केरल के मन्नार में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक एस राजेंद्रन ने महिला आईएएस अधिकारी रेणु राज पर अभद्र टिप्पणी की। विधायक ने सार्वजनिक तौर रेणु के अधिकारियों के सामने ‘बिना बुद्धि के, बिना कॉमन सेंस के’ जैसी बातें उनके लिए कहीं। दरअसल विधायक एस राजेंद्रन ने यह अभद्र टिप्पणी उस समय की, जब महिला अधिकारी एक व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स में अनधिकृत निर्माण रोकने का प्रयास कर रही थीं।
कुछ टेलीविजन चैनलों ने इस घटना से संबंधित वीडियो फुटेज भी दिखाई है। इस वीडियो में भी विधायक द्वारा की गई टिप्पणी कैद है। विधायक ने कहा, “उन्होंने (महिला आईएएस) सिर्फ़ कलेक्टर बनने के लिए पढ़ाई की है। इन लोगों के पास काफी कम दिमाग होता है। क्या उन्हें स्केच और प्लान की जानकारी नहीं हासिल करनी चाहिए थी।” विधायक ने वहाँ मौजूद लोगों से कहा कि एक कलेक्टर पंचायत के निर्माण में दखल नहीं दे सकती। यह एक लोकतांत्रिक देश है।
बता दें कि 30 वर्षीया आईएएस अधिकारी रेणु राज, इदुक्की के देविकुलम की पहली महिला उप-कलेक्टर हैं। इदुक्की एक ऐसी जगह है, जो पर्यटकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है, लेकिन यह जगह अवैध निर्माणों और भूमि अतिक्रमणों के लिए बदनाम भी है।
केरल उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश के अनुसार, पारिस्थितिक चिंताओं के कारण, मुन्नार के सात गाँवों में किसी भी निर्माण कार्य को राजस्व अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) की आवश्यकता होती है। जानकारी के अनुसार, सब-कलेक्टर द्वारा इसी संबंध में “स्टॉप मेमो” जारी किया गया था, क्योंकि उन्हें एनओसी प्राप्त नहीं हुई थी।
युवा महिला IAS अधिकारी ने मीडिया को बताया, “उच्च न्यायालय ने मुझे इस विशेष निर्माण के संबंध में एक रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश भेजा था, जो अदालत की अवमानना है। मैंने अदालत के आदेश के उल्लंघन पर मुख्य सचिव और राजस्व सचिव को रिपोर्ट दायर की। मुझे अपना कर्तव्य निभाने के लिए विरोध का सामना करना पड़ा।”
उन्होंने कहा, “विधायक ने मेरे अधिकारियों के सामने जैसा व्यवहार किया, बावजूद इसके मुझे मीडिया, नेताओं से और मेरे वरिष्ठजनों से ज़बरदस्त समर्थन मिला है। मुझे विश्वास है कि मैंने सही काम किया। मैं अपने पद के अनुसार अपने कर्तव्य को निभाना जारी रखूँगी, बिना इस बात को तवज्जो दिए कि आगे क्या होगा।”
इसी बीच इदुक्की ज़िले की सीपीएम इकाई ने कहा है कि वो विधायक से इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगेगी।
आपको यह सुन कर आश्चर्य हो सकता है लेकिन यही सच है। तेलंगाना सरकार की कैबिनेट में सिर्फ़ दो मंत्री हैं- एक तो स्वयं मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और दूसरे मोहम्मद अली। मोहम्मद अली राज्य के गृह मंत्री के तौर पर कार्य कर रहे हैं। बता दें कि 119 सीटों वाले तेलंगाना विधानसभा में बहुमत के लिए 60 सीटों पर जीत चाहिए होती है लेकिन केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 88 सीटों पर जीत का परचम लहरा कर एकतरफा जीत दर्ज की थी।
विपक्ष ने दो सदस्यीय कैबिनेट के साथ सरकार चला रहे केसीआर पर निशाना साधा है। भाजपा ने कहा की यह भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक नया रिकॉर्ड है जब सरकार गठन के 2 महीने बाद तक मंत्रिमंडल में सिर्फ़ 2 ही मंत्री हों। पार्टी ने इसे शर्म का विषय बताते हुए राज्यपाल का दरवाज़ा खटखटाने की बात भी कही। तेलंगाना भाजपा प्रवक्ता कृष्णा सागर राव ने मुख्यमंत्री को आड़े हाथों लेते हुए कहा:
“कोई कैबिनेट नहीं है, अधिकारी सरकार चला रहे हैं। यह एक या दो दिनों की .. चार दिनों की देरी नहीं है, केसीआर (मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव) के पदभार ग्रहण करने के बाद से यह दूसरा महीना चल रहा है।”
वहीं आम आदमी पार्टी ने भी तेलंगाना राष्ट्र समिति व मुख्यमंत्री केसीआर पर निशाना साधते हुए कहा कि राज्य सरकार ने कैबिनेट विस्तार न कर के जनता के ‘गवर्नेंस के अधिकार’ को छीन लिया है। बता दें कि ऐसे क़यास लगाए जा रहे थे कि पोंगल के बाद राज्य में कैबिनेट विस्तार किया जाएगा लेकिन त्यौहार बीत जाने के बाद भी ऐसे कोई आसार नज़र नहीं आ रहे। मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार केसीआर सारे अहम विभाग अपने पास ही रखना चाहते हैं और यही कैबिनेट विस्तार में देरी का कारण भी है।
