Saturday, October 5, 2024
Home Blog Page 5471

तलाक़ क़ानून करेंगे ख़त्म; मोदी है डरपोक, नहीं करता डिबेट: कॉन्ग्रेस

मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर बनाए गए तीन तलाक़ क़ानून को लेकर कॉन्ग्रेस की ओर से बड़ा बयान सामने आया है। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा कि अगर केंद्र में उनकी सरकार बनती है तो तीन तलाक़ क़ानून को ख़त्म कर दिया जाएगा। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में कॉन्ग्रेस अल्पसंख्यक सम्मेलन को संबोधित करते हुए राहुल ने राहुल गाँधी ने केंद्र की मोदी सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री में हिम्मत है तो मुझसे बस 15 मिनट डिबेट करके दिखाएँ। लेकिन मैं जानता हूँ कि वह डरपोक हैं।

इसके अलावा अल्पसंख्यक मोर्चा सम्मेलन में महिला कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा सांसद सुष्मिता देव ने भी तीन तलाक़ क़ानून को ख़त्म करने की बात कही है। सुष्मिता ने कहा कि अगर केंद्र में हमारी सरकार बनती है, तो हम तीन तलाक़ क़ानून को ख़त्म कर देंगे। उन्होंने कहा कि कॉन्ग्रेस एक बार में तीन तलाक़ देने के खिलाफ़ है, लेकिन इसके खिलाफ़ बने क़ानून का वह समर्थन नहीं करती।

बता दें कि इस दौरान भी राहुल गाँधी मौजूद रहे। कॉन्ग्रेस के इस बयान से यह बात स्पष्ट हो रही है कि वह मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ़ दिलाने के उद्देश्य से बनाए गए तीन तलाक़ क़ानून के ख़िलाफ़ है।

बीते दिनों महिला को हलाला करने के लिए किया गया था मजबूर

उत्तर प्रदेश के बरेली से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। एक मुस्लिम महिला को उसके पति ने ‘तीन तलाक़’ देने के बाद हलाला करवाने पर मज़बूर किया। आरोपित ने अपनी पत्नी को अपने पिता (पीड़िता के ससुर) के साथ ज़बरन हलाला करवाया। पीड़िता की बहन ने अदालत में अर्ज़ी देकर न्याय की गुहार लगाई है। पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा:

“पहले मेरे शौहर ने मुझे तलाक़ दे दिया और दुबारा निकाह करने के लिए ससुर के साथ हलाला करवाया। अब वह फिर से तलाक़ देने के बाद देवर से हलाला कराने की ज़िद कर रहा है।”

बरेली के बानखाना निवासी पीड़ित महिला ने आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष निदा खान के साथ संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन करते हुए बताया कि वर्ष 2009 में उसका निकाह गढ़ी-चौकी निवासी वसीम से हुआ था। निकाह के 2 वर्ष बाद ही वसीम ने ‘तीन तलाक़’ देकर उसे घर से बाहर निकाल दिया। काफ़ी मिन्नतों के बाद वह फिर से पीड़िता को अपने घर में रखने को तैयार हुआ, लेकिन उसने एक शर्मनाक शर्त रख दी।

पीड़िता की बहन ने वसीम और उसके परिवार द्वारा किए गए अत्याचार के बारे में बताते हुए कहा:

“जब मेरी बहन ने ‘हलाला’ की प्रक्रिया से गुजरने से इनकार कर दिया, तो उसके ससुराल वालों ने उसे जबरन इंजेक्शन लगा कर, उसके ससुर के साथ हलाला की ‘रस्म’ पूरी करवाई। अगले 10 दिनों तक, बुजुर्ग व्यक्ति ने मेरी बहन के साथ लगातार बलात्कार किया और फिर उसे ‘तीन तलाक़’ दे दिया ताकि वह अपने पति से दोबारा शादी कर सके। लेकिन, जनवरी 2017 में, उसने फिर से मेरी बहन को तलाक़ दे दिया और फिर परिवार ने उसे उसके पति के छोटे भाई के साथ ‘हलाला’ से गुज़रने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया।”

इतना ही नहीं, आरोपितों ने पीड़िता को ₹15 लाख लेकर मामला ख़त्म करने की भी पेशकश की। लेकिन, पीड़िता ने कहा की वह इंसाफ़ चाहती है और उसने रुपए लेने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि वह दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाना चाहती है। अपनी बहन के घर रह रही पीड़िता ने कहा कि रोज़-रोज़ कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाना उसके वश की बात नहीं है।

योगी सरकार ने अल्पसंख्यक युवाओं को दिया तोहफ़ा, जानिए UP Budget से जुड़ी ख़ास बातें

उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल ने विधानसभा में आम बजट पेश किया। सरकार की तरफ़ से बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री ने ₹4.28 लाख करोड़ का बजट पेश किया।

यूपी सरकार द्वारा पेश किए गए बजट का आकार पिछले साल की तुलना में लगभग 11.4% अधिक है। यूपी सरकार के मुताबिक़ यह अभी तक का सबसे बड़ा बजट है। इस बार के बजट में सरकार ने कृषि, शिक्षा, रोज़गार और गौ-रक्षा से जुड़े कई मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया। आइए जानते हैं योगी सरकार द्वारा पेश किए गए बजट की ख़ात बातें-

