Sunday, October 6, 2024
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भगवा वस्त्र, भगवान भास्कर को अर्घ्य, ओंकार का नाद, हाथों में माला… जिस ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ का कभी ईसाई नाविकों ने किया था बहिष्कार, वहाँ PM मोदी की चल रही साधना

बता दें कि 'विवेकानंद शिला स्मारक' वही स्थान है, जहाँ कभी माँ कन्याकुमारी ने तपस्या की थी और जहाँ स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त हुआ था। 1962 में कन्याकुमारी के RSS कार्यकर्ताओं के मन में यहाँ भव्य स्मारक बनवाने का विचार आया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ पर 45 घंटों की साधना में व्यस्त हैं। इस दौरान उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किया, उदय हो रहे भगवान भास्कर को जल अर्पित किया और स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा के सामने बैठ कर ओंकार के नाद के बीच ध्यान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दौरान माला से जाप भी कर रहे हैं। बताते चलें कि भारत के सुदूर दक्षिण हिस्से में स्थित कन्याकुमारी से सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य बड़ा मनमोहक होता है।

बता दें कि ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ वही स्थान है, जहाँ कभी माँ कन्याकुमारी ने तपस्या की थी और जहाँ स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त हुआ था। 1962 में कन्याकुमारी के RSS कार्यकर्ताओं के मन में यहाँ भव्य स्मारक बनवाने का विचार आया था। ‘हैंदव सेवा संघ’ के अध्यक्ष वैलयुधन पिल्लई ने इसकी पहल शुरू की। उसी दौरान पश्चिम बंगाल स्थित ‘रामकृष्ण मिशन’ के नेतृत्व में चेन्नई (तब मद्रास) में एक कार्यक्रम हुआ, जिसमें उसके अध्यक्ष स्वामी सत्त्वानंद भी मौजूद थे और उनके मन में भी ऐसे ही विचार आए।

अब जब लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव के 7वें चरण का मतदान शनिवार (1 जून, 2024) को होना है, उससे पहले PM मोदी की साधना के बीच हमें ये भी याद करने की ज़रूरत है कि तमिलनाडु के कन्याकुमारी स्थित ‘विवेकानंद शिला स्मारक’ का निर्माण RSS के सरकार्यवाह रहे एकनाथ रानडे ने बनवाया था। एकनाथ रानडे बताते हैं कि कन्याकुमारी में तब ईसाई मछुआरों की संख्या बहुत अधिक थी, जो उस समय से 400 वर्ष पूर्व हिन्दू हुआ करते थे लेकिन पुर्तगाल से आए सेंट जेवियर ने उनका धर्मांतरण करा दिया।

ईसाई इस जगह पर अपना दावा ठोकते थे और उन्होंने किसी कट्टर पादरी के उकसाने पर इस शिला पर क्रॉस कर दिया था, जिसके विरोध में हिन्दुओं की सभाएँ आयोजित हुईं और रातोंरात इसे किसी तरह हटाया गया। ईसाई इसे सेंट जेवियर की शिला बताते थे, जबकि यहाँ माँ कन्याकुमारी के चरण चिह्न (श्रीपाद) मौजूद है। जब वहाँ पहली बार नौका सेवा प्रारंभ की गई तो स्थानीय नाविकों ने इसका बहिष्कार कर दिया। फिर केरल से नाविकों को बुलाना पड़ा। 17 जनवरी, 1963 को यहाँ शिलालेख स्थापित किया गया था जिसे ईसाइयों ने समुद्र में फेंक दिया था। हालाँकि, फिर भी काम पूरा हुआ।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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