Friday, April 19, 2024
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सोलंकी क्षत्रिय राजाओं ने रूद्रों के नाम पर बनवाया भव्य रुद्र महालय: ज्योतिषी बोला- प्रलय तक रहेगा मंदिर, दो बार इस्लामी आक्रांताओं ने तोड़ा, बना दी जामी मस्जिद

मार्कण्ड शास्त्री ने कहा था कि शुभ मुहूर्त में इस नींव के कारण इस रुद्र महालय मंदिर को कोई स्पर्श नहीं कर सकेगा। यह मंदिर जब तक सूर्य-चंद्रमा रहेंगे, तब तक विराजमान रहेगा और इसे कोई खरोंच नहीं आ सकता। मार्कण्ड शास्त्री ने कहा कि इस मंदिर को सोने की कीलों से शेषनाग के सिर पर गाड़ दिया गया है और यह पूरी पृथ्वी शेषनाग के सिर पर है।

गुजरात के पाटण जिले के सिद्धपुर में अपनी व्यथा लिए हुए अतीत के एक भव्य मंदिर खड़ा है, जिसे रुद्र महालय या रुद्रामल मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर भारत के उस राज्य में स्थित है, जो हिंदुत्व का प्रयोगशाला कहलाता है। राज्य मे 27 सालों से देशभक्ति और राष्ट्रीयता की बात करने वाली पार्टी का शासन है, लेकिन इसकी अवस्था में कोई अंतर नहीं आया है।

इस मंदिर का निर्माण चालुक्य क्षत्रिय वंश, जिन्हें सोलंकी राजपूत भी कहा जाता है, के संस्थापक महाराजा मूलराज सिंह सोलंकी ने 943वीं में इसका निर्माण शुरू करवाया था। इसे उनके वंश के सिद्धराज जयसिंह (1094-1144) में पूरा कराया था। सिद्धराज जयसिंह ने प्रसिद्ध सहस्रलिंग तालाब का भी निर्माण कराया था।

इस मंदिर को पहला और सबसे बड़ा चालुक्य मंदिर कहा जाता है। रुद्र महालय मंदिर एक बहुमंजिला मंदिर है। इस मंदिर को भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इसके परिसर में 11 सहायक मंदिर भी हैं, जो भगवान शिव के एकादश रूद्रों को समर्पित है।

यह मंदिर 91 मीटर लंबा और 70 मीटर चौड़ा था। इसके मुख्य भवन की ऊँचाई 150 फीट थी। मंदिर में पूर्व, दक्षिण और उत्तर की ओर दरवाजे के साथ एक केंद्रीय मण्डप था। इसके साथ ही इसमें 12 प्रवेशद्वार थे। 3 मंजिला मंदिर में कुल 1600 खंभे थे। पूर्वी द्वार सुंदर नक्काशी वाले ‘तोरण’ से सुशोभित था, जो की सरस्वती नदी की ओर जाता था।

उत्खननों के दौरान इसके कुछ सहायक मंदिरों, एक तोरण, दो ड्योढ़ी और मुख्य मंदिर कपिली के चार स्तंभों का पता चला। इसके बगल में सुंदर तराशे हुए विशाल स्तंभ, विशाल दरवाजा और तोरण मेहराब पाए गए हैं। स्तंभ और तोरण आज मंदिर के एकमात्र अवशेष के रूप में खड़े हैं।

उत्खनन में गए दिवारों और खंभों पर व्यापक और विस्तृत नक्काशी की गई है और राजपूत काल के कलाप्रेम को उजागर करते हैं। इसके राजपूत शैली में बने इस मंदिर की भव्यता का प्रमाण भी देते हैं। हालाँकि, यह मंदिर अब जीर्णावस्था में है। इस मंदिर की विशालता और भव्यता की आज के पूरे गुजरात और राजस्थान के कुछ हिस्सों में प्रसिद्ध थी।

निर्माण की कहानी

इस मंदिर के निर्माण की कई कहानियाँ प्रचलित हैं। अब कहानियाँ तो कहानियाँ होती हैं। अगर इनका साक्ष्य मिल जाए तो इतिहास हो जाती हैंं। ऐसी ही एक कहानी है, राजा के स्वप्न को लेर। कहा जाता है कि महाराजा मूलराज सिंह ने स्वप्न में देखा कि वे सरस्वती नदी के तट पर भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर का निर्माण करा रहे हैं।

इसके बाद अगले दिन उन्होंने प्रसिद्ध वास्तुकार प्रंधार को बुलाया और पत्थरों का चयन तथा निर्माण कार्य शुरू करने का आदेश दिया। प्रंधार ने देश-विदेश से कुशल कारीगरों एवं ज्योतिषियों को बुलाकर मंदिर निर्माण का कार्य शुरू कर दिया।

कहा जाता है कि इसी बीच महाराजा मूलराज सिंह का निधन हो गया। उसके बाद प्रंधार भी स्वर्ग प्रस्थान कर गए। पाटण की गद्दी पर उनके वंशज सिद्धराज जयसिंह बैठे। जयसिंह को भी एक रात सपने में अपने पूर्वज के वचनों के बारे में याद दिलाया गया। इसके बाद सिद्धराज ने मंदिर निर्माण का काम फिर शुरू करवाया।