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र व छात्राओं के छात्रवृत्ति योजना के लिए सरकार ने ₹942 करोड़ ख़र्च करने की घोषणा की है, जबकि अरबी और फ़ारसी मदरसों के आधुनिकरण के लिए ₹459 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं।
  • सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ में अवस्थापना सुविधाओं के लिए
    ₹125 करोड़ , अयोध्या में प्रमुख पर्यटन स्थलों के समेकित विकास हेतु ₹101 करोड़, गढ़मुक्तेश्वर के पर्यटक स्थलों की समेकित विकास के लिए 27 करोड़, पर्यटन नीति 2018 के क्रियान्वयन के लिए ₹70 करोड़ और पर्यटकों के लिए ₹50 करोड़ की व्यवस्था की गई है।
  • सरकार ने संरचनात्मक विकास के लिए भी सही से बजट उपलब्ध कराया है। योगी सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी के लिए ₹5156 करोड़, अमृत योजना के लिए ₹2200 करोड़, स्मार्ट सिटी मिशन योजना के लिए दो हजार करोड़ रुपए, स्वच्छ भारत मिशन शहरी योजना हेतु ₹1500 करोड़ , मुख्यमंत्री नगरी अल्प विकसित व मलिन बस्ती विकास के लिए
    ₹426 करोड़, पंडित दीनदयाल उपाध्याय आदर्श नगर पंचायत योजना के लिए ₹200 करोड़ के बजट की व्यवस्था की है।
  • राज्य के विकास में बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे में योगी सरकार ने अपने बजट में बिजली के लिए भी ₹29883.05 करोड़ ख़र्च करने की घोषणा की है, जो कि पिछले साल की तुलना में 54 फ़ीसदी ज़्यादा है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने कृषि के आधुनिकीकरण पर भी ज़ोर दिया है। यही वजह है कि सरकार ने प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के कम्प्यूटरीकरण हेतु ₹31 करोड़ की बजट व्यवस्था की है। किसानों को कम ब्याज़ दर पर फसली ऋण उपलब्ध कराने हेतु सब्सिडी योजना के तहत
    ₹200 करोड़ ख़र्च करने की बात कही है।
  • कृषि के क्षेत्र में सिंचाई की परियोजनाओं के विकास पर भी सरकार ने ज़ोर दिया है। बुंदेलखंड की 8 ज़रूरी सिंचाई परियोजनाओं, बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था के लिए
    ₹ 10938.19 करोड़ ख़र्च करने की बात सरकार ने कही है। यह बजट पिछली बार की तुलना में 54 फ़ीसदी ज़्यादा है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में भी पिछले साल की तुलना में ज़्यादा बजट का ऐलान किया है। यूपी बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित विद्यालयों में कक्षा 1 से 8 तक के छात्र छात्राओं को नि:शुल्क 1 जोड़ी जूते, 2 जोड़ी मोजे, एक स्वेटर उपलब्ध कराए जाने हेतु ₹300 करोड़, प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के छात्र छात्राओं को नि;शुल्क यूनीफॉर्म वितरण हेतु ₹40करोड़, वन टांगिया ग्रामों में प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना हेतु ₹5 करोड़ की व्यवस्था की गई है। वित्तीय वर्ष 2019- 20 में स्कूल बैग वितरण हेतु ₹110 करोड़ की व्यवस्था योगी सरकार ने कर दी है।
  • आम आदमी बीमा योजना हेतु ₹10 करोड़ , ‘प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना’ हेतु
    ₹130 करोड़ 60 लाख तथा प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के लिये ₹4 करोड़ 75 लाख ख़र्च करने की बात कही है।

BBC का फै़क्ट चेक या फोटो चेक? गंगा साफ़ हो रही है, लेकिन वो न्यूज़ रूम से नहीं दिखेगी

फ़ैक्ट चेक का जमाना है। सब खुद को पाक़-साफ़ दिखाना चाहते हैं, दूसरों की पोल-पट्टी खोलकर। दिक्कत तब होती है जब मीडिया के बड़े-बड़े मठाधीश करने ‘बैठते’ हैं फ़ैक्ट चेक और खोल बैठते हैं अपनी ही पोल-पट्टी! बैठते पर जोर इसलिए क्योंकि दिल्ली में बैठे-बैठे ये मठाधीश कर लेते हैं बनारस का फै़क्ट चेक!

मामला सोशल मीडिया पर शेयर हुई तस्वीरें हैं। विषय राजनीतिक है। जगह बनारस है। फ़ैक्ट चेक बीबीसी हिंदी ने किया है।

पहले वो फोटो ही देख ली जाए, जिसके आधार पर बीबीसी ने फै़क्ट चेक (असल में फोटो चेक) कर डाला।

बीबीसी की ‘फोटो चेक’ रिपोर्ट के अनुसार ऊपर की फोटो को दक्षिण भारत के कई सोशल मीडिया ग्रुप्स में शेयर किया गया। शेयर करने वालों ने यह दावा भी किया है कि बीजेपी ने गंगा सफ़ाई पर शानदार काम किया है जबकि यूपीए सरकार के दौरान इस नदी का हाल बुरा था। #5YearChallenge या #10YearChallenege हैशटैग के साथ इन दावों को चलाया गया। बीजेपी के कुछ नेताओं ने भी इसे अपने-अपने ढंग से शेयर किया।

