Thursday, May 2, 2024
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1% से भी कम वोट से हिमाचल ने रिवाज कायम रखा, CM बनने को लड़ कॉन्ग्रेसी भी निभा रहे परंपरा: वीरभद्र सिंह का कुनबा सबसे आगे

मुख्यमंत्री की रेस में राज्य की कॉन्ग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और उनके 33 वर्षीय विधायक बेटे विक्रमादित्य सिंह हैं। इसमें सबसे अधिक विक्रमादित्य सिंह का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। हालाँकि, विक्रमादित्य सिंह कह चुके हैं कि वे अपनी माँ को ही सीएम बनते देखना चाहते हैं।

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव (Himachal Pradesh Assembly Election) ने कॉन्ग्रेस (Congress) की डूबती नैया को सहारा दे दिया है। यह सहारा मृतप्राय पार्टी के लिए संजीवनी का काम किया है। कॉन्ग्रेस राज्य की कुल 68 सीटों में से 40 सीटें जीतकर सरकार बनाने जा रही है। हालाँकि, जीत के बाद भी पार्टी के सामने मुश्किलों की कमी नहीं है।

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में राजा साहब के नाम से विख्यात पूर्व मुख्यमंत्री एवं कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) की पत्नी प्रतिभा सिंह (Pratibha Singh) ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में खूब मेहनत की और परिणाम भी सामने है। प्रदेश की सत्ताधारी भाजपा (BJP) 25 सीट तक सिमट कर रह गई। प्रतिभा सिंह को यह जिम्मेदारी सिर्फ छह महीने पहले ही मिली है। इसके बाद अपने विधायक बेटे विक्रमादित्य सिंह (Vikramaditya Singh) के साथ मिलकर वह प्रदेश का कोना-कोना छान मारी।

एक कहावत है कि जीत एक से हो या 100 से, उस जीत की अनुभूति सुखदायक ही होती है। कॉन्ग्रेस भी इस सुख का आनंद ले रही है और हिमाचल प्रदेश की जनता हर पाँच साल पर सत्ता को बदलने का सुख ले रही है। कॉन्ग्रेस और जनता दोनों खुश हैं। लेकिन, इन सबसे अलग हटकर देखा जाए तो भाजपा पर कॉन्ग्रेस की यह जीत मामूली दिखाई देती है, क्योंकि भाजपा ने कुछ दुस्साहसिक गलतियाँ नहीं की होती तो उत्तराखंड की तरह हिमाचल प्रदेश में सत्ता में लगातार वापसी के अभिशाप को धो सकती थी।

चुनावों से पहले देश भर में क्षत्रिय महापुरुषों को लेकर विवाद को उठना और उसमें भाजपा की एंट्री ने पार्टी को निशाने पर ला दिया और सोशल मीडिया में इतिहासचोर भाजपा जैसे ट्रेंड चलने लगे। भाजपा के खिलाफ आवाज उठने लगी। हिमाचल प्रदेश चुनाव के संदर्भ में भले ही मुख्यधारा की मीडिया किसी विशेष उद्देश्य की वजह से इन कारकों की चर्चा ना करे, लेकिन लगभग 40 प्रतिशत क्षत्रिय वोट वाले राज्य हिमाचल प्रदेश में इसका सीधा असर दिखा।

रही-सही कसर पार्टी के बागियों एवं पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता प्रेम कुमार धूमल का टिकट काट कर पूरा कर दिया गया। जिन विधायकों का टिकट काटा गया, उनमें अधिकांश धूमल के समर्थक थे। इस तरह लोगों के बीच भी एक गलत संदेश भेजा गया। मंच पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा अपने पिता प्रेम कुमार धूमल की राजनीति को याद कर भावुक हो जाना, जैसे आग में घी का काम कर दिया और भाजपा के प्रति लोगों की नाराजगी को और बढ़ा दिया।

इस चुनाव में भाजपा के 21 बागियों ने चुनावी मैदान में ताल ठोंका, जिनमें से तीन तो निर्दलीय जीतने में कामयाब रहे, लेकिन बागियों की वजह से कॉन्ग्रेस को अप्रत्यक्ष लाभ हुआ। परिणाम यह हुआ कि अधिकांश सीटों पर भाजपा कुछ सौ वोटों के अंतर से हार गई।

