगातार ब्राह्मणवाद से लेकर ‘सेनावाद’ की ओर बढ़ती ही जा रही है।

यह गिरोह मोहल्ले के ग़रीब बच्चों के साथ फ़ोटो खींचकर सोशल मीडिया पर तो ख़ूब डालता है, लेकिन जनजाति की तुलना मोर से करने में कोताही नहीं बरतता है। अब जबकि कॉन्ग्रेस ‘पिंक प्रियंका सेना’ का आविष्कार कर चुका है, तो फिर ऐसे में ये आदर्श-लिबरल समूह किसे नीचा दिखाएगा? कॉन्ग्रेस ने इन आदर्श-लिबरलों का मुँह बंद करने के लिए प्रियंका सेना नाम का मास्टरस्ट्रोक खेलकर बड़ी बढ़त बना ली है। क्योंकि वो जानता है कि ये ‘बतोले लिबरल’ की-बोर्ड सेना से ज़्यादा कुछ नहीं है, ये वोट देने लाइन पर नहीं खड़ी होती है, न ही इसे राशन की कतारों में खड़ा होना पड़ता है।

प्रियंका सेना द्वारा ‘पिंक रंग’ को महिलाओं का रंग बताकर महिला सशक्तिकरण की ओर कॉन्ग्रेस ने बड़ा क़दम उठा लिया है। अभी देखना ये है कि पति के साथ हर वक़्त खड़े रहने का दावा करने वाली यह पार्टी इस ‘पिंक रंग सेना’ के साथ कब तक खड़ी रहती है। तब तक नाश्ते में प्रियंका गाँधी और डिनर में इंदिरा गाँधी की तस्वीरें दिखने वाले जादूगर मीडिया को देखते रहिए।

दलाली की रक़म से ख़रीदा था वाड्रा ने लंदन में घर: ED

सोनिया गाँधी के दमाद रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किलें आने वाले दिनों में बढ़ सकती हैं। जाँच में ईडी ने यह दावा किया है, कि कोरियाई कंपनी सैमसंग इंजीनियरिंग की तरफ से दी गई दलाली की रकम से लंदन में, उन्होंने अपना मकान ख़रीदा था। वाड्रा से पूछताछ करने वाले एक अधिकारी ने इसका दावा किया है। दलाली गुजरात के दाहेज में बनने वाले ओएनजीसी के एसईजेड से जुड़े निर्माण का ठेका मिलने के एवज में दिया गया था।

दैनिक जागरण में छपी रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर, 2008 में यह ठेका मिला था। ठेके 6 महीने बाद 13 जून, 2009 को सैमसंग ने संजय भंडारी की कंपनी सैनटेक को 49.9 लाख डॉलर दिया था। इसके बाद संजय भंडारी ने इसमें से 19 लाख पाउंड उस समय के विनियम दर के हिसाब से लगभग ₹15 करोड़ वोर्टेक्स नाम की कंपनी में ट्रांसफर किया था। ईडी ने दावा किया है कि इसी पैसे का इस्तेमाल 12, ब्रायंस्टन स्क्वायर की संपत्ति ख़रीदने के लिए किया गया था।

भंडारी के रिश्तेदार ने ईमेल भेजकर माँगी थी इजाज़त

ईडी का दावा है कि 2010 में भंडारी के रिश्तेदार सुमित चड्ढा ने इस सम्पत्ति की मरम्मत करवाने के लिए रॉबर्ट वाड्रा को ईमेल भेजकर इजाज़त माँगी थी। ईमेल में चड्ढा ने मरम्मत के पैसे की व्यवस्था करने की बात भी कही थी। वाड्रा ने इसके जवाब में मनोज अरोड़ा को इसकी व्यवस्था करने का निर्देश देने का भरोसा दिया था। दावा है कि घर की मरम्मत पर लगभग ₹45 लाख का ख़र्चा हुआ था।