फ़ेक का फैलाव

फे़क ख़बरें फैलती तेजी से हैं। बीबीसी ने अपनी ‘फोटो चेक’ रिपोर्ट में इस बात का सबूत भी दिया है। आँकड़ों के साथ कि किस ग्रुप से कितना शेयर हुआ यह फोटो। एक आँकड़ा यहाँ भी है – खब़र के शीर्षक में ही अगर झूठ हो तो वो कितनी बिकती है। नीचे रहा उसका सबूत।

क्लिकबेट शीर्षक से पेज़व्यू आपको भी खूब मिला होगा BBC

बात फ़ैक्ट चेक की

बीबीसी गंगा सफ़ाई की फै़क्ट चेक कर रही है या फोटो की, यह स्पष्ट नहीं। जरा इस वाक्य को पढ़िए – “वाराणसी शहर की जिस तस्वीर को ‘गंगा की सफ़ाई का सबूत’ बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया, वो ग़लत है” – इस वाक्य में तीन बातें छिपी हैं:

  • तस्वीर गलत है – तस्वीर ग़लत नहीं है बीबीसी! रिवर्स इमेज सर्च और फोटोग्राफर से बात के जरिए इसके खींचे जाने का साल आपने बता दिया है। तस्वीर से जुड़ा साल ग़लत है।
  • ‘गंगा की सफ़ाई का सबूत’ ग़लत है – लेकिन सिर्फ फोटो देखकर किसी सबूत को ग़लत या सही कैसे ठहराया जा सकता है? फिर आप में और सोशल मीडिया-वीरों में क्या अंतर रह जाएगा?
  • ग़लत है, तो सही तस्वीर क्या है? – यह आपने बताया ही नहीं। फ़ैक्ट चेक के नाम पर आप यह कहकर नहीं बच सकते कि ऐसी जानकारी लेख या ब्लॉग में। बच इसलिए नहीं सकते क्योंकि आपका शीर्षक भ्रामक है। और वेब के पाठक इसमें फंसते है, आर्टिकल का रीच बढ़ता है।

क्या होता है फैक्ट चेक

गंगा सफ़ाई पर बीजेपी नेताओं के दावों का ही अगर फै़क्ट चेक करना है तो आपको रिपोर्टिंग करनी चाहिए बीबीसी। जैसे अनुराग ने की। स्थानीय लोगों से लेकर अधिकारियों और तकनीक तक – हर पहलू पर रिपोर्टिंग के दौरान नज़र रखी। पढ़िए, मज़ा आएगा, ज्ञान तो ख़ैर मिलेगा ही।

ग्राउंड रिपोर्ट #1: मोदी सरकार के काम-काज के बारे में क्या सोचते हैं बनारसी लोग?

ग्राउंड रिपोर्ट #2: नमामि गंगे योजना से लौटी काशी की रौनक – सिर्फ अभी का नहीं, 2035 तक का है प्लान

ग्राउंड रिपोर्ट #3: दिल्ली की बीमार यमुना कैसे और क्यों प्रयागराज में दिखने लगी साफ?

दिल्ली के एसी ऑफिस में डेस्क पर बैठ कर और रिवर्स इमेज सर्च के सहारे ही अगर फै़क्ट चेक का धंधा चलाना है तो कृपया इसे फोटो चेक का नाम दीजिए। या फिर शीर्षक में “गंगा सफ़ाई पर बीजेपी नेताओं के दावे का सच: फ़ैक्ट चेक” मत लिखिए। स्पष्ट लिखिए – “गंगा सफ़ाई पर बीजेपी नेताओं द्वारा शेयर हुए फोटो 2019 के नहीं हैं: फोटो चेक”।

वो क्या है कि आप BBC हैं। मेरे बचपन-किशोरावस्था के उन 14 साल के प्यार का वास्ता (क्योंकि जहाँ मैं रहता था, वहाँ TV नहीं था इसलिए आपको या विविध भारती या ऑल इंडिया रेडियो ही सुन पाता था), पत्रकारिता को बचने दीजिए। इसे इतना मत बदबूदार बना डालिए कि एक समय लोग सोशल मीडिया पर ज्यादा भरोसा करने लगें और न्यूज़-मीडिया पर कम। विनती है, करबद्ध विनती!

छत्तीसगढ़ में STF और DRG को बड़ी कामयाबी 10 नक्सली आतंकी ढेर

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में नक्सलियों के साथ एसटीएफ और डीआरजी के जवानों द्वारा की गई मुठभेड़ में 10 नक्सलियों के ढेर किया गया। ख़बरों की मानें तो इंद्रावती नदी के पास सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें नक्सलियों को मार गिराया गया। बता दें कि पुलिस ने मारे गए नक्सलियों के पास से 11 हथियार भी बरामद किए हैं।

बीजापुर के SP मोहित गर्ग ने मुठभेड़ की जानकारी देते हुए कहा कि जवानों और नक्सलियों के बीच काफ़ी समय तक मुठभेड़ हुई है, जिसमें दोनों ओर से फ़ायरिंग की गई। उन्होंने कहा कि विशेष कार्य बल (एसटीएफ) और जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) की संयुक्त टीम नक्सलवाद विरोधी अभियान चला रही थी, जिसमें नक्सलियों को मार गिराया गाया है।

गर्ग ने बताया कि अभी तक नक्सलवादियों के 10 शव के साथ मौके से 11 हथियार बरामद किए गए हैं। उन्होंने कहा कि नक्सलियों का सर्च अभी अभियान अभी जारी है।

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री ने ‘The Print’ की लगाई लंका