Convenor Ramu launches massive attack on @trspartyonline Telangana CM KCR @TelanganaCMO accusing him of denying governance rights of public by not forming cabinet even after 2 months.Reminds work was stalled with the excuse of model code of conduct enforced earlier than scheduled pic.twitter.com/wPZd4tUYfd
तेलंगाना मंत्रिमंडल में अधिकतम 18 मंत्री हो सकते हैं। बताया जा रहा है कि तमाम समीक्षा बैठकें मुख्यमंत्री के आवास पर ही होती है जहाँ से फ़ाइलों को आगे बढ़ाया जाता है। इस बैठक में अधिकारीगण शामिल होते हैं। कॉन्ग्रेस पार्टी ने भी मुख्यमंत्री की आलोचना करते हुए पूछा कि दो सदस्यीय मंत्रिमंडल के साथ जनता तक कल्याणकारी योजनाएँ कैसे पहुँचाई जा सकती है? तेलंगाना प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष गुडुर नारायण रेड्डी ने कहा:
“लगभग 17,000 फाइलें उनके (केसीआर के) डेस्क पर पड़ी हुई हैं? वह राज्य के चार करोड़ लोगों के साथ न्याय कैसे कर सकते हैं? जनता निश्चित रूप से तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के सदस्यों के मौन को समझ रही है, जो इतने चुप हैं। तेलंगाना अब भारत का एक राज्य नहीं है। यह मुख्यमंत्री राव का साम्राज्य बन गया है।”
सोशल मीडिया पर लोगों ने मीडिया पर इस ख़बर को नज़रअंदाज़ करने के आरोप लगाए। लोगों ने कहा कि सिर्फ़ एक अतिरिक्त मंत्री के साथ तेलंगाना की सरकार चला रहे केसीआर तीसरे मोर्चे के गठन में व्यस्त हैं। ज्ञात हो कि हाल ही में केसीआर ने ममता बनर्जी और नवीन पटनायक से मुलाक़ात कर तीसरे मोर्चे की संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया था। ख़बरें थीं कि अपने मैराथन दौरे के लिए उन्होंने एक स्पेशल हेलिकॉप्टर को एक महीने के लिए किराए पर ले रखा है। कॉन्ग्रेस ने उन पर ‘अलगाव की राजनीति’ करने का आरोप लगाया था।
योगी आदित्यनाथ ने बंगाल का बदला उत्तर प्रदेश में ले लिया। हालाँकि राजनीति बदले की भावना से नहीं करनी चाहिए लेकिन उन्होंने बिना किसी झूठ का सहारा लिए ही यह कर डाला। उत्तर प्रदेश का ’10जनपथवाँ’ संविधान संसोधन कर उन्होंने यह काम पूरा किया।
इस घटना के बाद राज्य के साथ-साथ दिल्ली का भी सियासी पारा गरमा गया है। जंतर-मंतर के बजाय ‘महाठगबंधन’ के नेता लोग क़ुतुब मीनार की ओर रवाना हो गए हैं। रास्ते में जब हमारे संवाददाता ने धरना स्थल को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि बीजेपी को ज़मीनी बातें पसंद नहीं, इसीलिए वे लोग ‘आसमानी’ बातें करेंगे।
मामले की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली की सरकार ने हाँफते-‘खाँसते’ हुए इसे विपक्षी साज़िश बताया और नगर-निगम वालों को जमकर कोसा। हालाँकि अफ़सरों के तब हाथ-पाँव फूल गए जब उन्हें सीसीटीवी कैमरे से यह पता चला कि ख़ुद उनके मुख्यमंत्री साब भी काम-धाम छोड़कर क़ुतुब की ओर बढ़ रहे हैं। खैर, अफ़सरों को यह पहले ही समझ जाना चाहिए था क्योंकि “कोई भी धरना छोटा नहीं होता और धरने से बड़ा कोई धर्म नहीं” यह आसमानी बात स्वयं अवतरित चचा केजरी ने दिल्ली-शासन की किताब के पहले पन्ने पर लिख डाली है।
राजनीतिक गहमागहमी में बीजेपी ने धरना करने वालों का बख़ूबी साथ दिया। उम्मीद के विपरीत। गाँधीवादी स्वभाव में। इस बाबत बीजेपी की मेहरौली इकाई ने शानदार काम किया है। क़ुतुब तक के पूरे रास्ते में चाय-पानी की व्यवस्था कर रखी है उन्होंने। रास्तों को फूलों से पाट दिया गया है। फूल सिर्फ़ पैरों के नीचे हो, और इस पर ‘फूलाधिकार’ आयोग कमीशन में कोई शिक़ायत न पहुँच जाए, इसलिए खुद पुलिस कमीश्नर हेलिकॉप्टर से फूल बरसा भी रहे हैं।
भारतीय राजनीतिक इतिहास में ऐसा नज़ारा शायद अब तक कभी नहीं दिखा। विपक्ष की रैली का सत्ता पक्ष फूलों से स्वागत करे… गाँधीवाद का ऐसा प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में भी नहीं हुआ था। योगी आदित्यनाथ के ‘राजनीतिक बदले की भावना’ को दिल्ली बीजेपी ने राजनीतिक अवसर में बदल दिया। बीजेपी की मेहरौली इकाई ने तो ख़ैर लहरिया ही लूट लिया।
इसी बीच ख़बर यह भी आ रही है कि बहन प्रियंका का साथ देने राहुल भी लखनऊ जाने वाले थे। ट्वीट भी कर दिया। लेकिन योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ चलने वाले हमारे संवाददाता (चूँकि हम ‘राइट’ हैं तो यह हमारे लिए ‘लेफ़्ट’ हाथ का खेल है) ने बताया कि यूपी सीएम ‘बसंत आगमन पर पूरे रंग में’ हैं। दिल्ली-यूपी बॉर्डर के (i) सड़क मार्ग पर उन्होंने अलीगढ़ रोडवेज़ की बसें लगा दी हैं (ii) वायु मार्ग पर राफ़ेल (मोदी से पहले यूपी सरकार ने किया सौदा – मोदी-विरोध में अंधी विपक्ष ने इस ख़बर पर ध्यान ही नहीं दिया) तैनात कर दिया है (iii) यमुना जल मार्ग पर यूएस नेवी के एयर क्राफ्ट कैरियर जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश की तैनाती भी हो गई है। ‘सूत्रों’ ने यह भी बताया कि परम आदरणीय दक्षिण पंथी डोनल्ड ट्रंप ने ख़ुद ही योगी के समर्पण में यह फै़सला लिया है।