कुछ सीटें तो ऐसी भी रही, जहाँ हार-जीत का अंतर 100 से भी कम था। भोरंज सीट पर तो कॉन्ग्रेस के सुरेश कुमार ने भाजपा के अनिल धीमन को सिर्फ 60 वोटों से हराया। इस तरह 1000 वोटों से कम अंतर से हारने वाले सीटों की संख्या लगभग 10 है। अगर इन सीटों को सँभालने में भाजपा कामयाब रहती तो भाजपा बहुमत के आँकड़े 35 को आसानी से पार कर लेती।

भाजपा (BJP) के लिए यह जीत हासिल करना कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि अगर वोट शेयर की बात करें तो भाजपा और कॉन्ग्रेस को लगभग समान वोट मिले हैं। लेकिन भाजपा से 0.90 यानी एक प्रतिशत से कम वोटों की अधिकता ने कॉन्ग्रेस के राजनीतिक द्वार खोल दिए। इस चुनाव में भाजपा को कुल 43.00 प्रतिशत वोट मिले हैं। वहीं, कॉन्ग्रेस को 43.90 प्रतिशत वोट मिले हैं।

अगर साल 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो उसमें भाजपा को 49.53 प्रतिशत मत हासिल कर 44 सीटें और कॉन्ग्रेस को 42.32 प्रतिशत मत हासिल कर 21 सीटें जीती थीं। निर्दलीय एवं अन्य दलों ने 6.34 फीसदी मत प्राप्त किए थे, जिसमें माकपा को एक तथा निर्दलीय प्रत्याशियों को दो सीटें मिली थीं। इस तरह साल 2022 में भाजपा को 6.53 प्रतिशत मत का नुकसान हुआ है, जबकि कॉन्ग्रेस को 1.58 प्रतिशत वोट का लाभ हुआ है। वहीं, अन्य को लगभग 12 प्रतिशत वोट मिले हैं।

राज्य में कॉन्ग्रेस जीत गई, लेकिन पार्टी हाईकमान को डर अभी भी सता रहा है कि कहीं उनके विधायक पाला ना बदल लें। इसलिए पार्टी मतगणना के दिन ही उन्हें चंडीगढ़ पहुँचने का फरमान जारी करने की खबर आई थी। कहा जा रहा था कि नवनिर्वाचित विधायकों को वहाँ से छत्तीसगढ़ या राजस्थान पहुँचाया जाएगा। हालाँकि, आज शाम शिमला में ही सीएम पद को लेकर बैठक होने वाली है। उधर पार्टी में मुख्यमंत्री पद को लेकर कॉन्ग्रेसी रिवाज की तरह खींचतान जारी है।

मुख्यमंत्री की रेस में राज्य की कॉन्ग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और उनके 33 वर्षीय विधायक बेटे विक्रमादित्य सिंह हैं। इसमें सबसे अधिक विक्रमादित्य सिंह का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। हालाँकि, विक्रमादित्य सिंह कह चुके हैं कि वे अपनी माँ को ही सीएम बनते देखना चाहते हैं। बात यही खत्म नहीं होती है। इन माँ-बेटे के अलावा पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू, ठाकुर कौन सिंह और आशा कुमारी भी मुख्यमंत्री की रेस में शामिल बताए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री पद पर मंथन को लेकर राजधानी शिमला में आज कॉन्ग्रेस पार्टी का मंथन होना है। इस मंथन में हिमाचल प्रदेश कॉन्ग्रेस के प्रभारी राजीव शुक्ला और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा शामिल होंगे। देखना ये ही हिमाचल में सर्वसम्मति से इस पद के लिए किसे चुना जाता है या फिर अन्य कॉन्ग्रेस शासित राज्यों की तरह हिमाचल भी गुटबाजी का शिकार बनकर जनता के लिए एक बुरे सपने की तरह बन जाएगा।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

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