नोबेल पुरस्कार विजेता एंगस डेटन ने ‘उभरते हुए कहानीकार’ शेखर गुप्ता के प्रोपेगैंडा के लिए मशहूर न्यूज़ पोर्टल ‘The Print’ की उस रिपोर्ट का खंडन किया है, जिसमें दावा किया गया था कि वह कॉन्ग्रेस को न्यूनतम आय योजना बनाने में मदद कर रहे हैं।

प्रोपैगैंडा के लिए जाने जाने वाले द प्रिंट की कहानी, जिसमें उन्होंने लिखा है कि एंगस डेटन कॉन्ग्रेस की मदद कर रहे हैं

31 जनवरी को, The Print के डी के सिंह की एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दावा किया गया था कि ब्रिटिश अर्थशास्त्री एंगस डेटन, जिन्होंने वर्ष 2015 में फ़्रांसिसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के साथ नोबेल पुरस्कार जीता था, कॉन्ग्रेस को अपने न्यूनतम आय गारंटी कार्यक्रम में सलाह दे रहे हैं।

The Print ने अपनी इस रिपोर्ट में लिखा है, “कॉन्ग्रेस पार्टी के नेताओं के अनुसार, पार्टी दो अर्थशास्त्रियों के पास पहुँची क्योंकि राहुल गाँधी ने उनके काम का ‘अध्ययन’ किया था।” हालाँकि, जब OpIndia ने अर्थशास्त्री डेटन से सम्पर्क किया, तो उन्होंने कॉन्ग्रेस या राहुल गाँधी में से किसी के साथ भी जुड़े होने से स्पष्ट मना कर दिया।

नोबेल पुरुस्कार विजेता अर्थशास्त्री एंगस डेटन द्वारा OpIndia को भेजा गया जवाब

एक लाइन के ई-मेल में, डेटन ने लिखा है कि उनका इस मामले या किसी अन्य मामले के सम्बन्ध में कॉन्ग्रेस से कोई संपर्क नहीं है। हालाँकि, फ़्रांसिसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी ने इस बात की पुष्टि की, कि कॉन्ग्रेस के साथ उन्होंने सिर्फ इसकी ‘लागत और इसे लागू किए जाने’ के बारे में बातचीत की थी। इसके साथ ही डेटन ने कहा, “समय आ गया है कि जाति संघर्ष की राजनीति से, आय और धन के पुनर्वितरण की राजनीति की ओर बढ़ा जाए।”

पिछले सप्ताह कुछ मीडिया रिपोर्ट्स सामने आई थीं, जिनमें दावा किया गया था कि भारतीय सेना को बदनाम करने के लिए ही वर्ष 2011-2012 में कॉन्ग्रेस के नेताओं ने एक कहानी रची थी, जिसमें कहा जा रहा था कि सेना की मदद से तख्तापलट की कोशिश की जा रही हैं। संडे गार्जियन ने एक इंटेलिजेंस ब्यूरो अधिकारी के हवाले से स्पष्ट किया था कि ऐसी तख्तापलट की कोई कोशिश नहीं की गई थी।

इस रिपोर्ट में कहा गया है, “यूपीए 2 सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने वर्ष 2011 और 2012 के शुरुआती महीनों में अनौपचारिक रूप से इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) को यह संकेत देने का प्रयास किया था कि सेना अपने तत्कालीन प्रमुख जनरल वी के सिंह के नेतृत्व में सरकार को गिराने के लिए तख्तापलट की कोशिश कर रही थी।”

जब IB ने बताया कि वीके सिंह किसी भी राजनीतिक तख्तापलट को अंजाम नहीं देने जा रहे थे, यह कहानी मीडिया के लिए ही ‘लीक’ की गई थी, यह कहानी उसी तरह से चलाई गयी थी, जिस तरह से उस वक़्त राजनीतिक नेतृत्व द्वारा सुनाई गई थी। इसमें एक नेता भी शामिल था, जिसने बाद में अपने करियर में एक शीर्ष संवैधानिक पद पर कब्जा किया था।”

ख़ास बात यह है कि रिपोर्ट में ‘सेना के तख्तापलट’ की कहानी अंग्रेजी दैनिक अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी। उस कहानी के कहानीकार भी शेखर गुप्ता ही थे। यही शेखर गुप्ता तब इंडियन एक्सप्रेस में संपादक थे।

इंडियन एक्सप्रेस अख़बार पर ‘सेना द्वारा तख्तापलट’ की कहानी

कहानियों की पटकथा बनाना पत्रकारिता जितनी ही पुरानी बात हो चुकी है। हालाँकि,जब सेना से सम्बंधित मामले पर वो कहानी गढ़ रहे थे तब शेखर गुप्ता जैसे वरिष्ठ पत्रकार को मामले की पूरी जानकारी होनी चाहिए थी और उन्हें यह बेहतर तरीके से पता होना चाहिए था।

‘ऑपइंडिया’ सेना की तख्तापलट की ‘लीक’ कहानी के आरोपों पर शेखर गुप्ता के विचार जानने के लिए पहुँचने के प्रयास किए, जिस कहानी को उन्होंने भारत के प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक में बतौर ‘संपादक’ पहले पेज पर छाप लिया था।

हालाँकि, शेखर गुप्ता ने इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने के समय तक कोई उत्तर नहीं दिया है।