‘सत्य की हमेशा होती है जीत’ फेसबुक पर वाड्रा कर चुके हैं पोस्ट

बीते दिनों वाड्रा ने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में अपनी एक तस्वीर लगाई है और लिखा है, “सुप्रभात! मैं पूरे देश के अपने तमाम मित्रों और शुभचिंतकों का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा जो इस समय मेरे साथ खड़े हैं। मैं ठीक-ठाक हूँ और किसी भी परिस्थिति का सामना करने में मैं अपने आप को सक्षम पाता हूँ। सत्य की हमेशा जीत होती है। आप सभी का रविवार अच्छा बीते और आपका ये सप्ताह स्वास्थ्य और ख़ुशियाँ लाए।”

https://m.facebook.com/764044809/posts/10157100535029810

‘अल्पसंख्यक’ धर्म या आबादी के आधार पर: 3 महीने में तय हो परिभाषा, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

अल्पसंख्यकों की परिभाषा तय करने के लिए बीजेपी नेता अश्विनि उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में हुई। जिसके बाद कोर्ट ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को यह निर्देश दिया कि वह अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे।

उपाध्याय ने कोर्ट से परिभाषा तय करने की माँग करते हुए कहा था कि उन्होंने आयोग को इस मामले में ज्ञापन दिया था। याचिका में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम की धारा 2(सी) को रद्द करने की माँग की गई है। याचिका में कहा गया है कि यह धारा मनमानी, अतार्किक और अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है।

1993 की अधिसूचना रद्द करने की माँग

इस धारा में केंद्र सरकार को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करने के असीमित अधिकार दिए गए हैं। याचिका में माँग की गई है कि केंद्र सरकार की 23 अक्टूबर, 1993 की उस अधिसूचना को रद्द किया जाए, जिसमें 5 समुदायों मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख और पारसी को अल्पसंख्यक घोषित किया गया था।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करे, ताकि संविधान के अनुच्छेद 29-30 में उन्हें अधिकार और संरक्षण मिले, जो वास्तव में धार्मिक, भाषाई, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से प्रभावशाली न हों।

वास्तविक अल्पसंख्यक लाभ से वंचित

याचिका में कहा गया है कि हिंदू आँकड़ों के अनुसार एक बहुसंख्यक समुदाय है, जबकि पूर्वोत्तर के कई राज्यों और जम्मू-कश्मीर में यही हिंदू अल्पसंख्यक है। याचिका में इस बात का तर्क़ दिया गया है कि हिंदू समुदाय उन लाभों से वंचित है, जो कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मौजूद है।

याचिका में तर्क देते हुए मुस्लिमों की आबादी का आँकड़ा भी दिया गया है। मुस्लिम आबादी के आँकड़े (याचिकानुसार): लक्षद्वीप में मुस्लिम आबादी 96.20%, जम्मू-कश्मीर में 68.30%, असम 34.20%, पश्चिम बंगाल 27.5%, केरल 26.60%, उत्तर प्रदेश 19.30% और बिहार 18%। याचिकाकर्ता का कहना है कि इन सभी राज्यों में मुस्लिम असल में बहुसंख्यक होने के बावजूद भी अल्पसंख्यक हैं और इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। जबकि जो वास्तव में अल्पसंख्यक हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।

‘जिसके हाथ में चाय का जूठा कप देना था, उसके हाथ में जनता ने देश दे दिया’

राजनीति के स्तर को गिराते हुए अभी कुछ समय पहले मध्य प्रदेश में एनसीपी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कुत्तों के गले में देश के पीएम का नाम लटकाया था। और, अब आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए धरने पर बैठे टीडीपी के प्रमुख और आन्ध्र प्रदेश मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के समर्थकों ने इस दिशा में सारी हदों को पार कर दिया है।

दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू के धरने के दौरान उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के हाथ में कुछ ऐसे पोस्टर्स नज़र आए, जिन्होंने इस धरने को विवादों ने लाकर खड़ा दिया है, और साथ ऐसी घटना से उनकी पार्टी की सोच पर भी सवालों का उठना स्वाभाविक ही है। दरअसल, इस धरने के दौरान वहाँ जो पोस्टर दिखे, उनपर लिखा था, ‘जिसके हाथ में चाय का जूठा कप देना था, उसके हाथ में जनता ने देश दे दिया।’