इस मंदिर को सूर्य रहने तक कोई छू नहीं सकेगा- ज्योतिषी मार्कण्डेय शास्त्री

महाराजा सिद्धराज जयसिंह ने रुद्र महालय को पूरा कराने के लिए उस समय के विख्यात ज्योतिष मार्कण्ड शास्त्री को मालवा से बुलवाया। मार्कण्ड ने मंदिर के लिए नया स्थान चुना और फिर से नींव रखवाया। इसके बाद मार्कण्ड ने जमीन में कई जगह सोने की कीलें गड़वाईं। जब राजा सिद्धराज जयसिंह ने पूछा तो मार्कण्ड ने मंदिर के भविष्य को लेकर एक बात कही।

मार्कण्ड ने कहा कि शुभ मुहूर्त में इस नींव के कारण इस रुद्र महालय मंदिर को कोई स्पर्श नहीं कर सकेगा। यह मंदिर जब तक सूर्य-चंद्रमा रहेंगे, तब तक विराजमान रहेगा और इसे कोई खरोंच नहीं आ सकता। मार्कण्ड शास्त्री ने कहा कि इस मंदिर को सोने की कीलों से शेषनाग के सिर पर गाड़ दिया गया है और यह पूरी पृथ्वी शेषनाग के सिर पर है। इसलिए यह मंदिर को कभी खरोंच नहीं आ सकता।

इसके बाद राजा जयसिंह ने कहा कि सृष्टि में ऐसी कोई रचना नहीं, जिसका अंत ना हो। इस पर मार्कण्ड बोले, “महाराज मेरी ज्योतिषीय गणना कभी गलत न हो सकती, भले ही कितने प्रलय आ जाए और संसार का अंत हो जाए। वो सब इस महालय के चरणों को नमन करेंगे।”

इसके बाद कहा जाता है कि राजा को जब विश्वास नहीं हुआ तो वह कीलें उखाड़ी। उसमें रक्त का निशान था। यह देखकर ज्यतिषी बोला कि अब इस कील को उखाड़ने के बाद मंदिर की अमरता खत्म हो गई है।

इस्लामी आक्रमण

जब दिल्ली की गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का शासन था, उस वक्त खिलजी गुजरात जीतने के लिए अपने कमांडर उलुग खान के नेतृत्व में सेना भेजा था। उलुग खान के नेतृत्व में खिलजी की सेना सन 1296 ईस्वी में पाटण पहुँची और मारकाट मचा दिया।

उलुग खान ने इस मंदिर के बड़े हिस्से को ध्वस्त कर दिया और मंदिर के विग्रहों को अपवित्र कर दिया। इतना ही नहीं, उलुग खान ने उस सिद्धपुर और उसके आसपास के इलाके में स्थित सैकड़ों सनातनी, जैन और बौद्ध मंदिरों को ध्वस्त कर दिया था।

इसके बाद मंदिर के एक बड़े हिस्से पर अलाउद्दीन खिलजी ने एक मस्जिद का निर्माण करा दिया। यह मंदिर जामी मस्जिद के नाम के आजकल जाना जाता है। उसके बाद से यह स्थान विवाद का एक प्रमुख कारण बना हुआ है।

उलुग खान के हमले के बाद सोलंकी क्षत्रियों ने ध्वस्त मंदिर के हिस्सों का पुनर्निर्माण कराया और विग्रहों को स्थापित किया। हालाँकि, मंदिर में तीन मंजिला शिखर, 1600 खंभे, 12 प्रवेश द्वार, विशाल सभा कक्ष और तीन तरफ बरामदे वाला उसका पुराना स्वरूप नहीं आ पाया।

इसके बाद गुजरात अहमद शाह के कब्जे में चला गया। गुजरात के सुल्तान अहमद शाह ने रुद्न महालय पर 1414-15 ईस्वी में फिर आक्रमण किया है और इसके अधिकांश हिस्से को ध्वस्त कर दिया। आज मंदिर के अवशेष बचे हैं। इतना ही नहीं मंदिर परिसर के बड़े हिस्से पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है।

सुल्तान अहमद शाह के इतिहासकारों ने मिरात-ए-सिकंदरी किताब में मंदिर के मूर्तियों के बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने लिखा है कि मंदिर की मूर्तियाँ चीन और खेतान की मूर्तियों से भी भव्य हैं।

पूजा शुरू कराने की कोशिश

जामी मस्जिद बन जाने के कारण इस मंदिर में तब से पूजा-पाठ भी बंद था। हालाँकि, इसी साल अक्टूबर में National Monument Authority के अध्यक्ष और पूर्व सांसद तरुण विजय ने विजयादशमी पर न सिद्धपुर मंदिर में रुद्र महालय पूजा शुरू करने पर जोर दिया था।

इस मंदिर का अब तक कोई डिजिटल रिकॉर्ड नहीं था। तरुण विजय ने रुद्र महालय पर अपनी रिपोर्ट में मंदिर की सभी मूर्तियों को डिजिटल करने के लिए ASI को दिए गए निर्देश का जिक्र किया था। हालाँकि, सरकार की तरफ इसका संरक्षण करने की कोशिश नहीं दिख रही है।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

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