ग़लत तरीक़े से पैसे निकलने पर बैंक होंगे ज़िम्मेदार, SMS एलर्ट मात्र से नहीं चलेगा कामः केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने बैंक उपभोक्तोओं को राहत देने वाला फै़सला सुनाया है। कोर्ट ने बैंको की ज़िम्मेदारी तय करते हुए कहा कि अगर उपभोक्ता के खाते से अनधिकृत तरीके से पैसा निकलता है तो इसके लिए सीधे तौर पर बैंक ज़िम्मेदार होंगे। न्यायाधीश पीबी सुरेश कुमार ने स्पष्ट कहा कि ऐसे मामलों में बैंक यह कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते कि उपभोक्ता ने SMS एलर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं दी। बैंक खाते से किसी कस्टमर का पैसा अनधिकृत रूप से कोई न निकाल पाए इसे सुनिश्चित करना बैंक का दायित्व है।

स्टेट बैंक की याचिका रद्द करते हुए दिया आदेश

हाईकोर्ट ने कहा कि SMS एलर्ट उपभोक्ता के प्रति बैंकों की ज़िम्मेदारी ख़त्म होने का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कई उपभोक्ता हो सकते हैं जिन्हें SMS देखने की आदत न हो या उन्हें देखना न आता हो। केरल हाईकोर्ट ने यह आदेश स्टेट बैंक की याचिका रद्द करते हुए सुनाया है। इससे पहले बैंक ने निचली अदालत के फै़सले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में याचिका दी गई थी। बता दें कि निचली अदालत ने एक मामले में सुनवाई करते हुए निर्देश दिए थे कि अनधिकृत विथड्रॉल के चलते ₹2.4 लाख गँवाने वाले उपभोक्ता को मुआवज़ा दिया जाए। उपभोक्ता ने यह रक़म ब्याज़ के साथ माँगी थी।

बैंक द्वारा SMS एलर्ट भेजने के तर्क़ को कोर्ट ने किया ख़ारिज

बैंक ने अपनी याचिका में यह दलील दी थी कि उसने उपभोक्ता को खाते से पैसा निकलने का SMS एलर्ट भेजा था। ऐसे में उस उपभोक्ता को तुरंत अपना खाता ब्लॉक कराने का अनुरोध करना चाहिए था लेकिन उपभोक्ता ने SMS एलर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, इसलिए बैंक की इसमें कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती।

उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखे बैंक

बैंक की दलील पर सुनवाई करते हुए केरल हाईकोर्ट ने कहा कि जब एक बैंक अपने उपभोक्ता को सेवाएँ उपलब्ध करा रहा है, तो उसकी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपने उपभोक्ता के हितों का ध्यान रखे। कोर्ट ने कहा, “अगर किसी ग़ैरआधिकारिक विड्रॉल के चलते उपभोक्ता को नुक़सान हो, जो उसने किया ही नहीं तो बैंक उसके लिए ज़िम्मेदार है।”

उच्च न्यायालय ने कहा, “यह बैंक की ही ज़िम्मेदारी है कि वह सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग वातावरण का निर्माण करे। हर उस ग़लत हरक़त को रोकने के लिए क़दम उठाए जाएँ, जिससे बैंक के उपभोक्ताओं को नुक़सान होता हो।”

हाईकोर्ट ने कहा, “हम बैंक को केवल उसकी ज़िम्मेदारियों का अहसास दिला रहे हैं, कोई नई जिम्मेदारी या अधिकार नहीं दे रहे हैं। अगर किसी उपभोक्ता को जालसाज़ द्वारा किए गए ट्रांजैक्शन से घाटा होता है तो यह माना जाएगा कि बैंक ऐसा सिस्टम नहीं बना पाया, जिसमें ऐसी घटनाएँ रोकी जा सकें।”

RBI का किसानों को तोहफ़ा; बिना गारंटी मिलेगा ₹1.60 लाख तक का कर्ज़

बजट 2019 में पीयूष गोयल द्वारा किसानों के हित में कई सारी योजनाओं की घोषणाएँ की गई थी। अब रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RB) भी किसानों के लिए नए सौगात लेकर आया है। ताज़ा निर्णय के अनुसार, बिना कुछ गिरवी रखे मिलने वाले ऋण की अधिकतम सीमा को ₹1 लाख से बढ़ा कर सीधा ₹1 लाख 60 हज़ार कर दिया गया है, यानी कि डेढ़ गुना से भी ज़्यादा का इज़ाफ़ा। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि केंद्रीय बैंक ने छोटे किसानों को राहत देने के लिए यह निर्णय लिया है।

इस संबंध में रिज़र्व बैंक जल्द ही सर्कुलर जारी करेगा। विशेष जानकारी देते हुए आरबीआई ने कहा:

“इससे औपचारिक ऋण प्रणाली में छोटे तथा सीमांत किसानों की भागीदारी बढ़ेगी। पछले वर्ष के मुक़ाबले, इस बार कृषि ऋण उठाव अच्छा रहा है, लेकन इसके बाद भी इसे लेकर कुछ समस्याएँ हैं। मसलन, क्षेत्रीय असमानता एवं इसका दायरा। इन समस्याओं के अध्ययन तथा निदान और इनसे जुड़े नीतिगत सुझाव के लिए हमने एक कार्यसमूह का गठन किया है।”

