क्या विद्वान केवल एक ही समूह में होते हैं? क्या सिर्फ़ वही व्यक्ति विद्वान कहा जाएगा जो अमेरिका और यूरोप के लेखकों को उद्धृत करता हो, भारतीय तत्व-मीमांसा में रत व्यक्ति को विद्वता का प्रमाण-पत्र पाने का कोई अधिकार नहीं है? प्रमाण-पत्र इसीलिए, क्योंकि भारत में एक विशेष गिरोह है जो इसे बाँटता फिरता है। वो गिरोह ये तय करता है कि कौन लेखक है और कौन नहीं, कौन बुद्धिजीवी है और कौन नहीं, कौन विद्वान है और कौन नहीं। स्वामी रामभद्राचार्य को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ मिलने के बाद ये साफ़ हो गया है कि वो इस गिरोह द्वारा कल्पित विद्वानों की सूची में नहीं आते हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार (16 मई, 2025) को रामानंदी संप्रदाय के जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य को 58वें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार‘ से सम्मानित किया। उद्योगपति साहू शांति प्रसाद द्वारा 1944 में स्थापित ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ द्वारा प्रतिवर्ष साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले लेखकों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता रहा है। 1965 से इस अवॉर्ड की शुरुआत हुई थी। सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, अमृता प्रीतम, महाश्वेता देवी, निर्मल वर्मा, केदारनाथ सिंह और कृष्णा सोबती जैसे बड़े नामों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। अब इस सूची में चित्रकूट स्थित ‘तुलसी पीठ’ के संस्थापक स्वामी रामभद्राचार्य का नाम भी जुड़ गया है।
स्वामी रामभद्राचार्य को क्यों मिला ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’?
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ मिलने के बाद एक प्रश्न जो बार-बार पूछा जा रहा है वो ये है कि उन्हें ये सम्मान क्यों? ये सवाल पूछने वालों में अधिकतर वो हैं जिन्हें पता तक नहीं है कि भारतीय साहित्य के बड़े नाम कौन से हैं, महत्वपूर्ण पुस्तकें कौन सी हैं अथवा भारतीय साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न कालों में किन-किन प्रकार की रचनाओं का प्रभुत्व रहा है। अब जो जागरूक ही नहीं है, वो सोशल मीडिया के आधार पर अपनी राय बनाएगा। उसने सोशल मीडिया पर स्वामी रामभद्राचार्य के साहित्यिक कार्यों को देखा ही नहीं, तो वो सवाल पूछेगा ही।
ऐसा नहीं है कि ये सवाल पूछने वाले लोग धन अथवा मुख्यधारा तक अपनी पहुँच न होने के कारण अनभिज्ञ हैं, उन्होंने अनभिज्ञता के कुएँ में रहना स्वयं ही चुना है। कारण – भारतीय संस्कृति, परंपराओं एवं इतिहास से उन्हें घृणा है। ये घृणा उन्हें अविद्या की तरफ ले जाती है और ये अविद्या उन्हें हर गंभीर कार्य करने वाले का विरोध करने के लिए उकसाती है। मैं इस लेख में उन्हें जवाब नहीं देने जा रहा, बल्कि उन आम लोगों को समझाने जा रहा हूँ, जिन्हें अपने भ्रमजाल में फँसाने के लिए वो अनभिज्ञ गिरोह सारा कुचक्र रचता है।
फिर वही सवाल – एक भगवा वस्त्र धारण करने वाले एक नेत्रहीन साधु को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ क्यों? क्या भारत में अब सेक्युलरिज्म नाम की कोई चीज नहीं बची, आखिर राष्ट्रपति के हाथ से हिन्दू धर्म का साधु कैसे सम्मानित हो सकता है? ऐसे ही सभी सवालों के जवाब मैं इस लेख के जरिए देने जा रहा हूँ। पहले सवाल का सीधा जवाब है – 22 भाषाओं के विद्वान स्वामी रामभद्राचार्य 240 से अधिक पुस्तकें और 50 से अधिक शोधपत्र लिख चुके हैं। दूसरे सवाल का सीधा जवाब – भारत-भूमि पर इस भूमि के धर्म एवं संस्कृति को आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति का सम्मान किए जाने को किसी भी शब्द की दुहाई देकर रोकी नहीं जा सकती है।
साहित्य के क्षेत्र में जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य का योगदान