इस शर्मनाक घटना पर टीडीपी के जयादेव गल्ला ने सफ़ाई देते हुए कहा है कि धरना स्थल पर दिखे पोस्टर्स बिलकुल भी सही नहीं है, साथ ही वह इसका समर्थन भी नहीं करते हैं। उनका कहना है कि ऐसा बिलकुल भी नहीं किया जाना चाहिए। जयादेव ने साथ ही यह भी कहा कि यह कार्य उनकी पार्टी द्वारा नहीं किया गया है।

ऐसी हरक़तों पर सवाल यह उठता है कि अगर धरना स्थल पर उनके समर्थकों ने ऐसी ओछी हरक़त नहीं की है तो फिर किसने की है…? ज़ाहिर है देश में पीएम के अगर समर्थक हैं तो उनके विरोधी भी हैं, लेकिन इस तरह की हरक़तें चुनाव के आने के साथ बढ़ती ही जा रही हैं। इन घटनाओं से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि राजनीति की आड़ में किस तरह राजनेता अपनी मानसिकता का उदाहरण दे रहे हैं।

लादेन की मौत में शामिल हेलिकॉप्टर अब भारतीय वायुसेना के पास

अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी बोईंग ने रविवार (10 फ़रवरी) को भारतीय वायुसेना को 4 चिनूक सैन्य हेलिकॉप्टर सौंप दिए। इन हेलीकॉप्टर्स को गुजरात में मुंद्रा बंदरगाह पर उतारा गया। कंपनी द्वारा जारी बयान के अनुसार सीएच-4एफ़ (I) चिनूक हेलिकॉप्टर को चंडीगढ़ ले जाया जाएगा, वहाँ उन्हें औपचारिक रूप से भारतीय वायुसेना में शामिल किया जाएगा।

सीएच-47एफ़ (I) चिनूक

बयान में कहा गया कि सीएच-47एफ़ (I) चिनूक बहुद्देशीय, वर्टिकल लिफ्ट प्लेटफॉर्म हेलिकॉप्टर है। इसका इस्तेमाल युद्ध के दौरान या सामान्य स्थिति में हथियारों, उपकरणों और ईंधन को ढोने में किया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल मानवीय और आपदा राहत अभियानों में राहत सामग्री पहुँचाने और बड़ी सँख्या में लोगों को बचाने के लिए भी किया जाता है।

सीएच-47एफ़ (I) चिनूक

भारतीय वायुसेना ने वर्तमान में 15 चिनूक हेलिकॉप्टर का ऑर्डर दे रखा है। भारत द्वारा सितंबर 2015 में बोईंग के साथ 22 अपाचे हेलिकॉप्टर और 15 चिनूक हेलिकॉप्टर ख़रीदने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जा चुका है।

भारतीय वायुसेना में चिनूक के शामिल होने से देश की सुरक्षा प्रणाली को और मज़बूती मिलेगी। चिनूक के बारे में आपको बता दें कि यह वही हेलिकॉप्टर है जिसकी मदद से अमेरिका ने कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन का ख़ात्मा किया था।

फ़िलहाल भारतीय वायुसेना रूस के MI-17 जैसे मध्यम श्रेणी के हेलिकॉप्टरों पर निर्भर थी, लेकिन चिनूक के आने से भारतीय वायुसेना को अधिक बल मिलेगा। इस हेलिकॉप्टर की तमाम ख़ासियतों में एक ख़ास बात यह है कि इसमें एक बार में गोला-बारूद, हथियार के अलावा 300 सैनिक भी जा सकते हैं।

वायुसेना में शामिल होने वाले चिनूक की क्षमता की बात करें तो क़रीब 9.6 टन वजन उठाने में यह पूरी तरह से सक्षम है। इसमें भारी मशीनरी, तोप और बख़्तरबंद गाड़ियाँ लाना-ले जाना शामिल है। बता दें कि इस हेलिकॉप्टर के इस्तेमाल के लिए वायुसेना के चार पायलट और चार इंजीनियर को अमेरिका में ट्रेनिंग दी गई थी।