किसानों को यह लोन केवल कृषि संबंधित कार्यों के लिए ही मिलेगा। बता दें कि अंतरिम बजट 2019 में भी छोटे किसानों के लिए पीएम-किसान नामक योजना लाई गई थी। PM किसान योजना के अंतर्गत छोटे किसानों को सीधा उनके आय ₹6000 प्रति वर्ष दिया जाएगा। 100% भारत सरकार द्वारा भुगतान किया जाएगा, 3 किश्तों में भुगतान होगा। इस प्रोग्राम पर सरकार को ₹75,000 ख़र्च आएँगे।

इसके अलावा केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने भी अपने ब्लॉग में बताया था कि कृषि मंत्रालय के बजट का आवंटन पिछले वर्ष के मुक़ाबले ढाई गुना ज्यादा हो गया है। बजट 2019 में किसानों के सस्ते ऋण पर ख़ास ज़ोर दिया गया था।

प्रिय मुस्लिम औरतो, आप हलाला, पोलिगेमी और तलाक़ के ही लायक हो! क्योंकि आप चुप हो!

ख़बर पढ़िए, और सोचिए: एक महिला है, शादी हुई, दो साल बच्चे नहीं हुए। ससुराल वालों ने मारा, भूखा छोड़ा और पति ने कहा, “तलाक़, तलाक़, तलाक़!” हो गया तलाक़। घरवालों ने बेटे से कहा कि अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करे। पति की शर्त आई कि पहले लड़की को उसके पिता के साथ हलाला करना होगा। प्रेशर बनाया गया कि अपने ससुर के साथ ‘हलाला’ कर ले। हलाला यानी ससुर के साथ शारीरिक संबंध बनाना। 

लड़की ने मना किया। उसे इंजेक्शन दिया गया और दस दिनों तक ससुर हलाला के नाम पर उसका बलात्कार करता रहा। उसके बाद ससुर ने अपनी बहू को तलाक़ दिया ताकि उसके बेटे से उसका निकाह दोबारा हो सके। फिर से पति के साथ निकाह हुआ, और पति ने एक बार फिर 2017 में महिला को तीन तलाक़ दे दिया। फिर से परिवार ने पति से कहा कि एक बार फ़ैसले पर पुनर्विचार करे। 

इस बार पति नई शर्त लेकर आया कि इस बार हलाला उसके भाई के साथ करना होगा। इस तलाक़-हलाला की शर्त से अंततः लड़की परेशान हुई और कोर्ट की शरण में जा पहुँची। अब उस पर सुनवाई हो रही है। 

इस पर जो भी फ़ैसला आए, वो तो बाद की बात है लेकिन ऐसे मामलों में मुस्लिम समाज, और ख़ासकर मुस्लिम लड़कियाँ बिलकुल ही चुप रह जाती हैं। अपने सोशल मीडिया फ़ीड पर इन बातों पर न के बराबर मुस्लिम नाम वाले प्रोफ़ाइलों से इस पर चर्चा या भर्त्सना करते पाता हूँ। संभव है कि ऐसे लोग होंगे, लेकिन ये कभी भी इतना नहीं कर पाते कि एक हैशटैग भी ट्रेंड करा सकें। साथ ही, दुःखद बात तो यह है कि तमाम मुस्लिम नाम वाले लोग इन बातों को ‘हमारी समस्या है, हम निपटेंगे, तुम्हें क्या’ वाले तर्कों से ढकने में लगे रहते हैं।

समस्या तो यही है कि एक पूरी जनसंख्या और उनके नेताओं तक को इन कुरीतियों की सड़ाँध छूती तक नहीं। इनके पर्सनल लॉ बोर्ड और वैसे ही कई संस्थान, जो इस्लामी क़ानूनों की बात करते नज़र आते हैं, वो इन पर चुप्पी साध लेते हैं। और तो और, वो इन कुरीतियों को इस्लामी कानून के नाम पर डिफ़ेंड करने लगते हैं! ओवैसी जैसे पढ़े-लिखे नेता ने तलाक़ वाले बिल पर समुदाय विशेष को एकजुट होकर लड़ने की बात कहते हुए कहा था कि मुस्लिम अपने हिसाब से शादी करेगा और तलाक़ देगा, इसमें किसी और के निर्देशों की कोई सम्भावना नहीं।

और इन सब के बीच जो चुप बैठी रहती है, वो है भारत की दस करोड़ मुस्लिम महिला आबादी। इनके न बोलने के पीछे एक बात समझ में आती है, और वो यह है कि इनकी सामाजिक परवरिश इस तरीके से हुई है कि या तो इन बातों को वो समस्या के तौर पर देखती ही नहीं, या फिर, उन्हें डर लगता है कि अगर वो बोलेंगी तो समाज उन पर क्या प्रतिक्रिया देगा।

पहली बात तो यही है कि एक सेकुलर देश में धार्मिक परम्पराओं को छोड़कर, जिसमें शादी-निकाह जैसे संस्कार शामिल हैं, धार्मिक कानूनों (पर्सनल लॉ) का कोई औचित्य नहीं दिखता। अगर शरीयत ही लागू करना है तो फिर चोरों को कोड़ों से मारने की सजा और चौराहे पर पत्थरों से पीटकर हत्या करने की भी सजा होती रहनी चाहिए। ये क्या कि मर्दों के ईगो को संतुष्ट करने वाली परम्पराओं को धार्मिक कानून का नाम देकर स्त्रियों का शोषण किया जा रहा है?