स्वामी रामभद्राचार्य अधिकतर संस्कृत में लिखते हैं, एक ऐसी भाषा जिसमें हमारे वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण और महाभारत लिखे गए। वो भाषा जिसे संरक्षण की आवश्यकता है। वो भाषा जिसमें रचित साहित्य कई पीढ़ियों की परवरिश के तौर-तरीकों को प्रभावित करते आए हैं। माता-पिता-गुरु के सम्मान से लेकर धर्म की रक्षा के लिए युद्ध तक की प्रेरणा हमें इन्हीं साहित्यों से मिली है। स्वामी रामभद्राचार्य इसी संस्कृति भाषा के मौजूदा युग के विरले विद्वानों में से एक हैं।
वो हिंदी में भी लिखते हैं, जो भारत की राजभाषा है और देश के अधिकतर लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है। वो देश में सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों उत्तर प्रदेश-बिहार की स्थानीय भाषाओं अवधी और भोजपुरी में भी साहित्य रचते आए हैं। यानी, स्वामी रामभद्राचार्य के कार्य शोधार्थियों के भी काम आते हैं, आम लोगों को भी प्रभावित करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास पर उनका अध्ययन इतना व्यापक है कि उन्हें रामचरितमानस पर अघोषित अंतिम प्राधिकरण माना जाता है। जिज्ञासा, समीक्षण, श्रद्धा एवं विश्वास की सनातन नीति पर चलते हुए उन्होंने रामचरितमानस का प्रामाणिक संस्कार प्रस्तुत किया। रामचरितमानस ही वो काव्य है जिसने उत्तर भारत में रामकथा को पुनः हमारे जीवन में स्थापित किया।
बचपन से लेकर अबतक लगभग 5000 बार जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य रामचरितमानस कथा का प्रवचन देश-विदेश में कर चुके हैं। 8 वर्षों के गहन शोध एवं इस अमर साहित्य के 27 संस्करणों के अध्ययन के बाद उन्होंने ‘तुलसी पीठ’ के माध्यम से अपना संस्करण पेश किया। हालाँकि, पुस्तक से छेड़छाड़ के कारण 2008-09 में उनके विरुद्ध विरोध प्रदर्शन भी हुए, लेकिन भारतीय इतिहास में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है और शंकराचार्य भी जगद्गुरु तभी हुए जब उन्होंने वाद-विवाद के माध्यम से देश भर के विद्वानों का हृदय जीता। अतः, महत्वपूर्ण ये है कि हमारे प्राचीन साहित्य विलुप्त न हों और उनपर श्रद्धाभाव से शोधकार्य होता रहे।
9000 पृष्ठ, 50000 श्लोक और 9 खंड… पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण ‘अष्टाध्यायी’ पर उन्होंने जो महाभाष्य लिखा है वैसा आजतक नहीं लिखा गया। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका अनावरण किया। ‘अष्टाध्यायी’ साधारण पुस्तक नहीं है, पतंजलि ने इसे ‘सर्ववेद-परिषद्-शास्त्र’ कहकर संबोधित किया है। फरवरी 2025 में चित्रकूट पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी रामभद्राचार्य की 3 पुस्तकों का अनावरण किया – पाणिनि का ‘अष्टाध्यायी’ महाभाष्य, रामानंदाचार्य चरितम और राष्ट्रलीला ऑफ लॉर्ड श्री कृष्णा। पीएम मोदी ‘विकास भी, विरासत भी’ की नीति लेकर चलते हैं, ऐसे में उस ‘विरासत’ के मुख्य स्तंभ बनकर स्वामी रामभद्राचार्य के कार्य स्वतः ही स्थापित हो जाते हैं।
‘अष्टाध्यायी’ ईसा के जन्म से भी सैकड़ों वर्ष पूर्व लिखी गई संस्कृत व्याकरण की पुस्तक है, जिसके आधार पर वैदिक काल के बाद के साहित्य रचे गए। यहाँ तक कि ग्रीक और लैटिन जैसी प्राचीन विदेशी भाषाओं में भी इस तरह के किसी पुस्तक का कोई उदाहरण नहीं मिलता। स्वामी रामभद्राचार्य को तो केवल एक इस कार्य के लिए ज्ञानपीठ जैसे कई पुरस्कार मिल जाने चाहिए थे। उन्होंने इसका कई गुना कार्य कर दिया।
रामचरितमानस के क्रिटिकल एडिशन और ‘अष्टाध्यायी’ महाभाष्य के अलावा उनका एक और महत्वपूर्ण कार्य है – ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और 11 उपनिषदों पर आधारित ‘श्रीराघवकृपाभाष्यम्’। जो लोग आज स्वामी रामभद्राचार्यजी पर निशाना साध रहे हैं उनमें से अधिकतर आज से 27 वर्ष पूर्व या तो पैदा भी नहीं हुए होंगे या डायपर में खेल रहे होंगे, तब अप्रैल 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस पुस्तक को लॉन्च कर रहे थे। ब्रह्मसूत्र, उपनिषद और गीता को मिलाकर ‘प्रस्थानत्रयी’ कहते हैं, 500 वर्षों से इनपर कोई संस्कृत भाष्य नहीं लिखा गया था, ये कार्य स्वामी रामभद्राचार्य ने किया।