लखनऊ आ रहा हूँ|
प्रियंका गांधी वाड्रा जी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जी साथ होंगे|
दोपहर करीब 12 बजे, लखनऊ के हवाई अड्डे से पार्टी मुख्यालय तक रोड-शो का आयोजन किया गया है|
इतना सब होने के बाद राहुल और प्रियंका की प्रतिक्रिया आनी बाक़ी है। एक तरफ़ जहाँ उनके ‘ठग-बंधु-बंधुनी’ लोग क़ुतुब पर चढ़ने को बेताब हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह देखना दिलचस्प होगा कि सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े सूबे के लिए क्या राहुल या प्रियंका राफ़ेल पर ‘बोफ़ोर्स’ से हमला करेंगे या क़ुतुब पर चढ़ ‘आसमानी’ बातें करेंगे?
पढ़ते रहिए सिर्फ़ इसी पोर्टल को क्योंकि हमारी पहुँच ‘राइट’ है। लेफ्ट को तो ख़ैर आपने भी ‘लेफ्टिया’ दिया है… हे!हे!हे!
केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शनिवार (9 फ़रवरी 2019) को आदिवासी महिलाओं को बुनियाद तसर सिल्क रीलिंग मशीनें वितरित की। बुनियाद रीलिंग मशीनें सिल्क उत्पादन में देश की आदिवासी महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पारम्परिक तरीकों को बदल कर उन्हें ज्यादा सक्षम बनाने के लिए हैं। साथ ही इससे घरेलू आय को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
भारत में प्रतिवर्ष 32,000 मीट्रिक टन रेशम का उत्पादन होता है। शहतूत सिल्क, तसर सिल्क, मुगा सिल्क और एरी सिल्क भारत में उत्पादित सिल्क के मुख्य प्रकार हैं। कुल सिल्क उत्पादन में शहतूत का योगदान लगभग 80% है।
भारत में तसर सिल्क उत्पादन मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, उड़ीसा आदि राज्यों में होता है। इन राज्यों में रहने वाली आदिवासी महिलाओं की आय का यह एक प्रमुख स्रोत है। भारत प्रति वर्ष 2,080 मीट्रिक टन तसर सिल्क का उत्पादन करता है, जो कुल सिल्क उत्पादन का लगभग 6.5% है।
तसर सिल्क रीलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोकून से रेशा निकाला जाता है। परम्परागत रूप से, यार्न रीलिंग पारम्परिक तरीक़ों द्वारा निकाला जाता है, जिसे थाई रीलिंग कहते हैं। इसमें, रील करने वाले व्यक्ति को फ़र्श पर क्रॉस-लेग्ड बैठना पड़ता है, सोडियम कार्बोनेट में पकाए गए कोकून से जांघों को नुक़सान होता है, जिससे घाव भी हो जाते हैं। बता दें कि इस दौरान कुछ मात्रा में राख पाउडर, तेल और स्टार्च का भी उपयोग किया जाता है।
इस प्रक्रिया के माध्यम से, आदिवासी महिलाएँ 70 डेनियर यार्न का प्रतिदिन औसतन 70 ग्राम उत्पादन करती हैं। तसर सिल्क का ज्यादातर उत्पादन थाई रीलिंग के माध्यम से किया जाता है। यह प्रक्रिया न केवल आदिवासी महिलाओं के लिए हानिकारक होती है, बल्कि इस पारंपरिक तरीक़े से निकाले गए यार्न की प्रक्रिया धीमी भी होती है। दूसरी बात यह कि थाई रीलिंग करने वाली महिलाएँ दिन भर में मात्र 125 रुपए तक ही कमा पाती हैं।
महिलाओं की इसी तक़लीफ़ को समझते हुए छत्तीसगढ़ स्थित चंपा के एक उद्यमी ने उनके लिए एक अनोखा काम किया। महिलाओं को पुराने तरीक़े से निजात दिलाने के लिए उन्होंने एक ऐसी मशीन का निर्माण किया, जो न केवल आदिवासी महिलाओं को उनकी आय बढ़ाने में मददगार साबित होगा बल्कि इस व्यवसाय से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी ख़तरों से भी बचाएगा। उद्यमी द्वारा बनाई गई बुनियाद रीलिंग मशीन के माध्यम से एक महिला प्रतिदिन 200 ग्राम सिल्क के धागे का उत्पादन कर सकती है, जिससे उसकी आय प्रतिदिन 350 रुपए तक बढ़ सकती है। निर्माता की इच्छानुसार मशीन को बिजली द्वारा या पैरों से चलाया जा सकता है।
कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने उम्मीद जताई है कि थाई रीलिंग तक़नीक से मशीन आधारित रीलिंग को 2020 की बजाए इसी वर्ष परिवर्तित किया जाएगा। कार्यक्रम में एक मोबाइल एप्लिकेशन ई-कोकून भी लॉन्च किया गया, जो रेशम क्षेत्र में गुणवत्ता प्रमाणन में मदद करेगा। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी वैश्विक बाज़ारों में सिल्क को बढ़ावा देने के लिए समर्थन देने का वादा किया।
फिरोज़पुर पंजाब में सतलुज दरिया के जरिए आई पाकिस्तान की नाव को बीएसएफ ने पल्ला मेघा गाँव से बरामद किया है। बता दें कि यह वह क्षेत्र है जहाँ तस्कर सक्रिय रहते हैं। नाव मिलने के बाद बीएसएफ के जवान अब पूरे इलाक़े को खँगालने में जुटे हुए हैं और तलाशी अभियान चलाया जा रहा है। इस गाँव को नशे की सप्लाई और तस्करों के नाम से जाना जाता है।