तुर्की जैसे देश जिस ओर भारत के मुस्लिम इस हद तक देखते थे कि वहाँ चाँद दिखने पर अपना रोज़ा तोड़ते थे, उन्होंने इन सारी प्रथाओं को दरकिनार किया है। वहाँ औरतें चुन सकती हैं कि वो क्या पहने, कहाँ जाएँ, किसके साथ रहें। जबकि एक समय था इस्लाम वही से संचालित होता था। तुर्की ने बेहतर समाज के लिए इन कुरीतियों को हटाया और सामाजिक समानता की बात की। यह भी देखा गया है कि जिन मुस्लिम देशों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो, जहाँ लोकतंत्र है, वहाँ की औरतों को ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं। 

लगभग 49 देश ऐसे हैं जहाँ मुस्लिम समुदाय के लोग बहुसंख्यक हैं, लेकिन वैसे देश जो युद्ध से जूझ रहे हैं, अशिक्षा है, ग़रीबी है, वहाँ स्त्रियों के अधिकार न के बराबर हैं। भारत में मुस्लिम समुदाय दूसरी बड़ी आबादी हैं, और यहाँ संविधान उनके हितों को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर रक्षा करती है। यहाँ तो युद्ध की भी स्थिति नहीं है। फिर यहाँ की महिलाओं को ऐसी नारकीय यातनाएँ क्यों दी जा रही हैं? भारत के मुस्लिमों को ये सोचना चाहिए कि वो अपनी माँ, बहन, बेटी को कैसे अधिकार देने चाहेंगे। जब तक निजी तौर पर इसे न सोचा जाए, समानता की बात मुश्किल है। सरकार कानून भी बना दे तो भी क्या होगा?

एक बेहतर समाज अपने हर अंग को साथ लेकर चलता है। एक स्वस्थ समाज में ऐसी कोढ़ की कोई जगह नहीं होनी चाहिए जो मानवमात्र की इज़्ज़त ना कर सके। एक प्रगतिशील समाज हर नागरिक को आर्थिक, समाजिक, पारिवारिक और वैयक्तिक तौर पर सशक्त करने की कोशिश करता रहता है। 

अगर मुस्लिम महिलाओं ने इस पर मुहीम नहीं छेड़ी तो उनके अधिकार की लड़ाई कोई नहीं लड़ेगा। इस देश और समाज ने तथाकथित मजहबी नेताओं को देख लिया है कि इन क्रूर परम्पराओं को लेकर उनके विचार किसी मौलवी की ही गोद में जा गिरते हैं। इस्लाम की ढाल लेकर, औरतों के शोषण करने वाली इन बातों पर हर मंच से मजहबी नेताओं ने भागने की कोशिश की है।

यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे असंवैधानिक बनाए जाने के बावजूद महिलाएँ तीन तलाक़ का शिकार होकर घरों से बाहर फेंकी जा रही हैं। जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है उन्हें इस हलाला नाम के धार्मिक बलात्कार की प्रक्रिया से गुज़रना होता है क्योंकि एक महिला अपने बच्चों को लेकर कहाँ जाएगी? अपने पिता का परिवार उसे सामाजिक दबाव में, अपनी ‘बदनामी’ के डर से, नहीं अपनाता, और पति ने तो घर से ही निकाल दिया।

जब तक मुस्लिम महिलाएँ, उनकी पढ़ी-लिखी बेटियाँ, सड़कों पर अपने ही मौलवियों से, नेताओं से अपने अधिकारों की बात नहीं करेंगी, ये मुद्दा राजनैतिक या कानूनी तरीके से नहीं सुलझने वाला। कानून तो चोरी को भी लेकर बने हैं, लेकिन उसे अगर कोई समाज धार्मिक मान्यता प्रदान कर दे, तो फिर कानून अपना काम कभी नहीं कर पाएगा। 

इसीलिए, यहाँ समाज और धर्म को साफ करने का ज़िम्मा भी उसी समाज के लोगों पर है। दुर्भाग्य यह है कि जिन्हें इस कचरे को साफ करना चाहिए, वो उसे गुलदस्ता मानकर उसकी सुगंध ले रहे हैं। भीतर की सड़ाँध को बाहर का झाड़ू साफ़ नहीं कर सकता। अगर मुस्लिम महिलाएँ आगे नहीं आती है, उनके शिक्षित लोग इस पर बात नहीं करना चाहते, तो शायद ये महिलाएँ इसी समाज में रहने लायक हैं। और यह एक दुःखद स्थिति है। 

8 साल की दुष्कर्म पीड़िता को शिवराज सरकार ने दिया था घर, कॉन्ग्रेस सरकार ने दिया खाली करने का आदेश

मध्यप्रेदश के इंदौर जिले में सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई 8 साल की बच्ची को मुआवजे के तौर पर मिले घर को खाली करने के निर्देश जारी किए गए हैं। इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) ने बुधवार को रेप पीड़िता बच्ची को आवंटित हुए घर को खाली करने का निर्देश दिया है। बता दें कि भाजपा सरकार और शिवराज सिंह के कार्यकाल में बच्ची को शहर में एक घर और दुकान आवंटित की गई थी।

आईडीए के अधिकारियों का कहना है कि पिछली भाजपा सरकार ने इसके लिए कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया था, इसलिए घर खाली करना होगा। ख़बरों की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़िता के लिए पुनर्वास पैकेज की घोषणा की थी। जिसके बाद आईडीए ने परिवार को ज़िला प्रशासन में एक घर आवंटित करते हुए बच्ची के पिता को मंदिर स्थल में एक दुकान आवंटित की थी। साथ ही बच्ची और उसके दो भाई बहनों का एक अच्छे स्कूल में दाख़िला भी करवाया था।

