Thursday, July 10, 2025
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5 जिले, 1 लाख रोजगार, ₹1500-₹4000 करोड़ खर्च… ‘हथियार हब’ बन ‘ठोंक देंगे कट्टा कपार में’ का दाग धोएगा बिहार: ‘डिफेन्स कॉरिडोर’ को जमीन पर उतारने में जुटी डबल इंजन सरकार

बिहार में यह ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कॉरिडोर 5 जिलों में बनेगा। यह जिले मुंगेर, कैमूर, बांका, जमुई और अरवल जिलों में बनाया जाएगा। यहाँ कई तरह की बंदूकें और गोला-बारूद बनाने की फैक्ट्रियाँ लगेंगी। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि एक फैक्ट्री पर लगभग ₹1500 करोड़ का खर्च आएगा।

‘ठोंक देंगे कट्टा कपार में, आइए ना हमरा बिहार में’… ये द खाकी चैप्टर: बिहार फाइल्स नाम की एक वेब सीरिज के टाइटल सॉंग की पहली लाइन है। यह वेब सीरीज बिहार में अपराध के दौर और उसके खिलाफ एक IPS अधिकारी की लड़ाई की कहानी है। लेकिन जो लाइन मैंने लिखी है वो दिखाती है कि तब के दौर में बिहार और अवैध कट्टा एक दूसरे के पर्यायवाची हो गए थे। लेकिन अब ये स्थिति बदलने वाली है।

बिहार में अब आर्डिनेंस फैक्ट्री कॉरिडोर बनने जा रहा है। इससे पाँच जिलों में उन बंदूकों का निर्माण होगा जो सेना और पुलिस के काम आएँगी। यहाँ बनने वाले हथियार विदेशों तक जाएँगे और भारत के निर्यातों में सहायता करेंगे। यहाँ बनने वाला गोला बारूद बिहार की सड़कों पर नहीं चलेगा बल्कि दुश्मन का सफाया करने के काम आएगा। केन्द्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार मिल कर यह कॉरिडोर बनाने वाली है।

क्या है पूरा प्लान?

बिहार के उद्योग मंत्री नीतीश मिश्रा ने केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को बिहार में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कॉरिडोर बनाने प्रस्ताव भेजा है। यह कॉरिडोर बिहार के 5 जिलों में बनाए जाने की योजना है। इसके तहत हर जिले में गोला-बारूद और हथियार बनाने की फैक्ट्रियाँ स्थापित की जाएँगी। इस प्रस्ताव को रक्षा मंत्रालय से स्वीकृति मिलना अभी बाकी है।

मंत्री नीतीश मिश्रा ने प्रस्ताव भेजने के साथ ही कहा है कि बिहार में यदि यह ऑर्डिनेंस कॉरिडोर जमीन पर उतर आता है तो इससे समय पर हथियारों की आपूर्ति देश भर में की जा सकेगी। इसके अलावा बिहार में इससे लगभग 1 लाख लोगों को रोजगार मिलने की भी बात कही गई है।

किन-किन जिलों में बनेगा कॉरिडोर

बिहार में यह ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कॉरिडोर 5 जिलों में बनेगा। यह जिले मुंगेर, कैमूर, बांका, जमुई और अरवल जिलों में बनाया जाएगा। यहाँ कई तरह की बंदूकें और गोला-बारूद बनाने की फैक्ट्रियाँ लगेंगी। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि एक फैक्ट्री पर लगभग ₹1500 करोड़ का खर्च आएगा।

यह फैक्ट्री जिस तरह का हथियार बनाएगी, उसी के अनुसार इसकी लागत होगी। कुछ फैक्ट्रियों की लागत ₹4000 करोड़ तक बताई जा रही है। सरकार का लक्ष्य है कि बीते कई वर्षों से अवैध हथियारों के पर्याय के रूप में प्रचारित हो गए मुंगेर जैसे जिलों को अब नई पहचान दी जाए।

इससे पहले मुंगेर में लगातार अवैध हथियारों के निर्माण और उनकी बिक्री के मामले सामने आते रहे हैं। मुंगेर में बीते 3-4 वर्षों में दर्जनों अवैध बन्दूक फैक्ट्री पकड़े जाने के मामले में सामने आते रहे हैं। इसके पीछे यहाँ बंद होती हथियार फैक्ट्रियां एक बड़ा कारण रहीं हैं।

रिपोर्ट्स में बताया गया है कि कभी मुंगेर के भीतर कई वैध फैक्ट्रियां थी जिनमें हजारों कारीगर काम करते थे। हालाँकि, जंगलराज और उसके बाद बन्दूक को लेकर कानूनों में आई सख्ती के चलते धीमे -धीमे यह फैक्ट्रियाँ बंद हो गईं। इसके चलते कारीगर बेरोजगार हो गए और कुछ अवैध हथियार बनाने में लग गए।

कौन-कौन से हथियार बनेंगे?