पिछले साल भी मिली थी 4 पाकिस्तानी नावें
पिछले साल भी यहाँ पर गाँव से गुजरने वाले सतलुज दरिया से 4 पाकिस्तानी नावें बरामद हुई थी। ख़बर के मुताबिक बीएसएफ और खुफ़िया एजेंसी अब तक यह पता नहीं लगा पाई हैं कि पाकिस्तान से भारतीय क्षेत्र में नाव कौन लेकर आता है।
इस बार बसंत पंचमी की सुबह बीएसएफ बटालियन 136 के जवान बीओपी मोहम्मदीवाला के क़रीब फेंसिंग के साथ-साथ गश्त कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें सतलुज दरिया में पड़ी लकड़ी की एक पुरानी पाक नाव मिली। नाव की लंबाई क़रीब 15 फुट बताई जा रही है। बता दें कि कुछ दिनों पहले ही काउंटर इंटेलीजेंस ने पाकिस्तान से 5 किलो हेरोइन मँगवाने के आरोप में गाँव के एक तस्कर को गिरफ़्तार किया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में रैलियों के बाद आज शाम हुबली में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT-धारवाड़) और IIIT (धारवाड़) की आधारशिला रखी। इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत बने 2,350 घरों का ई-गृह प्रवेश भी देखा।
Hubli, Karnataka: Prime Minister Narendra Modi lays the foundation stone of Indian Institute of Technology (IIT) and Indian Institute of Information Technology (IIIT) – Dharwad. He also witnessed the E-Griha Pravesh of 2350 houses constructed under PMAY(U) at Dharwad. pic.twitter.com/ugVMqoRR4q
कर्नाटक के हुबली में प्रधानमंत्री मोदी ने जनता को संबोधित किया, मुख्य बातें इस प्रकार रहीं:
गरीबों और वंचितों की सेवा के लिए अपना जीवन देने वाले सिद्धगंगा मठ के शिवकुमार स्वामी जी को मैं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
आज इस मंच पर एक कमी स्पष्ट रूप से हमें महसूस होती है, इस धरती की संतान अनंत कुमार जी हमारे बीच नहीं हैं। गरीबों के लिए उन्होंने जो समर्पण दिखाया है, इसलिए वह हमारे दिल में रहेंगे।
विकास की पंचधारा- बच्चों को पढ़ाई, युवाओं को कमाई, बुजुर्गों को दवाई, किसान को सिंचाई और जन-जन की सुनवाई, इसी विज़न पर सरकार आगे बढ़ रही है।
गाँवों और शहरों के डेढ़ करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर मिले हैं। बीते साढ़े चार वर्षों में हमने निरंतर सबका, सबका विकास के लिए काम किया है।
पिछली केंद्र सरकार 10 साल में शहरी क्षेत्रों में ग़रीबों के लिए केवल 13 लाख घर स्वीकृत किए थे, जिसमें से 8 लाख पूरे हो पाए। NDA की सरकार ने 73 लाख शहरी आवास स्वीकृत किए हैं, जिनमें से 15 लाख तैयार हो चुके हैं और 39 लाख घरों का काम पूर्णता की ओर हैं।
आपका ये प्रधान सेवक बिचौलियों को रास्ते से हटा रहा है। ईमानदार को मोदी पर भरोसा है। जो भ्रष्ट है उसे मोदी से कष्ट है। आप देख ही रहे हैं दिल्ली में कैसे कैसों का नंबर लग रहा है। जिनकी कमाई के बारे में लोग बात करने से डरते थे, आज कोर्ट में एजेंसियों के सवालों के सामने हाजिरी लगा रहे हैं, देश-विदेश में बेनामी संपत्तियों का हिसाब दे रहे हैं।
जिस रफ्तार से पिछली सरकार घर बनवा रही थी, उस हिसाब से जितने घर हमने बनाए हैं उसे बनवाने में उन्हें 40-50 साल लग जाते। यह काम हमने केवल 55 महीने में करके दिखाया।
असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए 3000 रुपये की मासिक पेंशन तय की गई है, इसके लिए श्रमिकों को औसतन 100 रुपये प्रतिमाह देने होंगे।
इतिहास में पहली बार 5 लाख रुपये तक की टैक्सेबल इनकम को टैक्स के दायरे से बाहर कर दिया गया है।
आपका ये प्रधान सेवक बिचौलियों को रास्ते से हटा रहा है। ईमानदार को मोदी पर भरोसा है। जो भ्रष्ट है उसे मोदी से कष्ट है।
आप देख ही रहे हैं दिल्ली में कैसे कैसों का नंबर लग रहा है। जिनकी कमाई के बारे में लोग बात करने से डरते हैं, आज कोर्ट में एजेंसियों के सवालों के सामने हाजिरी लगा रहे हैं। देश-विदेश में बेनामी संपत्तियों का हिसाब दे रहे हैं।
दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने भले ही लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लाख दावे किए हों, लेकिन RTI (Right to Information) के ज़रिए मिली एक जानकारी के अनुसार, देश की राजधानी दिल्ली में पिछले 5 साल के दौरान हर साल औसतन 50 हजार गर्भपात हुए हैं।