स्कूल के पास से अपहरण करके हुआ था दुष्कर्म

कक्षा 3 में पढ़ने वाली दुष्कर्म पीड़िता से बीते 26 जून 2018 को दो लोगों ने स्कूल के पास से अपहरण कर दुष्कर्म किया था। दुष्कर्म के बाद आरोपितों ने उसका गला काटकर उसे मरती हालत में छोड़ दिया और भाग निकले। स्थानीय लोगों को बच्ची ख़ून से लथपथ झाड़ियों में पड़ी मिली थी, जिसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहाँ 5 महीने इलाज के बाद वह घर वापस लौट सकी थी। बता दें कि दोनों आरोपितों को दोषी पाया गया था और उन्हें सज़ा भी दी गई थी।

कॉन्ग्रेस के आते ही छोड़ना पड़ रहा है घर

पीड़िता के पिता ने कहा कि राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार आई तो लोगों ने कहा कि सरकार बदल गई है, अब घर छोड़ना पड़ेगा क्योंकि पुरानी सरकार ने घर के लिए कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया था। वह कहते हैं कि लोगों की बात सच हो गई, लगता है हमें वापस घर जाना होगा। हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए।

आईडीए के एक अधिकारी एनएल महाजन का कहना है कि पिछली सरकार द्वारा की गई घोषणा के बाद घर दिया गया था, लेकिन अभी इसको लेकर मौजूदा सरकार ने कोई आदेश जारी नहीं किया है इसलिए घर खाली करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमें औपचारिक आदेश के बिना किसी को भी घर सौंपने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने बताया कि परिवार घर में नहीं रह रहा है बल्कि घर को किराए पर दिया गया है ताकि कुछ पैसा मिल सके। ख़ुद के लिए उन्होंने मंदिर के पास घर किराए पर लिया है, जहाँ बच्ची के पिता को दुकान मिली है।

घर खाली करने की बात सामने आने के बाद बच्ची के पिता ने कहा कि उन्हें डर है कि अगले शैक्षणिक सत्र में उनके बच्चों को स्कूल से निकाल दिया जाएगा। उन्होंने कहा, “मैं ₹4.5 लाख की फीस नहीं दे सकता हूँ।” लड़की की माँ ने कहा, “उस दर्द और पीड़ा को राजनेता भूल सकते हैं लेकिन हम अब भी काफी दर्द में हैं। मेरी बेटी अब भी उस आघात से गुजर रही है। वह अब भी नींद में चिल्लाते हुए कहती है ‘मम्मी बचाओ, मम्मी बचाओ’।”

चिटफंड घोटालों से जनता को बचाने के लिए सरकार बना रही है कानून

नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार शारदा जैसी फर्जी चिटफंड कंपनियों पर रोक लगाने के लिए नया कानून बनाने जा रही है। शारदा चिटफंड जैसी कंपनी ने देश भर के लोगों की गाढ़ी कमाई को अवैध तरह से लूटने का काम किया है।

इस कंपनी के साथ कई सारे नेता और रसूख वाले लोगों ने मिलकर इस घटना को अंजाम दिया। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने जमा योजना चलाने वाली भगौड़े कंपनियों पर रोक लगाने के लिए सख़्त कदम उठाया है।

ऐसी कंपनियाँ भविष्य में लोगों की गाढ़ी कमाई लूट कर नहीं भाग पाए इसके लिए ‘द बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम बिल, 2018’ को सरकार अंतिम रुप दे रही है।

द बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम बिल, 2018

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में इस बिल को लाने के लिए बुधवार को कैबिनेट की मीटिंग हुई। इस मीटिंग में ‘द बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम बिल, 2018’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।

इस बिल के बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि इस बिल को कानून का रूप लेने के बाद यदि कोई कंपनी लोगों के पैसे को जमा कराती है तो उसे इस कानून के तहत खुद को पंजीकृत कराना होगा। यदि कोई कंपनी इस कानून के तहत पंजीकृत कराए बगैर जमा योजना चलाती है तो उसे अवैध माना जाएगा।

यही नहीं केंद्रीय मंत्री ने मीडिया को बताया कि अवैध पाए जाने वाली कंपनियों के मालिक के साथ ही साथ एजेंट और ब्रांड एंबेसडर के ऊपर भी कार्रवाई की जाएगी। सरकार की तरफ से मंत्री ने आश्वस्त किया कि ऐसी फर्जी कंपनियों को बेचकर गरीबों की पूँजी वापस कराई जाएगी।

जानकारी के लिए बता दें कि इस कानून के लिए वित्त मामलों की स्थाई समिति ने सरकार के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की थी। ‘द बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम बिल 2018’ को सरकार ने 18 जुलाई को संसद में पेश किया गया, इसके बाद इस बिल को विचार के लिए संसदीय समिति के पास भेज दिया गया था।

संसदीय समिति ने इस बिल पर 3 जनवरी को रिपोर्ट दी थी। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह भी कहा कि 2015 से 30 नवंबर, 2018 तक देशभर में सीबीआई ने अवैध रूप से लोगों से धनराशि जमा कराने से संबंधित पोंजी और चिटफंड से जुड़े 166 मामले दर्ज किए हैं। सर्वाधिक मामले पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से हैं।