योजना है कि इन जिलों में लगने वाली फैक्ट्रियों में छोटी पिस्टल से लेकर तोप तक बनें। एक बार फैक्ट्रियाँ लगने पर यहाँ राइफल, मशीनगन, FN-मिनिमी, नेगेव NG-5 तथा ब्राउनिंग मशीनगन बनाने का प्लान है। इसके अलावा तोप, ग्रेनेड और ग्रेनेड लॉन्चर बनाने की भी योजना है।

सिर्फ हथियार ही नहीं बल्कि सेना के लिए उपयोग होने वाले हेलमेट और सुरक्षात्मक क्लोथिंग भी बनाई जाएगी। यह फैक्ट्रियाँ अपना कच्चा माल पड़ोसी झारखंड से लेंगी। हथियार बनाने के चलते यहाँ आसपास विकास भी तेजी से होगा। इन जिलों को फैक्ट्री के साथ ही हवाई सेवाओं से जोड़ने का भी प्लान बनाया जा रहा है।

बिहार को क्या फायदे?

बीते लगभग 3-4 दशकों से पलायन का दंश झेल रहे बिहार के लिए यह नई पहल बड़े स्तर पर कारगर सिद्ध हो सकती है। अंदाजा है कि यहाँ 1 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। इसके साथ ही बड़े उद्योग लगने के चलते यहाँ का बाकी इन्फ्रा भी सुधरेगा। फैक्ट्रियों में काम करने के अलावा उन लोगों को भी फायदा होगा जो इससे दूसरे तरीकों से जुड़ेंगे।

बिहार में यह फैक्ट्रियाँ सरकारी निवेश से लगेंगी। लेकिन यहाँ से बाद में कुशल कारीगर भी मिलेंगे, जिससे निजी निवेश भी आ सकता है। बिहार में अभी निजी कम्पनियाँ निवेश करने में पीछे हटती हैं। यह क्रम बिहार को पुनः आर्थिक तरक्की के क्रम पर ला सकता है।

बिहार में औद्योगीकरण का यह कोई पहला बड़ा प्रयास नहीं है। इससे पहले 1970 के दशक में भी ललित नारायण मिश्रा के जमाने में ऐसा प्रयास हो चुका है। हालाँकि, उसके बाद लालू प्रसाद यादव के जंगलराज का दौर चला, जिसके चलते बिहार में चलने वाले उद्योग धंधे भी बंद हो गए।

UP-तमिलनाडु में बन चुका है डिफेन्स कॉरिडोर

बिहार में आर्डिनेंस कॉरिडोर का यह प्रयास उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में पहले ही सफल हो चुका है। उत्तर प्रदेश में 6 जिलों में डिफेन्स कॉरिडोर बनाया गया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि यहाँ अब तक ₹47 हजार करोड़ से अधिक का निवेश हो चुका है। यहाँ 7 कम्पनियाँ अब निर्माण चालू कर चुका है।

तमिलनाडु के डिफेन्स कॉरिडोर में कई बड़ी टेस्टिंग फैसिलिटी बन रही हैं। बिहार में भी इस तरह का विकास मोदी सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा पर एजेंडे को ही बढ़ाएगा। मोदी सरकार आने के बाद से रक्षा क्षेत्र में निर्माण और रक्षा उत्पादों के निर्यात में तेज बढ़ोतरी हुई है।

वर्ष 2014 में जहाँ देश में मात्र ₹46 हजार करोड़ का रक्षा उत्पादों का निर्माण होता था, तो वहीं यह अब बढ़ कर ₹1.27 लाख करोड़ हो चुका है। इसी के साथ भारत का रक्षा उत्पादों का निर्यात 2014 के मुकाबले 34 गुना बढ़ कर ₹23,622 करोड़ हो चुका है। बिहार का आर्डिनेंस कॉरिडोर इसमें और सहायक हो सकता है।

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