धर्म एवं संस्कृति के साथ-साथ दिव्यांगों के लिए भी चलाते हैं यूनिवर्सिटी
रामकथा के माध्यम से कई दशकों से वो समाज को ऐतिहासिक व आध्यात्मिक ज्ञान से लाभान्वित कर रहे हैं, ये योगदान भी कम है क्या? और हाँ, ये सब उन्होंने प्रज्ञाचक्षु होने के बावजूद किया है। नेत्र चले गए, लेकिन दृष्टि उन्होंने श्रम व साधना से अर्जित की। 1991 में उन्होंने PhD की और 1998 में DLitt – उनको गाली देने वाले अधिकतर अबतक टैक्स के पैसों से ही पल रहे हैं। और हाँ, पोस्ट डॉक्टरेट की डिग्री उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति KR नारायणन के हाथों मिली थी, जो दलित समाज से थे। हिन्दू एकता को खंडित करने के लिए द्रविड़ बनाम आर्य का कुचक्र रचने वालों को ये पसंद नहीं आएगा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीराम जन्मभूमि मामले के अंतिम जजमेंट में उनकी गवाही और उनके द्वारा दिए गए साक्ष्यों का जिक्र हुआ। राम मंदिर को लेकर उन्होंने शास्त्रों से ऐसे-ऐसे साक्ष्य दिए कि जज भी दंग रह गए। दिव्यांग छात्र-छात्राओं के लिए उन्होंने एक पूरी की पूरी यूनिवर्सिटी खोल की। अध्यात्म व समाज की सेवा के लिए ‘तुलसी पीठ’ की स्थापना की। भारत क्या, पूरी दुनिया में दिव्यांगों के लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं था। ‘विकलांग सेवा संघ’ के जरिए उन्होंने दिव्यांग पुरुषों-महिलाओं के कल्याण के लिए कई कार्यक्रम शुरू करवाए।
रामभद्राचार्य जी की इतनी रचनाएँ कि उनपर बात करते-करते ही सुबह से शाम हो जाए। उन्हें पढ़ने, समझने और उनकी मीमांसा या उनपर टीका करने में कितने साल लग जाएँगे ये स्वयं ही सोच लीजिए। सोचिए, जिन्होंने स्वामी रामभद्राचार्य के साहित्य का क-ख-ग भी नहीं पढ़ा है, वो उनके योगदान को लेकर सवाल उठा रहे हैं। साहित्य, समाज और संस्कृति – तीनों क्षेत्र में उनका योगदान अभूतपूर्व है। जिस ‘तुलसी पीठ सेवा न्यास’ की उन्होंने स्थापना की है वो आगे भी कई वर्षों तक उनके द्वारा शुरू किए गए अभियान जो जारी रखेगा। स्वामी रामभद्राचार्य के कार्य सनातन पर हैं, सनातन हैं।
स्वामी रामभद्राचार्य के रचनाओं की तालिका
यहाँ मैं स्वामी रामभद्राचार्य की रचनाओं को विवरण के साथ पेश कर रहे हैं:
वर्ष | शीर्षक | भाषा | प्रकाशक | सारांश |
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1994 | अरुन्धती | हिन्दी | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | वसिष्ठ और अरुंधति के जीवन पर आधारित 15 सर्गों में विभाजित 1,279 श्लोकों की महाकाव्यात्मक कविता। |
2002 | श्रीभार्गवराघवीयम् | संस्कृत | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | 21 सर्गों, 2,121 श्लोकों का महाकाव्य। हिंदी व्याख्या सहित। कई पुरस्कार प्राप्त। |
2010 | अष्टावक्र | हिन्दी | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | 8 सर्गों में 864 श्लोकों में रचित, अष्टावक्र ऋषि पर आधारित। |
2011 | गीतरामायणम् | संस्कृत | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | 28 सर्गों में 1,008 गीतों द्वारा रामायण की संगीतमय प्रस्तुति। |
1980 | काका विदुर | हिन्दी | श्री गीता ज्ञान मंदिर, राजकोट | महाभारत के विदुर पर लघुकाव्य। |
1980 | मुकुन्दस्मरणम् | संस्कृत | श्री गीता ज्ञान मंदिर, राजकोट | कृष्ण की स्तुति में दो भागों में लघुकाव्य। |
1982 | मा̐ शबरी | हिन्दी | गिरिधर कोशलेंद्र चिन्तन समिति, दरभंगा | रामायण की पात्रा शबरी पर आधारित लघुकाव्य। |
1996 | आजादचन्द्रशेखरचरितम् | संस्कृत | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद पर लघुकाव्य। हिंदी टीका सहित। |
2000 | सरयूलहरी | संस्कृत | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | सरयू नदी पर आधारित लघुकाव्य। |