ख़बर की मानें तो चौंकाने वाले इस आँकड़े में प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत का आँकड़ा भी लगातार बढ़ा है। जानकारी के अनुसार दिल्ली में 2013-14 से 2017-18 की अवधि में सरकारी और निजी स्वास्थ्य केन्द्रों पर 2,48,608 गर्भपात हुए हैं। इनमें सरकारी केन्द्रों पर किए गए गर्भपातों की संख्या 1,44,864 है। निजी केन्द्रों का आँकड़ा इससे थोड़ा कम यानी 1,03,744 है। आँकड़े से स्पष्ट होता है कि दिल्ली में हर साल औसतन 49,721 गर्भपात हुआ है।
परिवार कल्याण निदेशालय के आँकड़े से हुआ खु़लासा
एक सामाजिक कार्यकर्ता राजहंस बंसल द्वारा RTI आवेदन पर दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण निदेशालय से मिले आँकड़ों के मुताबिक़, गर्भपात के दौरान 5 सालों में 42 महिलाओं की मौत भी हुई। इनमें मौत के 40 मामले सरकारी केन्द्रों और दो मामले निजी केन्द्रों में दर्ज किए गए। इसके अलावा 5 सालों में प्रसव के दौरान 2,305 महिलाओं की मौत हुई। इनमें से 2,186 मौतें सरकारी अस्पतालों में और 119 निजी अस्पतालों में हुईं।
आप सरकार के सारे दावे खोखले
सामने आए आँकड़ों से केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य सेवाओं की पोल तो खुली ही है, साथ ही यह बात भी सामने आई है कि महिलाओं की मौत का सिलसिला सरकारी अस्पतालों में साल दर साल लगातार बढ़ा है। बता दें कि, सरकारी अस्पतालों में यह सँख्या 2013-14 में 389 से बढ़कर 2017-18 में 558 हो गई।
वहीं निजी अस्पतालों में प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत की सँख्या 27 से 2017-18 में 24 पर आ गयी है। बीते 5 सालों के दौरान चार साल तक गर्भपात में बढ़ोतरी के बाद पिछले साल गिरावट दर्ज हुई। आँकड़ों के अनुसार बीते 5 सालों में पश्चिमी ज़िले में सर्वाधिक 39,215 और उत्तर-पूर्वी ज़िले में सबसे कम यानी 8,294 गर्भपात हुए।
राजस्थान के धौलपुर में आरक्षण की माँग को लेकर गुर्जर समुदाय के लोगों ने आज तीसरे दिन भी अपना आंदोलन जारी रखा। सवाई माधोपुर के मलारना डूंगर में प्रदर्शनकारी अपनी माँग को लेकर रेल पटरियों पर बैठे हुए हैं। दूसरी ओर NH-3 पर आंदोलनकारियों ने ज़बरदस्त हंगामा किया है, जिससे हिंसा भड़क गई है और इलाके में ज़बरदस्त तनाव बना हुआ है।
बताया जा रहा है कि इस दौरान पुलिस पर पत्थर भी फेंके गए हैं, जिसके जवाब में भीड़ पर क़ाबू पाने के लिए पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी है। मामले को क़ाबू में रखने के लिए भारी मात्रा में पुलिस सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है।
Rajasthan: A clash broke out between police and protesters at Dholpur Highway today where the latter had blocked the road and set vehicles ablaze. The protesters were supporting the ongoing reservation movement by Gujjar community. pic.twitter.com/bq8U2JBCpe
राजस्थान सरकार ने आंदोलन को शांत करवाने के लिए गुर्जर समुदाय के पास अपने मंत्री को भी भेजा था, लेकिन फ़िलहाल कोई बात बनती नज़र नहीं आ रही है। आंदोलन के चलते कई ट्रेनों की आवाजाही रद्द करनी पड़ी है, जिससे लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। गुर्जर दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग पर पटरियों पर बैठे हैं। बता दें कि आरक्षण की माँग को लेकर गुर्जरों का ये 5वाँ, आंदोलन है।
राजनीतिक लाभ का नतीजा आ रहा सामने
बता दें कि, राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले कॉन्ग्रेस पार्टी ने गुर्जरों से आरक्षण का वादा किया था। ऐसे में आरक्षण के लोभ से गुर्जर समाज के लोगों ने कॉन्ग्रेस के पक्ष में मतदान किया। यही वजह है कि प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार बनने के बाद गुर्जर आरक्षण की माँग को लेकर उग्र हो गए हैं।
गुर्जर समाज अब सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 5% आरक्षण की माँग कर रहा है। गुर्जर, रायका रेबारी, गडिया, लुहार, बंजारा और गडरिया समाज के लोगों को आरक्षण की माँग की जा रही है। फ़िलहाल आरक्षण की 50% कानूनी सीमा में गुर्जरों को अति पिछड़ा श्रेणी में 1% आरक्षण अलग से मिल रहा है।
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने अपने ट्विटर हैंडल से राहुल गाँधी पर तंज कसते हुए कॉन्ग्रेस पार्टी की एक के बाद एक कई ख़ामियाँ गिनाईं। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा कि पिछले दो महीनों में कई फ़र्ज़ी अभियान देखे गए हैं। फिर भी कॉन्ग्रेस अपनी फ़र्ज़ी हरक़तो से बाज नहीं आ रही है।
The past two months have witnessed several fake campaigns. Each one of them has failed to cut much ice. Falsehood doesn’t have longevity. The ‘compulsive contrarians’ continued to jump from one falsehood to another.
