Saturday, April 27, 2024

राजनैतिक मुद्दे

86 साल बाद निर्मली और भपटियाही का ‘मिलन’, पर आत्मनिर्भर बिहार कब बनेगा

आखिर आत्मनिर्भर बिहार कब बनेगा जहाँ के लोग रोजगार के लिए पलायन करने के बदले रोजगार देने वाले बनें?

उनके लिए धर्म अफीम है, मजहब नहीं: बेगूसराय में निपटा ‘लफंगा’ अब अपनों के गेम से चित

बेगूसराय ने जब वामपंथी पोस्टर बॉय को नकार दिया तो अब 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' ने उसी कुकृत्य से कुख्यात हुए एक दूसरे चेहरे को सामने रखना शुरू कर दिया है।

प्रवासी: तापसी पन्नू का वैचारिक प्रपंच

तापसी श्रमिक पालयन के मूल कारण पर मौन क्यों हैं? महामारी नियंत्रण में केंद्र सरकार के प्रयासों को विफल क्यों करना चाहती हैं, देश में अराजकता क्यों बढ़ाना चाहती हैं?

युद्ध पिपासु शी जिनपिंग: इतनी जल्दी नहीं मानेगा हार, देश को रहना होगा कठिन दिनों के लिए तैयार

गलवान की खिसियाहट में शी जिंगपिंग अपनी सेना के कई अफसरों की बलि चढ़ा सकते हैं। झल्लाहट में वे सीमा पर बड़ा कारनामा करने की भी...

चीन के खिलाफ बोलने से बचने के लिए तो नहीं भागे राहुल-सोनिया? मॉनसून सत्र के आधे हिस्से में नहीं रहेंगे दोनों

ये सवाल तो उठेगा ही कि क्या सोनिया गाँधी और राहुल चीन के डर से संसद सत्र के पहले हिस्से में भाग नहीं ले रहे हैं? चीन की आलोचना से बच रहे?

तेजप्रताप के लिए रघुवंश ‘एक लोटा पानी’… फिर उनके इस्तीफे से लालू इतने बेचैन क्यों?

भले रघुवंश प्रसाद सिंह का प्रभाव सीमित हो। लेकिन लालू जानते हैं कि उनके बिना तेजस्वी की चुनावी राजनीति सुरक्षित नहीं है। सो, मनाने की कोशिशें जारी है।

मोदी किसानी-गाय-बैल-मछली की बात कर रहा है… हम लड़ेंगे साथी, पौव्वा पीकर उससे लड़ेंगे

पिछले डेढ़-दो दशकों में हमने कभी एक राज्य में एक साथ सिर्फ कृषि क्षेत्र के लिए इतनी अलग-अलग परियोजनाओं का नाम सुना हो - याद नहीं!

अब नागाओं का वास्तविक हितधारक और हितैषी नहीं है NSCN (IM): अन्य स्टेकहोल्डर्स को भी शामिल किए जाने की माँग

एनएससीएन (आईएम) को नागा हितों का एकमात्र प्रतिनिधि संगठन मानना और सिर्फ इसके साथ ही शांति-वार्ता और संघर्ष-विराम करना ऐतिहासिक रणनीतिक भूल है।

शिक्षक दिवसः नेहरू के यूरोपियन पाठ का सरकारी पर्व

एक आत्महीन देश ही किसी ‘उन्नत’ देश को धन्यभाव से देखता और पिछलग्गू बन जाता है। नेहरू ने भारत को उसकी मूल संस्कृति से काटकर असल में ऐसा ही देश बना दिया जो अपनी हर गति, हर उन्नति के लिए परमुखापेक्षी हो गया।

…जब RSS के मंच से प्रणब मुखर्जी ने भरी थी ‘राष्ट्रवाद’ की हुँकार

RSS मुख्यालय में प्रणब मुखर्जी ने देश के प्राचीन इतिहास से लेकर उसकी संस्कृति तक जो कुछ कहा था, वह बीते कल में भी प्रासंगिक था और आने वाले कल में भी प्रासंगिक रहेगा।

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