2001 | लघुरघुवरम् | संस्कृत | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | बाल राम पर लघुकाव्य, केवल लघु वर्णों में। |
2004 | भृङ्गदूतम् | संस्कृत | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | मंदाक्रान्ता छंद में, राम द्वारा सीता को भेजे संदेश का चित्रण। |
1991 | राघवगीतगुञ्जन | हिन्दी | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | गीतात्मक कविता। |
1993 | भक्तिगीतसुधा | हिन्दी | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | राम और कृष्ण पर आधारित 438 गीतों की कविता। |
1997 | श्रीरामभक्तिसर्वस्वम् | संस्कृत | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | 100 श्लोकों की कविता। |
— | आर्याशतकम् | संस्कृत | — | आर्या छंद में 100 श्लोकों की कविता। |
— | चण्डीशतकम् | संस्कृत | — | देवी चंडी की स्तुति में 100 श्लोकों की कविता। |
— | राघवेन्द्रशतकम् | संस्कृत | — | राम की स्तुति में 100 श्लोकों की कविता। |
— | गणपतिशतकम् | संस्कृत | — | गणेश की स्तुति में 100 श्लोकों की कविता। |
— | श्रीराघवचरणचिह्नशतकम् | संस्कृत | — | राम के चरणचिह्नों की स्तुति में 100 श्लोक। |
1987 | श्रीजानकीकृपाकटाक्षस्तोत्रम् | संस्कृत | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | सीता की कृपा दृष्टि की स्तुति। |
1992 | श्रीरामवल्लभास्तोत्रम् | संस्कृत | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | सीता की स्तुति। |
1994 | श्रीगङ्गामहिम्नस्तोत्रम् | संस्कृत | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | गंगा नदी की महिमा पर स्तुति। |
1995 | श्रीचित्रकूटविहार्यष्टकम् | संस्कृत | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | राम के चित्रकूट विहार की 8 श्लोकों में स्तुति। |
2002 | श्रीराघवभावदर्शनम् | संस्कृत | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | राम के जन्म की उपमाओं द्वारा स्तुति; हिंदी टीका सहित। |
2003 | कुब्जापत्रम् | संस्कृत | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | कुब्जा द्वारा कृष्ण को लिखा गया पत्र। |
2008 | श्रीसीतारामकेलिकौमुदी | हिन्दी | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | 327 पदों में बाल लीलाओं पर आधारित रीति काव्य। |
2009 | श्रीसीतारामसुप्रभातम् | संस्कृत | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | सीता-राम को समर्पित सुप्रभातम्। हिंदी अनुवाद सहित। |
1996 | श्रीराघवाभ्युदयम् | संस्कृत | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | राम के उदय पर आधारित एकांकी नाटककाव्य। |
— | उत्साह | हिन्दी | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | — |
स्वामी रामभद्राचार्य की कुछ अन्य रचनाएँ यहाँ देखिए:
वर्ष | शीर्षक | विषय | प्रकाशक | टिप्पणी |
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1998 | श्रीब्रह्मसूत्रेषु श्रीराघवकृपाभाष्यम् | ब्रह्मसूत्र | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | प्रस्थानत्रयी पर संस्कृत में भाष्य |
1998 | श्रीमद्भगवद्गीतासु श्रीराघवकृपाभाष्यम् | भगवद्गीता | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | कठोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | कठोपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | केनोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | केनोपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | माण्डूक्योपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | माण्डूक्य उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | ईशावास्योपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | ईशावास्य उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | प्रश्नोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | प्रश्न उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | तैत्तिरीयोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | तैत्तिरीय उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | ऐतरेयोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | ऐतरेय उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | श्वेताश्वतरोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | श्वेताश्वतर उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | छान्दोग्योपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | छांदोग्य उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | बृहदारण्यकोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | बृहदारण्यक उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1998 | मुण्डकोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम् | मुण्डक उपनिषद् | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1991 | श्रीनारदभक्तिसूत्रेषु श्रीराघवकृपाभाष्यम् | नारद भक्ति सूत्र | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1997 | अष्टाध्याय्याः प्रतिसूत्रं शाब्दबोधसमीक्षणम् | अष्टाध्यायी सूत्रों पर शोध | राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (प्रकाशनाधीन) | डी.लिट् शोधप्रबंध |
2001 | श्रीरामस्तवराजस्तोत्रे श्रीराघवकृपाभाष्यम् | श्रीराम स्तवराज स्तोत्र | श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास | – |
1983 | महावीरी | हनुमान चालीसा पर टीका | श्री कृष्ण जन्म सेवा संस्थान, मथुरा | – |
1985 | श्रीगीतातात्पर्य | भगवद्गीता | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | – |
2005 | भावार्थबोधिनी | रामचरितमानस | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | – |
– | श्रीराघवकृपभाष्य (९ खण्डों में) | रामचरितमानस | – | – |
1981 | अध्यात्मरामायणे अपाणिनीयप्रयोगानां विमर्शः | अध्यात्मरामायण की पाणिनि–विरुद्ध प्रवृत्तियों की समीक्षा | – | पीएचडी शोधप्रबंध |
1982 | मानस में तापस प्रसंग | रामचरितमानस के अयोध्या काण्ड में एक तपस्वी के प्रसंग की विवेचना | श्री गीता ज्ञान मंदिर, राजकोट | – |
1988 | सनातनधर्म की विग्रहस्वरूप गोमाता | गोमाता की सनातन धर्म में स्थिति पर विवेचन | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | – |
1988 | श्रीतुलसीसाहित्य में कृष्णकथा | तुलसीदास कृत साहित्य में कृष्ण चरित्र की समीक्षा | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | – |
1990 | सीता निर्वासन नहीं | वाल्मीकि रामायण में सीता निर्वासन को उत्तरकाण्ड की कलपना सिद्ध करने वाला आलोचनात्मक ग्रंथ | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | – |
2007 | श्रीरासपञ्चाध्यायीविमर्शः | भागवत के रासपंचाध्यायी पर विवेचन | जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय | – |
1980 | भरत महिमा | रामायण में भरत जी की महिमा पर नवाह्निक प्रवचन | श्री गीता ज्ञान मंदिर, राजकोट | – |
1985 | सुग्रीव का अघ और विभीषण की करतूति | रामायण के दो पात्रों पर नवाह्निक प्रवचन | श्री कृष्ण जन्म सेवा संस्थान, मथुरा | – |
1989 | मानस में सुमित्रा | रामचरितमानस में सुमित्रा की भूमिका पर नवाह्निक प्रवचन | श्री राघव साहित्य प्रकाशन निधि, हरिद्वार | – |
1992 | प्रभु करि कृपा पाँवरी दी… | – | – | अपूर्ण प्रवचन ग्रंथ |
सोचिए, मात्र 2 महीने की उम्र में जिस शिशु को अपनी आँखें खोनी पड़ी थीं, उसने विद्वता के शिखर को छूकर ये सन्देश दिया कि कोई भी सफल न होने के पीछे कोई भी बहाना नहीं होता। श्रम एवं साधना से सबकुछ संभव है। जिस बच्चे को अपशकुन मानकर परिवार-समाज के शादी-विवाह व अन्य शुभ कार्यक्रमों में हिस्सा तक नहीं लेने दिया जाता था, वो शुभ-लाभ का चलता-फिरता प्रतीक बन गया। तभी अपनी शुरुआती रचनाओं के दौरान वो स्वयं को ईश्वर के समक्ष ‘अनाथं जडं मोहपाशेन बद्धं’ कहकर संबोधित करते हैं, अर्थात – “जो अनाथ है, जड़ है, और मोह के बंधन में जकड़ा हुआ है।”