जेटली ने राफ़ेल सौदे पर कहा कि इस सौदे ने न केवल भारतीय वायु सेना की युद्धक क्षमता को मज़बूत किया बल्कि सरकारी खज़ाने की भी बचत की। लेकिन इस सौदे को झूठा करार देने के लिए विपक्ष ने आधा-अधूरा पत्र ही दिखाया, इसके बाद सच्चाई सामने आई। विरोधी यह भूल जाते हैं कि सच की हमेशा जीत होती है।
The Rafale deal not only strengthens the combat ability of the Indian Air Force but saved thousands of crores for the exchequer. When its falsehood collapsed, its creators by producing half a document lost their full credibility. They forgot that truth always prevails.
जेटली ने लिखा कि राहुल गाँधी के दो बयानों पर ग़ौर किया जाए तो उससे पता चलेगा कि वो पीएम मोदी से निजी दुश्मनी निकालने जैसे हैं। एक फेल स्टूडेंट हमेशा क्लास के टॉपर से चिढ़ता है।
If we analyse Rahul Gandhi’s two speeches on Rafale, they are based on a personal hatred for the Prime Minister emanating from envy. A failed student always hates the class topper.
अपने ट्वीट में जेटली ने बैंकों की ख़राब हालत का भी ज़िक्र किया जिसके अनुसार 2008-2014 के बीच बैंकों को लूटा गया और वो हम पर आरोप लगाते हैं कि हमने इंडस्ट्रियल लोन माफ़ किए, जबकि हमने एक रुपया भी माफ़ नहीं किया। वास्तव में अब डिफॉल्टर्स को मैनेजमेंट से बाहर किया जा रहा है, इससे कॉन्ग्रेस के एक और झूठ का पर्दाफ़ाश हुआ।
Those who organised loot on the banks between 2008-2014, started alleging that industrial loans had been waived. Not a single rupee was waived. On the contrary, the defaulters have been thrown out of management & Congress’s falsehood was exposed.
जेटली ने सर्जिकल स्ट्राइक पर उठाए गए सवालों के जवाब में लिखा कि सरकार और बीजेपी हमेशा सेना के साथ खड़ी है। विपक्ष ने तो आर्मी चीफ़ को सड़क का गुंडा तक कह दिया।
The Govt. & the BJP have consistently stood by our Armed Forces. It is the Opposition which questioned first the existence of the surgical strike and then played it down as a routine action which has also taken place in the past & described Army Chief was as a ‘Sadak ka Gunda’.
The attack on EVM’s is not merely to allay defeat, it is an attack on the Election Commission. The EVM were introduced into the election process when BJP was nowhere close to power. Multiple parties have won & lost elections held through the EVM. Why attack EVM without evidence.
It slaughters a cow before the cameras in Kerala, and invokes the National Security Act against the cow killers in Madhya Pradesh. More than any institution it is the country whose interest is paramount.
अपने तमाम ट्वीट के ज़रिए जेटली ने कई मुद्दों का उल्लेख किया। जिसपर आए दिन बेवजह की राजनीति होती रहती है। इन दिनों विपक्ष का काम जनता को असल मुद्दों से भ्रमित करने का है। कभी ईवीएम के नाम पर, कभी गाय की हत्या के बहाने तो कभी जीसटी को लेकर। इन सभी मुद्दों पर कॉन्ग्रेस ख़ुद घिरी हुई है बावजूद इसके वो ऐसा कोई हथकंडा नहीं छोड़ती जिससे केंद्र सरकार को कटघरे में लाया जाए। केंद्र को ग़लत साबित करने की तमाम कोशिशों के बावजूद बीजेपी विपक्ष के सभी झूठे दावों का खंडन करती चली आई है।
व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के परम सम्मानित जातिवाचक कुलपति महोदय को ज्ञानवाचक का नमस्कार। क्योंकि मैं आपसे अक्सर सवाल पूछता रहता हूँ, इस कारण आपके अनुसार मैं स्वतः ही एक ट्रॉल भी हो जाता हूँ। लेकिन क्या आपने कभी ख़ुद भी सोचा था कि आपको सुरक्षा कारणों से ड्राइव करते समय ईयरफ़ोन लगाने होंगे और जवाबों की कमी के चलते किसी को ट्रॉल कहना पड़ेगा? ये ट्रॉल आज आपको बताना चाहता है कि यूँ ही नहीं वो ट्रॉल बन जाता है बल्कि वो आप से निराश होने के बाद ही ट्रॉल बनकर उभरा है।
पत्रकारिता के उस सुनहरे दौर को याद करते हैं, यानी वर्ष 2004 से 2014 तक का दशक, जब देश में चुनाव का माहौल नहीं हुआ करता था, प्राइम टाइम में किसी मनगढंत घोटाले के ख़िलाफ़ अख़बार की फ़र्ज़ी अधूरी कटिंग मुद्दा नहीं हुआ करती थी, प्रिंस पूरा दिन गड्ढे में गिरा रहता था, दिल्ली में बर्फ़ गिर जाया करती थी और दर्शकों को बाद में पता चलता था कि दिल्ली में बर्फ़ आसमान से नहीं बल्कि चुस्की बनाने वाली बर्फ़ की सिल्ली गिरी थी।
ये वो समय था जब ‘उभरते हुए कहानीकारों’ की जगह न्यूज़ रूम और अख़बारों में नहीं बल्कि बॉलीवुड और साहित्य में हुआ करती थी। इन सब के बीच दर्शकों को एक राहत की साँस मिली थी, रवीश की रिपोर्ट से। रवीश उस दौर में बहुत ख़ुश रहा करते थे। आपने गिर रही बर्फ़ के बीच गिर रही पत्रकारिता को दिशा दे डाली थी।
उस समय को याद करने में भी गौरव महसूस होता है, जब आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल प्रोपेगैंडा के लिए नहीं बल्कि ‘लप्रेक’ लिखने के लिए किया करते थे। आप TV देखने पर ज़ोर दिया करते थे, क्योंकि आप जानते थे कि दर्शक TV पर रवीश को देखना चाहते थे। आपको ‘अटेंशन’ के लिए स्टूडियो में कलाकारों को नहीं लाना होता था। ‘साँय-साँय’ की हवा सिर्फ़ मौसम सम्बंधित ख़बरों तक सीमित हुआ करती थी।
अचानक आप नींद से जागे, देश में राजनीति होने लगी। सत्ता के ध्रुव और हेडक्वार्टर बदल गए, और रवीश के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वो छटपटाहट में इधर-उधर भागने लगा। मानो सत्ता नहीं रवीश के सर से आसमान सरक गया हो। उसका शब्दों का जादूगर रवीश कुमार माइक लेकर ग़रीबों की बस्ती और खेतों से उठकर किरण बेदी के क़िस्सों के बारे में रूचि लेने लगा, ख़ासकर कुछ ऐसे क़िस्सों में, जिन्होंने उन्हें एक मज़बूत महिला की छवि दी और अन्य महिलाओं को भी आगे आने लिए प्रेरणा बनाया। रवीश केजरीवाल जैसे अदाकार की खाँसी दिखाने लगा।
कॉन्ग्रेस के हाथों से सत्ता छूटी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री क्या बने कि आप ग़रीबों को भूल गए, लप्रेक की जगह आप मनुस्मृति ढूँढ-ढूँढ़कर पढ़ने लगे, वामपंथियों में आप और ज़्यादा रूचि लेने लगे। आप मेरे जैसे युवा की प्रेरणा हुआ करते थे, लेकिन जिस तरह से आप सरकार और संस्थाओं को नीचा दिखाने के लिए उन पर बेवजह लगातार आरोप लगाने के लिए प्रयासरत रहा करते हैं, उसने मुझे निराश किया है।
आप ‘ऑड डेज़’ पर संविधान, संस्थान और लोकतंत्र में यक़ीन रखने को कहते हैं और ‘इवन डेज़’ पर कहते हैं कि ये सब संस्थाएँ बिक चुकी हैं। आप एक दिन कहते हैं कि TV मत देखिए, लेकिन दूसरे दिन रोते हैं कि NDTV की TRP नहीं आ रही है, फिर आप कहते हैं कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह लोगों की छत पर चढ़कर उनकी केबल के तार काट रहे हैं और लोग TV नहीं देख पा रहे हैं।
हालात ये हो चुके हैं कि आप में और ‘यो बिक गई गोरमिंट’ वाली काकी में अब फ़र्क़ ख़त्म हो चुका है।आप शादी-विवाहों में दूल्हे के वो फूफा बनकर रह गए हैं, जिसकी ज़िन्दगी का बस ‘एक्के’ मक़सद रह गया है और वो है खिसियाए रहना।
पत्रकार महोदय, आपने अपने विशेष मीडिया गिरोहों, जैसे कारवाँ , द वायर, ऑल्टन्यूज़ आदि से सनसनी मचाते हुए ख़ुलासे किए, लेकिन सबका नतीजा शून्य ही रहा। यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट इन सभी से विनती कर चुकी है कि संस्थाओं का समय बर्बाद ना करें और सलाह दी कि पत्रकारिता में ज़िम्मेदारी को समझें।
इसके बाद सनसनीखेज़ ख़ुलासे और आरोपों को ठीक से जाँच परख करने के बाद ही जनता के समक्ष लाने के बजाए आपने ‘डिस्क्लेमर’ लगाना बेहतर समझा। ताकि ‘प्रोपेगैंडा ऊँचा रहे हमारा’ की क्रान्ति जारी रहे। आप दर्शकों के इस मनोविज्ञान में अब महारत हासिल कर चुके हैं। आप जानते हैं कि आपको पढ़ने वाले सब भटके हुए और मनचले युवा हैं और जो भी भविष्यवाणी आप उगलेंगे, उसे ‘ब्रह्मवाक्य’ मानकर वो लोगों को गाली देना और नीचा दिखाना शुरू कर देंगे।
हाल ही में राफ़ेल डील की आधी जानकारी को लेकर आपके चरमोत्कर्ष को देखना सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। कॉन्ग्रेस पार्टी की मोदी सरकार को लेकर छटपटाहट एक बार के लिए स्वीकार्य है, क्योंकि वो आम चुनाव से पहले किसी ना किसी तरह से मोदी सरकार को घेरने के लिए कोई न कोई घोटाले का आरोप लगाना चाहते हैं। प्रोपेगैंडा पत्रकारिता का समुदाय विशेष दिन-रात इस मशक्कत में जुटा होने के बावजूद भी इन चार सालों में अब तक विपक्ष के पास कोई भी ऐसा घोटाला नहीं आ पाया है, जिसे लेकर वो मोदी सरकार को घेर सकें।
विपक्ष के दलों की छटपटाहट एक बार के लिए वाजिब है, लेकिन एक स्थापित पत्रकार होने के बाद भी राहुल गाँधी जैसे मनचले चिरयुवा के बचपने पर देश और दुनिया को गुमराह करना आपको शोभा नहीं देता था, फिर भी आप राफ़ेल डील पर ‘द हिन्दू’ अख़बार की एक टुकड़ी लेकर लहरा गए। आप जानते हैं कि आपके सारे बयान और प्राइम टाइम बेबुनियाद हैं, फिर भी आप छाती चौड़ी कर के रोज नया प्रोपेगैंडा लेकर बैठ जाते हैं। अगर शाहरुख़ ख़ान की एक के बाद एक फ़्लॉप फ़िल्मों का मुक़ाबला आपके फ़्लॉप प्रोपेगैंडा की सीरीज़ से की जाए तो आप नि:संदेह आगे निकल जाएँगे।
आपने मुझे एक इंटरनेट ट्रॉल की संज्ञा दी है, मेरा स्तर आपको समझाने-बुझाने के लिए बेहद छोटा है, लेकिन फिर भी कोशिश कर के देखिए। आप ग़रीबों की नहीं बल्कि विचारधारा और अहंकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज जो रवीश कुमार लाल माइक पकड़ता है, उसका मुद्दा ग़रीब और विद्यार्थी नहीं बल्कि टकराव है। इस रवीश की कलम लप्रेक नहीं बल्कि चुनावी बागों में बहार तलाश रही है और इस काम के लिए ये किसी भी हद तक जाने के लिए आतुर दिखता है।
रवीश जी, आपकी पत्रकारिता में विश्वास करने वाले युवा का हाल मुहब्बत में धोखा खाए हुए लड़के जैसा हो चुका है, वो चाहकर भी अब मोहब्बत करने को राजी नहीं है। उसे अब किसी भी तरह के लिबास में रंगी गई पत्रकारिता और मीडिया में यकीन नहीं रह गया है। वो बदहवास हालात में न्यूज़ डिबेट्स से लेकर कारवाँ और वायर तक में सत्य ढूँढ रहा है, लेकिन सत्य है कि मिलता नहीं। उसका मन प्रोपेगैंडों से आतंकित है, उसका मानना है कि अगर सस्ती लोकप्रियता के लिए रवीश कुमार प्रोपगैंडा के लिए काम करते हैं, तो फिर किसी और में किस तरह यक़ीन किया जाए?
आज के दिन पर आपको पढ़ने-देखने वालों के दिमाग में बस प्रोपेगैंडा और दिल में ग़ालिब बज रहा है, “ख़ुदा के वास्ते पर्दा न काबे का उठा ज़ालिम, कहीं ऐसा न हो यां भी वही क़ाफ़िर सनम निकले।”
हम सबकी आपसे विनती है: “हे रवीश कुमार, आप भटक चुके हैं। आप घर लौट आइए, आपको कोई कुछ नहीं कहेगा।” हे राजा रवीश कुमार, परमादरणीय रवीश कुमार! अपना ‘कारवाँ’ रोक दीजिए, आपको हिंदी पत्रकारिता का वास्ता। लप्रेक लिखने और पढ़ने वाली प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है, उसे बचा लीजिए। जिस तरह तमाम माया-मोह को त्यागकर अर्जुन ने गाण्डीव उठाया था, आप क़लम उठाइये, आप शब्दों के जादूगर हैं। राजनीति नहीं, बस अपने हिस्से की पत्रकारिता शुरू कर दीजिए, TV पर सच सुनने और मीडिया में सच पढ़ने के इच्छुक व्यक्ति की ये बहुत बड़ी जीत होगी।